• मंगल (1,4,7,8,12 भावों में मंगल बैठे तो मंगली दोश कहा जाता है।) जिस भाव में बैठा है- यदि उस भाव का स्वामी अपनी उच्च राषि में बैठा हो तो वह मंगल के प्रभाव को कम कर देता है। अत: मंगली दोश स्वत: कट जाता है। • पहले या चौथे भाव का मंगल यदि स्वराषि का हो (मेशवृषिचक में हो) यानी पहले या चौथे भाव में मेश या वृषिचक राषि ही पड़ रही हो तो मंगली दोश कट जाता है।
• दक्षिण भारतीय दूसरे भाव में मंगल होने को भी मंगली हाने को भी मंगली दोश मानते है। किन्तु दूसरे भाव में मिथुन या कन्या राषि हो तो दूसरे भाव का मंगली दोश कट जाता है।
• 8वें भाव का मंगल यदि गुरू की राषियों में हो (धनुमीन राषि) तो मंगल 8वें होकर भी मंगली दोश उत्पन्न नही करता है।
• 7वें घर का मंगल यदि अपनी उच्च या नीच राषियों में हो (मकरकर्क राषि) तो मंगल दोश स्वत: ही कट जाता है।
• 12वें भाव का मंगल यदि षुक्र की राषियों में हो (वृशतुला राषि) तो भी मंगली दोश स्वत: ही कट जाता है।
• 7वें भाव में मीन राषि का, 8वें भाव में कुम्भ राषि का, प्रथम भाव में मेंश राषि का, चौथे भाव में वृषिचक राषि का तथा 12वें भाव में धनु भाव मंगल हो तो भी मंगली दोश का निराकरण होता है।
• म्ांगल सिंह या कुम्भ राषि का हो तो किसी भी भाव में बैठकर मंगली दोश नहीं देता (कुछ विद्वान मेश, वृषिचक व कर्क राषि में मंगल को भी ऐसा गुण कहते है)।
• राहू षुभ ग्रहों के साथ, षुभ राषियों में, केन्द्रत्रिकोण में बैंठकर मंगल को देखता हो तो भी मंगली दोश कट जाता है।
• सप्तमेष सबल अवस्था में हो अथवा गुरू 7वें भाव में बैठाा होतो भी मंगली दोश कट जाता है।
• मंगल यदि षनि या गुरू से दृश्ट हों अथवा मंगल यदि षनि या गुरू के साथ बैठा हो अथवा मंगल चन्द्र व गुरू के साथ बैठा हो तो इन सिथतियों में भी मंगली दोश स्वत: ही कट जाता है।
• सप्तमेष केन्द्र या त्रिकोण में बैठा हो अथवा गुरू कैन्द्र या त्रिकोण (1,45,7,10,9) में बैठा हो अथवा 1,24,12 भाव में षुक्र बैठा हो तो मंगली दोश स्वत: कट जाता है। पर ध्यान रखना चाहिए कि षुक्र या गुरू अस्त न हो तथा पापमध्यपापकत्र्तरी योंग में
न हों। अन्यथा वे मंगली दोश का निराकरण कर पाने में समर्थ नहीं होते। दोश के निराकरण के लिए उनका बली होना अनिवार्य है।
• द्वितिय भाव सप्तम भाव में षुभ ग्रहों की उपसिथति हो और वे बली हों तो भी मंगली दोश कटता है।
• सप्तम भाव में षनि व षुक्र की युति हो अथवा केन्द्र या त्रिकोण में षुक्र स्वराषि या उच्च राषि में हो तो मंगली दोश का निराकरण होता है। (कुछ विद्वान 6,8 भावों में षुक्र के उच्च या स्वग्रही होने पर भी मंगली दोश का निवारण मानते है। परन्तु इससे पुरूश की प
ौरूश क्षमता प्रभावित होती है अत: इसे निरापद नहीं कह सकते है)
• चन्द्रमा यदि कैन्द्र में अकेला हो किन्तु बली हो तो भी मंगली दोश में न्यूनता ले आता है।
• वर या वधू की कुंडली में जिस भाव में मंगली हो, उसी भाव में षनि या राहू बैठा हो तो भी मंगली दोश स्वत: कट जाता है।
• यदि मंगली दोश षुक्र, चन्द्र व लग्न तीनों से कन्फर्म हो रहा हो तभी जातक को मंगली दोश स्वत: कट जाता जाता है।
