Thursday, December 5, 2013

कैसे पा सकते हैं मनोवाछिंत औलाद

औलाद को प्राप्त करने की ईच्छा तो हर माँ-बाप को होती है और औलाद पाने के बाद उसे पूर्ण सुख की आशा भी माँ-बाप ही करते हैं। पर कुछ इस सुख से वंचित भी रह जाते हैं या औलाद का सुख न मिलने पर ईश्वर की मर्जी समझ कर अपने मन को दिलासा दे देते हैं कि हमारे कर्मों में यह सुख नही है। पर यह गल्त है। ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रख कर कार्य को पूर्ण करने का अधिकार ईश्वर ने हर प्राणी को दिया है। बस बात कुछ समझने या सूझ-बूझ की है। ईश्वर ने अपने हाथों को इस कदर फैला रखा है कि उनसे कोई भी कुछ भी मांगे वो देने को तैयार हैं। लेकिन उनके भी कुछ नियम व उसूल हैं। जैसे एक राजा के राज्य में रह कर राजा के प्रति वैर रख कर जीना मुश्किल हो जाता है। उसी प्रकार ईश्वर के जगत में रह कर उनके नियमों की उलंघना मुश्किलें पैदा कर देती है। ईश्वर ने तो मनुष्य को एक ही बात कही है, कि जो मर्जी मागों प्यार से सारा कुछ ले लो। जब ईश्वर आदमी व औरत को दाम्पत्य सुख का आनन्द दे सकता है तो संतान सुख से वंचित क्यों रखेगा। वैसे भी समझने की बात है कि अगर बाँस है तो बाँसुरी बनेगी और बाँस ही नहीं तो बाँसुरी कहाँ से बनेगी। उसी प्रकार अगर ईश्वर ने दाम्पत्य सुख में बाधा है तो संतान उत्पति भी अवश्य होगी। परन्तु बात आती है नियमों पर जैसे कि आदमी व औरत को इस कार्य सम्बन्धी पहले से पूर्ण तैयार होना चाहिए। उसके नियमों की पालना करके कार्य करने चाहिए। सन्तान उत्पति का ग्रहों से होता है। ग्रहों का सम्बन्ध शरीर से होता है। उसी प्रकार ग्रहों का सम्बन्ध देवी-देवताओं से होता है। इस लिये मनुष्य का इस सबसे गहरा नाता होता है। पति-पत्नी चाहे तो औलाद पैदा करना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। लेकिन कुछ कार्यों में मुश्किलों का सामना तो करना ही पड़ सकता है। अगर जिन्दगी में मुश्किलें ही न हो तो कामयाबी महसूस ही नहीं होती। जैसे खाना पकाने के लिये गैस की जरूरत होती है अगर गैस खत्म हो जाये तो मुश्किल पैदा हो जाती है। मुश्किल को कम करने के लिये कोशिश करते हैं और मिल जाने पर पूर्ण रूप से निश्चिंत होकर अपने कार्य में लग जाते हैं। मुश्किल न होती तो शायद कामयाबी न होती। उसी प्रकार इस कार्य में भी मुश्किलों से गुजरते हुए इन्सान कामयाबी हासिल कर लेता है। औलाद पाने के लिये इन्सान को सबसे पहले ईश्वर की भक्ति करना जरूरी है। उसके बाद अपने शरीर को स्वस्थ व आत्मा को स्वच्छ रखना चाहिए। अपने ग्रहों के अनुसार दिनों को अनुकूल करके अपने भाग्य को बदल सकते हैं। अपने कार्य को अंजाम दे सकते हैं।शायद आगे आप इन बातों पर खास ध्यान देगें। स्वर यानि सांस के द्वारा भी आदमी व औरत संतान प्राप्त कर सकते हैं। स्वर बदलने के लिये नियम दोनों को भली प्रकार से आने चाहिये। यह क्रिया 5 से 10 मिन्ट में ही हो जाती है। इस की जानकारी के लिये आदमी व औरत को अपनी नाक के दोनों छिद्रों को अलग-2 बंद करके सांस खीचना चाहिए। जिस छिद्र में सांस आसानी से खिंची जाए उस तरफ का उस समय का स्वर चल रहा है। यह जानें। जैसे कि नाक के बाएं छिद्र को अंगुली से बंद करके सांस खीचे अगर सांस आसानी से खींची जाये तो समझे कि दायें तरफ का स्वर चल रहा है। उसी प्रकार दूसरी तरफ भी जाँच लें। अगर आप स्वर बदलना चाहते हैं तो दायीं तरफ का स्वर चलाने के लिये बायीं तरफ करवट बदल कर लेट जायें और बायीं तरफ का स्वर चलाने के लिये दायीं तरफ लेट जायें। बस 5 से 10 मिन्ट में स्वर बदल जायेगा। 10-15 बार अभ्यास करने से आप इसके बारे में पूर्ण रूप से जान लेगें। दम्पति कन्या की प्राप्ति चाहते हैं तो औरत के रजस्राव से पांचवी, सातवीं, नोवीं, ग्यारहवीं, तेरहवीं, पद्रहवीं इनमें से कोई भी रात्री को पुरूष दायां स्वर स्त्री बायां स्वर चलाकर संभोग करें। संभोग करने का नियम कुछ इस प्रकार से है कि यह कार्य करते समय निरन्तर 20 मिन्ट के समय के अंदर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिये। रात्रि 12 बजे से पहले अपने स्वर बदल कर 12 से 12.20 तक संभोग कर कार्य सम्पन्न करे। इस कार्य का पूर्ण अभ्यास करने के लिये पहले गर्भ निरोधक उपक्रमों का इस्तेमाल न कर कार्य करें सफलता आपका साथ देगी। जिस दिन यह कार्य करना हो उस दिन केवल दोनों ही खीर का सेवन करें। पुरूष खीर में गाय का घी डालकर सेवन करें। स्त्री बिना घी के खीर