Wednesday, March 7, 2018

भीड़ की घटनाओं से आहत एक नागरिक का देश की जनता के नाम खुला पत्र

सेवा में, 
भारत की जनता 
विषयः- देश भर में भीड़ की आड़ में हत्याओं के विरूद्ध एकजुट हो। 
प्रिय देशवासियों, 
मैं खुला पत्र प्रधान मंत्री के नाम लिखना चाहता था कि देश में बढ़ रही नफरती हिंसा के भेड़ियों पर व त्वरित कार्यवाही करें लेकिन प्यारे देशवासियों आपके नाम लिख रहा हूँ मैं प्रधान मंत्री को लिखना चाहता था कि भीड़ की आड में या भीड़ बनकर जो लोग देश भर में अल्पसंख्यकों की हत्या कर रहे हैं। कहीं बीफ के शक में कहीं गोवंश का व्यापार करते हुए, इतना ही नहीं ट्रेन में कहीं भी अल्पसंख्यकों को दलितों को पीट पीटकर मार दे रहे हैं। और मोदी जी जो देश के प्रधान मंत्री हैं सिर्फ इतना बोलते हैं कि गोरक्षा के नाम पर किसी इंसान की जान लेने का हक नहीं है उन्होंने तीन सवाल जनता के समक्ष उठाये हैं जिनके जवाब पिछले तीन वर्षों से हम और आप सब स्वयं जानना चाहते होंगे कि नफरत क्यों बढ़ी है। उन्होंने कहा कि मरीज के न बचने पर डाक्टर से मार पीट अस्पताल में तोड़ फोड़ हो रही है इससे उन्हें पीड़ा होती है, दो वाहन टकरा जाने पर मौत हो जाये तो वाहन जला देते हैं इससे उन्हें पीड़ा होती है। गोरक्षा के नाम पर हमें किसी इंसान को मारने का हक मिल जाता है क्या? क्या यह गो भक्ति है? क्या यह गोरक्षा है? यह गांधी जी, विनोबा जी का रास्ता नहीं हो सकता अहिंसा हम लोगों का जीवन धर्म रहा है हम कैसे आपा खो रहे हैं उपरोक्त शब्द किसी संत के नहीं देश के प्रधानमंत्री के हैं जिसके हाथ में पूरी कार्यपालिका की शक्ति है। साल भर पहले भी उन्होंने कहा था कि कुछ लोग गोरक्षा के नाम पर देश का सामाजिक ताना बना तहश नहश करना चाहते हैं लेकिन देश का सामाजिक ताना बाना तहश नहश करने वालों के खिलाफ और भीड़ की आड़ में नफरती साम्प्रदायिक हिंसक गिरोहों के खिलाफ त्वरित कार्यवाही करने के निर्देश सक्षम प्रशासन और गृह मंत्री को नहीं देते। इतना ही नहीं गृह मंत्री तो महीनों से इस मामले पर चुप्पी मारे बैठे हैं। प्रधान मंत्री श्री मोदी जी ने नफरती हिंसा के खात्मे के लिये कठोर कार्यवाही तो दूर चेतावनी भी नहीं दे सके है। चूंकि उन्होंने नफरती हिंसा से निपटने के लिये गेंद आप सबके पाले में डाल दी है इसलिये अब हम आप सबकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि देश में फैलायी गयी साम्प्रदायिक नफरती हिंसा का प्रतिवाद करें विरोध करें, जहां कहीं नफरती हिंसा के लक्षण दिखे उसका प्रतिरोध दुर्घटना होने से पहले करें, क्योंकि हम सब जब इकट्ठे होते हैं तो एक भीड़ होते हैं और हमारा मानना है कि भीड़ कभी न तो हिंसक होती है और न हत्यारी होती है। 
भीड़ हत्यारी होती तो देश में मेले न लगते 
भीड़ हत्यारी होती तो मदारी खेल न दिखाते 
भीड़ हत्यारी होती तो बाजारे न लगती 
भीड़ हत्यारी होती तो स्टेशन बस अड्डे बन्द हो जाते 
भीड़ हत्यारी होती तो शादी बारात में लोग इकट्ठे न होते 
भीड़ हत्यारी होती तो आप स्कूल, अस्पताल न जाते 
भीड़ हत्यारी नहीं होती न ही देश हत्यारा होता है 
हत्यारी होती है नफरत 
हत्यारा है साम्प्रदायिक नफरती प्रचार 
हत्यारा है नफरत का विचार 
इसलिए भीड़ में खड़ा होकर यदि कोई भेड़िया कहे 
मारो इसको मारो उसको 
तो उसके उकसाने पर मत मारना किसी को 
उठाना मशाल उस भेड़िये के खिलाफ 
जो हिंसा के लिये लेता है तुम्हारी ओट। 
आपका 
मुश्ताक अली 
अन्सारी अध्यक्ष सदभावना युवा जन ग्रामीण विकास संस्थान 
लखीमपुर-खीरी

