Monday, April 25, 2016

हिन्दी पत्रकारिता

आज भूमंडलीकरण के दौर में हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां न सिर्फ बढ़ गई हैं वरन उनके संदर्भ भी बदल गए हैं। पत्रकारिता के सामाजिक उत्तरदायित्व जैसी बातों पर सवालिया निशान हैं तो उसकी नैसर्गिक सैद्धांतिकता भी कठघरे में है। वैश्वीकरण और नई प्रौद्योगिकी के घालमेल से एक ऐसा वातावरण बना है जिससे कई सवाल पैदा हुए हैं। इनके वाजिब व ठोस उत्तरों की तलाश कई स्तरों पर जारी है। वैश्वीकरण व बाजारवाद की इन चुनौतियों ने हिन्दी पत्रकारिता को कैसे और कितना प्रभावित किया है इसका अध्ययन किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

समूची भारतीय पत्रकारिता के संदर्भ में बात करने के पहले इसे तीन हिस्सों में समझने की जरूरत है। पहली अंग्रेजी पत्रकारिता, दूसरी हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के बड़े अखबारों की पत्रकारिता और तीसरी नितांत क्षेत्रीय अखबारों की पत्रकारिता। पहली, अंग्रेजी की पत्रकारिता तो बाजारवाद की हवा को आंधी में बदलने में सहायक ही बनी है, और कमोवेश इसने सारे नैतिक मूल्यों व सामाजिक सरोकारों को शीर्षासन करा दिया है। दूसरी श्रेणी में आने वाले हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के बहुसंस्करणीय अखबार हैं। वे भी बाजारवादी हो हल्ले में अंग्रेजी पत्रकारिता के ही अनुगामी बने हुए हैं। उनकी स्वयं की कोई पहचान नहीं है और वे इस संघर्ष में कहीं ‘लोक’ से जुड़े नहीं दिखते। तीसरी श्रेणी में आने वाले क्षेत्रीय अखबार हैं, जो अपनी दयनीयता के नाते न तो खास अपील रखते हैं न ही उनमें कोई आंदोलनकारी-परिवर्तनकारी भूमिका निभाने की इच्छा शेष है। यानि मुख्यधारा की पत्रकारिता ने चाहे-अनचाहे बाजार की ताकतों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है।

व्यावसायिक दृष्टि से देखें तो यह घाटे का सौदा नहीं है। अखबारों की छाप-छपाई, तकनीक-प्रौद्योगिकी के स्तर पर क्रांति दिखती है। वे ज्यादा कमाऊ उद्यम में तब्दील हो गए हैं। अपने कर्मचारियों को पहले से ज्यादा बेहतर वेतन, सुविधाएं दे पा रहे हैं। बात सिर्फ इतनी है कि उन सरोकारों का क्या होगा, उन सामाजिक जिम्मेदारियों का क्या होगा-जिन्हें निभाने और लोकमंगल की भावना से अनुप्राणित होकर काम करने के लिए हमने यह पथ चुना था? क्या अखबार को ‘प्रोडक्ट’ बनने और संपादक को ‘ब्रांड मैनेजर’ या ‘सीईओ’ बन जाने की अनुमति दे दी जाए? बाजार के आगे लाल कालीन बिछाने में लगी पत्रकारिता को ही सिर माथे बिठा लिया जाए? क्या यह पत्रकारिता भारत या इस जैसे विकासशील देशों की जरूरतों, आकांक्षाओं को तुष्ट कर पाएगी? यदि देश की सामाजिक आर्थिक जरूरतों, जनांदोलनों को स्वर देने के बजाए वह बाजार की भाषा बोलने लगे तो क्या किया जाए? यह चिंताएं आज हमें मथ रही हैं?

आप लाख कहें लेकिन ‘विश्वग्राम’ के पीछे जिस आर्थिक चिंतन और नई प्रौद्योगिकी पर जोर है क्या उसका मुकाबला हमारी पत्रकारिता कर सकती है? बाजारवाद के खिलाफ गूंजें तो अवश्य हैं, लेकिन वे बहुत बिखरी-बिखरी, बंटी-बंटी ही हैं। वह किसी आंदोलन की शक्ल लेती नहीं दिखतीं। बिना वेग, त्वरा और नैतिक बल के आज की हिन्दी या भाषाई पत्रकारिता कैसे उदारीकारण के अर्थचिंतन से दो-दो हाथ कर सकती है?

बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति, चैनलों पर अपसंस्कृति परोसने की होड़, बढ़ती सौन्दर्य प्रतियोगिताएं, जीवन में हासिल करने के बजाए हथियाने का बढ़ता चिंतन, भाषा के रूप में अंग्रेजी का वर्चस्ववाद, असंतुलित विकास और असमान शिक्षा का ढांचा कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे हम रोजाना टकरा रहे हैं और समाज में गैर बराबरी की खाई बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही मूल्यहीनता के संकट अलग हैं। भारत की दुनिया के सात बड़े बाजारों में एक होना एक संकट को और बढ़ाता है। दुनिया की सारी कम्पनियां इस बाजार पर कब्जा जमाने कुछ भी करने पर आमादा हैं।

असंतुलित विकास भी इसी व्यवस्था की नई देन है। शायद इसलिए अर्थशास्त्री प्रो. ब्रम्हानंद मानते है कि आने वाले वर्षों में ‘स्टेट बनाम मार्केट’ (राज्य बनाम बाजार) का गंभीर टकराव होगा। सो विकसित राज्यों व बाजारवादी व्यवस्था से लाभान्वित हुए राज्यों औसे आंध्र, कनोटक, गुजरात, महाराष्ट्र के खिलाफ अविकसित राज्यों का एक स्वाभाविक संघर्ष शुरू हो गया है। प्रो. ब्रम्हानंद के मुताबिक ‘‘उदारीकरण के बाद स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, सार्वजनिक यातायात, शिक्षा हर जगह दोहरी व्यवस्था कायम हो गई है। एक व्यवस्था निजीकरण से जुड़ी है, जहां उपभोक्ताओं के पास समृद्धि है और ‘निजीकरण’ से लाभ लेने की क्षमता भी। दूसरी ओर व्यवस्था, सार्वजनिक क्षेत्र की सुविधाओं से जुड़ी हैं, जहां निवेश के लिए सरकार के पास जैसा नहीं है पर करोड़ों लोग इससे जुड़े हैं। केन्द्र की नीतियों से भी भेदभाव प्रायोजित हो रहा है। बीमारू राज्य और बीमारू होते जा रहे हैं।’’ ये संकट देश के भी हैं और पत्रकारिता के भी।

दुर्भाग्य है बीमारू राज्यों के अधिकांश क्षेत्रों में बोले जानी वाली भाषा हिन्दी है। अंग्रेजी के मुकाबले उसकी दयनीयता तो जाहिर है ही परन्तु सूचना की भाषा बनने की दिषा में भी हिन्दी बहुत पीछे है। साहित्य-संस्कृति, कविता-कहानी के क्षेत्रों में शिखर को छूने के बावजूद ज्ञान-विज्ञान के विविध अनुशासनों पर हिन्दी में बहुत कम काम हुआ है। विज्ञान, प्रबंधन, प्रौद्योगिकी, उच्च वाणिज्य, उद्योग आदि क्षेत्रों में हिन्दी बेचारी साबित हुई है, जबकि यह युग सत्य है कि आज के दौर में जब तक भाषा बहुआयामी अभिव्यक्ति व विशेष सूचना की भाषा न बने उसे सीमा से अधिक महत्व नहीं मिल सकता। वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश की मानें तो – ‘‘हिन्दी को आज देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप सूचना की सम्पन्न भाषा बनाना जरूरी है। आज की हिन्दी पत्रकारिता के लिए यही सीमा ही सबसे बड़ी चुनौती है। बाजारवाद की चुनौतियों के खिलाफ हिन्दी पत्रकारिता का यह सृजनात्मक उत्तर होगा। आधुनिक राजसत्ता, तंत्र, बाजारवाद, विश्वग्राम की सही अंदरूनी तस्वीर लोगों तक पहुंचे, यह सायास कोशिश हो। इसके अंतर्विरोध-कुरूपता को हिन्दी या भाषाई पाठक जानें, यह प्रयास हो। यह काम अंग्रेजी प्रेस नहीं कर सकता। अंग्रेजी की नकल कर रहे भाषाई अखबार भी नहीं कर सकते, क्योंकि ये सभी माडर्न सिस्टम की उपज हैं। यही बाजारवाद इनका शक्तिस्रोत हैं।’’

