Saturday, October 31, 2015

आपां हां जिसा ठीक हाँ। आपां न कोई मॉडलिंग थोड़ी करनी ह।

एक दिन ‪#‎झमकुड़ी‬ कोई मैडमां कण बातां करण न गई। बोळी सी मैडमां म न छोटो भाई मान र हरी खेवे तो म्हाड़ी झमकुड़ी न के बेरो के घुट्टी पाई।
पाछी आर मनै बोली क थारा अ कुरता सुरता बण्डी सण्डी चोखी कोनी लागे। आँ न छोड़ो पाछी। म मखो आज तक तो अयाँ बोली कोनी आज ओ के घ्यार हुयो ह।
म पूछ्यो हुयो के बताय तो सरी
जणा बोली ब कई मैडम कह री ही क हरी बावळो होगो क काईं बात है। आजकले अ कुरता पजामा म घुमतो रेवे। सागड़ो फुटरो छोरो ह जको आपको भिगान बिगाड़ राख्यो ह।
म बोल्यो म हूँ बियां ई ठीक हूँ। चाल ह बियां ई चालबा दे। नहीं काल न तेर जीव क घ्यार मण्ड ज्या लो।
झमकुड़ी बोली कियाँ ???
म बी न समझाई क बावळी तने तो राजी होणो चाये। बता जे मेर जिसो फुटरो काचो झाग छोरो पेंट जीन्स अर धोळा बुट्या क्लीन शेव करके क्रीम पाउडर लगार घुमसी
तो कोई इन्द्राणी बर की छोरी छापरी मेर जिसा काचा झाग छोरा न देख क उळझा लेसी। फेर तू काईं करूँ काईं करूँ करती फिरसी।
दुनिया अयाँ ई करे है। आपां हां जिसा ठीक हाँ। आपां न कोई मॉडलिंग थोड़ी करनी ह। जणा जार झमकुड़ी गेल छोड़ी। नहीं म तो सोच्यो आज म्हारला देशी पहनावा को खोटो दिन आयगो।

Thursday, October 29, 2015

Letter by Parents for Class Teacher Sample

To,

The Principal,
High Central School
Uter Perdaish, India
Subject: Letter  of requesting to keep the same (previous) class teacher in child’s next class
Respected Madam,
With due respect it is stated that my son Annaya Gurdeev is studying in your school in 5th standard and were taught by chance by the same teacher Mr. Rataish who was very friendly towards him. My son is badly attached with his class teacher and in his current class that is 5th A he was not given his favouriteEnglish teacher Mr. Rataish Shermal.
Mr. Rataish Shermal ia a fine and well-groomed teacher who knows the pulse and heart of his students including my son. Due to his efforts the class result in English subject was overall high and in very outstanding grades. Students were putting on him their love and trust which is by no means a thing to ignore. I am here to court his staying in the same class as it is in the benefit of both the parents and the students because a comfortable level of understanding is built on either part. It would be to some extent difficult for the said teacher to raise this type of level with the newly assigned students and hence their parents.
Kindly see to this issue which is petty in nature at apparent level but in deep currents it’s a grave mistake to separate the students from their teacher and which can lead to poor result of theirs.
Mrs. Ghupta

Dear Sir, 

I beg to state that the result of 10th standard of CBSE examination in ENGLISH shows that I scored only 36 per cent which is bare pass mark. 

This mark is not only impossible but contrary to all logic. I have never scored less than 80 per cent in all my school examination. Besides, I discussed my examination question paper with my English teachers and on the basis of my performance they predicted that I would score at least 85 per cent marks. What is more preposterous is that students who never scored more than 40 per cent are among the top bracket of 75 per cent and above.

I suspect unfair marking or some grave discrepancy in recording marks. I therefore request you to order a re-evaluation of my ENGLISG paper. 

Thanking you. 

Complaint Application to Principal by Teacher

To,
The Principal,
Dear Respected Sir,
I am proud of my institution for inculcating ethical and moral values among students along with high standards of learning. However, despite recurrent ethical instructions to the students, there are a few of them who intentionally violate the moral code of the institution. Mr. Johnson is one of such students who fall in the category of repeatedly misbehaving students in the class. He is a student of grade X with registration number 123.
He misbehaved with me during the lecture today when I warned him of his lack of attention to the lecture. His attitude towards me was utter disregard to ethical standards of our institution. Since the past couple of weeks, He has been expressing his cold response to me whenever I tried to mend his behavior to his teachers and his interest in his studies. On his misconduct to me today, I also advised him politely that his misbehavior towards teachers will prove quite harmful for his career and future. But, I am afraid he will not reform his behavior towards his teachers because of his consistently indifference to my past advices.
Sir, I am optimistic that your personal advice to him will bring the required change in his attitude. Please call him in your office at your earliest convenience so that he could appropriate his behavior with me in the next class.
Thank you for your valuable time.
Best Regards,
Hira

Complaint Letter by Teacher to Principal of School

The Principal,
Misber School,
Valencia Town, Lahore

Respected Sir,
It is stated that me, M. Yasir have been teaching English in your school. I want to put your attention towards a very unpleasant  scenario happened during my class in grade V.
I was writing an essay in the white board, there was silent in the class. All the students were busy in writing the same essay from the white board. In the meanwhile, Salman who always remained naughty in my class started hitting Umair with foot.
I stopped him doing so instantly and inquired about the matter. I listened both students and also took the witness of other students. After investigating, I found that Salman was wrong so I asked him to leave the class. It is happened in most classes.
I request you to please take a serious action against Salman, as other students are disturbing during their studies & it is having a negative impact on them.
Looking forward for your valuable advise.
Regards,
Muhammad Yasir

