Thursday, January 29, 2015

अधिक शक्ति राम के नाम में है

कलियुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और
न ही ज्ञान का. केवल राम का नाम ही एक मात्र
सहारा है. जिसके कानो में "राम" का नाम अकस्मात्
भी पड़ जाता है, उसके पापो का वैसे ही अंत
हो जाता है, जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धकार
का अंत हो जाता है. श्री रामचरितमानस में यह
कहा गया है कि यदि चाण्डाल भी राम के नाम
का जाप करे तो वह भी पवित्र आत्मा हो जाता है.
इसमें कोई संदेह नही है कि जो मनुष्य केवल 'राम' के
नाम का जाप करता है, वह घर बैठे ही सभी तीर्थों के
पुण्य प्राप्त कर लेता है.
'राम ' यह दो अक्षरों का मंत्र जपे जाने से सारे
पापो का नाश होता है. चलते, बैठे या सोते जो मनुष्य
राम नाम का कीर्तन करता है, वह यहाँ कृतकार्य
हो जाता है. जो शक्ति भगवान श्री राम में है, उससे
भी अधिक शक्ति राम के नाम में है. राम का नाम लेने
से ही सारे भय दूर हो जाते है, मन शांत और ह्रदय
प्रसन हो जाता है. ऐसा ही हमारे पुराणो में
बताया गया है —


दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

आज का प्रसंग "चरणामृत" पर आधारित है.

।। ॐ नम: शिवाय ॐ नम: शिवाय ।।
।। जय हो मां पार्वती की . हर हर गंगे।।
सभी मित्रगणों को ॐ नमो नारायण 
मित्रों आज का प्रसंग "चरणामृत" पर आधारित है. कृपया पूरा पोस्ट पढैं !!
प्रारम्भ :- मित्रों शास्त्रों में कहा गया है कि जल तब तक जल ही रहता है जब तक वहभगवान के चरणों से नहीं लगता,जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो वह अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है।
जब भगवान का वामन अवतार हुआ,और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्मलोकमें उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने
कमंडलु में से जल लेकर भगवानके चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया।
वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, जब हम बाँकेबिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है
“चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी”
हिंदू धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है। कहते हैं भगवान श्री राम जी के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भवबाधा से पार
हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है। आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में
रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी की चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णोरू पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृतरूपी जल समस्त पापव्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता। चरण का एक अर्थ और है चलन…. यानि परमप्रभु के आदेश के अनुसार जीवन-चलन होने पर एवं उन्ही के अनुसार सकल कर्म करने पर पुनर्जन्म नहीं होता। उनके चरणों में अपना आत्मसमर्पण कर उनके आदेशों के अनुसार सभी कर्म करने का अर्थही है वास्तविक रूप से उनका चरणामृत पीना।
भगवान सत्यनारायण व्रत का चरणामृत :- मित्रों मंदिर में या कथा भागवत में जब भी कोई जाता है तो पंडितजी उसे चरणामृत या पंचामृत देते हैं। लगभग सभी लोगों ने दोनों ही पीया होगा।
लेकिन बहुत कभी ही लोग इसकी महिमा और इसके बनने की प्रक्रिया को नहीं जानते होंगे।
चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानि पांच.पवित्र वस्तुओं से बना।
दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है।
कहते हैं कि चरणामृत पीकर कोई भी शुभ कार्य करने से उसमें बरक्कत (लाभ) होती है. मान सम्मान मिलता है. एक बात और.....चरणामृत को सीधे हाथ से ही पीना चाहिये, ना कि गिलास में या अन्य किसी बर्तन में रखकर.
हमारे विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में ये देखने को मिलता है कि ज्यादातर लोग चरणामृत पीने के तुरंत बाद अपने सिर में हाथ पोछ (साफ कर) लेते हैं , जबकि ऐसा करना अशुभ होता है .
पंचामृत
पंचामृत का अर्थ है पञ्च + अमृत पांच तरह के
अमृत का मिश्रण
1. गोदुग्ध
2. गोदधि
3. गोघृत
4. शुद्ध शहद
5. शर्करा (खांड )
आध्यात्मिक दृष्टि से देखे तो जो व्यक्ति पंचामृत
से देवमूर्ति (प्रतिमा) का अभिषेक करता हैं, देव
स्पर्श के बाद पंचामृत सेवन से उसे मुक्ति प्रदान
हो जाती हैं। श्रद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने
वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार की सुख
समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं, एवं
उसका शरीर मृत्यु के पश्च्यात जन्म-मरण के
चक्र से मुक्त हो जाता हैं।
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार गाय का दूध, गाय
का घी, दही, शर्करा और मधु के सम्मिश्रण में
रोगो का निवारण करने वाले गुण विद्यमान होते हैं
और यह शरीर के लिये लाभ कारक होता हैं।
नोट : पंचामृत में देसी गाय के दूध, दही,
घी का प्रयोग करें, शर्करा के स्थान पर
चीनी कदापि प्रयोग ना करें, देसी गुड
का इस्तेमाल कर सकते हैं |

