Sunday, June 30, 2013


माँ"हु



जिस लडके को नौ महीने पेट मेँ रखा वो,
शादी के बाद
नौ महीने बाद बहु को लेकर अलग हो गया,
मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ"हु.
उसका नौँवे दिन फोन आया,
पुत्रवधु को अच्छी जोब मिली है. मैँने
पुछा तूम्हारा खाना ?
उसने कहा " टिफिन मँगवाते है,
मैँ सहम गई
मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ"हु.
नवरात्री मेँ लडके का फोन आया
पुत्रवधु प्रगनेन्ट है आप देखभाल करोगी ना ?
मैने हा कही.
मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ"हु.
पुत्रवधु ने पुत्र जन्मा , प्रपोत्र का
चेहरा देख कर मैँ रो पडी,
पुत्र ने पुछा
माँ यह खुशी के आँसु है ?
मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ"हु.
बेटे ने पुछा , माँ तुम तुम्हारे घर हमारे बेटे
का बेबी सिटिँग करोगी ना ?
मैँ यह सुनकर हँसी.
मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ"हु.
बाद मेँ....
प्रपोत्र ने एक दिन पुछा "
दादी जी दादी जी आप हम सेँ अलग क्यु हो ?
यह सुनकर मैँ रो पडी
लेकिन हा
मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ"ह......

मुसीबतों से लडें

एक किसान था. वह एक बड़े से खेत में
खेती किया करता था. उस खेत के बीचो-बीच
पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ
था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर
चुका था और ना जाने कितनी ही बार उससे
टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे.
रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह
खेती करने पहुंचा पर जो सालों से होता आ
रहा था एक वही हुआ , एक बार फिर किसान
का हल पत्थर से टकराकर टूट गया.
किसान बिल्कुल क्रोधित हो उठा , और उसने मन
ही मन सोचा की आज जो भी हो जाए वह इस
चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर
फ़ेंक देगा.
वह तुरंत भागा और गाँव से ४-५
लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस
पत्त्थर के पास पहुंचा .
” मित्रों “, किसान बोला , ” ये देखो ज़मीन से
निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान
किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे जड़ से
निकालना है और खेत के बाहर फ़ेंक देना है.”
और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार
वार करने लगा, पर ये क्या ! अभी उसने एक-दो बार
ही मारा था की पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से
बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में
पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा ,”
क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच
में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक
मामूली सा पत्थर निकला ??”
किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह
एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल
वह बस एक छोटा सा पत्थर था !! उसे
पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने
का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुक्सान
उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने
उसका मज़ाक बनता .
Friends, इस किसान की तरह ही हम भी कई बार
ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं
को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने
की बजाये तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बात
की है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से
लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में
चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से
पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से
ठोकर मार कर आगे बढ़ सकते हैं.

यत्र नारीयस्तु पूजन्ते वसते तत्र देवताः



यत्र नारीयस्तु पूजन्ते वसते तत्र देवताः

नारी क्या है
१- पुरुष का नारी के समान कोई मित्र नहीं है
फिर चाहे बो किसी भी रूप में क्यूँ न हो,
माँ, बीबी, या दोस्त.
२- संसार - वाटिका में नारी सबसे उत्तम फूल है
जिसका लालित्य, जिसकी सुगंध और मनोहरता विचित्र है.


३- काव्य और प्रेम दोनों नारी- ह्रदय की संपत्ति है,
नर विजय का भूंखा होता है, और नारी समर्पण की
पुरुष लूटना चाहता है, नारी लुट जाना.

४- यदि संपूर्ण विश्व का राज्य भी मिले और नारी न हो तो
पुरुष भिक्षुक ही है, परन्तु अच्छे गुण वाली नारी भिक्षुक घर में हो तो
वह राजा है.

५- नारी प्रकृति की बेटी है, उस पर क्रोध न करो..
उसका ह्रदय कोमल है, उस पर विश्वास करो.

६- नारी महान आघातों को क्षमा कर देती है,
लेकिन तुच्छ चोटों को नहीं भूलती.

७- नारी वादा नहीं करती, परन्तु पुरुष के लिए
सब कुछ न्यौछावर कर देती.

