संज्ञा (Noun)
संज्ञा का शाब्दिक अर्थ होता है : नाम। किसी व्यक्ति,वस्तु,स्थान तथा भाव के नाम को संज्ञा कहा जाता है। जैसे - राम,वाराणसी,महल,बहादुरी,रामायण आदि।
हिन्दी में मुख्य रूप से संज्ञा के पाँच भेद माने जाते है :-
१.व्यक्तिवाचक संज्ञा
२.जातिवाचक संज्ञा
३.भाववाचक संज्ञा
४.समूहवाचक संज्ञा
५.द्रव्यवाचक संज्ञा
१.व्यक्तिवाचक संज्ञा:- जिस शब्द से किसी एक विशेष व्यक्ति,वस्तु या स्थान आदि का बोध होता है, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है। जैसे -राम,कृष्ण ,सीता ,गंगा,यमुना,गोदावरी,काशी,कलकत्ता ,दिल्ली,हिमालय,सतपुडा आदि।
२.जातिवाचक संज्ञा :- जिस शब्द से एक ही जाति के अनेक प्राणियो या वस्तुओं का बोध हो ,उसे जातिवाचक संज्ञा कहते है। जैसे - कलम,पुस्तक,दूध,कुर्सी,घर,विद्यालय,सड़क,बाग़,पहाड़,कुत्ता,हाथी,गाय,बैल आदि।
३.भाववाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से किसी के गुण,दोष,दशा ,स्वभाव ,भाव आदि का बोध होता हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते है। जैसे - सच्चाई ,ईमानदारी,गर्मी,वीरता,लड़कपन,सुख,बुढ़ापा,हरियाली,जवानी,गरीबी आदि।
४.समूहवाचक संज्ञा :- जो संज्ञा शब्द किसी समूह या समुदाय का बोध कराते है, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है । जैसे -भीड़ ,सेना,जुलुस ,खेल आदि।
५.द्रव्यवाचक संज्ञा :- जो संज्ञा शब्द ,किसी द्रव्य ,पदार्थ या धातु आदि का बोध कराते है, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है। जैसे -स्टील,घी ,सोना,दूध ,पानी,लकड़ी आदि।
सर्वनाम (Pronoun)
सर्वनाम :- संज्ञा के स्थान पर जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें सर्वनाम कहते है।
जैसे :-
1.रीता ने गीता से कहा ,मै तुम्हे पुस्तक दूँगी।
२.सीता ने रीता से कहा ,मै बाज़ार जाती हूँ।
इन वाक्यों में मै , तुम्हे शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते है। अतः ये सभी सर्वनाम है।
सर्वनाम के भेद :- सर्वनाम के मुख्य छः भेद होते है - १.पुरुषवाचक सर्वनाम २.निश्चयवाचक सर्वनाम ३.अनिश्चयवाचक सर्वनाम ४.सम्बन्धवाचक सर्वनाम ५.प्रश्नवाचक सर्वनाम ६.निजवाचक सर्वनाम
१.पुरुषवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम शब्द बोलने वाला अपने लिए, सुनने वाले के लिए या किसी अन्य के लिए प्रयोग करता है, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे - मै,हम,तुम आदि।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार से प्रयोग किया जाता है :-
1.उत्तम पुरूष :- जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग तीनो पुरूष उत्तम,मध्यम एवं अन्य के लिए होता है, यानी व्यक्ति के नाम के बदले आने वाले सर्वनाम को पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे :- १.मै काम कर रहा हूँ। २.हम सब घुमने जायेंगे ।
२.मध्यम पुरूष :- जिस सर्वनाम का प्रयोग सुनने वाले के लिए किया जाता है,उसे मध्यम पुरूष कहते है। जैसे - तुम कहाँ जा रहे हो ? तुम सब क्या लिख रहे हो ?
३.अन्य पुरूष :- जिसके विषय में बात की जाय ,वे सभी शब्द अन्य पुरूष में होते है। जैसे -वह चालाक है, वह पागल है।
२.निश्चयवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति की ओर संकेत करते है, वे निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते है। जैसे- १.वह मेरा गाँव है। २.यह मेरी पुस्तक है।
३.अनिश्चयवाचक सर्वनाम :-जिन सर्वनाम शब्दों से किसी प्राणी या वस्तु का बोध न हो ,वे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते है। जैसे - १.कोई व्यक्ति इधर ही आ रहा है। २.कुछ सेब मेरी टोकरी में है।
४.सम्बन्धवाचक सर्वनाम :- जिस सर्वनाम से दो पदों के बीच का सम्बन्ध जाना जाता है। उसे सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे- १.जैसी करनी, वैसी भरनी २.जैसा राजा,वैसी प्रजा
५.प्रश्नवाचक सर्वनाम :-जिस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए किया जाता है,उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे :- १.आज कौन आया है ? २.तुम किसको पत्र लिख रहे हो ?
६.निजवाचक सर्वनाम :- जिस सर्वनाम का प्रयोग वाक्य में कर्ता के लिए होता है,उसे निजवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे - १.हमें अपना काम अपने आप करना चाहिए । २.तुम अपना काम स्वयं करो ।
वचन (Number)
वचन :- संज्ञा शब्द के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वह एक के लिए प्रयुक्त हुआ है या एक से अधिक के लिए , उसे वचन कहते है।
वचन के प्रकार :- वचन के दो भेद होते है :-
१.एकवचन २.बहुवचन
१.एकवचन :- जिस शब्द से एक ही व्यक्ति या वस्तु का बोध हो ,उसे एकवचन कहते है। जैसे - लड़का ,पुस्तक ,केला,गमला ,चूहा ,तोता आदि।
२.बहुवचन :- जिस शब्द से एक से अधिक संख्या का बोध हो,उसे बहुवचन कहते है। जैसे- लड़के ,पुस्तके,केले,गमले,चूहे ,तोते आदि।
एकवचन से बहुवचन बनाने के नियम :-
१.आकारांत पुलिंग शब्दों के 'आ' को 'ए' कर देते है । जैसे -
एकवचन --------------------बहुवचन
लड़का .......................................लड़के
घोड़ा .........................................घोडे
बेटा .........................................बेटे
मुर्गा ........................................मुर्गे
कपड़ा .....................................कपड़े
२.अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में 'अ' को 'एँ ' कर देते है। जैसे -
एकवचन --------------------बहुवचन
बात ........................................बातें
रात ......................................रातें
आँख ...................................आखें
पुस्तक ..............................पुस्तकें
३.या अंत वाले स्त्रीलिंग शब्दों में 'या' को 'याँ' कर देते है। जैसे -
चिडिया ...........................चिडियाँ
डिबिया ...........................डिबियाँ
गुडिया .............................गुडियाँ
चुहिया ............................चुहियाँ
४.आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के आगे 'एँ' लगा देते है। जैसे :-
कन्या .........................कन्याएँ
माता .........................माताएँ
भुजा .........................भुजाएँ
पत्रिका ......................पत्रिकाएँ
५.इकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में या लगा देते है। जैसे -
जाति............................जातियाँ
रीति .............................रीतियाँ
नदी ..............................नदियाँ
लड़की..........................लड़कियाँ
६.स्त्रीलिंग शब्दों में अन्तिम उ,ऊ में ए जोड़कर दीर्घ ऊ का हस्व हो जाता है। जैसे -
वस्तु ........................वस्तुएँ
गौ ............................गौएँ
बहु ..........................बहुएँ
७.कुछ शब्दों में गुण,वर्ण ,भाव आदि शब्द लगाकर बहुवचन बनाया जाता है। जैसे-
व्यापारी ........................व्यापारीगण
मित्र .............................मित्रवर्ग
सुधी ...........................सुधिजन
नोट - कुछ शब्द दोनों वचनों में एक जैसे रहते है। जैसे -पिता,योद्धा,चाचा ,मित्र,फल,बाज़ार,अध्यापक,फूल,छात्र ,दादा,राजा,विद्यार्थी आदि।
लिंग (Gender)
लिंग :- "संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की जाति (स्त्री या पुरूष ) के भेद का बोध होता हो, उसे लिंग कहते है।"
हिन्दी व्याकरण में लिंग के दो भेद होते है - १.पुलिंग २.स्त्रीलिंग
१.पुलिंग :- जिस संज्ञा शब्द से पुरूष जाति का बोध होता है,उसे पुलिंग कहते है। जैसे -पिता ,राजा,घोड़ा ,कुत्ता,बन्दर ,हंस ,बकरा ,लड़का आदि।
२.स्त्रीलिंग :- जिस संज्ञा शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते है। जैसे -माता,रानी,घोड़ा,कुतिया,बंदरिया ,हंसिनी,लड़की,बकरी आदि।
प्राणीवाचक संज्ञाओ का लिंग निर्णय आसान है,परन्तु अप्राणीवाचक (वस्तु) संज्ञाओ के लिंग निर्णय में परेशानी होती है, क्योंकि हिन्दी व्याकरण में निर्जीव वस्तुओं को भी पुरूष या स्त्री लिंगो में बाटा जाता है। प्रायः प्रयोग या आवश्यकता के आधार पर लिंग की पहचान हो जाती है,फिरभी कुछ ऐसे प्राणीवाचक शब्द होते है,जिन्हें हमेशा स्त्रीलिंग तथा पुलिंग में ही प्रयोग किया जाता है। कुछ संज्ञा शब्द इन नियमों के अपवाद भी होते है।
१.कुछ प्राणीवाचक शब्द हमेशा पुलिंग या स्त्रीलिंग में ही प्रयुक्त होते है।
(अ) पुलिंग - कौवा ,खटमल,गीदड़ ,मच्छर ,चीता,चीन,उल्लू आदि।
(ब ) स्त्रीलिंग - सवारी ,गुडिया ,गंगा ,यमुना ।
२.पर्वतों के नाम पुलिंग होते है। जैसे -हिमालय ,विन्द्याचल ,सतपुडा आदि।
३.देशों के नाम हमेशा पुलिंग होते है। जैसे -भारत ,चीन ,इरान ,अमेरिका आदि।
४.महीनो के नाम हमेशा पुलिंग होते है । जैसे -चैत,वैसाख ,जनवरी ,फरवरी आदि।
५.दिनों के नाम हमेशा पुलिंग होते है । जैसे - सोमवार,बुधवार ,शनिवार आदि।
६.नक्षत्र -ग्रहों के नाम पुलिंग होते है । जैसे -सूर्य,चन्द्र ,राहू ,शनि आदि।
७.नदियों के नाम हमेशा स्त्रीलिंग होते है। जैसे -गंगा ,जमुना ,कावेरी आदि।
८.भाषा-बोलियों के नाम हमेशा स्त्रीलिंग होते है। जैसे -हिन्दी ,उर्दू ,पंजाबी,अरबी,अवधी,पहाडी आदि।
९."अ' से अंत होने वाले शब्द पुलिंग होते है तथा "ई' ,आई ,इन ,इया आदि से समाप्त होने वाले शब्द स्त्रीलिंग होते है। जैसे :- फल ,फूल,चित्र ,चीन आदि पुलिंग शब्द है । लकड़ी ,कहानी ,नारी,लेखनी,गुडिया ,खटिया आदि स्त्रीलिंग शब्द है।
१०.धातुओं ,अनाज ,द्रव्य ,पदार्थ तथा शरीर के अंगो के नाम पुलिंग होते है। जैसे -सोना,तांबा ,पानी,तेल,दूध, आदि।
११.कुछ संज्ञा शब्दों में मादा या नर लगाकर लिंग का प्रयोग किया जाता है।
भेडिया -मादा भेडिया
नर खरगोश -मादा खरगोश
नर छिपकली - मादा छिपकली
नोट - जिस संज्ञा शब्द का लिंग ज्ञात करना हो ,उसे पहले बहुवचन में बदल लिजिए। बहुवचन में बदल लेने पर यदि शब्द के अंत में "एँ" या "आँ" आता है,तो वह शब्द स्त्रीलिंग है, यदि एँ या आँ नही आता ,तो वह शब्द पुलिंग है ।उदाहरण:-
पंखा --पंखे --आँ या एँ नही आया---पुलिंग
चाबी --चाबियाँ-- आँ आया है ---स्त्रीलिंग
क्रिया (Verb)
क्रिया का शाब्दिक अर्थ है- कार्य । जिन शब्दों से किसी काम का करना या होना पाया जाए ,उसे क्रिया कहते है। जैसे - खाना ,नाचना ,खेलना,पढ़ना ,मारना आदि।
क्रिया का निर्माण ,इसके मूल धातु से होता है। धातु में 'ना' लगा देने से क्रिया बन जाती है। जैसे -'लिख' धातु में 'ना' लगा देने से 'लिखना क्रिया' बनी । हिन्दी व्याकरण में कुछ ऐसी भी क्रियाएँ होती है, जो धातुओं के साथ -साथ संज्ञा एवं विशेषण के सहयोग से भी बनती है। जैसे -काम संज्ञा से कमाना ,गर्म विशेषण से गर्माना आदि।
क्रिया के तीन भेद माने जाते है :-
१.अकर्मक २.सकर्मक ३.द्विकर्मक
१.अकर्मक क्रिया :- अकर्मक क्रिया का शाब्दिक अर्थ होता है -कर्म रहित। ऐसी क्रियाएँ जिनमे कर्म नही होता ,जो क्रियाएँ बिना कर्म के पूर्ण हो जाती है,उसे अकर्मक क्रिया कहते है। जैसे -वह चढ़ता है। वे हँसते है। नीता खा रही है।
ऊपर दिए गए वाक्यों में कोई कर्म नही है,केवल कर्ता और क्रिया है।
नोट-जिस क्रिया में क्या ? प्रश्न पूछने पर उत्तर नही मिलता ,वह अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे -ऊपर के वाक्य में क्या हँसते है ? प्रश्न पूछने पर कुछ भी उत्तर नही मिलता ।
