Tuesday, July 30, 2013

शैतान का सन्यास

शैतान का सन्यास

एक बार शैतान का मन अपने काम से ऊबा तो उसने सन्यास लेने की ठानी. अपनी सारी संपत्ति और सवारियाँ उसने बेचनी शुरू कर दी. बाजार के दिन झुण्ड के झुण्ड लोग आए और उन्हें खरीदने लगे.

नशेबाजी, चुगली, ईर्ष्या, बेईमानी, कुढ़न, शौकीनी, ऐय्याशी, जल्दबाजी, बदहवासी जैसी चीजें लोगों को खूब पसंद आई और उन्होंने मनमाने दाम देकर इन्हें खरीदा. जो न खरीद सके, वे हाथ मलते रह गए.

देखते-देखते शैतान का सारा असबाब बिक गया. अब उसके पास एक ही चीज बची, जिसे वह बेचना न चाहता था. खरीददारों में से एक ने कहा, “जब आप सब कुछ छोड़ रहे हैं तो इस एक चीज से इतनी ममता क्यों ? इसे भी बेचकर निश्चिन्त हो जाइए न !”

शैतान ने कहा, “यह मेरी सबसे प्रिय, कीमती और कारामाती चीज है. जो कुछ मैंने बेचा, वह इसके जरिए मैं फिर मैं फिर हासिल कर सकता हूँ. सन्यास में भी मन न लगा तो इसी के सहारे अपना कारोबार फिर शुरू कर दूँगा. इसे बेच दूँगा तो मेरा अस्तित्व हीं खतरे में पड़ जाएगा.”

उत्सुक लोगों ने शैतान से पूछा, “कृपया इस वस्तु का नाम तो बता दीजिए.” उसने गर्व से कहा, “यह है आलस्य. आलस्य के रहते वह सब मिलता हीं रहेगा, जो मैं चाहता हूँ.”

यदि मनुष्य में आलस्य है, तो उसमें बाकी सारे दुर्गुण अपने आप हीं आ जाते हैं.

No comments:

Post a Comment