प्यार से मेरा दिल मोम हो जाता है|



एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया| महिला अकेली थी, चोर ने छुरा दिखाकर कहा -"अगर तू शोर मचाएगी तो मैं तुझे मार डालूंगा|"
महिला बड़ी भली थी वह बोली -"मैं शोर क्यों मचाऊंगी! तुमको मुझसे ज्यादा चीजों की जरूरत है| आओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगी|"
उसके बाद उसने अलमारी का ताला खोल दिया और एक-एक कीमती चीज उसके सामने रखने लगी|चोर हक्का-बक्का होकर उसकी ओर देखने लगा| स्त्री ने कहा - "तुम्हें जो-जो चाहिए खुशी से ले जाओ, ये चीजें तुम्हारेकाम आएंगी| मेरे पास तोबेकार पड़ी हैं|"
थोड़ी देर में वह महिला देखती क्या है किचोर की आंखों से आंसू टपक रहे हैं और वह बिना कुछ लिए चला गया| अगले दिन उस महिला को एक चिट्ठी मिली| उस चिट्ठी में लिखा था --
'मुझे घृणा से डर नहीं लगता| कोई गालियां देता है तो उसका भी मुझ पर कोई असर नहीं होता| उन्हें सहते-सहते मेरा दिल पत्थर-सा हो गया है, पर मेरी प्यारी बहन, प्यार से मेरा दिल मोम हो जाता है| तुमने मुझ परप्यार बरसाया| मैं उसे कभी नहीं भूल सकूंगा|'
झूट की होती है बोहतात सियासत में
सच्चाई खाती है मात सियासत में
दिन होता है अक्सर रात सियासत में
गूँगे कर लेते हैं बात सियासत में
और ही होते हैं हालात सियासत में
जायज़ होती है हर बात सियासत में

सभी उसूलों वाले आदर्शों वाले
जोशीले और जज़्बाती नरों वाले
मर्दाना तेवर वाली मूँछों वाले
सच्चाई के बड़े बड़े दावों वाले
बिक जाते हैं रातों रात सियासत में
जायज़ होती है हरबात सियासत में

दिये तेल बिन जगमग जगमग जलते हैं
सूखे पेड़ भी बे मौसम ही फलते हैं
खोटे सिक्के खरे दाम में चलते हैं
लंगड़े लूले भी बल्लियों उछलते हैं
लम्बे हो जाते हैं हात सियासत में
जायज़ होती है हर बात सियासत में

वोटों के गुल जब कुर्सी पर महकेंगे
नोटों के बुलबुल हर जानिब चहकेंगे
बर्फ़ के तोदे अंगारों से दहकेंगे
ख़ाली पैमाने झूमेंगे बहकेंगे
होगी बिन बादल बरसात सियासत में
जायज़ होती है हर बात सियासत में

इंसाँ कहना पड़ता है शैतानों को
दाना कहना पड़ता है नादानों को
ख़्वाहिशात को, ख़्वाबों को, अरमानों को
रोकना पड़ता है उमड़े तूफ़ानों को
काम नहीं आते जज़्बात सियासत में
जायज़ होती है हर बात सियासत में

जितने रहज़न हैं रहबर हो जाते हैं
पस मंज़र सारे मंज़र हो जाते हैं
पैर हैं जितने भी वो सर हो जाते हैं
बोने सारे क़द आवर हो जाते हैं
बढ़ते हैं सब के दरजात सियासत में
जायज़ होती है हर बात सियासत में

जब हालात की सख़्ती से घबरा जाऊँ
ख़ुशहाली की मंज़िल मैं भी पा जाऊँ
सच्चे रस्ते से मैं भी कतरा जाऊँ
जी करता है राही मैं भी आ जाऊँ
मार के सच्चाई को लात सियासत में
जायज़ होती है हर बात सियासत में
एक बार जरुर पढ़े....

शायद ज़िन्दगी बदल रही है!! जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ
करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले,
सब कुछ, अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर
भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है... जब मैं छोटा था, शायद शाम बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात
हो जाती है. शायद वक्त सिमट रहा है.. जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर, वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की
बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर जाने कहाँ है, जब भी "ट्रेफिक " पे मिलते हैं
"हाई" करते हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते
हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं.. जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक,
टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत
ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है. जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर
कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र
गयी मेरी यहाँ आते आते " जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे
हैं..