खायें। उस दिन सिर्फ खीर का सेवन करते रहे और कुछ भी न खावे। स्त्री गर्भ या कुछ समय तक सन्तान नहीं चाहती हो तो वो पुदीने को छाया में सुखाकर पीस लें। उसमें से 10 ग्राम पाऊडर पुदीने का संभोग से आधा घण्टा जल से सेवन कर लें तो उस दिन गर्भ नहीं होगा। यह तब तक करती रहे जब तक संन्तान की इच्छा न हो या नित्य प्रति सुबह एक साबुत लोंग जल के साथ निगल लें गर्भधान का भय नहीं रहता। ऋतुकाल में प्रयोग बन्द रखें और रूके हुए मासिक धर्म को खोलने के लिए कच्चे अनन्नास का सेवन लाभदायक है। उल्टे मुँह लेट कर संभोग करें व संभोग के तुरन्त बाद स्त्री अपने मुत्र का त्याग कर दें तो भी गर्भ नहीं रहता। यदि पुरूष के वीर्य में शुक्राणु पूरे हों फिर भी स्त्री के गर्भ न ठहरे तो गर्भाश्य का निरीक्षण जरूरी है या फिर वाराहीकंद, पीपल की दाढ़ी, बड की दाढ़ी और मुलठी इन सब को समभाग(बराबर) मिलाकर रख ले 12 ग्राम घी देसी व 12 ग्राम यह चुर्ण मिलाकर दिन में तीन बार बछडे वाली गाय के गर्म दूध के साथ ले तो संतान उत्पति आसानी से हो जाती है। जिस औरत के गर्भ न रहता हो तो मंगल या रविवार वाले दिन भिंडी की जड़ को पानी के साथ पीस कर सेवन करें पाँच छः हफ्तों में लगातार करने पर बन्ध्या या स्त्री भी गर्भवती हो जाती है। संतान की इच्छुक औरत को दूध के साथ केले का सेवन भी लाभदायक है। यदि स्त्री गर्भ धारण के बाद नों महीने तक लगातार 10 ग्राम कच्चा नारियल मिश्री के साथ सेवन करती रहे तो गोरी व सुन्दर सन्तान प्राप्त कर सकती है। छाया में सुखायी हुई देसी बबूल की पत्तियों का 2 ग्राम चूर्ण सुबह-2 जल से लेने पर रोजाना गोरी व सुन्दर सन्तान प्राप्त कर सकती है। अकसर यह भी देखने में आता है कि स्त्री पुरूष को गर्भ रहने के बाद ये चिन्ता सताने लगती है कि गर्भ में लडका है या लडकी इसके लिये यदि लडका है तो दूसरे महीने में गर्भ गोल पिंड की तरह महसूस होता है। स्त्री की दायीं आंख बडी मालूम होती है और पहले दायें स्तन में दूध आता है। दायीं जांघ कुछ मोटी सी लगती है। मुख प्रसन्न रहता है। पुरूष नाम वाचक पदार्थ खाने की इच्छा होने लगती है। चलते समय दायां पैर का पहले इस्तेमाल करती है। उसी प्रकार हर कार्य के लिये अधिकतर दायां हाथ का इस्तेमाल करती है। यदि कन्या हो तो दूसरे महीने में गर्भ का मास पिण्ड लंबाकार महसूस होता है। प्रत्येक कार्य बायें हाथ से करती है मुख मंडल फीका सा लगता है। अधिक नींद आती है। कोयला खाने को जी चाहता है व डरावने सपने व मन में भय रहने लग जाता है। कुछ और भी टोटके हैं जिनके जरिये आप जान सकते हैं कि लड़का या लड़की। (1) भिंडी के पौधे को जड़ समेत उखाड़ लाओ। जड़ उखाड़ने में यदि कुछ टूट जाये तो लकडी साबुत खींच जाये तो लड़का जानें। (2) दो मिट्टी के बर्तन लें। उसमें उपजाऊ मिट्टी डालकर एक में गेंहू के व दूसरे में जौं के दाने डालें। फिर औरत रोज सुबह का अपना मुत्र उनमें बराबर भाग कर डालें ऐसा दो तीन दिन करें। अगर गेंहु के दाने फुटे तो लड़का यदि जौं के दाने फूटें तो लडकी होगी। (3) यदि गर्भ रहने से तीसरे महीने यानि दो महीने पूरे होने के बाद स्त्री कच्चे नारियल में से निकला फूल अगर पूरा साबुत निगल लें तो यह नाल परिवर्तन का सुलभ उपाय है इससे पुत्र की प्राप्ती होती है। (4) रविवार के दिन दूसरा महीना पूरा होने के तुरन्त बाद जो रविवार आये उस दिन स्त्री एक पोथिया लसहून की गांठ (छोटी सी) को गुड़ में लपेट कर सुबह सूर्य की ओर पीठ कर के जल के साथ निगल लें व सूर्य देव से पुत्र की कामना करे पुत्र प्राप्त होगा। और भी काफी ढंग अक्सर मिल जाते हैं जिनसे यह सब जाना जा सकता है या उपाय किये जा सकते हैं। पुत्र की कामना करने वाले दम्पति अगर अपने हाथों की र्तजनी अंगुलियों में पुखराज या सुनेहला सोने की धातु में बृहस्पतिवार के दिन धारण कर के गर्भ धारण करे तो पुत्र की प्राप्ति होती है। किसी कारण पुरूष में संतान पैदा करने की शक्ति या शुक्राणुओं में कमी हो तो पहले जांच अवश्य करवा लें। साधारणतः एक सी.सी. वीर्य में लगभग बारह करोड़ शुक्राणु होते हैं और एक बार के वीर्य पात में लगभग 3.5 सी.