Thursday, March 30, 2017

राजनीती और मीडिया

विधानसभा चुनाव में जो होना था, सो हो चुका। अब तो सबका ध्यान लोकसभा चुनाव की तरफ है। जहां भाजपा अपनी सफलता से उत्साहित है। वहीं उसके चुनाव प्रबंधक श्री प्रमोद महाजन, श्री अरुण जेटली व श्री सुधांशु मित्तल सरीखे लोग अभी से तलवार की धार पैनी करने में जुट गए हैं। श्री जेटली का श्री अजित जोगी पर ताजा वार इसका एक नमूना है। अब भाजपा और भी आक्रामक होकर चलेगी। सब मानते हैं कि श्रीमती सोनिया गांधी ही उनका मुख्य निशाना होंगी। उनका विदेशी मूल, उनकी हिंदी भाषा पर सीमित पकड़ और राजनैतिक अनुभव की कमी जैसे विषय भाजपा ने अभी से उठाने शुरू कर दिए हैं। भाजपा इस मुद्दे को उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी, यह तय है।
इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में भाजपा ने अच्छी पैंठ बना ली है। एक - दो टीवी चैनल को छोड़कर लगभग सभी चैनलों पर भाजपा की खासी पकड़ है। हिटलर और स्टाॅलिन सिखा गए हैं कि प्रोपेगेण्डा करने के क्या-क्या तरीके होते हैं। यह जरूरी नहीं कि इन चैनलों पर भाजपा का सीधा प्रचार हो, बल्कि उन मुद्दों को उठाकर, जिनसे भाजपा की छवि बनती हो या उन मुद्दों को उठाकर जिनसे इंका की छवि गिरती हो, कोई भी टीवी चैनल बड़ी आसानी से प्रोपेगेण्डा कर सकता है। उदाहरण के तौर पर एक चैनल यह कह सकता है कि भ्रष्टाचार के कांडों में फंसी जयललिता ने कहाऔर दूसरा चैनल यह कह सकता है कि तमिलनाडु की राजनीति में सबसे ताकतवर नेता जयललिता ने कहा।दोनों बातें सच हैं, लेकिन कहने के अंदाज से संदेश अलग-अलग जाते हैं और यही तरीका आज इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में अपनाया जाता है। वाजपेयी जी को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला मसीहा भी बताया जा सकता है और उनके बारे में यह प्रश्न भी खड़ा किया जा सकता है कि इतने लंबे समय तक विपक्ष में रहने के बावजूद वह कभी किसी भ्रष्ट नेता को पकड़वा क्यूं नहीं पाए या बोफोर्स अथवा चारा घोटाला जैसे मामलों पर बरसों शोर मचाने वाले वाजपेयी जैन हवाला कांड उजागर होने पर खामोश क्यों हो गए? यह तो एक उदाहरण है। ऐसे तमाम उदाहरण दिए जा सकते हैं जिनसे यह सिद्ध किया जा सकता है कि टीवी रिपोर्ट्स के चयन, उनके प्रस्तुतिकरण में चालाकी से खेल खेलकर किस तरह जनता को गुमराह किया जा सकता है। ये बात दूसरी है कि इन टीवी चैनलों का असर शहरी जनता पर ही ज्यादा पड़ता है। देहात की जनता बुनियादी सवालों से जूझती है।
जहां वाजपेयी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि तमाम झंझावात झेलकर भी वह एकजुट बनी रही, वहीं यह बात भी महत्वपूर्ण है कि राजग सरकार के कार्यकाल में भारत के देहातों में बेरोजगारी बेइंतहा बढ़ी है। सत्ता में पांच साल पूरे कर चुकी सरकार देहातों में रोजगार पैदा करने में पूरी तरह नाकाम रही है। इससे ग्रामीण युवाओं में भारी निराशा है। इसी तरह भ्रष्टाचार के सवाल पर बार-बार अपने पाक-साफ होने की दुहाई देने वाली राजग सरकार कई बार घोटालों में फंसती रही। इसके कार्यकाल में शिखर से लेकर देहात के स्तर तक कहीं भी भ्रष्टाचार में रत्ती भर भी कमी नहीं आई। हिंदू धर्म की रक्षक होने का दावा करके राजनीति में अपना कद बढ़ाने वाली भाजपा ने राम जन्मभूमि, समान नागरिक संहिता और धारा 370 को समाप्त करने के शाश्वत एजेंडे को बार-बार पीछे धकेला है और कई बार तो उससे अपनी दूरी स्वीकारने में संकोच भी नहीं किया है। इसलिए लोग यह सवाल जरूर पूछेंगे कि आखिर भाजपा की विचारधारा है क्या? आज जिस विकास के मुद्दे को लेकर भाजपा उछल रही है, वह विकास का मुद्दा क्या हमेशा ही उसका मुद्दा बना रहेगा? या अपनी नैया डूबती देख वो फिर रामनाम का सहारा लेगी? एक वर्ष पहले गुजरात के स्वाभिमान को जगाने की बात कहने वाले नरेन्द्र मोदी जिस कामयाबी से जीतकर आए, उससे भाजपा ने अपने उन आलोचकों का मुंह बंद कर दिया जो उसके धार्मिक मुद्दों का मखौल बनाते थे। पर प्रश्न है कि क्या श्री मोदी एक वर्ष में गुजरात की जनता को फिर से आर्थिक विकास की पटरी पर ला पाए हैं? अगर नहीं तो फिर क्या केवल भावनाओं की रोटी खिलाकर देहातों की गरीबी और बेरोजगारी को दूर किया जाएगा? ऐसे तमाम सवालों के जवाब देने के लिए भाजपा को तैयार रहना होगा।
पर भाजपाइयों को इन सवालों से ज्यादा चिंता नहीं है। वे लोकसभा के चुनावों को जीता हुआ मानकर चल रहे हैं। उनका मानना है कि श्रीमती सोनिया गांधी को उनके दल के ही बहुत से नेता प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते। पार्टी के कड़े अनुशासन के चलते वे ऐसा कह पाने में संकोच भले ही कर रहे हों, पर उनकी नीयत साफ नहीं है। और यही कारण है कि जिस तत्परता और आक्रामक शैली से श्री प्रमोद महाजन और श्री अरुण जेटली सरीखे लोग भाजपा को जिताने के लिए तत्पर हैं, वैसा एक भी नेता इंका के खेमे में दिखाई नहीं देता। भाजपाई मानते हैं कि इंका के अस्तबल में बूढ़े, थके हुए और आरामतलब घोड़े बंधे हैं। जिनकी फितरत में सत्ता का सुख भोगना तो है, पर मैदान ए जंग में लड़ना नहीं। नई पीढ़ी के नाम पर जब ये बूढ़े घोड़े अपने बेटों को आगे करते हैं तो उससे इंका के कैडर में कोई नए रक्त का संचार नहीं होता, बल्कि इसके विपरीत बचे खुचे कार्यकर्ताओं में निराशा ही फैलती है क्योंकि उन्हें अपना भविष्य अंधकार में दिखता है। इसीलिए वे सुश्री मायावती, श्रीमुलायम सिंह जैसे क्षेत्रीय नेताओं के खेमों की तरफ दौड़ रहे हैं। भाजपाई यह भी मानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह इंका के पास कोई भी जमीनी संगठन नहीं है और उसके नेताओं में न तो यह क्षमता बची है और न ही उत्साह कि वे अपने दल का जमीनी संगठन पुनस्र्थापित करें। ऐसे में भाजपा को अपना प्रतिद्वंद्वी काफी कमजोर विकेट पर खड़ा दिखाई देता है।
राजग के सहयोगी दल विधानसभा चुनावों में भाजपा की आशातीत सफलता के बाद अब उसका साथ नहीं छोड़ेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं। राजग के सभी घटक लोकसभा का चुनाव एकजुट होकर ही लड़ेंगे, ऐसा न मानने का कोई कारण नहीं है। उधर, इंका अन्य दलों के साथ साझी चुनावी रणनीति बनाने के बारे में अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। इस अनिश्चितता के कारण ही उसे छत्तीसगढ़ में मुंह की खानी पड़ी और भविष्य में भी यह अनिश्चितता उसके लिए नुकसानदेह सिद्ध हो सकती है। इसके साथ ही इंका में सबसे बड़ी कमी इस वक्त अनुभवी नेताओं की है। राजनीति की कुटिल चालें और चुनाव जीतने की रणनीति बनाने वाले लोग इंका में या तो बचे नहीं हैं या उनकी सुनी नहीं जाती। इसलिए इंका को आत्मविश्लेषण करने की जरूरत है। क्रिकेट के खेल की तरह चुनाव आखिरी मिनट तक अनिश्चितता की स्थिति में रहता है। अभी काफी लंबा समय बाकी है। दोनों ही दलों के कुछ गुण भी हैं और दोष भी। जहां भाजपा अपने आत्मविश्वास, संगठन, कुशल रणनीति के बल पर जीतने का सपना देख रही है, वहीं इंका को भाजपा के सत्ता में होने का फायदा मिल सकता है और वह सरकार की जमीनी हकीकत को उछालकर आम जनता से जुड़ सकती है बशर्ते उसमें ऐसा करने की इच्छा हो। इच्छा ही नहीं, सफलता के लिए जूझने का माद्दा और आक्रामक तेवर भी होने चाहिए। अभी इतना समय है कि कांग्रेस पूरे देश में उन लोगों को ढूंढकर इकट्ठा करे जिनकी विश्वसनीयता है। जो जमीन से जुड़े हैं। जिनमें नेतृत्व करने की क्षमता है। जिन्होंने समाज के लिए कुछ किया है और जो भाजपा की विचारधारा से इत्तफाक नहीं रखते। ऐसे लोगों की काफी संख्या हर शहर में है। इनमें युवा भी बड़ी तादाद में हैं। ऐसे युवाओं को संगठन में लेकर इंका अपना संगठन भी मजबूत कर सकती है और जनाधार भी। पर इस प्रयास में सबसे ज्यादा मुश्किल इंका को बाहर से नहीं बल्कि भीतर से आएगी। उसके अपने ही लोग इस नई व्यवस्था को चलने नहीं देंगे। क्योंकि इससे उनको अपने अस्तित्व पर खतरा नजर आएगा। पर यह किए बिना इंका की नैया पार लगना मुश्किल है।