२.सकर्मक क्रिया :- सकर्मक क्रिया का शाब्दिक अर्थ है- कर्म सहित । जिस क्रिया में कर्म होता है,कर्ता के साथ कर्म भी जुड़ा होता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते है। इसमे क्रिया का प्रभाव कर्म पर पड़ता है। जैसे -मै पुस्तक पढता हूँ। राम भोजन खाता है। इन वाक्यों में पुस्तक एवं भोजन कर्म है। इनके बिना क्रिया पूर्ण नही होती।
नोट - जब क्रिया में क्या ,किसे ,किसको का प्रश्न करने पर उत्तर मिल जाता है,उसे सकर्मक क्रिया कहते है। जैसे -ऊपर के वाक्य में राम क्या खाता है ? उत्तर -भोजन । अतः यह सकर्मक क्रिया है।
३.द्विकर्मक क्रिया :- जिस वाक्य में क्रिया के दो कर्म पाये जाते है,उसे द्विकर्मक क्रिया कहते है। जैसे -राम ने श्याम को पुस्तक दी। इस वाक्य में राम और श्याम दो कर्म है। कभी -कभी प्रयोग के आधार पर एक ही वाक्य में अकर्मक और सकर्मक क्रियाएँ प्रयुक्त हो जाती है। जैसे -घबराना क्रिया । सकर्मक -उसने मुझे घबराया । अकर्मक - मै घबराया हूँ।
विशेषण (Adjective)
विशेषण :- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता (गुण,दोष ,अवस्था,परिमाण या संख्या) का बोध कराते है, उन्हें विशेषण कहते है। जैसे - १.टोकरी में मीठे संतरे है। २.रीता सुंदर है। इन वाक्यों में मीठे से संतरे की,सुंदर से रीता की विशेषता प्रकट होती है। यहाँ मीठे और सुंदर शब्द विशेषण है,क्योंकि संज्ञा मीठे और सुंदर की विशेषता बताते है।
विशेषण के भेद
इसके छः भेद होते है:-
१.गुणवाचक विशेषण :- जो विशेषण शब्द रंग,रूप ,आकार,अच्छाई ,बुराई,स्वाद आदि सम्बन्धी विशेषण बताते है,वे गुणवाचक विशेषण कहलाते है। जैसे - लंबा पेड़,लाल कार,सफ़ेद कमीज आदि।
नोट:- "किस प्रकार' का प्रश्न करने पर उत्तर में आनेवाला शब्द गुणवाचक विशेषण होगा।
२.परिमाणवाचक विशेषण :- माप या तौल- परिमाण सम्बन्धी विशेषता बताने वाले शब्द परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है। जैसे -चार किलो चावल,थोड़ा आटा,बहुत पानी ,कम तेल ।
इसके भी दो भेद होते है :-
१.निश्चित परिमाणवाचक :- जिस विशेषण शब्द से निश्चित परिमाण का बोध हो,उसे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते है। जैसे - चार किलो चावल ।
२.अनिश्चित परिमाणवाचक :- जिस विशेषण शब्द से किसी निश्चित परिमाण का बोध न हो पाये ,तो उसे अनिश्चित परिणामवाचक विशेषण कहते है। जैसे - थोड़ा पानी,कुछ दाल।
नोट :- "कितना "प्रश्न करने पर उत्तर में आने वाला शब्द परिमाणवाचक विशेषण कहते है।
३.संख्यावाचक विशेषण :- जिस विशेषण शब्द से संज्ञा की संख्या का ज्ञान होता है, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते है। जैसे - पाँच केले,चार वृक्ष ,कुछ पतंगे ,दो गायें ।
संख्यावाचक विशेषण दो प्रकार के होते है -
१.निश्चय संख्यावाचक :- जिससे निश्चित संख्या का बोध होता है। जैसे - पाँच केले ,चार वृक्ष ,तीन कलम ।
२.अनिश्चयवाचक संख्यावाचक :- इससे संख्या का निश्चित ज्ञान नही होता । जैसे - कुछ पतंगे ,कई दर्शक ।
नोट :- संज्ञा के पहले "कितना" लगाने पर जो उत्तर प्राप्त होता है,वह संकेतवाचक विशेषण होता है।
४.सार्वनामिक विशेषण :- जिस सर्वनाम शब्दों का प्रयोग विशेषण के रूप में होता है,उसे सार्वनामिक विशेषण कहते है। जैसे - वह बालक ,वह पुस्तक ।
नोट :- संज्ञा के पहले कौन सा लगाने से जो उत्तर प्राप्त होता है, वह सार्वनामिक विशेषण होता है।
५.व्यक्तिवाचक विशेषण :- जो शब्द संज्ञा की विशेषता बतलाते है, और व्यक्तिवाचक संज्ञा से बने होते है,उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते है।
६.प्रश्नवाचक विशेषण :- जिन शब्दों से किसी संज्ञा या सर्वनाम के विषय में जानना या प्रश्न पूछना प्रकट हो,उसे प्रश्नवाचक विशेषण कहते है। जैसे - कौन सी पुस्तक है, कौन व्यक्ति आया था ?
कारक (Case)
कारक :- वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ क्रिया का सम्बन्ध कारक कहलाता है। जैसे :-
१.सीता फल खाती है।
२.राम ने डंडे से घोडे को पीटा ।
३.राम चार दिन में आएगा।
४.राम कलम से लिखता है।
कारक के भेद :- हिन्दी में कारको की संख्या आठ है -१.कर्ता कारक २.कर्म कारक ३.करण कारक ४.सम्प्रदान कारक ५.अपादान कारक ६.सम्बन्ध कारक ७.अधिकरण कारक ८.संबोधन कारक
कारक के विभक्ति चिन्ह
कारक ...................................चिन्ह...........................................अर्थ
कर्ता.......................................ने ..................................काम करने वाला
कर्म कारक ..........................को.............................जिस पर काम का प्रभाव पड़े
करण कारक .......................से ........................जिसके द्वारा कर्ता काम करें
सम्प्रदान कारक .................को,के लिए ...................जिसके लिए क्रिया की जाए
अपादान कारक .......................से (अलग होना ) ...................जिससे अलगाव हो
सम्बन्ध कारक ..........................का,की,के,रा,री,रे ..................अन्य पदों से सम्बन्ध
अधिकरण कारक .................................में,पर ..................................क्रिया का आधार
संबोधन कारक .................हे !,अरे !..............................किसी को पुकारना ,बुलाना
१.कर्ता कारक :- वाक्य में कार्य करने वाले को कर्ता कहते है। जैसे - १.राम ने पत्र लिखा । २.बहन ने खाना पकाया । ३.हम कहाँ जा रहे है ? । इन वाक्यों में राम ,बहन तथा हम काम करने वाले है। अतः कर्ता कारक है।
२.कर्म कारक :- संज्ञा या सर्वनाम अथवा जिस वस्तु या व्यक्ति पर क्रिया का प्रभाव पड़े उसे कर्म कारक कहते है। जैसे -अध्यापक ,छात्र को पीटता है। इसका चिन्ह को होता है। कहीं - कहीं कर्म का चिन्ह छीपा रहता है। जैसे - सीता फल खाती है।
३.करण कारक :- जिस साधन से क्रिया होता है,उसे करण कारक कहते है। जैसे -बच्चा बोतल से दूध पीता है। २.बच्चे गेंद से खेल रहे है। गेंद ,बोतल की सहायता से काम हो रहा है।
४.सम्प्रदान कारक :- जिसके लिए कर्ता कुछ कार्य करे ,उसे सम्प्रदान कारक कहते है। जैसे - १.गरीबो को खाना दो। २.मेरे लिए दूध लेकर आओ । यहाँ पर गरीब ,मेरे ,के लिए काम किया जा रहा है। अतः सम्प्रदान कारक है।
५.अपादान कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का बोध हो,वहां अपादान कारक होता है। जैसे- १.पेड़ से आम गिरा। २.हाथ से छड़ी गिर गई। इन वाक्यों में आम ,छड़ी से अलग होने का ज्ञान करा रहे है।
६.सम्बन्ध कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु से सम्बन्ध ज्ञात हो,उसे सम्बन्ध कारक कहते है। जैसे- १.सीतापुर ,मोहन का गाँव है। २.सेना के जवान आ रहे है।
इन वाक्यों में मोहन का गओंसे,सेना के जवान आदि शब्दों का आपस में सम्बन्ध होने का पता चलता है।
७.अधिकरण कारक :- संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो,उसे अधिकरण कारक कहते है। जैसे - हरी घर में है। पुस्तक मेज पर है। राम कल आएगा।
८.संबोधन कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से बुलाने या पुकारने का बोध हो,उसे संबोधन कारक कहते है। जैसे - १.हे ईश्वर ! रक्षा करो २.अरे! बच्चों शोर मत करो ।
अरे,हे ईश्वर ,शब्दों से पता चलता है कि उन्हें संबोधन किया जा रहा है।
काल (Tense)
काल का शाब्दिक अर्थ होता है - समय । क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने का समय का बोध हो, उसे काल कहते है।
काल के भेद :-
काल के तीन भेद होते है -
१.भूतकाल
२.वर्तमान काल
३.भविष्यत (भविष्य ) काल
१.भूतकाल :- क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय का ज्ञान हो, उसे भूतकाल कहते है। जैसे - १.रमेश पटना गया था। २.पहले मै लखनऊ में पढता था। ३.वह गा रहा था। ४.मोर नाच रहा था।
उपयुक्त सभी वाक्यों में क्रिया के समाप्त होने का बोध हो रहा है। अतः ये भूतकाल है।
२.वर्तमान काल :- क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि काम ( कार्य ) अभी चल रहा है, उसे वर्तमान काल कहते है। जैसे - १.मै रोज क्रिकेट खेलता हूँ। २.राम अभी -अभी आया है। ३.पिता जी खाना खा रहे है। ४.वर्षा हो रही है।
इन वाक्यों में खेलता हूँ,आया है,खा रहे है,वर्षा हो रही है आदि क्रियायों से यह बोध हो रहा है कि कार्य अभी चल रहा है। अतः वर्तमान काल है।
३.भविष्यत काल(भविष्य ) :- क्रिया के जिस रूप से आने वाले समय में क्रिया के होने का पता चले ,उसे भविष्यत काल कहते है। जैसे - १.राम दौडेगा । २.मै कल विद्यालय जाऊंगा। ३.श्याम कल कोलकाता जाएगा। ४.खाना कुछ देर में बन जाएगा।
इन वाक्यों में आने वाले समय का बोध हो रहा है। अतः ये भविष्य ( भविष्यत ) काल है।
नोट :-भूतकाल - बीता हुआ समय।
वर्तमान काल - जो समय चल रहा है।
भविष्य काल - जो समय अभी आएगा।
क्रियाविशेषण (Adverb)
जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाये ,उसे क्रिया विशेषण कहते है । जैसे - १.खरगोश तेज दौड़ता है। २.पिता जी बाहर घूमने जा रहे है। ३.धीरे धीरे मेरा उससे परिचय हुआ । ४.मेज के ऊपर पुस्तक रखी हुई है।
क्रिया विशेषण के भेद :-
१.कालवाचक विशेषण
२.स्थानवाचक विशेषण
३.परिमाणवाचक विशेषण
४.रीतिवाचक विशेषण
१.कालवाचक विशेषण : -वे क्रिया विशेषण शब्द जो क्रिया के घटित होने के समय से सम्बंधित विशेषण बताते है ,वे कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाते है। जैसे - १.आज बरसात होगी । २.माँ सुबह नाश्ता बनाती है ।३.राम कल मेरे घर आयेगा। इस क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण निम्न है -
कल ,परसों ,प्रायः ,अक्सर ,बाद में ,जब,तब,अब,अभी,आज,कभी,नित्य ,सदा,प्रतिदिन आदि है ।
२.स्थानवाचक क्रियाविशेषण : - वे क्रिया विशेषण शब्द जो क्रिया के घटित होने के स्थान का बोध कराते है,उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते है। जैसे - १.अन्दर जाकर पढ़ो ! २.बच्चे ऊपर खेलते है । ३.अब वहां अकेला मज़दूर था । इस क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण निम्न है -
यहाँ,वहां ,कहाँ,दूर,पास,ऊपर,नीचे ,अन्दर ,बाहर,भीतर ,किधर ,इस ओर,उस ओर,इधर,उधर आदि।
३.परिमाणवाचक क्रियाविशेषण :- जिन क्रिया -विशेषण शब्दों से क्रिया के परिमाण अथवा मात्रा से सम्बंधित विशेषता का बोध हो ,उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते है । जैसे - १.अधिक पढ़ो ! २.कम खाओ ! ३.ज्यादा सुनो ! । अन्य परिमाणवाचक क्रिया विशेषण इस प्रकार है - पर्याप्त ,कुछ ,जरा ,खूब,बिल्कुल,काफ़ी ,बहुत,कितना,थोड़ा,ज्यादा आदि है।
४.रीतिवाचक क्रिया विशेषण : - जो क्रिया विशेषण शब्द क्रिया के घटित होने की विधि या रीति से सम्बंधित विशेषता का बोध करवाते है,उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते है। जैसे - १.कछुवा धीरे धीरे चलता है । २.अचानक काले बादल घिर आए ३.हरीश ध्यानपूर्वक पढ़ रहा है। इसके अलावा रीतिवाचक क्रियाविशेषण के अन्य उदाहरण है - ठीक ,ग़लत,सच,झूठ,धीरे,सहसा,ध्यानपूर्वक ,ऐसे,वैसे,कैसे,तेज आदि।
समुच्चयबोधक (conjunction)
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों ,वाक्यांशों या वाक्यों को मिलाते या जोड़ते है,उन्हें समुच्चयबोधक कहा जाता है . जैसे - १.राम ने खाना खाया और सो गया . २.श्याम को तेज बुखार है ,इसीलिए वह आज नहीं खेलेगा . ३.उसने बहुत विनती की लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी. ४.अगर तुम बुलाते तो मै जरुर आता.
इन वाक्यों में 'और','इसीलिए','लेकिन','तो' शब्द दो वाक्यों को आपस में जोड़ रहे है. अत: यहां समुच्चयबोधक है.
अन्य समुच्चयबोधक शब्द : तब,और,वरना,इसीलिए,बल्कि,ताकि,चूँकि,क्योंकि, या,अथवा ,एवं तथा ,अन्यथा आदि.