• दक्षिण भारतीय दूसरे भाव में मंगल होने को भी मंगली हाने को भी मंगली दोश मानते है। किन्तु दूसरे भाव में मिथुन या कन्या राषि हो तो दूसरे भाव का मंगली दोश कट जाता है।
• 8वें भाव का मंगल यदि गुरू की राषियों में हो (धनुमीन राषि) तो मंगल 8वें होकर भी मंगली दोश उत्पन्न नही करता है।
• 7वें घर का मंगल यदि अपनी उच्च या नीच राषियों में हो (मकरकर्क राषि) तो मंगल दोश स्वत: ही कट जाता है।
• 12वें भाव का मंगल यदि षुक्र की राषियों में हो (वृशतुला राषि) तो भी मंगली दोश स्वत: ही कट जाता है।
• 7वें भाव में मीन राषि का, 8वें भाव में कुम्भ राषि का, प्रथम भाव में मेंश राषि का, चौथे भाव में वृषिचक राषि का तथा 12वें भाव में धनु भाव मंगल हो तो भी मंगली दोश का निराकरण होता है।
• म्ांगल सिंह या कुम्भ राषि का हो तो किसी भी भाव में बैठकर मंगली दोश नहीं देता (कुछ विद्वान मेश, वृषिचक व कर्क राषि में मंगल को भी ऐसा गुण कहते है)।
• राहू षुभ ग्रहों के साथ, षुभ राषियों में, केन्द्रत्रिकोण में बैंठकर मंगल को देखता हो तो भी मंगली दोश कट जाता है।
• सप्तमेष सबल अवस्था में हो अथवा गुरू 7वें भाव में बैठाा होतो भी मंगली दोश कट जाता है।
• मंगल यदि षनि या गुरू से दृश्ट हों अथवा मंगल यदि षनि या गुरू के साथ बैठा हो अथवा मंगल चन्द्र व गुरू के साथ बैठा हो तो इन सिथतियों में भी मंगली दोश स्वत: ही कट जाता है।
• सप्तमेष केन्द्र या त्रिकोण में बैठा हो अथवा गुरू कैन्द्र या त्रिकोण (1,45,7,10,9) में बैठा हो अथवा 1,24,12 भाव में षुक्र बैठा हो तो मंगली दोश स्वत: कट जाता है। पर ध्यान रखना चाहिए कि षुक्र या गुरू अस्त न हो तथा पापमध्यपापकत्र्तरी योंग में
न हों। अन्यथा वे मंगली दोश का निराकरण कर पाने में समर्थ नहीं होते। दोश के निराकरण के लिए उनका बली होना अनिवार्य है।
• द्वितिय भाव सप्तम भाव में षुभ ग्रहों की उपसिथति हो और वे बली हों तो भी मंगली दोश कटता है।
• सप्तम भाव में षनि व षुक्र की युति हो अथवा केन्द्र या त्रिकोण में षुक्र स्वराषि या उच्च राषि में हो तो मंगली दोश का निराकरण होता है। (कुछ विद्वान 6,8 भावों में षुक्र के उच्च या स्वग्रही होने पर भी मंगली दोश का निवारण मानते है। परन्तु इससे पुरूश की प
ौरूश क्षमता प्रभावित होती है अत: इसे निरापद नहीं कह सकते है)
• चन्द्रमा यदि कैन्द्र में अकेला हो किन्तु बली हो तो भी मंगली दोश में न्यूनता ले आता है।
• वर या वधू की कुंडली में जिस भाव में मंगली हो, उसी भाव में षनि या राहू बैठा हो तो भी मंगली दोश स्वत: कट जाता है।
• यदि मंगली दोश षुक्र, चन्द्र व लग्न तीनों से कन्फर्म हो रहा हो तभी जातक को मंगली दोश स्वत: कट जाता जाता है।
निश्कर्श :- षेश मामलों में यदि मंगली दोश तीनों प्रकार से कन्फर्म हो रहा हो तभी जातक को मंगली कहा जाता है। ऐसा हो तो मंगली जातक का विवाह मंगली जातक से ही करना चाहिए।
मंगली दोश यदि कट न गया हो (स्वत:) और कन्फर्म हो तो उसके निवारणप्रभाव को कम करने के कुछ उपायों की व्यवस्था भी ज्योतिशषास्त्र करता है। विशय को सम्पूर्णता देने के लिए तथा पाठकों के ज्ञानवर्धन व लाभ के लिए कुछ प्रमुख उपायों को सक्षेंप में यहां कहेंगे।
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