दोस्तों, ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में विश्व की उत्पत्ति के बारे में लिखा गया है। इस श्लोक के मुताबिक ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से, क्षत्रिय बाहुसे, जांघ (Thighs) से वैश्य और पैरों से शुद्रउत्पन हुए, लेकिन कैसे उत्पन्न हुएहै ये नहीं बताया गया है। वो कौन सी तकनीक थी ये आज भी बहुत बड़ा
रहस्य है। अगर इन ब्राहमण विद्वानों से पूछा जाये तो कहते है धर्म के साथ तर्क नहीं करते सिर्फ आँखे मुंद कर धर्म को मानना चाहिए, लेकिन क्यों? ये भी किसी को पता नहीं है। अछूतों अर्थात शूद्रों की उत्पति असल में मनुस्मृति से हुई है।
जब 1600 ईसवी में मनु महाराज ने मनु स्मृति के रचना की तो उस में सभी मूलनिवासियों को शुद्र कहा गया और सभी मूलनिवासियों को 6743
जातियों में बांटा गया ताकि कभी भी मूलनिवासी या शुद्र ब्राह्मणों के खिलाफ सर ना उठा सके। उस समय देश में बौद्ध धर्म का बोल बाला था और
बहुत से लोग जातिवाद या मनुवाद को नहीं मानते थे। मूलनिवासी समता के साथ जीना सिख रहे थे। जो लोग समता और समानता के साथ जी
रहे थे उन्ही को शुद्र और अछूत कहा गया। मनुसृत्ति और पुरुष सूक्त दोनों में भी औरत जात का निर्माणकैसे हुआ है ये नहीं बताया गया है। क्योकि उस समय औरतों को सिर्फ भोग की वस्तु समझा जाता था। औरतों के शोषण के लिए हजारों प्रथाएं और परम्पराए देश में प्रचलित थी।
तो औरतों पर ध्यान देने का कोई विचार ब्राह्मणों के मन में आया ही नहीं। और औरत जात का शोषण आज भी जारी है।
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के मुताबिक ब्राह्मण को पढ़ने-पढ़ाने और धर्म गुरु बनने का अधिकार,क्षत्रिय को राज करने का अधिकार, वैश्यों को व्यापार करने का अधिकार दे दिया गया। लेकिन शूद्रों को सिर्फ इन तीनों वर्णों की सेवा का आदेश सुना दिया गया। जो भी वर्ग अपनाकाम ठीक तरह से नहीं करता था उसके लिए दंड के प्रावधान किया गया था। खासकर शुद्रो केलिए वे दंड बहुत ही अमानवीय थे। आज भी देश के बहुत से हिस्सों में
मूलनिवासियों पर ब्राह्मणों के अत्याचारों का सिलसिला जारी है।
क्या ये व्यवस्था विश्व में सबसे अच्छी थी ? अगर थी तो फिर ये अन्यदेशों में क्यों नहीं पायी जाती है ?अगर भारत के लोगों का निर्माण ब्रह्मा के शरीर से हुआ है तो अफ्रीकन, अमेरिकन,जापानीज आदि लोग बिना किसी ब्रह्मा के कैसे पैदा हो गए?क्या ब्रह्मा की सृष्टि का ज्ञान सिर्फ भारत तक ही सीमित था? अगर सीमित था तो फिर उसको भगवान् कैसे मान सकते है? और ब्रह्मा को सिर्फ भारत के 1 अरब 30 करोड लोगों में से सिर्फ
ब्रह्माणी या हिंदू धर्म को मानने वाले लोग ही जानते है जो मुश्किल से 80 करोड भी नहीं होंगे। बाकि पुरे विश्व के 8 अरब लोग बेबकुफ़ है क्या?
