Monday, September 26, 2016

भ्रष्टाचार भारत में एक सांस्कृतिक मसला है.

भ्रष्टाचार भारत में एक सांस्कृतिक मसला है. भारतीयों को इसमें कुछ भी अजीब नहीं लगता. वे भ्रष्टों को सुधारने की कोशिश नहीं करते, उन्हें सहन करते रहते हैं. भारतीय भ्रष्ट क्यों है, इसे समझने के लिए आइए उनके आचरणों और प्रवृतियों पर एक नजर डालें. पहली बात, भारत में धर्म सौदेबाजी का स्वरूप लिए हुए. भारतीय अपने देवी-देवताओं को तरह का चढ़ावा चढ़ाते हैं और बदले में उनसे खास तरह का इनाम चाहते हैं. ऐसा व्यवहार बताता है कि नाकाबिल लोग अपने लिए पक्षपात की कामना कर रहे है. मंदिर से बाहर दुनिया में ऐसी सौदेबाजी को ''रिश्वत'' कहते हैं.

अमीर भारतीय मंदिरों में कैश नहीं देता, वह सोने का मुकुट या ऐसे ही आभूषण वगैरह देता है. उसके उपहार गरीबों का पेट नहीं भर सकते, वे तो देवता के लिए ही होते हैं. उसे लगता है कि अगर यह किसी जरूरतमंद व्यक्ति को मिल गया तो बेकार चला जाएगा. जून 2009 में कर्नाटक के एक मंत्री जी जर्नादन रेड्डी ने तिरूपति मंदिर में 45 करोड़ रूपए मूल्य का सोने और हीरे से बना मुकुट दान किया. भारत के मंदिरों में इतना धन इकट्ठा होता है कि व समझ ही नहीं पाते, इसका क्या करें. मंदिरों के तहखानों में अरबों की संपत्ति पड़ी-पड़ी जंग खा रही है. यूरोपीय भारत आए तो उन्होंने स्कूल बनवाए , लेकिन भारतीय यूरोप-अमेरिका जाते हैं तो वे मंदिर बनवाते है.

भारतीयों को लगता है कि जब भगवान भी कुछ भला करने के लिए चढ़ावा स्वीकार करते है तो हमारे ऐसा करने में क्या हर्ज है. यही वजह है कि भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्टाचार में शामिल हो जाते हैं. भारतीय संस्कृति ऐसे आचरण के लिए गुंजाइश बनाती है. इसमें नैतिक तौर पर कलंक जैसी कोई बात नहीं होती. पूर्णतया भ्रष्ट जयललिता इसलिए सत्ता में वापस लौट आती है. पश्चिम में आप इसकी कल्पना तक नहीं कर सकते. 

भ्रष्टाचार को लेकर भारत की नैतिक अस्पष्टता इसके इतिहास में भी झलकती है. इसका इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा है जिनमें शहरो और राज्यों के पहरेदारों ने पैसे खाकर हमलावरों के लिए गेट खोल दिए और सेनापतियों ने रिश्वत लेकर समर्पण कर दिया. भारतीयों के भ्रष्ट चरित्र की वजह से इस महादेश में युद्ध काफी कम में हुए.

प्राचीन यूनान और आधुनिक यूरोप के मुकाबले भारतीयों ने काफी कम लड़ाइयां लड़ी है. नादिरशाह को तुर्की में भीषण लड़ाई लड़नी पड़ी. मगर भारत में लड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ी. सेनाओं को विदा करने के लिए यहां रिश्वत ही काफी थी. पैसे खर्च करने को तैयार कोई भी हमलावर भारत के राजाओं को सत्ता से बेदखल कर सकता था, भले उनके पास दसियों हजार की फौज क्यों न हो. पलासी की लड़ाई में भी भारतीयों की तरफ से कोई प्रतिरोध नहीं हुआ. क्लाइव ने मीर जाफर की मुट्ठी गर्म कर दी और पूरा बंगाल 3000 लोगों के सामने बिछ गया.

सवाल उठता है कि भारत में ऐसी सौदेबाजी की संस्कृति क्यों है, जबकि अन्य सभ्य देशों में यह नहीं है? भारतीयों का इस मान्यता में यकीन नहीं है कि अगर सभी लोग नैतिक आचरण करें तो सबकी उन्नति होगी. उनकी जाति व्यवस्था उन्हें एक-दूसरे से अलग करती है. वे नहीं मानते कि सभी मनुष्य समान है. इसकी परिणति उनके विभाजन और अन्य धर्मो की ओर पलायन में हुई. कई हिंदुओं ने सिख, जैन, बौद्ध आदि के रूप में अपने अलग धर्म बना लिए और बहुत सारे ईसाइयत तथा इस्लाम की ओर चले गए. इस सबका नतीजा यह हुआ कि भारतीयों का एक-दूसरे पर विश्वास नहीं रहा. भारतीय तो यहां कोई रहा ही नहीं. हिंदू , मुस्लिम, ईसाई जितने चाहो ढूंढ लो. भारतीय भूल गए कि 1400 साल पहले वे सब एक ही पंथ के थे. यह विभाजन एक बीमार संस्कृति के रूप में सामने आया. असमानता ने भ्रष्ट समाज को जन्म दिया. नतीजा यह है कि भारत में हर कोई हर किसी के खिलाफ है, सिवाय भगवान के और भी रिश्वतखोर है.

Tuesday, September 6, 2016

hindi english में शिक्षा पर महान व्यक्तियों के विचार

Quote 1: A human being is not attaining his full heights until he is educated.
In Hindi : बिना शिक्षा प्राप्त किये कोई व्यक्ति अपनी परम ऊँचाइयों को नहीं छू सकता.
Quote 2 : An educated people can be easily governed.
In Hindi : शिक्षित व्यक्ति को आसानी से शाषित किया जा सकता है.
Quote 3 :Education is the ability to listen to almost anything without losing your temper or your self-confidence.
In Hindi : शिक्षा अपने क्रोध  या अपने आत्म विश्वास को खोये बिना लगभग कुछ भी सुनने की क्षमता है.
Quote 4 : Education is the key to unlock the golden door of freedom.
In Hindi : शिक्षा स्वतंत्रता के स्वर्ण द्वार खोलने के कुंजी है.
Quote 5 : Education is what survives when what has been learned has been forgotten.
In Hindi : जो आपने सीखा है उसे भूल जाने के बाद जो रह जाता है वो शिक्षा है.
Quote 6 : Education… has produced a vast population able to read but unable to distinguish what is worth reading.
In Hindi : शिक्षा ने ऐसी बहुत बड़ी आबादी पैदा की है जो पढ़ तो सकती है पर ये नहीं पहचान सकती की क्या पढने लायक है.
Quote 7 : Education’s purpose is to replace an empty mind with an open one.
In Hindi : शिक्षा का मकसद है एक खाली दिमाग को खुले दिमाग में परिवर्तित करना.
Quote 8 : He who opens a school door, closes a prison.
In Hindi : वो जो स्कूल के दरवाजे खोलता है, जेल के दरवाजे बंद करता है.
Quote 9 : In the first place, God made idiots. That was for practice. Then he made school boards.
In Hindi : पहले भगवान ने बेवकूफ लोग बनाये.वो अभ्यास के लिए था. फिर उन्होंने स्कूल बोर्ड्स बनाये.

Quote 10 : It is a thousand times better to have common sense without education than to have education without common sense.
In Hindi : बिना शिक्षा के कामन सेन्स होना, शिक्षा प्राप्त करके भी कामन सेन्स ना होने से हज़ार गुना बेहतर है.
Quote 11: Responsibility educates.
In Hindi : जिम्मेदारी शिक्षित करती है.
Quote 12: The illiterate of the future will not be the person who cannot read. It will be the person who does not know how to learn.
In Hindi : भविष्य में वो अनपढ़ नहीं होगा जो पढ़ ना पाए. अनपढ़ वो होगा जो ये नहीं जानेगा की सीखा कैसे जाता है .
Quote 13: The object of education is to prepare the young to educate themselves throughout their lives.
In Hindi : शिक्षा का उद्देश्य है युवाओं को खुद को जीवन भर शिक्षित करने के लिए तैयार करना .
Quote 14: The only real failure in life is one not learned from.
In Hindi : जीवन में बस वही वास्तविक असफलता है जिससे आपने सीख नहीं ली.
Quote 15 : The only thing that interferes with my learning is my education.
In Hindi : केवल एक चीज जो मुझे सीखने में हस्तक्षेप करती है वो है मेरी शिक्षा.
Quote 16 : The roots of education are bitter, but the fruit is sweet.
In Hindi : शिक्षा की जड़ कडवी है, पर उसके फल मीठे हैं.
Quote 17 : The simplest schoolboy is now familiar with truths for which Archimedes would have sacrificed his life.
In Hindi : स्कूल का सबसे सीधा लड़का भी अब उस सत्य को जानता है जिसके लिए आर्कमडीज ने अपना जीवन बलिदान कर दिया होता.
Quote 18 : To the uneducated, an A is just three sticks.
In Hindi : एक अशिक्षित व्यक्ति के लिए , “A” का मतलब बस तीन डंडे हैं.