Wednesday, October 28, 2015

TEACHER

काहे का शिक्षक दिवस
आज हम मनाते है
गुरु शिष्य सा पावन रिश्ता
अब कहां निभाते है
लालच और स्वार्थ ने
आज हर मर्यादा तोङ दी
प्रोलुभता और निजिकरण ने
इसकी दिशा ही मोङ दी
जहां शिक्षक थे पूजनीय
वहां आज दंभ मात्र है
अपनी ही शिष्याओं को
समझते भोग पात्र है
दिखाकर कम अंको का भय
कभी बढने से रोका है
कभी किसी न किसी रुप में
इस पवित्र पद को झौंका है
मैं यह नही कहती सारे शिक्षक
लालच का भक्षण करते है
मगर विधा के मंदिर मेँ
कुछ ऐसे रक्षण करते है
रहा औपचारिक अब ये दिन
कि खानापूर्ति करनी है
शिक्षक दिवस पर अपने गुरु की
नमताऐं भरनी है
एकता सारडा
कुछ गलत शिछ्कों की वजह से 
मिटेगा नहीं गुरु और शिष्य का रिश्ता

आधुनिकता की दौड़ भले चले 
पर अमिट रहेगा ये पावन रिश्ता
आज भी अच्छे शिछ्कों की भरमार है
पर करे क्या व्य्वस्था से लाचार है 
मीडिया में आता वही जो बिकता है 
अच्छा शिछक उसकी आड़ में पिसता है
कल मेने सारे टीवी चैनल छान डाले
पर थे सब पर अच्छी खबरों के लाले
एक चैनल शिछ्कों पर दिखा रहा था 
देख कर मेरा दिल भरा जा रहा था 
ऐसे शिछ्कों की कहानी देखी
शिच्छा के लिए उनकी कुर्बानी देखी
शहर छोड़ अपने गाँवों में पढ़ा रहे है
अपने गाँव के बच्चों को आगे बढ़ा रहे है
ऐसे सेंकडो लोगो का संसार है
शिच्छा ही जीवन में उनका सार है
पर वेसे लोगो की कौन सुनता है
यहाँ तो जो दीखता है वही बिकता है