चलो अब जानते है इनके कर्म का क्या परिणाम के बारे में : ब्राह्मण को ही सिर्फ पढ़ने पढ़ाने का अधिकार था इसलिए आज दुनिया कि 200 सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में आज एक भी भारतीय विद्यालय शामिल नहीं है।देश कि 65 करोड़ से भी ज्यादा आबादी को पढ़ना लिखना तक नहीं
आता है। कोई भीमहत्वपूर्ण आविष्कार जैसे कि टेलीफोन, कंप्यूटर, मोबाइल, साइकिल, कपड़ा इत्यादि से लेकर शौचालय के कामोड काआविष्कार तक विदेश में हुआ है, आज तक भारत में एक भी अविष्कार नहीं हुआ। क्षत्रिय राजा जो कि ब्रह्मा के बाहु से पैदा हुए ये खुदका राज्य बचाने में असफल रहे।
अफगानिस्तान, तुर्कस्तान से आये कुछ मुगलों ने और यूरोप से आये अंग्रेजों ने इन क्षत्रिय राजाओं की सही औकात दिखा दी। आज भी इन तथाकथित क्षत्रियों के हालात ज्यादा अच्छे नहीं है। बस अपनी झूठी शान का दिखावा करते रहते है। लड़ाइयों में सर कटवाए इन क्षत्रियों ने और धर्म का डर दिखा कर राज किया ब्राह्मणों ने। असल में देखा जाये तो आज की तारीख में इन क्षत्रियों से ज्यादा दीन हीन शुद्र भी नहीं है। शुद्र भी
तार्किक बुद्धि का प्रयोग करना सिख रहे है लेकिन इन क्षत्रियों के पास आज भी ब्राह्मणों की बात मानने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है। ब्राहमणों ने हर क्षेत्र शिक्षा, राजनीति, व्यवसाय आदि से इन क्षत्रियों को दूध में पड़ी मख्खी की तरह बाहर निकल के फेंक दिया है। और ये तथाकथित क्षत्रिय आज धोबी के कुत्ते बन गए है ना घर के ना घाट के।
वैश्यों के व्यापार ने इस समाज का भरपूर शोषण किया, साहूकारी, ब्याज बढ़ा के लोगों पर कर्ज बढ़ाया, कर्ज ना देने की स्थिति में उनकी
जायदाद परकब्जा किया और उनकी हजारों पीढ़ियों को गरीबी में धकेल दिया। मानते है एक समय इन वैश्यों ने मूलनिवासी शूद्रों पर मनमाने
अत्याचार किये है, लेकिन आज की तारीख में वैश्यों की हालत भी धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है ना घर के ना घाट के। लेकिन फिर भी ब्राह्मणों की बातों का अनुसरण करने के सिवा इनके पास भी कोई दूसरा चारा नहीं है।
और शुद्र के बारे में क्या लिखना जिनको इन तीनो वर्णो कि सेवा करने के अधिकार के सिवा और कुछ नहीं दिया गया था। खेत में काम करना, मेहनत मजदूरी करना ये सब इनका काम था। अगर नहीं करते तो इनकी जीवा (tongue) काटना, इनके कानमें शीशा पिघला कर डालना, उनकी आँखे निकलना, उनकी गर्दन काटना जैसी शिक्षाये मनुस्मृति में लिखी गयी है।
हमारे पूर्वजों पर इन ब्राहमणों, राजपूतों और वैश्यों ने मन चाहे जुल्म किये, ऐसा नहीं है कि हमारे समाज के लोगों को सचाई पता नहीं है लेकिन धर्म और जाति के जाल में उलझे मूलनिवासी पत्थरों के भगवानों और देवी देवताओं के डर से चुप बैठे हुए है। हिंदू ना होते हुए भी ब्राह्मणों के आदेशों का अनुसरण कर रहे है। और ऋग्वेद के पुरुष सूक्त कोआगे बढ़ाने का काम कर रहे है ।
दोस्तों, इस सब बातों से यह साबित होता है कि इन विदेशी आर्यों ने देश को लुटने, मूलनिवासी शूद्रों का शोषण करने के सिवा आज तक कुछ नहीं
