Thursday, January 28, 2016

दहेज़ प्रथा

भारत वर्ष ने पिछले कुछ दसकों में आपार तरक्की की है| भारत के उद्योग पति विश्व के सबसे धनाढ्य लोगों में माने जाने लगे हैं| भारत के बने अंतरिक्ष यान चन्द्रमा और मंगल तक पहुँचने लगे हैं| नासा से लेकर माइक्रोसॉफ्ट तक भारतीय दिखाई देते हैं| बड़े बड़े हवाई अड्डे हो गए हैं, मेट्रो रेल लगभग सभी बड़े शहरों में आ गई है| करोड़ों के फ्लैट बिकते हैं| बाज़ार में गुक्की से लेकर रैडो तक की वस्तुएं उपलब्ध हैं| माल, शोपिंग काम्प्लेक्स, मल्टीप्लेक्स, मौज मस्ती करते युवा सब कुछ भारत में वैसा ही है जैसे विदेशों में होता है| लेकिन इन सबके बावजूद विकास के सभी मानकों में भारतीय महिला की हालत बद से बदतर होती जा रही है| हाल ही में प्रकाशित एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व में महिलाओं की सबसे बदतर हालत वाले देशों में चौथे नंबर पर आता है| ईरान, ईराक, यहाँ तक की बंगला देश में भी महिलाओं की स्थिति भारत वर्ष से अच्छी मानी जाती है| और इस दुर्दशा के पीछे दहेज़ प्रथा का बहुत बड़ा हाथ है| भारत में दहेज़ प्रथा ने समाज में नारी का स्थान दोयम बना रखा है| पुरुष को आरम्भ से ही दंभ रहता है कि वह उच्च प्रजाति है क्योंकि विवाह के समय उसे स्त्री के साथ धन भी मिल रहा है| यह विकृति दिमाग में नारी की हीन छवि ही लाती है|
समाज में कहा जाता है कि लड़की को शिक्षा ही सबसे बड़ी शक्ति है| दुर्भाग्य है कि इसी शिक्षित लड़की का पिता जब विवाह हेतु सम स्तरीय वर ढूंढता है, तो दहेज़ की मांग करते वक्त लड़की की शैक्षिक योग्यता मायने नहीं रखती| 10-15 जगह धक्के खाने के पश्चात जब विवाह होता भी है तो मन में यही भाव रहता है की बला छूटी| वह बेटी जो पिता की लाडली होती है पिता पर बोझ स्वरुप बन जाती है| लड़की स्वयं कुंठा ग्रस्त रहती है अपने पिता की परेशानियों को देख कर| दहेज़ प्रथा केवल आर्थिक समस्या ही नहीं है, बल्कि यह समाज के 50 % नागरिकों में कुंठा का भाव पैदा करती है| यह युवतियों को अहसास कराती है कि वह कमजोर हैं, अक्षम हैं| और इसी वजह से विवाह के पश्चात प्रायः वह कैरियर तथा पढाई पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पातीं| यही लड़कियां जब मां बनती हैं तो अपने बेटों और बेटियों को भी यही शिक्षा देती हैं|
दहेज़, दान, दक्षिणा, संकल्प, स्त्री धन जैसे 50 नामों से सुशोभित कर रखा गया है भीख मांगने की इस कुरीति ने| कुतर्क दिया जाता है, की सनातन धर्म की परंपरा है दहेज़| मैंने वेदों का अध्ययन किया, किसी भी वेद में दहेज़ मांग कर लड़का लड़की के बेमेल विवाह का जिक्र तक नहीं है| विवाह के वैदिक सूत्रों में अथर्व वेद में भी विवाह के समय का सूत्र है
भगस्ते हस्तमग्रभीत् सविता हस्तमग्रभीत् |
पत्नी त्वमसि धर्माणाहं गृहपतिस्तव ||