इन समुच्चयबोधक शब्दों को योजक भी कहा जाता है. कुछ योजक शब्द शब्दों या वाक्यों को जोड़ते है तो कुछ शब्द आपस में भेद प्रकट करते हुए भी शब्दों या वाक्यों को आपस में जोड़ते है।
संबंधबोधक (Post - Position )
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ आकर वाक्य के अन्य शब्दों के साथ ,उसका सम्बन्ध बनाते है,उन्हें संबंधबोधक कहते है। जैसे - १.कमरे के बाहर सामान रखा है। २.मेरे पास आओ। ३.घर के पास विद्यालय है। ४.यह दवा दूध के साथ खाना। ५.हमलोग घर की तरफ जा रहे है आदि।
इन वाक्यों में 'के बाहर' ,'पास','के पास','के बाद','की तरफ' शब्द संज्ञा शब्दों के साथ मिलकर वाक्य के अन्य शब्दों के उसका सम्बन्ध जोड़ते है। अत: ये सभी शब्द संबंधबोधक है।
कुछ प्रमुख संबंधबोधक शब्द निम्न है -के बिना, के पास,से पहले,के सामने ,के मारे,के नीचे,के आगे ,सिवा,लिए ,के साथ ,चारों ओर,पहले,पश्चात,के बाद आदि।
विस्मयादिबोधक अव्यय (interjections)
जिन शब्दों से शोक ,विस्मय ,घृणा ,आश्चर्य आदि भाव व्यक्त हों ,उन्हें विस्मयादि बोधक अव्यय कहा जाता है । जैसे - अरे ! तुम कब आ गए ,बाप रे बाप ! इतनी तेज आंधी ! वाह ! तुमने तो कमाल कर दिया आदि । विस्मयादि बोधक अव्यय का प्रयोग सदा वाक्य के आरम्भ में होता है । इनके साथ विस्मयादिबोधक चिन्ह ! अवश्य लगाया जाता है . मन के विभिन्न भावों के आधार पर विस्मयादिबोधक अव्यय के निम्नलिखित प्रमुख भेद है :-
१.शोकबोधक - हाय ! ,बाप रे बाप ! हे राम ! आदि । जैसे - हे राम ! बहुत बुरा हुआ , हाय ! यह क्या हुआ ।
२. घृणा या तिरस्कार बोधक - छि:!, थू -थू , धिक्कार ! आदि । जैसे - छि :छि : ! ये गन्दगी किसने फैलाई , धिक्कार ! है तुम्हे ।
३. स्वीकृतिबोधक - अच्छा ! ठीक ! हाँ ! आदि । जैसे - हाँ ! मै कल पहुँच जाऊँगा , ठीक! यह हो जाएगा ।
४.विस्मयबोधक - अरे ! क्या ! ओह ! सच ! आदि । जैसे - अरे ! तुम यहाँ कैसे , हे ! ये कौन है ? ।
५.संबोधनबोधक - हो ! अजी !ओ ! आदि । जैसे - अजी ! थोडा देर और रुक जाईये , ओ ! दूधवाले कल मत आना ।
६.हर्षबोधक - वाह -वाह ,धन्य, अति सुन्दर,अहा! आदि । जैसे - अहा ! मजा आ गया , अति सुन्दर ! बहुत अच्छी कविता है ।
७. भयबोधक - ओह ! हाय ! बाप रे बाप ! आदि । जैसे - बाप रे बाप ! इतना बड़ा साँप , हाय ! मुझे चोट लग गयी ।
प्रत्यय
वह शब्द जो किसी शब्द के पीछे जुड़ कर अर्थ में कुछ परिवर्तन ला देता है ,प्रत्यय कहलाता है । जैसे - बचत ,दिखावा ,खाता, मासिक ,संभावित ,कृपालु आदि । इसके दो भेद होते है -
१.कृत - प्रत्यय :- जो प्रत्यय धातुओं के साथ जुड़कर अर्थ में कुछ परिवर्तन ला देते है , कृत प्रत्यय कहलाते है । जैसे - बन + आवट = बनावट , लूट + एरा = लुटेरा , पूजा + री = पुजारी , हँस + ओड़ = हंसोड़ ।
२.तद्धित प्रत्यय : - वे प्रत्यय जो किसी संज्ञा ,सर्वनाम या विशेषण के साथ जुड़ कर अर्थ में परिवर्तन ला देते है , तद्धित प्रत्यय कहलाते है । जैसे - मामा + एरा = ममेरा , लड़का + पन = लडकपन , छोटा + पन = छुटपन , अपना + पन = अपनत्व , मम + ता = ममता , ऊँचा + आई = ऊँचाई
पर्यायवाची ( Synonyms)
जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है ,उन्हें समानार्थक या पर्यायवाची शब्द कहते है। हिन्दी भाषा में एक शब्द के समान अर्थ वाले कई शब्द हमें मिल जाते है, जैसे -
पहाड़ - पर्वत , अचल, भूधर ।
ये शब्द पर्यायवाची कहलाते है। इन शब्दों के अर्थ में समानता होती है,लेकिन प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है। पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हुए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए । कुछ पर्यायवाची शब्द यहाँ दिए जा रहे है -
आग- अग्नि,अनल,पावक ,दहन,ज्वलन,धूमकेतु,कृशानु ।
अमृत-सुधा,अमिय,पियूष,सोम,मधु,अमी।
असुर-दैत्य,दानव,राक्षस,निशाचर,रजनीचर,दनुज।
आम-रसाल,आम्र,सौरभ,मादक,अमृतफल,सहुकार ।
अंहकार - गर्व,अभिमान,दर्प,मद,घमंड।
आँख - लोचन, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि।
आकाश - नभ,गगन,अम्बर,व्योम, अनन्त ,आसमान।
आनंद - हर्ष,सुख,आमोद,मोद,प्रमोद,उल्लास।
आश्रम - कुटी ,विहार,मठ,संघ,अखाडा।
आंसू - नेत्रजल,नयनजल,चक्षुजल,अश्रु ।
ईश्वर- भगवान,परमेश्वर,जगदीश्वर ,विधाता।
इच्छा - अभिलाषा,चाह,कामना,लालसा,मनोरथ,आकांक्षा ।
ओंठ -ओष्ठ,अधर,होठ।
कमल-पद्म,पंकज,नीरज,सरोज,जलज,जलजात ।
कृपा - प्रसाद,करुणा,दया,अनुग्रह।
गाय- गौ,धेनु,सुरभि,भद्रा ,रोहिणी।
चरण -पद,पग,पाँव, पैर ।
किताब -पोथी ,ग्रन्थ ,पुस्तक ।
कपड़ा -चीर,वसन, पट ,वस्त्र ,अम्बर ,परिधान ।
किरण -ज्योति, प्रभा,रश्मि, दीप्ति, मरीचि ।
किसान - कृषक ,भूमिपुत्र ,हलधर ,खेतिहर ,अन्नदाता ।
कृष्ण - राधापति ,घनश्याम ,वासुदेव , माधव, मोहन ,केशव ,गोविन्द ,गिरधारी ।
कान - कर्ण ,श्रुति ,श्रुतिपटल ।
गंगा - देवनदी ,मंदाकनी,भगीरथी ,विश्नुपगा, देवपगा ,ध्रुवनंदा ।
गणेश - गजानन , गौरीनंदन , गणपति , गणनायक , शंकरसुवन ,लम्बोदर ,महाकाय।
कोयल - कोकिला , पिक , काकपाली, बसंतदूत ।
क्रोध - रोष , कोप , अमर्ष , कोह , प्रतिघात ।
गज - हाथी , हस्ती , मतंग , कूम्भा, मदकल ।
गृह - घर , सदन , गेह ,भवन, धाम , निकेतन ,निवास ।
चंद्रमा - चन्द्र , शशि , हिमकर , राकेश , रजनीश , निशानाथ , सोम , मयंक , सारंग , सुधाकर , कलानिधि ।
जल - वारि , नीर , तीय ,अम्बु , उदक , पानी ,जीवन , पय, पेय ।
जंगल - विपिन , कानन , वन, अरण्य, गहन ।
झूठ - असत्य , मिथ्या, मृषा, अनृत ।
तालाब - सरोवर , जलाशय , सर, पुष्कर , पोखरा, जलवान , सरसी ।
दास- सेवक , नौकर , चाकर , परिचारक , अनुचर ।
दरिद्र - निर्धन , गरीब , रंक , कंगाल , दीन।
दिन - दिवस, याम , दिवा, वार, प्रमान।
दुःख - पीड़ा ,कष्ट , व्यथा , वेदना , संताप , शोक , खेद , पीर, लेश ।
दूध - दुग्ध , क्षीर , पय ।
दुष्ट- पापी , नीच , दुर्जन , अधम , खल , पामर ।
दर्पण - शीशा , आरसी , आईना , मुकुर ।
दुर्गा - चंडिका , भवानी , कुमारी , कल्याणी , महागौरी , कालिका , शिवा ।
देवता - सुर, देव, अमर , वसु , आदित्य , लेख ।
धन - दौलत , संपत्ति , सम्पदा, वित्त ।
धरती - पृथ्वी , भू, भूमि , धरणी, वसुंधरा , अचला , मही, रत्नवती , रत्नगर्भा ।
नदी - सरिता , तटीना , सरि, सारंग , जयमाला ।
नया - नूतन , नव, नवीन , नव्य।
पवन - वायु , हवा, समीर , वात , मारुत , अनिल, पवमान ।
पहाड़ - पर्वत , गिरी , अचल , नग, भूधर , महीधर ।
पक्षी - खग, चिडिया , गगनचर , पखेरू , विहंग , नभचर ।
पति - स्वामी , प्राणाधार , प्राणप्रिय, प्राणेश, आर्यपुत्र।
पत्नी - गृहणी , बहु , वनिता , दारा, जोरू ,वामांगिनी ।
पुत्र - बेटा , आत्मज, वत्स , तनुज , तनय, नंदन ।
पुत्री - बेटी, आत्मजा , तनूजा, सुता , तनया ।
पुष्प - फूल , सुमन , कुसुम , मंजरी , प्रसून ।
बादल - मेघ, घन , जलधर , जलद, वारिद, नीरद , सारंग ।
बालू - रेत , बालुका , सैकत ।
बन्दर - वानर , कपि, कपीश, हरि।
बिजली - घनप्रिया , इन्द्र्वज्र, चपला , दामिनी , ताडित, विद्युत ।
विष - जहर , हलाहल , गरल , कालकूट ।
वृक्ष - पेड़ , पादप , विटप , तरु , गाछ ।
विष्णु - नारायण , दामोदर , पीताम्बर , चक्रपाणी ।
भूषण - जेवर , गहना, आभूषण , अलंकार ।
मनुष्य - आदमी , नर, मानव, मानुष , मनुज ।
मदिरा- शराब , हाला, आसव, मधु, मद।
मोर- केक , कलापी, नीलकंठ , नर्तकप्रिय ।
मधु - शहद , रसा, शहद, कुसुमासव ।
मृग - हिरण, सारंग , कृष्णसार।
मछली - मीन , मत्स्य , जलजीवन , शफरी , मकर ।
रात - रात्रि, रैन , रजनी , निशा , यामिनी , तमी, निशि , यामा।
राजा - नृप, भूप, भूपाल , नरेश , महीपति , अवनीपति ।
लक्ष्मी - कमला , पद्मा , रमा, हरिप्रिया , श्री , इंदिरा ।
साँप - सर्प , नाग , विषधर , उरग , पवनासन।
शिव - भोलेनाथ ,शम्भू, त्रिलोचन , महादेव, नीलकंठ , शंकर।
सूर्य - रवि , सूरज , दिनकर, प्रभाकर, आदीत्य, भास्कर , दिवाकर।
संसार- जग, विश्व , जगत , लोक , दुनिया ।
शरीर - देह , तनु , काया , कलेवर , अंग , गात ।
सोना - स्वर्ण , कंचन, कनक , हेम , कुंदन ।
सिंह - केशरी, शेर, महावीर, नाहर, सारंग , मृगराज ।
समुद्र - सागर, पयोधि, उदधि , पारावार, नदीश ,जलधि ।
शत्रु - रिपु , दुश्मन , अमित्र , वैरी ।
हिमालय - हिमगिरी , हिमाचल , गिरिराज , पर्वतराज , नगेश।
ह्रदय - छाती , वक्ष , वक्षस्थल , हिय , उर ।
विलोम ( antonyms in hindi )
शब्द .........विलोम
रात - दिन
अमृत - विष
अथ - इति
अन्धकार - प्रकाश
अल्पायु -दीर्घायु
इच्छा -अनिच्छ।
उत्कर्ष - अपकर्ष
अनुराग -विराग
आदि - अंत
आगामी - गत
उत्थान - पतन
आग्रह - दुराग्रह
एकता - अनेकता
अनुज - अग्रज
आकर्षण - विकर्षण
उद्यमी - आलसी
अधिक - न्यून
आदान - प्रदान
उर्वर - ऊसर
एक - अनेक
आलस्य - स्फूर्ति
अर्थ - अनर्थ
उधार - नगद
अपेक्षा - नगद
उपस्थित - अनुपस्थित
अतिवृष्टि - अनावृष्टि
उत्कृष्ट - निकृष्ट
उत्तम - अधम
आदर्श - यथार्थ
आय - व्यय
स्वाधीन - पराधीन
आहार - निराहार
दाता - याचक
खेद - प्रसन्नता
गुप्त - प्रकट
प्रत्यक्ष - परोक्ष
घृणा - प्रेम
सजीव - निर्जीव
सुगंध - दुर्गन्ध
मौखिक - लिखित
संक्षेप - विस्तार
घात - प्रतिघात
निंदा - स्तुति
मितव्यय - अपव्यय
सरस - नीरस
सौभाग्य - दुर्भाग्य
मोक्ष - बंधन
कृतज्ञ - कृतघ्न
क्रय - विक्रय
दुर्लभ - सुलभ
निरक्षर - साक्षर
नूतन - पुरातन
बंधन - मुक्ति
ठोस - तरल
यश - अपयश
सगुण - निर्गुण
मूक - वाचाल
रुग्ण - स्वस्थ
रक्षक - भक्षक
वरदान - अभिशाप
शुष्क - आर्द्र
हर्ष - शोक
क्षणिक - शाश्वत
विधि - निषेध
विधवा - सधवा
शयन - जागरण
शीत - उष्ण
सक्रिय - निष्क्रय
सफल - असफल
सज्जन - दुर्जन
शुभ - अशुभ
संतोष - असंतोष
अलंकार
मानव समाज सौन्दर्योपासक है ,उसकी इसी प्रवृत्ति ने अलंकारों को जन्म दिया है। शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए जिस प्रकार मनुष्य ने भिन्न -भिन्न प्रकार के आभूषण का प्रयोग किया ,उसी प्रकार उसने भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का सृजन किया। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है। जिस प्रकार नारी के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए आभूषण होते है,उसी प्रकार भाषा के सौन्दर्य के उपकरणों को अलंकार कहते है। इसीलिए कहा गया है - 'भूषण बिना न सोहई -कविता ,बनिता मित्त।'
अलंकार के भेद - इसके तीन भेद होते है -
१.शब्दालंकार २.अर्थालंकार ३.उभयालंकार
१.शब्दालंकार :- जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है,वह पर शब्दालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के प्रमुख भेद है - १.अनुप्रास २.यमक ३.श्लेष
१.अनुप्रास :- अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों के योग से बना है । 'अनु' का अर्थ है :- बार- बार तथा 'प्रास' का अर्थ है - वर्ण । जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है ,वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है । इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार -बार प्रयोग किया जाता है । जैसे -
जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप ।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप । ।
२.यमक अलंकार :- जहाँ एक ही शब्द अधिक बार प्रयुक्त हो ,लेकिन अर्थ हर बार भिन्न हो ,वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण -
कनक कनक ते सौगुनी ,मादकता अधिकाय ।
वा खाये बौराय नर ,वा पाये बौराय। ।
यहाँ कनक शब्द की दो बार आवृत्ति हुई है जिसमे एक कनक का अर्थ है - धतूरा और दूसरे का स्वर्ण है ।
३.श्लेष अलंकार :- जहाँ पर ऐसे शब्दों का प्रयोग हो ,जिनसे एक से अधिक अर्थ निलकते हो ,वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है । जैसे -
चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर ।
को घटि ये वृष भानुजा ,वे हलधर के बीर। ।
यहाँ वृषभानुजा के दो अर्थ है - १.वृषभानु की पुत्री राधा २.वृषभ की अनुजा गाय । इसी प्रकार हलधर के भी दो अर्थ है - १.बलराम २.हल को धारण करने वाला बैल
अर्थालंकार
जहाँ अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है ,वहाँ अर्थालंकार होता है । इसके प्रमुख भेद है - १.उपमा २.रूपक ३.उत्प्रेक्षा ४.दृष्टान्त ५.संदेह ६.अतिशयोक्ति
१.उपमा अलंकार :- जहाँ दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समता दिखाई जाय ,वहाँ उपमा अलंकार होता है । उदाहरण -
सागर -सा गंभीर ह्रदय हो ,गिरी -सा ऊँचा हो जिसका मन।
इसमे सागर तथा गिरी उपमान ,मन और ह्रदय उपमेय सा वाचक ,गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।
२.रूपक अलंकार :- जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय ,वहाँ रूपक अलंकार होता है , यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिखाई पड़े । उदाहरण -
बीती विभावरी जाग री।
अम्बर -पनघट में डुबों रही ,तारा -घट उषा नागरी ।'
यहाँ अम्बर में पनघट ,तारा में घट तथा उषा में नागरी का अभेद कथन है।
३.उत्प्रेक्षा अलंकार :- जहाँ उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ भिन्नता में अभिन्नता दिखाई जाती है। उदाहरण -
सखि सोहत गोपाल के ,उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु पिये,दावानल की ज्वाल । ।
यहाँ गूंजा की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान के संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है।
४.अतिशयोक्ति अलंकार :- जहाँ पर लोक -सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का वर्णन होता है । वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण -
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि ।