Tuesday, October 27, 2015

कितनी बार मरी हू फिर मरकर उठी हू

कितनी बार मरी हू
फिर मरकर उठी हू
अपने मन को मारकर
तिल तिल जली हू
क्या कर सकती हू मैं मगर
इससे और ज्यादा
दिन में ख्वाब देखकर
रातों में फिर ढली हू
छोङ जाता कोई मजबूरी में
तो कोई बेच जाता है
कोई उठा लाता कही से
तो किसी पिता से नही पली हू
खत्म हो जाता असतित्व मेंरा
बस यहां आकर
और रह जाती हू एक
बेनाम ठप्पा लगाकर
निकलू भी अगर यहां से
तो भी कौन अपनाये
गिद्ध भरे बैठै है बाहर
घात लगाये सारे
शायद उनसे ज्यादा तो यहां
मैं सुरक्षित भली हू
भले सफेद पोश समाज की
मैं एक गंदी कली हू..
-एकता सारदा
समाज के एक इस भयावह पहलु पर ह्रदय को झकझोर देने वाला aditi gupta का एक कटु लेख..रोक नही पाई इसे share किये बिना..
Aditi Gupta added 5 new photos.
February 5Edited
सभ्य समाज का काला सच.....
हमारे समाज में एक जगह ऐसी भी है जहाँ बेटी पैदा होने पर खुशियाँ मनाई जाती है और बेटा पैदा होने पर मुंह सिकुड़ जाता है, ये बदनाम गलियों की दास्ताँ है। दिल्ली के जी बी रोड की अँधेरी जर्जर खिड़कियों में पीली रोशनी से इशारा करती लड़कियों के विषय में जानने की फुर्सत शायद ही किसी के पास हो। भारी व्यावसायिक गतिविधियों और भीड़ भरे इस बाजार में वहां के व्यापारियों के लिए यह कुछ नया नहीं है। शरीफ लोग मुंह उठाकर ऊपर नहीं देखते। महिलाएं तो शायद ही ऐसा करती हों ।
जब हमने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जीबी रोड जाने का रास्ता पूछा तो लोगों के चेहरे पर कई भाव आये और गए। तिरछी मुस्कान से लोग दायें और बाएं जाना बताते रहे। हमारे लिए यह एकदम नया अनुभव था। टूटे -फूटे दुमंजिले मकान की खिड़कियों से अधखुले कंधे दिखाते गाउन पहने इशारा करती महिलाओं को देखकर समझ मे आ गया कि हमारा गंतव्य स्थल आ गया है। परन्तु एक बड़ी समस्या थी की इन महिलाओं (वेश्याओं) से संपर्क किस तरह किया जाय। इसके लिए हमने पहले वहां के दुकानदार से बातचीत करना तय किया। रामशरण (बदला हुआ नाम) इस इलाके में 48 साल से दुकान चला रहे हैं। वो इस विषय पर काफी सहज नजर आए। वो कहते हैं "ना तो ये महिलाएं हमसे बात करती है ना हीं हम हम लोग इनके काम में दखल अंदाजी नहीं करते। यदि इन्हें कभी काम पड़ता है तो किसी बच्चे या नौकर के जरिये कहलवा दिया जाता है। जीबी रोड मेटल और मेवे का बड़ा बाजार है। यहाँ हमेशा चहल पहल रहती है। आगे रामशरण कहते हैं बाजार होने से ये वेश्याएं सुरक्षित महसूस करती हैं। ग्राहक इनके साथ ज्यादती नहीं कर पाते और यहाँ के व्यवसायी भी सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि कोठों की गुंडों की वजह से कोई हमारे साथ गलत हरकत नहीं करता। रामशरण यह भी दावा करते हैं की जिस बाजार में भी वेश्यावृत्ति होती है वह बाजार काफी फलता फूलता है।
जब हमने उनसे पूछा कि आपको कभी कुछ असहज लगता है तो उनका जवाब था कि वो अपना काम करती है बस अजीब यह लगता है कि कल जो छोटी सी बच्ची फ्रॉक पहने यहाँ टॉफी बिस्किट खरीदती थी वो आज खिड़की के पीछे से ग्राहकों की बाट जोहती है, इशारे करती है। वो वेश्यावृत्ति में लग जाती है। इन्ही के माध्यम से हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। रामशरण धर्मेन्द्र (बदला हुआ नाम) नाम के एक व्यक्ति को हमारे साथ कर देते हैं जो हमें आगे का रास्ता दिखाता है। घनी दुकानों के बीच कोठे पर जाने के रास्ते का अनुमान लगाना काफी कठिन था। धर्मेन्द्र आगे चला और दुकानों के बीच से एक संकरी और अँधेरी सीढियों से ऊपर ले गया। ऊपर एक अलग ही दुनिया थी। एक बड़े से हालनुमा कमरे में मुजरे की एक बड़ी तस्वीर लगी थी और सामने एक दलाल बैठा था।18 से 30 साल की लड़कियां इधर से उधर घूम रही थी। शाम के करीब 5 बजे थे उनके लिए यह सुबह का समय था। सभी लड़कियां नींद से जागी थी और दिनचर्या शुरू ही की थी। नाईटी और गाउन में लड़कियां साबुन ब्रश लिए बार-बार उस कमरे से गुजरती जिस कमरे में हम बैठे थे और हम पर नजर डालती। लेकिन बात करने के लिए कोई तैयार नहीं होती थी।
सीढियों से अन्दर घुसते ही पहले वो खूबसरत कमरा था जिसमे ऊपर फानूस लटक रहा था। नीचे बिछे गद्दे पर बड़े गोल तकिये लगे थे। इसी खूबसूरती के पीछे छुपी थी काली असलियत। संजीव दलाल (बदला हुआ नाम) जो सभी लड़कियों की निगरानी कर रहा था और हमसे बात भी कर रहा था, उसने बताया कि एक बिल्डिंग में कई कोठे हैं और सबके मालिक अलग अलग होते हैं। इसी बीच वहां पर कुछ ग्राहक भी आ गए जिनको दलाल ने उस वक्त डांट कर भगा दिया। जब हमने लड़कियों के रहन सहन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि एक कमरे में आठ से दस लड़कियां रहती है। उसने दिल्ली के कई पाश इलाके के नाम बताए जहाँ पर खुले आम वेश्यावृत्ति होती है। उसने बताया कि पहड्गंज, लक्ष्मी नगर, पटेल नगर के अलावा और भी कई अच्छे इलाको मे यह करोबार यहा से ज्यादा चलता है।
