पटेल आरक्षण आन्दोलन पर लगातार आ रही खबरें परेशान करने वाली है, यह एक गहरी साजिश है जो आगे चलकर अपना वास्तविक रूप दिखायेगी । अब बात आती है कि ये साजिश किसके खिलाफ है, वास्तव में ये साजिश बहुत खतरनाक है और इसके प्रभाव अत्यन्त विनाशकारी हो सकते है । यह साजिश देश की एकता और अखण्डता के लिये भी खतरा उत्पन्न कर सकती है । हमें उम्मीद करनी चाहिये कि गुजरात और केन्द्र सरकार इस पर जल्दी ही नियन्त्रण कर लेंगी, क्योंकि इस आन्दोलन का सबसे ज्यादा नुकसान भी भाजपा को ही होने वाला है । इस आन्दोलन के राजनीतिक,आर्थिक और धार्मिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं ।
आरक्षण पाने के लिये किया जाने वाला ये आन्दोलन वास्तव में आरक्षण को खत्म करवाने वाला आन्दोलन है, यह एक साजिश है जो दलितों को दिये गये आरक्षण को खत्म करके हिन्दु एकता को ही नष्ट कर सकती है । इस आन्दोलन के कर्णधार जाट और गुर्जरों को भी अपने साथ मिलाना चाहते हैं, जिससे कि इनकी ताकत इतनी बढ़ जाये कि सरकार को इनके आगे घुटने टेकने पड़े । अगर इनकी चाल कामयाब हो जाती है तो सरकार इनके सामने घुटनों के बल झुक जायेगी । जिसने भी इस साजिश को अन्जाम दिया है, वो एक तीर से कई शिकार करना चाहता है । एक तरफ तो वो दलितों को मिल रहे आरक्षण के खिलाफ जनमत खड़ा करना चाहता है और दूसरी तरफ वो ओबीसी कोटे में पहले से शामिल जातियों को भड़काकर हिन्दुओं को आपस में लड़ाना चाहता है । मण्डल आन्दोलन के समय भड़की आग को दोबारा पूरे देश में भड़का कर भाजपा की केन्द्र सरकार को अस्थिर करना चाहता है । कहने को कहा जा रहा है कि पटेल ओबीसी कोटे से अपने लिये आरक्षण चाहते है, उनका एस.सी और एस.टी से कोई लेना देना नहीं है, इसलिये उनको घबराने की कोई जरूरत नहीं है । मेरा मानना है कि ये आन्दोलन सिर्फ दलितों के ही खिलाफ है, क्योकिं ये दलितों को दिये गये आरक्षण के आधार पर ही चोट कर रहा है ।
दलितों को आरक्षण उन पर तरस खाकर नहीं दिया गया था बल्कि मजबूरी में दिया गया था, अगर ऐसा न होता तो दलितों के लिये एक नया देश बनाने की माँग उठ सकती थी । जिन लोगों को मेरी बात पर शंका हो वो पूना समझौते का अध्ययन कर सकते हैं । ये आरक्षण मजबूरी में दिया गया था इसलियें इसे बेमन से लागू किया गया । आरक्षण का मतलब केवल सरकारी नौकरियों में कुछ पदों को दलितों के लिये आरक्षित होने तक सीमित कर दिया गया, जबकि आरक्षण का मतलब था कि दलितों को सभी जगहों पर समुचित प्रतिनिधित्व देने के लिये तैयार करके मुख्यधारा में लाया जाये । जो आरक्षण दलितों को मिला हुआ है उसका फायदा कुछ ही लोगो तक सीमित हो गया है, इसलिये इसका विरोध होना शुरू हो गया है ।
हमारे नेताओं ने SC ST को आरक्षण इसलिये दिया था, क्योंकि बिना आरक्षण के SC ST आगे नहीं बढ़ सकते थे । SC ST को आरक्षण इसलिये नहीं दिया गया कि वो गरीब थे बल्कि इसलिये दिया गया कि वो गरीब बनाये गये थे । गरीब होना एक बात है और गरीब बनाना दूसरी बात है । सदियों से लगातार किये गये छुआछूत, भेदभाव, शोषण और दमन के द्वारा दलितों को इस हालत में पहुँचाया गया है । उन्हें शिक्षा और सम्पत्ति के अधिकार से वंचित रखा गया था । आरक्षण की मूल भावना यही है कि जिन लोगों को जानबूझकर गरीब बनाकर रखा गया था उन्हें उचित अवसर देकर मुख्यधारा में लाया जाये, यही बात आरक्षण की आत्मा है । जो लोग आरक्षण को आर्थिक आधार पर लागू करना चाहते है, उन्हें यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिये । अगर आरक्षण का फायदा केवल अमीर दलित ही उठा रहे हैं और गरीब दलितों को आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा है तो ये दलितों की समस्या है, इसे दलितों के लिये छोड़ देना चाहिये । देर सवेर दलित इस समस्या से निबट लेगें । मेरी लड़ायी भी ऐसे ही अमीर और स्वार्थी दलितों से है, लेकिन वो हमारा आपसी मामला है ।