अंग्रेजी के वर्चस्ववाद के खिलाफ हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं की शक्ति को जगाए व पहचाने बिना अंधेरा और बढ़ता जाएगा। अंग्रेजी अखबार इस लूटतंत्र के हिस्सेदार बने हैं तो मुख्यधारा की हिन्दी-भाषाई पत्रकारिता उनकी छोड़ी जूठी पत्तलें चाट रही हैं। हिन्दी की ताकत सिर्फ सिनेमा में दिखती है, जबकि यह भी बाजार का हिस्सा है। सच कहें तो हिन्दी सिर्फ मनोरंजन और वोट मांगने की भाषा बनकर रह गयी है।

बाजारवाद में मुक्त बेचने वाले हाते हैं – खरीदने वाले नहीं। हमारा पाठक यहीं ठगा जा रहा है। उसे जो कुछ यह कहकर पढ़ाया जा रहा है कि यह तुम्हारी पंसद है – दरअसल वह उसकी पसंद नहीं होती। जिस तरह एक ओर बाजार इच्छा सृजन कर रहा है, आपकी जरूरतें बढ़ी हैं और नाजायज चीजें हमारी जिन्दगी में जगह बना रही हैं। अखबार भी बाजार के इस षडयंत्र का हिस्सा बन गया है। सो पाठक केन्द्र में नहीं है, विज्ञापनदाता को मदद करने वाला ‘संदेश’ केन्द्र में है। हमने कहा – ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ पूरा विश्व एक परिवार है। ‘विश्वग्राम’ कहता है – ‘पूरा विश्व एक बाजार है।’ जाहिर है चुनौती कठिन है। विज्ञापन दाता ‘कंटेंट’ को नियंत्रित करने की भूमिका में आ गया है – यह दुर्भाग्य का क्षण है। आज हालात यह है कि पाठक ही यह तय नहीं करते कि उन्हें कौन सा अखबार पढ़ना है, अखबार ही यह भी तय कर रहे हैं कि हमें किस पाठक के साथ रहना है। कई अंग्रेजी अखबार इसी भूमिका का काम कर रहे हैं।

हिन्दी व भारतीय भाषाओं के अखबारों के सामने यह चुनौती है कि वे अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करें। वे यह सोचें कि क्या वे सूचना देने, शिक्षित करने और मनोरंजन करने के अपने बुनियादी धर्म का निर्वाह करते हुए कुछ ‘विशिष्ठ’ कर सकते हैं? क्या हमने अपने प्रस्थान बिन्दु से नाता तोड़ लिया है, क्या हम जनोन्मुखी और सरोकारी पत्रकारिता से हाथ जोड़ लेंगे। देह और भोग (बाडी एंड प्लेजर) की पत्रकारिता के पिछलग्गू बन जाएंगे? अपने समाज जीवन को प्रभावित करने वाले सवालों से मुंह चुराएंगे? उदारीकरण के नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा तक नहीं करेंगे। अपने पाठकों तक सांस्कृतिक पतन की सूचनाएं नहीं देंगे? क्या हम यह नहीं बताएंगे कि मैक्सिकों का यह हाल क्यों हुआ? थाईलैंड की वेश्यावृत्ति का बाजावाद से क्या नाता है? पत्रकारिता सार्थक भूमिका के निर्वहन में हमारे आड़े कौन आ रहा है?

हमारे एकता-अखंडता क्या पश्चिमी सांचों की बुनावट पर कायम रह सकेगी? सुविधाओं एवं सुखों के नाम पर क्या हम आत्म-समर्पण कर देंगे? ऐसे तमाम सवाल पत्रकारिता के सामने खड़े हैं। उनके उत्तर भी हमें पता है लेकिन ‘बाजावाद’ की चकाचैंध में हमें कुछ सूझता नहीं। इसके बावजूद रास्ता यही है कि हम अपने कठघरों से बाहर आकर बुनियादी सवालों से जूझें। हवा के खिलाफ खड़े होने का साहस पालें। हिन्दी पत्रकारिता की ऐतिहासिक भावभूमि हमें यही प्रेरणा देती है। यही प्रस्थान बिन्दु हमें जड़ों से जोड़ेगा और ‘वैकल्पिक पत्रकारिता’ की राह भी बनाएगा।

पत्रकार होने की न्यूनतम योग्यता तय होने पर क्या योग्य हो जायेंगे पत्रकार ?

प्रेस परिषद के चेयरमैन न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) मारकंडेय काटजू ने एक समिति बनायी है. पत्रकार होने की न्यूनतम योग्यता तय करने के लिए. अच्छा प्रयास है. पर क्या पत्रकारों की न्यूनतम योग्यता तय हो जाये, तो पत्रकार योग्य हो जायेंगे?
दरअसल, पत्रकारिता एक पैशन (आवेग, उमंग, उत्साह) है. कोई भी पेशा एक धुन है. सनक है. और शौक भी. पर पेशे के प्रति यह पैशन पैदा होता है, शिक्षण संस्थाओं से. समाज और राजनीति से. पत्रकार भी इसी समाज-माहौल की उपज हैं. वे किसी अलग ग्रह से नहीं उतरते. भारत के शिक्षण संस्थानों की क्या स्थिति है? विश्वविद्यालय और कॉलेजों से किस स्तर के छात्र निकल रहे हैं? उनकी योग्यता क्या है? पीएचडी किये लोग आवेदन नहीं लिख पाते.

अनेक ऐसे पत्रकार हुए, हिंदी या अंगरेजी में, जिनकी औपचारिक शिक्षा नहीं थी, पर उनमें आवेग था, प्रतिबद्धता थी, वैचारिक आग्रह था. समाज के प्रति कुछ करने की धुन थी. यह जज्बा पैदा होता था, राजनीति से. उस राजनीति से, जिसमें विचार जिंदा थे, जो राजनीति धंधा नहीं थी और न सत्ता पाने का महज मंच. डाक्टर लोहिया, जब लोकसभा का उपचुनाव जीत कर गये, तो उन्होंने लोकसभा में हिंदी में बोलना शुरू किया. तब तक संसद में अंगरेजी ही सबसे प्रभावी भाषा थी. पर डॉ लोहिया के भाषणों में वैचारिक तत्व इतने प्रखर और तेजस्वी थे कि अंगरेजी जाननेवाले विद्वानों-धुरंधर पत्रकारों ने हिंदी पढ़ी, सीखी और जानी. समाज, देश या राजनीति में सबसे प्रमुख है, चरित्र, विचार और पैशन. यह पैदा होता है, सिर्फ वैचारिक राजनीति से. चरित्रहीन राजनीति या गद्दी की राजनीति से नहीं. आजादी की लड़ाई में ऐसे ही वैचारिक और चरित्रवान राजनेता हुए, तो पत्रकारिता भी बदल गयी. एक से एक विचारवान पत्रकार उभरे. कुछ लोगों को गलत धारणा है कि आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता ने राजनीति बदली.

दरअसल, उस वक्त की राजनीति में इतना तेज, ताप और चरित्र था कि उसने जीवन के हर क्षेत्र को बदल दिया. एक से एक बढ़कर शिक्षक हुए, वकील हुए, समाजसेवी हुए. कामराज जैसे लगभग अशिक्षित लोगों ने राजनीति में नयी लकीर खींच दी. तमिलनाडु में प्रशासन, विकास और राजनीति के उच्च मापदंड स्थापित किये, कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में. राजनीति की गरिमा को ऊंचाई दी, अपने आचरण और काम से. आज कौन पढ़ा-लिखा राजनीतिज्ञ, उनके पासंग बराबर भी दिखायी देता है.

अपवादों की बात छोड़ दें. आज समाज की मुख्यधारा यही है. हर क्षेत्र में औसत, प्रतिभाहीन, समझौता- परस्त और किसी तरह शिखर छूने को बेचैन लोग. यह आज के समाज का दर्शन है. ईमानदार, चरित्रवान तो बोझ बन गये हैं. इस आबोहवा और माहौल में सही पत्रकार बनना कठिन है. फिर भी इस कोशिश की प्रशंसा होनी चाहिए.