बातचीत के दौरान ही हम हॉलनुमा कमरे के सामने दिख रही अँधेरी गली से अन्दर जाने में सफल रहे, जहाँ इन महिलाओं के रहने के लिए कोठरीनुमा कमरे बने हुए थे। वहां पर बेहद छोटी जगह में बनी रसोई में बैठी माला देवी से बात हुई। 40 साल की मालादेवी अब धंधा नहीं करती वो नई लड़कियों के लिए खाना बनाने का काम करती है। उसकी माँ भी इसी कोठे का हिस्सा थी। अन्दर की स्थिती काफी अमानुषिक थी। एक मंजिले मकान में नीची छत पाटकर दो मंजिल में विभाजित कर दिया गया था। कमरे से ही लकडी की खड़ी सीढ़ी ऊपर जाने के लिए लगी थी। जिसे ग्राहक के ऊपर जाने के बाद हटा लिया जाता है। ऊपर से कुछ महिलाओं ने हमें झाँक कर देखा। हमारे प्यार से हैलो कहने का जवाब इनके पास नहीं था। यहाँ हमसे कोई भी लड़की बात करने के लिए तैयार नहीं हुई। हम वापस दलाल के पास आए उसने कई तरह के बहाने बनाए कि कोठा मालकिन अभी शादी में गयी है। उसकी आज्ञा के बिना यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता। इसलिये वेश्याओं से बात करने के लिए हम दूसरी मंजिल पर बने एक अन्य कोठे में गए। यहाँ भी हमें वैसा ही माहौल मिला पहले-पहल कोई भी लड़की बात करने के लिए राजी नहीं हुई लेकिन उन्हें समझाने के बाद कुछ ने अपने दिल के राज खोले। देखने में मासूम और खूबसूरत ये लड़कियां कहीं से भी आम लड़कियों से जुदा नहीं थी। यहाँ पर हम वेश्यावृत्ति करने वाली आरजू से मिले। आरजू जितना खूबसूरत नाम है उतनी ही वो खूबसूरत भी थी। लेकिन उसकी हकीकत कहीं ज्यादा बदसूरत थी। राजस्थान के छोटे से गांव से आई आरजू की शादी हो चुकी है, पति और पारिवार गांव मे ही रहते हैं आरजू वहां तीज त्योहारों पर जाती है। आरजू हंस कर बात कर रही थी उससे जब हमने पूछा कि उनकी दिनचर्या क्या होती है तो उनका कहना था कि "रात भर काम करने के बाद हम सुबह में सो पाती हैं और शाम को जागती हैं। ब्रश करती हैं, नहाने और नाश्ते के बाद हम मुजरे के लिए तैयार होते हैं। इसी बीच इन्हें खाना और व्यक्तिगत काम निबटाने होते। कुछ ज्यादा ना बोल दे इसलिए बीच में प्रिया आ गयी, थोड़े गठीले बदन कि प्रिया इन सबसे ज्यादा तेज दिखी लेकिन किस्मत उसकी भी धीमी थी। पास में ही बैठी बिंदिया के एक लड़का और एक लड़की है। फ़िलहाल दोनों दूर कही पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन बिंदिया को डर है कि उसकी बेटी को भी यहीं न आना पड़े। तीज त्यौहार किस तरह मनाती है पर प्रिया ने बताया कि वो दोस्तों के साथ पार्टी करती हैं। घूमने जाती हैं।
इनकी आँखों में भी सपने थे लेकिन वो सपने थे जो रात को ग्राहक दिखाते हैं और सुबह उनके साथ ही कही गुम हो जाते हैं। इससे ज्यादा ये लड़कियां खुलने को तैयार नहीं हुई। शाम को मुजरे में शामिल होने का वादा भी इन्होने हमसे लिया। हम उसी अँधेरी सीढियों से नीचे आने लगे तो आरजू कि आवाज कानों में पड़ी थी -"नाईस मीटिंग यू" उनके लिये शायद जरूर नाईस मीटिंग होगी लेकिन हम खुद को उन्हीं तंग कोठरियों में घिरा महसूस कर रहे थे। हमें लग रहा था कि वो दीवारे हमारे साथ चली आ रही है। जहाँ सिर्फ अँधेरा है और छलावा देने वाली रोशनी है।
इसके बाद हम जीबी रोड पर बनी पुलिस चौकी पर पहुंचे। वहां पर तीन चार कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल मौजूद थे। जब हमने वहां पर हो रही वेश्यावृत्ति और कोठों के बारे में जानकारी मांगी तो सभी पुलिस वाले बेतहाशा हंसने लगे व मजाकिया लहजे में बात करने लगे। उन्होंने बड़ी शान से कहा जीबी रोड पर 64 नंबर कोठा सबसे शानदार है। वहां पर अच्छे व बड़े घरों के रसूखदार लोग आते हैं। हमने अपनी जिज्ञासा दिखाते हुए कहा कि हम किसी वेश्या से बात करना चाहते हैं तो उन्होने आसान रास्ता बताया कि मेडम अपने किसी साथी को भेज दो , पहले कोठा मालकिन को 200-250 फीस देनी पड़ेगी फिर उसको लड्की मिल जायेगी और आप उससे आराम से बात करना। ग्राहक बनने का रास्ता सुझाते हुए तीनों पुलिस वाले ने एक दूसरे को कनखियों से देखा और जोर से हंसने लगे। जब हमने गंभीरता से प्रश्न पूछे तो उन्होने हमारा परिचय जानना चाहा। मीडिया की बात जानकर अब वो पूरी मुस्तैदी से बात करने लगे। उन्होने बताया कि जब लड़कियां यहाँ जबरन लाई जाती है और हमें शिकायत मिलती है तो हम तुंरत कार्रवाई करते हैं, या फिर नाबालिग़ लड़की कि सूचना मिलती है तो रेड करते हैं। अभी हाल ही में एक एनजीओ की शिकायत पर दो तीन लड़कियों को रेस्क्यू करा कर हमने नारी निकेतन भिजवाया है। हम जैसे ही यहाँ से वापसी के लिए आगे बढे एक ग्राहक हमारे पास आकर गिडगिडाने लगा की वह कोठे पर गया था, वहां पर कुछ वेश्याओं ने मिलकर उसके तीन हजार रुपये छीन लिए और मारा पीटा। हमारे लिए यह तस्वीर का दूसरा पहलू था। वेश्यावृत्ति भारत में अपराध की श्रेणी में आती है लेकिन प्रश्न यह है कि फिर क्यों जीबी रोड पर रजिस्टर्ड कोठे स्थित हैं। दरअसल यह कोठे राजा महाराजाओं के ज़माने से यहाँ पर स्थित है। तब इनकी शान और रंगीनियाँ अलग रुतबा रखा करती थी।
यहाँ रहने वाली महिलाएं बाई जी कहलाती थी लेकिन ये लोग देह व्यापार नहीं करती थी। यहाँ पर राजा, महाराजा मनोरंजन के लिए आया करता थे। गाना बजाना हुआ करता था। इनके संगीत और कला को सराहा जाता था। कइ बाईयाँ तो अपनी आवाज़ और शायरी के लिये दूर्-दूर तक मशहूर थी। धीरे-धीरे यहाँ पर कोठों की संख्या भी काफी हो गयी थी। इसके अलावा जीबी रोड के पास ही सदर बाजार खारी बावली और चांदनी चौक जैसे प्रतिष्ठित मंडियां और बाजार स्थित हैं। यहाँ पर बड़े पैमाने पर व्यापार होता था और आज यह व्यापार काफी फल फूल चुका है। पहले दूर दूर से व्यापारी यहाँ आकर रुकते थे। आधुनिक मनोरंजन के साधन नहीं होने के कारण दूर से भी शौकीन लोग यहाँ पर मनोरंजन के लिए आया करते थे। बाजार आज भी वैसा ही है। लेकिन मुजरे के नाम पर देह व्यापार होने लगा है। मुजरे आज भी होते हैं क्योंकि सरकार की ओर से इन कोठों को मुजरा करने के लिए लाइसेंस मिले हुए हैं और यहाँ हर रात 9 से 12 बजे तक मुजरा होता है। पुलिस के अनुसार 12 बजे के बाद कोई भी व्यक्ति कोठे में नहीं जा सकता। 12 बजते ही पुलिस कोठों को बंद करा देती है।