आने वाले महीने इस महासंग्राम की तैयारी में देश की जनता को बहुत से राजनैतिक करतब दिखाएंगे। ऐसे में टीवी चैनलों के लिए मसाले की कमी नहीं रहेगी। ऐसे में इस देश के मतदाताओं को बहुत संजीदगी से अपने हित और अहित का ध्यान करते हुए फैसला लेना होगा।

पुलिस और विज्ञानं का जीवन से सीधा रिश्ता है

5 साल की गुड़िया के साथ दरिन्दों ने पाश्विकता से भी ज्यादा बड़ा जघन्य अपराध किया पर दिल्ली पुलिस के सहायक आयुक्त ने 2 हजार रुपये देकर गुड़िया के माँ-बाप को टरकाने की कोशिश की । जब जनआक्रोश सड़कों पर उतर आया तो प्रदर्शनकारी महिला को थप्पड़ मारने से भी गुरेज नहीं किया। इतनी संवेदनशून्य क्यों हो गयी है हमारी पुलिस ? जब जनता के रक्षक ऐसा अमानवीय व्यवहार करें तो जनता किसकी शरण मे जायें ?
आज देश बलत्कार के सवाल पर उत्तेजित है। चैनलों और अखबारों मे इस मुद्दों पर गर्मजोशी मे बहसें चल रही हैं । पर यह सवाल कोई नहीं पूछ रहा कि बलात्कारी कौन हैं ? क्या ये सामान्य अपराधी हैं जो किसी आर्थिक लाभ की लालसा में कानून तोड़ रहे हैं या इनकी मानसिक स्थिति बिगड़ी हुई है। अपराध शास्त्र के अनुसार ये लोग मनोयौनिक अपराधी की श्रेणी में आते हैं। जिनकों ठीक करने  के लिए दो व्यवस्थायें हैं। पहली जब इन्हें अपराध करने के बाद जेल में सुधारा जाय और दूसरी इन्हें अपराध करने से पहले सुधारा जाय। आजादी के बाद हमने व्यवस्था बनाई थी कि हम अपराधी का उपचार करेगें। लेकिन गत 65 वर्षों में हम इसका भी कोई इतंजाम नही कर पाये। तमाम समितियों और आयोगों की सिफारिशें थी कि जेलों में दण्डशास्त्री हुआ करेगें। लेकिन आज तक इनकी नियुक्ति नहीं की गई। इनका काम भी जेलो मे रहने वाले पुलिसनुमा कर्मचारी ही कर रहे हैं । जब गिरफ्तार होकर जेल मे कैद होने वाले अपराधियों के उपचार की यह दशा है तो जेल के बाहर समाज मे रहने वाले ऐसे अपराधियों के सुधार का तो खुदा ही मालिक है। 1977 में जेलों से सजा पूरी करके छूटे लोगों का अध्ययन करने पर चैंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। जेलों मे रखकर अपराधियों के सुधार के जो दावे तब तक किये जा रहे थे, वे खोखलें सिद्ध हुए। इस स्थिति में आज तक कोई बदलाव नही आया है। ऐसा क्यों हुआ ? इसका एक ही जवाब मिलता है कि हमारे पास अपराधियों के उपचार (सुधार) में सक्षम व अनुभवी विशेषज्ञों का नितांत अभाव है। फिर कैसे घटेगी बलात्कार की घटनायें।
जब-जब देश में कानून व्यवस्था की हालत बिगड़ती हैं। तब-तब पुलिसवालें जनता के हमले का शिकार बनते हैं। सब ओर से एक ही मांग उठती है कि पुलिस नाकारा है, पर यह कोई नहीं पूछता कि राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों का क्या हुआ ? क्यों हम आज भी आपिनवेशिक पुलिस व्यवस्था को ढ़़ो रहे हैं ? 30 वर्ष पहले इस आयोग की एक अहम सिफारिश थी कि पुलिस के प्रशिक्षण को प्रोफेशनल बनाया जाये। उन्हें अपराध शास्त्र जैसे विषय प्रोफेशनलों से सिखाये जायें। जबकि आज पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में जो लोग नवनियुक्त पुलिस अफसरों को ट्रेनिंग देते हैं, उन्हें खुद ही अपराध शास्त्र की जानकारी नहीं होती। अपराध के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष को जाने बिना हम समाधान नहीं दे सकते। इसलिए पुलिस प्रशिक्षण के संस्थानों मे जाने वाले नौजवान अधिकारी अपने प्रशिक्षण मे रुचि नहीं लेते। भारतीय पुलिस सेवा का प्रोबेशनर तो आई. पी. एस. मे पास होते ही अपने को कानूनविद् मानने लगते हैं । उसकी इन पाठयक्रमों में कोई जिज्ञासा नहीं होती। हो भी कैसे जब उसे प्रशिक्षण देने वाले खुद ही अपराध शास्त्र के विभिन्न पहलूओं को नहीं जानते तो वे अपने प्रशिक्षणार्थियों को क्या सिखायेंगे ?
देश में अपराध शास्त्र के विशेषज्ञ थोक में नहीं मिलते। जो हैं उनकी कद्र नहीं की जाती। इंड़ियन इस्टीटयूट ऑफ क्रिमिनोलोजी एण्ड फोरेन्सिक साइंसिज दिल्ली में ऐसे विशेषज्ञों को एक व्याख्यान का मात्र एक हजार रुपया भुगतान किया जाता है। जबकि कार्पोरेट जगत में ऐसे विशेषज्ञों को लाखों रुपये का भुगतान मिलता है जो उनके अधिकारियों को ट्रेनिंग देते हैं। सी. बी. आई. ऐकेडमी का भी रिकार्ड भी कोई बहुत बेहतर नहीं है। जबकि अपराध शास्त्र एक इतना गंभीर विषय है कि अगर उसे ठीक से पढ़ाया जाये तो पुलिसकर्मी व अधिकारी अपना काम काफी संजीदगी से कर सकते हैं। वे एक ही अपराध के करने वालों की भिन्न-भिन्न मानसिकता की बारीकी तक समझ सकते हैं। वे अपराध से़ पीड़ित लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करने को स्वतः पे्ररित हो सकते हैं। वे अपराधों की रोकथाम में प्रभावी हो सकते हैं । पर दुर्भाग्य से केन्द्र और राज्य सरकारों के गृह मंत्रायालयों ने इस तरफ आज तक ध्यान नहीं दिया। पुलिसकर्मियों के प्रशिक्षण के कार्यक्रम तो देश मे बहुत चलाये जाते हैं, बड़े अधिकारियों को लगातार विदेश भी सीखने के लिए भेजा जाता है, पर उनसे पुलिस वालों की मनोदशा व गुणवत्ता में कोई फर्क नहीं पड़ता।