सी. वीर्य बाहर निकलता है। इस प्रकार एक बार के निकले वीर्य में कुल 20 से 40 करोड़ के लगभग शुक्राणु पाये जाते हैं और कई बार तो इससे भी अधिक यदि इनकी संख्या में कमी होती है तो ही पुरूष सन्तान पैदा करने में असमर्थ होता है। विटामिन ‘ए’ और ‘ई’ में व देसी मुर्गी के अण्डों के सेवन से पुरूष में शुक्राणुओं की अधिकता आती है या फिर दुध और पपीते का सेवन करे पुरूष अगर अपने अण्ड़े कोषों को हफ्ते दो-तीन बार ठण्डे पानी से साफ करता रहे। कुछ देर तक और ठण्डा पानी बर्दाशत करने योग्य हो तो दो-तीन महीनों में ऐसा कार्य करने पर वीर्य में शुक्राणुओं की मात्रा बढ़ने लग जाती है और सन्तान पैदा करने की क्षमता बनती है। कोई पुरूष अगर बिना निरोध उपक्रमों का इस्तेमाल कर फैमली पलैनिंग करना चाहे तो प्रत्येक शुक्रवार के दिन नहाने के दौरान आधा घण्टा अपने अण्डकोश को अपने शरीर सह सकने के मुताबिक पानी गर्म कर उन्हें साफ करने से एक सप्ताह तक शुक्राणु मृत हो जाते हैं व आसानी से बिना चिन्ता के वो संभोग कर सकता है। इस कार्य को करने से औरत के गर्भ नहीं रहता। कम शुक्राणु होने या सन्तान पैदा न करने की शक्ति जिस पुरूष में हो वो प्रतिदिन सुबह-सुबह स्नान करके लाल वस्त्र पहन कर सूर्य देव को अघ्र्य दें और लाल रंग या लाल कनेर के फूल सुर्य देव को चढ़ावे व साथ में ऊँ हृीं,हृीं सुर्य देवाय नमः मंत्र का जप करके पुत्र प्राप्ति के लिये प्रार्थना करंे। रविवार के दिन व्रत रखकर नमकीन भोजन व दूध का सेवन न कर मिठी चीज ग्रहण करें। दिन में सिर्फ एक बार शाम के समय रोजाना सन्तान गोपाल स्त्रोत का पाठ भी कर सकते हैं ये न हो तो माँ पार्वती के 16000 मंत्रों का पाठ करें। नीचे लिखे मंत्र का जप करोः- ‘‘ऊँ सर्व मंगल मांगले, शिवे सर्वाधक साधिके शर्णे तिृयम्बके गौरी नारायणी नमः स्तुते ऊँ ’’ अगर पुरूष व स्त्री इन दोनों में से संभोग करते समय किसी में सन्तानोत्पति की इच्छा प्रबल होगी उसी के अनुसार गर्भ में लिंग की स्थापना होगी। यदि पुरूष की इच्छा स्त्री से अधिक हो तो लड़का स्त्री की इच्छा पुरूष से अधिक हो तो कन्या का जन्म होता है। यह स्थिति औरत के रजःस्राव बन्द होने के उपरान्त 8 से 12 दिन का समय गर्भ धारण का माना गया है। प्रायः सभी दम्पति यही चाहते हैं कि उनके यहाँ उत्पन्न होने वाली सन्तान रंग-रूप-स्वभाव-गुणकर्म व स्वस्थ और भी इन बातों में अच्छी हो तो शास्त्रों में उनके उत्पन्न होने से पहले गर्भ धारण के कुछ नियमों को अगर लागु कर यह क्रिया कर ली जाए तो कन्या ही सन्तान पैदा हो सकती है। जो की आपकी इच्छा के अनुरूप पुर्ण हो इस के लिये वो शुक्ल पक्ष में पुण्य दिवस से 12 दिन तक गूलर की लकडी के पात्र में गाय के दूध में यह दस जड़ी बूटियां शुद्ध करके डालें। जटामासी, आंवा हल्दी, हल्दी, शिलाजीत, नागरमोथा, मूर्वा, खस, बच, चन्दन, कूठ इन सबका चूर्ण कर दूध में मिलाकर, जमाकर इसका मक्खन बनने के बाद घी निकाल कर अपने पास रख लें। ये घी एक खास किस्म की औषधि है जो की गुलर की लकड़ी के पात्र में सन्तान को इच्छा अनुसार उत्पन्न करने के गुण हैं और इन जड़ी बूटियों में भी ये गुण पाये जाते हैं। अब अगर कोई दम्पति इच्छा करे कि मेरे यहाँ गोर वर्ण वाा एक वैद का ज्ञाता सौ वर्ष की आयु वाला पुत्र हो तो दूध चावल पकाकर यह घी डाल कर व उपरोक्त नियमों का पालन कर यह सेवन करे तो उसकी इच्छा पूर्ण होगी। यदि पीले केश व पीले नेत्र वाला द्विवेद पाठी पुत्र हो तो दही चावल पकाकर यह घी डाल कर खाये।कोई इच्छा करे कि मेरा पुत्र श्यामवर्ण लाल नेत्र वाला, तीन वेदों का जानकार एवमं शतायु हो तो चावल पकाकर यह घी डाल कर सेवन करे। कोई चाहे कि मेरी पुत्री पंडिता व सो साल की उम्र की हो तो दही चावल पकाकर यह घी डाल कर सेवन करे। पंडित व शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला, निर्भय स्वभावशाली वक्ता, वेद वेदांग का जानकर तथा शतायु पुत्र हो तो चावल व घी का सेवन कर उचित समय पर गर्भ धारण करें। यह घी स्त्री पुरूषों के रजवीर्य को गर्भाधान के योग्य बनाने वाला है और गर्भ सम्बन्धी अंगों एवं उनकी प्रक्रिया पर विशेष प्रभाव डालकर इच्छित संतान की उत्पति करने में सहायक है। इतना ही नहीं संभोग कार्य सम्पन्न करने के बाद दूध में यह घी डाल कर अगर दोनों ही पी लंे तो क्षीण बल की शीघ्र ही पूर्ति होती है व शरीर स्वस्थ रहता है व बुद्धि को बढ़ाने वाला होता है। इसके और भी बहुत से गुण हैं। यदि दम्पति इन सब बातों को ध्यान में रख कर अपनी इच्छा अनुसार सन्तान पैदा कर सकते हैं, साथ ही साथ ईश्वर की भक्ति भी जरूरी है। बिना उसके कुछ करना अपने आपको मुश्किलों में पडा महसूस करेंगंे। क्योंकि उसकी कृपा हो तो बंजर जमीन में भी जान पड़ जाती है व पौधे उगने लग जाते हैं।