वस्तु के घूमने से आकर्षणशक्ति उत्पन्न होती है|

हर गोल घूमने वाली वस्तु के घूमने से आकर्षणशक्ति उत्पन्न होती है| इस ब्रह्मांड में सभी ग्रह सूर्य की प्रदक्षिणा कर रहे है जिससे उनमे आकर्षणशक्ति उत्पन्न होती है | पृथ्वी और सभी ग्रह अपने इर्द गिर्द ही प्रदक्षिणा कर रही है|
(परिभ्रमण + घूर्णन) – अपने हाथ में बाल्टी में पानी रखकर जोर से गोल घूमे तो पानी नहीं गिरेगा उसी तरह जब पृथ्वी घूम रही है तो उस पर के सभी जड़ पदार्थ उसी पर रहते है |
(अभिकेंद्र बल~ अपकेंद्र बल) – हर अणु में इलक्ट्रोन भी प्रदक्षिणा कर रहे है |
(electro genetic rounding) – तक्र से माखन बिलोते समय भी उसे गोल-गोल घुमाने से उसमे ब्रह्मांड में मौजूद शक्ति आकर्षित होती है |
(अभिकेन्द्र~अप केन्द्र) इस शक्ति को अनुभव करना हो तो अपने हाथों को इस तरह रखे जैसे उसमे गेंद पकडे़ हो, अब हाथों को कंधे तक उठाकर उन्हें ऐसे घुमाए जैसे डमरू बजा रहे हो ! थोड़ी ही देर में उँगलियों में भारीपन महसूस होगा | यही ब्रह्मांड से आकर्षित शक्ति का अनुभव है | अब हल्की सी ताली बजाते हुए इसे अपने अन्दर समाहित कर ले, इसी प्रकार जब हम ईश्वर के आसपास परिक्रमा करते है तो हमारी तरफ ईश्वर(प्रत्यक्षतः प्राकृतीय) की सकारात्मक शक्ति आकृष्ट होती है और जीवन की नकारात्मकता घटती है | कई बार हम स्वयं के इर्द गिर्द ही प्रदक्षिणा कर लेते है इससे भी ईश्वरीय(प्राकृतीय) शक्ति आकृष्ट होती है |नकारात्मकता से ही पाप उत्पन्न होते है तभी तो ये मन्त्र प्रदक्षिणा करते समय बोला जाता है – ''यानी कानी च पापानि , जन्मान्तर कृतानि च| तानी तानी विनश्यन्ति , प्रदक्षिण पदेपदे ||'' – प्राण प्रतिष्ठित ईश्वरीय प्रतिमा की पवित्र वृक्ष की , यज्ञ या हवन कुंड की परिक्रमा की जाती है जिससे उसकी सकारात्मक शक्ति हमारी तरफ आकृष्ट हो | सूर्य को देखकर या मूर्ति के सामने हम अपने इर्द गिर्द ही घूम लेते है|
यदि बड़ के वृक्ष में कोई ब्रह्मज्ञानी महापुरुष द्वारा शक्तिपात किया हुअा हो तो कहना ही क्या !
मनुष्य अगर श्रध्दा और भक्ति भाव से उसकी प्रदक्षिणा करता है तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती ही है और उसके सब पाप नष्ट होने लगते हैं |

Thursday, January 22, 2015

GYAN LAKSHAY (NGO)