सगरी लंका जल गई ,गये निसाचर भागि। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
५.संदेह अलंकार :- जहाँ प्रस्तुत में अप्रस्तुत का संशयपूर्ण वर्णन हो ,वहाँ संदेह अलंकार होता है। जैसे -
'सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है ।
कि सारी हीकी नारी है कि नारी हीकी सारी है । 'इस अलंकार में नारी और सारी के विषय में संशय है अतः यहाँ संदेह अलंकार है ।
६.दृष्टान्त अलंकार :- जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्य में बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है ,वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती -जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है। उदाहरण :-
'एक म्यान में दो तलवारें ,कभी नही रह सकती है ।
किसी और पर प्रेम नारियाँ,पति का क्या सह सकती है । । '
इस अलंकार में एक म्यान दो तलवारों का रहना वैसे ही असंभव है जैसा कि एक पति का दो नारियों पर अनुरक्त रहना । अतः यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है।
उभयालंकार
जहाँ काव्य में शब्द और अर्थ दोनों का चमत्कार एक साथ उत्पन्न होता है ,वहाँ उभयालंकार होता है । उदाहरण - 'कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।'
इस अलंकार में शब्द और अर्थ दोनों है।
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द ( one word substitution )
भाषा में कई शब्दों के स्थान पर एक शब्द बोल कर हम भाषा को प्रभावशाली एवं आकर्षक बनाते है। जैसे -
राम बहुत सुन्दर कहानी लिखता है। अनेक शब्दों के स्थान पर हम एक ही शब्द 'कहानीकार' का प्रयोग कर सकते है । इसी प्रकार ,अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कर सकते है। यहां पर अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के कुछ उदाहरण दिए जा रहे है : -
१.जो दिखाई न दे - अदृश्य
२.जिसका जन्म न हो - अजन्मा
३.जिसका कोई शत्रु न हो - अजातशत्रु
४.जो बूढ़ा न हो - अजर
५.जो कभी न मरे - अमर
६.जो पढ़ा -लिखा न हो - अपढ़ ,अनपढ़
७.जिसके कोई संतान न हो - निसंतान
८.जो उदार न हो - अनुदार
९. जिसमे धैर्य न हो - अधीर
१०.जिसमे सहन शक्ति हो - सहिष्णु
११.जिसके समान दूसरा न हो - अनुपम
१२.जिस पर विश्वास न किया जा सके - अविश्वनीय
१३.जिसकी थाह न हो - अथाह
१४.दूर की सोचने वाला - दूरदर्शी
१५.जो दूसरों पर अत्याचार करें - अत्याचारी
१६.जिसके पास कुछ भी न हो - अकिंचन
१७.दुसरे देश से अपने देश में समान आना - आयात
१८.अपने देश से दुसरे देश में समान जाना - निर्यात
१९.जो कभी नष्ट न हो - अनश्वर
२०.जिसे कोई जीत न सके - अजेय
२१.अपनी हत्या स्वयं करना - आत्महत्या
२२.जिसे दंड का भय न हो - उदंड
२३.जिस भूमि पर कुछ न उग सके - ऊसर
२४.जनता में प्रचलित सुनी -सुनाई बात - किंवदंती
२५.जो उच्च कुल में उत्पन्न हुआ हो - कुलीन
२६.जिसकी सब जगह बदनामी -कुख्यात
२७.जो क्षमा के योग्य हो - क्षम्य
२८.शीघ्र नष्ट होने वाला - क्षणभंगुर
२९.कुछ दिनों तक बने रहना वाला - टिकाऊ
३०.पति-पत्नी का जोड़ा - दम्पति
३१.जो कम बोलता हो -मितभाषी
३२.जो अधिक बोलता हो - वाचाल
३३.जिसका पति जीवित हो - सधवा
३४.जिसमे रस हो - सरस
३५.जिसमे रस न हो - नीरस
३६.भलाई चाहने वाला - हितैषी
३७.दूसरों की बातों में दखल देना - हस्तक्षेप
३८.दिल से होने वाला - हार्दिक
३९.जिसमे दया न हो - निर्दय
४०.जो सब जगह व्याप्त हो -सर्वव्यापक
४१.जानने की इच्छा रखने वाला - जिज्ञासु
४२.सप्ताह में एक बार होने वाला - साप्ताहिक
४३.साहित्य से सम्बन्ध रखने वाला - साहित्यिक
४४.मांस खाने वाला - मांसाहारी
४५.जिसके आने की तिथि न हो - अतिथि
४६.जिसके ह्रदय में दया हो - दयावान
४७.जो चित्र बनाता हो - चित्रकार
४८.विद्या की चाह रखने वाला - विद्यार्थी
४९.हमेशा सत्य बोलने वाला - सत्यवादी
५०.जो देखने योग्य हो - दर्शनीय
मुहावरे और उनका प्रयोग (१)
मुहावरा :- विशेष अर्थ को प्रकट करने वाले वाक्यांश को मुहावरा कहते है। मुहावरा पूर्ण वाक्य नहीं होता, इसीलिए इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता । मुहावरा का प्रयोग करना और ठीक -ठीक अर्थ समझना बड़ा की कठिन है ,यह अभ्यास से ही सीखा जा सकता है । इसीलिए इसका नाम मुहावरा पड़ गया ।
यहाँ पर कुछ प्रसिद्ध मुहावरे और उनके अर्थ वाक्य में प्रयोग सहित दिए जा रहे है।
१.अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना - (स्वयं अपनी प्रशंसा करना ) - अच्छे आदमियों को अपने मुहँ मियाँ मिट्ठू बनना शोभा नहीं देता ।
२.अक्ल का चरने जाना - (समझ का अभाव होना) - इतना भी समझ नहीं सके ,क्या अक्ल चरने गए है ?
३.अपने पैरों पर खड़ा होना - (स्वालंबी होना) - युवकों को अपने पैरों पर खड़े होने पर ही विवाह करना चाहिए ।
४.अक्ल का दुश्मन - (मूर्ख) - राम तुम मेरी बात क्यों नहीं मानते ,लगता है आजकल तुम अक्ल के दुश्मन हो गए हो ।
५.अपना उल्लू सीधा करना - (मतलब निकालना) - आजकल के नेता अपना अपना उल्लू सीधा करने के लिए ही लोगों को भड़काते है ।
६.आँखे खुलना - (सचेत होना) - ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखे खुलती है ।
७.आँख का तारा - (बहुत प्यारा) - आज्ञाकारी बच्चा माँ -बाप की आँखों का तारा होता है ।
८.आँखे दिखाना - (बहुत क्रोध करना) - राम से मैंने सच बातें कह दी , तो वह मुझे आँख दिखाने लगा ।
९.आसमान से बातें करना - (बहुत ऊँचा होना) - आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है ,जो आसमान से बातें करती है ।
१० .ईंट से ईंट बजाना - (पूरी तरह से नष्ट करना) - राम चाहता था कि वह अपने शत्रु के घर की ईंट से ईंट बजा दे।
११.ईंट का जबाब पत्थर से देना - (जबरदस्त बदला लेना) - भारत अपने दुश्मनों को ईंट का जबाब पत्थर से देगा ।
१२.ईद का चाँद होना - (बहुत दिनों बाद दिखाई देना) - राम ,तुम तो कभी दिखाई ही नहीं देते ,ऐसा लगता है कि तुम ईद के चाँद हो गए हो ।
१३.उड़ती चिड़िया पहचानना - (रहस्य की बात दूर से जान लेना) - वह इतना अनुभवी है कि उसे उड़ती चिड़िया पहचानने में देर नहीं लगती ।
१४.उन्नीस बीस का अंतर होना - (बहुत कम अंतर होना) - राम और श्याम की पहचान कर पाना बहुत कठिन है ,क्योंकि दोनों में उन्नीस बीस का ही अंतर है ।
१५.उलटी गंगा बहाना - (अनहोनी हो जाना) - राम किसी से प्रेम से बात कर ले ,तो उलटी गंगा बह जाए ।
समास
समास का तात्पर्य है 'संक्षिप्तीकरण'। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे-'रसोई के लिए घर' इसे हम 'रसोईघर' भी कह सकते हैं।
समास के भेद हैं-
1. अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे-यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
जिस समास का प्रथम पद अव्यय हो,और उसी का अर्थ प्रधान हो,उसे अव्ययीभाव समास कहते है। जैसे - यथाशक्ति = (यथा +शक्ति ) यहाँ यथा अव्यय का मुख्य अर्थ लिखा गया है,अर्थात यथा जितनी शक्ति । इसी प्रकार - रातों रात ,आजन्म ,यथोचित ,बेशक,प्रतिवर्ष ।
कुछ अन्य उदाहरण-
आजीवन - जीवन-भर, यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार, यथाविधि विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार, भरपेट पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़, हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में, प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना, निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना, हरसाल - हरेक साल
अव्ययीभाव समास की पहचान- इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास होने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे-ऊपर के समस्त शब्द है।
द्वंद समास :-
इस समास में दोनों पद प्रधान होते है,लेकिन दोनों के बीच 'और' शब्द का लोप होता है। जैसे - हार-जीत,पाप-पुण्य ,वेद-पुराण,लेन-देन ।
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर 'और', अथवा, 'या', एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह
पाप-पुण्य पाप और पुण्य अन्न-जल अन्न और जल
सीता-राम सीता और राम खरा-खोटा खरा और खोटा
ऊँच-नीच ऊँच और नीच राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण
द्विगु समास :-
जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है,उसे द्विगु समास कहते है। जैसे - त्रिभुवन ,त्रिफला ,चौमासा ,दशमुख
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे-
समस्त पद समात-विग्रह समस्त पद समास विग्रह
नवग्रह नौ ग्रहों का मसूह दोपहर दो पहरों का समाहार
त्रिलोक तीनों लोकों का समाहार चौमासा चार मासों का समूह
नवरात्र नौ रात्रियों का समूह शताब्दी सौ अब्दो (सालों) का समूह
अठन्नी आठ आनों का समूह
कर्मधारय समास :-
जो समास विशेषण -विशेश्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते है,उन्हें कर्मधारय समास कहते है। जैसे -
१.चरणकमल -कमल के समानचरण ।
२.कमलनयन -कमल के समान नयन ।
३.नीलगगन -नीला है जो गगन ।
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्ववद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समात विग्रह
चंद्रमुख चंद्र जैसा मुख कमलनयन कमल के समान नयन
देहलता देह रूपी लता दहीबड़ा दही में डूबा बड़ा
नीलकमल नीला कमल पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन सत् (अच्छा) जन नरसिंह नरों में सिंह के समान
बहुव्रीहि समास :- जिस समास में शाब्दिक अर्थ को छोड़ कर अन्य विशेष का बोध होता है,उसे बहुव्रीहि समास कहते है। जैसे -
घनश्याम -घन के समान श्याम है जो -कृष्ण
दशानन -दस मुहवाला -रावण
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह
दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबर पीले है अम्बर (वस्त्र) जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा बुरी आत्मा वाला (कोई दुष्ट)
श्वेतांबर श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती
नत्र समास :-
इसमे नही का बोध होता है। जैसे - अनपढ़,अनजान ,अज्ञान ।
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह
असभ्य न सभ्य अनंत न अंत
अनादि न आदि असंभव न संभव
संधि और समास में अंतर
संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे-देव+आलय=देवालय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे-माता-पिता=माता और पिता।
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर- कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे-नीलकंठ=नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे-नील+कंठ=नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।
संज्ञा का शाब्दिक अर्थ होता है : नाम। किसी व्यक्ति,वस्तु,स्थान तथा भाव के नाम को संज्ञा कहा जाता है। जैसे - राम,वाराणसी,महल,बहादुरी,रामायण आदि।
हिन्दी में मुख्य रूप से संज्ञा के पाँच भेद माने जाते है :-
१.व्यक्तिवाचक संज्ञा
२.जातिवाचक संज्ञा
३.भाववाचक संज्ञा
४.समूहवाचक संज्ञा
५.द्रव्यवाचक संज्ञा
१.व्यक्तिवाचक संज्ञा:- जिस शब्द से किसी एक विशेष व्यक्ति,वस्तु या स्थान आदि का बोध होता है, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है। जैसे -राम,कृष्ण ,सीता ,गंगा,यमुना,गोदावरी,काशी,कलकत्ता ,दिल्ली,हिमालय,सतपुडा आदि।
२.जातिवाचक संज्ञा :- जिस शब्द से एक ही जाति के अनेक प्राणियो या वस्तुओं का बोध हो ,उसे जातिवाचक संज्ञा कहते है। जैसे - कलम,पुस्तक,दूध,कुर्सी,घर,विद्यालय,सड़क,बाग़,पहाड़,कुत्ता,हाथी,गाय,बैल आदि।
३.भाववाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से किसी के गुण,दोष,दशा ,स्वभाव ,भाव आदि का बोध होता हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते है। जैसे - सच्चाई ,ईमानदारी,गर्मी,वीरता,लड़कपन,सुख,बुढ़ापा,हरियाली,जवानी,गरीबी आदि।
४.समूहवाचक संज्ञा :- जो संज्ञा शब्द किसी समूह या समुदाय का बोध कराते है, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है । जैसे -भीड़ ,सेना,जुलुस ,खेल आदि।
५.द्रव्यवाचक संज्ञा :- जो संज्ञा शब्द ,किसी द्रव्य ,पदार्थ या धातु आदि का बोध कराते है, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है। जैसे -स्टील,घी ,सोना,दूध ,पानी,लकड़ी आदि।
सर्वनाम (Pronoun)
सर्वनाम :- संज्ञा के स्थान पर जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें सर्वनाम कहते है।
जैसे :-
1.रीता ने गीता से कहा ,मै तुम्हे पुस्तक दूँगी।
२.सीता ने रीता से कहा ,मै बाज़ार जाती हूँ।
इन वाक्यों में मै , तुम्हे शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते है। अतः ये सभी सर्वनाम है।
सर्वनाम के भेद :- सर्वनाम के मुख्य छः भेद होते है - १.पुरुषवाचक सर्वनाम २.निश्चयवाचक सर्वनाम ३.अनिश्चयवाचक सर्वनाम ४.सम्बन्धवाचक सर्वनाम ५.प्रश्नवाचक सर्वनाम ६.निजवाचक सर्वनाम
१.पुरुषवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम शब्द बोलने वाला अपने लिए, सुनने वाले के लिए या किसी अन्य के लिए प्रयोग करता है, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे - मै,हम,तुम आदि।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार से प्रयोग किया जाता है :-
1.उत्तम पुरूष :- जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग तीनो पुरूष उत्तम,मध्यम एवं अन्य के लिए होता है, यानी व्यक्ति के नाम के बदले आने वाले सर्वनाम को पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे :- १.मै काम कर रहा हूँ। २.हम सब घुमने जायेंगे ।
२.मध्यम पुरूष :- जिस सर्वनाम का प्रयोग सुनने वाले के लिए किया जाता है,उसे मध्यम पुरूष कहते है। जैसे - तुम कहाँ जा रहे हो ? तुम सब क्या लिख रहे हो ?
