पहले पद में वर कन्या से कहता है ---ऊं इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 1।।
वर कहता है --- हे देवि ! तुम संपत्ति तथा ऐश्वर्य और दैनिक खाद्य और पेय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए पहला पग बढ़ाओ , सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।
---- ऊं ऊर्जे द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 2 ।।
---- हे देवी ! तुम त्रिविध बल तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए दूसरा पग बढ़ाओ । सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें...
----ऊं रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 3 ।।
-----------हे देवि ! धन संपत्ति की वृद्धि के लिए तुम तीसरा पग बढ़ाओ ,सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
---- ऊं मयोभवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 4।।
....हे देवि ! तुम आरोग्य शरीर और सुखलाभवर्धक धन संपत्ति के भोग की शक्ति के लिए चौथा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
--- ऊं पशुभ्यो: पंचपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 5 ।।
--- हे देवि !तुम घर में पाले जाने वाले पांच पशुओं ,( गाय , भैंस , बकरी , हाथी और घोड़ा ) के पालन और रक्षा के लिए पांचवा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
---- ऊं ऋतुभ्य षट्पदी भव सा मामुनव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 6 ।।
---- हे देवि ! तुम 6 ऋतुओं के अनुसार यज्ञ आदि और विभिन्न पर्व मनाने के लिए और ऋतुओं के अनुकूल खान पान के लिए छठा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
--- ऊं सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 7 ।। ---
----- हे देवि ! जीवन का सच्चा साथी बनने के लिए तुम सातवां पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
वर कहता है --- हे देवि ! तुम संपत्ति तथा ऐश्वर्य और दैनिक खाद्य और पेय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए पहला पग बढ़ाओ , सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।
---- ऊं ऊर्जे द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 2 ।।
---- हे देवी ! तुम त्रिविध बल तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए दूसरा पग बढ़ाओ । सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें...
----ऊं रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 3 ।।
-----------हे देवि ! धन संपत्ति की वृद्धि के लिए तुम तीसरा पग बढ़ाओ ,सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
---- ऊं मयोभवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 4।।
....हे देवि ! तुम आरोग्य शरीर और सुखलाभवर्धक धन संपत्ति के भोग की शक्ति के लिए चौथा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
--- ऊं पशुभ्यो: पंचपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 5 ।।
--- हे देवि !तुम घर में पाले जाने वाले पांच पशुओं ,( गाय , भैंस , बकरी , हाथी और घोड़ा ) के पालन और रक्षा के लिए पांचवा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
---- ऊं ऋतुभ्य षट्पदी भव सा मामुनव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 6 ।।
---- हे देवि ! तुम 6 ऋतुओं के अनुसार यज्ञ आदि और विभिन्न पर्व मनाने के लिए और ऋतुओं के अनुकूल खान पान के लिए छठा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
--- ऊं सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 7 ।। ---
----- हे देवि ! जीवन का सच्चा साथी बनने के लिए तुम सातवां पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
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