Quote 19 : True, a little learning is a dangerous thing, but it still beats total ignorance.
In Hindi : सच है, अल्प ज्ञान खतरनाक है,पर फिर भी ये पूर्ण रूप से अज्ञानी होने से बेहतर है.
Quote 20: When a subject becomes totally obsolete we make it a required course.
In Hindi : जब कोई विषय पूरी तरह से अप्रचलित हो जाता है तो हम उसे आवश्यक पाठ्यक्रम बना देते हैं .Quote 21: An educated person is one who has learned that information almost always turns out to be at best incomplete and very often false, misleading, fictitious, mendacious – just dead wrong.
In Hindi : एक शिक्षित व्यक्ति वो है जिसने जान लिया है कि सूचना लगभग हमेशा ही अधूरी , अक्सर गलत ,भटकाने वाली,
Quote 22: A liberal education is at the heart of a civil society, and at the heart of a liberal education is the act of teaching.
In Hindi : एक उदार समाज के मूल में उदार शिक्षा होती है ,और एक उदार शिक्षा के मूल में शिक्षण का कार्य होता है.
Quote 23: America is becoming so educated that ignorance will be a novelty. I will belong to the select few.
In Hindi : अमेरिका इतना शिक्षित होता जा रहा है कि अज्ञानता एक नयी बात होगी. मैं कुछ गिने चुने लोगो में रहना चाहूँगा.
Quote 24: An education isn’t how much you have committed to memory, or even how much you know. It’s being able to differentiate between what you know and what you don’t.
In Hindi : का ये मतलब नहीं है कि आपने कितना कुछ याद किया हुआ है, या ये कि आप कितना जानते हैं. इसका मतलब है आप जो जानते हैं और जो नहीं जानते हैं उसमे अंतर कर पाना.
Quote 25: Children have to be educated, but they have also to be left to educate themselves.
In Hindi : बच्चों को शिक्षित किया जाना चाहिए , पर उन्हें खुद को शिक्षित करने के लिए भी छोड़ दिया जाना चाहिए.
Quote 26: Develop a passion for learning. If you do, you will never cease to grow.
In Hindi : सीखने के लिए एक जूनून पैदा कीजिये. यदि आप कर लेंगे तो आपका विकास कभी नहीं रुकेगा.
Quote 27: Education is a better safeguard of liberty than a standing army.
In Hindi : किसी सेना की अपेक्षा शिक्षा स्वतंत्रता के लिए एक बेहतर सुरक्षा है.
Quote 28: Education is an admirable thing, but it is well to remember from time to time that nothing that is worth knowing can be taught.
In Hindi : शिक्षा एक सराहनीय चीज है, पर समय समय पर ये बात याद कर लेनी चाहिए की ऐसा कुछ भी जो जानने योग्य है उसे सिखाया नहीं जा सकता.
Quote 29 : Education is learning what you didn’t even know you didn’t know.
In Hindi : शिक्षा का अर्थ है वो जानना ,जो आपको पता भी नहीं था कि वो आपको पता नहीं था.
Quote 30 : Education is not preparation for life; education is life itself.
In Hindi : शिक्षा ज़िन्दगी की तैयारी नहीं है; शिक्षा खुद ज़िन्दगी है.
Quote 31: Education is not the filling of a pail, but the lighting of a fire.

In Hindi : शिक्षा बाल्टी भरना नहीं है, ये तो आग जलाना है.

यूवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है. युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं

सौरभ मालवीय
यूवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है. युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं. युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं. युवा देश और समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.  युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं. उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं. समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है. देश के स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं ने अपनी शक्ति का परिचय दिया था. 

भारत एक विकासशील और बड़ी जनसंख्या वाला देश है. यहां आधी जनसंख्या युवाओं की है. देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है. यहां के लगभग 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं. यह स्थिति वर्ष 2045 तक बनी रहेगी. विश्व की लगभग आधी जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है. अपनी बड़ी युवा जनसंख्या के साथ भारत अर्थव्यवस्था नई ऊंचाई पर जा सकता है. परंतु इस ओर भी ध्यान देना होगा कि आज देश की बड़ी जनसंख्या बेरोजगारी से जूझ रही है. भारतीय संख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. देश में बेरोजगारों की संख्या 11.3 करोड़ से अधिक है. 15 से 60 वर्ष आयु के 74.8 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, जो काम करने वाले लोगों की संख्या का  15 प्रतिशत है. जनगणना में बेरोजगारों को श्रेणीबद्ध करके गृहणियों, छात्रों और अन्य में शामिल किया गया है. यह अब तक बेरोजगारों की सबसे बड़ी संख्या है. वर्ष 2001 की जनगणना में जहां 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वहीं 2011 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई. बेरोजगार युवा हताश हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में युवा शक्ति का अनुचित उपयोग किया जा सकता है. हताश युवा अपराध के मार्ग पर चल पड़ते हैं. वे नशाख़ोरी के शिकार हो जाते हैं और फिर अपनी नशे की लत को पूरा करने के लिए अपराध भी कर बैठते हैं. इस तरह वे अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं. देश में हो रही 70 प्रतिशत आपराधिक गतिविधियों में युवाओं की संलिप्तता रहती है.

देखने में आ रहा है कि युवाओं में नकारात्मकता जन्म ले रही है.  उनमें धैर्य की कमी है. वे हर वस्तु अति शीघ्र प्राप्त कर लेना चाहते हैं. वे आगे बढ़ने के लिए कठिन परिश्रम की बजाय शॊर्टकट्स खोजते हैं. भोग विलास और आधुनिकता की चकाचौंध उन्हें प्रभावित करती है. उच्च पद, धन-दौलत और ऐश्वर्य का जीवन उनका आदर्श बन गए हैं. अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में जब वे असफल हो जाते हैं, तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है. कई बार वे मानसिक तनाव का भी शिकार हो जाते हैं. युवाओं की इस नकारत्मकता को सकारत्मकता में परिवर्तित करना होगा.

यदि युवाओं को कोई उपयुक्त कार्य नहीं दिया गया, तब मानव संसाधनों का भारी राष्ट्रीय क्षय होगा. उन्हें किसी सकारात्मक कार्य में भागीदार बनाया जाना चाहिए. यदि इस मानव शक्ति की क्रियाशीलता को देश की विकास परियोजनाओं में प्रयुक्त किया जाए, तो यह अद्भुत कार्य कर सकती है. जब भी किसी चुनौती का सामना करने के लिए देश के युवाओं को पुकारा गया, तो वे पीछे नहीं रहे. प्राकृतिक आपदाओं के समय युवा आगे बढ़कर अपना योगदान देते हैं, चाहे भूकंप हो या बाढ़. युवाओं ने सदैव पीड़ितों की सहायता में दिन-रात परिश्रम किया.