All suggestion/ Claim or request from member are requested within criteria given below -
Way to  join GYAN LAKSHAY (NGO) - ( On line/ off line option ) ( All membership fee only by cheque/ draft/ RTGS/ Debit/ Credit card, No cash)
 I.  Board of Trustee - Members who initiated Trust Membership Fee - Rs 51000/ Per Year - New entry on the basis of performance of national Council Members
2. Member Advisory Council  ( Honorary membership) - No fee - Board of Trustee with the recommendation of National Committee may appoint / nominate to any person on this council
 3. Ordinary Member  - Rs 100/ per Year - anybody may become member anytime
4. Member District Council & District committee - Rs 1000/ Per Year  - An ordinary member may become after six month duration as a ordinary member
5. Member State Council & state Committee  - Rs 5000/ Per year - Any district council member from  one year may become State Council member
6. Member National Council& national Committee - Rs 11000/ Per year - Any State Council member of two year experience may become national Council Member
We also invite donation or any other type of help/support from our well wishers
Following are our account details -
Bank  -   XXXXXXXXXXXXXXXXXXX.
Account Number: XXXXXXXXXXXX
Account Name: GYAN LAKSHAY (NGO)
Bank Branch: DELHI
IFSC code of our bank: XXXXXXXXXXX
लक्ष्य प्राप्ति के लिए- न्यूनतम संगठन -
1.    हमारा संगठन - लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक आंदोलन।
2.     हमारा लक्ष्य - व्यवस्था परिवर्तन वर्तमान राज्य व अर्थ व्यवस्था में परिवर्तन।
3)     व्यवस्था परिवर्तन का परिणाम  - दो
    (1) प्रत्येक व्यक्ति को ईमान की रोटी और इज्जत की जिंदगी।
    (2) भारत विश्व में गौरवशील पद पर पुन:सर््थापित।
4) आंदोलन की सफलता के तीन कारक-
    (1) साखयुक्त नेतृत्व
    (2) परिस्थितियों की परिपञ्चवता और
    (3) औजार के रूप में न्यूनतम संगठन।
    हमारे पास साखयुक्त नेतृत्व है। उनके साथ अन्य साखयुक्त नेताओं को जोडऩा भी संभव। परिस्थितियों की परिपञ्चवता। समाज में बैचेनी व असंतोष का सभी जगह दर्शन। उस असंतोष को सही दिशा में मोडऩे की देरी।
    नेतृत्व भी उपलब्ध है समाज में असंतोष के कारण परिस्थितियां भी पकने के तरफ बढ़ रही है। क्या आंदोलन की सफलता का औजार हमार पास है? नही है।
    अत: आंदोलन की सफलता का औजार - न्यूनतम संगठन बनाना हमारी प्राथमिकता।
5.    न्यूनतम संगठन का अपेक्षित स्वरुप-
    (1) राष्ट्रीय कार्यसमिति =    31 सदस्य की संचालन समिति + 120 सदस्य = 151 सदस्य
    (2) प्रांत कार्यसमिति =    21 सदस्य की संचालन समिति + 80 सदस्य = 101 सदस्य 101 into 36 प्रांत = 3636 सदस्य
    (3) जिला कार्यसमिति =    11 सदस्य की संचालन समिति + 40 सदस्य = 51 सदस्य 51 into 610 प्रांत = 31110 सदस्य
कुल कार्यकर्ता 34897 सदस्य (35 हजार सदस्य)।
6) संगठन से जुड़े सदस्यों के तीन प्रकार -
    (1) नेता
    (2) कार्यकर्ता
    (3) समर्थक
    नेता अर्थात् नेतृत्व गुणों से संपन्न। जो स्वयं कार्य करे और औरों को भी कार्य करने की प्रेरणा देने में सफल हो।
    कार्यकर्ता अर्थात् जो हमारी विचारधारा से सहमत होकर संगठन का कार्य करे।
    समर्थक जो विचारधारा से सहमत हो और सूचना मिलने पर कार्यक्रम में शामिल हो।
जो 35 हजार हम जोडऩा चाहते हैं वे नेता और कार्यकर्ता प्रकार के हों।
7)     संगठन के चार अंग-
    (1) कार्यकर्ता
    (2) कार्यालय
    (3) कोष और
    (4) कार्यक्रम
    कार्यालय अर्थात संगठन की गतिविधियों का केन्द्र।
    कोष अर्थात् संगठन को चलाने का ईंधन।
    संगठन के लिए कोष चाहिए कोष के लिए संगठन नहीं। गाड़ी में पेट्रोल टैंक जितना महत्व। पेट्रोल का टैंकर मतलब कोष नहीं।
    कार्यकर्ता और कार्यक्रम की परस्पर पूरक भूमिका। कार्यकर्ताओं के आधर पर कार्यक्रम आयोजन और कार्यक्रम के माध्यम          से कार्यकर्ता निर्माण।
8) कार्यक्रमों के प्रकार-
    (1) संगठनात्मक गतिविधियां
    (2) आंदोलनात्मक आयोजन
    गतिविधियां : बैठक-प्रवास-प्रशिक्षण
    आयोजन : धरना, प्रदर्शन, जनसभा, पदयात्रा, आर.टी.आई, पी.आई.एल.,जनजागरण अभियान।
9.     परिवर्तन या क्रांति में समाज का योगदान-
    ऐतिहासिक निचौड़ - विश्व भर जितने महान क्रांतियां, धार्मिक,
सामाजिक, राजनैतिक हुई हैं- उस में समाज के सक्रिय लोगों का प्रतिशत -0.01 प्रतिशत से कम।
    बाकी समाज मेे जनजागरण के परिणाम से समाज का जागृत, सुप्त या ऐच्छिक या अनैच्छिक समर्थन मिला।
10.    व्यवस्था परिवर्तन के लिए राजनीति में हस्तक्षेप अनिवार्य होगा।
इसमें सभी को स्पष्टता। हस्तक्षेप का स्वरूप क्या होगा अभी कहना अधपका परोसना होगा।
        राजनीति में यह हस्तक्षेप न तो इतनी जल्दी हो कि जल्दबाजी हो जाएऔर न इतना कच्चा हो कि समयपूर्व हो जाये, यह नेतृत्व जरूर ध्यान रखेगा।​
Thanking You.

Yours

Sunday, January 18, 2015

नरेन्द्र मोदी की असली कुंडली

देखें नरेन्द्र मोदी की असली कुंडली और जन्म से लेकर अब तक सभी ग्रहों की चाल, जिससे हम जानेगें मोदी की परेशानियों का कारण व उत्थान का राज़… संभवतः पहली बार…

Narendra Modi ki asli kundali batati hai unki uplabhdiyon ka raaz.

