Friday, January 8, 2016

मंदिर-मस्जिद नहीं, रोज़गार चाहिए

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर फिर से सरगर्मी है. राम मंदिर के लिए पत्थर काटने और उसके जवाब में बाबरी मस्जिद के लिए भी पत्थर मंगा कर काटने की तैयारियों और चर्चाओं के बीच राजनीतिक फसल काटने की मंशा परवान चढ़ रही है. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी एक साल का समय बाकी है, इसलिए वोट काटने एवं तराशने के लिए भाजपा को पत्थर काटना और तराशना ज़रूरी लग रहा है. जबकि बिहार विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद उत्तर प्रदेश में इस तरह से ज़मीन तैयार करना भारतीय जनता पार्टी के परिपक्व नीतिगत निर्णय का संकेत नहीं है. संघ-भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण में यह तस्वीर सामने आई है कि बहुजन समाज पार्टी और उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के म़ुकाबले भारतीय जनता पार्टी तीसरे स्थान पर चल रही है. यह भाजपा की बौखलाहट तो नहीं है! अचानक रामजन्म भूमि का मुद्दा देश में गरमाने लगा. बिहार चुनाव से पहले और बिहार चुनाव में गाय मुद्दा थी. अब असम और पंजाब में चुनाव होने वाले हैं, उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव हैं, तो रामजन्म भूमि का मुद्दा खड़ा हो गया. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के ऊपर सवाल उठाते हुए कहा था कि आरक्षण के ऊपर पुनर्विचार होना चाहिए, उसका विश्लेषण होना चाहिए. लोगों में यह संदेश गया कि भारतीय जनता पार्टी बिहार में जीतने के बाद आरक्षण की समीक्षा करने के लिए एक आयोग बना देगी. मोहन भागवत ने एक नया बयान यह दिया कि सौ वर्षों तक आरक्षण बना रहेगा. मैं यह तो नहीं कहता कि संघ प्रमुख ज़िम्मेदार व्यक्ति नहीं हैं, पर दोनों बयानों का विरोधाभास देखने पर लगता है कि संघ भी अब राजनीतिक भाषा बोलना न केवल सीख गया है, बल्कि राजनीति करने की तैयारी भी कर रहा है. अब अचानक अयोध्या में महंत नृत्य गोपाल दास ने घोषणा की कि उन्हें मोदी सरकार से इशारा मिला है कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने की तैयारी शुरू कर दी जाए. अभी तक पत्थरों की स़फाई का काम चल रहा था, अब पत्थर लाने का काम शुरू हो गया. सुब्रमण्यम स्वामी का कहना है कि वर्ष 2016 में राम मंदिर बनेगा. यह फैसला संघ प्रमुख के उस बयान के बाद सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा, मैं अपने जीवनकाल में राम मंदिर बनते हुए देखना चाहता हूं या मेरे जीवनकाल में राम मंदिर बन जाएगा. इन सारे सवालों के ऊपर सरकार ने अब तक कोई स़फाई नहीं दी है. एक भ्रम फैल गया है कि सरकार चाहती है कि राम मंदिर बने. लेकिन, अगर सरकार चाहती है कि राम मंदिर बने, तो उसे यह बात स्पष्ट रूप से कहनी चाहिए और यह भी सा़फ करना चाहिए कि अब देश में संविधान का नहीं, आस्था का राज्य है. संविधान की व्याख्या के हिसाब से किसी भी विवादित विषय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ़िखरी होता है, सरकार का नहीं. या तो संसद दो तिहाई बहुमत से क़ानून बदल दे या फिर सुप्रीम कोर्ट ़फैसला दे. न संसद ने क़ानून बदला है, संविधान संशोधन भी नहीं किया है और न सुप्रीम कोर्ट ने कोई ़फैसला दिया है. बाबरी मस्जिद-राम मंदिर की सत्यता का मुक़दमा सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. होना तो यह चाहिए था कि जो भी लोग जल्दी से जल्दी राम मंदिर बनाना चाहते हैं, वे सुप्रीम कोर्ट से यह आग्रह करते कि वह रा़ेजाना सुनवाई करके इस विषय के ऊपर अपना ़फैसला दे, ताकि देश में भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाए. लेकिन, ऐसा नहीं है. उसकी जगह घोषणा की जा रही है कि वर्ष 2016 में राम मंदिर बनेगा. क्या इसका मतलब हम यह मानें कि राम मंदिर बनाने वाली शक्तियों का सुप्रीम कोर्ट से पर्दे के पीछे कोई संवाद चल रहा है, जिसमें उन्हें यह इशारा मिला है कि सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2016 में आ़खिरी फैसला दे देगा और वह मंदिर के पक्ष में ़फैसला देगा, इसीलिए मंदिर बनाने की तैयारी हो रही है? सरकार भी इसके ऊपर अपना कोई बयान नहीं दे रही है और उसने एक रहस्य का