राजस्थानी व्यापारी

एक राजस्थानी व्यापारी मुबंई की बैँक मेँ गया,
और बैँक मेनेजर से रु.50,000 का लोन मांगा.
बैँक मेनेजर ने गेरेँटर मांगा.
राजस्थानी ने अपनी BMW कार जो बैँक के
सामने पार्क की हुई थी उसको गेरेँटी के तरीके से
जमा करवा दी.
मेनेजर ने गाडी के कागज चैक किए,
और लोन देकर गाडी को कस्टडी मेँ खडी करने के
लिए कर्मचारी को सुचना दी.
राजस्थानी 50,000 रुपये लेकर चला गया.
बैँक मेनेजर और कर्मचारी उस राजस्थानी पर
हँसने लगे और बात करने लगे कि यह
करोडपति होते हुए भी अपनी गाडी सिर्फ
50,000 मेँ गिरवी रख कर चला गया.
कितना बेवकुफ आदमी है.
उसके बाद 2 महीने बाद राजस्थानी वापस बैँक मे
गया और लोन की सभी रकम देकर
अपनी गाडी वापस लेने की इच्छा दर्शायी.
बैँक मेनेजर ने हिसाब-किताब किया और बोला :
50,000 मुल रकम के साथ 1250 रुपये ब्याज.
राजस्थानी ने पुरे पैसे दे दिए.
बैँक मेनेजर से रहा नही गया और उसने पुछा :
कि आप इतने करोडपति होते हुए
भी आपको 50,000 रुपयो कि जरुरत कैसे
पडी.?
राजस्थानी ने जवाब दिया : मैँ राजस्थान से
आया था.
मैँ अमेरिका जा रहा था.
मुबंई से मेरी फ्लाइट थी.
मुबंई मेँ मेरी गाडी कहा पार्क करनी है यह
मेरी सबसे बडी प्रोबलम थी.
लेकिन इस प्रोबलम को आपने हल कर दिया.
मेरी गाडी भी सेफ कस्टडी मेँ दो महीने तक संभाल
के रखा और 50,000 रुपये
खर्च करने के लिए भी दिए दोनो काम करने
का चार्ज लगा सिर्फ 1250 रुपये.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद.!
इसिलिए कहते दोस्तो कि "जहा ना पहुचे कोई
गाडी वहा पहुच जाता है मारवाडी"

भारतीय विवाह परम्परा मे गौत्र

अब तो ये वैज्ञानिकों ने भी माना है की सगोत्र विवाह से शारीरिक रोग , अल्पायु , कम बुद्धि, रोग निरोधक क्षमता की कमी, अपंगता, विकलांगता सामान्य विकार होते हैं. भारतीय परम्परा मे सगोत्र विवाह न होने का यह भी एक परिणाम है कि सम्पूर्ण विश्व मे भारतीय सब से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं.
विभिन्न समुदायों में गौत्र की संख्या अलग अलग है। प्राय: तीन गौत्र को छोड़ कर ही विवाह किया जाता है एक स्वयं का गौत्र, दूसरा माँ का गौत्र (अर्थात माँ ने जिस कुल/गौत्र में जन्म लिया हो) और तीसरा दादी का गौत्र। कहीं कहीं नानी के गौत्र को भी माना जाता है और उस गौत्र में भी विवाह नहीं होता। किन्तु यह गौरव शाली परंपरा को धीरे धीरे आधुनिकता ने नाम पर नष्ट करने का प्रयास हो रहा है।
पहले 6 पीढ़ियों तक निषेध था . अब तो आधुनिक विज्ञान भी मानता है की ६ पीढ़ी तक जीन्स अपना असर दिखा सकते है . वह सुप्त अवस्था से जागृत हो सकते है. हमें गर्व है अपने वैज्ञानिक धर्म पर .........

beta beti bhedbhav


एक लडकी ससुराल चली गई,

एक लडकी ससुराल चली गई,
कल की लडकी आज बहु बन गई.
कल तक मौज करती लडकी,
अब ससुराल की सेवा करती बन गई.
कल तक तो ड्रेस और जीन्स पहनती लडकी, आज साडी पहनती सीख गई.
पियर मेँ जैसे बहती नदी,
आज ससुराल की नीर बन गई.
रोज मजे से पैसे खर्च करती लडकी, आज साग-सब्जी का भाव करना सीख गई.
कल तक FULL SPEED स्कुटी चलाती लडकी, आज BIKE के पीछे बैठना सीख गई.
कल तक तो तीन टाईम फुल खाना खाती लडकी, आज ससुराल मेँ तीन टाईम का खाना बनाना सीख गई.
हमेशा जिद करती लडकी,
आज पति को पुछना सीख गई.
कल तक तो मम्मी से काम करवाती लडकी, आज सासुमा के काम करना सीख गई.
कल तक तो भाई-बहन के साथ झगडा करती लडकी, आज ननंद का मान करना सीख गई.
कल तक तो भाभी के साथ मजाक करती लडकी, आज जेठानी का आदर करना सीख गई.
पिता की आँख का पानी,
ससुर के ग्लास का पानी बन गई.
फिर भी लोग कहते मेरी बेटी ससुराल जाने लग गई. यह बलिदान केवल लडकी ही कर सकती है ना..

