सावण आयो सायबा, दूर देश मत जाय !
तन भीज्यो बरसात में, मन में लागी लाय !!
सावण घणो सुहावणो, हरियो भरियो रूप !
निरखूं म्हारो सायबो, सावण घणो कुरूप !!
साजन उभा सामने, निरखे धण रो रूप !
बादलियाँ रे बीच में, मधुरी मधुरी धूप !!
रसियां को मन चकरी करतो, घाघरियै को घरे।
एक बीनी छप्पन छैला, नाच नचावै फेर।।
छलकै जोबन अंग अंग सै, संग चंग की थाप।
गींदड़ घलै नंगारो बाजै, मुख सै फूटै राग।।
अलमस्ती कै आलम में, मदमस्ती की परिपाटी।
जुलमी सावन बड़ो रंगीलो, वाह भई राजस्थान री धरती ।।
तन भीज्यो बरसात में, मन में लागी लाय !!
सावण घणो सुहावणो, हरियो भरियो रूप !
निरखूं म्हारो सायबो, सावण घणो कुरूप !!
साजन उभा सामने, निरखे धण रो रूप !
बादलियाँ रे बीच में, मधुरी मधुरी धूप !!
रसियां को मन चकरी करतो, घाघरियै को घरे।
एक बीनी छप्पन छैला, नाच नचावै फेर।।
छलकै जोबन अंग अंग सै, संग चंग की थाप।
गींदड़ घलै नंगारो बाजै, मुख सै फूटै राग।।
अलमस्ती कै आलम में, मदमस्ती की परिपाटी।
जुलमी सावन बड़ो रंगीलो, वाह भई राजस्थान री धरती ।।
बहुत सुन्दर
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