३.अन्य पुरूष :- जिसके विषय में बात की जाय ,वे सभी शब्द अन्य पुरूष में होते है। जैसे -वह चालाक है, वह पागल है।
२.निश्चयवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति की ओर संकेत करते है, वे निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते है। जैसे- १.वह मेरा गाँव है। २.यह मेरी पुस्तक है।
३.अनिश्चयवाचक सर्वनाम :-जिन सर्वनाम शब्दों से किसी प्राणी या वस्तु का बोध न हो ,वे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते है। जैसे - १.कोई व्यक्ति इधर ही आ रहा है। २.कुछ सेब मेरी टोकरी में है।
४.सम्बन्धवाचक सर्वनाम :- जिस सर्वनाम से दो पदों के बीच का सम्बन्ध जाना जाता है। उसे सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे- १.जैसी करनी, वैसी भरनी २.जैसा राजा,वैसी प्रजा
५.प्रश्नवाचक सर्वनाम :-जिस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए किया जाता है,उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे :- १.आज कौन आया है ? २.तुम किसको पत्र लिख रहे हो ?
६.निजवाचक सर्वनाम :- जिस सर्वनाम का प्रयोग वाक्य में कर्ता के लिए होता है,उसे निजवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे - १.हमें अपना काम अपने आप करना चाहिए । २.तुम अपना काम स्वयं करो ।
वचन (Number)
वचन :- संज्ञा शब्द के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वह एक के लिए प्रयुक्त हुआ है या एक से अधिक के लिए , उसे वचन कहते है।
वचन के प्रकार :- वचन के दो भेद होते है :-
१.एकवचन २.बहुवचन
१.एकवचन :- जिस शब्द से एक ही व्यक्ति या वस्तु का बोध हो ,उसे एकवचन कहते है। जैसे - लड़का ,पुस्तक ,केला,गमला ,चूहा ,तोता आदि।
२.बहुवचन :- जिस शब्द से एक से अधिक संख्या का बोध हो,उसे बहुवचन कहते है। जैसे- लड़के ,पुस्तके,केले,गमले,चूहे ,तोते आदि।
एकवचन से बहुवचन बनाने के नियम :-
१.आकारांत पुलिंग शब्दों के 'आ' को 'ए' कर देते है । जैसे -
एकवचन --------------------बहुवचन
लड़का .......................................लड़के
घोड़ा .........................................घोडे
बेटा .........................................बेटे
मुर्गा ........................................मुर्गे
कपड़ा .....................................कपड़े
२.अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में 'अ' को 'एँ ' कर देते है। जैसे -
एकवचन --------------------बहुवचन
बात ........................................बातें
रात ......................................रातें
आँख ...................................आखें
पुस्तक ..............................पुस्तकें
३.या अंत वाले स्त्रीलिंग शब्दों में 'या' को 'याँ' कर देते है। जैसे -
चिडिया ...........................चिडियाँ
डिबिया ...........................डिबियाँ
गुडिया .............................गुडियाँ
चुहिया ............................चुहियाँ
४.आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के आगे 'एँ' लगा देते है। जैसे :-
कन्या .........................कन्याएँ
माता .........................माताएँ
भुजा .........................भुजाएँ
पत्रिका ......................पत्रिकाएँ
५.इकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में या लगा देते है। जैसे -
जाति............................जातियाँ
रीति .............................रीतियाँ
नदी ..............................नदियाँ
लड़की..........................लड़कियाँ
६.स्त्रीलिंग शब्दों में अन्तिम उ,ऊ में ए जोड़कर दीर्घ ऊ का हस्व हो जाता है। जैसे -
वस्तु ........................वस्तुएँ
गौ ............................गौएँ
बहु ..........................बहुएँ
७.कुछ शब्दों में गुण,वर्ण ,भाव आदि शब्द लगाकर बहुवचन बनाया जाता है। जैसे-
व्यापारी ........................व्यापारीगण
मित्र .............................मित्रवर्ग
सुधी ...........................सुधिजन
नोट - कुछ शब्द दोनों वचनों में एक जैसे रहते है। जैसे -पिता,योद्धा,चाचा ,मित्र,फल,बाज़ार,अध्यापक,फूल,छात्र ,दादा,राजा,विद्यार्थी आदि।
लिंग (Gender)
लिंग :- "संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की जाति (स्त्री या पुरूष ) के भेद का बोध होता हो, उसे लिंग कहते है।"
हिन्दी व्याकरण में लिंग के दो भेद होते है - १.पुलिंग २.स्त्रीलिंग
१.पुलिंग :- जिस संज्ञा शब्द से पुरूष जाति का बोध होता है,उसे पुलिंग कहते है। जैसे -पिता ,राजा,घोड़ा ,कुत्ता,बन्दर ,हंस ,बकरा ,लड़का आदि।
२.स्त्रीलिंग :- जिस संज्ञा शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते है। जैसे -माता,रानी,घोड़ा,कुतिया,बंदरिया ,हंसिनी,लड़की,बकरी आदि।
प्राणीवाचक संज्ञाओ का लिंग निर्णय आसान है,परन्तु अप्राणीवाचक (वस्तु) संज्ञाओ के लिंग निर्णय में परेशानी होती है, क्योंकि हिन्दी व्याकरण में निर्जीव वस्तुओं को भी पुरूष या स्त्री लिंगो में बाटा जाता है। प्रायः प्रयोग या आवश्यकता के आधार पर लिंग की पहचान हो जाती है,फिरभी कुछ ऐसे प्राणीवाचक शब्द होते है,जिन्हें हमेशा स्त्रीलिंग तथा पुलिंग में ही प्रयोग किया जाता है। कुछ संज्ञा शब्द इन नियमों के अपवाद भी होते है।
१.कुछ प्राणीवाचक शब्द हमेशा पुलिंग या स्त्रीलिंग में ही प्रयुक्त होते है।
(अ) पुलिंग - कौवा ,खटमल,गीदड़ ,मच्छर ,चीता,चीन,उल्लू आदि।
(ब ) स्त्रीलिंग - सवारी ,गुडिया ,गंगा ,यमुना ।
२.पर्वतों के नाम पुलिंग होते है। जैसे -हिमालय ,विन्द्याचल ,सतपुडा आदि।
३.देशों के नाम हमेशा पुलिंग होते है। जैसे -भारत ,चीन ,इरान ,अमेरिका आदि।
४.महीनो के नाम हमेशा पुलिंग होते है । जैसे -चैत,वैसाख ,जनवरी ,फरवरी आदि।
५.दिनों के नाम हमेशा पुलिंग होते है । जैसे - सोमवार,बुधवार ,शनिवार आदि।
६.नक्षत्र -ग्रहों के नाम पुलिंग होते है । जैसे -सूर्य,चन्द्र ,राहू ,शनि आदि।
७.नदियों के नाम हमेशा स्त्रीलिंग होते है। जैसे -गंगा ,जमुना ,कावेरी आदि।
८.भाषा-बोलियों के नाम हमेशा स्त्रीलिंग होते है। जैसे -हिन्दी ,उर्दू ,पंजाबी,अरबी,अवधी,पहाडी आदि।
९."अ' से अंत होने वाले शब्द पुलिंग होते है तथा "ई' ,आई ,इन ,इया आदि से समाप्त होने वाले शब्द स्त्रीलिंग होते है। जैसे :- फल ,फूल,चित्र ,चीन आदि पुलिंग शब्द है । लकड़ी ,कहानी ,नारी,लेखनी,गुडिया ,खटिया आदि स्त्रीलिंग शब्द है।
१०.धातुओं ,अनाज ,द्रव्य ,पदार्थ तथा शरीर के अंगो के नाम पुलिंग होते है। जैसे -सोना,तांबा ,पानी,तेल,दूध, आदि।
११.कुछ संज्ञा शब्दों में मादा या नर लगाकर लिंग का प्रयोग किया जाता है।
भेडिया -मादा भेडिया
नर खरगोश -मादा खरगोश
नर छिपकली - मादा छिपकली
नोट - जिस संज्ञा शब्द का लिंग ज्ञात करना हो ,उसे पहले बहुवचन में बदल लिजिए। बहुवचन में बदल लेने पर यदि शब्द के अंत में "एँ" या "आँ" आता है,तो वह शब्द स्त्रीलिंग है, यदि एँ या आँ नही आता ,तो वह शब्द पुलिंग है ।उदाहरण:-
पंखा --पंखे --आँ या एँ नही आया---पुलिंग
चाबी --चाबियाँ-- आँ आया है ---स्त्रीलिंग
क्रिया (Verb)
क्रिया का शाब्दिक अर्थ है- कार्य । जिन शब्दों से किसी काम का करना या होना पाया जाए ,उसे क्रिया कहते है। जैसे - खाना ,नाचना ,खेलना,पढ़ना ,मारना आदि।
क्रिया का निर्माण ,इसके मूल धातु से होता है। धातु में 'ना' लगा देने से क्रिया बन जाती है। जैसे -'लिख' धातु में 'ना' लगा देने से 'लिखना क्रिया' बनी । हिन्दी व्याकरण में कुछ ऐसी भी क्रियाएँ होती है, जो धातुओं के साथ -साथ संज्ञा एवं विशेषण के सहयोग से भी बनती है। जैसे -काम संज्ञा से कमाना ,गर्म विशेषण से गर्माना आदि।
क्रिया के तीन भेद माने जाते है :-
१.अकर्मक २.सकर्मक ३.द्विकर्मक
१.अकर्मक क्रिया :- अकर्मक क्रिया का शाब्दिक अर्थ होता है -कर्म रहित। ऐसी क्रियाएँ जिनमे कर्म नही होता ,जो क्रियाएँ बिना कर्म के पूर्ण हो जाती है,उसे अकर्मक क्रिया कहते है। जैसे -वह चढ़ता है। वे हँसते है। नीता खा रही है।
ऊपर दिए गए वाक्यों में कोई कर्म नही है,केवल कर्ता और क्रिया है।
नोट-जिस क्रिया में क्या ? प्रश्न पूछने पर उत्तर नही मिलता ,वह अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे -ऊपर के वाक्य में क्या हँसते है ? प्रश्न पूछने पर कुछ भी उत्तर नही मिलता ।
२.सकर्मक क्रिया :- सकर्मक क्रिया का शाब्दिक अर्थ है- कर्म सहित । जिस क्रिया में कर्म होता है,कर्ता के साथ कर्म भी जुड़ा होता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते है। इसमे क्रिया का प्रभाव कर्म पर पड़ता है। जैसे -मै पुस्तक पढता हूँ। राम भोजन खाता है। इन वाक्यों में पुस्तक एवं भोजन कर्म है। इनके बिना क्रिया पूर्ण नही होती।
नोट - जब क्रिया में क्या ,किसे ,किसको का प्रश्न करने पर उत्तर मिल जाता है,उसे सकर्मक क्रिया कहते है। जैसे -ऊपर के वाक्य में राम क्या खाता है ? उत्तर -भोजन । अतः यह सकर्मक क्रिया है।
३.द्विकर्मक क्रिया :- जिस वाक्य में क्रिया के दो कर्म पाये जाते है,उसे द्विकर्मक क्रिया कहते है। जैसे -राम ने श्याम को पुस्तक दी। इस वाक्य में राम और श्याम दो कर्म है। कभी -कभी प्रयोग के आधार पर एक ही वाक्य में अकर्मक और सकर्मक क्रियाएँ प्रयुक्त हो जाती है। जैसे -घबराना क्रिया । सकर्मक -उसने मुझे घबराया । अकर्मक - मै घबराया हूँ।
विशेषण (Adjective)
विशेषण :- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता (गुण,दोष ,अवस्था,परिमाण या संख्या) का बोध कराते है, उन्हें विशेषण कहते है। जैसे - १.टोकरी में मीठे संतरे है। २.रीता सुंदर है। इन वाक्यों में मीठे से संतरे की,सुंदर से रीता की विशेषता प्रकट होती है। यहाँ मीठे और सुंदर शब्द विशेषण है,क्योंकि संज्ञा मीठे और सुंदर की विशेषता बताते है।
विशेषण के भेद
इसके छः भेद होते है:-
१.गुणवाचक विशेषण :- जो विशेषण शब्द रंग,रूप ,आकार,अच्छाई ,बुराई,स्वाद आदि सम्बन्धी विशेषण बताते है,वे गुणवाचक विशेषण कहलाते है। जैसे - लंबा पेड़,लाल कार,सफ़ेद कमीज आदि।
