Thursday, December 5, 2013

कैसे पा सकते हैं मनोवाछिंत औलाद

औलाद को प्राप्त करने की ईच्छा तो हर माँ-बाप को होती है और औलाद पाने के बाद उसे पूर्ण सुख की आशा भी माँ-बाप ही करते हैं। पर कुछ इस सुख से वंचित भी रह जाते हैं या औलाद का सुख न मिलने पर ईश्वर की मर्जी समझ कर अपने मन को दिलासा दे देते हैं कि हमारे कर्मों में यह सुख नही है। पर यह गल्त है। ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रख कर कार्य को पूर्ण करने का अधिकार ईश्वर ने हर प्राणी को दिया है। बस बात कुछ समझने या सूझ-बूझ की है। ईश्वर ने अपने हाथों को इस कदर फैला रखा है कि उनसे कोई भी कुछ भी मांगे वो देने को तैयार हैं। लेकिन उनके भी कुछ नियम व उसूल हैं। जैसे एक राजा के राज्य में रह कर राजा के प्रति वैर रख कर जीना मुश्किल हो जाता है। उसी प्रकार ईश्वर के जगत में रह कर उनके नियमों की उलंघना मुश्किलें पैदा कर देती है। ईश्वर ने तो मनुष्य को एक ही बात कही है, कि जो मर्जी मागों प्यार से सारा कुछ ले लो। जब ईश्वर आदमी व औरत को दाम्पत्य सुख का आनन्द दे सकता है तो संतान सुख से वंचित क्यों रखेगा। वैसे भी समझने की बात है कि अगर बाँस है तो बाँसुरी बनेगी और बाँस ही नहीं तो बाँसुरी कहाँ से बनेगी। उसी प्रकार अगर ईश्वर ने दाम्पत्य सुख में बाधा है तो संतान उत्पति भी अवश्य होगी। परन्तु बात आती है नियमों पर जैसे कि आदमी व औरत को इस कार्य सम्बन्धी पहले से पूर्ण तैयार होना चाहिए। उसके नियमों की पालना करके कार्य करने चाहिए। सन्तान उत्पति का ग्रहों से होता है। ग्रहों का सम्बन्ध शरीर से होता है। उसी प्रकार ग्रहों का सम्बन्ध देवी-देवताओं से होता है। इस लिये मनुष्य का इस सबसे गहरा नाता होता है। पति-पत्नी चाहे तो औलाद पैदा करना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। लेकिन कुछ कार्यों में मुश्किलों का सामना तो करना ही पड़ सकता है। अगर जिन्दगी में मुश्किलें ही न हो तो कामयाबी महसूस ही नहीं होती। जैसे खाना पकाने के लिये गैस की जरूरत होती है अगर गैस खत्म हो जाये तो मुश्किल पैदा हो जाती है। मुश्किल को कम करने के लिये कोशिश करते हैं और मिल जाने पर पूर्ण रूप से निश्चिंत होकर अपने कार्य में लग जाते हैं। मुश्किल न होती तो शायद कामयाबी न होती। उसी प्रकार इस कार्य में भी मुश्किलों से गुजरते हुए इन्सान कामयाबी हासिल कर लेता है। औलाद पाने के लिये इन्सान को सबसे पहले ईश्वर की भक्ति करना जरूरी है। उसके बाद अपने शरीर को स्वस्थ व आत्मा को स्वच्छ रखना चाहिए। अपने ग्रहों के अनुसार दिनों को अनुकूल करके अपने भाग्य को बदल सकते हैं। अपने कार्य को अंजाम दे सकते हैं।शायद आगे आप इन बातों पर खास ध्यान देगें। स्वर यानि सांस के द्वारा भी आदमी व औरत संतान प्राप्त कर सकते हैं। स्वर बदलने के लिये नियम दोनों को भली प्रकार से आने चाहिये। यह क्रिया 5 से 10 मिन्ट में ही हो जाती है। इस की जानकारी के लिये आदमी व औरत को अपनी नाक के दोनों छिद्रों को अलग-2 बंद करके सांस खीचना चाहिए। जिस छिद्र में सांस आसानी से खिंची जाए उस तरफ का उस समय का स्वर चल रहा है। यह जानें। जैसे कि नाक के बाएं छिद्र को अंगुली से बंद करके सांस खीचे अगर सांस आसानी से खींची जाये तो समझे कि दायें तरफ का स्वर चल रहा है। उसी प्रकार दूसरी तरफ भी जाँच लें। अगर आप स्वर बदलना चाहते हैं तो दायीं तरफ का स्वर चलाने के लिये बायीं तरफ करवट बदल कर लेट जायें और बायीं तरफ का स्वर चलाने के लिये दायीं तरफ लेट जायें। बस 5 से 10 मिन्ट में स्वर बदल जायेगा। 