युवाओं के उचित मार्गदर्शन के लिए अति आवश्यक है कि उनकी क्षमता का सदुपयोग किया जाए.  उनकी सेवाओं को प्रौढ़ शिक्षा तथा अन्य सराकारी योजनाओं के तहत चलाए जा रहे अभियानों में प्रयुक्त किया जा सकता है. वे सरकार द्वारा सुनिश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के दायित्व को वहन कर सकते हैं. तस्करी, काला बाजारी, जमाखोरी जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने में उनकी सेवाएं ली जा सकती हैं. युवाओं को राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगाया जाए. राष्ट्र निर्माण का कार्य सरल नहीं है. यह दुष्कर कार्य है. इसे एक साथ और एक ही समय में पूर्ण नहीं किया जा सकता. यह चरणबद्ध कार्य है. इसे चरणों में विभाजित किया जा सकता है. युवा इस श्रेष्ठ कार्य में अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार भाग ले सकते हैं. ऐसी असंख्य योजनाएं, परियोजनां और कार्यक्रम हैं, जिनमें युवाओं की सहभागिता सुनिश्चत की जा सकती है. युवा समाज में समाजिक, आर्थिक और नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. वे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं और अंधविश्वास को समाप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं. देश में दहेज प्रथा के कारण न जाने कितनी ही महिलाओं पर अत्याचार किए जाते हैं, यहां तक कि उनकी हत्या तक कर दी जाती है. महिलाओं के प्रति यौन हिंसा से तो देश त्रस्त है. नब्बे साल की वॄद्धाओं से लेकर कुछ दिन की मासूम बच्चियों तक से दुष्कर्म कर उनकी हत्या कर दी जाती है. डायन प्रथा के नाम पर महिलाओं की हत्याएं होती रहती हैं. अंधविश्वास में जकड़े लोग नरबलि तक दे डालते हैं. समाज में छुआछूत, ऊंच-नीच और जात-पांत की खाई भी बहुत गहरी है. दलितों विशेषकर महिलाओं के साथ अमानवीयता व्यवहार की घटनाएं भी आए दिन देखने और सुनने को मिलती रहती हैं, जो सभ्य समाज के माथे पर कलंक समान हैं. आतंकवाद के प्रति भी युवाओं में जागृति पैदा करने की आवश्यकता है. भविष्य में देश की लगातार बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता होगी. कृषि में उत्पादन के स्तर को उन्नत करने से संबंधित योजनाओं में युवाओं को लगाया जा सकता है. इससे जहां युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं देश और समाज हित में उनका योगदान रहेगा.

केवल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाकर स्वामी विवेकानन्द जी के स्वप्न को साकार नहीं किया किया जा सकता और न ही युवाओं के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार वर्ष 1985 को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया.  पहली बार वर्ष 2000 में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरंभ किया गया था. संयुक्त राष्ट्र ने 17 दिसंबर 1999 को प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का अर्थ है कि सरकार युवा के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे. भारत में इसका प्रारंभ वर्ष 1985 से हुआ, जब सरकार ने स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. युवा दिवस के रूप में स्वामी विवेकानन्द का जन्मदिवस चुनने के बारे में सरकार का विचार था कि स्वामी विवेकानन्द का दर्शन एवं उनका जीवन भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है. इस दिन देश भर के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में कई प्रकार के कार्यक्रम होते हैं, रैलियां निकाली जाती हैं, विभिन्न प्रकार की स्पर्धाएं आयोजित की जाती है, व्याख्यान होते हैं तथा विवेकानन्द साहित्य की प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं.
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था-
 'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।'
अर्थात उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ.'

निसंदेह, युवा देश के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है. युवाओं को देश के विकास के लिए अपना सक्रिय योगदान प्रदान करना चाहिए. समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र निर्माण के कार्यों में युवाओं को सम्मिलित करना अति महत्वपूर्ण है तथा इसे यथाशीघ्र एवं व्यापक स्तर पर किया जाना चाहिए. इससे एक ओर तो वे अपनी सेवाएं देश को दे पाएंगे, दूसरी ओर इससे उनका अपना भी उत्थान होगा.

Monday, September 5, 2016

मंच-संचालन

नीचे लिखा गया लेखा, मैंने अपने मौसाजी के रिटायरमेंट पार्टी के लिए तैयार किया था जो कि महाविद्यालय के प्राभारी थे |इसमें हमने महाविद्यालय को उनका परिवार बताया था जहाँ कुछ उनके गुरु एवम शिष्य के स्थान पर थे, कुछ बड़े भाई, कुछ छोटे भाई, कुछ बहने , कुछ बेटियाँ और कुछ उनके सखा एवम सखी के स्थान पर थे | उनके 40 वर्षो के सफ़र में बने इन रिश्तों को मैंने कुछ पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया हैं | आशा हैं आपको अपने किसी कार्यक्रम में इन पंक्तियों से मदद मिल सकती हैं |
स्टार्टिंग
यादों का हैं विशाल आकार, 
संजो रखा हैं एक परिवार |
एक माला के मोती हैं सब, 
शिक्षा के मंदिर के ज्योति हैं सब |
नहीं हैं यह केवल एक महा विद्यालय का प्रांगन |
यह तो हैं स्नेह भक्ति से सजा श्री ……….के घर का आँगन ||
गुरु के लिए
मानते हैं इन्हें एक गुरु अपना 
दिखाया जिसने जीवन का सपना
पग पग पर दिया दिशा निर्देश 
जिससे सजा जीवन परिवेश
बड़े भाई के लिए
कड़ी धूप में दे पीपल जो छाया
ऐसी अदभुद हैं प्रेम की माया
होता हैं जब बड़े भाई का हाथ 
जीवन बीतता हैं बिना विवाद 
नहीं हैं इनसे रक्त सम्बन्ध 
पर है जीवन का अनमोल बंधन
सखा के लिए
जीवन का घरोंदा सजता हैं सपनों से 
दिल भर उठता हैं यादों की दस्तक से
हर लम्हा खुशनुमा हो उठता हैं 
जब साथ इन यारों का होता हैं |
 
शिष्य के लिए
गुरु के लिए क्या हैं ख़ुशी ?
ना तारीफ के शब्धों में हैं वो ताकत 
ना मूल्यवान उपहारों में हैं सच्ची इबादत 
बस एक ही हैं जिससे मिले आत्मीय शांति
जब शिष्य को मिले सफलता की कांति

बेटियों के लिए
कभी-कभी आते हैं जीवन में ऐसे मोड़ 
मिल जाते हैं धुरंधर उतपाती लोग
किसी को हैं फेशन का कीड़ा
किसी का कड़क मिजाज अलबेला
एक हैं इसमें प्यारी बनिया
एक ने उड़ा रखी हैं निंदिया 
ऐसा हैं इन लड़कियों का फेरा
जिन्होंने कई बार इन्हें विवादों में घेरा
शरारती बेटियों के लिए
हैं यहां कुछ सुशील बहुए
मीठी, कड़क, चाय हो जैसे
काम में तेज , तो कभी बातों में
कभी सीधी तो कभी कराटो में
हैं इनका एक अलग स्थान 
शिक्षा के मंदिर में, अमीट योगदान
सखी के लिए
करते-करते संतुलित समीकरण 
रसायन का किया आकलन
अब इन्हें भी लेना हैं विदा
साथियों से होकर जुदा
हैं राजनीती शास्त्र में इनकी पकड़
साड़ी पहने कलफ चड़ीं कड़क
चेहरे पर न झुर्री न दाग 
आवाज में हैं दबंगता का भाव
इनके इतिहास के पन्ने हैं ताजे 
भुत से भुत तक इनके शंख हैं बाजे
……………………नाम हैं जिनका 
सखी सहलियों सा साथ हैं इनका
staff के लिए
बिना इनके नहीं होता पूरा परिवार
साथ हो सबका तब ही बनता आकार 
जब होते हैं सभी प्यार के बंधन में बंधे
तब ही जगमगाते हैं मोती माला के
अन्य साथी
हर काम आसान हो जाता है 
जब दिलों का तार जुड़ जाता हैं 
फिर कितना भी हो मन मुटाव 
प्यार से भरी जिन्दगी में होता हैं ठहराव
आते हैं कई मोड़ ऐसे 
जब मन विचलित होता हैं 
जब उन कठिनाइयों में 
बस साथ अपनों का होता हैं
यह हैं S N College का परिवार 
जहाँ सबका हैं समान आकार  
 