Monday, December 2, 2013

फलीत में लग्न कुंडली में उच्च राशी के ग्रह का नीच नवांश में फल :-

१. यदी लग्न कुंडली में सूर्य उच्च राशी मेष में है , कीन्तू नवांश में नीच राशी तुला का होतो, ऐसे जातक पर फालतू का दोषा रोपण होगा , पत्नी , पुत्र तथा दोस्तों से अलगाव तथा करषी सम्पत्ती की हानी होती है .

२. उच्च का चंद्रमा नवमांश में नीच का नहीं होता है .

३. यदी उच्च का मंगल हो तथा नवमांश में नीच का होतो, जातक नौकरी या व्यवसाय प्रारम्भ तो करेगा , कीन्तू बीच में ही छोड़ना पड़ेगा .

४. यदी लग्न कुंडली बुध उच्च राशी में हो, तथा नवमांश में नीच राशी का होतो, जातक की बुध्धी भर्मीत होगी , वह व्यापार में सफल नहीं हो सकता है , तथा आर्थीक हानी हो सकती है .

५. यदी लग्न कुंडली में गुरु उच्च राशी में कीन्तू नवमांश में नीच राशी में होतो, ऐसे जातक को शत्रुओ , चोरों तथा सरकार से भय होगा , ऐसा गुरु अशुभ फल दायक होता है .

६. यदी लग्न कुंडली में शुक्र उच्च राशी में कीन्तू नवमांश में नीच राशी में हो तो, जातक को नौकरी में पदावनती या व्यवसाय में हानी होगी , धन हानी या कृषी में असफलता मीलेगी .

७. यदी लग्न कुंडली शनी उच्च राशी में , कीन्तू नवमांश में नीच राशी में होने पर प्रारम्भ में सुखी तथा अंत में दुखी होगा .

RTI ACTIVIST


'RTI Application under Section 7(1) on a matter affecting Life and Liberty' sought information.

Mr.Pooran Chandra vs Directorate Of Health And Family ... on 20 August, 2010
CENTRAL INFORMATION COMMISSION
Club Building, Opposite Ber Sarai Market,
Old JNU Campus, New Delhi - 110067.
Tel: +91-11-26161796
Decision No. CIC/SG/C/2009/001628/9090
Complaint No. CIC/SG/C/2009/001628
Complainant : Mr. Pooran Chand
S/o of Shri Narayan Chand,
D-44, West Vinod Nagar,
New Delhi-110092
Respondent : Dr. G. Kausalya
Public Information Officer & Chief Medical Officer
Directorate of Health Services
Govt. of NCT of Delhi,
F-17, Karkardooma, New Delhi.
RTI application filed on : 31/08/2009
PIO replied on : 16/09/2009
First Appeal filed on : 21/09/2009
Order of First Appellate Authority of : 09/11/2009
Complaint filed on : 02/12/2009
Complaint notice issued on : 02/12/2009
Notice of hearing : 16/07/2010
Date of hearing : 16/08/2010
The Complainant had with a subject 'RTI Application under Section 7(1) on a matter affecting Life and Liberty' sought information. He stated that he was a BPL card holder suffering from a serious disease,- compression of the spine,- which needed to be operated urgently. He went to the India Spinal Injury Center ("ISIC"), which is covered under a scheme whereby a person belonging to the EWS category is entitled to get freeship facility. However, ISIC gave the Complainant an estimate of Rs. 1.75 lakhs. Therefore he sought the following information from the Directorate of Health Services ("DHS" or the "public authority"):
http://www.indiankanoon.org/doc/1112724/