रावण का अंत बुराई का अंत हुआ ही कब ??

रावण का अंत 
बुराई का अंत
हुआ ही कब ??
वो तो आज भी तो जिंदा है
अपने विकराल रुप में
मानव बने
दानव के स्वरुप में
आज भी उसकी पराकाष्ठा
बङी विशाल है
जिसे तोङ पाना असंभव है
किसी राम के लिये...
और राम भी तो कहां मिलेगा
माता पिता का वह आज्ञाकारी पुत्र
आज रह गया है मात्र
अपनी सीता तक सीमित
और आज सीता ने भी तो
अपना असली रंग दिखा रखा है
अपने सास ससुर की सेवा में
अपमान और लाचारी जता के
वृद्धाआश्रम और भटकने का
रास्ता दिखा के...
वही सास भी तो अपना अभिनय
दिखा रही है बखूबी
कैकयी को पीछे छोङकर
उसने तो
देश निकाला दिया था
और ये पुत्रवधु जलाकर
अपने पुत्र का ही जीवन
स्वाहा कर रही है
अब बताओ रावण ने कहां
अपना अस्तित्व छोङा
मरकर भी अमर है
आज हर प्राणी में
अपना वर्चस्व
कायम रख गया
हर मनुष्य में
अभिमान,अमानवीय गुण
छोङ ही गया
युग युगों तक
खुद को अमर करके..
मगर राम हो या सीता
लक्ष्मण हो या भरत
या कोई भी सात्विक व्यक्तित्व
आज नही है जिंदा
किसी भी रुप में
सोचने की बात तो ये है कि
बुराई पर अच्छाई की जीत
फिर हुई कैसै ??


शाखो पर फूल महकते थे पंछी दिन रात चहकते थे 
मै तो बर्बाद हुआ सो हुआ इनका भी घर बर्बाद हुआ।
जब जब पुरवाई चलती है गुजरे दिन याद दिलाती है 

बिन खिले कलियाँ टूट गई इस बात का मुझे मलाल हुआ ।
हिल गयी जो जड़ तूफानो मे वो अब तक ना मज़बूत हुई 
हम ज़िद मे खड़े वही पर है पर जीना मेरा मुहाल हुआ।

Sunday, October 25, 2015

यादें

किसी को जीने ही नहीं देती
तो किसी को जीना सिखाती हैं यादें
किसी को चैन नहीं लेने देती
तो किसी को सुकून के पल देती हैं यादें
किसी को घाव ही घाव देती
तो किसी के लिए घाव पर मरहम हैं यादें .....

श्राध्द्ध

..... माँ की बूढी आँखों के सामने बेरुखी से गुजर जाते थे कमरे से....
.. ...पास बैठ उस उदास थके काँधे पे बाँहे प्यार से कभी डाला नही....... 
.... . .सूरज को देख जल का पितरो को अर्पण कर रहे है जो आज ........
.... पानी ले ना बैठे करीब, मुँह में प्यार से डाला कभी निवाला नही.........
.. मिलो का सफर कर उनके नाम आये गया में अब पिंड दान करने ........
.. घुमने गए अकेले सदा कभी साथ उनको चलने कोई पूछने वाला नही........
... पंडितो को मनुहार जिद से जो जिमा रहे हो जमाने के आगे आज ...........
.. माँ बाप की सेवा तारती जितना कोई पितृपक्ष या कोई शिवाला नही ......मधु 


श्राध्ध करने से कुछ नही होगा जीन्दा माँ बाप की सेवा करो बस


एक जज्बा था एक हौसला था



एक जज्बा था एक हौसला था
एक हिम्मत थी सूरत बदलने की
एक आग थी दिलो में
हवाओं के रुख को पलटने की
हलक में आ कुछ फंसने लगा है 
खौलता खून हाय जमने लगा है
मान ले जो जैसा था वैसा ही चलेगा
सब ऐसे थे ऐसा ही रहेगा
अपने हिस्से का लूटेंगे दोनों हाथो से समेटेंगे
मौका मिला तो पूरी ताकत से बटोरेंगे
एक सपना था जो टूटने लगा है
एक आग थी बुझने चली है
आदमी तिल तिल रोज मरने लगा है
रोटी के पीछे पीछे फिर चलने लगा है
मशाल वाले हाथ काटे जाने लगे
अंधेरो के पहरेदार लोगो को सुलाने लगे
भयभीत सब आँख मुंदे पड़े रहे
सियासी खेल अपनी ताकत दिखाने लगे
पराजित की हालत पे मुस्कुराते हुए
हरे भगवा रंगों में गरीबी को भुलाने लगे
अमन की बस्ती जब उजड़ने लगी तो
लोग अपने गुल्लक समेटने लगे
पांच सितारा होटलों में धवल कुरते चमकने लगे
देश में भूखमरी पर विलाप सब करने लगे
लम्बी मेजों पे गरीबो की चिंता होने लगी
कितने प्रतिशत सोते है भूखे
मेवों कि ठुनकी पे मीटिंग में चर्चा उछलने लगी
लुटने वाले अटल मज़बूत स्तम्भ बनने लगे
ईमान के हिमायती धराशायी ढहने लगे
थक हार गए बैठ गए सारे इंकलाबी
हल्लाबोल वाले होठ खामोश सिलने लगे
दूर भगत सिंह, अशफाक उल्लाखां मायूस होने लगे
क्या मेरे देशवासी फिर 200 साल की नींद में सोने लगे
.......................................madhu.