अन्य मेम्बर
इन्हें समझा हैं इस परिवार का बच्चा
जिनकी शैतानी से तरो ताज़ा रहता हैं अच्छा-अच्छा
इनकी शरारतो से खुशनुमा हैं वातावरण
जैसे इत्र की सुगंध से महके आवरण
बिना इनके होता हैं सूनापन 
करते हैं हर दम मक्खी सी भीन-भीन
छोटे भाई
परिवार जितना सजता हैं बड़ो के आशीर्वाद से
उतना ही महकता  हैं छोटो की नटखट शरारतो से
इस परिवार में हैं छोटे भाई भी इतने खास 
जिनके बिना ना सजे कोई साज
जीवन परिचय
कुछ पंक्तियों के जरिये, 
इक छोटा सा परिचय |
जीवन बीता इस खंडवा नगरी में,
शिक्षा का दीपक जलाया, 
सुभाष स्कूल के प्रांगन से
उच्च शिक्षा का गौरव दिलाया,
 S. N कॉलेज की गलियों में
अभी भी भर रहा था ज्ञान का घड़ा
एम.फिल के लिए इन्हें उज्जैन जाना पड़ा
1976 में इन्होने P.S.C. का पेपर निकला 
SN कॉलेज में अध्यापक का दर्जा पाया 
फिर भी नहीं थमा ज्ञान का सागर 
Ph.D को पूरा कर SN कॉलेज में सम्पूर्ण जीवन बिता कर
आज इस जगह को अलविदा हैं कहने वाले 
सभी हैं साथ आज इनके चाहने वाले 
ये अपने ही हैं इनके जीवन की पूंजी 
सरल सादे आचरण की इकलोती कुंजी ||

Saturday, August 27, 2016

दुआ, प्रार्थना, शुभकामना, मंगलकामना, बेस्ट विशेस

दुआ, प्रार्थना, शुभकामना, मंगलकामना, बेस्ट विशेस आदि सब एक ही चीज के अलग अलग नाम हैं और हमारे देश में हर बंदे के पास बहुतायत में उपलब्ध. फिर चाहे आप स्कूल में प्रवेश लेने जा रहे हों, परीक्षा देने जा रहे हों, परीक्षा का परिणाम देखने जा रहे हों, बीमार हों, खुश हों, इंटरव्यू के लिए जा रहे हों, शादी के लिए जीवन साथी की तलाश हो, शादी हो रही हो, बच्चा होने वाला हो, पुलिस पकड़ के ले जाये, मुकदमा चल रहा हो, या जो कुछ भी आप सोच सकें कि आप के साथ अच्छा या बुरा घट सकता है, आपके जानने वालों की दुआयें, उनकी प्रार्थना, उनकी शुभकामनायें आपके मांगे या बिन मांगे सदैव आपके लिए आतुर रहती हैं और मौका लगते ही तत्परता से आपकी तरफ उछाल दी जाती है.
भाई जी, हमारी दुआयें आपके साथ हैं. सब अच्छा होगा या हम आपके लिए प्रार्थना करेंगे या आपकी खुशी यूँ ही सतत बनी रहे, हमारी मंगलकामनायें. आप अपने दुख में और अपनी खुशी में मित्रों और परिचितों की दुआयें और शुभकामनायें ले लेकर थक जाओगे मगर देने वाले कभी नहीं थकते.
उनके पास और कुछ हो न हो, दुआओं और प्रार्थनाओं का तो मानो कारु का खजाना होता है- बस लुटाते चलो मगर खजाना है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा.
dua
अक्सर दुआ प्राप्त करने वाला लोगों और परिचितों की आत्मियता देखकर भावुक भी हो उठता है. अति परेशानी या ढेर सारी खुशी के पल में एक समानता तो होती है कि दोनों ही आपके सामान्य सोचने समझने की शक्ति पर परदा डाल देते हैं और ऐसे में इस तरह से परिचितों की दुआओं से आत्मियता की गलतफहमी हो भावुक हो जाना स्वभाविक भी है.
असल में सामान्य मानसिक अवस्था में यदि इन दुआओं का आप सही सही आंकलन करें तब इसके निहितार्थ को आप समझ पायेंगे मगर इतना समय भला किसके पास है कि आंकलन करे. जैसे ही कोई स्वयं सामान्य मानसिक अवस्था को प्राप्त करता है तो वो खुद इसी खजाने को लुटाने में लग लेता है. मानों की जैसे कर्जा चुका रहा हो. भाई साहब, आप मेरी मुसीबत के समय कितनी दुआयें कर रहे थे, मैं आज भी भूला नहीं हूँ. आज आप पर मुसीबत आई है, तो मैं तहे दिल दुआ करता हूँ कि आप की मुसीबत भी जल्द टले. उसे उसकी दुआ में तहे दिल का सूद जोड़कर वापस करके वैसी ही कुछ तसल्ली मिलती है जैसे किसी कब्ज से परेशान मरीज को पेट साफ हो जाने पर. एक जन्नती अहसास!!
जब आपके उपर सबसे बड़ी मुसीबत टपकती है जैसे कि परिवार में किसी अपने की मृत्यु, तब इस दुआ में ईश्वर से आपको एवं आपके परिवार को इस गहन दुख को सहने की शक्ति देने की बोनस प्रार्थना भी चिपका दी जाती है मगर स्वरुप वही दुआ वाला होता है याने कि इससे आगे और किसी सहारे की उम्मीद न करने का लाल लाल सिगनल.
दुआओं का मार्केट शायद इसी लिए हर वक्त सजा बजा रहता है क्यूँकि इसमें जेब से तो कुछ लगना जाना है नहीं और अहसान लदान मन भर का. शायद इसी दुआ के मार्केट सा सार समझाने पुरनिया ज्ञानी ये हिन्दी का मुहावरा छाप गये होंगे:
’हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा आये’
दरअसल अगर गहराई से देखा जाये तो जैसे ही आप सामने वाले को दुआओं की पुड़िया पकड़ाते हो, वैसे ही आप उसके मन में आने वाले या आ सकने वाले ऐसे किसी भी अन्य मदद के विचार को, जिसकी वो आपसे आशा कर सकता था, खुले आम भ्रूण हत्या कर देते हो और वो भी इस तरह से कि हत्या की जगह मिस कैरेज कहलाये.
जब कोई आपकी परेशानी सुन कर या जान कर यह कहे कि आप चिन्ता मत करिये मैं आपके लिए दुआ करुँगा और मेरॊ शुभकामनाएँ आपके साथ है तो उसका का सीधा सीधा अर्थ यह जान लिजिये कि वो कह रहा है कि यार, आप अपनी परेशानी से खुद निपटो, हम कोई मदद नहीं कर पायेंगे और न ही हमारे पास इतना समय और अपके लिए इतने संसाधन है कि हम आपके साथ आयें और समय खराब करें. आप कृपया निकल लो और जब सब ठीक ठाक हो जाये और उस खुशी में मिठाई बाँटों तो हमें दर किनार न कर दो इसलिए ये दुआओं की पुड़िया साथ लेते जाओ.
हाल ही में जब हमारे प्रधान मंत्री जी जन सुरक्षा की तीन तीन योजनाओं की घोषणा करने लगे, जैसे कि दुर्घटना बीमा, पेंशन एवं जीवन बीमा के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना एवं प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना- जिसमें पैसे आपके ही लगने है और उसी के आधार पर आगे आपको लाभ प्राप्त करना है, तब उनका ओजपूर्ण अंदाज भी कुछ ऐसा ही दुआओं और प्रार्थना वाला नजर आया. इसका सार उन्होंने अपने भाषण के शुरुआती ब्रह्म वाक्य में ही दे दिया जब उन्होंने कहा कि गरीब को सहारा नहीं, शक्ति चाहिये.
और बस मैं सोचने को मजबूर हुआ कि चलो, अब सरकार भी हम आम जनों जैसे ही दुआ करने में लग गई है और अधिक जरुरत पड़ने पर आपको और आपके परिवार को शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना में.
याने कि अब आप अपने हाल से खुद निपटिये और सरकार आपकी मुसीबतों से निपटने के लिए दुआ और उस हेतु आपको शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना करेगी.
मौके का इन्तजार करो कि जब ये ही लोग पाँच साल बाद आपके पास अपनी चुनाव जीतने की मुसीबत को लेकर आयें तो आप सूद समेत तहे दिल से दुआ देना, बस!!
वोट किसे दोगे ये क्यूँ बतायें! ये तो गुप्त मतदान के परिणाम बतायेंगे.