विज्ञान का जीवन से सीधा नाता है। यह जीवन को बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। भारत में वैज्ञानिक समझ की हजारों वर्ष पुरानी परपंरा है। जिसे नरअंदाज करने के कारण हम बार-बार धोखा खा रहे हैं और पश्चिम की आयातित वैज्ञानिक सोच पर निर्भर रहकर अपना नुकसान कर रहे हैं। आज शहरी विकास हो, औद्योगिक विकास हो,बांधों का निर्माण हो या न्यूक्लियर रिएक्टर की स्थापना हो, बिना इस बात का ध्यान दिए की जा रही है कि उस क्षेत्र में भूकंप आने की संभावना कितनी प्रबल है घ् ऐसा नहीं है कि भूकंप आने की संभावना का पता न लगाया जा सके। देश में ही ऐसे वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपने अध्ययन के आधार पर भारत सरकार को एक दशक पहले ही इस समझ के बारे में प्रस्ताव दिया था। पर उनकी उपेक्षा कर दी गयी। नतीजा आज बार-बार भूकंपों में तबाही मच रही है। पर उससे बचने के ठोस और सार्थक उपायों पर आज भी सरकार की नजर नहीं है।
श्री सूर्यप्रकाश कूपर एक ऐसे ही वैज्ञानिक हैं, जिनकी खोज न केवल चैंकाने वाली होती है, बल्कि प्रकृति के रहस्यों को समझकर जीवन से जोड़ने वाली भी। पर सरकारी तंत्र का हिस्सा न बनने के कारण उनके सार्थक शोधपत्रों को भी वांछित तरजीह नहीं दी जाती। भूकंप के मामले में श्री कपूर का कहना है कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया ने जो सीजमिक जोन मैप ऑफ इण्डियापिछले 15 सालों से जारी किया हुआ है और वही भूचाल के विषय में प्रमाणिक आधार माना जाता है, भारी दोषों से भरा है। उदाहरण के तौर पर इस नक्शे में भूचाल की संभावना वाले जो क्षेत्र इंगित किये गये हैं, वे कश्मीर, पंजाब और हिमाचल, उत्तर-पूर्वी राज्यों और उत्तरी गुजरात तक सीमित है। जबकि हमने इन क्षेत्रों के बाहर भी लाटूर, किल्लारी, कोइना, जबलपुर व भ्रदाचलम आदि में भूचालों की भयावहता को झेला है। सरकार की इस नासमझी का कारण यही नक्शा है, जो किसी ठोस सिद्धांत पर आधारित नहीं है। बल्कि तुक्के के आधार पर इसमें निष्कर्ष निकाले गये हैं। दूसरी तरफ भूचाल की सही संभावना जानने का एक ज्यादा प्रमाणिक मापदण्ड है। जिसका आधार है ग्लोबल हीट फ्लो वैल्यू। इस आधार पर जो नक्शा तैयार किया जाता है, वह भी ज्योलिजकल सर्वे ऑफ इण्डिया के द्वारा ही तैयार होता है। फिर भी इस जानकारी को भूचाल की प्रकृति समझने में प्रयोग नहीं किया जा रहा। जबकि इसकी भारी सार्थकता है।
ग्लोबल हीट फ्लो वैल्यूका आधार वह नई वैज्ञानिक खोज है, जिसमें दुनिया के वैज्ञानिकों ने यह माना है कि पृथ्वी के केन्द्र (नाभि) में आठ किमी व्यास का एक न्यूक्लियर फिशन रिएक्टरलगातार चल रहा है। जिसमें से लगातार भारी मात्रा में गर्मी पृथ्वी की सतह पर आती है और वायुमण्डल में निकल जाती है। पृथ्वी सूर्य से जितनी गर्मी लेती है, उससे ज्यादा गर्मी वापस आकाश में फैंकती है। जहाँ इस ऊर्जा की तीव्रता अधिक है, वहाँ ही ज्वालामुखी फटते हैं। जिनकी संख्या दुनिया में 550 से ऊपर है। इनमें वो ज्वालामुखी शामिल नहीं है जो शांत हैं। इसके अलावा लगभग एक लाख गरम पानी के चश्मे भी इसी ऊर्जा के कारण पृथ्वी की सतह पर जगह-जगह सक्रिय हैं, जिनसे गरम पानी के अलावा गर्मी और भाप वायुमण्डल में जाती है। इस ग्लोबल हीट फ्लो वैल्यू मैप (नक्शे)को अगर ध्यान से देखा जाये और पिछले तीन हजार साल के बड़े भूकंपों के भारत के इतिहास पर नजर डाली जाये तो यह साफ हो जायेगा कि जहाँ-जहाँ हीट फ्लो वैल्यू’ 70 मिली वॉट प्रति वर्गमीटर से ज्यादा है, वहीं-वहीं भारी भूकंप आते रहे हैं। कितनी सीधी सी बात है कि जब हमारे पास हीट फ्लो का प्रमाणिक नक्शा मौजूद है, वह भी सरकार की एजेंसी द्वारा तैयार किया गया, फिर हम क्यों उन इलाकों में शहरी विकास, औद्योगिक विकास, बड़े बांध व नाभिकीय रिएक्टरों का निर्माण करते हैं? क्या हमारी सरकार को अपने देश के लोगों की जान और माल की चिंता नहीं? सामान्य जानकारी है कि भूचाल तब आते हैं जब पृथ्वी के अन्दर की यह गर्मी जमा होकर तीव्रता के साथ पृथ्वी की सतह को फाड़ती हुई बाहर निकलती है, ठीक उसी तरह जैसे प्रेशर कुकर में अगर सेफ्टी वॉल्व से भाप न निकाली जाये तो कुकर फट जाता है।