वातावरण बना रखा है. या फिर संविधान और सुप्रीम कोर्ट को दरकिनार कर मंदिर बनाने की शुरुआत करने की कोई योजना उन संगठनों ने बना ली है, जो बाबरी मस्जिद ध्वंस के लिए ज़िम्मेदार हैं? जिस दिन बाबरी मस्जिद ढही, उस दिन हिंदुस्तान का सोशल फैब्रिक यानी सामाजिक ताना-बाना यानी भाईचारे का ताना-बाना दरक गया. उन लोगों के मन में यह सवाल उठा, जो संविधान में आस्था रखते हैं कि क्या हम संख्या बल के आधार पर शासन करेंगे? हमारा शासन चलेगा या फिर संविधान सम्मत शासन चलेगा? मुझे याद है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट में हल़फनामा दिया था कि सरकार बाबरी मस्जिद की रक्षा करेगी, लेकिन राज्य सरकार ने बाबरी मस्जिद की रक्षा के लिए अपने दिए गए शपथ-पत्र के अनुसार एक भी क़दम नहीं उठाया. केंद्रीय स्तर पर भी इस बाबत कोई कोशिश नहीं हुई. प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव सोते रह गए. भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने दसियों बार फोन किया, लेकिन प्रधानमंत्री निवास से एक ही जवाब मिलता रहा कि नरसिम्हाराव आराम कर रहे हैं. और, बाबरी मस्जिद ढहा दी गई. सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दिए गए हल़फनामे और सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का कोई मतलब नहीं निकला, जिसमें कहा गया था कि वहां यथास्थिति बनाए रखी जाए. मुझे एक और घटना याद है. वीपी सिंह की सरकार थी. अटल बिहारी वाजपेयी उनसे मिलने गए. अटल जी ने कहा, आप पांच ईंटें ले जाने की इजाजत दे दीजिए, हम कोई आंदोलन नहीं करेंगे. वीपी सिंह ने कहा, अटल जी, प्रधानमंत्री का पद संविधान की रक्षा करने के लिए है. अगर मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिला़फ जाता हूं और उसके आदेश की रक्षा नहीं कर पाता हूं, तो मेरा प्रधानमंत्री बने रहना बेकार है. आप जब प्रधानमंत्री बनेंगे, तब भी आप इस कुर्सी पर बैठकर राम मंदिर बनाने के लिए पांच ईंटें वहां नहीं ले जा पाएंगे और न इसका आदेश दे पाएंगे, यह कुर्सी ही ऐसी है. अटल बिहारी वाजपेयी यह सुनकर उठकर चले आए. वर्षों बाद अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. वीपी सिंह ने उन्हें फोन किया और कहा, वाजपेयी जी, अब आप प्रधानमंत्री हैं, राम मंदिर बनाने के लिए आप पांच ईंटें भिजवा सकते हैं. सरकार आपके हाथ में है. मैंने आपसे कहा था, आप यह नहीं कर पाएंगे. उधर से अटल जी ने जो भी कहा हो, लेकिन मेरा मानना है कि अटल जी यह बात सुनकर खामोश हो गए होंगे, क्योंकि संपूर्ण छह वर्षों के कार्यकाल, जिसमें अटल जी ने एक अच्छे प्रधानमंत्री की छाप इस देश के ऊपर छोड़ी, के दौरान वह राम जन्मभूमि के मसले पर विश्व हिंदू परिषद की किसी भी बात के ऊपर सहमत नहीं हुए और न उन्होंने इसकी अनुमति दी. वर्षों के बाद फिर राम जन्मभूमि का सवाल देश में चारों तऱफ उछाल दिया गया है. विपक्ष इसके खिला़फ है, सत्ता पक्ष इसके पक्ष में बोल रहा है और मजे की चीज यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकास का एजेंडा कहीं लड़खड़ा गया है. क्या ये सारे सवाल विकास का एजेंडा सही ढंग से लागू न कर पाने की वजह से उठाए जा रहे हैं, लोगों को उलझाने के लिए उठाए जा रहे हैं? राम मंदिर या बाबरी मस्जिद अवश्य बने, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद. विकास का एजेंडा तो चले. कहां है विकास का एजेंडा? लोगों की थालियों में रोटियां नहीं बढ़ रही हैं, रोज़गार नहीं बढ़ रहे हैं. जो-जो वादे हुए थे, वे ज़मीन पर तो कहीं पूरे होते दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. हां, सरकारी आंकड़ों एवं सरकार की पुस्तिकाओं के ज़रिये यह कहा जा रहा है कि हमने वादे पूरे करने शुरू कर दिए हैं. मैं पूछता हूं कि कहां वादे पूरे हो रहे हैं? इस देश की आबादी में सत्तर प्रतिशत हिस्सेदारी किसानों की है. किसान तो और भूखा हुआ है, और नंगा हुआ है, और कर्जदार हुआ है. प्रमाण सामने है, किसानों की आत्महत्याएं रोके नहीं रुक रही हैं. खेतों में फसल इसलिए नहीं हो रही है, क्योंकि किसान को फसल की सही क़ीमत नहीं मिल रही. और, इसके बाद भी अगर उद्देश्य लोगों का दिमाग़ भटकाने का हो, तो आप भटका सकते हैं. यह सरकार या