10-15 बार अभ्यास करने से आप इसके बारे में पूर्ण रूप से जान लेगें। दम्पति कन्या की प्राप्ति चाहते हैं तो औरत के रजस्राव से पांचवी, सातवीं, नोवीं, ग्यारहवीं, तेरहवीं, पद्रहवीं इनमें से कोई भी रात्री को पुरूष दायां स्वर स्त्री बायां स्वर चलाकर संभोग करें। संभोग करने का नियम कुछ इस प्रकार से है कि यह कार्य करते समय निरन्तर 20 मिन्ट के समय के अंदर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिये। रात्रि 12 बजे से पहले अपने स्वर बदल कर 12 से 12.20 तक संभोग कर कार्य सम्पन्न करे। इस कार्य का पूर्ण अभ्यास करने के लिये पहले गर्भ निरोधक उपक्रमों का इस्तेमाल न कर कार्य करें सफलता आपका साथ देगी। जिस दिन यह कार्य करना हो उस दिन केवल दोनों ही खीर का सेवन करें। पुरूष खीर में गाय का घी डालकर सेवन करें। स्त्री बिना घी के खीर खायें। उस दिन सिर्फ खीर का सेवन करते रहे और कुछ भी न खावे। स्त्री गर्भ या कुछ समय तक सन्तान नहीं चाहती हो तो वो पुदीने को छाया में सुखाकर पीस लें। उसमें से 10 ग्राम पाऊडर पुदीने का संभोग से आधा घण्टा जल से सेवन कर लें तो उस दिन गर्भ नहीं होगा। यह तब तक करती रहे जब तक संन्तान की इच्छा न हो या नित्य प्रति सुबह एक साबुत लोंग जल के साथ निगल लें गर्भधान का भय नहीं रहता। ऋतुकाल में प्रयोग बन्द रखें और रूके हुए मासिक धर्म को खोलने के लिए कच्चे अनन्नास का सेवन लाभदायक है। उल्टे मुँह लेट कर संभोग करें व संभोग के तुरन्त बाद स्त्री अपने मुत्र का त्याग कर दें तो भी गर्भ नहीं रहता। यदि पुरूष के वीर्य में शुक्राणु पूरे हों फिर भी स्त्री के गर्भ न ठहरे तो गर्भाश्य का निरीक्षण जरूरी है या फिर वाराहीकंद, पीपल की दाढ़ी, बड की दाढ़ी और मुलठी इन सब को समभाग(बराबर) मिलाकर रख ले 12 ग्राम घी देसी व 12 ग्राम यह चुर्ण मिलाकर दिन में तीन बार बछडे वाली गाय के गर्म दूध के साथ ले तो संतान उत्पति आसानी से हो जाती है। जिस औरत के गर्भ न रहता हो तो मंगल या रविवार वाले दिन भिंडी की जड़ को पानी के साथ पीस कर सेवन करें पाँच छः हफ्तों में लगातार करने पर बन्ध्या या स्त्री भी गर्भवती हो जाती है। संतान की इच्छुक औरत को दूध के साथ केले का सेवन भी लाभदायक है। यदि स्त्री गर्भ धारण के बाद नों महीने तक लगातार 10 ग्राम कच्चा नारियल मिश्री के साथ सेवन करती रहे तो गोरी व सुन्दर सन्तान प्राप्त कर सकती है। छाया में सुखायी हुई देसी बबूल की पत्तियों का 2 ग्राम चूर्ण सुबह-2 जल से लेने पर रोजाना गोरी व सुन्दर सन्तान प्राप्त कर सकती है। अकसर यह भी देखने में आता है कि स्त्री पुरूष को गर्भ रहने के बाद ये चिन्ता सताने लगती है कि गर्भ में लडका है या लडकी इसके लिये यदि लडका है तो दूसरे महीने में गर्भ गोल पिंड की तरह महसूस होता है। स्त्री की दायीं आंख बडी मालूम होती है और पहले दायें स्तन में दूध आता है। दायीं जांघ कुछ मोटी सी लगती है। मुख प्रसन्न रहता है। पुरूष नाम वाचक पदार्थ खाने की इच्छा होने लगती है। चलते समय दायां पैर का पहले इस्तेमाल करती है। उसी प्रकार हर कार्य के लिये अधिकतर दायां हाथ का इस्तेमाल