Wednesday, November 27, 2013

ग्रह----जड़ी

यदि मनुष्य परिस्थितिवश अमूल्य रत्न धारण न कर सकें तो ग्रहों से संबंधित जड़ी धारण करना भी फलकारक होता है। विधि-विधान से धारण की गई जड़ी भी रत्न के समान ही फलकारक होती है।

प्रत्येक ग्रह की जड़ी को रविवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिए। जड़ी एक दिन पूर्व शनिवार को सायंकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर उस वृक्ष का विधिवत पूजन करके कार्य सिद्धि के लिए उससे प्रार्थना करें व दूसरे दिन शुभ समय पर उसकी जड़ ले आए।

जड़ी को ग्रह के रंग के धागे में पिरोकर पुरुषों को दाहिनी भुजा में व स्त्रियों को बांयी भुजा में पहनना चाहिए।
ग्रह------- ----जड़ी
1. सूर्य विल्वमूल
2. चंद्र खिरनी मूल
3. मंगल अनंतमूल
4. बुध विधारा की जड़
5. शुक्र सिंहपुछ की जड़
6. शनि बिच्छोल की जड़
7. राहु चंदन की जड़
8. केतु अश्वगंध की जड़
9. गुरु भारंगी/केले की जड़

विशेष : वृक्ष या पौधा न मिलने पर पंसारी से जड़ खरीदकर पूजा आदि के बाद आस्था व विश्वास के साथ धारण करनी चाहिए। इष्ट देव व ग्रह स्वामी का ध्यान करके व ग्रह के मंत्र का जाप करके जड़ी धारण करने से कार्यसिद्धि अवश्य होती है।

Tuesday, November 19, 2013

अंक ज्योतिष विज्ञान के कार्य करने के तरीके

संसार में ज्योतिष की कई शाखाऎं (Branches Of Astrology) हैं, जिनमें से अंक ज्योतिष भी एक है. सामान्यतय ज्योतिष में ग्रहो का प्रभाव कार्य करता है. प्रत्येक ग्रह किसी न किसी नम्बर से जुडा हुआ है या हुम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि कोइ एक नम्बर किसी ग्रह विशेष का प्रतिनिधित्व करता है,
जैसे कि 1 नम्बर सूर्य (1 Number of Sun), 2 नम्बर चन्द्र (2 Number of Moon) तथा 9 नम्बर मंगल (9 Number Of Mars) या इत्यादि. नम्बर 1 से 9 तक ही लिए जाते हैं. 0 को इसमें सम्मिलित नही किया गया है. ग्रह भी 9 ही होते हैं, अतः प्रत्येक ग्रह का एक विशेष अंक है. पाश्चात्य अंक ज्योतिष (Numerology) सात ग्रहो के अलावा नैपच्यून व यूरेनस को क्रमशः आठवाँ व नौवा ग्रह मानता है. जबकि  भारतीय अंक ज्योतिष राहु-केतु को आठवें एंव नवें ग्रह के रुप में लेता है. भारतीय एंव पाश्चात्य अंक ज्योतिष के फलादेश (Jyotish Phaladesh) कथन में थोडा सा अन्तर रहता है.

    अब हम अंक ज्योतिष विज्ञान के कार्य करने के तरीके (Method Of Numerology) की विवेचना करेंगे. वैसे तो अंक ज्योतिष में बहुत सारी परिभाषाएँ सामने आती हैं, परन्तु हम इसमें मुख्य रुप से दो परिभाषाओ मूलांक (Root Number/ Ruling Number) तथा भाग्यांक (Fadic Number) की ही चर्चा करेंगे. किसी भी व्यक्ति की जन्म तारीख उसका मूल्यांक होता है. जैसे कि 2 जुलाई को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 2 होता है तथा 14 सितम्बर वाले का 1+4 = 5. तथा किसी भी व्यक्ति की सम्पूर्ण जन्म तारीख के योग को घटा कर एक अंक की संख्या को उस व्यक्ति विशेष का भाग्यांक( Bhagya Anka) कहते हैं, जैसे कि 2 जुलाई 1966 को जन्मे व्यक्ति का भाग्यांक 2+07+1+9+6+6= 31 = 3+1= 4, होगा. मूलांक तथा भाग्यांक स्थिर होते हैं, इनमें परिवर्तन सम्भव नही. क्योंकि किसी भी तरीके से व्यक्ति की जन्म तारीख बदली नही जा सकती.
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    व्यक्ति का एक और अंक होता है जिसे सौभाग्य अंक (Destiny Number/ Lucky Number) कहते हैं. यह नम्बर परिवर्तनशील है. व्यक्ति के नाम के अक्षरो के कुल योग से बनने वाले अंक को सौभाग्य अंक कहा जाता है, जैसे कि मान लो किसी व्यक्ति का नाम RAMAN है, तो उसका सौभाग्य अंक R=2, A=1, M=4, A=1, एंव N=5 = 2+1+4+1+5 =13 =1+3 =4 होगा. यदि किसी व्यक्ति का सौभाग्य अंक उसके अनुकूल नही है तो उसके नाम के अंको में घटा जोड करके सौभाग्य अंक (Saubhagya Anka) को परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे कि वह उस व्यक्ति के अनुकूल हो सके. सौभाग्य अंक का सीधा सम्बन्ध मूलांक से होता है. व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव मूलांक का होता है. चूंकि मूलांक स्थिर अंक होता है तो वह व्यक्ति के वास्तविक स्वभाव को दर्शाता है तथा मूलांक का तालमेल ही सौभाग्य अंक से बनाया जाता है.
    व्यक्ति के जीवन में उतार-चढाव का कारण सौभाग्य अंक होता है. उदाहरण के लिए मान लो कि हम किसी शहर में जाकर नौकरी/ व्यवसाय करना चाहते हैं, तो हमें उस शहर का शुभांक (Shubha Anka) मालूम करना होगा फिर उस शुभांक को स्वंय के सौभाग्य अंक से तुलना करेंगे. यदि दोनो अंको में बेहतर ताल-मेल है अर्थात दोनो अंक आपस में मित्र ग्रुप के है तो वह शहर आपके अनुकूल होगा, और यदि दोनो अंक एक दूसरे से शत्रुवत व्यवहार रखते हैं तो उस शहर में आपके कार्य की हानि होगी. अब हमारे सामने दो विकल्प हैं, एक तो हम उस शहर विशेष को ही त्याग दें तथा अन्य किसी शहर में चले जायें, यदि एसा करना सम्भव न हो तो दूसरे विकल्प के रुप में हम अपने नाम के अक्षरो में इस प्रकार परिवर्तन करें कि वो उस शहर विशेष से भली भांति तालमेल बैठा लें. यही सबसे सरल तरीका है.