पत्रकारिता जो की लोकतंत्र का स्तम्भ है, जिसकी समाज के प्रति एक अहम भूमिका होती है, ये समाज में हो

रही बुराईयों को जनता के सामने लाता है तथा उन बुराईयों को खत्म करने के लिए लोगो को प्रेरित करता है। पत्रकारिता समाज और सरकार के प्रति एक ऐसी मुख्य कड़ी है, जो कि समाज के लोगो और सरकार को आपस में जोड़े रहती है। वह जनता के विचारों और भावनाओं को सरकार के सामने रखकर उन्हे प्रतिबिंबित करता है तथा लोगो में एक नई राष्टीय चेतना जगाता है।
पत्रकारिता वास्तव में जीवन में हो रही विभिन्न क्रियाकलापों व गतिविधियों की जानकारी देता है। वास्तव में पत्रकारिता वह है जो तथ्यों की तह तक जाकर उसका निर्भिकता से विश्लेशण करती है और अपने साथ सुसहमति रखने वाले व्यक्तियों और वर्गो को उनके विचार अभिव्यक्ति करने का अवसर देती है।

ज्ञात रहे कि पत्रकारिता के माध्यम से हम देश में क्रान्ति ला सकते है, देश में फैली कई बुराईयो को हमेशा के लिए खत्म कर सकते है। अत: पत्रकारिता का उपयोग हम जनहित और समाज के भलाई के लिए करें न कि किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में। पत्रकारिता की छवी साफ सुथरी रहे तभी समाज के कल्याण की उम्मीद कर सकते है।

पत्रकारिता को मिशन माना जाता था

एक समय आएगाजब हिंदी पत्र रोटरी पर छपेंगेसंपादकों को ऊंची तनख्वाहें मिलेंगीसब कुछ होगा किन्तु उनकी आत्मा मर जाएगीसम्पादकसम्पादक न होकर मालिक का नौकर होगा।
स्वतंत्रता आंदोलन को अपनी कलम के माध्यम से तेज करने वाले बाबूराव विष्णु पराड़कर जी ने यह बात कही थी। उस समय उन्होंने शायद पत्रकारिता के भविष्य को भांप लिया था। पत्रकारिता की शुरूआत मिशन से हुई थी जो आजादी के बाद धीरे-धीरे प्रोफेशन बन गया और अब इसमें कामर्शियलाइजेशन का दौर चल रहा है।
स्वतंत्रता आंदोलन को सफल करने में पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उस समय पत्रकारिता को मिशन के तौर पर लिया जाता था और पत्रकारिता के माध्यम से निःस्वार्थ भाव से सेवा की जाती थी। भारत में पत्रकारिता की नींव रखने वाले अंग्रेज ही थे। भारत में सबसे पहला समाचार पत्र जेम्स अगस्टस हिक्की ने वर्ष 1780 में बंगाल गजट निकाला। अंग्रेज होते हुए भी उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से अंग्रेजी शासन की आलोचना की, जिससे परेशान गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने उन्हें प्रदत्त डाक सेवाएं बंद कर दी और उनके पत्र प्रकाशन के अधिकार समाप्त कर दिए। उन्हें जेल में डाल दिया गया और जुर्माना लगाया गया। जेल में रहकर भी उन्होंने अपने कलम की पैनी धार को कम नहीं किया और वहीं से लिखते रहे। हिक्की ने अपना उद्देश्य घोषित किया था-
“अपने मन और आत्मा की स्वतंत्रता के लिए अपने शरीर को बंधन में डालने में मुझे मजा आता है।”
हिक्की गजट द्वारा किए गए प्रयास के बाद भारत में कई समाचार पत्र आए जिनमें ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाजें उठने लगी थी। समाचार पत्रों की आवाज दबाने के लिए समय-समय पर प्रेस सेंसरशिप व अधिनियम लगाए गए लेकिन इसके बावजूद भी पत्रकारिता के उद्देश्य में कोई परिवर्तन नहीं आया। भारत में सर्वप्रथम वर्ष 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल गजट का प्रकाशन किया। इसके बाद कई दैनिक, साप्ताहिक व मासिक पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ जिन्होंने ब्रिटिश अत्याचारों की जमकर भत्र्सना की।
राजा राम मोहन राय ने पत्रकारिता द्वारा सामाजिक पुनर्जागरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।ब्राह्मैनिकल मैगजीन के माध्यम से उन्होंने ईसाई मिशनरियों के साम्प्रदायिक षड्यंत्र का विरोध किया तो संवाद कौमुदी द्वारा उन्होंने महिलाओं की स्थिति में सुधार करने का प्रयास किया। मीरात-उल-अखबार के तेजस्वी होने के कारण इसे अंग्रेज शासकों की कुदृष्टि का शिकार होना पड़ा।
जेम्स बकिंघम ने वर्ष 1818 में कलकत्ता क्रोनिकल का संपादन करते हुए अंग्रेजी शासन की कड़ी आलोचना की, जिससे घबराकर अंग्रेजों ने उन्हें देश निकाला दे दिया। इंग्लैंड जाकर भी उन्होंनेआरियेंटल हेराल्ड पत्र में भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों को उजागर किया।
हिन्दी भाषा में प्रथम समाचार पत्र लाने का श्रेय पं. जुगल किशोर को जाता है। उन्होंने 1826 में उदन्त मार्तण्ड पत्र निकाला और अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों की आलोचना की। उन्हें अंग्रेजों ने प्रलोभन देने की भी कोशिश की लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया और आर्थिक समस्याओं से जूझते हुए भी पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रवाद की मशाल को और तीव्र किया।
1857 की विद्रोह की खबरें दबाने के लिए गैगिंग एक्ट लागू किया। उस समय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता अजीमुल्ला खां ने दिल्ली से पयामे आजादी निकाला जिसने ब्रिटिश कुशासन की जमकर आलोचना की। ब्रिटिश सरकार ने इस पत्र को बंद करने का भरसक प्रयास किया और इस अखबार की प्रति किसी के पास पाए जाने पर उसे कठोर यातनाएं दी जाती थी। इसके बाद इण्डियन घोष, द हिन्दू, पायनियर, अमृत बाजार पत्रिका, द ट्रिब्यून जैसे कई समाचार पत्र सामने आए।
लोकमान्य तिलक ने पत्रकारिता के माध्यम से उग्र राष्ट्रवाद की स्थापना की। उनके समाचार पत्रमराठा और केसरी, उग्र प्रवृत्ति का जीता जागता उदाहरण है। गांधीजी ने पत्रकारिता के माध्यम से पूरे समाज को एकजुट करने का कार्य किया और स्वाधीनता संग्राम की दिशा सुनिश्चित की। नवभारत, नवजीवन, हरिजन, हरिजन सेवक, हरिजन बंधु, यंग इंडिया, आदि समाचार पत्र गांधी जी के विचारों के संवाहक थे। गांधी जी राजनीति के अलावा अन्य विषयों पर भी लिखते थे। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों को भी उजागर कर इसे समाप्त करने पर बल दिया। गणेश शंकर विद्यार्थी ने कानपुर से प्रताप नामक पत्र निकाला जो अंग्रेजी सरकार का घोर विरोधी बन गया। अरविंद घोष ने वंदे मातरम, युगांतर, कर्मयोगी और धर्म आदि का सम्पादन किया। बाबू राव विष्णु पराड़कर ने वर्ष 1920 में आज का संपादन किया जिसका उद्देश्य आजादी प्राप्त करना था।
आजादी से पहले पत्रकारिता को मिशन माना जाता था और भारत के पत्रकारों ने अपनी कलम की ताकत आजादी प्राप्त करने में लगाई। आजादी मिलने के बाद समाचार पत्रों के स्वरूप में परिवर्तन आना स्वाभाविक था क्योंकि उनका आजादी का उद्देश्य पूरा हो चुका था। समाचार-पत्रों को आजादी मिलने और साक्षरता दर बढ़ने के कारण आजादी के बाद बड़ी संख्या में समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन होने लगा। साथ ही रेडिया एवं टेलीविजन के विकास के कारण मीडिया जगत में बड़ा बदलाव देखा गया। स्वतंत्रता से पहले जिस पत्रकारिता को मिशन माना जाता था अब धीरे-धीरे वह प्रोफेशन में बदल रही थी।
वर्ष 1947 से लेकर वर्ष 1975 तक पत्रकारिता जगत में विकासात्मक पत्रकारिता का दौर रहा। नए उद्योगों के खुलने और तकनीकी विकास के कारण उस समय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में भारत के विकास की खबरें प्रमुखता से छपती थी। समाचार-पत्रों में धीरे-धीरे विज्ञापनों की संख्या बढ़ रही थी व इसे रोजगार का साधन माना जाने लगा था।
वर्ष 1975 में एक बार फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर काले बादल छा गए, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर मीडिया पर सेंसरशिप ठोक दी। विपक्ष की ओर से भ्रष्टाचार, कमजोर आर्थिक नीति को लेकर उनके खिलाफ उठ रहे सवालों के कारण इंदिरा गांधी ने प्रेस से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली। लगभग 19 महीनों तक चले आपातकाल के दौरान भारतीय मीडिया शिथिल अवस्था में थी। उस समय दो समाचार पत्रों द इंडियन एक्सप्रेस और द स्टेट्समेन ने उनके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की तो उनकी वित्तीय सहायता रोक दी गई। इंदिरा गांधी ने भारतीय मीडिया की कमजोर नस को अच्छे से पहचान लिया था। उन्होंने मीडिया को अपने पक्ष में करने के लिए उनको दी जाने वाली वित्तीय सहायता में इजाफा कर दिया और प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी। उस समय कुछ पत्रकार सरकार की चाटुकारिता में स्वयं के मार्ग से भटक गए और कुछ चाहकर भी सरकार के विरूद्ध स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को नहीं प्रकट कर सकें। कुछ पत्रकार ऐसे भी थे जो सत्य के मार्ग पर अडिग रहें। आपातकाल के दौरान समाचार पत्रों में सरकारी प्रेस विज्ञप्तियां ही ज्यादा नजर आती थी। कुछ सम्पादकों ने सेंसरशिप के विरोध में सम्पादकीय खाली छोड़ दिया। लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी एक पुस्तक में कहा है-
“उन्होंने हमें झुकने के लिए कहा और हमने रेंगना शुरू कर दिया।”
1977 में जब चुनाव हुए तो मोरारजी देसाई की सरकार आई और उन्होंने प्रेस पर लगी सेंसरशिप को हटा दिया। इसके बाद समाचार पत्रों ने आपातकाल के दौरान छिपाई गई बातों को छापा। पत्रकारिता द्वारा आजादी के दौरान किया गया संघर्ष बहुत पीछे छूट चुका था और पत्रकारिता अब पेशे में तब्दील हो चुकी थी।भारत में एक और ऐसी घटना घटी जिसने पत्रकारिता के स्वरूप को एक बार फिर बदल दिया। वर्ष 1991 की उदारीकरण की नीति और वैश्वीकरण के कारण पत्रकारिता पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और पत्रकारिता में धीरे-धीरे कामर्शियलाइजेशन का दौर आने लगा।
आम जनता को सत्य उजागर कर प्रभावित करने वाले मीडिया पर राजनीति व बाजार का प्रभाव पड़ना शुरू हो गया। पत्रकारों की कलम को बाजार ने प्रभावित कर खरीदना शुरू कर दिया। वर्तमान दौर कामर्शियलाइजेशन का ही दौर है, जिसमें मीडिया के लिए समाचारों से ज्यादा विज्ञापन का महत्व है। बाजार में उपलब्ध उत्पादों का प्रचार समाचार बनाकर किया जा रहा है। आज समाचार का पहला पृष्ठ भी बाजार खरीदने लगा है। वहीं पिछले कुछ दिनों में पत्रकारिता में भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आए उसको देखकर पत्रकारिता का उद्देश्य धुंधला होता नजर आता है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में जिस तरह कुछ पत्रकारों की भूमिका सामने आई उसको देखकर अब आम जन का विश्वास भी मीडिया से हट रहा है।
आजादी से पहले पत्रकारों ने किसी भी प्रलोभनों में आए बिना निःस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य निभाया था। अंग्रेजों द्वारा प्रेस पर रोक लगाने के बाद भी उन्होंने अपनी कलम को नहीं रोका, लेकिन आज परिस्थितियां बदलती नजर आ रहीं हैं। पत्रकारिता आज सेवा से आगे बढ़कर व्यवसाय में परिवर्तित हो चुकी है। यहां पर एक बार फिर पराड़कर जी के वही शब्द याद आते हैं जिनमें उन्होंने पत्रकारिता के भविष्य को भांप लिया था-
“एक समय आएगा, जब हिंदी पत्र रोटरी पर छपेंगे, संपादकों को ऊंची तनख्वाहें मिलेंगी, सब कुछ होगा किन्तु उनकी आत्मा मर जाएगी, सम्पादक, सम्पादक न होकर मालिक का नौकर होगा।”