विकास की संभावना

पापा, ये अंकल तो देश का विकास करने वाले थे फिर बार बार विदेश क्यूँ चले जाते हैं?
बेटा, वो क्या है न, कहते हैं विदेश में संभावना बसती है, उसी को तलाशने जाते हैं.
अरे, संभावना तो फ्रेन्डस कॉलोनी में रहती है. मेरे साथ पढ़ती है मेरे स्कूल में. वो तो कभी विदेश गई भी नहीं तो फिर उसे तलाशने विदेश क्यूँ जाते हैं बार बार. मेरे स्कूल में ही आकर मिल लें.
बेटा, समझने की कोशिश करो. ये वो वाली संभावना नहीं है जो तुम समझ रहे हो. ये वो वाली संभावना है जिसे सिर्फ वो समझ रहे हैं और जिसके मिल जाने पर उनके हिसाब से इस देश का विकास होगा.
याने पापा, देश के विकास के लिए, देश में बसी संभावना जिसका पता मुझे तक मालूम है वो किसी काम की नहीं और उसकी दो कौड़ी की औकात नहीं और विदेश में बसी संभावना, जिसकी तलाश में नित प्रति माह विदेश विदेश भटक रहे हैं वो विकास की लहर ला देगी.. याने जैसे हमारा योग कसरत और चाईना का योग – योगा ताई ची..सेल्फी तो बनती है ताई ची के नाम...मगर ये बात कुछ समझ नहीं आई. पापा ठीक से समझाओ न!! प्लीज!
अच्छा इसे ऐसे समझो कि अगर जिस संभावना की तलाश विदेशी धरती पर करने नित यात्रायें की जा रही हैं. नये मित्र बनाये जा रहे हैं ..ओबामा ..बराक हो जा रहे हैं और जिन्पिंग ..झाई..इन लन्गोटिया मित्रों के गप्प सटाके के दौर में...अगर उस संभावना की एक झलक भी मिल गई तो बस हर तरफ देश में विकास ही विकास नजर आयेगा और तब ये और जोर शोर से नई नई संभावनायें तलाशते और ज्यादा विदेशों में नजर आयेंगे.
मगर पापा, पता कैसे चलेगा कि विकास आ गया?
बेटा, कुछ विकास तो तुम अपने मानसिक स्तर पर देख ही रहे हो..जिन देशों के नाम तुमने सुने भी न थे..इस अंकल की यात्राओं ने और टीवी वालों की मेहरबानी ने तुमको कंठस्थ करा दिये हैं..जैसे शैशल्स, मंगोलिया आदि आदि..अभी और बहुत सारे सीखोगे हर हफ्ते एक नये देश का नाम...
बाकी सही मायने में विकास को समझने के लिए..ऐसे समझो कि जब एक सुबह तुम जागो और सुनो कि तुम्हारा शहर अब तुम्हारा वाला शहर न होकर स्मार्ट शहर हो गया है याने कि इत्ता स्मार्ट कि आत्म हत्या करने के लिए अब न तो तुम्हें खेतिहर होने की जरुरत महसूस हो, न खेत की और न खराब मौसम का इन्तजार करना पड़े और हर जगह ये कर जाने के कारण स्मार्टली खड़े नजर आयें..तो समझ लेना कि विकास ने दस्तक दे दी है....
याने जब तुम्हारी ट्रेन एक्सप्रेस, पैसेंन्जर, सुपर फास्ट से स्मार्ट होकर बुलेट हो जाये मतलब कि वो ३०० किमी प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ तो सकती हैं मगर उसके दौड़ने के लिए जरुरी ट्रेक अभी स्मार्ट होने के इन्तजार में हैं और उसे स्मार्ट बनाने वाली संभावना अभी तलाशी जाना बाकी है... जब बड़ी बड़ी विदेशी संभावनाओं की उत्साहित संताने मेक इन इंडिया का नारा लगाते लगाते आधारभूत जरुरतों जैसे बिजली, पानी, सड़क आदि के स्मार्ट होने के इन्तजार में ब्यूरोक्रेसी से लड़ते हुए एक किसान की तरह अच्छे दिनों के इन्तजार में किसी पेड़ से लटक कर अपनी हर योजनाओं का गला घोंट स्मार्टली वापस लौट जायें - उन्हीं संभावनाओं के पास, जहाँ से वो आई थीं- खुद को संभावनाओं के साथ पुनः तलाशे जाने के लिए. तो समझ जाना विकास आ गया है.
जब आत्म हत्या और हत्या समकक्ष हो जाये और पोस्टमार्टम का इन्तजार न करे और स्मार्ट सिस्टम पहले से उनके हो सकने का कारण बता सके...और कारण भी ऐसा जिसकी वजह से केस में आगे किसी इन्वेस्टीगेशन की जरुरत को नकारा जा सके ...तब समझ लेना विकास आ गया.
जब गांव इतने स्मार्ट विलेज और ग्रमीण इतने स्मार्ट विलेजर हो जाये कि वो इस बात को समझने लगे कि लैण्ड का स्मार्ट इस्तेमाल एग्रीकल्चर के लिए उपलब्ध कराना न होकर एक्विजिशन के लिए उपलब्ध कराना होता है...तब समझ लेना कि संभावना की तलाश का बीज विकास का फल बन कर बाजार में बिकने को तैयार है.
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पापा, मुझे तो अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा..भला विदेश में संभावना तलाशने से देश में किसी का विकास कैसे हो सकता है. कोई उदाहरण देकर समझाईये न!!
ओके, चलो इसे ऐसे देखो- तुम्हारे चाचा संभावनाओं की तलाश में कुछ बरस पहले सपरिवार विदेश में जा बसे थे- है न!!
और मैं देश में नौकरी करता रहा. तुम्हारे दादा जी धीरे धीरे अशक्त और बुढ़े हो गये...और तुम्हारे चाचा विदेश में संभावनाओं की तलाश के साथ व्यस्त...
बस!! मौका देखकर और तुम्हारे दादा के अशक्तता का फायदा उठाते हुये, तुम्हारे दादा की जिस जायदाद का आधा हिस्सा मुझे मिलना था वो पूरा मैने अपने नाम करा और बेच बाच कर सब अपना कर लिया...स्मार्टली! ये कहलाता है स्मार्ट विकास!!
देखा न कैसे तुम्हारे चाचा की विदेश में संभावनाओं की तलाश ने मुझे देश में ही रहते हुए दुगना विकास करा दिया..अब आया समझ में तुमको?
जी पापा, अब बिल्कुल समझ में आ गया....भईया भी कह रहा था कि बड़ा होकर वो कम्प्यूटर इंजीनियर बनेगा और विदेश जायेगा... तब तक तो आप भी बुढ़े हो जाओगे और मै भी भईया के विदेश में संभावना तलाशने की वजह से, आपके बुढ़ापे का फायदा उठाकर, आपकी जायदाद का मालिक बन कर दुगना विकसित हो जाऊँगा...
इतना ज्यादा विकसित और स्मार्ट कि आपको बिल्कुल तकलीफ न हो इसलिए नर्सिंग वाली सुविधायुक्त रिटायरमेन्ट होम में आपको स्पेशल कमरा दिलवाऊँगा ...क्यूँकि आप मेरे स्वीट और स्मार्ट पापा हो!!
लव यू पापा!!
यूँ आर माई रोल मॉडल पापा!!

वैकुण्ठ लोक को प्रस्थान

किसी का मर जाना उतना कष्टकारी नहीं होता जितना की उस मर जाने वाले के पीछे उसी घर में छूट जाना.
जितने मूँहउतने प्रश्नउतने जबाब और उतनी मानसिक प्रताड़ना.
सुबह सुबह देखा कि बाबू जीजो हमेशा ६ बजे उठ कर टहलने निकल लेते हैआज ८ बज गये और अभी तक उठे ही नहींनौकरानी चाय बना कर उनके कमरे में देने गई तो पाया कि बाबू जी शान्त हो गये हैंइससे आप यह मत समझने लगियेगा कि पहले बड़े अशान्त थे और भयंकर हल्ला मचाया करते थेयह मात्र तुरंत मृत्यु को प्राप्त लोगों का सम्मानपूर्ण संबोधन है कि बाबू जी शांत हो गये और अधिक सम्मान करने का मन हो तो कह लिजिये कि बाबू जी ठंड़े हो गये.
बाबू जी मर गयेगुजर गयेनहीं रहेमृत्यु को प्राप्त हुयेस्वर्ग सिधार गयेवैकुण्ठ लोक को प्रस्थान कर गये आदि जरा ठहर कर और संभल जाने के बाद के संबोधन हैं.