मेरे देश के नेता

दौलत को गिनने की ताकत खत्म हो जाती है 
जब हमारे नेताओं के घरो में छापेमारी की जाती है 
लाखो घरो में भूखो की थाली में जो रोटी है 
इनके घरो की वो मिटटी धूल भी नहीं होती है 
यहाँ जलसों में ठुमको पर लाखो की बारिश है
उधर मुन्ने की माँ दवाओं के लिये भी  रोती है
घर का मुखिया दो वक़्त भरपेट की जंग से हारा है
देश के पैसो से यहाँ मदिरा की नदियाँ बहती है
हकदारों के सर पर सडको के पुल का सहारा है
जिससे एश हो रही कागजों पर नाम लिखा तुम्हारा है
यहाँ पर तो लाशो के कफ़न भी बेच खाते है
उन पैसो से विदेशो में छुट्टियाँ मना आते है
देश की दवा, छत, स्कूल, खेतो के पैसे कहाँ जाते है ?
सारे दाँव पेच से अपनी दहलीज़ तक खीच लाते है
हाय गरीबी हाय गरीबी माइक पर सब चिल्लाते है
कुर्सियों का असली चेहरा बंद कमरों में दिखाते है
देश की जनता अब फ़रियाद लेकर भी कहाँ जाये
जिनको थमा दो चाभी तो वो ही गिद्ध बन जाते है
खूब लड़ो हिन्दू मुसलमान के झुण्ड बना कर
बस यही कमजोरी इन्हें ताकतवर बनाते है
पीछे से वार कर पहले ये लोग जख्म देते है
कैमेरो के आगे कोरे लफ्जों के मलहम लगाते है
काश के एक बार हम मिलकर ये समझ पाते
एक दूसरे से खिलाफत का ये सिर्फ किरदार निभाते है 


उम्र गुज़ार दी तिनका तिनका जिन घरौंदों को सजाने में 
दंगाईयो ने एक पल भी न सोचा उन्हें ढहाने में 
घर का चुल्हा जलता था जिसके आसरे 
धुए राख का ढेर सजा है आज उन दुकानों में 
फूंक कर बस्तियां अमन की चैन से वो घरो में सों गए
पुश्ते बीतेंगी अब उनके दिए जख्मो को सुखाने में
मंदिर मस्जिद तू जहाँ कहे चल मैं सर झुका दूँ
वो सख्श लौटा दे ,लगा रहता था घर भर को हंसाने में
देखते देखते हिन्दू मुस्लिम में बाँट दिया हाड मांस के लोगो को
इंसानों को नाकामयाब देखा शैतानों को हराने में
जिनकी अगुवाई में निकले दोनों तरफ के लोग झंडे लेकर
खबर नही वो रहनुमा लगे है धंधा अपना चमकाने में
मत फैलने दो नफरतो की धुंध फिजा में
मुद्दते रोती है बिलख बिलख इंसानियत को मनाने में
वक़्त है रोक लो शहर में दंगे की अफवाहों को
ज़माने गुजर जाते है एक दुसरे के आँसुओ को सुखाने में ..
उम्र गुज़ार दी तिनका तिनका जिन घरौंदों को सजाने में
जलजलो ने एक पल भी न सोचा उन्हें ढहाने में ..



तमाम उम्र की कमाई हँसते हँसते लुटा देता है पिता औलादो पर
ऊपर वाले ने अपने लिए रखी सारी खुबसूरती बरसा दी जमी वालो पर ...

.इन्कलाब लिखना चाहू तो

तन्हाई में तुम्हारा ख्याल जो छलका
दूर पहाड़ो पर फैली धुंध बन गया
सर्दियों की खिली धूप बन तपा
फूलो पर ओस की बूंद बन गया......
तुम्हारा ख्याल जो छलका
.कभी छूये मन को ठंडी हवा बन
बिखर आकाश में सिंदूरी रंग बन गया.....
रातो में मिला भटकती चांदनी बन .
कागज़ पर उतरा और छंद बन गया ...
तुम्हारा ख्याल जो छलका
घुल गया फिजाओं में हर तरफ जैसे के
कोई मनपसंद मीठी धुन बन गया....
बरसा बूंद बन सूखे मन आँगन में
सोंधी मिटटी की सुगंध बन गया......
तुम्हारा ख्याल जो छलका  
गूंजा बन के कोई राग भोर का
गुलशन में चम्पई खुशबू सा महका .......
.त्यौहारो का मस्त मृदंग बन गया.
पंछी उन्मुक्त स्वछंद बन गया.......
तुम्हारा ख़याल जो छलका
उदास नीम सी कडवी दोपहरिया में
मीठा मीठा गुलकंद बन गया
नदिया में बहता दीपक मंद मंद
पतझर में जंगल की सुगंध बन गया........

तुम्हारा ख्याल जो छलका....

....... इन्कलाब लिखना चाहू गर तो कलम परे रखना होगा 
...रहना है महफूज़ सुकून से तो मन की मन में रखना होगा 
.....राजी कर समझा बुझा रहे है दुनियादारी खुद को 
रह तालाब में नादानी मगरमच्छ से बैर करना होगा 
फैसला ले हौसले की स्याही भर भी लू कलम में
तो फानूस के घर को तीली से डरना होगा
उंगलिया मचलती है चंद बेपर्दा लफ्जों को बिखेरने
लेकिन अब एलान को कमरे में कचरे संग जलना होगा
बहेलियो का कब्ज़ा जब सम्पूर्ण गगन के चप्पे चप्पे पे
उन्मुक्त उड़ान से पहले खुद के पर कतरना होगा
हलक पकड़ रखा है बिलखती मानवता का
देख रहा ऊपर वाला कह आँखे बंद करना होगा
मन कहे क्या जीवन जो मानवता के काम ना आये
लेकिन मशाल हाथ में ले बारूद पर चढ़ना होगा
काँरवा गुजर तो रहा है चंद इंकलाबियो का .....
शामिल उनमे होने कफन संग ले चलना होगा
दरके से सहिलो ने बाँध रखा है समन्दर को
लहरों को खम मालूम नही तो चुप सब सहना होगा
कुल जमा सारा शहर जानता है फरेबी धंधो को
कलम को तिनका बनाऊ तो मुझको भी संग डूबना होगा
लश्कर वालो का फरमान है रौशनी है शहर में तो
अमावसी रातो को हमको भी पूनम कहना होगा ......
इन्कलाब लिखना चाहू तो कलम परे रखना होगा....... madhu
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आओ डाक्टर का लिखे हुए को समझे:

