लाल किताब के अनुसार कुंडली विश्लेषण कैसे करें? डाॅ. विजय कुमार शास्त्राी लाल किताब के अनुसार कुंडली विश्लेषण तो महत्त्वपूर्ण है साथ ही उसमें दोषों का निवारण कैसे करें यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। अंधे ग्रह- भाव 1 में यदि भाव 10 का शत्रु ग्रह बैठ जाए तो वह टेवा अंधे ग्रहों का देवा होता है। यदि शनि भाव 7 और सूर्य भाव 4 में हो तो अंधा टेवा माना जाएगा। बंद मुट्ठी ग्रह- यदि भाव 1,4,7 और 10 खाली हों अर्थात उनमें कोइ भी ग्रह न हो तो इस स्थिति का प्रभाव नाबालिग (ग्रहों का स्वभाव) बच्चों जैसा होता है। बालिग या बुद्धिमान, युवा पुरुष। विचारवान क्रियाशीलता के गुण उस कुंडली के ग्रहों में नहीं होते। उपाय- अंधे ग्रहों का दुष्प्रभाव दूर करने के लिए जातक दस अंधों को अपने हाथ से खाना खिलाए और शाम को कौवों को रोटी दे। उपाय- नाबालिग ग्रहों के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए जातक दूसरों से सहायता लेकर कार्य करे जैसे कोई बच्चा बड़ों या मित्रों से सहायता लेकर कार्य करता है। सोए हुए ग्रह- जिस घर में कोई ग्रह स्थित हो, उसके सामने वाले (7वें) घर में यदि कोई ग्रह न हो तो वह सोया हुआ ग्रह माना जाएगा। यहां उच्चस्थ ग्रह भी अपना श्रेष्ठ फल जातक को नहीं देगा। जैसे यदि भाव 4 में गुरु हो और भाव 10 खाली हो तो यहां उच्चस्थ गुरु का श्रेष्ठ फल जातक को नहीं मिलेगा। यदि भाव 7 खाली हो तो भाव 1 में बैठा शुभ ग्रह कोई फल नहीं देगा। यहां सामने वाले ग्रह के मित्र ग्रह को स्थापित करें। यदि कुंडली का भाव
10 खाली है तो भी कुंडली सोए हुए ग्रहों की मानी जाएगी। यदि काम का फल जातक को कम मिलता हो तो ऐसी स्थिति में (वर्ष फल के अनुसार) प्रति वर्ष उस घर को जगाने के लिए भाव 4 और भाव 2 के मित्र ग्रह की स्थापना 10वें घर में आवश्यक हो जाती है। फलादेश करने का ढंग- लाल किताब के अनुसार केवल एक ग्रह को देखकर फलादेश कर देना उचित नहीं है यह देखना आवश्यक है कि दृष्टि से कौन-कौन से ग्रह आपस में मिल रहे हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अकेले-अकेले ग्रह किसी विशेष घर में अच्छा प्रभाव नहीं देते अपितु इकट्ठे अच्छा प्रभाव दे जाते हैं। जैसे भाव 8 में अकेला मंगल या बुध अच्छा फल नहीं देता परंतु दोनों मिल कर जातक को अच्छा प्रभाव देंगे लेकिन उसके ननिहाल का बेड़ा गर्क कर देंगे। यदि दोनों ग्रह मित्र हों तो बहुत अच्छा प्रभाव नहीं देते और यदि परस्पर शत्रु भाव रखते हों और एक स्थान (घर) दृष्टि से या वैसे ही इकट्ठे बैठे हों तो निश्चित रूप से हानि करते हैं। यदि कुंडली में वर्ष फल के अनुसार कोई शत्रु भी उनके घर में आ बैठे तो वह पहले बैठे दो ग्रहों के प्रभाव को दूषित कर देता है। मान लें कि किसी जातक का राहु भाव 3 में आ गया है। 