    लाल किताब में सोये हुए घरों को जगाने के लिए कई उपाय

    लाल किताब का मानना है जो घर सोया (Lal Kitab Sleepy Planets) होता है उस घ्रर से सम्बन्धित फल तब तक प्राप्त नहीं होता है जबतक कि वह घर जागता नहीं है. लाल किताब में सोये हुए घरों को जगाने के लिए कई उपाय (Lal Kitab Remedies) बताए गये हैं.

    जिन लोगों की कुण्डली में प्रथम भाव सोया हुआ हो उन्हें इस घर को जगाने के लिए मंगल का उपाय करना चाहिए. मंगल का उपाय करने के लिए मंगलवार का व्रत करना चाहिए. मंगलवार के दिन हनुमान जी को लडुडुओं का प्रसाद चढ़ाकर बांटना चाहिए. मूंगा धारण करने से भी प्रथम भाव जागता है. 

    अगर दूसरा घर सोया हुआ हो तो चन्द्रमा का उपाय शुभ फल प्रदान करता है. चन्द्र के उपाय के लिए चांदी धारण करना चाहिए. माता की सेवा करनी चाहिए एवं उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है. 

    तीसरे घर को जगाने के लिए बुध का उपाय करना लाभ देता है. बुध के उपाय हेतु दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. बुधवार के दिन गाय को चारा देना चाहिए.

    लाल किताब के अनुसार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर चौथा घर सोया हुआ है तो चन्द्र का उपाय करना लाभदायी होता है. 

    पांचवें घर को जागृत करने के लिए सूर्य का उपाय करना फायदेमंद होता है. नियमित आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ एवं रविवार के दिन लाल भूरी चीटियों को आटा, गुड़ देने से सूर्य की कृपा प्राप्त होती है. 

    छठे घर को जगाने के लिए राहु का उपाय करना चाहिए. जन्मदिन से आठवां महीना शुरू होने पर पांच महीनों तक बादाम मन्दिर में चढ़ाना चाहिए, जितना बादाम मन्दिर में चढाएं उतना वापस घर में लाकर सुरक्षित रख दें. घर के दरवाजा दक्षिण में नहीं रखना चाहिए. इन उपायों से छठा घर जागता है क्योंकि यह राहु का उपाय है.

    सोये हुए सातवें घर के लिए शुक्र को जगाना होता है. शुक्र को जगाने के लिए आचरण की शुद्धि सबसे आवश्यक है. 

    सोये हुए आठवें घर के लिए चन्द्रमा का उपाय शुभ फलदायी होता है. 

    जिनकी कुण्डली में नवम भाव सोया हो उनहें गुरूवार के दिन पीलावस्त्र धारण करना चाहिए. सोना धारण करना चाहिए व माथे पर हल्दी अथवा केशर का तिलक करना चाहिए. इन उपाय से गुरू प्रबल होता है और नवम भाव जागता है. 

    दशम भाव को जागृत करने हेतु शनिदेव का उपाय करना चाहिए. 

    एकादश भाव के लिए भी गुरू का उपाय लाभकारी होता है. 

    अगर बारहवां घ्रर सोया हुआ हो तो घर मे कुत्ता पालना चाहिए. पत्नी के भाई की सहायता करनी चाहिए. मूली रात को सिरहाने रखकर सोना चाहिए और सुबह मंदिर मे दान करना चाहिए..