नोट:- "किस प्रकार' का प्रश्न करने पर उत्तर में आनेवाला शब्द गुणवाचक विशेषण होगा।
२.परिमाणवाचक विशेषण :- माप या तौल- परिमाण सम्बन्धी विशेषता बताने वाले शब्द परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है। जैसे -चार किलो चावल,थोड़ा आटा,बहुत पानी ,कम तेल ।
इसके भी दो भेद होते है :-
१.निश्चित परिमाणवाचक :- जिस विशेषण शब्द से निश्चित परिमाण का बोध हो,उसे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते है। जैसे - चार किलो चावल ।
२.अनिश्चित परिमाणवाचक :- जिस विशेषण शब्द से किसी निश्चित परिमाण का बोध न हो पाये ,तो उसे अनिश्चित परिणामवाचक विशेषण कहते है। जैसे - थोड़ा पानी,कुछ दाल।
नोट :- "कितना "प्रश्न करने पर उत्तर में आने वाला शब्द परिमाणवाचक विशेषण कहते है।
३.संख्यावाचक विशेषण :- जिस विशेषण शब्द से संज्ञा की संख्या का ज्ञान होता है, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते है। जैसे - पाँच केले,चार वृक्ष ,कुछ पतंगे ,दो गायें ।
संख्यावाचक विशेषण दो प्रकार के होते है -
१.निश्चय संख्यावाचक :- जिससे निश्चित संख्या का बोध होता है। जैसे - पाँच केले ,चार वृक्ष ,तीन कलम ।
२.अनिश्चयवाचक संख्यावाचक :- इससे संख्या का निश्चित ज्ञान नही होता । जैसे - कुछ पतंगे ,कई दर्शक ।
नोट :- संज्ञा के पहले "कितना" लगाने पर जो उत्तर प्राप्त होता है,वह संकेतवाचक विशेषण होता है।
४.सार्वनामिक विशेषण :- जिस सर्वनाम शब्दों का प्रयोग विशेषण के रूप में होता है,उसे सार्वनामिक विशेषण कहते है। जैसे - वह बालक ,वह पुस्तक ।
नोट :- संज्ञा के पहले कौन सा लगाने से जो उत्तर प्राप्त होता है, वह सार्वनामिक विशेषण होता है।
५.व्यक्तिवाचक विशेषण :- जो शब्द संज्ञा की विशेषता बतलाते है, और व्यक्तिवाचक संज्ञा से बने होते है,उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते है।
६.प्रश्नवाचक विशेषण :- जिन शब्दों से किसी संज्ञा या सर्वनाम के विषय में जानना या प्रश्न पूछना प्रकट हो,उसे प्रश्नवाचक विशेषण कहते है। जैसे - कौन सी पुस्तक है, कौन व्यक्ति आया था ?
कारक (Case)
कारक :- वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ क्रिया का सम्बन्ध कारक कहलाता है। जैसे :-
१.सीता फल खाती है।
२.राम ने डंडे से घोडे को पीटा ।
३.राम चार दिन में आएगा।
४.राम कलम से लिखता है।
कारक के भेद :- हिन्दी में कारको की संख्या आठ है -१.कर्ता कारक २.कर्म कारक ३.करण कारक ४.सम्प्रदान कारक ५.अपादान कारक ६.सम्बन्ध कारक ७.अधिकरण कारक ८.संबोधन कारक
कारक के विभक्ति चिन्ह
कारक ...................................चिन्ह...........................................अर्थ
कर्ता.......................................ने ..................................काम करने वाला
कर्म कारक ..........................को.............................जिस पर काम का प्रभाव पड़े
करण कारक .......................से ........................जिसके द्वारा कर्ता काम करें
सम्प्रदान कारक .................को,के लिए ...................जिसके लिए क्रिया की जाए
अपादान कारक .......................से (अलग होना ) ...................जिससे अलगाव हो
सम्बन्ध कारक ..........................का,की,के,रा,री,रे ..................अन्य पदों से सम्बन्ध
अधिकरण कारक .................................में,पर ..................................क्रिया का आधार
संबोधन कारक .................हे !,अरे !..............................किसी को पुकारना ,बुलाना
१.कर्ता कारक :- वाक्य में कार्य करने वाले को कर्ता कहते है। जैसे - १.राम ने पत्र लिखा । २.बहन ने खाना पकाया । ३.हम कहाँ जा रहे है ? । इन वाक्यों में राम ,बहन तथा हम काम करने वाले है। अतः कर्ता कारक है।
२.कर्म कारक :- संज्ञा या सर्वनाम अथवा जिस वस्तु या व्यक्ति पर क्रिया का प्रभाव पड़े उसे कर्म कारक कहते है। जैसे -अध्यापक ,छात्र को पीटता है। इसका चिन्ह को होता है। कहीं - कहीं कर्म का चिन्ह छीपा रहता है। जैसे - सीता फल खाती है।
३.करण कारक :- जिस साधन से क्रिया होता है,उसे करण कारक कहते है। जैसे -बच्चा बोतल से दूध पीता है। २.बच्चे गेंद से खेल रहे है। गेंद ,बोतल की सहायता से काम हो रहा है।
४.सम्प्रदान कारक :- जिसके लिए कर्ता कुछ कार्य करे ,उसे सम्प्रदान कारक कहते है। जैसे - १.गरीबो को खाना दो। २.मेरे लिए दूध लेकर आओ । यहाँ पर गरीब ,मेरे ,के लिए काम किया जा रहा है। अतः सम्प्रदान कारक है।
५.अपादान कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का बोध हो,वहां अपादान कारक होता है। जैसे- १.पेड़ से आम गिरा। २.हाथ से छड़ी गिर गई। इन वाक्यों में आम ,छड़ी से अलग होने का ज्ञान करा रहे है।
६.सम्बन्ध कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु से सम्बन्ध ज्ञात हो,उसे सम्बन्ध कारक कहते है। जैसे- १.सीतापुर ,मोहन का गाँव है। २.सेना के जवान आ रहे है।
इन वाक्यों में मोहन का गओंसे,सेना के जवान आदि शब्दों का आपस में सम्बन्ध होने का पता चलता है।
७.अधिकरण कारक :- संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो,उसे अधिकरण कारक कहते है। जैसे - हरी घर में है। पुस्तक मेज पर है। राम कल आएगा।
८.संबोधन कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से बुलाने या पुकारने का बोध हो,उसे संबोधन कारक कहते है। जैसे - १.हे ईश्वर ! रक्षा करो २.अरे! बच्चों शोर मत करो ।
अरे,हे ईश्वर ,शब्दों से पता चलता है कि उन्हें संबोधन किया जा रहा है।
काल (Tense)
काल का शाब्दिक अर्थ होता है - समय । क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने का समय का बोध हो, उसे काल कहते है।
काल के भेद :-
काल के तीन भेद होते है -
१.भूतकाल
२.वर्तमान काल
३.भविष्यत (भविष्य ) काल
१.भूतकाल :- क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय का ज्ञान हो, उसे भूतकाल कहते है। जैसे - १.रमेश पटना गया था। २.पहले मै लखनऊ में पढता था। ३.वह गा रहा था। ४.मोर नाच रहा था।
उपयुक्त सभी वाक्यों में क्रिया के समाप्त होने का बोध हो रहा है। अतः ये भूतकाल है।
२.वर्तमान काल :- क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि काम ( कार्य ) अभी चल रहा है, उसे वर्तमान काल कहते है। जैसे - १.मै रोज क्रिकेट खेलता हूँ। २.राम अभी -अभी आया है। ३.पिता जी खाना खा रहे है। ४.वर्षा हो रही है।
इन वाक्यों में खेलता हूँ,आया है,खा रहे है,वर्षा हो रही है आदि क्रियायों से यह बोध हो रहा है कि कार्य अभी चल रहा है। अतः वर्तमान काल है।
३.भविष्यत काल(भविष्य ) :- क्रिया के जिस रूप से आने वाले समय में क्रिया के होने का पता चले ,उसे भविष्यत काल कहते है। जैसे - १.राम दौडेगा । २.मै कल विद्यालय जाऊंगा। ३.श्याम कल कोलकाता जाएगा। ४.खाना कुछ देर में बन जाएगा।
इन वाक्यों में आने वाले समय का बोध हो रहा है। अतः ये भविष्य ( भविष्यत ) काल है।
नोट :-भूतकाल - बीता हुआ समय।
वर्तमान काल - जो समय चल रहा है।
भविष्य काल - जो समय अभी आएगा।
क्रियाविशेषण (Adverb)
जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाये ,उसे क्रिया विशेषण कहते है । जैसे - १.खरगोश तेज दौड़ता है। २.पिता जी बाहर घूमने जा रहे है। ३.धीरे धीरे मेरा उससे परिचय हुआ । ४.मेज के ऊपर पुस्तक रखी हुई है।
क्रिया विशेषण के भेद :-
१.कालवाचक विशेषण
२.स्थानवाचक विशेषण
३.परिमाणवाचक विशेषण
४.रीतिवाचक विशेषण
१.कालवाचक विशेषण : -वे क्रिया विशेषण शब्द जो क्रिया के घटित होने के समय से सम्बंधित विशेषण बताते है ,वे कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाते है। जैसे - १.आज बरसात होगी । २.माँ सुबह नाश्ता बनाती है ।३.राम कल मेरे घर आयेगा। इस क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण निम्न है -
कल ,परसों ,प्रायः ,अक्सर ,बाद में ,जब,तब,अब,अभी,आज,कभी,नित्य ,सदा,प्रतिदिन आदि है ।
२.स्थानवाचक क्रियाविशेषण : - वे क्रिया विशेषण शब्द जो क्रिया के घटित होने के स्थान का बोध कराते है,उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते है। जैसे - १.अन्दर जाकर पढ़ो ! २.बच्चे ऊपर खेलते है । ३.अब वहां अकेला मज़दूर था । इस क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण निम्न है -
यहाँ,वहां ,कहाँ,दूर,पास,ऊपर,नीचे ,अन्दर ,बाहर,भीतर ,किधर ,इस ओर,उस ओर,इधर,उधर आदि।
३.परिमाणवाचक क्रियाविशेषण :- जिन क्रिया -विशेषण शब्दों से क्रिया के परिमाण अथवा मात्रा से सम्बंधित विशेषता का बोध हो ,उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते है । जैसे - १.अधिक पढ़ो ! २.कम खाओ ! ३.ज्यादा सुनो ! । अन्य परिमाणवाचक क्रिया विशेषण इस प्रकार है - पर्याप्त ,कुछ ,जरा ,खूब,बिल्कुल,काफ़ी ,बहुत,कितना,थोड़ा,ज्यादा आदि है।
४.रीतिवाचक क्रिया विशेषण : - जो क्रिया विशेषण शब्द क्रिया के घटित होने की विधि या रीति से सम्बंधित विशेषता का बोध करवाते है,उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते है। जैसे - १.कछुवा धीरे धीरे चलता है । २.अचानक काले बादल घिर आए ३.हरीश ध्यानपूर्वक पढ़ रहा है। इसके अलावा रीतिवाचक क्रियाविशेषण के अन्य उदाहरण है - ठीक ,ग़लत,सच,झूठ,धीरे,सहसा,ध्यानपूर्वक ,ऐसे,वैसे,कैसे,तेज आदि।
समुच्चयबोधक (conjunction)
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों ,वाक्यांशों या वाक्यों को मिलाते या जोड़ते है,उन्हें समुच्चयबोधक कहा जाता है . जैसे - १.राम ने खाना खाया और सो गया . २.श्याम को तेज बुखार है ,इसीलिए वह आज नहीं खेलेगा . ३.उसने बहुत विनती की लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी. ४.अगर तुम बुलाते तो मै जरुर आता.
इन वाक्यों में 'और','इसीलिए','लेकिन','तो' शब्द दो वाक्यों को आपस में जोड़ रहे है. अत: यहां समुच्चयबोधक है.
अन्य समुच्चयबोधक शब्द : तब,और,वरना,इसीलिए,बल्कि,ताकि,चूँकि,क्योंकि, या,अथवा ,एवं तथा ,अन्यथा आदि.