11वां भाव शनि और बृहस्पति का भाव है। राहु ने वहां आकर बृहस्पति के प्रभाव को नष्ट कर दिया है। शनि का उसने कुछ नहीं बिगाड़ा, क्योंकि शनि का वह एजेंट है। अब राहु के भाव 11 का उपाय बृहस्पति को उच्च करना लिखा है। इस प्रकार अन्य घरों में देखें कि यह घर किस-किस ग्रह का घर है और वे ग्रह किस स्थिति में बैठे हैं। उन्हें उच्च करें। जैसे भाव 1 कुंडली में सूर्य और मंगल का है। इस घर में इन दोनों का शत्रु आ बैठे तो लाल किताब के अनुसार सूर्य व मंगल को उच्च करने का प्रयत्न करें। इसी प्रकार अन्य घरों में भी उचित उपाय करें। उदाहरणस्वरूप एक जन्म कुंडली प्रस्तुत है। अब भाव 1 में, जो कि सूर्य और मंगल का पक्का घर है, राहु आ कर बैठ गया है। अब भाव 7 में 6 ग्रह इकट्ठे बैठ गए हैं। राहु की भी दृष्टि पड़ रही है। इस प्रकार सात ग्रह भाव 7 में विद्यमान माने गए और भाव 7 का ग्रह शुक्र भाव 8 में नीच स्थान पर आ बैठा है। इस जातक का राजदरबार और गृहस्थ जीवन दोनों ही उलझन में रहते हैं। यहां राहु के दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए सिक्का या नारियल जल में प्रवाहित करें तथा शुक्र के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए काली गाय की सेवा करें और दही का सेवन न करें बल्कि स्नान करें। यहां बृहस्पति, मंगल और सूर्य तीनों ही शुक्र के शत्रु हैं। इन्हें वहां से हटाकर धर्म स्थान में पहुंचाएं और केतु को भाव 12 में स्थापित कर दें। अब भाव 7 में केवल शनि और बुध दो ग्रह शेष रह गए। दोनों शुक्र के मित्र हैं। यदि जातक मांस, शराब और पर स्त्री से दूर रहे तो वह धनाढ्य होगा। यहां बुध और शनि भाव 7 में रह गए और चंद 10 में है इसलिए शनि का ऋण भी उतारें। वर्षफल में ग्रह का प्रभाव कब होगा जन्म कुंडली के खाली घरों में जब वर्ष फल के अनुसार कोई आ जाए तो उसका अच्छा या बुरा प्रभाव जातक के जन्म मास से आठवें महीने में पड़ेगा (जन्म कुंडली में ये दोनों घर खाली हैं)। मान लें कि किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य 11वें भाव में है और उसका 52वां वर्ष चल रहा है। 52 को 11 से भाग दें तो 8 शेष बचता है। अतः 52वें वर्ष में सूर्य आठवें घर में गिना जाएगा। वह माह जातक के जन्म का महीना गिना जाएगा। जैसा कि ऊपर बताया गया है, किसी ग्रह की स्थिति की जानकारी जिस भाव में वह स्थित हो उसकी संख्या से जातक के आयु वर्ष को भाग देकर प्राप्त की जा सकती है। यह साधारण वर्ष फल है। इसके बाद यदि हर माह भविष्य जानना चाहें तो सूर्य के चलावें। जीवन भर मुख्य प्रभाव डालने वाले भाव भाव 1, 7, 8 और 11- भाव 1 राजा यह देखना आवश्यक है कि दृष्टि से कौन-कौन से ग्रह आपस में मिल रहे हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अकेले-अकेले ग्रह किसी विशेष घर में अच्छा प्रभाव नहीं देते अपितु इकट्ठे अच्छा प्रभाव दे जाते हैं। जैसे भाव 8 में अकेला मंगल या बुध अच्छा फल नहीं देता परंतु दोनों मिल कर जातक को अच्छा प्रभाव देंगे लेकिन उसके