    प्रश्न ज्योतिष के अनुसार प्रश्न कुण्डली से संतान संबंधी योग

    गृहस्थ जीवन की फुलवारी में बच्चे फूल के समान होते हैं. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब उचित योग बनता है जब संतान प्राप्ति की संभावनायें अधिक होतीं है.
    पति पत्नी अगर संतान के इच्छुक हैं और उन्हें यह सुख नहीं मिल रहा है तो प्रश्न ज्योतिष के अनुसार प्रश्न कुण्डली से देख सकते हैं (एक Prashna कुण्डली में संतान संबंधी योग के लिए देख सकते हैं) कि उन्हें यह सुख कब प्राप्त होने की संभावनायें हो सकती हैं 

    गर्भावस्था के योग (गर्भावस्था के लिए योग) 
    प्रश्न कुण्डली में लग्न और पंचम में शुभ ग्रह हो (लग्न में शुभ ग्रह और पांचवें घर वहाँ है) तो स्त्री गर्भवती होती है. सप्तमेश और पंचमेश लग्न या पंचम स्थान मे हो तब भी स्त्री गर्भवती होती है. लग्न, पंचम एवं एकादश स्थान मे शुभ ग्रह हो (एक शुभ ग्रह में है, लग्न 11 या 5) तो स्त्री के गर्भावती होने की सम्भावना बनती है. शुक्र, लग्न अथवा पंचम भाव मे स्थित हो अथवा दृष्टि डालता हो तो गर्भधारण की सम्भावना होती है. पंचम भाव मे लग्नेश और चंद्र गर्भावस्था को सूचित करता है.प्रश्न के समय पंचम भाव मे और एकादश भाव मे शुभ ग्रह स्थित हो तो स्त्री गर्भावती होती है. लग्न मे बुध (लग्न में बुध गर्भावस्था इंगित करता है) यह संकेत देता है कि स्त्री गर्भवती है. 

    संतान शीघ्र होगा या विलम्ब से (देरी या बच्चे के जन्म के शुरुआती के लिए युग्म) 
    प्रश्नकर्ता को शीघ्र संतान होगी यदि लग्नेश का कार्येश के साथ संबध हो (लग्न-प्रभु और karya-प्रभु के बीच एक realtionship अगर वहाँ बच्चे जल्दी आ जाएगा). इसी प्रकार लग्नेश पंचम भाव मे या पंचमेश लग्न मे या दोनो लग्न मे, पंचम भाव मे अथवा किसी शुभ भाव मे संयुक्त रुप से हो तो संतान सुख शीघ्र प्राप्त होता है. दूसरी ओर यदि लग्नेश और पंचमेश नक्त योग मे हो तब संतान प्राप्ति मे विलम्ब होता है. 

    जुड़वा बच्चो का जन्म (जुड़वा बच्चों के जन्म के लिए ज्योतिष योग) 
    बच्चो के जन्म से संबन्धित प्रश्न मे शुभ ग्रहो द्वारा द्विस्वभाव लग्न जुड़वा बच्चो का संकेत देता है (एक दोहरी हस्ताक्षर के लग्न जुड़वां बच्चों को इंगित करता है). द्विस्वभाव राशि अथवा नवांश मे स्थित चन्द्र, शुक्र अथवा मंगल, बुध से दृष्ट होने पर भी जुड़वा बच्चो की सम्भावना होती है. यदि ये ग्रह विषम भाव और द्विस्वभाव राशि मे स्थित है तब दो पुत्र होने का योग बनता है. 

    स्वस्थ बच्चे का जन्म (एक स्वस्थ बच्चे का जन्म) 
    लग्न, स्वराशि अथवा उच्च राशि मे पंचमेश, चन्द्र अथवा शुभ ग्रह स्वस्थ बच्चे के जन्म का संकेत देते है (वैसे रखा शुभ ग्रहों स्वस्थ बच्चे से संकेत मिलता है). इसी प्रकार जब पंचमेश चन्द्र अथवा शुभ ग्रह पंचम भाव मे स्थित हो अथवा पंचम भाव को देखते हो तो यह माना जाता है की स्वस्थ बच्चे का जन्म होगा. शुभ ग्रहो से दृष्ट द्वादशेश अथवा चन्द्र केन्द्र मे हो तब भी स्वस्थ बच्चे के जन्म की सम्भावना बनती है. शुक्ल पक्ष के दौरान पूछे गए प्रश्न मे यदि द्वादश भाव मे शुभ ग्रहो के साथ चन्द्र हो तब भी बच्चा स्वस्थ जन्म लेता है. 

    बच्चा गोद लेना (बाल अपनाने) 
    पंचम भाव पूर्व पुण्य अथवा पिछले जीवन के शुभ कर्मो का भाव है. यदि पंचम भाव मे बुध या शनि हो तो बच्चा गोद लेने की सम्भावनाएं होती है (पांचवें प्रभु में बुध या शनि है, तो गोद लेने की संभावना है). प्रश्न कुण्डली के अष्टम भाव में अगर नवमेश शनि स्थित हो तो वह दशम दृष्टि से पंचम को देखता है जिससे बच्चा गोद लेने की संभावना बनती है. 

    ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि में धन वैभव और सुख के लिए कुण्डली में मौजूद धनदायक योग या लक्ष्मी योग

    ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि में धन वैभव और सुख के लिए कुण्डली में मौजूद धनदायक योग या लक्ष्मी योग काफी महत्वपूर्ण होते हैंजन्म कुण्डली एवं चंद्र कुंडली में विशेष धन योग तब बनते हैं जब जन्म चंद्र कुंडली में यदि द्वितीय भाव का स्वामी एकादश भाव में और एकादशेश दूसरे भाव में स्थित हो अथवा द्वितीयेश एवं एकादशेश एक साथ नवमेश द्वारा दृष्ट हो तो व्यक्ति धनवान होता है
    शुक्र की द्वितीय भाव में स्थिति को धन लाभ के लिए बहुत महत्व दिया गया है, यदि शुक्र द्वितीय भाव में हो और गुरु सातवें भाव, चतुर्थेश चौथे भाव में स्थित हो तो व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता हैऐसे योग में साधारण परिवार में जन्म लेकर भी जातक अत्यधिक संपति का मालिक बनता हैसामान्य व्यक्ति भी इन योगों के रहते उच्च स्थिति प्राप्त कर सकता है
    मेष लग्न के लिए धन योग (मेष Alagna धना योग) 
    लग्नेश मंगल कर्मेश शनि और भाग्येश गुरु पंचम भाव में होतो धन योग बनता है
    इसी प्रकार यदि सूर्य पंचम भाव में हो और गुरु चंद्र एकादश भाव में हों तो भी धन योग बनता है और जातक अच्छी धन संपत्ति पाता है
    वृष लग्न के लिए धन योग (Vrisha लग्न धना योग) 
    मिथुन में शुक्र, मीन में बुध तथा गुरु केन्द्र में हो तो अचानक धन लाभ मिलता हैइसी प्रकार यदि शनि और बुध दोनों दूसरे भाव में मिथुन राशि में हों तो खूब सारी धन संपदा प्राप्त होती है
    मिथुन लग्न के लिए धन योग (मिथुन लग्न धना योग) 
    नवम भाव में बुध और शनि की युति अच्छा धन योग बनाती हैयदि चंद्रमा उच्च का हो तो पैतृक संपत्ति से धन लाभ प्राप्त होता है
    कर्क लग्न के लिए धन योग (Karka लग्न धना योग) 
    यदि कुण्डली में शुक्र दूसरे और बारहवें भाव में हो तो जातक धनवान बनता हैअगर गुरू शत्रु भाव में स्थित हो और केतु के साथ युति में हो तो जातक भरपूर धन और ऎश्वर्य प्राप्त करता है
    सिंह लग्न के लिए धन योग (सिंह लग्न धना योग) 
    शुक्र चंद्रमा के साथ नवांश कुण्डली में बली अवस्था में हो तो व्यक्ति व्यापार एवं व्यवसाय द्वारा खूब धन कमाता हैयदि शुक्र बली होकर मंगल के साथ चौथे भाव में स्थित हो तो जातक को धन लाभ का सुख प्राप्त होता है
    कन्या लग्न के लिए धन योग (कन्या लग्न धना योग) 
    शुक्र और केतु दूसरे भाव में हों तो अचानक धन लाभ के योग बनते हैंयदि कुण्डली में चंद्रमा कर्म भाव में हो तथा बुध लग्न में हो शुक्र दूसरे भाव स्थित हो तो जातक अच्छी संपत्ति संपन्न बनता है
    तुला लग्न के लिए धन योग (तुला लग्न धना योग) 
    कुण्डली में दूसरे भाव में शुक्र और केतु हों तो जातक को खूब धन संपत्ति प्राप्त होती हैअगर मंगल, शुक्र, शनि और राहु बारहवें भाव में होंतो व्यक्ति को अतुल्य धन मिलता है
    वृश्चिक लग्न के लिए धन योग (वृश्चिक लग्न धना योग) 
    कुण्डली में बुध और गुरू पांचवें भाव में स्थित हो तथा चंद्रमा एकादश भाव में हो तो व्यक्ति करोड़पति बनता है
    यदि चंद्रमा, गुरू और केतु दसवें स्थान में होंतो जातक धनवान भाग्यवान बनता है
    धनु लग्न के लिए धन योग (धनु लग्न धना योग) 
    कुण्डली में चंद्रमा आठवें भाव में स्थित हो और सूर्य, शुक्र तथा शनि कर्क राशि में स्थित हों तो जातक को बहुत सारी संपत्ति प्राप्त होती हैयदि गुरू बुध लग्न मेषों तथा सूर्य शुक्र दुसरे भाव में तथा मंगल और राहु छठे भाव मे हों तो अच्छा धन लाभ प्राप्त होता है
    मकर लग्न के लिए धन योग (मकर लग्न धना योग) 
    जातक की कुण्डली में चंद्रमा और मंगल एक साथ केन्द्र के भावों में हो या त्रिकोण भाव में स्थित हों तो जातक धनी बनता है.धनेश तुला राशि में और मंगल उच्च का स्थित हो व्यक्ति करोड़पति बनता है
    कुंभ लग्न के लिए धन योग (कुंभ लग्न धना योग) 
    कर्म भाव अर्थात दसवें भाव में चंद्र और शनि की युति व्यक्ति को धनवान बनाती हैयदि शनि लग्न में हो और मंगल छठे भाव में हो तो जातक ऎश्वर्य से युक्त होता है
    मीन लग्न के लिए धन योग (मीणा लग्न धना योग) 
    कुण्डली के दूसरे भाव में चंद्रमा और पांचवें भाव में मंगल हो तो अच्छे धन लाभ का योग होता हैयदि गुरु छठे भाव में शुक्र आठवें भाव में शनि बारहवें भाव और चंद्रमा एकादशेश हो तो जातक कुबेर के समान धन पाता है
    कुछ अन्य धन योग (अधिक धना योग) 
    यह तो बात हुई लग्न द्वारा धन लाभ के योगों की अब हम कुछ अन्य धन योगों के विषय में चर्चा करेंगे जो इस प्रकार बनते हैं
    मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है, जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है
    जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बनाता है
    सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होना व्यक्ति को अपार धन दिलाता है
    यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति धनवान बनता है
    मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से लाभ मिलता है