चटख-बंधेजी चुनड़ी सोवै,

चटख-बंधेजी चुनड़ी सोवै, मन सूओ मंडरावै।
नथली झूलै नाक, गलै में सोवै नोसेर हार।
जुलम करैं आंख्यां को काजल, मैंदी रचै सुप्यार।।
नेह-लाज ममता-समता को, घमों सुहाणो रूप
पल्लां दादर मोर मंड्या रह, मोर पंख मंड गाती।
रतन कचोलै भीजै मैंदी, जल जमना को नीर।
चढ़ै चाव गुलनार हथेल्यां, महंदी रंग अबीर।।
मिला नेह रस मांडै मैंदी, करती जतन सहेल्यां।।
मन चोवै पगल्या राचेड़ा, चूम्यां सरै हथेल्यां।।
बाग-बगीचा उगै हथेल्यां, बिन क्यारी बिन माटी।
मांग भरै कुम-कुम सै, माथै बिंदिया रै कुम-कुम की।
बीच लटकतो मांग टीको, आंख झरी काजल की।
चुनड़ी चुड़लो होठां लाली, अर सोला सिणगार।
मंगल सूत्र पह्रावौ सज-धज, सै सुहाग कै लार।।
रचै घणी घुलवां रंग मैंदी, हाथ-पगां लग भाती।

सजधज चाल्यी गौरड़ी , जद नैणा मुलकाय !

सजधज चाल्यी गौरड़ी ,
जद नैणा मुलकाय !
गरियाळा की मौरणी ,
रुणझुण करती जाय !!1!!
!
कजरारा नैणा सूँ या ,
चोखा हुकुम चलाय !
सगळा रो दिल जोर सूँ ,
अब तो धड़क्यो जाय !!2!!
!
मनड़ै की या बादळी ,

प्रीत उफणती जाय !
बादलियै रा मनड़ा नै ,
अब चोखो धड़काय !!3!!
!
नैण बस्यी या कामणी ,
मनड़ा नै भरमाय !
एक इसारो देकर वा ,
जोबन नै तरसाय !!4!!
!
खनखन करती चूड़ियाँ ,
या खन खन खनकाय !
बादलियै रा मनड़ै मेँ
प्रीत उफाणै आय !!5!
 

सावण आयो सायबा, दूर देश मत जाय !

सावण आयो सायबा, दूर देश मत जाय !
तन भीज्यो बरसात में, मन में लागी लाय !!
सावण घणो सुहावणो, हरियो भरियो रूप !
निरखूं म्हारो सायबो, सावण घणो कुरूप !!
साजन उभा सामने, निरखे धण रो रूप !
बादलियाँ रे बीच में, मधुरी मधुरी धूप !!
रसियां को मन चकरी करतो, घाघरियै को घरे।
एक बीनी छप्पन छैला, नाच नचावै फेर।।
छलकै जोबन अंग अंग सै, संग चंग की थाप।
गींदड़ घलै नंगारो बाजै, मुख सै फूटै राग।।
अलमस्ती कै आलम में, मदमस्ती की परिपाटी।
जुलमी सावन बड़ो रंगीलो, वाह भई राजस्थान री धरती ।। 