जाट, गुर्जर और पटेल आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग कर रहे है, उनका कहना है कि उनके समाज में भी बहुत लोग गरीब है । चलो ये बात भी इन लोगो की मान लेते है कि उनके समाज में भी गरीबी है, लेकिन अगर गरीबी की बात की जाये तो मुसलमानो और दलितों में ज्यादा अन्तर नहीं है , शायद मुसलमान दलितों से भी ज्यादा बुरी हालत में है । इसलिये आर्थिक आधार पर भी सबसे पहले आरक्षण मुसलमानों को ही देना पड़ेगा । लेकिन मुसलमान जानते है कि आरक्षण क्यों दिया गया है इसलियें वो आरक्षण के नाम पर कभी भी आन्दोलन नहीं करते, क्योंकि उन्हें पता है कि वो गरीब है और दलित गरीब बनाये गये है ।
अब सवाल उठता है कि आजादी के इतने सालों बाद आरक्षण लागू होने के बावजूद दलितों की हालत में ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है तो कब होगा और क्या कभी आरक्षण समाप्त नहीं हो पायेगा । वास्तव में जो समाज हजारों सालों से गुलामों की गुलामी करता रहा हो वो पूरी तरह से मानसिक और शरीरिक रूप से अक्षम हो चुका है, अपने हालातो के लिये भगवान और किस्मत को दोष देता है, उसे इतनी जल्दी सुधार पाना सम्भव नहीं है । दलितों की मानसिकता बदलने में अभी काफी देर है, अब सवाल उठता है कि दलितों को आरक्षण का क्या कोई फायदा नहीं हुआ है, अगर देखा जाये तो जो सुधार दलित समाज की अवस्था में हमें दिखायी देता है, उसमें काफी बड़ा योगदान आरक्षण का ही है । दलित समाज में आया सुधार ही कुछ लोगो की आँख की किरकिरी बन गया है, इसलिये ये लोग इसे जाति के आधार पर नहीं आर्थिक आधार पर लागू करने की बात कर रहे हैं ।
आजकल पूरे सोशल मीडिया में लोग घोड़े और गधे का उदाहरण देकर खुद को घोड़ा और दलितों को गधा साबित करने में लगे हुए है । इससे साबित होता है कि आज भी लोगों की दलितों के प्रति मानसिकता बदली नहीं है, दलितों को दूसरे दर्जे का नागरिक मानते है । वास्तव में हमारे देश की समस्या यही है कि हम दलितों को गधे की तरह काम करता ही देखना चाहते है घोड़ो की तरह दोड़ में हिस्सा लेने से रोकना चाहते है । दलित वो घोड़े है जिनसे सदियों तक गधे का काम ही लिया गया, जिससे कि वो भूल गये कि वो भी घोड़े है, अब जबकि उन्हें अपने घोड़े होने का अहसास होने लगा है तो लोग उन्हें फिर गधा बनाकर काम पर लगा देना चाहते है ।
अन्त में मैं यह कहना चाहती हूँ कि मै भी आरक्षण के खिलाफ हूँ, लेकिन जब तक दलित समाज मुख्यधारा में न आ पाये इसे जारी रखना पड़ेगा । सारे संसार में गरीब होते है, लेकिन आरक्षण कहीं नहीं है, क्योंकि गरीबों की सुविधाँये दी जाती है, आरक्षण नहीं । जाति-व्यवस्था केवल हमारे देश में है और इसलियें आरक्षण भी केवल हमारे देश में है और जब तक जातिगत भेदभाव समाप्त नहीं होता इसे खत्म करना मुश्किल होगा । वैसे आरक्षण देश, धर्म और समाज के हित में नहीं है, इसलियें सरकार को दलितो के सम्पूर्ण विकास की योजनायें बनाकर जल्द ही मुख्यधारा में शामिल करना पड़ेगा ताकि दलित खुद ही आरक्षण का त्याग कर दें । हजारों सालों से जारी आरक्षण ने ही हमारे देश का बेड़ा गर्क किया है, जिसके कारण 80 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी को हथियार उठाने से रोक दिया गया, शिक्षा प्राप्त करने से रोक दिया गया और देश दो हजार साल तक गुलाम रहा । सदियों से कमाया धन लुट गया, धर्म का नाश हो गया और एक भूखा-नंगा देश आजाद हो गया, जिसने बड़ी मुश्किल से अपने आपको सम्भाला है । दलितों को दिया गया आरक्षण पुराने आरक्षण के दाग मिटाने की एक छोटी सी कोशिश है, अगर इसे दिल से लागू किया जाये तो ये आरक्षण भी अपना काम करके खत्म कर दिया जायेगा । सर्वणो को कुछ धैर्य तो रखना पड़ेगा, अगर उन्होंने अपना धैर्य खो दिया और गरीबी के नाम पर आरक्षण माँगने के लिये लड़ते रहे तो आने वाले हालातों का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता ।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/shinningindia/entry/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A4%95-%E0%A4%B7%E0%A4%A3-%E0%A4%95-%E0%A4%86%E0%A4%A7-%E0%A4%B0-%E0%A4%9C-%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%95-%E0%A4%AF?fb_action_ids=403944299798542&fb_action_types=og.recommends
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