मोदी की कुंडली के अनुसार अधिकां ज्योतिषियों की भविष्यवाणी धरी-की-धरी रह गयी, उसमे से एक मैं भी था। मेरे अनुसार भी जो कुंडली मेरे पास थी और जो प्रचलित है उसके अनुसार राजयोग नहीं बन रहा था, और यदि होता भी तो किसी के समर्थन से ही बन पाता। परन्तु जब परिणाम आये तो मेरी नींद उड़ गयी, नींद इसलिए नहीं उड़ी की मोदी क्यों जीते, बल्कि इसलिए उड़ी की प्रेडिक्शन गलत कैसे हुआ। दिल्ली विधान सभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल के शपथ से पूर्व भविष्यवाणी हो या दिल्ली भाजपा की सीटें, सभी प्रेडिक्शन १०० प्रतिशत सच हुए तो यह इतना गलत क्यों हुआ। कहाँ गलती हुई, फिर सोचा की मोदी की कुंडली और उनका जन्म समय स्वयं मोदी ने तो बताई नहीं, हो सकता है तारीख और वर्ष उनका स्कूल का हो जो पहले अक्सर एक या दो साल आगे या पीछे कर दिया जाता था। इस आधार पर मैंने मोदी की कुंडली तलाशनी शुरू की और सफलता भी मिली, देखें मोदी की असली कुंडली और जन्म से लेकर अब तक का सभी ग्रहों की चाल जिससे हम जानेगें मोदी की परेशानियों का कारण व उत्थान का राज …… संभवतः पहली बार …

मोदी की प्रचलित जन्म की तारीख है, सितम्बर 17, 1950, जन्म समय ११ बजे, मेहसाणा-गुजरात, जिसके अनुसार उनका जन्म लग्न वृश्चिक है और जन्म कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को विष्कुम्भ योग में हुआ है। विष्कुम्भ में जन्मा हुआ जातक कभी इतना उत्थान नहीं कर सकता इसके अलावा जो पहले की कुंडली में संदेह जनक पक्ष है वे हैं -

१. वृश्चिक लग्न में मंगल तो है परन्तु शुन्य अंश का है साथ में नीच का चन्द्रमा है, जिसके चलते रूचक और विष्णु लक्ष्मी योग तो बनते हैं परन्तु बहुत ही कमजोर , कम से कम इतने शक्तिशाली तो नहीं जितने मोदी हैं।

२. वृश्चिक लग्न में दसम भाव का मालिक सूर्य है जो स्वयं एकादश भाव में केतु के साथ ग्रहण योग में बैठा है और दसम भाव में शत्रु के स्थान पर शनि विराजमान है जो कभी भी इतना तगड़ा राजयोग नहीं दे सकता बल्कि हमेशा अवरोध उत्पन्न करेगा। जबकि मोदी का पिछला जीवन देखा जाये तो मोदी निरंतर आगे बढे हैं और कभी भी उनके लिए कोई बड़ी समस्या नहीं खड़ा कर पाया। साथ ही यह भी इतना प्रबल राजयोग नहीं बना सकता जितना मोदी का है।

३. गुरु भी केंद्र में है परन्तु शत्रु स्थान पर है और वक्री भी है, अतः यहाँ गुरु से भी किसी प्रकार का राजयोग नहीं बन पा रहा है।

४. बुध एकादश भाव में कन्या राशि में है परन्तु वक्री है, अतः बुधादित्य योग उतना प्रभावकारी नहीं हो सकता।

५. पंचम में राहु विद्या में बाधक है और उस पर सूर्य - बुध - केतु की दृष्टि से व्यक्ति बहुत नकारात्मक बुद्धि वाला या विध्वंसक विचार का हो जायेगा, अतः यहाँ यह योग भी समझ से परे है।

६. सन १९८५ से लेकर २००५ तक मोदी की शुक्र की महादशा रही है और जब अक्टूबर २००१ में मोदी मुख्यमंत्री बने तो शुक्र में शनि का अंतर था, वृश्चिक लग्न में शुक्र मारकेश है और बुध एवं शनि सहायक, तो उस समय मुख्यमंत्री कैसे बन सकते हैं मोदी?

७. और सबसे बड़ी बात वर्तमान महादशा जो इस समय उनके भाग्येश चन्द्रमा की चल रही है, परन्तु राहु का अंतर है जो भाग्य में ग्रहण योग बना रहा है और शायद इसीलिए सभी विद्वानो ने मोदी की जीत में संदेह व्यक्त किया था जो मैंने भी किया लेकिन खोज किसी ने नहीं की।

इन सभी कारणों को देखते हुए मैंने मोदी से सम्बंधित संभावित समय पर खोज शुरू की और जो मैंने प्राप्त किया उसके अनुसार मोदी के जन्म की तारीख सितम्बर १७, १९४९ है और समय १०.५० मिनट है, अर्थात सबकुछ सही है परन्तु वर्ष एक वर्ष पूर्व है, इस समय के अनुसार जो लग्न है वह तुला है और उसका चार्ट है।

Narendra Modi ki asli kundali batati hai unki uplabhdiyon ka raaz.
आइये अब देखिये इस चार्ट के अनुसार विश्लेषण :

१. लग्न तुला है और तुला में ही शुक्र बैठा है - यह अपने आपमें जबरदस्त रोजयोग कारक है और व्यक्ति को कीचड में पैदा होने के बावजूद राजसिंहासन तक पहुँचाने की क्षमता रखता है और शायद यह बात जो भी ज्योतिष जानते हैं उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं कि लग्न में तुला के शुक्र का क्या मतलब होता है।