भारतीय जनता पार्टी के हाथ में है. लेकिन, यह देश की शांति के साथ खेलने जैसा होगा. आज देश का कोई भी शख्स दंगे नहीं चाहता. विकास के लिए दिमाग़ में भी शांति चाहिए और धरती पर भी शांति चाहिए. अगर शांति नहीं होगी, तो विकास नहीं होगा. शांति नहीं होगी, तो योजना नहीं बनेगी. जब उन विषयों के ऊपर सत्ता पक्ष बोलने लगे, जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने पाबंदी लगा रखी है, तब कहीं न कहीं मन में सवाल उठता है कि ऐसा तो नहीं है कि आज की व्यवस्था यानी आज की संसद और आज के सुप्रीम कोर्ट की मंशा प्रधानमंत्री आधारित संपूर्ण राज्य व्यवस्था बदलने के लिए कोई अभियान चलाने की है? मेरा मानना है कि भारत का संविधान बहुत खूबसूरत संविधान है, इसे बदलने-तोड़ने और लोकतंत्र में प्रधानमंत्री केंद्रित व्यवस्था बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. ऐसे सवाल नहीं उठाने चाहिए, जिनका वास्ता देश की शांति, समृद्धि, योजना और सपने से हो. इस देश में प्यार-मोहब्बत कैसे बढ़े, इसकी योजना बनती नहीं दिखाई देती. सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द स्थिति को सा़फ करे. सर्वे से घबरा कर बनी रणनीति? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सर्वे रिपोर्ट उत्तर प्रदेश में भाजपा की कमज़ोर स्थिति को रेखांकित कर रही है. इसलिए संघ-शक्ति कोई चमत्कारिक रणनीति अख्तियार करने की पक्षधर है. संघ ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी दी है. संघ ने उत्तर प्रदेश में मजबूत नेतृत्व और मजबूत टीम की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. संघ ने किसी ताकतवर केंद्रीय नेता को उत्तर प्रदेश की मुहिम में लगाने की सिफारिश की है. संघ ने यह सर्वेक्षण अपने वरिष्ठ प्रचारकों और महाराष्ट्र, गुजरात एवं दिल्ली की सर्वे एजेंसियों की सहायता से कराया. उसी रिपोर्ट के आधार पर भाजपा उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार कर रही है. इससे यह भी पुख्ता हो रहा है कि राम मंदिर निर्माण को लेकर बढ़ी सक्रियता उक्त सर्वे के बाद बन रही रणनीति का हिस्सा है. हालांकि, इस सवाल पर भाजपा के नेता फिलहाल मौन हैं. व्यापक सहमति या भागवत का सपना! नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को उम्मीद थी कि संविधान के अनुच्छेद-370, समान नागरिक संहिता और राम मंदिर जैसे मौलिक मुद्दे सुलझ जाएंगे, लेकिन मोदी ने इन मुद्दों को छोड़कर विकास का मुद्दा अपनाया. उन्होंने संघ के खिला़फ जाकर जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन किया. अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए संघ ने कई बार मोदी से बात की, लेकिन वह चुप रहे. बीते सितंबर माह में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सरकार की समन्वय समिति की बैठक में शामिल हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अलग से बात की. ऐसा सुना जाता है कि मोदी ने भागवत से स्पष्ट कहा कि सरकार विकास पर ध्यान देना चाहती है, राम मंदिर उसकी प्राथमिकता में नहीं है. फिर राम मंदिर का मुद्दा अक्टूबर के आ़िखर में रांची (झारखंड) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में उठा. संघ ने उत्तर प्रदेश में मंदिर निर्माण आंदोलन को तेज करने के लिए विश्व हिंदू परिषद के नेताओं से बात की. विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के निधन के बाद 23 नवंबर को आयोजित शोकसभा में संघ प्रमुख मोहन भागवत शामिल हुए और वहां उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण ही सिंघल को असली श्रद्धांजलि होगी. भागवत बाद में यह भी बोले, मुझे उम्मीद है कि मंदिर का निर्माण मेरे जीवनकाल में हो जाएगा. राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास, अयोध्या के अध्यक्ष जन्मेजय शरण दास कहते हैं कि एक व्यापक आम सहमति बनकर उभरी है कि राम मंदिर का निर्माण शुरू हो. मंदिर निर्माण मसले पर हुई बैठक में 17 संगठनों ने हिस्सा लिया था. - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2016/01/no-temple-mosque-should-employ.html#sthash.X9e5xug4.dpuf

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