Kumar का खुला पत्र

यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि मेरी 
भक्ति करो । मुझे हीरो की तरह पूजो । वो साफ साफ कहते कि भक्ति से आत्मा की मुक्ति हो सकती है मगर राजनीति में भक्ति से तानाशाही पैदा होती है और राजनीति का पतन होता है । बाबा साहब कभी व्यक्तिपूजा का समर्थन नहीं करते । ये और बात है कि उनकी भी व्यक्तिपूजा और नायक वंदना होने लगी है ।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि धर्म या धर्म ग्रंथ की सत्ता राज्य या राजनीति पर थोपी जाए । उन्होंने तो कहा था कि ग्रंथों की सत्ता समाप्त होगी तभी आधुनिक भारत का निर्माण हो सकेगा ।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि तार्किकता पर भावुकता हावी हो । वे बुद्धिजीवी वर्ग से भी उम्मीद करते थे कि भावुकता और ख़ुमारी से परे होकर समाज को दिशा दें क्योंकि समाज को बुद्धिजीवियों के छोटे से समूह से ही मिलती है ।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि देश छोड़ कर मत जाओ । जरूर कहते कि नए अवसरों की तलाश ही एक नागरिक का आर्थिक कर्तव्य है । इसलिए कोलंबिया जाओ और कैलिफ़ोर्निया जाओ ।उन्होंने कहा भी है कि इतिहास गवाह है कि जब भी नैतिकता और आर्थिकता में टकराव होती है, आर्थिकता जीत जाती है । जो देश छोड़ कर एन आर आई राष्ट्रवादी बने घूम रहे हैं वो इसके सबसे बडे प्रमाण हैं । उन्होंने देश के प्रति कोरी नैतिकता और भावुकता का त्याग कर पलायन किया और अपना भला किया ।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि पत्नी को परिवार संभालना चाहिए । क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए । बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि पति पत्नी के बीच एक दोस्त के जैसा संबंध होना चाहिए ।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए । भारत हिन्दुओं का है । जो हिन्दू हित की बात करेगा वही देश पर राज करेगा । वे जरूर ऐसे नारों के ख़िलाफ़ बोलते । खुलकर बोलते ।

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यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि किस विरोधी का बहिष्कार करो । जैसा कि कुछ अज्ञानी उत्साही जमात ने आमिर खान के संदर्भ में उनकी फ़िल्मों और स्नैपडील के बहिष्कार का एलान कर किया है । डाक्टर आंबेडकर आँख मिलाकर बोल देते कि यही छुआछूत है । यही बहुसंख्यक होने का अहंकार या बहुसंख्यक बनने का स्वभाव है ।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो जैसे ही यह कहते कि धर्म और धर्मग्रंथों की सर्वोच्चता समाप्त होनी चाहिए । हिन्दुत्व में किसी का व्यक्तिगत विकास हो ही नहीं सकता । इसमें समानता की संभावना ही नहीं है । बाबा साहब ने हिंदुत्व का इस्तमाल नहीं किया है । अंग्रेजी के हिन्दुइज्म का किया है । उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर नहीं लिखा तो हिन्दुत्व भी नहीं लिखा । बाबा साहब ने हिन्दू धर्म का त्याग कर दिया लेकिन समाज में कभी धर्म की भूमिका को नकारा नहीं । आश्चर्य है कि संसद में उनकी इतनी चर्चा हुई मगर धर्म को लेकर उनके विचारों पर कुछ नहीं कहा गया । शायद वक़्ता डर गए होंगे ।
गृहमंत्री जी, आप भी जानते हैं कि आज बाबा साहब आंबेडकर होते और हिन्दू धर्म की खुली आलोचना करते तो उनके साथ क्या होता । लोग लाठी लेकर उनके घर पर हमला कर देते । ट्वीटर पर उन्हें सिकुलर कहा जाता । नेता कहते कि डाक्टर आंबेडकर को आस्था का ख़्याल करना चाहिए था । ट्वीटर पर हैशटैग चलता avoid Ambedkar । बाबा साहब तो देश छोड़ कर नहीं जाते मगर उन्हें पाकिस्तान भेजने वाले बहुत आ जाते । आप भी जानते हैं वो कौन लोग हैं जो पाकिस्तान भेजने की ट्रैवल एजेंसी चलाते हैं ! न्यूज चैनलों पर एंकर उन्हें देशद्रोही बता रहे होते ।
क्या यह अच्छा नहीं है कि आज बाबा साहब भीमराव आंबेडकर नहीं हैं । उनके नहीं होने से ही तो किसी भी आस्था की औकात संविधान से ज्यादा की हो जाती है । किसी भी धर्म से जुड़ा संगठन धर्म के आधार पर देशभक्ति का प्रमाण पत्र बाँटने लगते हैं । व्यक्तिपूजा हो रही है । भीड़ देखकर प्रशासन संविधान भूल जाता है और धर्म और जाति की आलोचना पर कोई किसी को गोली मार देता है ।
पर आपके बयान से एक नई संभावना पैदा हुई है । बाबा आदम के ज़माने से निबंध लेखन का एक सनातन विषय रहा है । यदि मैं प्रधानमंत्री होता । आपके भाषण से ही आइडिया आया कि छात्रों से नए निबंध लिखने को कहा जाए । यदि मैं डाक्टर आंबेडकर होता या यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते ।
आशा है कि आप मेरे पत्र को पढ़कर आंबेडकर भाव से स्वागत करेंगे । मुस्कुरायेंगे। आंबेडकर भाव वो भाव है जो भावुकता की जगह तार्किकता को प्रमुख मानता है ।
आपका
रवीश कुमार
(एनडीटीवी से जुड़े चर्चित पत्रकार Ravish Kumar के ब्लॉग से साभार)
http://www.indiatrendingnow.com/speak-out/an-open-letter-to-rajnath-singh-from-ravish-kumar-1115/2/

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