अर्थात वर बधू से कहता है कि ऐश्वर्ययुक्त! मैं तेरे हाथ को ग्रहण करता हूँ और धर्मयुक्त मार्ग में प्रेरक मैं तेरे हाथ को ग्रहण करता हूँ। वधू के हाथ को ग्रहण करने के अतिरिक्त किसी अन्य दक्षिणा के ग्रहण करने का कोई वैदिक प्रस्ताव ही नहीं था| मध्य कालीन हिन्दू समाज में बहुत सारी कुरीतियाँ और अंध विश्वास पैदा हुए| दहेज़ प्रथा उन्हीं कुरीतियों में एक है, जिसे समाज के लालची लोग अभी भी सनातन धर्म की परम्पराओं से जोड़ कर बताते हैं| सनातन धर्म में मां पार्वती ने शिव से विवाह हेतु व्रत किया तथा विवाह भी हुआ| माता सीता का श्री राम से विवाह हुआ तो उर्मिला का लक्ष्मण से| वर्तमान भारत में भी युवतियां शिव का व्रत तो करती हैं, पर विवाह उस असुर से हो पाता है, जिसका दहेज़ दे पाने में माता पिता सक्षम होते हैं| सनातन धर्म में कहीं इस प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है कि जनक दशरथ के पास रिश्ता लेकर गए| पहले दहेज़ तय हुआ तत्पश्चात श्री राम ने सीता को देखा व उनका वरन किया| हमारे सनातन धर्म के विवाह की पद्धति में नारी अपने पति का वरन करती है शिव के रूप में| पुरुष भी अपनी पत्नी के रूप में उसे स्वीकार करता है, तत्पश्चात परिवार, बंधू बांधवों की सहमती से विवाह का पवित्र पर्व संपन्न होता है|
कुछ दिनों पूर्व ही एक युवती का विवाह तय करने हेतु मुझे आमंत्रित किया गया| युवती के माता पिता की म्रत्यु हो चुकी थी| पर युवती स्नातक, बी. एड. करके सरकारी विद्यालय में सेवारत थी| लड़का आयु में भी ज्यादा था, एक पैर से विकलांग भी, साथ ही किसी नौकरी में भी नहीं था| सबसे पहला प्रश्न लड़के के पिता का था आपका संकल्प क्या है? लड़की के भाई ने बहुत हाथ पैर जोड़े पर लड़के के पिता गाडी और पैसे की मांग में एक पैसे के मोल भाव को तैयार ही न थें| अंततः मुझे ही बोलना पड़ा कि मान्यवर नियमतः तो ऐसी सुशील संस्कारी, आपके लड़के से कई गुना ज्यादा पढ़ी लिखी एवं कमा रही वधू हेतु आपको दहेज़ देना चाहिए| बात नहीं बननी थी, न बनी| बाद में लड़के का विवाह लड़के के पिता की इच्छा अनुसार गाडी एवं पैसा देने वाले परिवार में ही हुआ| ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण हैं| शायद ही किसी विवाह को तय करने में दहेज़ की बात न आती हो|
लड़का जितना पढ़ा लिखा उतना ही ज्यादा मूल्य| ज्यादा तनख्वाह और ज्यादा मूल्य| पिता को रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलनी हो कुछ मुद्रा और बढ़ गई| पुत्र का विवाह सनातन धर्म प्रक्रिया नहीं बल्कि सब्जी मंडी में फल बेंचने की प्रक्रिया हो गई| नियमतः ऐसे खरीदे गए पुत्रों का अपनी पत्नी से माता पिता की सेवा की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन्हें सास ससुर की सेवा करनी चाहिए| समाज का एक दुर्भाग्य यह भी है कि सामजिक बहस में, सोसल मीडिया में, भाषणों में लगभग सभी व्यक्ति दहेज़ प्रथा का विरोध करते नजर आयेंगे| विवाह के मौसम में आप सौ मंडप घूम आइये लगभग सभी में दहेज़ का सामान गर्व से सजा कर रखा गया होगा|

पुनश्च सनातन धर्मियों के लिए तो दहेज़ का कोई प्रावधान ही नहीं है| दहेज़ शब्द स्वयं में भी न हिंदी शब्द है न संस्कृत| दहेज़ शब्द अरबी भाषा का शब्द है| अंत में मैं पुनः यही कहना चाहूँगा कि हम सभी सनातन धर्मी हैं और हमें अपने धर्म का आदर करना चाहिए| ऋग्वेद के सूत्र १०.८५.७ में कहा गया है:
चित्तिरा उपबर्हणं चक्षुरा अभ्यञ्जनम |
दयौर्भूमिःकोश आसीद यदयात सूर्या पतिम ||
अर्थात माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबलउपहार में दें | माता- पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो |

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