स्वतंत्र आविष्कारक श्री कपूर का कहना है कि अगर गरम पानी के इन चश्मों या कुण्डों पर एक उपकरण, जिसे वाईनरी साइकिल पावर प्लाण्टकहते हैं, लगा दिये जायें, तो यह संयत्र उस गरमी की ही बिजली बना देगा। उससे दो लाभ होंगे, एक तो यह ऊर्जा विनाशकारी होने की वजाय दस हजार छः सौ मेगावाट तक बिजली का उत्पादन कर देगी और दूसरा इसकी जमावट पृथ्वी के भीतर कभी उस सीमा तक नहीं हो पायेगी कि वह भूकंप का कारण बने। सोचने वाली बात यह है कि इतनी सरल सी जानकारी देश के कर्णधारों को रास नहीं आती। वे पश्चिमी देशों की तरफ समाधान की तलाश में भागते हैं और अपनी मेधा को सामने नहीं आने देते। ऐसा नहीं है कि श्री कपूर की बात को हल्के तरीके से लिया जाये। स्वंय तत्कालीन विज्ञान एवं तकनीकि मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने सुनामी के बाद श्री कपूर के संभाषण सिस्मोलॉजी डिवीजनकी कॉन्फ्रेंस में करवाया था। यानि देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों ने इनकी बात को सुना और सराहा, फिर क्यों उस पर अमल नहीं किया जाता?

