पितृ दोष- यह किसी जातक की जन्मकुण्डली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि दोषों के कारण दोष हो तो इसके लिए नारायण बलि नाग बलि, गया श्राद्ध, अश्विन कृष्ण पक्ष में अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन व दानादि करना चाहिए।
2- मातृ दोष- यदि चंद्रमा पंचमेश होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रांत हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में हो तो मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी आती है। इस दोष की शांति के लिए गोदान अथवा चांदी के पात्र में गो दुग्ध भरकर दान देना शुभ होता है। इसके अलावा एक लाख गायत्री मंत्र का जप करवाकर हवन, ब्राह्मण भोजन, वस्त्रादि का दान एवं दशमांस का तर्पण करने से दोष शांत होता है। पीपल वृक्ष का 28 हजार परिक्रमा का विधान भी बताया गया है।
3- भातृशाप- तृतीय भावेश मंगल राहु युक्त होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश व लग्नेश दोनों अष्टम भाव में हो तो भ्रातृ शाप के कारण कष्ट एवं हानि होती है। इसके उपास स्वरूप श्रीसत्यनारायण व्रत रखकर विधि पूर्वक विष्णु पूजन तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर प्रसाद वितरण करना चाहिए।
4-सर्प शाप- यदि पंचम भाव में राहु हो और उसपर मंगल की दृष्टि हो तो सर्प शाप के कारण संतान की हानि होती है। इसके उपाय स्वरूप नारायण नागबलि विधि पूर्वक करवाना चाहिए तथा ब्राह्मणों को यथा शक्ति भोजन, वस्त्र, गौ, भूमि, चांदी व सुवर्ण आदि का दान करना चाहिए।
5-ब्राह्मण शाप- यदि गुरु की राशि (धनु या मीन) पर राहु हो, पंचम में गुरु, मंगल व शनि हो तथा नवमेश ग्रह अष्टम में हो तो ब्राह्मण शाप से संतान का क्षय होता है। इस शाप की शांति के लिए मंदिर में या सुपात्र ब्राह्मण को श्रीलक्ष्मीनारायण की मूर्तियों का दान तथा यथाशक्ति कन्यादान, बछड़े सहित गोदान, शैय्या दान दक्षिणा सहित करना शुभ होता है।
6- मातुल शाप- पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु व राहु हों तो मामा के शाप से संतान की हानि होती है। उपाय स्वरूप किसी मंदिर में श्रीविष्णु प्रतिमा की स्थापना, लोक हितार्थ पुल, तालाब, नल या प्याऊ लगवाने से संतति व संपत्ति में वृद्धि होती है।
7- प्रेत शाप- जब किसी जातक की जन्मकुण्डली के पंचम भाव में शनि, रवि हों और सातवें में क्षीण चंद्रमा हो तथा लग्न में राहु व 12वें भाव में गुरु हो तो प्रेत शाप क९ कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं।
विशेष- इसके अतिरिक्त यदि किसी जातक द्वारा अपने दिवंगत पितरों के श्रद्धादि कर्म ठीक से न किए जा सके हों अथवा दिवंगत माता-पिता की उचित सेवा न की जा सकी हो तो भी प्रेत-पिशाचादि के कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं। उपाय स्वरूप भगवान शिव की पूजा करवाकर विधिवत रूद्राभिषेक करवाना चाहिए और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए
2- मातृ दोष- यदि चंद्रमा पंचमेश होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रांत हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में हो तो मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी आती है। इस दोष की शांति के लिए गोदान अथवा चांदी के पात्र में गो दुग्ध भरकर दान देना शुभ होता है। इसके अलावा एक लाख गायत्री मंत्र का जप करवाकर हवन, ब्राह्मण भोजन, वस्त्रादि का दान एवं दशमांस का तर्पण करने से दोष शांत होता है। पीपल वृक्ष का 28 हजार परिक्रमा का विधान भी बताया गया है।
3- भातृशाप- तृतीय भावेश मंगल राहु युक्त होकर पंचम भाव में हो और पंचमेश व लग्नेश दोनों अष्टम भाव में हो तो भ्रातृ शाप के कारण कष्ट एवं हानि होती है। इसके उपास स्वरूप श्रीसत्यनारायण व्रत रखकर विधि पूर्वक विष्णु पूजन तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर प्रसाद वितरण करना चाहिए।
4-सर्प शाप- यदि पंचम भाव में राहु हो और उसपर मंगल की दृष्टि हो तो सर्प शाप के कारण संतान की हानि होती है। इसके उपाय स्वरूप नारायण नागबलि विधि पूर्वक करवाना चाहिए तथा ब्राह्मणों को यथा शक्ति भोजन, वस्त्र, गौ, भूमि, चांदी व सुवर्ण आदि का दान करना चाहिए।
5-ब्राह्मण शाप- यदि गुरु की राशि (धनु या मीन) पर राहु हो, पंचम में गुरु, मंगल व शनि हो तथा नवमेश ग्रह अष्टम में हो तो ब्राह्मण शाप से संतान का क्षय होता है। इस शाप की शांति के लिए मंदिर में या सुपात्र ब्राह्मण को श्रीलक्ष्मीनारायण की मूर्तियों का दान तथा यथाशक्ति कन्यादान, बछड़े सहित गोदान, शैय्या दान दक्षिणा सहित करना शुभ होता है।
6- मातुल शाप- पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु व राहु हों तो मामा के शाप से संतान की हानि होती है। उपाय स्वरूप किसी मंदिर में श्रीविष्णु प्रतिमा की स्थापना, लोक हितार्थ पुल, तालाब, नल या प्याऊ लगवाने से संतति व संपत्ति में वृद्धि होती है।
7- प्रेत शाप- जब किसी जातक की जन्मकुण्डली के पंचम भाव में शनि, रवि हों और सातवें में क्षीण चंद्रमा हो तथा लग्न में राहु व 12वें भाव में गुरु हो तो प्रेत शाप क९ कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं।
विशेष- इसके अतिरिक्त यदि किसी जातक द्वारा अपने दिवंगत पितरों के श्रद्धादि कर्म ठीक से न किए जा सके हों अथवा दिवंगत माता-पिता की उचित सेवा न की जा सकी हो तो भी प्रेत-पिशाचादि के कारण वंश वृद्धि में बाधाएं आती हैं। उपाय स्वरूप भगवान शिव की पूजा करवाकर विधिवत रूद्राभिषेक करवाना चाहिए और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए
No comments:
Post a Comment