जो चीज हमें संसार में बांधे रखती है और हमारे बंधन का कारण बनती है, उसे माया कहते हैं।
केवल धन ही माया नहीं बल्कि वो सभी चीजें
जिनके प्रति हम आसक्ति होकर काम-क्रोध आदि विकारों में रहते हैं माया ही है।
केवल धन ही माया नहीं बल्कि वो सभी चीजें
जिनके प्रति हम आसक्ति होकर काम-क्रोध आदि विकारों में रहते हैं माया ही है।
प्रश्न उठा है कि क्या माया खराब है...???
असल में माया खराब नहीं वो तो सुविधा के लिए बनी है लेकिन उसमें हमारी आसक्ति खराब है।
माया तो उपयोग के लिए है, लेकिन हम उपयोग से हटकर जब उपभोग करने लगते हैं, तब फंस जाते हैं।
माया तो उपयोग के लिए है, लेकिन हम उपयोग से हटकर जब उपभोग करने लगते हैं, तब फंस जाते हैं।
माया को छोड़ने की जरूरत नहीं बल्कि उसके प्रति अपनी आसक्ति को छोड़ दें।
मान लो आपने माया छोड़ दी लेकिन आसक्ति बनी रही तो बाद में माया के छोड़ने का पछतावा होगा।
असल में आसक्ति को हम छोड़ना नहीं चाहते और बहाना करते हैं कि माया छूटती नहीं।
मान लो आपने माया छोड़ दी लेकिन आसक्ति बनी रही तो बाद में माया के छोड़ने का पछतावा होगा।
असल में आसक्ति को हम छोड़ना नहीं चाहते और बहाना करते हैं कि माया छूटती नहीं।
जैसे एक आदमी सुबह देर तक सोता रहा उससे पूछा क्यों भाई देर से क्यों उठे, वो बोला मेरा कंबल मुझे छोड़ नहीं रहा था।
क्या कंबल हमें नहीं छोड़ता या हम कंबल को नहीं छोड़ते हैं...???
ऐसे ही माया को हम छोड़ना नहीं चाहते और कहते हैं माया ने मुझे फंसाया है।
हमारे भीतर काम, क्रोध, लोभ, अहंकार आदि अनेक विकार होते हैं।
काम वासना इनमें सबसे प्रबल है।
आंख दृश्य देखती है लेकिन आंखों के पीछे चित्त में काम वास करता है।
काम वासना इनमें सबसे प्रबल है।
आंख दृश्य देखती है लेकिन आंखों के पीछे चित्त में काम वास करता है।
जितनी प्रबल वासना होगी वो उतनी शीघ्रता से
इंद्रियों के द्वारा बाहर निकलेगी।
ये तो जितना भोगेंगे उतना बढ़ती जाएगी।
इंद्रियों के द्वारा बाहर निकलेगी।
ये तो जितना भोगेंगे उतना बढ़ती जाएगी।
जैसे हवन कुंड में आग जली हो और आप उसमें घी डाल दे तो आग और बढ़ जाएगी।
बार-बार भोग लेने से वासना का नाश नहीं होता।
फिर आप में और एक जानवर में क्या अंतर है।
बार-बार भोग लेने से वासना का नाश नहीं होता।
फिर आप में और एक जानवर में क्या अंतर है।
खाना, भोगना और सोना जानवर भी करता है आप भी करते हैं।
केवल इतना ही जीवन नहीं है, जानवर की तरह मत जीयो।
केवल इतना ही जीवन नहीं है, जानवर की तरह मत जीयो।
ये शरीर तो मल,मूत्र,पसीना,खून से भरा हुआ मांस का लोथड़ा ही है।
जब आप सुबह सोकर उठते हैं तो देखना शरीर के हर द्वार से गंदगी ही बाहर निकल रही है।
जब आप सुबह सोकर उठते हैं तो देखना शरीर के हर द्वार से गंदगी ही बाहर निकल रही है।
इस गंदगी से भरे शरीर के प्रति आसक्ति क्यों रखते हो...???
बल्कि इस शरीर को धारण करने वाली सत्ता को देखो, उससे प्रेम करो।
जो तुम्हारे और सामने वाले में एक ही है।
शरीर में भेद है लेकिन शरीरों को चलाने वाली चेतना में भेद नहीं होता है।
जो तुम्हारे और सामने वाले में एक ही है।
शरीर में भेद है लेकिन शरीरों को चलाने वाली चेतना में भेद नहीं होता है।
शरीर का क्या है, ये तो बढ़ती उम्र के साथ ढल ही रहा है, बिखर रहा है, बीमार, कमजोर और बुढ़ा हो रहा है फिर एक दिन जर्जर हो जाएगा लेकिन ये वासना कभी बुढ़ी तथा जर्जर नहीं होगी।
ये वासना हम पर हावी होकर हमारी शक्ति का नाश करती है जिससे हमारा मन, बुद्धि और विवेक भ्रमित हो जाता है, इसलिए इस पर विजय पा लो।
ये वासना हम पर हावी होकर हमारी शक्ति का नाश करती है जिससे हमारा मन, बुद्धि और विवेक भ्रमित हो जाता है, इसलिए इस पर विजय पा लो।
हरपल बदलते शरीर पर मोहित क्यों होते हो, बल्कि जो कभी नहीं बदलता उस आत्मा को प्रेम करो।
प्रभु से प्रेम करो....!!
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