Petition

To
Hon’ble Chief Justice of India & his brother Judges
Supreme Court of India
New Delhi
Through
Registrar General
Supreme Court of India
New Delhi
Written Submissions in the matter titled
Manohar Lal Sharma Vs. The Principle Secretary & Others
Writ Petition (Criminal) 120 / 2012
Widening the role of CVC and insulating CBI from extraneous pressures
Your Lordships !
Your observations in the above matter regarding the functioning of CBI in reference to the 1997 judgement (Vineet Narain Vs. Union of India) of this Hon’ble Court has encouraged me to submit this written submission for your kind perusal and for consideration.
Your Lordships ! twenty years ago, when I petitioned in this Court, against the criminal negligence of CBI in a militancy and corruption related Jain Hawala Case, my expectation was that under the monitoring of the Apex Court, CBI, DRI and Income Tax agencies will do their duties to ensure proper investigations and will take the case to its logical conclusions. This was the time when there were no 24x7 TV channels, email and SMS facilities to mobilize public opinion on issue of corruption and militancy. Hence in 1993 it was a difficult fight against the 115 most powerful people of this country.
Due to the initiative of this Court, the matter did progress to some extent, but for various reasons, could not reach to its logical conclusions. For example 22 names mentioned in the Jain Diary have not been de-coded / deciphered, by the CBI till this date, when the author of the same is easily available to decode the same. Who knows that these payees could be hardened militants, narcotic operators or powerful people? Two affidavits filed by the petitioner (Vineet Narain Vs. Union of India case no. 340-43 of 1993) dated 08.04.1995 & 09.01.1996 were never answered by the CBI with the result the concerned file of the CBI was concealed from this Court. The evidence regarding the dilution of investigation and the manner in which the beneficiaries in the diary were saved is available in black & white but not a single delinquent official of the CBI responsible for inaction from June 1991 to March 1995 was even asked to explain his conduct which was adversely commented by the Apex Court in very strong words. In other words all the delinquents were saved rather rewarded. Inspite of intervention of this Hon’ble Court, the CBI, who kept the investigation in cold storage for more than 40 months ultimately succeeded in their original plan when all the accused persons were saved. However, the ‘famous’ judgement was pronounced, which gave the hope to the nation that things will change in future.
As Your Lordships have rightly observed that even after 15 years, nothing substantial has happened to make the investigating agencies free from the political interference. As pointed out above had the delinquents been punished, the misconduct could not have been repeated. In the absence of any deterrence the agency would continue to disregard the directions of the Apex Court with impunity. Inputs in the present Coalgate Case clearly establish that the law officers appearing for CBI tow the line of the investigating agency, forgetting that they are required to assist the Hon’ble Court in arriving at the truth. As pointed out above, the role of the law officers in the Hawala Case certainly helped the CBI in concealing the truth from the Apex Court. Therefore the appointment of law officers in the CBI also deserves to be reviewed.
The famous judgement has been sidelined by creating a toothless CVC. Hence, it is very important for the nation that Your Lordships’ review the situation and issue further guidelines to ensure effective implementation of the 1997 judgement. However, based on my experience of fighting corruption at the highest levels of governance, I would like to submit some suggestions and observations, which may assist this Hon’ble Court.
1.    The CVC Act should be amended providing for a 5/7 member Central Vigilance Commission which could broadly assume the role visualized for the Lokpal. The selection process of the CVC members could be made more broad based to prevent favorites or controversial persons from being appointed. Presently, three members are drawn from IAS, IPS and Banking services. However, it should include one retired judge of the Supreme Court appointed by the CJI in consultation with next four senior most judges. Since, legislative wing of our democracy is very important for the matters of governance, it would be worthwhile to include one Member of Parliament, selected from those, who have been the members of the either house for the longest duration. In addition to this two to three members should be of engineering expertise, to assess the scams like commonwealth games and one from the background of Chartered Accountancy to examine the financial scams. These selections should be made as transparent as possible. Co-opting a representative of Civil Societies will create unnecessary controversy because of their diverse backgrounds and agendas, hence, the role of Civil Society should be to generate awareness and act as a pressure group only.
2.    The CVC should constitute an Advisory Committee of at least 11 members drawn from the Criminologists and Forensic Science experts. This will augment the professional input in their functioning. Furthermore, to reduce the burden on CVC, it should be given the power to outsource any expert or professional to assist it in screening the loads of complaints.
3.    The jurisdiction of CVC, which presently covers all employees of the Central Govt. and the CPSUs, should remain unchanged. Already there is an administrative arrangement to delegate the vigilance administration over class II and lower formations to the ministries/departments concerned. However, if the lower formations are involved with the class I officers in a composite case, the CVC exercises a natural jurisdiction over all of them. To make this arrangement more effective, it would be important that the CVC exercises complete control over the selection, appointment and functioning of the CVOs.
4.    The CVC should have adequately experienced team to technically examine and assess the gravity of a complaint, which can then be assigned to CBI for investigation or can be investigated by this team. After assessing a complaint by this broad-based CVC, there should be no necessity to seek prior permission from the govt.
5.  In the cases assigned to it by the CVC, the CBI should be made functionally and financially independent of the controls of any Govt. Ministry/Department. The professional supervision over the investigations of CBI should rest only with the CVC and its nature should be decisively improved from what exists today.
6.    The methodology of appointment of the Director CBI should be similarly broad based as in the case of the CVC members, whereas the other inductions/appointments in the CBI should be brought under the overarching supervision of the CVC.
7.    For achieving better synergy between the Anti Corruption Laws and grievance handling, the laws relating to the whistleblowers and grievance redressal should be placed within the jurisdiction of the CVC.
8.  Effective administration of anti corruption laws at the grass roots level is the key to responsible governance. The state and their anti corruption agencies would therefore require to be equally insulated from the State Government’s interference on similar patterns.
Vineet Narain
Sr. Journalist and Petitioner in case titled WP340-43/93 in the Supreme Court of India