बाबू जी शांत हो गये और अब आप बचे हैं तो आप बोलियेरिश्तेदारों को फोन कर कर केआप बताओगे तो वो प्रश्न भी करेंगेजिज्ञासु भारतीय हैं अतः सुन कर मात्र शोक प्रकट करने से तो रहे.
जैसे ही आप बताओगे वैसे ही वो पूछेंगेअरे!! कब गुजरेकैसे? अभी पिछले हफ्ते ही तो बात हुई थी... तबीयत खराब थी क्या?
तब आप खुलासा करोगे कि नहींतबीयत तो ठीक ही थीकल रात सबके साथ खाना खायाटी वी देखाहाँथोड़ा गैस की शिकायत थी इधर कुछ दिनों से तो सोने के पहले अजवाईन फांक लेते थेबस!! और आज सुबह देखा तो बस...(सुबुक सुबुक..)!!
वो पूछेंगेडॉक्टर को नहीं दिखाया था क्या?
अब आप सोचोगे कि क्या दिखाते कि गैस की समस्या हैवो भी तब जब कि एक फक्की अजवाईन खाकर इत्मिनान से बंदा सोता आ रहा है महिनों से.
आप को चुप देख वो आगे बोलेंगे कि तुम लोगों को बुजुर्गों के प्रति लापरवाही नहीं बरतना चाहियेउन्होंने कह दिया कि गैस है और तुमने मान लिया? हद है!! हार्ट अटैक के हर पेशेंट को यहीं लगता है कि गैस हैतुम से ऐसी नासमझी की उम्मीद न थीबताओ, बाबूजी असमय गुजर गये बस तुम्हारी एक लापरवाही सेखैरअभी टिकिट बुक कराते है और कल तक पहुँचेंगेइन्तजार करना.
ये लोये तो एक प्रकार से उनकी मौत की जिम्मेदारी आप पर मढ दी गई और आप सोच रहे हो कि  असमय मौतबाबू जी की९२ वर्ष की अवस्था मेंतो समय पर कब होतीआपके जाने के बाद?
अब खास रिश्तेदारों का इन्तजार अतः अंतिम संस्कार कलआज ड्राईंगरुम का सारा सामान बाहर और बीच ड्राईंगरुम में बड़े से टीन के डब्बे में बरफ के उपर लेटा सफेद चादर में लिपटा बाबू जी का पार्थिव शरीर और उनके सर के पास जलती ढेर सारी अगरबत्ती और बड़ा सा दीपक जिसके बाजू में रखी घी की शीशीजिससे समय समय पर दीपक में घी की नियमित स्पलाई ताकि वो बुझे न!! दीपक का बुझ जाना बुरा शगुन माना जाता था भले ही बाबू जी बुझ गये हों. अब और कौन सा बुरा शगुन!!
अब आप एक किनारे जमीन पर बैठने की बिना प्रेक्टिस के बैठे हुएआसन बदलते,घुटना दबातेमूँह उतारे कभी फोन पर- तो कभी आने जाने वाले मित्रोंमौहल्ला वासियों और रिश्तेदारों के प्रश्न सुनते जबाब देने में लगे रहते हैं, जैसे आप आप नहीं कोई पूछताछ काउन्टर हो!!
वे आये -बाजू में बैठे और पूछने लगे एकदम आश्चर्य सेये क्या सुन रहे हैंमैने तो अभी अभी सुना कि बाबू जी नहीं रहेविश्वास ही सा नहीं हो रहा.
आप सोच रहे हो कि इसमें सुनना या सुनाना क्यावो सामने तो लेटे हैं बरफ पर.कोई गरमी से परेशान होकर तो सफेद चादर ओढ़कर बरफ पर तो लेट नहीं गये होंगेठीक ही सुना है तुमने कि बाबू जी नहीं रहे और जहाँ तक विश्वास न होने की बात है तो हम क्या कहेंसामने ही हैंहिला डुला कर तसल्ली कर लो कि सच में गुजर गये हैं कि नहीं तो विश्वास स्वतः चला आयेगा.
दूसरे आये और लगे कि अरे!! क्या बात कर रहे हो  कल शाम को ही तो नमस्ते बंदगी हुई थी... यहीं बरामदे में बैठे थे...
अरे भईमरे तो किसी समय कल रात में हैंकल शाम को थोड़े... और मरने के पहले बरामदे में बैठना मना है क्या?
फिर अगलेभईयाकितना बड़ा संकट आन पड़ा है आप पर!! अब आप धीरज से काम लो..आप टूट जाओगे तो परिवार को कौन संभालेगाउनका कच्चा परिवार है..सब्र से काम लो भईया...हम आपके साथ हैं.
हद है..कच्चा परिवारबाबू जी काहम थोड़े न गुजर गये हैं भई..कच्चा तो अब हमारा भी न कहलायेगा..फिर बाबू जी का परिवार कच्चा???..अरेपक कर पिलपिला सा हो गया है महाराज और तुमको अभी कच्चा ही नजर आ रहा है.
यूँ ही जुमलों का सिलसिला चलता जाता है समाज में.
कल अंतिम संस्कार में भी वैसा ही कुछ भाषणों में होगा कि बाबू जी बरगद का साया थेबाबू जी के जाने से एक युग की समाप्ति हुईबाबू जी का जाना हमारे समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है आदि आदि.
और फिर परसों से वही ढर्रा जिन्दगी का......एक नये बू जी होंगे जो गुजेंगे..बातें और जुमले ये ही..
यह सब सामाजिक वार्तालाप है और हम सब आदी हैं इसके.
इस देश के पालनहार भी हमारी आदतों से वाकिफ हैं. वो भी जानते हैं कि काम आते हैं वही जुमलेवही वादे और फिर उन्हीं वादों से मुकर जानाकिसी को कोई अन्तर नहीं पड़ता. हर बार बदलते हैं बस गुजरे हुए बाबू जी!!
बाकी सब वैसा का वैसा...एक नये बाबू जी के गुजर जाने के इन्तजार में..
जिन्दगी जिस ढर्रे पर चलती थीवैसे ही चल रही है और आगे भी चलती रहेगी.
बाकी तो जब तक ये समाज है तब तक यह सब चलता रहेगा...हम तो सिर्फ बता रहे थे...

