।। ॐ नम: शिवाय ॐ नम: शिवाय ।।
।। जय हो मां पार्वती की . हर हर गंगे।।
सभी मित्रगणों को ॐ नमो नारायण
मित्रों आज का प्रसंग "चरणामृत" पर आधारित है. कृपया पूरा पोस्ट पढैं !!
मित्रों आज का प्रसंग "चरणामृत" पर आधारित है. कृपया पूरा पोस्ट पढैं !!
प्रारम्भ :- मित्रों शास्त्रों में कहा गया है कि जल तब तक जल ही रहता है जब तक वहभगवान के चरणों से नहीं लगता,जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो वह अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है।
जब भगवान का वामन अवतार हुआ,और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्मलोकमें उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने
कमंडलु में से जल लेकर भगवानके चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया।
वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, जब हम बाँकेबिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है
“चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी”
कमंडलु में से जल लेकर भगवानके चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया।
वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, जब हम बाँकेबिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है
“चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी”
हिंदू धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है। कहते हैं भगवान श्री राम जी के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भवबाधा से पार
हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है। आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में
रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी की चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी की चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णोरू पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
विष्णोरू पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृतरूपी जल समस्त पापव्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता। चरण का एक अर्थ और है चलन…. यानि परमप्रभु के आदेश के अनुसार जीवन-चलन होने पर एवं उन्ही के अनुसार सकल कर्म करने पर पुनर्जन्म नहीं होता। उनके चरणों में अपना आत्मसमर्पण कर उनके आदेशों के अनुसार सभी कर्म करने का अर्थही है वास्तविक रूप से उनका चरणामृत पीना।
भगवान सत्यनारायण व्रत का चरणामृत :- मित्रों मंदिर में या कथा भागवत में जब भी कोई जाता है तो पंडितजी उसे चरणामृत या पंचामृत देते हैं। लगभग सभी लोगों ने दोनों ही पीया होगा।
लेकिन बहुत कभी ही लोग इसकी महिमा और इसके बनने की प्रक्रिया को नहीं जानते होंगे।
चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानि पांच.पवित्र वस्तुओं से बना।
दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है।
कहते हैं कि चरणामृत पीकर कोई भी शुभ कार्य करने से उसमें बरक्कत (लाभ) होती है. मान सम्मान मिलता है. एक बात और.....चरणामृत को सीधे हाथ से ही पीना चाहिये, ना कि गिलास में या अन्य किसी बर्तन में रखकर.
हमारे विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में ये देखने को मिलता है कि ज्यादातर लोग चरणामृत पीने के तुरंत बाद अपने सिर में हाथ पोछ (साफ कर) लेते हैं , जबकि ऐसा करना अशुभ होता है .
लेकिन बहुत कभी ही लोग इसकी महिमा और इसके बनने की प्रक्रिया को नहीं जानते होंगे।
चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानि पांच.पवित्र वस्तुओं से बना।
दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है।
कहते हैं कि चरणामृत पीकर कोई भी शुभ कार्य करने से उसमें बरक्कत (लाभ) होती है. मान सम्मान मिलता है. एक बात और.....चरणामृत को सीधे हाथ से ही पीना चाहिये, ना कि गिलास में या अन्य किसी बर्तन में रखकर.
हमारे विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में ये देखने को मिलता है कि ज्यादातर लोग चरणामृत पीने के तुरंत बाद अपने सिर में हाथ पोछ (साफ कर) लेते हैं , जबकि ऐसा करना अशुभ होता है .
पंचामृत
पंचामृत का अर्थ है पञ्च + अमृत पांच तरह के
अमृत का मिश्रण
1. गोदुग्ध
2. गोदधि
3. गोघृत
4. शुद्ध शहद
5. शर्करा (खांड )
आध्यात्मिक दृष्टि से देखे तो जो व्यक्ति पंचामृत
से देवमूर्ति (प्रतिमा) का अभिषेक करता हैं, देव
स्पर्श के बाद पंचामृत सेवन से उसे मुक्ति प्रदान
हो जाती हैं। श्रद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने
वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार की सुख
समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं, एवं
उसका शरीर मृत्यु के पश्च्यात जन्म-मरण के
चक्र से मुक्त हो जाता हैं।
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार गाय का दूध, गाय
का घी, दही, शर्करा और मधु के सम्मिश्रण में
रोगो का निवारण करने वाले गुण विद्यमान होते हैं
और यह शरीर के लिये लाभ कारक होता हैं।
नोट : पंचामृत में देसी गाय के दूध, दही,
घी का प्रयोग करें, शर्करा के स्थान पर
चीनी कदापि प्रयोग ना करें, देसी गुड
का इस्तेमाल कर सकते हैं |
अमृत का मिश्रण
1. गोदुग्ध
2. गोदधि
3. गोघृत
4. शुद्ध शहद
5. शर्करा (खांड )
आध्यात्मिक दृष्टि से देखे तो जो व्यक्ति पंचामृत
से देवमूर्ति (प्रतिमा) का अभिषेक करता हैं, देव
स्पर्श के बाद पंचामृत सेवन से उसे मुक्ति प्रदान
हो जाती हैं। श्रद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने
वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार की सुख
समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं, एवं
उसका शरीर मृत्यु के पश्च्यात जन्म-मरण के
चक्र से मुक्त हो जाता हैं।
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार गाय का दूध, गाय
का घी, दही, शर्करा और मधु के सम्मिश्रण में
रोगो का निवारण करने वाले गुण विद्यमान होते हैं
और यह शरीर के लिये लाभ कारक होता हैं।
नोट : पंचामृत में देसी गाय के दूध, दही,
घी का प्रयोग करें, शर्करा के स्थान पर
चीनी कदापि प्रयोग ना करें, देसी गुड
का इस्तेमाल कर सकते हैं |
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