C-6/28, SDA, Hauz Khas, New Delhi – 110016

भ्रष्टाचार

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणामों के विश्लेषण खूब आ चुके। हम उनकी चर्चा नहीं करेंगे। पर यह तो सोचना पड़ेगा कि संसद और सड़कों पर विपक्ष गत् दो वर्षो से यूपीए सरकार के स्तीफे की माँग करता रहा है। ज्यादातर टीवी चैनल भी केन्द्र सरकार के खिलाफ र्मोचा खोले हुए हैं ।
मध्यम वर्गीय लोगों के बीच मौजूदा सरकार की छवि लगातार गिर रही है या गिरायी जा रही है। फिर क्यों कर्नाटक की जनता ने सोनिया गांधी की पार्टी के सिर पर ताज रख दिया ? क्या इसलिए कि कर्नाटक की जनता के लिए भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं था या फिर उन्हें भाजपा का भ्रष्टाचार यूपीए से ज्यादा लगा। पहली बात सही नहीं हो सकती। दूसरी बात अगर सही है तो भाजपा किस नैतिक आधार पर केन्द्र मे भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिन- रात तूफान मचाती आ रही है ? इसका अर्थ यह भी नहीं हुआ कि कर्नाटक की जनता कांग्रेस के भ्रष्टाचार को अनदेखा करने को तैयार है। तो फिर कर्नाटक का संदेश क्या है ?
बात सुनने मे कड़वी लगेगी। नैतिकता का झंडा उठाने वाले इस पर भृकुटि टेढी करेंगे। पर अब तो यह ही लगता है कि हम शोर चाहे कितना ही मचा लें, पर  भ्रष्टाचार से हमें कोई परहेज नहीं है। सदाचारी वो नहीं है जिसे मौका ही नहीं मिला। सदाचारी तो वो होता है, जो मौका मिलने पर भी ड़गमगाता नहीं। हम अपने इर्द -गिर्द देखें तो पायेंगे कि ऐसे सदाचारी आज उगंलियों  पर गिने जा सकते हैं। वरना जिसे, जहाँ, जब मौका मिलता है, बिना मेहनत के फायदा उठाने से चूकता नहीं। इसीलिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध शोर हम चाहे जितना मचा लें, पर चुनाव मे वोट देने की प्राथमिकताएं अलग रहती हैं। इसलिए मायावती हारती हैं तो मुलायम सिंह यादव जीत जाते हैं। वे हारते हैं, तों बहन जी जीत जाती हैं। करुणानिधि हारते हैं तो जयललिता जीत जाती हैं और जब जयललिता हारती हैं तो करुणानिधि जीत जाते हैं। प्रकाश सिंह बादल हारते हैं तो कैप्टन अमरेन्द्र सिंह जीत जाते हैं, और उनके हारने पर बादल की जीत होती है। हर विपक्षी दल सत्ता पक्ष पर भारी भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाता है। ये नूरा कुश्ती यूँ ही चलती रहती है और टिप्पणीकार, स्तम्भकार और टीवी एंकर उत्तेजना में भरकर ऐसा माहौल बनाते हैं मानो आज जैसा भ्रष्टाचार पहले कभी नहीं हुआ या भविष्य में नहीं होगा। वे आरोपित मंत्रियों, अफसरों का स्तीफा मांगने मे हफ्तों और महीनों गुजार देते हैं। अगर उनकी माँग पर स्तीफे ले भी लिए जाये तो क्या गांरटी है कि उसके बाद देश मे घोटाला नहीं होगा ? मर्ज गहरा है और ऊपरी मरहम से दूर नहीं होगा। इसलिए अब ज्यादा समय और उर्जा घोटालों के उजागर होने पर खर्च करने की बजाय इसके समाधान पर लगाना चाहिए। जब किसी भी टीवी शो पर मैं ये मुद्दा उठाता हूँ तो एंकर बातचीत को मौजूदा घोटाले की ओर वापस ले आते हैं। पर आप भी जानते हैं कि ऐसे सभी हंगामे कुछ दिन तूफान मचाकर शांत हो जाते हैं। कुछ भी नही बदलता।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हमें  अपनी समझ गहरी बनाने की जरूरत है। जैसे हर रोग के लिए उसका विशेषज्ञ ढूँढा जाता है वैसे ही भ्रष्टाचार से निपटने की समझ रखने वालों को आज तक विश्वास मे नहीं लिया गया। नतीजतन इस भीषण रोग को रोकने के लिए जो भी प्रयास किए जाते हैं, वे सब नाकाम रहते हैं। इसलिए नई सोच की जरूरत है ।
वैसे जहां भी हम रहते हों, अपने-अपने दायरे मे आने वाले लोगो से एक सर्वेक्षण करें और पूछे कि वे विकास चाहते हैं या भ्रष्टाचार मुक्त समाज ? उनसे पूछा जाये कि वे ईमानदार और पुराने ख्यालों का नेता पंसद करते हैं या उसे जो उनके काम करवा दे, चाहे भ्रष्टाचार कितना भी कर ले। जवाब चैंकाने वाले मिलेंगे। दरअसल पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त कोई समाज या देश आज तक नहीं हुआ। तानाशाही हो या लोकतंत्र, पूजीवादी व्यवस्था हो या साम्यवादी, सरकारी खजाना हमेशा लुटता रहा है। कड़े कानून भी हर नागरिक को ईमानदार बनने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। फिर भी ये सारे प्रयास इसलिए किये जाते हैं कि जनता के मन मे शासन व पुलिस का और दण्ड मिलने का भय बना रहे। ऐसे में अगर हम लगातार सत्ता केन्द्रों पर हमले करके उसे नाकारा और भ्रष्ट सिद्ध करें तो समाज से भ्रष्टाचार तो दूर नहीं होगा, शासन का भय समाप्त हो जायेगा। जिससे समाज में अराजकता फैल सकती है। जो देश की सुरक्षा को खतरा पैदा कर सकती है।