२. दशम भाव में नीच का मंगल - जिसके कारण पिता के सुख में कमी परन्तु उच्च दृष्टि माँ के स्थान पर अतः माँ की आयु लम्बी और भरपूर आशीर्वाद, साथ ही शत्रुओं को परास्त करने की अद्भुत क्षमता।

३. पराक्रम भाव अर्थात तृतीय भाव में अपनी ही राशि पर बैठा वक्री गुरु - यह भाई - बहनों के सुख को कमजोर करता है परन्तु अदभुत पराक्रम देता है, मोदी के बारे में ये दोनों ही बाते सर्वविदित हैं।

४. राज्येश चन्द्रमा का भाग्य स्थान अर्थात नवम भाव में बैठना - यह एक अद्भुत राजयोग है। साथ ही गुरु और चन्द्रमा का दृष्टि योग जबरदस्त पराक्रम, राज क्षमता, सृजनात्मक विचार इन सबसे व्यक्ति को ओतप्रोत बनता है, और ये सभी गन मोदी में विद्यमान हैं।

५. एकादश भाव में शनि - यहाँ बैठकर शनि लग्न, पंचम, और अष्टम भाव को सीधे देख रहे हैं, अतः देर से विद्या की प्राप्ति, लग्न पर उच्च दृष्टि के कारण निरोगी एवं आध्यात्मिक विचारधारा, दुखी लोगो के प्रति सेवा का भाव ये सभी गुण प्रदान कर रहा है, साथ ही जीवन में अत्यधिक यात्रा और यात्रा के और सेवा के द्वारा लाभ को दर्शाता है, और इन सभी बातों को मोदी के सन्दर्भ में बताने की आवश्यकता नहीं।

६. छठवें भाव में राहु - कम से कम किसी ज्योतिष के विद्वान को इसका अर्थ बताने की आवश्यकता नहीं, शत्रुओं पर जबरदस्त प्रभाव, जिसने भी शत्रुता की वो गया और यही मैंने पहले भी लिखा था की संजय जोशी, केशुभाई पटेल, और शंकर सिंह बाघेला आज नेपथ्य में चले गए हैं और पूरी तरह से मोदी पर आश्रित हैं। वर्तमान में आडवाणी और सुषमा स्वराज को झुकना पड़ा और नितीश, मायावती, मुलायम, अरविन्द केजरीवाल, मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद जैसे न जाने कितने अधिक मोदी का विरोध करने की वजह से राजनैतिक मौत मारे गए।

७. द्वादश भाव में केतु, सूर्य, और बुध - जो स्वयं कन्या यानी कि बुध की अपनी राशि में हैं एक साथ युति कर रहे हैं। ऐसा किसी भी व्यक्ति को जबरदस्त योजनाकार, भ्रमणशील, प्रखर वक्ता, धर्म रक्षक, तथा परोपकारी बनाता है। साथ ही यह योग पुनः किसी भी शत्रु के लिए अत्यंत घातक है। सूर्य शुन्य अंश का और पिता का कारक और ग्रहण योग में होने के कारण पिता के सुख में कमी और पैतृक सम्पत्ति तथा पैतृक स्थान के सुख में भारी कमी को दर्शाता है।

अब करते हैं दशाओं की बात :

मोदी का जन्म इस वर्ष के अनुसार गुरु की महादशा में हुआ, तुला लग्न में गुरु तीसरे और छठे भाव का स्वामी है , मोदी को जन्म से कितना दुःख झेलना पड़ा यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है।

1965 से - 1984 तक: यह शनि की दशा का समय था, शनि तुला लग्न में योगकारक तो हैं परन्तु राजयोगकारक नहीं। साथ ही सुख भाव(चतुर्थ ) से छठे भाव में बैठे हैं, अतः अत्यंत दुःख, खूब भ्रमण, आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान के साथ जीवन जीने को बाध्य किये, इस दौरान जैसा शनि का गुण है मोदी साधु संतों की सेवा में रहे और लगभग सन्यासी का जीवन यापन किये।

1984 से जुलाई 2001 तक: यह समय जहाँ से मोदी के राजनैतिक जीवन और अच्छे दिन की शुरुवात होती है, बुध इनकी कुंडली में भाग्येश है और अपनी उच्च राशि कन्या में द्वादश में बैठकर राजयोग भी बना रहा है और यही से मोदी के राजयोग की शरुवात हो जाती है।

30 जुलाई 2001 से 30 जुलाई - 2008 तक: केतु की महादशा का प्रारम्भ और मोदी राजयोग शुरू, केतु की महादशा शुरू होने के तुरंत बाद अक्टूबर में मोदी को मुख्यमंत्री की कुर्सी, २००२ में चुनाव और पुनः विजय जब केतु में शुक्र का अंतर आया।

30 जुलाई 2008 से शुक्र की महादशा प्रारम्भ: पुनः मुख्यमंत्री और मजबूती के साथ, दिसंबर २०१२ से शुक्र में राज्येश चन्द्रमा की अंतर दशा जो अभी जुलाई रहेगी , बताने की आवश्यकता नहीं की २०१३ से लेकर अभी तक मोदी कहा पहुंच चुके हैं, क्योंकि मेरे हिसाब से अभी लग्नेश शुक्र और राज्येश चन्द्रमा का समय चल रहा है।

