ज्यों ज्यों मानव विकास अपनी गति पकड़ रहा है इन्सान के लिए
हर स्तर पर प्रतिद्वंद्विता बढती जा रही है.सर्वप्रथम जब एक बच्चा प्रथम बार स्कूल
जाता है तो वह प्रतिद्वंद्विता का सामना करना शुरू कर देता है जब उसे अपने माता
द्वारा स्कूल में प्रवेश पाने के लिए जिद्दो जहद करनी पड़ती है.तत्पश्चात अपने
सुनहरे भविष्य के लिए अधिक से अधिक
परिश्रम कर क्लास में सबसे आगे रहने की होड़ में लग जाता है.कॉलेज की पढाई के
पश्चात् अपने लक्ष्य को पाने के लिए एक अच्छे कोर्स में प्रवेश पाने के लिए अनेक
प्रतियोगिताओं से गुजरना पड़ता है. जब उसे अपनी इच्छानुसार कॉलेज या व्यावसायिक
कोर्स में प्रवेश कर लेता है तो उसे सभी साथियों से अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने
की होड़ में लगना पड़ता है. जब वह अपने
कोर्स को पूरा कर लेता है उसके लिए जीवन का पहला आवश्यक पड़ाव पार हो जाता है.
परन्तु प्रतिद्वंद्विता उसका पीछा नहीं छोडती अब उसे अपने जॉब में प्रतिद्वंद्विता
का सामना करना होता है,साथ ही अपने निजी जीवन(अपने परिवार) की
चुनोतियों का सामना करना पड़ता है. इस
प्रकार वह जीवन भर प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ता है उससे जूझना पड़ता है और
यह भी आवश्यक नहीं है की प्रत्येक पड़ाव पर उसे सफलता मिलती रहे. जो लोग अपने
लक्ष्य को प्राप्त नहीं .कर पाते हैं अथवा यथोचित सफलता नहीं मिल पाती तो भी
उन्हें अपने स्तर पर भी प्रतिद्वंद्विता का सामना
करना होता है,अर्थात अपने स्तर को बनाये रखने के लिए
जिद्दोजहद करनी पड़ती है,परन्तु अब एक निराशा का भाव भी उसके जीवन में
जुड़ जाता है. जिससे प्रभावित होकर कुंठित हो जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. इसी
प्रकार जो सफलता की ऊंचाईयों पर पहुँच जाते है अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सफल हो
जाते हैं, तो उनके लिए प्रतिस्पर्द्धा समाप्त नहीं हो
जाती उन्हें भी अपने को उच्चतम स्तर पर बनाये रखने के लिए संघर्ष करते रहना पड़ता
है.
कोई व्यक्ति यह सोचता है की मैं दस लाख का
स्वामी हो जाऊं तो मेरे लिए पर्याप्त होगा और मेरा जीवन सफल हो जायेगा. परन्तु जब
वह वहां तक पहुँचता है, तो वह पाता है, की अभी तो वह करोड़ों
व्यक्तियों से बहुत पीछे है.उसका लक्ष्य तो बहुत ही छोटा था, उसने तो कुछ भी हासिल नहीं किया. उसे अब करोड़पति व्यक्तियों की लम्बी लिस्ट से
सामना होता है, यदि वह किसी प्रकार से दिन रात खपा कर अपनी
इच्छाओं ,आकाँक्षाओं को दबाते हुए,करोड़ पति बनने में सफल हो
गया तो भी उसे मलाल ही रहेगा की उसने सारा
जीवन जिस उपलब्धि को प्राप्त करने में
समाप्त कर दिया अर्थात व्यय कर दिया, फिर भी लाखों लोगों से वह
अब भी बहुत दूर है. कहने का तात्पर्य है की मरते दम तक हम प्रतिस्पर्द्धा से जूझते
रहते हैं, फिर भी अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट नहीं हो
पाते.एक लक्ष्य को प्राप्त करने के पश्चात् आगे के लक्ष्य को पाने के लिए बैचेनी
बढ़ने लगती है.और अब तक मिली सफलताओं से संतुष्टि का आभास नहीं हो पाता,बल्कि हताशा बढ़ने लगती है.
इसी प्रकार यदि को मेधावी छात्र एक डिग्री
लेकर कालेज से निकलता है, तो उसे लगता है अभी उसे और भी डिग्रियां
प्राप्त करनी चाहिए, परन्तु जैसे जैसे वह अपनी डिग्रीयां बढाता जाता
है और उसका लक्ष्य भी बढ़ता जाता है,
परन्तु वह दुनिया में
सर्वाधिक उपाधियाँ पाने वाला व्यक्ति नहीं बन पाता, क्योंकि दुनिया में
विद्वानों की भी कोई कमी नहीं है. यही हाल प्रत्येक क्षेत्र का है चाहे वह ताकत का
विषय हो, धन का विषय हो, विद्वता का विषय हो
सामर्थ्य का विषय हो दुनिया में सब कुछ असीमित है. आखिर किससे प्रतिस्पर्द्धा करके
हम संतुष्ट हो सकते हैं.अतः अपनी सामर्थ्य को पहचान कर ही लक्ष्य निर्धारित किया
जाय तो अधिक संतोष की प्राप्ति हो सकती है.
जब कोई पहलवान अखाड़े में उतरता है तो वह
अपने सामने किसी को भी नहीं जीतने देने की इच्छा रखता है, परन्तु अनेक पहलवानों से जीतने के पश्चात् भी उसे नयी नयी चुनौतियों से जूझना
पड़ता है, और अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पूर्व ही बूढा हो जाता है, और विश्वव्यापी पहलवान नहीं बन पाता. यही स्थिति किसी भी पदाधिकारी(सरकारी या
निजी कम्पनी) की होती है वह निरंतर उच्चतम पदों को प्राप्त करने के बावजूद
सर्वोच्च पदों पर नहीं पहुँच पाता और सेवा निवृति का समय आ जाता है.
सबसे अच्छा तो यही है की अपने स्तर से ऊपर
उठने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए और परिश्रम करते रहना चाहिए. अपनी
उपलब्धियों से संतुष्ट रहना ही हमारे लिए सवर्श्रेष्ठ है अन्यथा प्रतिस्पर्धा के
दल दल में फंस कर अपने जीवन को बर्बाद कर
लेना पड़ेगा और संतुष्टि कभी भी नहीं मिल सकेगी, जिसको(संतुष्टि) पाने के
लिए जीवन भर हम प्रयास रत रहे.