कुशल वक्ता के 5 गुण

बहुत लोगों के लिए भाषण देना एक बहुत मुश्किल काम है, स्टेज पर खड़े होते ही पसीना छूट जाता है। हालांकि ये भी सच है कि तीन-चार बार स्टेज से बोलने के बाद आपका ये डर खत्म हो जाता है या कम हो जाता है। वक्ता तो आप बन जाते हैं, लेकिन कुशल वक्ता होना आसान नहीं। कॉरपोरेट हो, पॉलिटिक्स हो, कॉलेज हो, सोसायटी हो या फिर और कोई भी फील्ड, कुशल वक्ताओं की पूछ हर जगह होती है। ऐसा होना मुश्किल जरूर हो लेकिन नामुमकिन नहीं, ड्राइविंग और स्विमिंग की तरह थोड़ी सी प्रेक्टिस और कुछ नियमों को लगातार फॉलो करने से आप अच्छे वक्ता बन सकते हैं, हां पर बिना क्रिएटिव माइंड के राह आसान नहीं। कुछ खास बातों का ध्यान एक अच्छा वक्ता हमेशा रखता है, लेकिन कैसे अपने आप में कुछ सुधार करके यह हासिल कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
आपने मोदी जैसे किसी नेता या अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता को मंच पर आते वक्त देखा होगा कि कैसे वो मंच पर आते ही उत्साह और जोश से भर जाते हैं, उनका ये उत्साह खोखला नहीं होता, उनका ज्ञान और विषय पर पकड़ उनकी आंखों में चमक की असली वजह होती है। तो जाहिर है आपको जिस विषय पर बोलना है, उसकी पहले से तैयारी बहुत जरूरी है। घबराहट एक ऐसी चीज है जो सबको होती है चाहे वो कुशल खिलाड़ी हो या नौसिखिया, सो उसे अपने ऊपर हावी होने से बचा जाए उतना ही ठीक है। इससे बचने का एक ही तरीका है अभ्यास, क्योंकि तैराकी अगर सीखनी है तो पानी में उतरना ही होगा, किनारे पर बैठकर तैराकी के नुस्खे सीखने से कुछ नहीं होगा।
विषय का ज्ञान और उस पर पकड़ दो अलग-अलग बातें हैं, विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, आपकी उस पर पकड़ भी होनी चाहिए। जितना आप उसे समझेंगे, उतना ही आत्मविश्वास से आप समझा पाएंगे, बोल पाएंगे। सबसे पहले श्रोताओं से कनेक्ट होना बहुत जरूरी है, उसके लिए प्रभावी वाक्यों, शब्दों का चयन जरूरी है, उसके लिए अच्छे से तैयारी करें, शुरूआत में ही श्रोताओं से अगर आप कनेक्ट हो जाते हैं, तो वो आपकी हर बात को सीरियसली लेते हैं। कभी-कभी आपको मौके पर ही श्रोताओं से कनेक्ट करने की कई बातें मिल जाती हैं, जैसे मोदी की एक हालिया रैली में हुआ, बल्लियों पर चढ़े युवकों को देखते ही मोदी ने कहा, पहले आप उतरिए तब मैं बोलना शुरू करूंगा। सारी जनता को लगा कि मोदी ये क्या कह रहे हैं, क्या कर रहे हैं और वो जुड़ गए। उनसे कनेक्ट करने के लिए कभी-कभी वो उनसे पर्सनल सवाल भी करते हैं कि क्या आपने ऐसा कभी किया है?  या फिर आपमें से कितने लोग हैं जिनके घर में कोई सरकारी कर्मचारी है? हाथ उठाइए। इन सब बातों से जहां वक्ता का आत्मविश्वास देखने को मिलता है, वहीं कभी-कभी वो आते ही बताना शुरू कर देते हैं कि जब मैं यहां आ रहा था तो किसी ने मुझसे इस ईवेंट के बारे में ऐसा कहा।
वक्ताओं के लिए स्पीकिंग की ए,बी, सी, डी, ई जरूर याद रखनी चाहिए। ए फॉर एक्शन और एरिया यानी आप जिस सब्जेक्ट एरिया के बारे में आप बोलने आए हैं, आपके पास एक्शन प्लान है कि नहीं, जानकारी है कि नहीं, उस एरिया की समस्या और उसका समाधान है कि नहीं। दूसरा बी यानी बोल्डनेस, ये आपके कॉन्फीडेंस का पैमाना है, मंच पर बोलते वक्त आत्मविश्वास से लबालब होने चाहिए। तीसरा सी यानी क्रिएटिव, क्रिएटिवटी बहुत जरूरी है, कुछ जुमले, कुछ शेर, कुछ कविताएं, कुछ जोक, कुछ प्रेरणा देने वाले वाकए आपके दिमाग की मेमोरी में हमेशा होने चाहिए, और आपकी क्रिएटिवटी इसमें है कि आप मौके की नजाकत को देख कर फौरन मौके पर चौका मार सकें।
चौथा है डी यानी डाटा, आपको अपने विषय के कुछ इंटरेस्टिंग डाटा जरूर तैयार करके बोलने जाना चाहिए, डाटा या आंकड़े देने से आपकी बातों में वजन आता है, जब मोदी बिहार जाते हैं तो बिहार सरकार के क्राइम का वही आंकड़ा लेकर जाते हैं, जो नीतीश सरकार को डाउन कर सके। वहीं नीतीश आते हैं तो एक दूसरे आंकड़े के साथ जो मोदी की बात को हलकी कर सके, जाहिर है डाटा अहम रोल प्ले करता है और ये हर फील्ड में करता है, टीवी के एंकर से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों में होने वाली मीटिंग तक में। पांचवां शब्द है ई, यानी एनर्जी, जब आप बोल रहे हों तो आपके आसपास मंच पर, श्रोताओं के बीच, आयोजकों के बीच एनर्जी लेवल हाई होना चाहिए। अच्छे वक्ता वो होते हैं जो मंच पर आते ही सबसे पहले पूरे ईवेंट की एनर्जी बढ़ा देते हैं, स्लोगंस, गीत या चुटीले वाक्यों से ऐसा किया जा सकता है। हर फील्ड के अच्छे वक्ताओं के वीडियोज यूट्यूब में देखकर आसानी से इसे किया जा सकता है।
जब आप मंच पर हों तो यह विश्वास होना जरूरी है कि ये आपका मंच है, आपकी सत्ता है और इस पर आपकी पूरी पकड़ जरूरी है क्योंकि आप अपने अंदर यह महसूस नहीं करेंगे तो आपकी अपनी बात पर भी पकड़ नहीं रहेगी। नम्र रहिए लेकिन दब्बू नहीं। आंकड़ों और बातों में सच्चाई होनी चाहिए, और विचारों को पूरी मजबूती से रखिए।
एक और बड़ी बात है लय और शैली। वक्ता यदि अपने ज्ञान का प्रदर्शन एक सुर में करता रहे तो शायद आधे से ज्यादा श्रोता सो जाएंगे। इसलिए माहौल बोरिंग ना हो, इसलिए इससे बचना जरूरी है। अपनी बातों में लय, रस और एक दिलचस्प शैली डेवलप करना बहुत जरूरी है। बस अपनी बात को फील करिए, और उसी भावनात्मक अंदाज में पब्लिक के सामने रख दीजिए, देखिएगा श्रोता कैसे बहे चलेगा आपके साथ।
बोलने से पहले ये भी ध्यान में रखना जरूरी है कि सुनने वाले कौन हैं, मेजोरिटी किसकी है। जाहिए है बच्चे सामने बैठे हैं, तो आपको उनके मूड को ध्यान में रखना होगा, महिलाएं हैं तो उनसे जुड़ी बातों को अपने शब्दों में पिरोना होगा। कॉरपोरेट्स हैं तो उनकी डेली लाइफ से जुड़ी बातों, किस्सों को लेना होगा, युवा किसी और तरह के मूड में रहता है और गांव देहात के लोग अलग तरह की बातें सुनना चाहते हैं।
और सबसे बड़ी बात है प्रैक्टिस, जब मौका मिले, जहां मौका मिले, स्कूल की स्टेज पर, मोहल्ले की मीटिंग में, घर के फंक्शन में जिस मुद्दे पर मौका मिले, कुछ ना कुछ जरूर बोलिए। धीरे-धीरे आपकी झिझक और डर मिटने लगेगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि आप जिससे सबसे ज्यादा डरते हैं, उसी पर सबसे पहले अटैक करिए, यानी बोलना शुरू करिए। वैसे आजकल तो शुरुआत मोबाइल कैमरे के साथ भी की जा सकती है, तैयारी करिए, अपना मोबाइल ठीक ऊंचाई पर सेट करिए, वीडियो कैमरा ऑन कर दीजिए और कर दीजिए शुरुआत अच्छा वक्ता बनने की। फिर तैयारी करिए, फिर बोलिए, फिर खुद तुलना करिए या खास दोस्त से करवाइए कि पहले से बेहतर हुआ कि नहीं। खुद से ही कम्पटीशन करिए, सच मानिए धीरे-धीरे आप जानेंगे कि अरे, ये तो बहुत ही आसान था।

भाषण व्यक्ति के भीतर छिपी एक ऐसी कला है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं जान पाता। जबकि आज देश में अनेक ऐसे भी बंदर हैं, जो स्वयं को कुशल वक्ता ही नहीं बल्कि भाषण की मिट्टी पलीद कर यह समझते हैं कि आसमान से तारे तोड़ लाए हों। हां! यह हकीकत है कि भाषण वही प्रभावशाली होता है जिसकी कम से कम एक बात को श्रोता कुछ दिन या ज्यादा दिनों तक गुनगुनाएं। एक अच्छे गीत की तरह। लेकिन बात अच्छी हो कोई घास-कूड़ा नहीं क्योंकि घास-कूड़े वाली बातें करने से आपकी ही छवि खराब होगी।
एक अच्छा वक्ता सदैव भाषण करने से पूर्व उसकी पूरी तैयारी करता है। एक-एक शब्द चुन-चुनकर बोलता है। शब्दों के महत्व को समझते हुए अपने विचार श्रोताओं के सम्मुख रखता है। आइए जानते हैं भाषण करने से पूर्व क्या तैयारियां हमें करनी चाहिए।

विचार संग्रह

जिस विषय पर हम भाषण करने वाले हैं उस संदर्भ में विचार संग्रह करना मूलभूत आवश्यकता है। विचार संग्रहित करने के लिए उस विषय पर पुस्तक, लेख और नवीनतम आंकड़े सभी इकठ्ठे करके उनका अध्ययन करना अति आवश्यक है।