ननिहाल का बेड़ा गर्क कर देंगे। । आवरण कथा ।। । और 7 मंत्री माना गया है। यदि इन घरों में आपस में शत्रु ग्रह स्थित हों तो जातक का जीवन कष्टों, झगड़ों में बीतता है। इसी प्रकार भाव 8 और 11 में भी यदि परस्पर शत्रु ग्रह स्थिति हांे तो 11वां भाव 8वें भाव के माध्यम से भाव 2 को खराब कर देता है। भाव 2 धन का घर है। फलस्वरूप जातक को आर्थिक संकट घेर लेता है। भाव 2 व 12, 6 व 8- ऊपर वर्णित भाव 2 व 12 के ग्रह परस्पर मैत्री भाव रखते हैं जब कि भाव 6 व 8 शत्रु भाव। कई बार भाव 8 व 12 के ग्रह भी आपस में मिलकर जातक के जीवन को कष्ट में डाल देते हैं। भाव 3=भाई, भाव 11=आमदनी, भाव 5=संतान और शिक्षा, भाव 9=भाग्य, पूर्वज विवरण, भाव 10=कर्म क्षेत्र, राजदरबार। इन पांचो घरों का आपस में गहरा संबंध है। मनुष्य जीवन की यही कुछ बातें महत्वपूर्ण होती हैं। वह चाहता है कि उसके भाई बहन हों, उसकी अपनी संतान हो, अच्छी आमदनी व कारोबार हो और वह भाग्यवान हो। यदि भावों में परस्पर मैत्री भाव रखने वाले ग्रह स्थित हों तो जातक का जीवन सुखमय और यदि शत्रुता भाव रखने वाले हों तो दुखमय होता है। भाव 3 भाव 11 को और भाव 5, 9 को देखता है। यदि भाव 5 में पापी ग्रह स्थित हो तो जातक को संतान जन्म के बाद कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार जब भाव 5 में कोई पापी ग्रह हो और भाव 8 में उस का शत्रु ग्रह हो तो भाव 11 बिजली की तरह असर करता है और भाव 8 में बैठे ग्रह पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। भाव 5 और 10- इन दोनों घरों के ग्रह आपस में शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हैं। चाहे आपस में मित्र ही क्यों न हांे। जैसे किसी जातक के भाव 10 में चंद्र और भाव 5 में मंगल है। ये दोनों ग्रह आपस में मित्र हैं। परंतु जातक के 24वंे वर्ष में उसकी माता या शिक्षा पर नीच प्रभाव पड़ेगा और 28वें वर्ष में उसके भाई पर कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। भाव 2 व 9, 10- यदि कुंडली में भाव 2 खाली हो तो भाव 9 का विशेष प्रभाव जातक पर नहीं पड़ता है। उसके पास केवल दिखावे का ही धन होता है। दोनों घरों के खाली होने पर जातक कठिन परिश्रम से ही जीवन निर्वाह करेगा। इसी प्रकार भाव 2 और भाव 10 परस्पर संबंधित हैं, क्योंकि भाव 2 धन और 10 कर्म का घर है। इन दोनों घरों के खाली होने पर जातक का जीवन व्यर्थ होता है। यदि भाव 2 में कोई ग्रह हो तथा 10 खाली हो तो यह सोए ग्रह की कुंडली होती है। उपाय के लिए दस अंधों को अपने हाथ से खाना खिलाएं। यदि भाव 2 खाली हो तो भाव 10 के मित्र ग्रहों की चीजें धर्म स्थल में देते रहें। इसी प्रकार भाव 10 खाली हो तो भाव-चार के ग्रह सोए रहते है। इन्हें जगाने के लिए भाव 10 (पिता का घर, पिता, सरकारी कार्यालय) में भाव 4 के मित्र ग्रह की चीजें स्थापित करें। दो ग्रहों का एक ही घर- भाव 1 सूर्य और