करती है। यदि कन्या हो तो दूसरे महीने में गर्भ का मास पिण्ड लंबाकार महसूस होता है। प्रत्येक कार्य बायें हाथ से करती है मुख मंडल फीका सा लगता है। अधिक नींद आती है। कोयला खाने को जी चाहता है व डरावने सपने व मन में भय रहने लग जाता है। कुछ और भी टोटके हैं जिनके जरिये आप जान सकते हैं कि लड़का या लड़की। (1) भिंडी के पौधे को जड़ समेत उखाड़ लाओ। जड़ उखाड़ने में यदि कुछ टूट जाये तो लकडी साबुत खींच जाये तो लड़का जानें। (2) दो मिट्टी के बर्तन लें। उसमें उपजाऊ मिट्टी डालकर एक में गेंहू के व दूसरे में जौं के दाने डालें। फिर औरत रोज सुबह का अपना मुत्र उनमें बराबर भाग कर डालें ऐसा दो तीन दिन करें। अगर गेंहु के दाने फुटे तो लड़का यदि जौं के दाने फूटें तो लडकी होगी। (3) यदि गर्भ रहने से तीसरे महीने यानि दो महीने पूरे होने के बाद स्त्री कच्चे नारियल में से निकला फूल अगर पूरा साबुत निगल लें तो यह नाल परिवर्तन का सुलभ उपाय है इससे पुत्र की प्राप्ती होती है। (4) रविवार के दिन दूसरा महीना पूरा होने के तुरन्त बाद जो रविवार आये उस दिन स्त्री एक पोथिया लसहून की गांठ (छोटी सी) को गुड़ में लपेट कर सुबह सूर्य की ओर पीठ कर के जल के साथ निगल लें व सूर्य देव से पुत्र की कामना करे पुत्र प्राप्त होगा। और भी काफी ढंग अक्सर मिल जाते हैं जिनसे यह सब जाना जा सकता है या उपाय किये जा सकते हैं। पुत्र की कामना करने वाले दम्पति अगर अपने हाथों की र्तजनी अंगुलियों में पुखराज या सुनेहला सोने की धातु में बृहस्पतिवार के दिन धारण कर के गर्भ धारण करे तो पुत्र की प्राप्ति होती है। किसी कारण पुरूष में संतान पैदा करने की शक्ति या शुक्राणुओं में कमी हो तो पहले जांच अवश्य करवा लें। साधारणतः एक सी.सी. वीर्य में लगभग बारह करोड़ शुक्राणु होते हैं और एक बार के वीर्य पात में लगभग 3.5 सी.सी. वीर्य बाहर निकलता है। इस प्रकार एक बार के निकले वीर्य में कुल 20 से 40 करोड़ के लगभग शुक्राणु पाये जाते हैं और कई बार तो इससे भी अधिक यदि इनकी संख्या में कमी होती है तो ही पुरूष सन्तान पैदा करने में असमर्थ होता है। विटामिन ‘ए’ और ‘ई’ में व देसी मुर्गी के अण्डों के सेवन से पुरूष में शुक्राणुओं की अधिकता आती है या फिर दुध और पपीते का सेवन करे पुरूष अगर अपने अण्ड़े कोषों को हफ्ते दो-तीन बार ठण्डे पानी से साफ करता रहे। कुछ देर तक और ठण्डा पानी बर्दाशत करने योग्य हो तो दो-तीन महीनों में ऐसा कार्य करने पर वीर्य में शुक्राणुओं की मात्रा बढ़ने लग जाती है और सन्तान पैदा करने की क्षमता बनती है। कोई पुरूष अगर बिना निरोध उपक्रमों का इस्तेमाल कर फैमली पलैनिंग करना चाहे तो प्रत्येक शुक्रवार के दिन नहाने के दौरान आधा घण्टा अपने अण्डकोश को अपने शरीर सह सकने के मुताबिक पानी गर्म कर उन्हें साफ करने से एक सप्ताह तक शुक्राणु मृत हो जाते हैं व आसानी से बिना चिन्ता के वो संभोग कर सकता है। इस कार्य को करने से औरत के गर्भ नहीं रहता। कम शुक्राणु होने या सन्तान पैदा न करने की शक्ति जिस पुरूष में हो वो प्रतिदिन सुबह-सुबह स्नान करके लाल वस्त्र पहन कर सूर्य देव को अघ्र्य दें और लाल रंग या लाल कनेर के फूल सुर्य देव को चढ़ावे व साथ में ऊँ हृीं,हृीं सुर्य देवाय नमः मंत्र का जप करके पुत्र प्राप्ति के लिये प्रार्थना करंे। रविवार के दिन व्रत रखकर