Sunday, April 24, 2016

पत्रकारिता का महत्व और उद्देश्य

हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी

आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी।
पत्र- पत्रिकाओं में सदा से ही समाज को प्रभावित करने की क्षमता रही है। समाज में जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा, और जो होना चाहिए यानी जिस परिवर्तन की जरूरत है, इन सब पर पत्रकार को नजर रखनी होती है। आज समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। इसलिए उसके सामाजिक और व्यावसायिक उत्तरदायित्व भी बढ़ गए हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य सच्ची घटनाओं पर प्रकाश डालना है, वास्तविकताओं को सामने लाना है। इसके बावजूद यह आशा की जाती है कि वह इस तरह काम करे कि ‘बहुजन हिताय’ की भावना सिद्ध हो।
महात्मा गांधी के अनुसार, ‘पत्रकारिता के तीन उद्देश्य हैं- पहला जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाएं जागृत करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को नष्ट करना है। गांधी जी ने पत्रकारिता के जो उद्देश्य बताए हैं, उन पर गौर करें तो प्रतीत होता है कि पत्रकारिता का वही काम है जो किसी समाज सुधारक का हो सकता है।
पत्रकारिता नई जानकारी देता है, लेकिन इतने से संतुष्ट नहीं होता वह घटनाओं, नई बातों नई जानकारियों की व्याख्या करने का प्रयास भी करता है। घटनाओं का कारण, प्रतिक्रियाएं, उनकी अच्छाई बुराइयों की विवेचना भी करता है।
पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के अनुसार, पत्रकारिता पेशा नहीं, यह जनसेवा का माध्यम है। लोकतांत्रिक परम्पराओ की रक्षा करने शांति और भाईचारे की भावना बढ़ाने में इसकी भूमिका है।
समाज के विस्तृत क्षेत्र के संदर्भ में पत्रकारिता के निम्नलिखित उद्देश्य व दायित्व बताये जा सकते है-
. नई जानकारियां उपलब्ध कराना
. सामाजिक जनमत को अभिव्यक्ति देना
. समाज को उचित दिषा निर्देश देना
. स्वस्थ मनोरंजन की सामग्री देना
. सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की दिशा में प्रभावी कदम उठाना
. धार्मिक सांस्कृतिक पक्षों का निष्पक्ष विवेचन करना
. सामान्यजन को उनके अधिकार समझाना
. कृषि जगत व उद्योग जगत की उपलब्धियां जनता के सामने लाना
. सरकारी नीतियों का विश्लेषण और प्रसारण
. स्वास्थ्य जगत के प्रति लोगों को सतर्क करना
. सर्वधर्म समभाव को पुष्ट करना
. संकटकालीन स्थितियों में राष्ट्र का मनोबल बढ़ाना
. वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का प्रसार करना
समाज में मानव मूल्यों की स्थापना के साथ जन जीवन को विकासोन्मुख बनाना पत्रकारिता का दायित्व है। पत्रकारिता के सामाजिक और व्यवसायिक उत्तरदायित्व के अनेकानेक आयाम हैं। अपने इन उत्तरदात्वि का निर्वाह करने के लिए पत्रकार का एक हाथ हमेशा समाज की नब्ज पर होता है।


पत्रकारिता का क्षेत्र एवं परिधि बहुत व्यापक है। उसेक किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता । जीवन के प्रत्येख क्षेत्र में हो रही हलचलों, संभावनाओं पर विचार कर एक नई दिशा देने का काम पत्रकारिता के क्षेत्र में आ जाता है । पत्रकारिता जीवन के प्रत्येक पहलू पर नजर रखती है । इन अर्थों में उसका क्षेत्र व्यापक है । एक पत्रकार के शब्दों में “समाचार पत्र जनता की संसद है, जिसका अधिवेशन सदैव चलता रहता है ।” इस समाचार पत्र रूपी संसद का कबी सत्रवासान नहीं होता । जिस प्रकार संसद में विभिन्न प्रकार की समस्याओ पर चर्चा की जाती है, विचार-विमर्श किया जाता है, उसी प्रकार समाचार-पत्रों का क्षेत्र भी व्यापक एवं बहुआयाम होता है । पत्रकारिता तमाम जनसमस्याओं एवं सवालों से जुड़ी होती है, समस्याओं को प्रसासन के सम्मुख प्रस्तुत कर उस पर बहस को प्रोत्साहित करती है । समाज जीवन के हर क्षेत्र में आज पत्रकारिता की महत्ता स्वीकारी जा रही है । आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, विज्ञान, कला सब क्षेत्र पत्रकारिता के दायरे में हैं । इन संदर्भों में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आर्थिक पत्रकारिता का महत्व खासा बढ़ गया है । नई आर्थिक नीतियों के प्रभावों तथा जीवन में कारोबारी दुनिया एवुं शेयर मार्केट के बढ़ते हस्तक्षेप ने इसका महत्व बढ़ा दिया है । तमाम प्रमुख पत्र संस्थानों ने इसी के चलते अपने आर्थिक प्रकाशन प्रारंभ कर दिए हैं । इकॉनॉमिक टाइम्स (टाइम्स अफ इंडिया), बिजनेस स्टैण्डर्ड (आनंद बाजार पत्रिका), फाइनेंशियल एक्सप्रेस (इंडियन एक्सप्रेस) के प्रकाशकों ने इस क्षेत्र में गंभीरता एवं क्रांति ला दी है । जन्मभूमि प्रकाशन ‘व्यापार’ नामक गुजराती पत्र ने अपने पाठक वर्ग में अच्छी पहचान बनाई है । अव वह हिंदी में भी अपना साप्ताहिक संस्करण प्रकाशित कर रहा है । हिंदी-अंग्रेजी में तमाम व्याप-पत्रिकाएं इकॉनॉमिस्ट, व्यापार भारती, व्यापार जगत, शेयर मार्केट, कैपिटल मार्केट, इन्वेस्टमेंट, मनी आदि नामों से आ रही हैं ।