मंगल का घर है। यह मंगल की राशि और सूर्य का पक्का घर है। भाव 2 शुक्र और बृहस्पति का, भाव 3 मंगल और बुध का, भाव 5 बृहस्पति और सूर्य का, भाव 6 बुध और केतु का, भाव 7 शुक्र और बुध का, भाव 8 मंगल और शनि का, भाव 11 बृहस्पति और शनि का तथा भाव 12 बृहस्पति और राहु का घर है। जब इन घरों में से एक ग्रह का शत्रु आ बैठे तब जिस ग्रह की वह हानि कर रहा हो उसका उपाय अवश्य करें। मान लें कि भाव 2 में बुध है। बुध बृहस्पति का शत्रु किंतु शुक्र का मित्र भी है। अतः बृहस्पति का उपाय करें । इसी प्रकार भाव 11 में राहु बैठा हो तो भी बृहस्पति का ही उपाय करना चाहिए। क्योंकि राहु शत्रु भाव के कारण बृहस्पति की हानि कर रहा है। इसी आधार पर अन्य घरों के ग्रहों का उपाय करना चाहिए
10 खाली है तो भी कुंडली सोए हुए ग्रहों की मानी जाएगी। यदि काम का फल जातक को कम मिलता हो तो ऐसी स्थिति में (वर्ष फल के अनुसार) प्रति वर्ष उस घर को जगाने के लिए भाव 4 और भाव 2 के मित्र ग्रह की स्थापना 10वें घर में आवश्यक हो जाती है। फलादेश करने का ढंग- लाल किताब के अनुसार केवल एक ग्रह को देखकर फलादेश कर देना उचित नहीं है यह देखना आवश्यक है कि दृष्टि से कौन-कौन से ग्रह आपस में मिल रहे हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अकेले-अकेले ग्रह किसी विशेष घर में अच्छा प्रभाव नहीं देते अपितु इकट्ठे अच्छा प्रभाव दे जाते हैं। जैसे भाव 8 में अकेला मंगल या बुध अच्छा फल नहीं देता परंतु दोनों मिल कर जातक को अच्छा प्रभाव देंगे लेकिन उसके ननिहाल का बेड़ा गर्क कर देंगे। यदि दोनों ग्रह मित्र हों तो बहुत अच्छा प्रभाव नहीं देते और यदि परस्पर शत्रु भाव रखते हों और एक स्थान (घर) दृष्टि से या वैसे ही इकट्ठे बैठे हों तो निश्चित रूप से हानि करते हैं। यदि कुंडली में वर्ष फल के अनुसार कोई शत्रु भी उनके घर में आ बैठे तो वह पहले बैठे दो ग्रहों के प्रभाव को दूषित कर देता है। मान लें कि किसी जातक का राहु भाव 3 में आ गया है। 11वां भाव शनि और बृहस्पति का भाव है। राहु ने वहां आकर बृहस्पति के प्रभाव को नष्ट कर दिया है। शनि का उसने कुछ नहीं बिगाड़ा, क्योंकि शनि का वह एजेंट है। अब राहु के भाव 11 का उपाय बृहस्पति को उच्च करना लिखा है। इस प्रकार अन्य घरों में देखें कि यह घर किस-किस ग्रह का घर है और वे ग्रह किस स्थिति में बैठे हैं। उन्हें उच्च करें। जैसे भाव 1 कुंडली में सूर्य और मंगल का है। इस घर में इन दोनों का शत्रु आ बैठे तो लाल किताब के अनुसार सूर्य व मंगल को उच्च करने का प्रयत्न करें। इसी प्रकार अन्य घरों में भी उचित उपाय करें। उदाहरणस्वरूप एक जन्म कुंडली प्रस्तुत है। अब भाव 1 में, जो कि सूर्य और मंगल का पक्का घर है, राहु आ कर बैठ गया है। अब भाव 7 में 6 ग्रह इकट्ठे बैठ गए हैं। राहु की भी दृष्टि पड़ रही है। इस प्रकार सात ग्रह भाव 7 में विद्यमान माने गए और भाव 7 का ग्रह शुक्र