किया। आज भी मूलनिवासी शूद्रों को बेबकुफ़ बना कर देश में 90% सरकारी नौकरियों पर कब्ज़ा किये बैठे है। देश के शीर्ष से लेकर निचे तक सभी महत्वपूर्ण पदों पर सिर्फ ब्राहमणों का कब्ज़ा है। आज तक देश का कोई भी प्रधान मंत्री शुद्र नहीं बना क्योकि ब्राहमण ये होने नहीं देना चाहते। नेवी, आर्मी से लेकर वायु सेना के शीर्ष पदों पर सिर्फ ब्राहमण ही विराजमान है। यहाँ तक की क्षत्रियों और वैश्यों को भी यह अधिकार नहीं है की वो देश के शीर्ष पदों पर रह सके। दोस्तों, क्या यह ब्राह्मणों की एक सोची समझी चाल नहीं है? आज भी धर्म और जाति के नाम पर देश में हर मूलनिवासी का शोषण हो रहा है। देश की हर बहु बेटी का शोषण हो रहा है। DNA Research Report 2001 के मुताबिक भारत की सभी औरतों का DNA 100%
एक है और शूद्रों के DNA से 100% मिलाता है। जिस से सिद्ध होता है कि देश की सभी औरते और लडकियां शुद्र है। इसीलिए ब्राह्मण या हिंदू धर्म में औरतों को कोई खास अधिकार प्राप्त नहीं है और भारत की महिलाएं गुलामों जैसा जीवन जीने पर विवश है।
रहस्य है। अगर इन ब्राहमण विद्वानों से पूछा जाये तो कहते है धर्म के साथ तर्क नहीं करते सिर्फ आँखे मुंद कर धर्म को मानना चाहिए, लेकिन क्यों? ये भी किसी को पता नहीं है। अछूतों अर्थात शूद्रों की उत्पति असल में मनुस्मृति से हुई है।
जब 1600 ईसवी में मनु महाराज ने मनु स्मृति के रचना की तो उस में सभी मूलनिवासियों को शुद्र कहा गया और सभी मूलनिवासियों को 6743
जातियों में बांटा गया ताकि कभी भी मूलनिवासी या शुद्र ब्राह्मणों के खिलाफ सर ना उठा सके। उस समय देश में बौद्ध धर्म का बोल बाला था और
बहुत से लोग जातिवाद या मनुवाद को नहीं मानते थे। मूलनिवासी समता के साथ जीना सिख रहे थे। जो लोग समता और समानता के साथ जी
रहे थे उन्ही को शुद्र और अछूत कहा गया। मनुसृत्ति और पुरुष सूक्त दोनों में भी औरत जात का निर्माणकैसे हुआ है ये नहीं बताया गया है। क्योकि उस समय औरतों को सिर्फ भोग की वस्तु समझा जाता था। औरतों के शोषण के लिए हजारों प्रथाएं और परम्पराए देश में प्रचलित थी।
तो औरतों पर ध्यान देने का कोई विचार ब्राह्मणों के मन में आया ही नहीं। और औरत जात का शोषण आज भी जारी है।
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के मुताबिक ब्राह्मण को पढ़ने-पढ़ाने और धर्म गुरु बनने का अधिकार,क्षत्रिय को राज करने का अधिकार, वैश्यों को व्यापार करने का अधिकार दे दिया गया। लेकिन शूद्रों को सिर्फ इन तीनों वर्णों की सेवा का आदेश सुना दिया गया। जो भी वर्ग अपनाकाम ठीक तरह से नहीं करता था उसके लिए दंड के प्रावधान किया गया था। खासकर शुद्रो केलिए वे दंड बहुत ही अमानवीय थे। आज भी देश के बहुत से हिस्सों में
मूलनिवासियों पर ब्राह्मणों के अत्याचारों का सिलसिला जारी है।
क्या ये व्यवस्था विश्व में सबसे अच्छी थी ? अगर थी तो फिर ये अन्यदेशों में क्यों नहीं पायी जाती है ?अगर भारत के लोगों का निर्माण ब्रह्मा के शरीर से हुआ है तो अफ्रीकन, अमेरिकन,जापानीज आदि लोग बिना किसी ब्रह्मा के कैसे पैदा हो गए?क्या ब्रह्मा की सृष्टि का ज्ञान सिर्फ भारत तक ही सीमित था? अगर सीमित था तो फिर उसको भगवान् कैसे मान सकते है? और ब्रह्मा को सिर्फ भारत के 1 अरब 30 करोड लोगों में से सिर्फ
ब्रह्माणी या हिंदू धर्म को मानने वाले लोग ही जानते है जो मुश्किल से 80 करोड भी नहीं होंगे। बाकि पुरे विश्व के 8 अरब लोग बेबकुफ़ है क्या?
