अंक की एक निश्चित शक्ति है, जिसका पता केवल आकृति एवं प्रतीक द्रारा नहीं चल सकता। यह शक्ति वस्तुओं के आपसी गूढ़ संबंधों तथा प्रकृति के सिद्धांतो में निहित है, जिनकी यह अभिवक्यक्ति हैं। यह रहस्योद्घान तब सामने आया, जब मनुष्य ने अंकों के क्रम 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9 का विकास किया। उनके द्वारा चाहे जिस प्रतीक को अभिव्यक्त किया गया है।
शून्य (0)- अनंत का प्रतीक है। एक ऐसा अनंत-असीम अस्तित्व, जो विभिन्न वस्तुओं का उद्गम स्रोत है। इस ब्रह्मांड में समग्र सौरमंडल सार्वभौमिकता, विश्वजनीनता, ग्रहों की प्रदक्षिणाओं और यात्राओं में व्याप्त है लेकिन इसका विस्तार यहीं तक सीमित नहीं है, अपितु यह समस्त स्थितियों के निषेध में, प्रत्येक दायरे और सीमाओं में तथा व्यक्ति में व्याप्त है। इस प्रकार, यह सार्वभौम विरोधाभास है। एक तरफ असीम विस्तार है तो दूसरी तरफ असीम लघुता, एक तरफ असीम वृत्त तो दूसरी तरफ एक सूक्ष्म अणु।
एक (1)- सकारात्मक तथा सक्रिय सिद्धांत के प्रतीक रूप में प्रयुक्त होता है। यह शब्दों के लिए भी प्रयुक्त होता है, जो अनंत तथा अव्यक्त की अभिव्यक्ति हैं। यह ‘अहं’ प्रतिनिधित्व करता है, श्रेष्ठता, आत्मस्वीकार, सकारात्मकता, पृथकवाद, आत्मतत्व, गरिमा तथा प्रशासन का भी प्रतीक है। यह धार्मिक अर्थ में स्वयं ईश्वर का प्रतीक है। दार्शनिक व वैज्ञानिक अर्थ में यह संश्लेषण तथा वस्तुओं में मूलभूत अखंडता का प्रतीक है। भौतिकवादी दृष्टि से जीवन की इकाई व्यक्ति है। यह शून्य का प्रकट और सूर्य का प्रतीक है।
दो (2)- विपरीतता का प्रतीक है तथा यह प्रमाण और पुष्टि का भी घोतक है। यह द्विगुण संपन्न अंक है, जैसे एक तरफ जोड़ का है तो दूसरी तरफ घटाने का, एक तरफ क्रियाशीलता का तो दूसरी तरफ निष्क्रियता का, एक तरफ स्त्रीलिंग का तो दूसरी तरफ पुलिंग का, एक तरफ सकारात्मकता का तो दूसरी तरफ नकारात्मक का एक तरफ लाभ तो दूसरी तरफ हानि का प्रतीक है।
तीन (3)- त्रियामिकता का प्रतीक है। जीवन में त्रिगुण पदार्थ बुद्धि, बल व चेतना का प्रतीक है। इसमें सृजन, पालन व संहार के ईश्वरीय गुण भी शामिल है। परिवार, माता-पिता और बच्चे का भी इससे बोध होता हे। यह चिंतन तथा वस्तु रूपी तीन आधार तत्वों का भी प्रतीक है। यह चेतना में प्रतिबिंबित होने वाला द्वैत है, जैसे समय और स्थान में त्रिक अवस्था का निर्माता। आत्मविस्तार, इच्छा, क्रियाविधि तथा प्रभावकारिता है, जो मंगल का प्रतीक है।
चार (4)- वास्तविकता व स्थायित्व का संकेत करता है। यह भौतिक जगत का द्योतक है। यह वर्गाकार व घनाकार है। भौतिक नियम, तर्क व कारण भौतिक अवस्था तथा विज्ञान का प्रतीक है। यह अनुभूतियों, अनुभव तथा ज्ञान के माध्यम से पहचाना जाता है। यह काट, खंडीकरण, विभाजन, सुनियोजन तथा वर्गीकरण है। यह स्वास्तिक, विधिचक्र, संख्याओं का क्रम तथा योग है। यह बुद्धि, चेतना, आध्यात्मिक व भौतिकता के अंतर की पहचान है। इस प्रकार यह बुध का प्रतीक है।