इसलिए जरूरत इस बात की है कि भ्रष्टाचार के सवाल पर व्यक्तियों को निशाना न बनाकर भ्रष्टाचार विहीन समाज की स्थापना का प्रयास करना चाहिए। जो भी चर्चा हो वह समाधान मूलक होनी चाहिए। जिससे समाज मे हताशा भी कम फैले और आशा के साथ भ्रष्टाचार के जंगल से निकलने के रास्ते खोजे जायें अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो देश की जनता को राहत मिलेगी वरना केवल अशांति और चिंता का वातावरण तैयार होगा जो देश के विकास मे बाधक होगा।
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अमृतसर में अन्ना हजारे ने जनता से पूछा है कि वह बताये कि भ्रष्टाचार से लडाई कैसे लडी जाए ? यह तो ऐसी बात हुई कि भगवान श्री कृष्ण कुरूक्षेत्र के मैदान में अर्जुन से कहे कि तुम मुझे गीता का उपदेश दो। जनता तो बेचारी भ्रष्टाचार की शिकार है। उसे तो खुद समाधान की तलाश है। अगर उसके पास समाधान होता तो देश मे अन्ना हजारे मशहूर कैसे होते ? दरअसल समाधान अन्ना हजारे के पास भी नही है और उनका मकसद समाधान ढूँढना भी नही है। मकसद है समाज मे असन्तोष पैदा करना और दुनिया को यह बताना कि भारत मे प्रजातंत्र विफल हो गया है। वैसे भ्रष्टाचार के विरोध मे उठने वाली जो भी मुहिम प्रचार के साथ उठायी जाती है और जिसका मकसद सत्तारूढ दल को ही निशाना बनाना होता है। उस मुहिम का एक ही लक्ष्य होता है जो सत्ता मे है उन्हे हटाओं और हमे सत्ता सौंपो या हमारे चेलों को सत्ता सौंपो। यह बात दूसरी है ऐसी मुहिम चलाने के बाद जो दल सत्ता मे आता है वो भी भ्रष्टाचार दूर नही कर पाता। वायदे केवल कोरे वायदे बनकर रह जाते हैं। भ्रष्टाचार कभी खत्म नही होता। उसकी मात्रा घटती बढ़ती रहती है।
दरअसल भ्रष्टाचार के विरूद्ध हर मुहिम के असफल होने के कई कारण होते है। जिनमे से सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि भ्रष्टाचार के कारणों की ही सही समझ अभी तक विकसित नही हुई है। हम ढोल की पोल बजा रहे है। जिसे आम जनता भ्रष्टाचार मानती है, वो तो बहुत सतही नमूना है। असली भ्रष्टाचार तो सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग कर जाते है या उद्योगपति करते है और बाकी देश को पता ही नही चलता। पर भीड़ की उत्तेजना को बढ़ाकर डेमोगोगसमाज मे प्रायः अशान्ति पैदा करते हैं। भ्रष्टाचार की मुहिम लेकर चलने वाले अन्ना हजारे खुद यह दावा नही कर सकते जो लोग उन्हे बार-बार मैदान मे खींचकर लाते है उनके दामन भ्रष्टाचार के रंग मे नही रंगे है। पूरी तरह भ्रष्टाचार विहीन समाज कभी कोई हुआ ही नही। उसके स्वरूप अलग अलग हो सकते है। इसलिए भ्रष्टाचार से लडाई के तरीके भी अलग-अलग होंगे। पर जब तक भ्रष्टाचार के कारणों की सही समझ न हो, जब तक इस लड़ाई के लड़ने वाले के दिल राग-द्धेष से मुक्त न हों, जब तक इस लडाई का मकसद किसी एक दल को फायदा पहुचाना और दूसरे को नुकसान पहुंचाना न हो तब तो भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम जोर पकड़ती रहती है। जैसा इण्डिया अगेस्ट करप्शन के साथ हुआ। पर जैसे ही इस मुहिम का नेतृत्व करने वाले के चरित्र का दोहरापन उजागर होता है वैसे ही ऐसी मुहिम ठंडी पड़ जाती है।
कहने को तो हर आदमी भ्रष्टाचार विहीन व्यवस्था चाहता है। पर तकलीफ उठाकर भ्रष्टाचार से लड़ने वाले बिरले ही हाते है। पर वे इसलिए विफल हो जाते है क्योंकि उन्हे समाज के किसी भी ताकतवर वर्ग का समर्थन नही मिलता। ऐसे योद्धा जान हथेली पर लेकर लड़ते है और गुमनामी के अधेरे मे खो जाते हैं और दूसरी तरफ भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के हीरो असलियत में अनेकों समझौते किये हुए पाये जाते हैं। इसलिए वे मशहूर तो हो जाते हैं सफल नहीं।  अभी तो यह भी तय नही कि भ्रष्टाचार समाज शास्त्र का विषय है, अपराध शास्त्र का, मनोविज्ञान का या दर्शन शास्त्र का। जब रोग का स्वरूप ही नही पता तो उसका निदान देने वाला डॉक्टर कहां से आयेगा। नतीजा यह है कि  2500 साल पहले यूनान के शहरों में भ्रष्टाचार के विरूद जनता की जो राय होती थी वह आज भी वैसे की वैसी है। फिर भी न कुछ बदला न कुछ खत्म हुआ। दुनिया अपनी चाल से चल रही है।

इसका अर्थ यह नही कि भ्रष्टाचार से लड़ा न जाए। पर जब भ्रष्टाचार का कारण आर्थिक विकास का मॉडल हो, धर्माचार्यो का आचरण हो, समाज का वर्ग विभाजन हो, प्राकृतिक संसाधनों की लूट हो, इन संसाधनों पर आाम आदमी के नैसर्गिक अधिकारों की उपेक्षा हो तो आप किससे कैसे और कहां तक लड़ेंगे ? जब हम पड़ोसी के घर भगतसिंह पैदा होने की कामना करेंगे, तो बदलाव कैसे आयेगा ? इसलिए जब-जब भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठती है, तो हम जैसे लोगो को, जो तकलीफ उठाकर ऐसी लम्बी लडाई लड़ चुके है, ऐसी आवाज उठाने वालों के मकसद को लेकार तमाम संशय होते हैं। जिनका समाधान न तो अन्ना के पास हैं और न उस जनता के पास जिससे वे समाधान पूछ रहे हैं।

कविता

रोक सका है कौन ज्वार सिन्धु का, दामिनी का उत्कर्षण 
छीन सका है कौन गन्ध चन्दन से, कुसुमों से आकर्षण 


बाँध सका है कौन पवन का वेग और मेघों का गर्जन 
कहाँ थमा है वसुन्धरा पर पल पल सृष्टि का परिवर्तन 


सूत्रपात नवयुग के नवशासन का फिर से आज हुआ है 
राष्ट्र के सिंहासन पर अब एक राष्ट्रभक्त का राज हुआ है 


रोम रोम पुलकित है, मन हर्षित है, तन आह्लादित है 
अब होगा उत्थान वतन का जन गण मन आश्वासित है 


हे निर्विवाद निष्छल निर्मल अविकारी 
हे माँ वाणी के वरदपुत्र हुंकारी 
हे प्रखर परन्तु मृदुभाषी मनोहारी 


अभिनन्दन अटल बिहारी !
अभिनन्दन अटल बिहारी !!
अभिनन्दन अटल बिहारी !!!


