Friday, January 29, 2016

समाज की परिभाषा क्या है ?(What is the definition of society ?)

1. समता से जन्म होता है जिसका उसे ''समाज'' कहते है।

2. समुचित हिताधिकारों से सहमत व्यक्तियों का समूह ही ''समाज'' है।

3. "समत्वं योग उच्यते" का व्यावहारिक रूप ही ''समाज'' कहलाता है।

4. परस्पर समाधिकारिता पर आधारित संगठन ही ''समाज'' है।

5. परस्पर समतामूलक उचित व्यवहार ही ''समाज'' को जन्म देता है।

6. न्यायपूर्ण मानवीय सहजीविता को ही ''समाज'' कहते हैं।

7. समुचित नियम-नीति-निर्णय पर आधारित मानव सभ्यता को ही ''समाज'' कहा जाता है।

8. सत्यात्मक न्याय के सिद्धांत पर आधारित सभ्यता ही ''समाज'' है।

9. पशुओं के समूह को ''झुण्ड'' एवं मनुष्यों के समूह को ''समाज'' के नाम से जाना जाता है।

10. न्यायशील राष्ट्रीय व्यवस्था को जन्म देने वाली मानवीय सभ्यता को ही ''समाज'' कहा जाता है।

11. न्यायशील सदाचार एवं सद्व्यवहार को आत्मसात् करने वाली सुव्यवस्था ही ''समाज'' है।

12. आत्मिक समता और प्राकृतिक औचित्यता के न्याय द्वारा प्रकाशित व्यवस्था ही ''समाज'' है।

13. प्रबुद्ध मानवीय सहजीवन धारा का न्यायसंगत सुव्यवस्थित प्रवाह ही ''समाज'' है।

14.ज्ञान-विज्ञान द्वारा प्रकाशित सत्यात्मक न्याय के सिद्धान्त पर आधारित समन्वय एवं सामंजस्यपूर्ण सहजीविता ही ''समाज'' है।

15. "आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत्" के समादर्श की साकार प्रतिमा ही ''समाज'' है।

16. सौन्दर्य, सुगंध, स्वास्थ्य से युक्त मानवपुष्पों का समृद्ध गुञ्छन ही ''समाज'' है।

17. वरीयताक्रम पर आधारित कर्म-पद-संपदा के समुचित वितरण की व्यवस्था का न्यायसंगत अस्तित्व ही ''समाज'' है।

18. मानवजीवन के चारों आयामों के विकास पर आधारित समिचुत हिताधिकारिता की व्यवस्था ही ''समाज'' है।

19. दान-पुण्य से ऊपर उठकर न्याय को धर्म के रूप में स्वीकार करने वाले मनुष्यों का संघ ही ''समाज'' है।

20. प्रेमपूर्ण एकता की ओर मानव समूह को प्रेरित करने वाली सामूहिक न्याय व्यवस्था ही ''समाज'' है।

21. "विश्व बंधुत्व" एवं "वसुधैव कुटुम्बकम्" के महास्वप्न को साकार करने में समर्थ न्यायशील सभ्यता को ही ''समाज'' कहा जा सकता है।

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