अर्थव्यवस्था प्रधान युग होने के कारण प्रत्येक प्रमुख समाचार-पत्र दो से चार पृष्ठ आर्थिक गतिविधियों के लए आरक्षित कर रहा है । इसमें आर्थिक जगत से जुड़ी घटनाओं, कम्पनी समाचारों, शेयर मार्केट की सूचनाओं , सरकारी नीति में बदलावों, मुद्रा बाजार, सराफा बाजार एवं विविध मण्डियों से जुड़े समाचार छपते हैं । ऐसे में देश-विदेश के अर्थ जगत से जुड़ी प्रत्येक गतिविदि आर्थिक समाचारों एवं आर्थिक पत्रकारिता का हिस्सा बन गई हैं । राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तनों के बाजार एवं अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेंगे इसकी व्याख्या भी आर्थिक पत्रकारिता का विषय क्षेत्र है ।

इसी प्रकार ग्रमीण क्षेत्रों की रिपोर्टिंग के संदर्भ में पत्रकारिता का महत्व बढ़ा है । भारत गावों का देश है । देश की अधिकांश आबादी गांवों मे रहती है । अतः देश के गांवों में रह रहे लाखों-करोड़ों देशवासियों की भावनाओं का विचार कर उनके योग्य एवं उनके क्षेत्र की सामग्री का प्रकासन पत्रों का नैतिक कर्तव्य है । एक परिभाषा के मुताबिक जिन समाचार-पत्रों में 40 प्रतिशत से ज्यादा सामग्री गांवों के बारे में, कृषि के बारे में, पशुपालन, बीज, खाद, कीटनाशक, पंचायती राज, सहकारिता के विषयों परहोगी उन्हीं समाचार पत्रों को ग्रमीण माना जाएगा ।

तमाम क्षेत्रीय-प्रांतीय अखबार आज अपने आंचलिक संस्करण निकाल रहे हैं, पर उनमें भी राजनीतिक खबरों, बयानों का बोलबाला रहता है । इसके बाद भी आंचलिक समाचारों के चलते पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हुआ है और उसकी महत्ता बढ़ी है ।
पत्रकारिता के प्रारम्भिक दौर में घटना को यथातथ्य प्रस्तुत करना ही पर्याप्त माना जाता थआ । परिवर्तित परिस्तितियों में पाठक घटनाओं के मात्र प्रस्तुतीकरण से संतुष्ट नहीं होता । वह कुछ “और कुछ” भी जानना चाहता है । इसी “और” की संतुष्टि के लिए आज संवाददाता घटना की पृष्ठभूमि और कारणोंकी भी खोज करता है । पृष्ठभूमि के बाद वह समाचार का विश्लेषण भी करता है । इस विश्लेषणपरकता का कारण पाटक को घटना से जुड़े विविध मुद्दों का बई पता चल जाता है । टाइम्स आफ इंडिया आदि कुछ प्रमुख पत्र नियमित रूप से “समाचार विश्लेषण” जैसे स्तंभों का प्रकाशन भी कर रहे हैं । प्रेस स्वतंत्रता पर अमेरिका के प्रेस आयोग ने यह भी स्वीकार किया था कि अब समाचार के तथ्यों को सत्य रूप से रिपोर्ट करना ही पर्याप्त नहीं वरन् यह भी आवश्यक है कि तथ्य के सम्पूर्ण सत्य को भी प्रकट किया जाए।

पत्रकार का मुख्य कार्य अपने पाठकों को तथ्यों की सूचना देना है । जहां सम्भव हो वहां निष्कर्ष भी दिया जा सकता है। अपराध तथा राजनैतिक संवाददाताओं का यह मुख्य कार्य है । तीसरा एक मुख्य दायित्व प्रसार का है । आर्थिक-सामाजिक जीवन के बारे में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण ही पर्याप्त नहीं वरन उनका प्रसार भी आवश्यक है । गम्भीर विकासात्मक समस्याओं से पाठकों को अवगत कराना भी आवश्यक है । पाठक को सोचने के लिए विवश कर पत्रकार का लेखन सम्भावित समाधानों की ओर भी संकेत करता है । विकासात्मक लेखन में शोध का भी पर्याप्त महत्व है ।

शुद्ध विकासात्मक लेखक के क्षेत्रों को वरिष्ठ पत्रकार राजीव शुक्ल ने 18 भागों में विभक्त किया है – उद्योग, कृषि, शिक्षा और साक्षरता, आर्थिक गतिविधियाँ, नीति और योजना, परिवहन, संचार, जनमाध्यम, ऊर्जा और ईंधन, श्रम व श्रमिक कल्याण, रोजगार, विज्ञान और तकनीक, रक्षा अनुसन्धान और उत्पाद तकनीक, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाएं, शहरी विकास, ग्रमीण विकास, निर्माण और आवास, पर्यावरण और प्रदूषण ।

पत्रकारिता के बढ़ते महत्व के क्षेत्रों में आधुनिक समय मे संदर्भ पत्रकारिता अथवा संदर्भ सेवा का विशिष्ट स्थान है । संदर्भ सेवा का तात्पर्य संदर्भ सामग्री की उपलब्धता से है । सम्पादकीय लिखते समय किसी सामाजिक विषय पर टिप्पणी लिखने के लिए अथवा कोई लेख आदि तैयार करने क दृष्टि से कई बार विशेष संदर्भों की आवश्यकता होती है । ज्ञान-विज्ञान के विस्तार तता यांत्रिक युक की व्यवस्थाओं में कोई भी पत्रकार प्रत्येक विषय को स्मरण शक्ति के आधार पर नहीं लिख सकता । अतः पाठकों को सम्पूर्ण जानकारी देने के लिअ आवश्यक है कि पत्र-प्रतिष्ठान के पास अच्छा सन्दर्भ साहित्य संग्रहित हो । कश्मीरी लाल शर्मा ने “संदर्भ पत्रकारिता” विषयक लेख में सन्दर्भ सेवा के आठ वर्ग किए हैं – कतरन सेवा, संदर्भ ग्रंथ, लेख सूची, फोटो विभाग, पृष्ठभूमि विभाग, रिपोर्ट विभाग, सामान्य पुस्तकों का विबाग और भण्डार विभाग ।

संसद तथा विधान-मण्डल समाचार-पत्रों के लिए प्रमुख स्रोत हैं । इन सदनों की कार्यवाही के दौरान समाचार-पत्रों के पृष्ठ संसदीय समाचारों से भरे रहते हैं । संसद तथा विधानसभा की कार्यवाही में आमजन की विशेष रुचि रहती है । देश तथा राज्य की राजनीतिक, सामाजिक आदि गतिविधियां यहां की कार्यवाही से प्रकट होती रहती हैं, जिसे समाचार-पत्र ही जनता तक पहुंचा कर उनका पथ-प्रदर्शन करते हैं ।

संसदीय कार्यवाही की रिपोर्टिंग के समय विशेष दक्षता और सावधानी की आवश्यकता है । इनसे संबंधित कानूनों तथा संसदीय विशेषाधिकार की जानकारी होना प्रत्येक पत्रकार के लिए आवश्यक है ।

खेलों का मानव जीवन से कापी पुराना संबंध हे । मनोरंजन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मनुष्य ने इनके महत्व को समझा है । आधुनिक विश्व में विभिन्न देशों के मध्य होने वाली प्रतियोगिताओं के कारण कई खेल व खिलाड़ी लोकप्रिर होने लगे हैं । ओलम्पिक तथा एशियाई आदि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के कारण भी खेलों के प्रति रुचि में विकास हुआ।