पांच (5)- विस्तार का प्रतिनिधित्व करता है। यह वस्तुओं के अंत: संबंध, समझ-बूझ की क्षमता, निर्णय का भी प्रतीक है। यह वृद्धि, वाकटुता, विचार का विस्तार है। यह न्याय, फसलों, बुवाई तथा कटाई का प्रतीक है। यह अंक अनार के बीज की भांति गुणवाला है। बृहस्पति इसका प्रतीक है।
छह (6)- सहयोग का प्रतीक है। यह विवाह, एक कड़ी में जोड़ने व संबंधों का संकेतक है। पारस्परिक क्रिया, पारस्परिक संतुलन का भी घोतक है। यह आध्यात्मिक व भौतिक जगत का मिलन स्थल है। यह मनुष्य में मानसिक व शारीरिक क्षमता का प्रतीक है। यह मीमांसा, मनोविज्ञान, दैवीय क्षमता, समागम व सहानुभूति का भी प्रतीक है। यह अंक परामनोविज्ञान व मानसिक तुलना का भी प्रतिनिधि है। यह सहयोग, शांति, संतुष्टि व संतुलन की ओर संकेत करता है। यह स्त्री-पुरुष के नैसर्गिक संबंधों का प्रतीक है। इस अंक का प्रतिनिधि ग्रह शुक्र है।
सात (7)- पूर्णता का परिचायक है। यह समय व स्थान, अंतराल तथा दूरी का प्रतीक है। वृद्धावस्था, क्षीणता, सहनशीलता, स्थिरता, मृत्यु का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह सात युगों, सप्ताह के सात दिनों आद का प्रतीक है। यह मनुष्य की पूर्णता, बुद्धि, मनोसंतुलन तथा विश्राम का भी द्योतक है। इसका प्रतिनिधि ग्रह शनि है।
आठ (8)- विघटन का अंक है। यह चक्रीय विकास के सिद्धांतों व प्राकृतिक वस्तुओं के आध्यात्मीकरण की ओर झुकाव का प्रतीक है। प्रतिक्रिया, क्रांति, जोड़-तोड़, विघटन, अलगाव, बिखराव, अराजकता के गुण भी इसी अंक से जुड़े है। यह चोट, क्षति, विभाजन, संबंध विच्छेद का भी परिचायक है। यह श्वसन की अंतप्रेरणा, अतिबुद्धिता, आविष्कारों व अनुसंधानों का प्रतीक है। यूरेनस या वरुण इसका प्रतिनिधि ग्रह है।
नौ (9)- पुर्नउत्पादन का प्रतीक है। यह पुर्नजन्म, अध्यात्म, इंद्रियों के विस्तार, पूर्वाभास, विकास व समुद्री यात्राओं का प्रतीक है। यह स्वप्न, अघटित घटना, दूरस्थ ध्वनियों को सुनने का भी प्रतीक है। यह पुर्नरचना, निहारिकामयता, कंपन, लय, तरंग, प्रकाशन, धर्नुविद्या, विचार तरंगों तथा रहस्य का घोतक है। नेपच्यून इसका प्रतिनिधि ग्रह है। 9 अंकों व शून्य के बीच अनंत रूप से विस्तारित हैं। कुछ व्याख्या प्रणालियों के अनुसार शून्य को अंकों में रखा जाता है, ताकि प्रथम व अंतिम अंक को मिलाकर 10 का अंक बनाया जा सके, जो दशमलव प्रणाली का पूर्णांक है, लेकिन हिब्रू प्रणाली के अनुसार अंक 12 के पास ही यह विशिष्ट गुण विद्यमान है, जो 3 और 4 का गुणनफल है और 3 व 4 के योग से बना अंक 7 है, जो एक और पवित्र अंक है। उपरोक्त व्याख्या को किसी भी अंक के इकाई मानकर प्रयोग किया जा सकता है।
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