विशेष :

१. वर्तमान में भी तुला पर ही शनि हैं जो उच्च के हैं और जबरदस्त राजयोग बना हैं, मीन में उच्च के शुक्र भी है।

२. मेरे दिए हुए जन्म तारीख अर्थात सितम्बर 17,1949, सुबह 10.50 के अनुसार मोदी का जन्म दिन शनिवार, वरियन योग, कृष्ण पक्ष दशमी तिथि, पुनर्वसु नक्षत्र है, दशमी तिथि जाया तिथि होती है और इन सारे योग में पैदा हुआ व्यक्ति राजा नहीं बनेगा तो कौन बनेगा?

३. सबसे ध्यान देने योग्य बात ये है कि मोदी ने गुजरात और वाराणसी दो जगह से अपना नामांकन दसमी तिथि को ही किया था। १७ और २६ दोनों का हे योग ८ है जो शनि का अंक है, मोदी १७ को शनिवार के दिन ही पैदा हुए हैं।

यह मेरा प्रयास था तथ्यों का, पाठकों और ज्योतिषविदों से अनुरोध है कि अपना विचार रखें और हो सके तो उसे व्यक्त करें।

पं दीपक दूबे

क्या आपके जीवन साथी के विवाहेतर सम्बन्ध हैं


प्रिय ज्योतिष प्रेमियों , यद्यपि यह गंभीर विषय है मगर आप रोज़ मर्रा के जीवन में देखेंगे तो हमें ऐसा बहुत सुनने को मिलता है की अमुक महिला का अमुक व्यक्ति से गुप्त प्रेम सम्बन्ध है और दोनों ही विबाहित भी हो सकते हैं या कोई एक नहीं भी सकता है. यह बहुत आम चर्चा रहती है और ऐसा होता भी है ....समाज में हो रहे कई परिवर्तन इसके कारण हैं. और यह कई कारणों से हो सकता है ...पति की नपुंसकता , पत्नी का दुर्व्यवहार , समय का अभाव , आपसी समझ का अभाव , वगेरह वगेरह . हमको इसके सामाजिक और मनोवैज्ञानिक तथ्यों से कोई मतलब नहीं है अपितु इसके ज्योतिषीय कारणों की चर्चा ज़रूर करेंगे.
श्री कृष्णमूर्ति जी ने –स्वच्छ पत्नी – के विषय में कहा है ---यदि सप्तम का उपनक्ष्त्र मंगल , शुक्र, शनि ना हो , और वह उपनक्ष्त्र स्वामी इन ग्रहों के नक्षत्र में न हो तथा ना ही इनकी राशि में हो तब यह पक्का है की महिला स्वच्छ होगी – स्वच्छ से यहाँ तात्पर्य विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध के विषय में है . kp रीडर -४ , १९९६ संस्करण , पृष्ट -१०० .

सुधि पाठक पूर्ण अवगत हैं की शुक्र काम का कारक है , मंगल उत्प्रेरक है और शनि छुपाने वाला और नैसर्गिक बुरा गृह है .
सिर्फ कृष्णमूर्ति ज्योतिष ही एकमात्र ज्योतिष है जिसे वैश्विक रूप से सफलता के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है.
आइये पहले देखते हैं की श्री बी.वी. रमन ने इस सम्बन्ध में क्या कहा है :मैं संक्षिप्त में ही बताऊंगा
यदि सप्तमेश
1)      तीसरे घर में हो बहुत ज्यादा पाप प्रभाव में हो, तब व्यक्ति के उसके भाई की पत्नी के साथ अथवा महिला के उसकी बहिन के पति के साथ सम्बन्ध हो सकते हैं किन्तु वह बहुत पाप प्रभाव में होना चहिये.
2)      चतुर्थ भाव में हो और राहू – केतु के साथ हो तब जातक की पति / पत्नी के चाल चलन पर शक किया जा सकता है.
3)      पंचम भाव में हो  और बहुत अधिक पीड़ित हो तो जातक की पत्नी किसी और के शिशु को जन्म दे सकती है.
4)      छठे भाव में हो और बहुत पीढित हो तो व्यक्ति नपुंसक भी हो सकता है , साथ ही शुक्र भी बहुत कमजोर होना चहिये तथा उसका विवाह ऐसी महिला के साथ हो सकता है जो बीमार होगी तथा व्यक्ति को विवाहित जीवन का आनंद नहीं लेने देगी.
5)      एकादश भाव में हो तो व्यक्ति के अनेक सम्बन्ध हो सकते हैं अता दो शादियाँ कर सकता है.
सप्तम भाव में गृह :
1)      सूर्य जातक नैतिक रूप से पतित हो सकता है तथा स्त्रीयों के कारण अपमानित भी हो सकता है और उसकी पत्नी का आचरण संदेहास्पद हो सकता है.
2)      चन्द्र व्यक्ति बहुत ही कामुक , ईर्ष्यालु होगा . उसकी पत्नी सुंदर होगी मगर वह दुसरे की पत्नियों में अधिक रूचि रखेगा.
3)      केतु जातक पापी आचरण वाला होगा और उसकी रूचि विधवा स्त्रीयों में होगी .
श्री कृष्णमूर्ति जी के अनुसार , उसी पुस्तक के पृष्ट ८२ से Let us see what Shree Ksk has said about plurality of partners: page-82 same book.
1)      शुक्र और यूरेनस का ख़राब द्रष्टि सम्बन्ध शादी के लिए तैयार लड़कियों से सुख के पूर्ती करवाता है .
2)      चन्द्र का शुक्र के साथ खराब सम्बन्ध दुसरे की पत्नियों से सुख दिलवाता है.
3)      शुक्र चन्द्र यूरेनस नेप्तून यदि १,२,५,७,११,में हों तो दुसरे के साथ आनंद प्राप्त करता है.शनि से गोपनीयता बनी रहती है , मंगल से इच्छा को कर्म में परिवर्तित करने की ऊर्जा आती है ,गुरु का अच्छा प्रभाव हो तो सब कुछ ठीक चलता रहता है किन्तु विपरीत प्रभाव हुआ तो शिशु का जन्म हो सकता है और सामने वाली जातक कानून का सहारा ले सकती है और व्यक्ति को बहुत नुक्सान दे सकती है.
ऐसे बहुत से गृह और नक्षत्र संयोग उनके द्वारा बताये गए जिनको आप स्वयं उस पुस्तक से पढ़ सकते हैं.
अब हम कुछ कुंडलियों को इन सबकी कसौटी पर रख कर देखते हैं :
 1)


