Thursday, February 19, 2015

रहस्य आदित्य ह्रदय स्तोत्र के पाठ का

क्या है रहस्य आदित्य ह्रदय स्तोत्र के पाठ का
जीवन में अचानक बाधाएं, कष्ट, रोग, शत्रु बाधा, असफलता, पारिवारिक तनाव जैसी समस्याएं आने लगती हैं तो मनुष्य अपनी जन्म कुंडली में छिपे रहस्यों के अनुसार ग्रह-नक्षत्रों की शांति के उपाय करता है। ऐसा करने से सकारात्मक परिणाम भी मिलने लगते हैं। सूर्य ग्रह के दोष की वजह से ह्रदय रोग होने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है। इससे बचने के लिए स्वर्ण धातु की अंगूठी पहनने की सलाह दी जाती है।
आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ श्रद्धापूर्वक नियमित रूप से करते रहने से भी हृदय रोग में आशातीत लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से मिर्गी, ब्लड प्रैशर मानसिक रोगों में सुधार होने लगता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास में वृद्धि होने के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता व सिद्धि मिलने की संभावना बढ़ जाती है। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ आरम्भ करने के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार का दिन शुभ माना गया है। इसके बाद आने वाले प्रत्येक रविवार को यह पाठ करते रहना चाहिए।
इस दिन सूर्य देवता की धूप, दीप, लाल चंदन, लाल कनेर के पुष्प, घृत से पूजन करके उपवास रखना चाहिए। सांयकाल आटे से बने मीठे हलवे का प्रसाद लगाकर ग्रहण करना चाहिए। सूर्य देव के प्रति पूर्ण श्रद्धाभाव और विश्वास से नियम पूर्वक उनकी उपासना व आराधना करते रहने से लाभदायक फल मिलते हैं। सच्ची श्रद्धा से किया कोई भी जप-तप कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है।
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम ।।1।।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम ।
उपागम्याब्रवीद्राम-मगस्त्यो भगवान ऋषि: ।।2।।
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम ।
येन सर्वानरीन वत्स समरे विजयिष्यसि ।।3।।
आदित्यह्रदय पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम ।
जयावहं जपेन्नित्य-मक्षय्यं परमु शिवम ।।4।।
सर्वमंगल – मांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम ।
चिन्ताशोक – प्रशमन – मायुर्वर्धन – मुत्तमम ।।5।
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर – नमस्कृतम ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम ।।6।।
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मि – भावन: ।
एष देवासुरगणान लोकान पातु गभस्तिभि: ।।7।।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यपांपति: ।।8।।
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ।
वायु – र्वह्नि: प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ।।9।।
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान ।
सुवर्णसदृशो भानु-र्हिरण्यरेता दिवाकर: ।।10।।
हरिदश्व: सहस्रार्चि: सप्तसप्ति – र्मिरीचिमान ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान ।।11।।
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनो भास्करो रवि: ।
अग्निगर्भोSदिते: पुत्र: शंख: शिशिरनाशन: ।।12।।
व्योमनाथस्तमोभेदि ऋग्यजु:सामपारग: ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगम: ।।13।।
आतपी मण्डली मृत्यु: पिंगल सर्वतापन: ।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त: सर्वभवोद्भव: ।।14।।
नक्षत्रग्रहताराणा-मधिपो विश्वभावन: ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोSस्तु ते ।।15।।
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
ज्योति-र्गणानां पतये दिनाधिपतये ।।16।।
जयाय जयभद्राय हर्यश्र्वाय नमो नम: ।
नमो नम: सहस्रांशो आदित्याय नमो नम: ।।17।।
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नम: ।18।।
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ।।19।।
तपोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ।।20।।
तत्पचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोsभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ।।21।।
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभु: ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ।।22।।
एष सुप्तेषु जागर्ति भतेषु परिनिष्टित: ।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम ।।23।।
वेदाश्च ऋतवश्चैव ऋतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रवि: प्रभु: ।।24।।
(यह आदित्य ह्रदय स्तोत्र वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के 113 सर्ग से लिया गया है)

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