भाव 8 में नीच स्थान पर आ बैठा है। इस जातक का राजदरबार और गृहस्थ जीवन दोनों ही उलझन में रहते हैं। यहां राहु के दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए सिक्का या नारियल जल में प्रवाहित करें तथा शुक्र के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए काली गाय की सेवा करें और दही का सेवन न करें बल्कि स्नान करें। यहां बृहस्पति, मंगल और सूर्य तीनों ही शुक्र के शत्रु हैं। इन्हें वहां से हटाकर धर्म स्थान में पहुंचाएं और केतु को भाव 12 में स्थापित कर दें। अब भाव 7 में केवल शनि और बुध दो ग्रह शेष रह गए। दोनों शुक्र के मित्र हैं। यदि जातक मांस, शराब और पर स्त्री से दूर रहे तो वह धनाढ्य होगा। यहां बुध और शनि भाव 7 में रह गए और चंद 10 में है इसलिए शनि का ऋण भी उतारें। वर्षफल में ग्रह का प्रभाव कब होगा जन्म कुंडली के खाली घरों में जब वर्ष फल के अनुसार कोई आ जाए तो उसका अच्छा या बुरा प्रभाव जातक के जन्म मास से आठवें महीने में पड़ेगा (जन्म कुंडली में ये दोनों घर खाली हैं)। मान लें कि किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य 11वें भाव में है और उसका 52वां वर्ष चल रहा है। 52 को 11 से भाग दें तो 8 शेष बचता है। अतः 52वें वर्ष में सूर्य आठवें घर में गिना जाएगा। वह माह जातक के जन्म का महीना गिना जाएगा। जैसा कि ऊपर बताया गया है, किसी ग्रह की स्थिति की जानकारी जिस भाव में वह स्थित हो उसकी संख्या से जातक के आयु वर्ष को भाग देकर प्राप्त की जा सकती है। यह साधारण वर्ष फल है। इसके बाद यदि हर माह भविष्य जानना चाहें तो सूर्य के चलावें। जीवन भर मुख्य प्रभाव डालने वाले भाव भाव 1, 7, 8 और 11- भाव 1 राजा यह देखना आवश्यक है कि दृष्टि से कौन-कौन से ग्रह आपस में मिल रहे हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अकेले-अकेले ग्रह किसी विशेष घर में अच्छा प्रभाव नहीं देते अपितु इकट्ठे अच्छा प्रभाव दे जाते हैं। जैसे भाव 8 में अकेला मंगल या बुध अच्छा फल नहीं देता परंतु दोनों मिल कर जातक को अच्छा प्रभाव देंगे लेकिन उसके ननिहाल का बेड़ा गर्क कर देंगे। । आवरण कथा ।। । और 7 मंत्री माना गया है। यदि इन घरों में आपस में शत्रु ग्रह स्थित हों तो जातक का जीवन कष्टों, झगड़ों में बीतता है। इसी प्रकार भाव 8 और 11 में भी यदि परस्पर शत्रु ग्रह स्थिति हांे तो 11वां भाव 8वें भाव के माध्यम से भाव 2 को खराब कर देता है। भाव 2 धन का घर है। फलस्वरूप जातक को आर्थिक संकट घेर लेता है। भाव 2 व 12, 6 व 8- ऊपर वर्णित भाव 2 व 12 के ग्रह परस्पर मैत्री भाव रखते हैं जब कि भाव 6 व 8 शत्रु भाव। कई बार भाव 8 व 12 के ग्रह भी आपस में मिलकर जातक के जीवन को कष्ट में डाल देते हैं। भाव 3=भाई, भाव 11=आमदनी, भाव 5=संतान और शिक्षा, भाव 9=भाग्य, पूर्वज विवरण, भाव 10=कर्म क्षेत्र, राजदरबार। इन पांचो घरों का आपस में गहरा संबंध