जन्मपत्री में भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा।
साथ ही मंगल की स्थिति का सुदड़ होना भी आवश्यक है। मकान सुख के लिये मंगल और चतुर्थ भाव का ही अध्यन्न पर्याप्त नहीं है। भवन सुख के लिये लग्न व लग्नेश का बल होना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही दशमेश, नवमेश और लाभेश का सहयोग होना भी जरूरी है।
1. स्वअर्जित भवन सुख (परिवर्तन से)-
निष्पत्ति- लग्नेश चतुर्थ स्थान में हो चतुर्थेश लग्न में हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग में जन्म लेने वाला जातक पराक्रम व पुरुषार्थ से स्वयं का मकान बनाता है।
2. उत्तम ग्रह योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश किसी शुभ ग्रह के साथ युति करे, केंद्र-त्रिकोण (1,4,7,9,10) में हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति को अपनी मेहनत से कमाये रुपये का मकान प्राप्त होता है। मकान से सभी प्रकार की सुख सुविधायें होती है।
3. अकस्मात घर प्राप्ति योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश और लग्नेश दोनों चतुर्थ भाव में हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- अचानक घर की प्राप्ति होती है। यह घर दूसरों का बनाया होता है।
4. एक से अधिक मकानों का योग-
निष्पत्ति- चतुर्थ स्थान पर चतुर्थेश दोनों चर राशियों में (1,4,7,10) हो। चतुर्थ भावके स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो एक से अधिक मकान प्राप्ति के योग बनते हैं।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर मकान होते हैं। वह मकान बदलता रहता है।
5 वाहन, मकान व नौकर सुख योग (परिवर्तन से)-
निष्पत्ति- नवमेश, दूसरे भाव में और द्वितीयेश नवम भाव में परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग में जन्में जातक का भाग्योदय 12वें वर्ष में होता है। 32वें वर्ष के बाद जातक को वाहन, मकान और नौकर-चाकर का सुख मिलता है।
6. बड़े बंगले का योग-
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव में यदि चंद्र और शुक्र हो अथवा चतुर्थ भाव में कोई उच्च राशिगत ग्रह हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
7. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति योग-
निष्पत्ति- लग्नेश व सप्तमेश लग्न में हो तथा चतुर्थ भाव पर गुरु, शुक्र या चंद्रमा का प्रभाव हो।
परिणाम- ऐसा चातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा, जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
8. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति का दूसरा योग-
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वग्रही हो तथा नवमेश केंद्र में हो तो ये योग बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को बिना प्रयत्न को घर मिल जाता है।
9. ग्रहनाश योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश के नवमांश का स्वामी 12वें चला गया हो तो, यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को अपनी स्वयं की संपत्ति व घर से वंचित होना पड़ता है।
10. उत्तम कोठी योग-
निष्पत्ति- चतुर्थेश और दशमेश एक साथ केंद्र त्रिकोण में हो तो उत्तम व श्रेष्ठ घर प्राप्त होता है।
परिणाम- कोठी, बड़ा मकान व संपत्ति प्राप्ति होती है।
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