नमकीन भोजन व दूध का सेवन न कर मिठी चीज ग्रहण करें। दिन में सिर्फ एक बार शाम के समय रोजाना सन्तान गोपाल स्त्रोत का पाठ भी कर सकते हैं ये न हो तो माँ पार्वती के 16000 मंत्रों का पाठ करें। नीचे लिखे मंत्र का जप करोः- ‘‘ऊँ सर्व मंगल मांगले, शिवे सर्वाधक साधिके शर्णे तिृयम्बके गौरी नारायणी नमः स्तुते ऊँ ’’ अगर पुरूष व स्त्री इन दोनों में से संभोग करते समय किसी में सन्तानोत्पति की इच्छा प्रबल होगी उसी के अनुसार गर्भ में लिंग की स्थापना होगी। यदि पुरूष की इच्छा स्त्री से अधिक हो तो लड़का स्त्री की इच्छा पुरूष से अधिक हो तो कन्या का जन्म होता है। यह स्थिति औरत के रजःस्राव बन्द होने के उपरान्त 8 से 12 दिन का समय गर्भ धारण का माना गया है। प्रायः सभी दम्पति यही चाहते हैं कि उनके यहाँ उत्पन्न होने वाली सन्तान रंग-रूप-स्वभाव-गुणकर्म व स्वस्थ और भी इन बातों में अच्छी हो तो शास्त्रों में उनके उत्पन्न होने से पहले गर्भ धारण के कुछ नियमों को अगर लागु कर यह क्रिया कर ली जाए तो कन्या ही सन्तान पैदा हो सकती है। जो की आपकी इच्छा के अनुरूप पुर्ण हो इस के लिये वो शुक्ल पक्ष में पुण्य दिवस से 12 दिन तक गूलर की लकडी के पात्र में गाय के दूध में यह दस जड़ी बूटियां शुद्ध करके डालें। जटामासी, आंवा हल्दी, हल्दी, शिलाजीत, नागरमोथा, मूर्वा, खस, बच, चन्दन, कूठ इन सबका चूर्ण कर दूध में मिलाकर, जमाकर इसका मक्खन बनने के बाद घी निकाल कर अपने पास रख लें। ये घी एक खास किस्म की औषधि है जो की गुलर की लकड़ी के पात्र में सन्तान को इच्छा अनुसार उत्पन्न करने के गुण हैं और इन जड़ी बूटियों में भी ये गुण पाये जाते हैं। अब अगर कोई दम्पति इच्छा करे कि मेरे यहाँ गोर वर्ण वाा एक वैद का ज्ञाता सौ वर्ष की आयु वाला पुत्र हो तो दूध चावल पकाकर यह घी डाल कर व उपरोक्त नियमों का पालन कर यह सेवन करे तो उसकी इच्छा पूर्ण होगी। यदि पीले केश व पीले नेत्र वाला द्विवेद पाठी पुत्र हो तो दही चावल पकाकर यह घी डाल कर खाये।कोई इच्छा करे कि मेरा पुत्र श्यामवर्ण लाल नेत्र वाला, तीन वेदों का जानकार एवमं शतायु हो तो चावल पकाकर यह घी डाल कर सेवन करे। कोई चाहे कि मेरी पुत्री पंडिता व सो साल की उम्र की हो तो दही चावल पकाकर यह घी डाल कर सेवन करे। पंडित व शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला, निर्भय स्वभावशाली वक्ता, वेद वेदांग का जानकर तथा शतायु पुत्र हो तो चावल व घी का सेवन कर उचित समय पर गर्भ धारण करें। यह घी स्त्री पुरूषों के रजवीर्य को गर्भाधान के योग्य बनाने वाला है और गर्भ सम्बन्धी अंगों एवं उनकी प्रक्रिया पर विशेष प्रभाव डालकर इच्छित संतान की उत्पति करने में सहायक है। इतना ही नहीं संभोग कार्य सम्पन्न करने के बाद दूध में यह घी डाल कर अगर दोनों ही पी लंे तो क्षीण बल की शीघ्र ही पूर्ति होती है व शरीर स्वस्थ रहता है व बुद्धि को बढ़ाने वाला होता है। इसके और भी बहुत से गुण हैं। यदि दम्पति इन सब बातों को ध्यान में रख कर अपनी इच्छा अनुसार सन्तान पैदा कर सकते हैं, साथ ही साथ ईश्वर की भक्ति भी जरूरी है। बिना उसके कुछ करना अपने आपको मुश्किलों में पडा महसूस करेंगंे। क्योंकि उसकी कृपा हो तो बंजर जमीन में भी जान पड़ जाती है व पौधे उगने लग जाते हैं।

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