आओ डाक्टर का लिखे हुए को समझे: 
(Common Abbreviations)जरुर पढे
> Rx = Treatment.
> Hx = History
> Dx = Diagnosis
> q = Every
> qd = Every day
> qod = Every other day
> qh = Every Hour
> S = without
> SS = On e half
> C = With
> SOS = If needed
> AC = Before Meals
> PC = After meals
> BID = Twice a Day
> TID = Thrice a Day
> QID = Four times a day
> OD = Once a Day
> BT = Bed Time
> hs = Bed Time
> BBF = Before Breakfast
> BD = Before Dinner
> Tw = Twice a week
> SQ = sub cutaneous
> IM = Intramuscular . .
> ID = Intradermal
> IV = Intravenous
> QAM = (every morning)
> QPM (every night)
> Q4H = (every 4 hours)
> QOD = (every other day)
> HS = (at bedtime)
> PRN = (as needed)
> PO or "per os" (by mouth)
> AC (before meals)
> PC = (after meals)
> Mg = (milligrams)
> Mcg/ug = (micrograms)
> G or Gm = (grams)
> 1TSF ( Teaspoon) = 5 ml
> 1 Tablespoonful =15ml
Kindly Share this Useful Information With
Everyone....
प्रिय मित्रों,
अपने दवाई के बिल पर बचत करने के लिये आप नीचे लिखे आसान तरीके से शुरुआत कर सकते हैं :-
1. HEALTHKART PLUS software को अपने ANDROID फोन में Download करें !
2. दवाई का नाम ढूँढे !
3. अपनी दवाई का नाम जो आप इस्तेमाल कर रहे हैं लिखे (जैसे Pfizer कंपनी की गोली Lyrica 75 mg) !
4. ये आपको दवाई का नाम, कंपनी, कीमत और दवाई की संरचना दिखायेगा !
5. ध्यान रहे अब आपको "SUBSTITUTE" पर click करना है !
6. आश्चर्य ना करें ये देख कर कि दूसरी प्रतिष्ठित कंपनी की यही दवाई बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध है ! उदाहरण के लिये - Lyrica दवाई का 14 गोलियों का एक पत्ता Pfizer कंपनी का 768.56 रु. का है यानी एक गोली की कीमत 54,89 रू. हुई ! जबकि इसी दवाई का 10 गोलियों का पत्ता Cipla (Prebaxe) कंपनी का सिर्फ 59 रू. (एक गोली की कीमत 5.90 रु.) में उपलब्ध है!
कृपया इसे बिना आगे भेजे या साझा किये ना मिटायें ! अपने सभी जानने वालों को भेजें ! सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिये गये इस लाभ को सभी तक पहुंचाने की इस मुहीम को आगे बढायें और सफल बनायें !
ये दवाई कंपनी की बहुत बडी सोची समझी साज़िश है कि generic दवाइयों को रोका जाये ! लेकिन कोर्ट ने जनहित व दवाइयों की जरुरत को ध्यान में रखा !
दया की कोई कीमत नहीं होती!
कृपया अपने ग्रुप में इसे जरुर साझा करें

Saturday, October 24, 2015

एक कहानी जो आपके जीवन से जुडी है ।

एक कहानी जो आपके जीवन से जुडी है ।
ध्यान से अवश्य पढ़ें--
एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे 

एक दिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला की मुझे अपना खेत कुछ साल के लिये उधार दे दीजिये ,मैं उसमे खेती करूँगा और खेती करके कमाई करूँगा,

वह अतिश्रेष्ठ व्यक्ति बहुत दयालु थे
उन्होंने उस निर्धन व्यक्ति को अपना खेत दे दिया और साथ में पांच किसान भी सहायता के रूप में खेती करने को दिये और कहा की इन पांच किसानों को साथ में लेकर खेती करो, खेती करने में आसानी होगी,
इस से तुम और अच्छी फसल की खेती करके कमाई कर पाओगे।
वो निर्धन आदमी ये देख के बहुत खुश हुआ की उसको उधार में खेत भी मिल गया और साथ में पांच सहायक किसान भी मिल गये।
लेकिन वो आदमी अपनी इस ख़ुशी में बहुत खो गया,
और वह पांच किसान अपनी मर्ज़ी से खेती करने लगे और वह निर्धन आदमी अपनी ख़ुशी में डूबा रहा,
और जब फसल काटने का समय आया तो देखा की फसल बहुत ही ख़राब हुई थी , उन पांच किसानो ने खेत का उपयोग अच्छे से नहीं किया था न ही अच्छे बीज डाले ,जिससे फसल अच्छी हो सके |
जब वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति ने अपना खेत वापस माँगा तो वह निर्धन व्यक्ति रोता हुआ बोला की मैं बर्बाद हो गया , मैं अपनी ख़ुशी में डूबा रहा और इन पांच किसानो को नियंत्रण में न रख सका न ही इनसे अच्छी खेती करवा सका।
अब यहाँ ध्यान दीजियेगा-
वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति हैं -''श्री कृष्णा भगवान"
निर्धन व्यक्ति हैं -"हम"
खेत है -"हमारा शरीर"
पांच किसान हैं हमारी इन्द्रियां--आँख,कान,नाक,जीभ और मन |
प्रभु ने हमें यह शरीर रुपी खेत अच्छी फसल(कर्म) करने को दिया है और हमें इन पांच किसानो को अर्थात इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रख कर कर्म करने चाहियें ,जिससे जब वो दयालु प्रभु जब ये शरीर वापस मांग कर हिसाब करें तो हमें रोना न पड़े।
इसलिये गीता पढ़े और पढ़ाये ,इस ज्ञान को अपने जीवन में लगायें।।