शायद ही कोई दिन ऐसा हो जब राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी न किसी प्रतियोगिता का आयोजन नहीं हो रहा है । अतः खेलों के प्रति जन-जन की रुचि को देखते हुए पत्र-पत्रिकाओं में खेलों के समाचार तथा उनसे संबंधित नियमित स्तंभों का प्रकाशन किया जाता है । प्रायः सभी प्रमुख समाचार पत्र पूरा एक पृष्ठ खेल जगत की हलचलों को देते हैं ।

आजकल तो खेल खिलाड़ी, खेल युग, खेल हलचल, स्पोर्टस वीक, क्रिकेट सम्राट आदि अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं जो विश्व भर की खेल हलचलों को अपने पत्र में स्थान देती हैं ।

पत्रकारिता का महत्व छिपे तथ्यों को उजागर करने में स्वीकारा गया है । वह तमाम क्षेत्र की विशिष्ट सूचनाएं जनता को बताती हैं । जब जहाँ कोई व्यक्ति या अधिकारी कोई तथ्य छिपाना चाहता हो अथवा कोई तथ्य अनुद्घाटित हो, वहीं अन्वेषणात्मक पत्रकारिता प्रारम्भ हो जाती है । उस समाचार या तथ्य को प्रकाश में लाने के लिए पत्रकार तत्पर हो जाता है। अमेरिका का “वाटरगेट कांड” इस दृष्टि से उल्लेखनीय है । इस काण्ड के चलते सत्ता परिवर्तन के बाद अन्वेषणात्मक पत्रकारिता को विशेष प्रोत्साहन तथा मान्यता मिली ।

यदि अन्वेषणात्मक पत्रकारिता सही उद्देश्यों से अनुप्रमाणित होकर की जाए तो यह समाज और राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी सेवा हो सकती है । यदि चरित्र-हनन तथा किसी व्यक्ति या संस्था को अपमानित या बदनाम करने की नीयत स ऐसी पत्रकारिता की जाएगी तो वह “पीत पत्रकारिता”की श्रेणी में आ जाती है ।

फिल्में आज हमारे समाज को बहुत प्रभावित कर रही हैं । अतः फिल्मी पत्र-पत्रिकाएं भी पाठक वर्गों में खासी लोकप्रिय हैं । फिल्मों की समीक्षाएं, फिल्मी कलाकारों के साक्षात्कार, फिल्म निर्माण से जुड़े कलाकारों के साक्षात्कार, फिल्म के विविध कलात्मक एवं तकनीकी पक्षों पर टिप्पणियां, फिल्मी पत्रकारिता का ही हिस्सा हैं । सम्प्रति हिंदी-अंग्रेजी सहित सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्मी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । प्रत्येक प्रमुख समाचार पत्र फिल्मों पर केंद्रित रंगीन परिशिष्ट या सामग्री प्रकाशित करता ही है । फिल्मी पत्रकारिता के क्षेत्र में विनोद भारद्वाज, विनोद तिवारी, प्रयाग शुक्ल, राजा दुबे, जयसिंह रघुवंशी जय, राम सिंह ठाकुर, विजय अग्रवाल, ब्रजेश्वर मदान, जयप्रकाश चौकसे, अजय ब्रम्हात्मज, जांद खां रहमानी, हेमंत शुक्ल, श्रीश, श्रीराम ताम्रकार जैसे तमाम पत्रकार गंभीरता के साथ काम कर रहे हैं । इसके अलावा सिने स्टार, जी स्टार, स्टार डस्ट, फिल्मी कलियां, मायापुरी, स्क्रीन, पटकथा, फिल्म फेयर जैसी संपूर्ण फिल्म पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । इसके अलावा हिंदी की सभी प्रमुख पत्रिकाएं इण्डिया टुजे, आउटलुक, धर्मयुग, सरिता, मुक्ता आदि प्रत्येक अंक में फिल्मों पर सामग्री प्रकाशित करती हैं । सारे प्रमुख समाचार पत्रों में सिनेमा पर विविध सामग्री प्रकासित होती है । इसके चलते फिल्म पत्रकारिता, पत्रकारिता का एक प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरी है । इसने पत्रकारिता के महत्व एवं लोकप्रियता में वृद्धि की है ।

पत्रकारिता के महद्व को आज इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की पत्रकारिता ने बहुत बढ़ा दिया है । इन्होंने समय एवं स्तान की सीमा को चुनौती देकर “सूचना विस्फोट” का युग ला दिया है । इस संदर्भ मे रेडियो पत्रकारिता का बहुत महत्व है । इनके महत्व क्रम में आकाशवाणी के वे कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं, जिनमें समाचार तत्व अधिक रहता है । आकाशवाणी के इन समाचार कार्यक्रमों को तैयार करने में आकाशवाणी का समाचार सेवा प्रभाग सक्रिय रहता है । इस प्रभाग का कार्य समाचारों का संकलन और प्रसारण है । आकाशवाणी के स्थायी और अंशकालिक संवाददाता पूरे देश में हैं । समाचार सेवा प्रभाग प्रतिदिन अपनी गृह, प्रादेशिक और वैदेशिक सेवाओं में 36 घंटों से भी अधिक समय में 273 समाचार बुलेटिन प्रसारित करता है । विदेश के प्रमुख शहरों में भी संवाददाता हैं, जो वहां की गतिविधियां प्रेषित करते हैं । प्रत्येक घंटे पर समाचार बुलेटिन के प्रसारण से आकाशवाणी जन-मानस को तुष्ट करती है । ‘समाचार दर्शन’, समाचार पत्रों से, विधानमण्डल समीक्षा, संसद समीक्षा, सामयिकि, जिले और राज्यों की चिट्ठी, रेडियो न्यूज़रील आदि कार्यक्रमों का प्रसारण इसी पत्रकारिता का अंग है । इसके अलावा सामयिक विषयों पर बहस, परिचर्चा एवं साक्षात्कारों का प्रसारण करके वह अपने श्रोताओं की मानसिक भूख शांत करता है ।

रेडियो पत्रकारिता आज एक विशेषज्ञतापूर्ण विधा है । जिसमें पत्रकार-सम्पादक को अपने कार्य में सशक्त भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। सीमित अवधि में समाचारों की प्रस्तुति एवं चयन रेडियो पत्रकार की दक्षता को साबित करते हैं । विविध समाचार एवं जानकारी प्रधान कार्यक्रमों के माध्यम से आकाशवाणी समग्र विकास की प्रक्रिया को बढ़ाने मे अग्रसर है ।

इसी प्रकार टेलीविज़न पत्रकारिता का फलक आज बहुत विस्तृत हो गया है । उपग्रह चैनलों की बढ़ती भीड़ के बीच यह एक प्रतिस्पर्धा एवं कौशल का क्षेत्र बन गया है । आधुनिक संचार-क्रांति में निश्चय ही इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता । इसके माध्यम से हमारे जीवन में सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है । ग्लोबल विलेज (वैश्विक ग्राम) की कल्पना को साकार रूप देने में यह माध्यम सबसे प्रभावी हुआ । दृश्य एवं श्रव्य होने के कारण इसकी स्वीकार्यता एवं विश्वसनीयता अन्य माध्यमों से ज्यादा है । भारत में 1959 ई. में आरंभ दूरदर्शन की विकास यात्रा ने आज सभी संचार माध्यमों की पीछे छोड़ दिया है । दूरदर्शन पत्रकारिता में समाचार संकलन, लेखन एवं प्रस्तुतिकरण संबंधी विशिष्ट क्षमता अपेक्षित होती है । दूरदर्शन संवाददाता घटना का चल-चित्रांकन करता है तथा वह परिचयात्मक विवरण हेतु भाषागत सामर्थ्य एवं वाणी की विशिष्ट शैली का मर्मज्ञ होता है । विविध स्रोतों से प्राप्त समाचारों के सम्पादन का उत्तरदायित्व समाचार संपादक का होता है । वह समाचारों को महत्वक्रम के अनुसार क्रमबद्ध कर सम्पादित करता है तथा से समाचार वाचक के समक्ष प्रस्तुत करने योग्य बनाता है । चित्रात्मकता दूरदर्शन का प्राणतत्व है । यह वही तत्व है जो समाचार की विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता को बढ़ाता है । आज तमाम निजी टीवी चैनलों में समाचार एवं सूचना प्रधान कार्यक्रमों की होड़ लगी है । सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सवालों पर परिचर्चाओं एवं बहस का आयोजन होता रहतै है । प्रतिस्पर्धा के वातावरण से टेलीविज़न की पत्रकारिता में क्रांति आ गई है और उसकी गुणवत्ता में निरंतर सुधार आ रहा है ।