लिखें कागज पर भाषण

भाषण की विचार व्यवस्था करने का सबसे उत्तम और सरल तरीका है भाषण के विचारों को लिखने का। लिखने से व्यवस्था और क्रम ठीक बन जाते हैं। विचारों को एकत्रित कर लिख डालें। बाद में उसे संक्षिप्त वाक्यों में एकत्रित कर लें। इस बात का बेहद ख्याल रखें कि आप जो विचार लिख रहे हैं उनमें एकता, सच्चाई होने के साथ ही तर्कशील भी होने चाहिए। भाषण का प्रारंभ और अंत प्रभावशाली हो।

कैसी हो पोशाक

भाषण के समय हमेशा उचित सहज पोशाक ही पहननी चाहिए। हमेशा चितकबरी पोशाक से बचें। भाषण के समय सोवर पोशाक ही पहनें।
प्रभावशाली भाषण के लिए विचार, उनकी समुचित व्यवस्था, भाषा, कंठ-स्वर, उच्चारण, अंग संचालन इत्यादि अति आवश्यक है।

मंच पर इस तरह जाएं

भाषण देने से पूर्व वक्त अकसर घबरा जाता है, उसके शरीर में कंपन होने लगता है जिसके कारण आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की कमी आ जाती है। इसके लिए वक्ता को यह सोचकर मंच पर जाना चाहिए कि सभी श्रोता मुझसे कमजोर है और मैं उनसे अधिक मेधावी हूं। इससे वक्ता को मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास बना रहता है। वक्ता को पाठ मंच या मंच तक गतिमा सहज गति से चलकर जाना चाहिए। यदि मंच पर पाठ-मंच की व्यवस्था है तो उसके पीछे खड़ा होना चाहिए, नहीं है तो तब मंच के किनारे मध्य में खड़ा होना ठीक है। वक्ता को श्रोता की ओर देखने में कतराना नहीं चाहिए। वक्ता अपने श्रोता की तरफ मुखातिब हो, हर वक्त और हर दिशा में।
शुरुआत ऐसे करें
यदि सभा के मंच पर केवल एक अध्यक्ष हो तो केवल अध्यक्ष को और उपस्थित मित्रों को संबोधित करना चाहिए।  स्त्रियां, पुरुष दोनों हो तो पहले महिलाओं को फिर बाद सज्जन कहकर पुरुषों को संबोधित करना चाहिए। यदि मंच पर एक अध्यक्ष या वो भी नहीं और कई लोग बैठे हों तो पहले अध्यक्ष को संबोधित कर सभी को यह कहकर कि ‘मंच पर आसीन (विराजमान) विशिष्ट जन या हमारे विशिष्ट जन’ संबोधित करें। मूलमंत्र यह है कि किसी भी सभा में सबसे पहले अध्यक्ष को संबोधित करना चाहिए।
मंच पर इन बातों का रखें विशेष ख्याल
भाषण देने से पहले यह सोच लेना चाहिए कि श्रोताओं को कौन-सी भाषा रुचिकर लगती है या लगेगी। भाषण में प्रवाह, गति और श्रोताओं तक अपने विचारों को पहुंचाने पर बल देना होता है। श्रोताओं की दिललचस्पी भाषण में बनी रहे, इस दृष्टि से भाषाओं में भावनाओं का मेल और मुहावरों की मीनाकारी का इस्तेमाल ठीक अनुपात में अच्छा रहता है। इसके लिए निम्नलिखित तथ्यों को अमल में लाएं -
(क) यदि आपने शब्द को कोई सीमित अर्थ देना हो तो उसकी परिभाषा देना आवश्यक है। उसके पर्यायवाची शब्द का प्रयोग या उसके विपरीत (उल्टा) मतलब समझाकर व्यक्त करना हितकर है।
(ख) अच्छे वक्ता प्राय किसी महान लेखक, कवि, विचारक, संत के उद्धरणों का प्रयोग करते हैं।
(ग) भाषण में सांकेतिक भाषा का उपयोग भी प्रभावशाली होता है। जैसे: किसी की शुरुआत के लिए श्री गणेश का नाम लेना, धनवान बताने के लिए कुबेर का, क्रोधी बताने के लिए दुर्वासा ऋषि, पवित्रता का गंगाजल से, ऊंचाई का हिमालय आदि से।
(घ) भाषण की विषय वस्तु को ध्यान में रखते हुए भाषण-प्रवाह की गति निर्धारित करनी चाहिए। समय की सीमा को ध्यान में रखते हुए, भाषण, विषय और भाषण प्रसंग को ध्यान में रखते हुए, उन्हीं विचारों को व्यवस्थित कर अभिव्यक्त करना चाहिए जिन पर वक्ता को विश्वास हो। एक बार फिर याद दिला दें कि भाषण कला में ईमानदारी का बहुत महत्व है।

भाषण पाठ का भाषण में उपयोग

लिखित भाषण को अच्छे स्वर में उपयुक्त गति से, उपयुक्त विराम चिन्ह के साथ पढ़ना चाहिए। जब कभी स्मरण-शक्ति सहायता न करे तब उन शीर्षकों या उपशीर्षकों की मदद से बोलना चाहिए। यदि फिर भी गाड़ी न चले तो पूरे भाषण का पठन कर दें।
भाषण पाठ को मानस में अंकित करने के कई मनोवैज्ञानिक तरीके हैं, लेकिन इसकी पहली महत्वपूर्ण सीढ़ी है भाषण बिंदुओं को और उनके क्रम को याद करना। हर बिंदु के कई पक्ष हो सकते हैं। भाषण देते समय यदि कुछ शब्द छूट जाएं या कुछ अंश किसी बिंदु के छूट जाएं तो भाषण की संपूर्ण रूपरेखा खराब नहीं   होती यहां यह याद रखना ठीक है कि सहन गति स्मरण शक्ति की कमी को अच्छी तरह पूरा कर देती है।

अंग संचालन

अंग संचालन, स्वाभाविक, सहज और सीमित ही होना चाहिए।

श्वास प्रक्रिया

इसे मोटे तरीके से यह समझ लें कि मनुष्य मुंह से ध्वनि कैसे पैदा करता है तो श्वास प्रक्रिया का महत्व आसानी से समझ में आ जाएगा।

कंठ का उपयोग

मनुष्य की गर्दन में एक कंठ होता है जिसमें दो होंठ होते हैं। जो खुलते और बंद होते हैं। जब उनके बीच से हवा या श्वास निकाला जाता है तब ध्वनि उत्पन्न होती है, स्वर बनता है। स्वर की ऊंच-नीच हवा के दबाव के नियंत्रण से होती है, इसलिए श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया का ध्वनि से गाढ़ा रिश्ता है। स्वर यंत्र कुदरत की देन है, लेकिन इसे ठीक और नियंत्रित किया जा सकता है। स्वर-यंत्र कभी तनाव से अवरुद्ध भी हो जाता है। कभी भी और किसी भी कारण यदि तनाव कम करने की आवश्यकता हो तो दीर्घ श्वास की प्रक्रिया हितकर होती है।

श्वास नियंत्रण

श्वास नियंत्रण से ध्वनि में उतार-चढ़ाव ही संभव नहीं, वक्ता को एक और लाभा भी संभव है। लंबे-लंबे वाक्यों में वक्ता विराम ले-ले कर बोलता है, लेकिन यदि वक्ता श्वास-प्रक्रिया मध्यपेट से श्वास लेने की आदत डाले तो उसे हांफन भी नहीं होगी और स्थिर स्वर में वह बोल सकेगा और जब स्वर ऊंचा-नीचा करना पड़ेगा, बल देने के लिए उसमें भी कठिनाई नहीं होगी।

स्वर पर नियंत्रण रखें

अच्छे उच्चारण के साथ-साथ स्वर नियंत्रण भी भाषण में रोचकता पैदा करता है। गायक जिस प्रकार स्वर ऊंचा-नीचा करता है कुशल वक्ता भी इस प्रक्रिया का प्रयोग करता है। स्वर से भाषण की भावप्रवणता का आभास मिलता है। भाषण-कला में स्वर-मान से बहुत सूक्ष्म बात श्रोताओं के समझाने में मिलती है। स्वर-नियंत्रण से व्यंग्य में भी जान आ जाती है। सहज स्वर के साथ-साथ स्वर स्तर को वक्ता अनुशासित करे तो स्वर से बहुत सेवा ली जा सकती है।