सप्तम का उपनक्ष्त्र स्वामी बुध है जो की शुक्र की राशि में है और मंगल तथा सूर्य से जुड़ा हुआ है.सप्तमेश चंद्र राहू – केतु के अक्ष पर है और शुक्र से युति कर रहा है. इस जातक के कई विवाह पूर्व तथा पश्चात सम्बन्ध हैं . इनका एक बहुत लम्बा प्रणय सम्बन्ध भी था जो विफल हो गया.चंद्रमा शनि के नक्षत्र में है , शुक्र मंगल की राही में है , बुध राहू के नक्षत्र में है जो शुक्र से युति कर रहा है.अतः श्री कृष्णमूर्ति और रमन जी की बात इस कुंडली पर पूर्ण सत्य है.
2)

सप्तमेश सूर्य है तथा शनि के नक्षत्र में है और मंगल की राशी में है. वह बुध के साथ है. शुक्र पर शनि और मंगल दोनों की द्रष्टि है तथा वक्री गुरु की द्रष्टि है. इस जातक के द्वारा एक महिला गर्भवती हुई और पुलिस में चली गयी. इसका तलाक हुआ क्योंकि इसके जिससे शादी हुई थी उसका पहले से ही कहीं प्रेम सम्बन्ध था. और फिर इसकी दूसरी शादी हुई.
3)
सप्तम का उपनक्ष्त्र स्वामी स्वयं मंगल है , वह सूर्य के नक्षत्र में है जो शुक्र से युति कर रहा है. शनि की मंगल पर द्रष्टि है. सप्तमेश राहू – केतु अक्ष पर है.इनका अभी एक विवाहेतर सम्बन्ध चल रहा है .
4)
इस जातक का सप्तमेश शुक्र लाभ में है और मंगल से युति कर रहा है और शनि तथा गुरु से द्रष्ट है.इसका एक विजातीय प्रणय हुआ जो विवाह में बदला और अब यह दुसरे में असक्त है.अधिक जानकारी नहीं है.
5)

इनका सप्तम भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी राहू है जो सूर्य के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्ष्त्र में है और द्विस्वभाव राशि में है. सूर्य पर शनि की द्रष्टि है.सूर्य शुक्र के नक्षत्र में है जो की सीधा सप्तम भाव को देख रहा है .जातक के कई महिलाओं से विवाह पश्चात शारीरिक सम्बन्ध हैं.
वैसे तो मैं और भी कुण्डलियाँ प्रस्तुत कर सकता हूँ मगर बात इतने ही साफ़ होनी चहिये. तो आपने देखा की हमारे महान ज्योतिषियों श्री रमन और श्री कृष्णमूर्ति जी कितने सटीक हैं , ज्योतिष में संदेह की कोई जगह नहीं होती विशेषकर कृष्णमूर्ति पद्धति में जो की सबसे वैज्ञानिक और तार्किक है.