इस प्रकार हम देखते हैं वर्तमान परिवेश में जहां प्रेस का दायरा विस्तृत हुआ हैं, वहीं उसकी महत्ता भी बढ़ी है । वह लोगों के होने और जीने में सहायक बन गया है । देश में जब तक लोकतंत्र रहेगा, उसकी प्राणवत्ता रहेगी, पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल रहेगा । आज क दर में बढ़ रहे विश्वनीयता के संकट, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा एवं तमाम दबावों के बावजूद प्रेस का वजूद न तो घटा है, न कम हुआ है । उसकी स्वीकार्यता निरंतर बड़ रही है, पाठकीयता बढ़ रही है, विविध रुचि की सामग्री आ रही है और अखबारो की संख्या में भी वृद्धि हो रही है । इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के क्षेत्र में तो क्रांति सी हो गई है ।

पतन क्योंकि मूल्यों के स्तर पर हुआ है । अतः उसके प्रभावों से पत्रकारिता अलग नहीं है । पत्रकारिता साहित्य एवं सुरुचि के संस्कार आज विदा होते दिख रहे हैं । इसके बावजूद तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो भाषा एवं अखबार की सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर काफी सचेत हैं । संस्थाओं की पत्रिकाएं बंद होने से एक बार लगा पत्रकारिता की नींव डगमगा रही है। पर उनके समानांतर क्षेत्रीय अखबारों की सत्ता एक बड़ी शक्ति के रूप में सामने आई है । बाहरी-भीतरी खतरे वं प्रभावों के बावजूद हमारी पत्रकारिता का प्रगति रथ सदैव बढ़ता नजर आया है । पत्रकारिता ने हर संकट को पार किया है, वह इस संक्रमण से भी ज्यादा ऊर्जावान एवं ज्यादा तेजस्वी बनकर सामने आएगी, बशर्ते वह अपनी भूमिका ‘जनपक्ष’ की बनाए और संकट मोल लेने का साहस पाले । पत्रकारिता से आज भी सामान्य जन की उम्मीदें मरी नहीं हैं ।

Wednesday, April 20, 2016

राजस्थानी

जीया जूण क्यों आंख्य हनेरो 
खोस्या घर अब डांग पर डेरो 
गई पढाई सारी बेकार 
घर म स्याणी सै हूँ गैली
फीरै भटकती मिनर मिनर 
फूट्या भाग बाबा की चेली
पेट पलान्याँ पगां उभाणी
बळती सिगड़ी सिर पर मेली

 पण कुन काई करे धारो चाल पड़ियो

लातां का भूत बातां हूँ नि मानें हाथाजोड़ी कांईं करै ?
बीन बीनणी जिंयां चाल्या 
गठजोड़ै की जात्
नेता संत सै भेळा होगा 
लीया अपराधी साथ 
अफसरशाही चँवर ढूळावै
जै जै भारत मात
भजन कीरतन करता डौलै
जनता सागै घात
दीखत का भलेरा दीखै
मुलकत चालै चाल
मंन मांहीं खोटा घडै
खाय हाथ न हाथ
साल सवाई करडी आसी
करसी दिन की रात
बिल बनाओ छीदा खेलो
चौतरफा अब करदयो हेलो
सुण ,र सुखदेव बात
हाथाजोड़ी काँई करै
अब भूत मांगे लात 

Monday, April 18, 2016

शुभकामनाएं

हिन्दी
अंग्रेज़ी
वर्णन

शुभकामनाएं : शादी

तुम्हारे शादी के अवसर पर बधाई हो. मेरा आशिर्वाद है की तुम सदा सुखी रहो.
Congratulations. Wishing the both of you all the happiness in the world.
हाल ही में जिनकी सादी हुई हो, उन्हे बधाई देते हुए
सुमंगली भव
Congratulations and warm wishes to both of you on your wedding day.
हाल ही में जिनकी सादी हुई हो, उन्हे बधाई देते हुए
शादी मुबारक
Congratulations on tying the knot!
अनौपचारिक, तुम्हारे करीबी मित्र जिनकी हाल ही में शादी हुई हो
शादी मुबारक
Congratulations on saying your "I do's"!
अनौपचारिक, तुम्हारे करीबी मित्र जिनकी हाल ही में शादी हुई हो
हमारा आशिर्वाद तुम्हारे साथ सदा रहेगा.
Congratulations to the bride and groom on their happy union.
शादी की बधाई देते हुए

शुभकामनाएं : सगाई

सगाई मुबारक
Congratulations on your engagement!
सगाई के लिए बधाई देते हुए
आशा है कि तुम दोनो सदा सुखी रहो.
Wishing both of you all the best on your engagement and everything lies ahead.
सगाई के लिए बधाई देते हुए
सगाई के लिए मुबारक हो. भगवान तुम्हे सदा सुखी रखें.
Congratulations on your engagement. I hope you will both be very happy together.
सगाई के लिए बधाई देते हुए
मुझे तुम्हारे सगाई की बात सुनकर बडी खुशी हुई. बधाई हो.
Congratulations on your engagement. I hope you will make each other extremely happy.
सगाई के लिए बधाई देते हुए
सगाई मुबारक. अब शादी कब हो रही है.
Congratulations on your engagement. Have you decided upon big day yet?
सगाई के लिए बधाई देते हुए और यह पूछते हुए कि शादी कब होगी

शुभकामनाएं : जन्मदिन और सालगिरह

जन्मदिन मुबारक हो
Birthday greetings!
सामान्य जन्म दिन की शुभकामनाएं
जन्मदिन मुबारक हो
Happy Birthday!
सामान्य जन्म दिन की शुभकामनाएं
जन्मदिन मुबारक हो
Many happy returns!
सामान्य जन्म दिन की शुभकामनाएं
तुम जियो हज़ारों साल
Wishing you every happiness on your special day.
सामान्य जन्म दिन की शुभकामनाएं
तुम्हारी सारी आशाएं आज पूरी हो. जन्मदिन मुबारक
May all your wishes come true. Happy Birthday!
सामान्य जन्म दिन की शुभकामनाएं
जन्मदिन मुबारक हो
Wishing you every happiness this special day brings. Have a wonderful birthday!
सामान्य जन्म दिन की शुभकामनाएं
सालगिरह मुबारक हो.
Happy Anniversary!
सालगिरह की शुभकामनाएं
सालगिरह मुबारक हो
Happy…Anniversary!
सालगिरह की शुभकामनाएं
आपके..वी शादी की वर्षगाँठ बधाई हो.
…years and still going strong. Have a great Anniversary!
शादी के वर्ष को महत्व देते हुए
२० वी सालगिरह मुबारक हो
Congratulations on your Porcelain Wedding Anniversary!
शादी की २० वी सालगिरह की शुभकामनाएं देते हुए
शादी की रजत जयंती पर बधाई हो.
Congratulations on your Silver Wedding Anniversary!
शादी की २५वी सालगिरह पर
शादी की ४० वी सालगिरह मुबारक हो.
Congratulations on your Ruby Wedding Anniversary!
शादी की ४० वी सालगिरह पर
शाद की ३० वी सालगिरह मुबारक हो.
Congratulations on your Pearl Wedding Anniversary!
शादी की ३० वी सालगिरह पर
शाद की ३५ वी सालगिरह मुबारक हो.
Congratulations on your Coral Wedding Anniversary!
शादी की ३५ वी सालगिरह पर
शाद की स्वर्ण जयंती मुबारक हो.
Congratulations on your Gold Wedding Anniversary!
शादी की ५० वी सालगिरह पर
शाद की ६० वी सालगिरह मुबारक हो.
Congratulations on your Diamond Wedding Anniversary!
शादी की ६० वी सालगिरह पर

शुभकामनाएं : तबियत ठीक होने की सांत्वना देते हुए

आशा है कि तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे
Get well soon.
सामान्य सांत्वना की कामनाएं करते हुए
आशा है कि तुम जल्द ही ठीक हो जाओगी
I hope you make a swift and speedy recovery.
सामान्य सांत्वना की कामनाएं करते हुए
हमारी आशा है कि तुम जल्द ही ठीक हो जाओगी
We hope that you will be up and about in no time.
एक स ज्यादा लोगों की सामान्य सांत्वना की कामनाएं करते हुए
तुम्हारी याद आती है. आशा है कि तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे
Thinking of you. May you feel better soon.
सामान्य सांत्वना की कामनाएं करते हुए
... की ओर से, आशा है कि तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे
From everybody at…, get well soon.
दफ्तर से कईं लोगों का सांत्वना देने के लिए
... की ओर से, आशा है कि तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे
Get well soon. Everybody here is thinking of you.
दफ्तर से कईं लोगों का सांत्वना देने के लिए