प्रश्न मांस का नहीं आस्था और भावना का है

प्रश्न मांस का नहीं
आस्था-भावना का है,
एक महिला-लेखिका
( शोभा डे ) की टिपण्णी
"मांस तो मांस होता है ,चाहे गाय का हो या बकरे का, फिर हिन्दू जानवरों के प्रति अलग अलग व्यवहार का क्यों ढोंग करते है की बकरा काटो पर गाय मत काटो ,
ये मुर्खता है की नहीं "
मेरा जवाब -
1.मर्द तो मर्द होता है ,चाहे भाई हो या पति या बेटा फिर तीनो के साथ आप अलग अलग व्यवहार क्यों करती है ,
क्या संतान पैदा करने के लिए पति ही जरुरी है ?
भाई मित्र या बेटे के साथ भी वही व्यवहार कर बच्चे पैदा किया जा सकता है फिर अलग अलग मर्द के साथ अलग अलग व्यव्हार का ढोंग क्यों
ये आप की मुर्खता है की नहीं ?
2. आप अपने बच्चों पति को नाश्ते में दूध तो देती होंगी?
जाहिर हैं वो गाय या भैस का ही
होगा
आप कुतिया का दूध क्यों नहीं पिलाती आखिर दूध तो दूध है
हैं की नहीं
फिर दूध पिलाने में मूर्खता क्यों
प्रश्न मांस का नहीं आस्था और भावना का है जिस तरह भाई पति,और बेटे का सम्बन्ध भावना और आस्था के आधार पर चलता है उसी प्रकार गाय ,बकरा या कुतिया भी हमारे भावना का आधार है
हर जगह एक ही नियम लागु नहीं होता लेखिका साहिबा जी

पति का प्यार

पत्नी को शादी के कुछ साल बाद ख्याल आया, कि अगर वो अपने पति को छोड़ के चली जाए तो पति कैसा महसूस करेगा। ये विचार उसने कागज पर लिखा , " अब मै तुम्हारे साथ और नहीं रह सकती, मै उब गयी हूँ तुम्हारे साथ से, मैं घर छोड़ के जा रही हूँ हमेशा के लिए।” उस कागज को उसने टेबल पर रखा और जब पति के आने का टाइम हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए बेड के नीचे छुप गयी। पति आया और उसने टेबल पर रखा कागज पढ़ा। कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने उस कागज पर कुछ लिखा। फिर वो खुशी की सिटी बजाने लगा, गीत गाने लगा, डांस करने लगा और कपड़े बदलने लगा। फिर उसने अपने फोन से किसी को फोन लगाया और कहा " आज मै मुक्त हो गया " शायद मेरी मूर्ख पत्नी को समझ आ गया की वो मेरे लायक ही नहीं थी, इसलिए आज वो घर से हमेशा के लिए चली गयी, इसलिए अब मै आजाद हूँ, तुमसे मिलने के लिए, मैं आ रहा हूँ कपडे बदल कर तुम्हारे पास, तुम तैयार हो के मेरे घर के सामने वाले पार्क में अभी आ जाओ ”। पति बाहर निकल गया, आंसू भरी आँखों से पत्नी बेड के नीचे से निकली और कांपते हाथों से कागज पर लिखी लाइन पढ़ी जिसमे लिखा था, " बेड के नीचे से पैर दिख रहे है बावली पार्क के पास वाली दुकान से ब्रेड ले के आ रहा हूँ तब तक चाय बना लेना। मेरी जिंदगी में खुशियां तेरे बहाने से है.... आधी तुझे सताने से है, आधी तुझे मनाने से हैं !!

भारत के किस राज्य की आबादी दुनिया के किस देश के बराबर है:

 125 करोड़ आबादी वाले भारत में दुनिया के कई देश बसते हैं.
क्या आप जानते हैं कि गुजरात की जनसंख्या इटली के बराबर है.
जानिए भारत के किस राज्य की आबादी दुनिया के किस देश

के बराबर है:
1. भारत के आंध्र प्रदेश की जनसंख्या जर्मनी के बराबर है.
2. अरुणाचल प्रदेश की जनसंख्या मॉरीशस के बराबर है.
3. असम की जनसंख्या पेरू के बराबर है.
4. बिहार की जनसंख्या मेक्सिको के बराबर है.
5. छत्तीसगढ़ की जनसंख्या नेपाल के बराबर है.
6. दिल्ली की जनसंख्या बेलारूस के बराबर है.
7. गोवा की जनसंख्या एस्टोनिया के बराबर है.
8. गुजरात की जनसंख्या इटली के बराबर है.
9. हरियाणा की जनसंख्या यमन के बराबर है.
10. हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या हांगकांग के बराबर है.
11. जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या जिम्बाब्वे के बराबर है.
12. झारखंड की जनसंख्या इराक के बराबर है.
13. कर्नाटक की जनसंख्या फ्रांस के बराबर है.
14. केरल की जनसंख्या कनाडा के बराबर है.
15. मध्य प्रदेश की जनसंख्या ईरान के बराबर है.
16. महाराष्ट्र की जनसंख्या जापान के बराबर है.
17. मणिपुर की जनसंख्या मंगोलिया के बराबर है.
18. मेघालय की जनसंख्या ओमान के बराबर है.
19. मिज़ोरम की जनसंख्या बहरीन के बराबर है.
20. नगालैंड की जनसंख्या स्लोवेनिया के बराबर है.
21. ओडिशा की जनसंख्या अर्जेंटीना के बराबर है.
22. पंजाब की जनसंख्या मलेशिया के बराबर है.
23. राजस्थान की जनसंख्या थाइलैंड के बराबर है.
24. सिक्किम की जनसंख्या ब्रिटेन के बराबर है.
25. तमिलनाडु की जनसंख्या तुर्की के बराबर है.
26. त्रिपुरा की जनसंख्या कुवैत के बराबर है.
27. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या ब्राजील के बराबर है.
28. उत्तराखंड की जनसंख्या पुर्तगाल के बराबर है.
29. पश्चिम बंगाल की जनसंख्या वियतनाम के बराबर है.