इन समुच्चयबोधक शब्दों को योजक भी कहा जाता है. कुछ योजक शब्द शब्दों या वाक्यों को जोड़ते है तो कुछ शब्द आपस में भेद प्रकट करते हुए भी शब्दों या वाक्यों को आपस में जोड़ते है।
संबंधबोधक (Post - Position )
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ आकर वाक्य के अन्य शब्दों के साथ ,उसका सम्बन्ध बनाते है,उन्हें संबंधबोधक कहते है। जैसे - १.कमरे के बाहर सामान रखा है। २.मेरे पास आओ। ३.घर के पास विद्यालय है। ४.यह दवा दूध के साथ खाना। ५.हमलोग घर की तरफ जा रहे है आदि।
इन वाक्यों में 'के बाहर' ,'पास','के पास','के बाद','की तरफ' शब्द संज्ञा शब्दों के साथ मिलकर वाक्य के अन्य शब्दों के उसका सम्बन्ध जोड़ते है। अत: ये सभी शब्द संबंधबोधक है।
कुछ प्रमुख संबंधबोधक शब्द निम्न है -के बिना, के पास,से पहले,के सामने ,के मारे,के नीचे,के आगे ,सिवा,लिए ,के साथ ,चारों ओर,पहले,पश्चात,के बाद आदि।
विस्मयादिबोधक अव्यय (interjections)
जिन शब्दों से शोक ,विस्मय ,घृणा ,आश्चर्य आदि भाव व्यक्त हों ,उन्हें विस्मयादि बोधक अव्यय कहा जाता है । जैसे - अरे ! तुम कब आ गए ,बाप रे बाप ! इतनी तेज आंधी ! वाह ! तुमने तो कमाल कर दिया आदि । विस्मयादि बोधक अव्यय का प्रयोग सदा वाक्य के आरम्भ में होता है । इनके साथ विस्मयादिबोधक चिन्ह ! अवश्य लगाया जाता है . मन के विभिन्न भावों के आधार पर विस्मयादिबोधक अव्यय के निम्नलिखित प्रमुख भेद है :-
१.शोकबोधक - हाय ! ,बाप रे बाप ! हे राम ! आदि । जैसे - हे राम ! बहुत बुरा हुआ , हाय ! यह क्या हुआ ।
२. घृणा या तिरस्कार बोधक - छि:!, थू -थू , धिक्कार ! आदि । जैसे - छि :छि : ! ये गन्दगी किसने फैलाई , धिक्कार ! है तुम्हे ।
३. स्वीकृतिबोधक - अच्छा ! ठीक ! हाँ ! आदि । जैसे - हाँ ! मै कल पहुँच जाऊँगा , ठीक! यह हो जाएगा ।
४.विस्मयबोधक - अरे ! क्या ! ओह ! सच ! आदि । जैसे - अरे ! तुम यहाँ कैसे , हे ! ये कौन है ? ।
५.संबोधनबोधक - हो ! अजी !ओ ! आदि । जैसे - अजी ! थोडा देर और रुक जाईये , ओ ! दूधवाले कल मत आना ।
६.हर्षबोधक - वाह -वाह ,धन्य, अति सुन्दर,अहा! आदि । जैसे - अहा ! मजा आ गया , अति सुन्दर ! बहुत अच्छी कविता है ।
७. भयबोधक - ओह ! हाय ! बाप रे बाप ! आदि । जैसे - बाप रे बाप ! इतना बड़ा साँप , हाय ! मुझे चोट लग गयी ।
प्रत्यय
वह शब्द जो किसी शब्द के पीछे जुड़ कर अर्थ में कुछ परिवर्तन ला देता है ,प्रत्यय कहलाता है । जैसे - बचत ,दिखावा ,खाता, मासिक ,संभावित ,कृपालु आदि । इसके दो भेद होते है -
१.कृत - प्रत्यय :- जो प्रत्यय धातुओं के साथ जुड़कर अर्थ में कुछ परिवर्तन ला देते है , कृत प्रत्यय कहलाते है । जैसे - बन + आवट = बनावट , लूट + एरा = लुटेरा , पूजा + री = पुजारी , हँस + ओड़ = हंसोड़ ।
२.तद्धित प्रत्यय : - वे प्रत्यय जो किसी संज्ञा ,सर्वनाम या विशेषण के साथ जुड़ कर अर्थ में परिवर्तन ला देते है , तद्धित प्रत्यय कहलाते है । जैसे - मामा + एरा = ममेरा , लड़का + पन = लडकपन , छोटा + पन = छुटपन , अपना + पन = अपनत्व , मम + ता = ममता , ऊँचा + आई = ऊँचाई
पर्यायवाची ( Synonyms)
जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है ,उन्हें समानार्थक या पर्यायवाची शब्द कहते है। हिन्दी भाषा में एक शब्द के समान अर्थ वाले कई शब्द हमें मिल जाते है, जैसे -
पहाड़ - पर्वत , अचल, भूधर ।
ये शब्द पर्यायवाची कहलाते है। इन शब्दों के अर्थ में समानता होती है,लेकिन प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है। पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हुए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए । कुछ पर्यायवाची शब्द यहाँ दिए जा रहे है -
आग- अग्नि,अनल,पावक ,दहन,ज्वलन,धूमकेतु,कृशानु ।
अमृत-सुधा,अमिय,पियूष,सोम,मधु,अमी।
असुर-दैत्य,दानव,राक्षस,निशाचर,रजनीचर,दनुज।
आम-रसाल,आम्र,सौरभ,मादक,अमृतफल,सहुकार ।
अंहकार - गर्व,अभिमान,दर्प,मद,घमंड।
आँख - लोचन, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि।
आकाश - नभ,गगन,अम्बर,व्योम, अनन्त ,आसमान।
आनंद - हर्ष,सुख,आमोद,मोद,प्रमोद,उल्लास।
आश्रम - कुटी ,विहार,मठ,संघ,अखाडा।
आंसू - नेत्रजल,नयनजल,चक्षुजल,अश्रु ।
ईश्वर- भगवान,परमेश्वर,जगदीश्वर ,विधाता।
इच्छा - अभिलाषा,चाह,कामना,लालसा,मनोरथ,आकांक्षा ।
ओंठ -ओष्ठ,अधर,होठ।
कमल-पद्म,पंकज,नीरज,सरोज,जलज,जलजात ।
कृपा - प्रसाद,करुणा,दया,अनुग्रह।
गाय- गौ,धेनु,सुरभि,भद्रा ,रोहिणी।
चरण -पद,पग,पाँव, पैर ।
किताब -पोथी ,ग्रन्थ ,पुस्तक ।
कपड़ा -चीर,वसन, पट ,वस्त्र ,अम्बर ,परिधान ।
किरण -ज्योति, प्रभा,रश्मि, दीप्ति, मरीचि ।
किसान - कृषक ,भूमिपुत्र ,हलधर ,खेतिहर ,अन्नदाता ।
कृष्ण - राधापति ,घनश्याम ,वासुदेव , माधव, मोहन ,केशव ,गोविन्द ,गिरधारी ।
कान - कर्ण ,श्रुति ,श्रुतिपटल ।
गंगा - देवनदी ,मंदाकनी,भगीरथी ,विश्नुपगा, देवपगा ,ध्रुवनंदा ।
गणेश - गजानन , गौरीनंदन , गणपति , गणनायक , शंकरसुवन ,लम्बोदर ,महाकाय।
कोयल - कोकिला , पिक , काकपाली, बसंतदूत ।
क्रोध - रोष , कोप , अमर्ष , कोह , प्रतिघात ।
गज - हाथी , हस्ती , मतंग , कूम्भा, मदकल ।
गृह - घर , सदन , गेह ,भवन, धाम , निकेतन ,निवास ।
चंद्रमा - चन्द्र , शशि , हिमकर , राकेश , रजनीश , निशानाथ , सोम , मयंक , सारंग , सुधाकर , कलानिधि ।
जल - वारि , नीर , तीय ,अम्बु , उदक , पानी ,जीवन , पय, पेय ।
जंगल - विपिन , कानन , वन, अरण्य, गहन ।
झूठ - असत्य , मिथ्या, मृषा, अनृत ।
तालाब - सरोवर , जलाशय , सर, पुष्कर , पोखरा, जलवान , सरसी ।
दास- सेवक , नौकर , चाकर , परिचारक , अनुचर ।
दरिद्र - निर्धन , गरीब , रंक , कंगाल , दीन।
दिन - दिवस, याम , दिवा, वार, प्रमान।
दुःख - पीड़ा ,कष्ट , व्यथा , वेदना , संताप , शोक , खेद , पीर, लेश ।
दूध - दुग्ध , क्षीर , पय ।
दुष्ट- पापी , नीच , दुर्जन , अधम , खल , पामर ।
दर्पण - शीशा , आरसी , आईना , मुकुर ।
दुर्गा - चंडिका , भवानी , कुमारी , कल्याणी , महागौरी , कालिका , शिवा ।
देवता - सुर, देव, अमर , वसु , आदित्य , लेख ।
धन - दौलत , संपत्ति , सम्पदा, वित्त ।
धरती - पृथ्वी , भू, भूमि , धरणी, वसुंधरा , अचला , मही, रत्नवती , रत्नगर्भा ।
नदी - सरिता , तटीना , सरि, सारंग , जयमाला ।
नया - नूतन , नव, नवीन , नव्य।
पवन - वायु , हवा, समीर , वात , मारुत , अनिल, पवमान ।
पहाड़ - पर्वत , गिरी , अचल , नग, भूधर , महीधर ।
पक्षी - खग, चिडिया , गगनचर , पखेरू , विहंग , नभचर ।
पति - स्वामी , प्राणाधार , प्राणप्रिय, प्राणेश, आर्यपुत्र।
पत्नी - गृहणी , बहु , वनिता , दारा, जोरू ,वामांगिनी ।
पुत्र - बेटा , आत्मज, वत्स , तनुज , तनय, नंदन ।
पुत्री - बेटी, आत्मजा , तनूजा, सुता , तनया ।
पुष्प - फूल , सुमन , कुसुम , मंजरी , प्रसून ।
बादल - मेघ, घन , जलधर , जलद, वारिद, नीरद , सारंग ।
बालू - रेत , बालुका , सैकत ।
बन्दर - वानर , कपि, कपीश, हरि।
बिजली - घनप्रिया , इन्द्र्वज्र, चपला , दामिनी , ताडित, विद्युत ।
विष - जहर , हलाहल , गरल , कालकूट ।
वृक्ष - पेड़ , पादप , विटप , तरु , गाछ ।
विष्णु - नारायण , दामोदर , पीताम्बर , चक्रपाणी ।
भूषण - जेवर , गहना, आभूषण , अलंकार ।
मनुष्य - आदमी , नर, मानव, मानुष , मनुज ।
मदिरा- शराब , हाला, आसव, मधु, मद।
मोर- केक , कलापी, नीलकंठ , नर्तकप्रिय ।
मधु - शहद , रसा, शहद, कुसुमासव ।
मृग - हिरण, सारंग , कृष्णसार।
मछली - मीन , मत्स्य , जलजीवन , शफरी , मकर ।
रात - रात्रि, रैन , रजनी , निशा , यामिनी , तमी, निशि , यामा।
राजा - नृप, भूप, भूपाल , नरेश , महीपति , अवनीपति ।
लक्ष्मी - कमला , पद्मा , रमा, हरिप्रिया , श्री , इंदिरा ।
साँप - सर्प , नाग , विषधर , उरग , पवनासन।
शिव - भोलेनाथ ,शम्भू, त्रिलोचन , महादेव, नीलकंठ , शंकर।
सूर्य - रवि , सूरज , दिनकर, प्रभाकर, आदीत्य, भास्कर , दिवाकर।
संसार- जग, विश्व , जगत , लोक , दुनिया ।
शरीर - देह , तनु , काया , कलेवर , अंग , गात ।
सोना - स्वर्ण , कंचन, कनक , हेम , कुंदन ।
सिंह - केशरी, शेर, महावीर, नाहर, सारंग , मृगराज ।
समुद्र - सागर, पयोधि, उदधि , पारावार, नदीश ,जलधि ।
शत्रु - रिपु , दुश्मन , अमित्र , वैरी ।
हिमालय - हिमगिरी , हिमाचल , गिरिराज , पर्वतराज , नगेश।
ह्रदय - छाती , वक्ष , वक्षस्थल , हिय , उर ।
विलोम ( antonyms in hindi )
शब्द .........विलोम
रात - दिन
अमृत - विष
अथ - इति
अन्धकार - प्रकाश
अल्पायु -दीर्घायु
इच्छा -अनिच्छ।
उत्कर्ष - अपकर्ष
अनुराग -विराग
आदि - अंत
आगामी - गत
उत्थान - पतन
आग्रह - दुराग्रह
एकता - अनेकता
अनुज - अग्रज
आकर्षण - विकर्षण
उद्यमी - आलसी
अधिक - न्यून
आदान - प्रदान
उर्वर - ऊसर
एक - अनेक
आलस्य - स्फूर्ति
अर्थ - अनर्थ
उधार - नगद
अपेक्षा - नगद
उपस्थित - अनुपस्थित
अतिवृष्टि - अनावृष्टि
उत्कृष्ट - निकृष्ट
उत्तम - अधम
आदर्श - यथार्थ
आय - व्यय
स्वाधीन - पराधीन
आहार - निराहार
दाता - याचक
खेद - प्रसन्नता
गुप्त - प्रकट
प्रत्यक्ष - परोक्ष
घृणा - प्रेम
सजीव - निर्जीव
सुगंध - दुर्गन्ध
मौखिक - लिखित
संक्षेप - विस्तार
घात - प्रतिघात
निंदा - स्तुति
मितव्यय - अपव्यय
सरस - नीरस
सौभाग्य - दुर्भाग्य
मोक्ष - बंधन
कृतज्ञ - कृतघ्न
क्रय - विक्रय
दुर्लभ - सुलभ
निरक्षर - साक्षर
नूतन - पुरातन
बंधन - मुक्ति
ठोस - तरल
यश - अपयश
सगुण - निर्गुण
मूक - वाचाल
रुग्ण - स्वस्थ
रक्षक - भक्षक
वरदान - अभिशाप
शुष्क - आर्द्र
हर्ष - शोक
क्षणिक - शाश्वत
विधि - निषेध
विधवा - सधवा
शयन - जागरण
शीत - उष्ण
सक्रिय - निष्क्रय
सफल - असफल
सज्जन - दुर्जन
शुभ - अशुभ
संतोष - असंतोष
अलंकार
मानव समाज सौन्दर्योपासक है ,उसकी इसी प्रवृत्ति ने अलंकारों को जन्म दिया है। शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए जिस प्रकार मनुष्य ने भिन्न -भिन्न प्रकार के आभूषण का प्रयोग किया ,उसी प्रकार उसने भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का सृजन किया। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है। जिस प्रकार नारी के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए आभूषण होते है,उसी प्रकार भाषा के सौन्दर्य के उपकरणों को अलंकार कहते है। इसीलिए कहा गया है - 'भूषण बिना न सोहई -कविता ,बनिता मित्त।'
अलंकार के भेद - इसके तीन भेद होते है -
१.शब्दालंकार २.अर्थालंकार ३.उभयालंकार
१.शब्दालंकार :- जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है,वह पर शब्दालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के प्रमुख भेद है - १.अनुप्रास २.यमक ३.श्लेष
१.अनुप्रास :- अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों के योग से बना है । 'अनु' का अर्थ है :- बार- बार तथा 'प्रास' का अर्थ है - वर्ण । जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है ,वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है । इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार -बार प्रयोग किया जाता है । जैसे -
जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप ।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप । ।
२.यमक अलंकार :- जहाँ एक ही शब्द अधिक बार प्रयुक्त हो ,लेकिन अर्थ हर बार भिन्न हो ,वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण -
कनक कनक ते सौगुनी ,मादकता अधिकाय ।
वा खाये बौराय नर ,वा पाये बौराय। ।
यहाँ कनक शब्द की दो बार आवृत्ति हुई है जिसमे एक कनक का अर्थ है - धतूरा और दूसरे का स्वर्ण है ।
३.श्लेष अलंकार :- जहाँ पर ऐसे शब्दों का प्रयोग हो ,जिनसे एक से अधिक अर्थ निलकते हो ,वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है । जैसे -
चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर ।
को घटि ये वृष भानुजा ,वे हलधर के बीर। ।
यहाँ वृषभानुजा के दो अर्थ है - १.वृषभानु की पुत्री राधा २.वृषभ की अनुजा गाय । इसी प्रकार हलधर के भी दो अर्थ है - १.बलराम २.हल को धारण करने वाला बैल
अर्थालंकार
जहाँ अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है ,वहाँ अर्थालंकार होता है । इसके प्रमुख भेद है - १.उपमा २.रूपक ३.उत्प्रेक्षा ४.दृष्टान्त ५.संदेह ६.अतिशयोक्ति
