Friday, January 8, 2016

सोचो, सोचो, गौर से सोचो,

ब्राह्मणी संस्कृति
"वाह रे आदर्श संस्कृति "
झुठ की संस्कृति,
लुंट की संस्कृति,
जाति की संस्कृति,
विषमता की संस्कृति,
भेदभाव की संस्कृति,
शोषण की संस्कृति,
उंच-नींच की संस्कृति,
देवतावाद की संस्कृति,
अवतारवाद की संस्कृति,
श्रध्दा से खेलने की संस्कृति,
बेबस देवदासीयों की संस्कृति,
धर्म स्थलों में लुंट की संस्कृति,
गुरु घण्टालो की संस्कृति,
अश्लीलता की संस्कृति,
नंगे नाच-गाने की संस्कृति,
नंगे बाबाओं की संस्कृति,
कामवासना की संस्कृति,
बलात्कारीयों की संस्कृति,
भोन्दु बाबाओं और अम्माओं की संस्कृति,
अंधश्रध्दा की संस्कृति,
अनैतिक संबंधों की संस्कृति,
प्रदूषण फेलानेवाले त्यौहारों की संस्कृति,
अश्लील कृत्य की संस्कृति,
मदिरापान की संस्कृति,
गांजे के नंशे की संस्कृति,
खोपड़ी में दारु पीने की संस्कृति,
पत्थर पर दुध बहाने की संस्कृति,
भोग के नाम पर अन्न को जाया करने की संस्कृति,
भुखे को भुखे मारने की संस्कृति,
मृतक को पानी पिलाने की संस्कृति,
जीवित को प्यासे मारने की संस्कृति,
पापी मन को पानी से धोने की संस्कृति,
रंगीलो की संस्कृति,
बहु पत्नीत्व की संस्कृति,
स्त्री को दासी बनाने की संस्कृति,
स्त्री शोषण की संस्कृति,
पत्नी को जुएँ में दाँव पर लगाने की संस्कृति,
दहेज की संस्कृति,
बेटी को जन्म से पहले ही मारने की संस्कृति,
चमत्कारों की संस्कृति,
लाचारों को लाचार बनाने वाली संस्कृति,
बेबस को और बेबस बनाने वाली संस्कृति,
निर्धनों को और निर्धन बनाने वाली संस्कृति,
धनवानों को और धनवान बनाने वाली संस्कृति।
क्या ऐसे संस्कृति से आदर्श समाज निर्माण होगा?
क्या ऐसे संस्कृति से भारत देश महान होगा??
क्या ऐसे संस्कृति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण जीवित रहेगा???
क्या ऐसे संस्कृति से समाज में "समत"आयेगी???
सोचो, सोचो, गौर से सोचो,

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