है। मनुष्य जीवन की यही कुछ बातें महत्वपूर्ण होती हैं। वह चाहता है कि उसके भाई बहन हों, उसकी अपनी संतान हो, अच्छी आमदनी व कारोबार हो और वह भाग्यवान हो। यदि भावों में परस्पर मैत्री भाव रखने वाले ग्रह स्थित हों तो जातक का जीवन सुखमय और यदि शत्रुता भाव रखने वाले हों तो दुखमय होता है। भाव 3 भाव 11 को और भाव 5, 9 को देखता है। यदि भाव 5 में पापी ग्रह स्थित हो तो जातक को संतान जन्म के बाद कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार जब भाव 5 में कोई पापी ग्रह हो और भाव 8 में उस का शत्रु ग्रह हो तो भाव 11 बिजली की तरह असर करता है और भाव 8 में बैठे ग्रह पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। भाव 5 और 10- इन दोनों घरों के ग्रह आपस में शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हैं। चाहे आपस में मित्र ही क्यों न हांे। जैसे किसी जातक के भाव 10 में चंद्र और भाव 5 में मंगल है। ये दोनों ग्रह आपस में मित्र हैं। परंतु जातक के 24वंे वर्ष में उसकी माता या शिक्षा पर नीच प्रभाव पड़ेगा और 28वें वर्ष में उसके भाई पर कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। भाव 2 व 9, 10- यदि कुंडली में भाव 2 खाली हो तो भाव 9 का विशेष प्रभाव जातक पर नहीं पड़ता है। उसके पास केवल दिखावे का ही धन होता है। दोनों घरों के खाली होने पर जातक कठिन परिश्रम से ही जीवन निर्वाह करेगा। इसी प्रकार भाव 2 और भाव 10 परस्पर संबंधित हैं, क्योंकि भाव 2 धन और 10 कर्म का घर है। इन दोनों घरों के खाली होने पर जातक का जीवन व्यर्थ होता है। यदि भाव 2 में कोई ग्रह हो तथा 10 खाली हो तो यह सोए ग्रह की कुंडली होती है। उपाय के लिए दस अंधों को अपने हाथ से खाना खिलाएं। यदि भाव 2 खाली हो तो भाव 10 के मित्र ग्रहों की चीजें धर्म स्थल में देते रहें। इसी प्रकार भाव 10 खाली हो तो भाव-चार के ग्रह सोए रहते है। इन्हें जगाने के लिए भाव 10 (पिता का घर, पिता, सरकारी कार्यालय) में भाव 4 के मित्र ग्रह की चीजें स्थापित करें। दो ग्रहों का एक ही घर- भाव 1 सूर्य और मंगल का घर है। यह मंगल की राशि और सूर्य का पक्का घर है। भाव 2 शुक्र और बृहस्पति का, भाव 3 मंगल और बुध का, भाव 5 बृहस्पति और सूर्य का, भाव 6 बुध और केतु का, भाव 7 शुक्र और बुध का, भाव 8 मंगल और शनि का, भाव 11 बृहस्पति और शनि का तथा भाव 12 बृहस्पति और राहु का घर है। जब इन घरों में से एक ग्रह का शत्रु आ बैठे तब जिस ग्रह की वह हानि कर रहा हो उसका उपाय अवश्य करें। मान लें कि भाव 2 में बुध है। बुध बृहस्पति का शत्रु किंतु शुक्र का मित्र भी है। अतः बृहस्पति का उपाय करें । इसी प्रकार भाव 11 में राहु बैठा हो तो भी बृहस्पति का ही उपाय करना चाहिए। क्योंकि राहु शत्रु भाव के कारण बृहस्पति की हानि कर रहा है। इसी आधार पर अन्य घरों के ग्रहों का उपाय करना चाहिए
No comments:
Post a Comment