१.उपमा अलंकार :- जहाँ दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समता दिखाई जाय ,वहाँ उपमा अलंकार होता है । उदाहरण -
सागर -सा गंभीर ह्रदय हो ,गिरी -सा ऊँचा हो जिसका मन।
इसमे सागर तथा गिरी उपमान ,मन और ह्रदय उपमेय सा वाचक ,गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।
२.रूपक अलंकार :- जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय ,वहाँ रूपक अलंकार होता है , यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिखाई पड़े । उदाहरण -
बीती विभावरी जाग री।
अम्बर -पनघट में डुबों रही ,तारा -घट उषा नागरी ।'
यहाँ अम्बर में पनघट ,तारा में घट तथा उषा में नागरी का अभेद कथन है।
३.उत्प्रेक्षा अलंकार :- जहाँ उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ भिन्नता में अभिन्नता दिखाई जाती है। उदाहरण -
सखि सोहत गोपाल के ,उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु पिये,दावानल की ज्वाल । ।
यहाँ गूंजा की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान के संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है।
४.अतिशयोक्ति अलंकार :- जहाँ पर लोक -सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का वर्णन होता है । वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण -
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि ।
सगरी लंका जल गई ,गये निसाचर भागि। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
५.संदेह अलंकार :- जहाँ प्रस्तुत में अप्रस्तुत का संशयपूर्ण वर्णन हो ,वहाँ संदेह अलंकार होता है। जैसे -
'सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है ।
कि सारी हीकी नारी है कि नारी हीकी सारी है । 'इस अलंकार में नारी और सारी के विषय में संशय है अतः यहाँ संदेह अलंकार है ।
६.दृष्टान्त अलंकार :- जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्य में बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है ,वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती -जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है। उदाहरण :-
'एक म्यान में दो तलवारें ,कभी नही रह सकती है ।
किसी और पर प्रेम नारियाँ,पति का क्या सह सकती है । । '
इस अलंकार में एक म्यान दो तलवारों का रहना वैसे ही असंभव है जैसा कि एक पति का दो नारियों पर अनुरक्त रहना । अतः यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है।
उभयालंकार
जहाँ काव्य में शब्द और अर्थ दोनों का चमत्कार एक साथ उत्पन्न होता है ,वहाँ उभयालंकार होता है । उदाहरण - 'कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।'
इस अलंकार में शब्द और अर्थ दोनों है।
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द ( one word substitution )
भाषा में कई शब्दों के स्थान पर एक शब्द बोल कर हम भाषा को प्रभावशाली एवं आकर्षक बनाते है। जैसे -
राम बहुत सुन्दर कहानी लिखता है। अनेक शब्दों के स्थान पर हम एक ही शब्द 'कहानीकार' का प्रयोग कर सकते है । इसी प्रकार ,अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कर सकते है। यहां पर अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के कुछ उदाहरण दिए जा रहे है : -
१.जो दिखाई न दे - अदृश्य
२.जिसका जन्म न हो - अजन्मा
३.जिसका कोई शत्रु न हो - अजातशत्रु
४.जो बूढ़ा न हो - अजर
५.जो कभी न मरे - अमर
६.जो पढ़ा -लिखा न हो - अपढ़ ,अनपढ़
७.जिसके कोई संतान न हो - निसंतान
८.जो उदार न हो - अनुदार
९. जिसमे धैर्य न हो - अधीर
१०.जिसमे सहन शक्ति हो - सहिष्णु
११.जिसके समान दूसरा न हो - अनुपम
१२.जिस पर विश्वास न किया जा सके - अविश्वनीय
१३.जिसकी थाह न हो - अथाह
१४.दूर की सोचने वाला - दूरदर्शी
१५.जो दूसरों पर अत्याचार करें - अत्याचारी
१६.जिसके पास कुछ भी न हो - अकिंचन
१७.दुसरे देश से अपने देश में समान आना - आयात
१८.अपने देश से दुसरे देश में समान जाना - निर्यात
१९.जो कभी नष्ट न हो - अनश्वर
२०.जिसे कोई जीत न सके - अजेय
२१.अपनी हत्या स्वयं करना - आत्महत्या
२२.जिसे दंड का भय न हो - उदंड
२३.जिस भूमि पर कुछ न उग सके - ऊसर
२४.जनता में प्रचलित सुनी -सुनाई बात - किंवदंती
२५.जो उच्च कुल में उत्पन्न हुआ हो - कुलीन
२६.जिसकी सब जगह बदनामी -कुख्यात
२७.जो क्षमा के योग्य हो - क्षम्य
२८.शीघ्र नष्ट होने वाला - क्षणभंगुर
२९.कुछ दिनों तक बने रहना वाला - टिकाऊ
३०.पति-पत्नी का जोड़ा - दम्पति
३१.जो कम बोलता हो -मितभाषी
३२.जो अधिक बोलता हो - वाचाल
३३.जिसका पति जीवित हो - सधवा
३४.जिसमे रस हो - सरस
३५.जिसमे रस न हो - नीरस
३६.भलाई चाहने वाला - हितैषी
३७.दूसरों की बातों में दखल देना - हस्तक्षेप
३८.दिल से होने वाला - हार्दिक
३९.जिसमे दया न हो - निर्दय
४०.जो सब जगह व्याप्त हो -सर्वव्यापक
४१.जानने की इच्छा रखने वाला - जिज्ञासु
४२.सप्ताह में एक बार होने वाला - साप्ताहिक
४३.साहित्य से सम्बन्ध रखने वाला - साहित्यिक
४४.मांस खाने वाला - मांसाहारी
४५.जिसके आने की तिथि न हो - अतिथि
४६.जिसके ह्रदय में दया हो - दयावान
४७.जो चित्र बनाता हो - चित्रकार
४८.विद्या की चाह रखने वाला - विद्यार्थी
४९.हमेशा सत्य बोलने वाला - सत्यवादी
५०.जो देखने योग्य हो - दर्शनीय
मुहावरे और उनका प्रयोग (१)
मुहावरा :- विशेष अर्थ को प्रकट करने वाले वाक्यांश को मुहावरा कहते है। मुहावरा पूर्ण वाक्य नहीं होता, इसीलिए इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता । मुहावरा का प्रयोग करना और ठीक -ठीक अर्थ समझना बड़ा की कठिन है ,यह अभ्यास से ही सीखा जा सकता है । इसीलिए इसका नाम मुहावरा पड़ गया ।
यहाँ पर कुछ प्रसिद्ध मुहावरे और उनके अर्थ वाक्य में प्रयोग सहित दिए जा रहे है।
१.अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना - (स्वयं अपनी प्रशंसा करना ) - अच्छे आदमियों को अपने मुहँ मियाँ मिट्ठू बनना शोभा नहीं देता ।
२.अक्ल का चरने जाना - (समझ का अभाव होना) - इतना भी समझ नहीं सके ,क्या अक्ल चरने गए है ?
३.अपने पैरों पर खड़ा होना - (स्वालंबी होना) - युवकों को अपने पैरों पर खड़े होने पर ही विवाह करना चाहिए ।
४.अक्ल का दुश्मन - (मूर्ख) - राम तुम मेरी बात क्यों नहीं मानते ,लगता है आजकल तुम अक्ल के दुश्मन हो गए हो ।
५.अपना उल्लू सीधा करना - (मतलब निकालना) - आजकल के नेता अपना अपना उल्लू सीधा करने के लिए ही लोगों को भड़काते है ।
६.आँखे खुलना - (सचेत होना) - ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखे खुलती है ।
७.आँख का तारा - (बहुत प्यारा) - आज्ञाकारी बच्चा माँ -बाप की आँखों का तारा होता है ।
८.आँखे दिखाना - (बहुत क्रोध करना) - राम से मैंने सच बातें कह दी , तो वह मुझे आँख दिखाने लगा ।
९.आसमान से बातें करना - (बहुत ऊँचा होना) - आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है ,जो आसमान से बातें करती है ।
१० .ईंट से ईंट बजाना - (पूरी तरह से नष्ट करना) - राम चाहता था कि वह अपने शत्रु के घर की ईंट से ईंट बजा दे।
११.ईंट का जबाब पत्थर से देना - (जबरदस्त बदला लेना) - भारत अपने दुश्मनों को ईंट का जबाब पत्थर से देगा ।
१२.ईद का चाँद होना - (बहुत दिनों बाद दिखाई देना) - राम ,तुम तो कभी दिखाई ही नहीं देते ,ऐसा लगता है कि तुम ईद के चाँद हो गए हो ।
१३.उड़ती चिड़िया पहचानना - (रहस्य की बात दूर से जान लेना) - वह इतना अनुभवी है कि उसे उड़ती चिड़िया पहचानने में देर नहीं लगती ।
१४.उन्नीस बीस का अंतर होना - (बहुत कम अंतर होना) - राम और श्याम की पहचान कर पाना बहुत कठिन है ,क्योंकि दोनों में उन्नीस बीस का ही अंतर है ।
१५.उलटी गंगा बहाना - (अनहोनी हो जाना) - राम किसी से प्रेम से बात कर ले ,तो उलटी गंगा बह जाए ।
समास
समास का तात्पर्य है 'संक्षिप्तीकरण'। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे-'रसोई के लिए घर' इसे हम 'रसोईघर' भी कह सकते हैं।
समास के भेद हैं-
1. अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे-यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
जिस समास का प्रथम पद अव्यय हो,और उसी का अर्थ प्रधान हो,उसे अव्ययीभाव समास कहते है। जैसे - यथाशक्ति = (यथा +शक्ति ) यहाँ यथा अव्यय का मुख्य अर्थ लिखा गया है,अर्थात यथा जितनी शक्ति । इसी प्रकार - रातों रात ,आजन्म ,यथोचित ,बेशक,प्रतिवर्ष ।
कुछ अन्य उदाहरण-
आजीवन - जीवन-भर, यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार, यथाविधि विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार, भरपेट पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़, हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में, प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना, निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना, हरसाल - हरेक साल
अव्ययीभाव समास की पहचान- इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास होने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे-ऊपर के समस्त शब्द है।
द्वंद समास :-
इस समास में दोनों पद प्रधान होते है,लेकिन दोनों के बीच 'और' शब्द का लोप होता है। जैसे - हार-जीत,पाप-पुण्य ,वेद-पुराण,लेन-देन ।
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर 'और', अथवा, 'या', एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह
पाप-पुण्य पाप और पुण्य अन्न-जल अन्न और जल
सीता-राम सीता और राम खरा-खोटा खरा और खोटा
ऊँच-नीच ऊँच और नीच राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण
द्विगु समास :-
जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है,उसे द्विगु समास कहते है। जैसे - त्रिभुवन ,त्रिफला ,चौमासा ,दशमुख
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे-
समस्त पद समात-विग्रह समस्त पद समास विग्रह
नवग्रह नौ ग्रहों का मसूह दोपहर दो पहरों का समाहार
त्रिलोक तीनों लोकों का समाहार चौमासा चार मासों का समूह
नवरात्र नौ रात्रियों का समूह शताब्दी सौ अब्दो (सालों) का समूह
अठन्नी आठ आनों का समूह
कर्मधारय समास :-
जो समास विशेषण -विशेश्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते है,उन्हें कर्मधारय समास कहते है। जैसे -
१.चरणकमल -कमल के समानचरण ।
२.कमलनयन -कमल के समान नयन ।
३.नीलगगन -नीला है जो गगन ।
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्ववद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समात विग्रह
चंद्रमुख चंद्र जैसा मुख कमलनयन कमल के समान नयन
देहलता देह रूपी लता दहीबड़ा दही में डूबा बड़ा
नीलकमल नीला कमल पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन सत् (अच्छा) जन नरसिंह नरों में सिंह के समान
बहुव्रीहि समास :- जिस समास में शाब्दिक अर्थ को छोड़ कर अन्य विशेष का बोध होता है,उसे बहुव्रीहि समास कहते है। जैसे -
घनश्याम -घन के समान श्याम है जो -कृष्ण
दशानन -दस मुहवाला -रावण
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह
दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबर पीले है अम्बर (वस्त्र) जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा बुरी आत्मा वाला (कोई दुष्ट)
श्वेतांबर श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती
नत्र समास :-
इसमे नही का बोध होता है। जैसे - अनपढ़,अनजान ,अज्ञान ।
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-
समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह
असभ्य न सभ्य अनंत न अंत
अनादि न आदि असंभव न संभव
संधि और समास में अंतर
संधि वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे-देव+आलय=देवालय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे-माता-पिता=माता और पिता।
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर- कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे-नीलकंठ=नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे-नील+कंठ=नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।