सज-धज बैठी गोरड़ी, कर सोल्हा सिणगार ।

सज-धज बैठी गोरड़ी, कर सोल्हा सिणगार ।
त र सै घट रो मोर मन, सोच -सोच भरतार ।|
नैण कटारी हिरणी, बाजूबंद री लूम ।
पतली कमर में खणक रही, झालर झम-झम झूम ।|
माथे सोहे राखड़ी, दमके ज्यों रोहिड़ा रो फूल।
कानां बाटा झूल रह्या , सिर सोहे शीशफूल। ||
झीणी-झीणी ओढ़णी,पायल खणका दार ।
बलखाती चोटी कमर, गर्दन सुराहीदार ||
पण पिया बिना न हो सके पूरण यो सिणगार |
पधारोला कद मारुसा , था बिन अधूरी नार ।|
सखी- साथिन में ना आवडे., ना भावे कोई कोर ।
सासरिये में भी ना लगे, यो मन अलबेलो चोर ||
अपणो दुःख किण सूं कहूँ , कुण जाण म्हारी पीर ।
अरज सुण नै बेगा आवो, छोट की नणंद का बीर ||
मरवण था बिन सुख गयी, पिला पड़ ग्याँ गात ।
दिन तो फेर भी बितज्या, या साल्ल बेरण रात

चौमासो

चौमासो [ कविता ]

सावण भादो सजल सुरंगा, आसोजां पुरवाई।
किरै फलै फली बध बेलां जामै, लांप मतीरा मिट्ठा।
फलै फली बध बेलां जामै, लांप मतीरा मिट्ठा।
हवा चालतां लुलै कड़बली, तान तोड़ाता सिट्टा।।
उमड़़ै ल्हैर हवा चालै, लुल पली फसल लैरावै। 

हंसतो बिछ्या गलीचां पर, मन लोट-पलेटा खावै।।
रलका दे बरसावै करसो, घमक बाजरो बरसै।
करै उचावण मनकोरी, मन नाज बरसतां हरसै।।
मीठा लाल मतीरा काचर, ककड़ी मीठी-खाटी।
धरा तपै बैसाख जेठ, जद धिर चोमासो आवै।
मेट बाबो सिर पोट बांध, धर फली काचरा ल्यावै।।
झुलस मिटै धरती की, सावण बूढ़ै करै फुवार।
काजलिया बादल बरसै, रै घटाटोप इकसार।।
झूलै पर चढ़ उड़ै उमंगां, झिरमिर बरसै मेह।
सावण बरस्यां मिटै सायबा, लगी धरा की जूल।
मुलकै ऊबा खड्या रुंखड़ा, बेलां पसरै फूल।।
घमओ तावड़़ो पड़ै जेठ में, बदन ज्याय कुमलाय।
आस बंधै आसाढ़ आवतां, मिटै हिये की लाय।।

Saturday, June 29, 2013

जय श्री शनिदेव महाराज

श्री शनिदेव महाराज
जय शनिश्चराय
।। नमामि शनैश्वरम।।
भ नीलांजन समामासं रविपुत्रम
यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं
नमामि रानेश्वरम।।
मंत्र- ऊँ प्रां प्री प्रों स:
शनेश्चराय नम:
श्री शनि चालीसा
श्री गुरू पद को परस कर धर गणेंश
का ध्यान।
शनि चालीसा रचूं मै, निज मत के
अनुमान।।
जय जय श्री शनिदेव महाराज। जय
कृ
।। सर्वम शिवमयम जगत।।
कपर्र गौरं करूणावतारं संसार
सारं भुजगेन्द्र हारम।
सदावसतं दयारविन्दे,भवं
भवानी सहितं नमामि।।
वन्दे देवमुमापति सुरगुरूं, वन्दे
जगतकारणम।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे
पशुनां पतिम।।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं, वन्दे
शिवं शंकरम।।
कण्डे यस्य लसत कराल गरलं
गंगजलं मस्तके
वामांगे गिरिराजराज
तनया जाया भवानीसती,
ननिद स्कंद गणाधिराज
सहिता श्री विश्वनाथ प्रभो
काशी मंदिर संसिथतो अखिल
गुरूर्देयात सदा मंगलम।।
आत्मा त्वं गिरिजा मति:,
सहचरा:, प्राणा: शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना,
निद्रा समाधि सिथति।
संचार प्रदयो प्रदक्षिण विधि:
स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यधत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम।।
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजे
वा, श्रवण नयनजं
वा मानसंवापराधम।
विहितमविहितं
वा सर्वमेतत्क्षमस्व, जय जय
करूणाब्धे श्रीमहादेव शंभो।
गुरूस्तोत्रम
गुरूर् गुरूर्विष्णु:
गुरूर्देवा महेश्वर:।
गुरू साक्षात परब्तस्मै
श्रीगुरवे नम:।।1।।
अज्ञानतिमिरान्धस्य
ज्ञाना´जनशलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै
श्रीगुरवे नम:।।2।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन
चराचरम।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै
श्रीगुरवे नम:।।3।।
ध्यान मूलं गुरूमूर्ति:,पूजामूलं
गुरू: पदम।
मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं,
मोक्षमूलं गुरूकृपा।।4।।
शनि शांति के उपाय
मंत्र-ऊँ प्रां प्रीं प्रों स:
शनेश्चराय नम:
दशरथ कृत स्त्रोत का पाठ,
शनिस्त्रोत शनि चालीसा,
शनिकवच, बजरंगबाण, हनुमान
चालीसा, सुन्दरकाण्ड,
और हनुमान बाहुक का पाठ
करना चाहिए। काले घोड़ो
की नाल का छल्ला धारण
करना चाहिए।
शनिदेव भैरवदेव एवं हनुमान
जाग्रत देंव माने जाते हैं।