चलो अब जानते है इनके कर्म का क्या परिणाम के बारे में : ब्राह्मण को ही सिर्फ पढ़ने पढ़ाने का अधिकार था इसलिए आज दुनिया कि 200 सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में आज एक भी भारतीय विद्यालय शामिल नहीं है।देश कि 65 करोड़ से भी ज्यादा आबादी को पढ़ना लिखना तक नहीं
आता है। कोई भीमहत्वपूर्ण आविष्कार जैसे कि टेलीफोन, कंप्यूटर, मोबाइल, साइकिल, कपड़ा इत्यादि से लेकर शौचालय के कामोड काआविष्कार तक विदेश में हुआ है, आज तक भारत में एक भी अविष्कार नहीं हुआ। क्षत्रिय राजा जो कि ब्रह्मा के बाहु से पैदा हुए ये खुदका राज्य बचाने में असफल रहे।
अफगानिस्तान, तुर्कस्तान से आये कुछ मुगलों ने और यूरोप से आये अंग्रेजों ने इन क्षत्रिय राजाओं की सही औकात दिखा दी। आज भी इन तथाकथित क्षत्रियों के हालात ज्यादा अच्छे नहीं है। बस अपनी झूठी शान का दिखावा करते रहते है। लड़ाइयों में सर कटवाए इन क्षत्रियों ने और धर्म का डर दिखा कर राज किया ब्राह्मणों ने। असल में देखा जाये तो आज की तारीख में इन क्षत्रियों से ज्यादा दीन हीन शुद्र भी नहीं है। शुद्र भी
तार्किक बुद्धि का प्रयोग करना सिख रहे है लेकिन इन क्षत्रियों के पास आज भी ब्राह्मणों की बात मानने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है। ब्राहमणों ने हर क्षेत्र शिक्षा, राजनीति, व्यवसाय आदि से इन क्षत्रियों को दूध में पड़ी मख्खी की तरह बाहर निकल के फेंक दिया है। और ये तथाकथित क्षत्रिय आज धोबी के कुत्ते बन गए है ना घर के ना घाट के।
वैश्यों के व्यापार ने इस समाज का भरपूर शोषण किया, साहूकारी, ब्याज बढ़ा के लोगों पर कर्ज बढ़ाया, कर्ज ना देने की स्थिति में उनकी
जायदाद परकब्जा किया और उनकी हजारों पीढ़ियों को गरीबी में धकेल दिया। मानते है एक समय इन वैश्यों ने मूलनिवासी शूद्रों पर मनमाने
अत्याचार किये है, लेकिन आज की तारीख में वैश्यों की हालत भी धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है ना घर के ना घाट के। लेकिन फिर भी ब्राह्मणों की बातों का अनुसरण करने के सिवा इनके पास भी कोई दूसरा चारा नहीं है।
और शुद्र के बारे में क्या लिखना जिनको इन तीनो वर्णो कि सेवा करने के अधिकार के सिवा और कुछ नहीं दिया गया था। खेत में काम करना, मेहनत मजदूरी करना ये सब इनका काम था। अगर नहीं करते तो इनकी जीवा (tongue) काटना, इनके कानमें शीशा पिघला कर डालना, उनकी आँखे निकलना, उनकी गर्दन काटना जैसी शिक्षाये मनुस्मृति में लिखी गयी है।
हमारे पूर्वजों पर इन ब्राहमणों, राजपूतों और वैश्यों ने मन चाहे जुल्म किये, ऐसा नहीं है कि हमारे समाज के लोगों को सचाई पता नहीं है लेकिन धर्म और जाति के जाल में उलझे मूलनिवासी पत्थरों के भगवानों और देवी देवताओं के डर से चुप बैठे हुए है। हिंदू ना होते हुए भी ब्राह्मणों के आदेशों का अनुसरण कर रहे है। और ऋग्वेद के पुरुष सूक्त कोआगे बढ़ाने का काम कर रहे है ।
दोस्तों, इस सब बातों से यह साबित होता है कि इन विदेशी आर्यों ने देश को लुटने, मूलनिवासी शूद्रों का शोषण करने के सिवा आज तक कुछ नहीं
किया। आज भी मूलनिवासी शूद्रों को बेबकुफ़ बना कर देश में 90% सरकारी नौकरियों पर कब्ज़ा किये बैठे है। देश के शीर्ष से लेकर निचे तक सभी महत्वपूर्ण पदों पर सिर्फ ब्राहमणों का कब्ज़ा है। आज तक देश का कोई भी प्रधान मंत्री शुद्र नहीं बना क्योकि ब्राहमण ये होने नहीं देना चाहते। नेवी, आर्मी से लेकर वायु सेना के शीर्ष पदों पर सिर्फ ब्राहमण ही विराजमान है। यहाँ तक की क्षत्रियों और वैश्यों को भी यह अधिकार नहीं है की वो देश के शीर्ष पदों पर रह सके। दोस्तों, क्या यह ब्राह्मणों की एक सोची समझी चाल नहीं है? आज भी धर्म और जाति के नाम पर देश में हर मूलनिवासी का शोषण हो रहा है। देश की हर बहु बेटी का शोषण हो रहा है। DNA Research Report 2001 के मुताबिक भारत की सभी औरतों का DNA 100%
एक है और शूद्रों के DNA से 100% मिलाता है। जिस से सिद्ध होता है कि देश की सभी औरते और लडकियां शुद्र है। इसीलिए ब्राह्मण या हिंदू धर्म में औरतों को कोई खास अधिकार प्राप्त नहीं है और भारत की महिलाएं गुलामों जैसा जीवन जीने पर विवश है।
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