शुभकामनाएं : बधाईयाँ

... के लिए बधाईयाँ
Congratulations on…
सामान्य बधाईयाँ
मेरा आशिर्वाद है कि आगे जाकर तुम बडे कम करो
I wish you the best of luck and every success in…
भविष्य में सफलता की कामनाएं करते हुए
मेरा आशिर्वाद है कि आगे जाकर तुम बडे कम करो
I wish you every success in…
भविष्य में सफलता की कामनाएं करते हुए
... के लिए बहुत बहुत बधाई हो.
We would like to send you our congratulations on…
कोई काम के लिए किसी को बधाई देते हुए
... के लिए बहुत बहुत बधाई हो.
Well done on…
कोई काम के लिए किसी को बधाई देते हुए
परीक्षा में बढिया अंक लाने के लिए बधाई हो.
Congratulations on passing your driving test!
परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए बधाई देने के लिए
बधाई हो! हमे कोई शक नही था कि तुम सफल होगे.
Well done. We knew you could do it.
मित्र, रिश्तेदारों को बधाई देते हुए
बढिया है!
Congrats!
अनौपचारिक, असामान्य, बधाई

शुभकामनाएं : अकादमिक सफलताएं

परीक्षा पास करने के लिए बधाई हो.
Congratulations on your graduation!
विश्वविद्यालय की परीक्षा पास करने पर
परीक्षा पास करने के लिए बधाई हो.
Congratulations on passing your exams!
विद्यालय की परीक्षा पास करने पर
तुम तो बडे बुद्धिमान निकले
Who's a clever bunny then? Well done on acing your exam!
जब कोई परीक्षा पास करें तो बोलचाल की भाषा में कहतें हैं
परीक्षा पास करने के लिए बधाई हो, आशा है आगे जाकर तुम बडे काम करोगे
Congratulations on getting your Masters and good luck in the world of work.
विश्वविद्यालय की परीक्षा पास करने पर
परीक्षा पास करने के लिए बधाई हो, आशा है आगे जाकर तुम बडे काम करोगे
Well done on your great exam results and all the best for the future.
विश्वविद्यालय की परीक्षा पास करने पर
परीक्षा पास करने के लिए बधाई हो, आशा है आगे जाकर तुम बडे काम करोगे
Congratulations on your exam results. Wishing you all the best for your future career.
विश्वविद्यालय की परीक्षा पास करने पर
विश्वविद्यालय में मन लगाकर पढाई करना
Well done on getting into University. Have a great time!
विश्वविद्यालय में भरती होने पर

शुभकामनाएं : संवेदना

... की खबर सुनकर हमें बडा धक्का लगा. हमें बडा दुख है.
We are all deeply shocked to hear of the sudden death of…and we would like to offer our deepest sympathy.
किसी को किसी के देहांत पर सांत्वना देते हुए
... की बात सुनकर जी थम गया.
We are so very sorry to hear about your loss.
किसी करीबी व्यक्ती के देहांत पर शोक दिखाते हुए
... के बारे में सुनकर बडा दुख है.
I offer you my deepest condolences on this dark day.
किसी करीबी व्यक्ती के देहांत पर शोक दिखाते हुए
हमारे शोक को किस तरह प्रकट करेँ यह समझ नहीं आ रहा. ... की याद हमारे दिल में सदा रहेगी.
We were disturbed and saddened by the untimely death of your son/daughter/husband/wife, … .
किसी को अपने बेटे/बटी/पती/पत्नि के देहांत पर
इस कठिन समय में, हम आपके साथ है.
Please accept our deepest and most heartfelt condolences at this most challenging time.
किसी करीबी व्यक्ती के देहांत पर
इस कठिन समय में, हम आपके साथ है.
Our thoughts are with you and your family at this most difficult time of loss.
किसी के देहांत पर किसी को सांत्वना देते हुए

शुभकामनाएं : करीयर सफलताएं

तुम्हारी नई नौकरी के लिए शुभकामनाएँ.
We wish you the best of luck in your new job at…
अपने नए व्यापार में सफलता की शुभकामनाएं देते हुए
... की तरफ से, नए काम के लिए शुभकामनाएं
From all at…, we wish you the best of luck in your new job.
पुराने सहयोगी आपके नए काम के लिए शुभकामनाएं देते हैं तो
आशा है तुम्हारे नए काम में तुम बहुत तरक्की करो
We wish you the best of luck in your new position of…
पुराने सहयोगी नए काम के लिए किसी को शुभकामनाएँ देते हुए
आशा है तुम्हारे नए काम में तुम बहुत तरक्की करो
We wish you every success for your latest career move.
पुराने सहयोगी नए काम के लिए किसी को शुभकामनाएँ देते हुए
जिंदगी के नए मोड पर हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ है.
Congratulations on getting the job!
किसी को अपने नए व्यापार की शुभकामनाएं देते हुए
जिंदगी के इस नए मोड की शुरुआत में हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ है.
Good luck on your first day at…
किसी को अपने नए काम के पहले दिन पर शुभकामनाएं देते हुए

शुभकामनाएं : जन्म

बधाईयाँ! आपकी नई संतान मुबारक हो
We were delighted to hear of the birth of your new baby boy/girl. Congratulations.
किसी को अपने शिशू के जन्म की शुभकामनाएं देते हुए
आपकी नई संतान आपको मुबारकत हो
Congratulations on your new arrival!
किसी को अपने शिशू के जन्म की शुभकामनाएं देते हुए
जीवन की यह नई भूमिका तुम्हे अच्छी तरह जचेगी
For the new mother. Best wishes for you and your son/daughter.
माँ को अपने बच्चे की जन्म की बधाईयाँ देते हुए
बधाई हो!
Congratulations on the arrival of your new beautiful baby boy/girl!
माता-पिता को अपने बच्चे के जन्म पर
हमें कोई शक नही की नन्हे/नन्ही... का राजयोग है.
To the very proud parents of… . Congratulations on your new arrival. I'm sure you will make wonderful parents.
माता-पिता को अपने बच्चे के जन्म पर

शुभकामनाएं : धन्यवाद

... के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Many thanks for…
सामान्य रूप धन्यवाद
... और मेरी तरफ से, धनेयवाद!
I would like to thank you on behalf of my husband/wife and myself…
अपने और किसी और की तरफ से धन्यवाद देते हुए
... के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
I really don't know how to thank you for…
जब आप किसी के एहसानमंद हो तो.
हमारा धन्यवाद इस छोटे उपहार के रूप में दे रहें है.
As a small token of our gratitude…
किसी को धन्यवाद एक उपहार के रूप में देते हुए
हम आपको दिल से धन्यवाद कहना चाहते हैं.
We would like to extend our warmest thanks to…for…
जब आप किसी के एहसानमंद होते हो तब
हम आपके आभारी है... के लिए.
We are very grateful to you for…
जब आप किसी के एहसानमंद होते हो तब
धन्यवाद करने की कोई बात नहीं. ... हमारे भी फायदे का रहा है.
Don't mention it. On the contrary: we should be thanking you!
जब कोई आपको धन्यवाद करे किसी काम के लिए जो आपके लिए भी फायदेमंद रहा हो

शुभकामनाएं : सुअवसर अभिनन्दन

सीझनस ग्रीटिंग्स... की ओर से.
Season's greetings from…
अमेरिका में क्रिसमस और नए साल की शुभकामनाएं देने के लिए
क्रिसमस और नए साल की शुभकामनाएं... की ओर से
Merry Christmas and a Happy New Year!
अंग्रेज़ में क्रिसमस और नए साल की शुभकामनाएं देने के लिए
ईस्टर मुबारक!
Happy Easter!
ईसीई देशों में ईस्टर रविवार के दिन
थैंक्सगिविंग मुबारक!
Happy Thanksgiving!
अमेरिका में कृतज्ञता दिन मनाते हुए
नया साल मुबारक हो!
Happy New Year!
नए साल को मनाने के लिए
हैपी हॉलिडेस!
Happy Holidays!
अमेरिका और कनैडा में छुट्टियाँ मनाने के लिए
हनूका की शुभकामनाएं!
Happy Hanukkah!
हनूका मनाने के लिए
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं. दीपों की ज्योति की तरह आपका जीवन भी हमेशा उज्वलित् रहे.
Happy Diwali to you. May this Diwali be as bright as ever.
दिवाली मनाने के लिए