यह कुंडलियाँ समाज के अलग अलग तबके के स्त्री पुरुषों की हैं और इनके बारे में कोई भी डिटेल मैं प्रदान नहीं कर पाउँगा. यदि आपके पति या पत्नी ऐसे हैं तो आपको उनको ऐसा अनैतिक कृत्य करने से रोकना चहिये.
http://vedicindianastrologyandyou.blogspot.in/2014/08/blog-post_22.html

Monday, January 12, 2015

'शरीर', 'सम्बन्धी' और कर्म तीन मित्र

एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।
एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था।
एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।
दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।
और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता।
एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।
अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :-
"मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?
वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।
उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था।
आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।
अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।
फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।
दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।
वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।
फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।
तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।
अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है...?
तो चलिये हम आपको बताते है इस कथा का सार।
जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते है।
सब से पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर' हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है।
एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।
दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी' जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।
और तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म' जो सदा ही साथ जाते है।
अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता।
जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।
दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है।
तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।
और तीसरा मित्र आपके कर्म है।
कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।
अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी।
और भगवन हमारे लिए स्वर्ग का दरवाजा खोल देंगे।
इसलिये हमे भगवान् का आश्रय लेकर अपने कर्म करते रहने है

कंचन, कामिनी और कीर्ति

● कंचन, कामिनी और कीर्ति ।
मनुष्य मात्र का अतिप्रिय स्वप्न,
अपना होंश संभालते ही उसे कंचन आकर्षित करने लगती है ।
कंचन - अर्थात धन-सम्पति ।
धन के लिये उसके अथक प्रयास उसे इस स्वप्न में और गहरा उतारते हैं । उसे कुछ सूझता ही नहीं । बस धन और धन ही सब कुछ है । 
इसके लिये वो झूठ, फरेब और धोखाधड़ी सीखता है । हर गुजरते दिन के साथ वो इसमें सिद्धहस्त हो जाता है ।
इसी गहरी नींद में वो युवा हो जाता है और उसकी कामनाओं की यात्रा आरम्भ हो जाती है ।
अब उसे कामिनी आकर्षित करने लगती है ।
कामिनी - अर्थात कामनाओं की अंतहीन कामना ।
अब उसे हर उस चीज की कामना है जिसे भौतिक-जगत में प्राप्त किया जा सकता है । इससे उसे मानसिक और शारीरिक संतोष मिलेगा ।
वो जानता है कि - जैसे धन अर्जित करना आसान नहीं था वैसे ही कामनाओं की पूर्ति भी आसान नहीं है । लेकिन अब वो प्रयास करने में सिद्धहस्त हो गया है और इस दिशा में भी प्रयास करेगा ।
इसी आपा-धापी में उसकी युवावस्था गुजर जाती है और वो अधेड़वस्था को प्राप्त हो जाता है ।
अब वो चाहता है कि - आने वाले समय में लोग उसे याद करें ।
और फिर उसे कीर्ति आकर्षित करने लगती है ।
कीर्ति - अर्थात यश, मान-सम्मान ।
उसका नाम हर किसी की जुबान पर हो, लोग उसकी चर्चा करें और हर जगह उसका नाम लिखा दिखाई दे । ये स्वप्न का सबसे गूढ़ हिस्सा है जहाँ वो सर्वाधिक गहरी नींद में है ।
वो चाहता है कि - लोग उसके झूठ, फरेब और धोखाधड़ी को भूल जायें और केवल उसका नाम याद रखें । इसके लिये वो फिरसे झूठ, फरेब और धोखाधड़ी का इस्तेमाल करता है और लोगों को अपना नाम याद करवाने का अभ्यास करवाता है ।
लेकिन फिर अचानक नींद पूर्ण हो गई, स्वप्न टूट गया । वो जर्जर हो चूका है, बूढ़े लोगों में उसकी गिनती होती है । सूक्ष्म-जगत उसके सामने उदय होने लगा है । जहाँ उसे ये शरीर छोड़कर आत्म-स्वरुप प्रवेश करना है ।
अर्थात मृत्यु आन पहुची ।
तब उसकी समझ में आता है कि - एक स्वप्न के लिये उसका अनमोल जीवन ही गुजर गया ।
उसने ज्ञान-अर्जन तो किया ही नहीं । आगे अनंत यात्रा में वो क्या करेगा ? हालांकि अपनों के सच्चे प्रेम ने उसे बार-बार स्वप्न से जगाने का प्रयास किया था । इससे वो स्वप्न में चौंका जरूर था, लेकिन जागा नहीं ।
और फिर शरीर छूट गया । अब वो गहन अंधकार में है । बुद्धि भी उसके साथ नहीं है । उसकी आत्मा है और उसका मन है । बस और कुछ नहीं । अगर ज्ञान होता तो वो संस्कार बनकर उसके साथ होता और उस अन्धकार में उसकी रौशनी से वो अपना मार्ग तलाश कर लेता लेकिन अब भटकते रहने के अलावा कुछ नहीं था ।

Thursday, January 1, 2015

मातृ सूख नाश योग

ज्योतिष में मातृ सूख नाश योग :
1 जब पाप ग्रह युक्त चंद्रमा सातवें भाव में हो
2 जब चंद्र्माँ से शुक्र सातवें भाव में पाप ग्रहों के बीच हो
3 तीसरे या सातवें स्थान में सूर्य हो व मंगल लगान में हो
4 जब चंद्रमा से चौथे - सातवें भाव में पाप ग्रह हो
5 चौथे भाव में शनि पाप ग्रहों से दृष्ट हो
यदि बालक के जन्म के समय इन में से कोई भी योग
कुंडली में हो तो 30 दिन के भीतर जाप दान
करके हवन अवश्य करवाना चाहिये . अन्यथा माता को कष्ट या मृत्यु
तुल्य कष्ट हो सकता है