श्री शनिदेव महाराज
जय शनिश्चराय
।। नमामि शनैश्वरम।।
भ नीलांजन समामासं रविपुत्रम
यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं
नमामि रानेश्वरम।।
मंत्र- ऊँ प्रां प्री प्रों स:
शनेश्चराय नम:
श्री शनि चालीसा
श्री गुरू पद को परस कर धर गणेंश
का ध्यान।
शनि चालीसा रचूं मै, निज मत के
अनुमान।।
जय जय श्री शनिदेव महाराज। जय
कृ
।। सर्वम शिवमयम जगत।।
कपर्र गौरं करूणावतारं संसार
सारं भुजगेन्द्र हारम।
सदावसतं दयारविन्दे,भवं
भवानी सहितं नमामि।।
वन्दे देवमुमापति सुरगुरूं, वन्दे
जगतकारणम।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे
पशुनां पतिम।।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं, वन्दे
शिवं शंकरम।।
कण्डे यस्य लसत कराल गरलं
गंगजलं मस्तके
वामांगे गिरिराजराज
तनया जाया भवानीसती,
ननिद स्कंद गणाधिराज
सहिता श्री विश्वनाथ प्रभो
काशी मंदिर संसिथतो अखिल
गुरूर्देयात सदा मंगलम।।
आत्मा त्वं गिरिजा मति:,
सहचरा:, प्राणा: शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना,
निद्रा समाधि सिथति।
संचार प्रदयो प्रदक्षिण विधि:
स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यधत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम।।
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजे
वा, श्रवण नयनजं
वा मानसंवापराधम।
विहितमविहितं
वा सर्वमेतत्क्षमस्व, जय जय
करूणाब्धे श्रीमहादेव शंभो।
गुरूस्तोत्रम
गुरूर् गुरूर्विष्णु:
गुरूर्देवा महेश्वर:।
गुरू साक्षात परब्तस्मै
श्रीगुरवे नम:।।1।।
अज्ञानतिमिरान्धस्य
ज्ञाना´जनशलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै
श्रीगुरवे नम:।।2।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन
चराचरम।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै
श्रीगुरवे नम:।।3।।
ध्यान मूलं गुरूमूर्ति:,पूजामूलं
गुरू: पदम।
मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं,
मोक्षमूलं गुरूकृपा।।4।।
शनि शांति के उपाय
मंत्र-ऊँ प्रां प्रीं प्रों स:
शनेश्चराय नम:
दशरथ कृत स्त्रोत का पाठ,
शनिस्त्रोत शनि चालीसा,
शनिकवच, बजरंगबाण, हनुमान
चालीसा, सुन्दरकाण्ड,
और हनुमान बाहुक का पाठ
करना चाहिए। काले घोड़ो
की नाल का छल्ला धारण
करना चाहिए।
शनिदेव भैरवदेव एवं हनुमान
जाग्रत देंव माने जाते हैं।
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