वैसे तो तू बदमाश है,  नालायक है, उत्पाती है 
पर क्या करूँ, कमबख्त मेरी सासू का नाती है 
सो लोकलाज में व्यवहार तो निभाना ही पड़ेगा 
अपने 'आलोक' का जन्मदिन  मनाना ही पड़ेगा 
ऐ मेरी 11 वर्षों की गाढ़ी कमाई !
तुझे जन्मदिवस की ढेरों बधाई !


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Wednesday, March 29, 2017

प्राचीन भारतीय मुद्रा प्रणाली* अपने बचचौ को जरुर पढायै.

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*रूपये का इतिहास*
जरूर पढे
प्राचीन भारतीय मुद्रा प्रणाली*
अपने बचचौ को जरुर पढायै.
फूटी कौड़ी (Phootie Cowrie) से कौड़ी,
कौड़ी से दमड़ी (Damri),
दमड़ी से धेला (Dhela),
धेला से पाई (Pie),
पाई से पैसा (Paisa),
पैसा से आना (Aana),
आना से रुपया (Rupya) बना।
256 दमड़ी = 192 पाई = 128 धेला = 64 पैसा (old) = 16 आना = 1 रुपया
1) 3 फूटी कौड़ी - 1 कौड़ी
2) 10 कौड़ी - 1 दमड़ी
3) 2 दमड़ी - 1 धेला
4) 1.5 पाई - 1 धेला
5) 3 पाई - 1 पैसा ( पुराना)
6) 4 पैसा - 1 आना
7) 16 आना - 1 रुपया
प्राचीन मुद्रा की इन्हीं इकाइयों ने हमारी बोल-चाल की भाषा को कई कहावतें दी हैं, जो पहले की तरह अब भी प्रचलित हैं। देखिए :
●एक 'फूटी कौड़ी' भी नहीं दूंगा।
●'धेले' का काम नहीं करती हमारी बहू !
●चमड़ी जाये पर 'दमड़ी' न जाये।
●'पाई-पाई' का हिसाब रखना।
●सोलह 'आने' सच
Our children n grand children must know the old history of small coins. Our one Rupee was consisting of 256 parts called DAMRI.👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

Sunday, March 26, 2017

Application for School Leaving Certificate

Respected madam,

With all due respect I beg to say that my father has got promotion and now he is moving to jaipur and we are also going with him. I would like to inform you that I have to leave the school as I will be shifting there and will continue my studies there. I request you to give me a leaving certificate so I can continue my admission process there. I shall be really thankful to you.
Yours obediently,
Sir, I am ram and I have been studying at your school for the last 3 years. I have been very good at studies as well as academics since I came here. This school has polished my skills and made me a better student than I ever was and for that I am truly grateful. As my father is in the jda so he recently got posted to jaipur and because of that I have to move as well. I shall move in a fortnight so kindly grant me a school leaving certificate. I will remember this school in good words as it is nothing compared what this school has given me. I shall be very thankful to you.
Respected principal,
My son Shoukat Shaheen is student of class 6 in your school.
My husband who is working as a SDO in Wapda has been transferred to Multan. Therefore my son cannot continue to study in your school. I request you however please grant him school leaving certificate at the earliest possible time for his admission in new school. I shall be grateful to you.
His roll number is: 13 and his class section is nursery.
Your’s sincerely,
Subject: request for school leaving certificate
Dear Sir,
With due respect, it is stated that I have successfully completed my matriculation with 987/1050 marks from our prestigious institute in April 2015 under Federal Board of Intermediate and Secondary Education, India. My roll number is 116732 and admission date was 6th September 2011. I have no pending dues and therefore request you to kindly issue me the school leaving certificate so that I can apply at other colleges for higher education. Also kindly refund me the security fees.
Thanking you in anticipation,
Yours obediently,
Respected Sir,
This letter is to request a student transfer letter. As I was first the resident of west wood but due to some reasons we have changed our residence and moved in the bank square society. Due to the large distance to the school I am unable to continue my study in your school. I am seeking an admission in  a new school located in my area. It would be helpful if I get a student transfer letter.
Faithfully,
Respected Principal,
I kids are studying in your school since three year but unfortunately I am not seeking progress as it should be  according to my requirements and as well as fees I am depositing.
I am strongly satisfied with your school environment where teachers are not focusing on development of students. Your teachers are changing frequently so this is showing the lack of commitment of teachers with your school. Moreover your school is increasing fees month by month and this is not affordable with present school facilities, teaching standards and results.
I request you to please issue school leaving certificates of my kids and please change your policy for teacher’s salaries/troubles/grouping, so they may not leave your school in short times. According to my observation your school is damaging the future of students.
This is my observation and it can be wrong. But I write this all to acknowledge why I want my kids to leave your school. I hope you will consider my complaint as suggestion and improve your educational standards.
Looking to receive leaving certificate on priority basis.
Thanking you,
Sir, I am Ram and I am a student of 8th grade. With due respect, I have to inform you that my father has been posted to hariyana due to his work. He has to report there in the first week of January. Therefore, I have to shift there as well. Kindly issue my school leaving certificate along with teachers’ remarks so that I can submit the documents at a new school as soon as possible. Thank you for your cooperation.
Yours sincerely,
Application for School Leaving Certificate from Parents to school principal to issue the certificate in earliest possible time. School Leaving Certificate is compulsory to get admission in the next school or to change the school of your children.
Sample application letter to request your school leaving certificate from your school principal, headmaster or where you are studying.