"क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?"

एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ
गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक
ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपसमें बात
करते-करते एक दूसरे पर क्रोधितहो उठे और
जोर-जोर से चिल्लाने लगे.
संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से
पुछा;
"क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?"
शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया,
"क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
"पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है
तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है,
जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह
सकते हैं", सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया.
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास
किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.
अंततः सन्यासी ने समझाया…
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके
दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं. और इस
अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये
नहीं सुन सकते… वे जितना अधिक क्रोधित होंगे
उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक
हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से
चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे
चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं,
क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच
की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”
सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक
दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं
तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे
सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने
वाले की बात समझ जाते हैं.”

सासू जितरे सासरो रे म्हारी, मावड जितरे पीयर

मित्रता के दौर में स्वागत है आपका, फेसबुक के छोर में स्वागत है आपका !
हो टिप्पणी के साथ ही चटका पसंद का, प्रेम के इस जोर में स्वागत है आपका !!
फेसबुक की वाल नही, ये मेरे हृदय का अंकन है, इस पर मेरी हर एक पोस्ट, मेरे हृदय का दर्पण है !
सहेज रखोगे अपने मन मे, आशा यही मैं करता हूँ और मेरी ओर से यही शब्द, स्वागत का टीका चंदन है !!

सासू जितरे सासरो रे म्हारी, मावड जितरे पीयर
सासू जितरे सासरो रे म्हारी, मावड जितरे पीयर

मौत ने फिर गीत गाया

मौत ने फिर गीत गाया 

बरसात की बहती नदी में ,ज़िन्दगी मौत बन बह गई 
कैसी यह प्रकृति की माया ,प्रलयंकर हुयी इंसानी छाया 
ज़िन्दगी की बोझिल लाशों पर ,बादलों का दिल झल्लाया 
बरसात जो प्रलय लाया ,मौत ने फिर गीत गाया !!

मौषम ने आंसू बहाया ,बादलों ने साज सजाया 
धरा की आहत भावना को ,प्रकृति ने क्या खूब जमाया 
चीर कर दिल आसमान का ,प्रकृति के जख्म जाग उठे 

मौत की उफनाई मतवाली नदी ,प्रलय का वीभत्स राग गा उठी 
लाशों का मंजर विनाशक समन्दर ,कालचक्र के ऐसे तुफानो से 
मौत का नर्तन छाया है ,ओह!इंसान बहुत घबराया 
मौत ने फिर गीत गाया !!

जीवन सी बहती नदियों ने ,इंसान को जीना सिखाया 
नव सृजन से प्रलय तक ,इंसान ही प्रकृति की सुर्वोत्तम छाया
पर कुत्सित इंसान की स्वार्थी माया,मौत का प्रलयकारी साज बिछाया 
प्रकृति को हरदम जो बिखराया ,मौन प्रकृति कुछ कह ना पाया 
मासूम जीवन मौत में समा गई ,कितने ही बेटों से माँ जुदा हुयी 
ज़िन्दगी अब तार तार हुई ,ओह!मौत की यह बाजार हुई

प्रकृति का भी दिल रोता है,जब इंसान जीवन खोता है 
प्रकृति को जो अक्सर मारता है ,जीवनदायिनी भी मौत बन जाती है 
उन्मुक्त प्रलय राग गाती है ,हर बार इंसान को समझाती है 
कभी बरसात बन आसमान से ,मौत प्रलय मचा जाती है 
फिर प्रकृति ने समझाया 
मौत ने फिर गीत गाया!!