Tuesday, September 26, 2017

आज के बुजुर्गों की

गत पांच दशकों में आये सामाजिक, आर्थिक बदलाव अभूतपूर्व हैं.जितना बड़ा परिवर्तन इन दशकों में देखने को मिला है, शायद ही पहले कभी इतनी तीव्र गति से सब कुछ बदला हो. आज का बुजुर्ग इतने बदलावों देखकर हतप्रभ है, और वह नयी पीढ़ी को इसे बयां भी नहीं कर सकता. नयी सामाजिक व्यवस्था से सबसे अधिक दुष्प्रभाव का शिकार हुआ है तो वह है आज का बुजुर्ग अथवा वरिष्ठ नागरिक.

सबसे पहले आर्थिक स्थिति को समझना होगा निरंतर बढ़ने वाली महंगाई ने बुजुर्गों की अपनी कमाई से बची खुची बचत को प्रभाव हीन कर दिया है, न तो यह पूँजी उसके शेष जीवन के निर्वहन के लिए पर्याप्त है और न ही उससे प्राप्त होने वाले ब्याज से भरण पोषण संभव है.अक्सर वृद्धावस्था में बुजुर्गों का अपना आर्थिक स्रोत ख़त्म ही हो जाता है,कुछ सरकारी नौकरी से सेवा निवृत या अपनी संपत्ति से होने वाली आय प्राप्त करने वाले बुजुर्गों को छोड़ कर, अधिकतर बुजुर्ग आर्थिक रूप से पराश्रित हो चुके होते हैं.जब बुजुर्ग अपने आत्मसम्मान को दांव पर लगा देता है, उसकी मजबूरी हो जाती है की वह आर्थिक आवश्यकताओं के लिए अपनी संतान के ऊपर निर्भर रहे.जो बुजुर्ग शारीरिक रूप से आश्रित हैं उनकी व्यथा का बखान करना शब्दों के माध्यम से संभव नहीं है.
आज से मात्र तीस वर्ष पूर्व बुजुर्ग को ज्ञान का भंडार माना जाता था और घर में बुजुर्ग का होना संतान के आत्मविश्वास बनाये रखने में विशेष भूमिका निभाता था. परन्तु आज बुजुर्ग ज्ञान का भंडार नहीं रह गया है, बल्कि वह तो परम्पराओं का पुतला बन कर रहा गया है. नयी पीढ़ी को सर्वाधिक ज्ञान गूगल बाबा से मिल जाता है वह भी नवीनतम तथ्यों पर आधारित एवं विश्वसनीय होता है. जिसमें गलत एवं संदेहास्पद सूचनाओं की सम्भावना न के बराबर होती है. अतः आज का युवा बुजुर्गों से कहीं अधिक विद्वान् है और उसके पास सटीक जानकारियों का संग्रह है. इस प्रकार से घर के बुजुर्ग का ज्ञान और तजुर्बा महत्वहीन हो गया है और परिवार में उसका मान सम्मान समाप्त हो चुका है.उसकी आवश्यकता भी समाप्त हो गयी है.
स्वास्थ्य सेवाओं में उन्नति के कारण आज का बुजुर्ग दीर्घ जीवन जीता है, वह भी उसके लिए कष्टदायक ही साबित हो रहा है जब परिवार में समाज में उसकी आवश्यकता ही नहीं है तो वह अपने जीवन को एक भार स्वरूप जीता है. जबकि पहले अक्सर बुजुर्ग साठ,पैसंठ तक आते आते दुनिया छोड़ देता था.अतः आज बुजुर्ग को अपने निरर्थक जीवन जीने को मजबूर नही होना पड़ता था.

आज के बुजुर्ग के पूर्व की अपेक्षा अच्छे स्वास्थ्य होने के बावजूद कार्य के अभावों के साथ जीने को मजबूर होता है. जब एक युवा(जो सर्वाधिक उर्जावान अवस्था में होता है) को ही रोजगार नहीं मिल् पाता तो एक अपेक्षाकृत कम क्षमता के अभ्यर्थी को रोजगार कौन देगा, वैसे भी बुजुर्ग को कार्य करने के लिए अपने जीवन की हैसियत को देखना भी उसकी मजबूरी होती है.अनेक बार घर के अन्य परिजनों संतानों की हैसियत को देख कर भी उसे रोजगार ढूँढने की मजबूरी होती है. जिस कारण उसे उसके मनमाफिक रोजगार नहीं मिल पाता. खाली रहना उसके लिए कम कष्टकारी नहीं होता.उसके लिए समय व्यतीत करना एक चुनौती बन जाती है जिसे आज का युवा समझ भी नहीं पाता.
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मनुष्य को अपने विकास के लिए समाज की आवश्यकता हुयी , इसी आवश्यकता की पूर्ती के लिए समाज की प्रथम इकाई के रूप में परिवार का उदय हुआ .क्योंकि बिना परिवार के समाज की रचना के बारे में सोच पाना असंभव था .समुचित विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक ,शारीरिक ,मानसिक सुरक्षा का वातावरण का होना नितांत आवश्यक है .परिवार में रहते हुए परिजनों के कार्यों का वितरण आसान हो जाता है .साथ ही भावी पीढ़ी को सुरक्षित वातावरण एवं स्वास्थ्य पालन पोषण द्वारा मानव का भविष्य भी सुरक्षित होता है उसके विकास का मार्ग प्रशस्त होता है .परिवार में रहते हुए ही भावी पीढ़ी को उचित मार्ग निर्देशन देकर जीवन स्नाग्राम के लिए तैयार किया जा सकता है

              आज भी संयुक्त परिवार को ही सम्पूर्ण परिवार माना जाता है .वर्तमान समय में भी एकल परिवार को एक मजबूरी के रूप में ही देखा जाता है .हमारे देश में आज भी एकल परिवार को मान्यता प्राप्त नहीं है औद्योगिक विकास के चलते संयुक्त परिवारों का बिखरना जारी है . परन्तु आज भी संयुक्त परवर का महत्त्व कम नहीं हुआ है .संयुक्त परिवार के महत्त्व पर चर्चा करने से पूर्व एक नजर संयुक्त परिवार के बिखरने के कारणों ,एवं उसके अस्तित्व पर मंडराते खतरे पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं .संयुक्त परिवारों के बिखरने का मुख्य कारण है रोजगार पाने की आकांक्षा .बढती जनसँख्या तथा घटते रोजगार के कारण परिवार के सदस्यों को अपनी जीविका चलाने के लिए गाँव से शहर की ओर या छोटे शहर से बड़े शहरों को जाना पड़ता है और इसी कड़ी में विदेश जाने की आवश्यकता पड़ती है .परंपरागत कारोबार या खेती बाड़ी की अपनी सीमायें होती हैं जो परिवार के बढ़ते सदस्यों के लिए सभी आवश्यकतायें जुटा पाने में समर्थ नहीं होता .अतः परिवार को नए आर्थिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ती है .जब अपने गाँव या शहर में नयी सम्भावनाये कम होने लगती हैं तो परिवार की नयी पीढ़ी को राजगार की तलाश में अन्यत्र जाना पड़ता है .अब उन्हें जहाँ रोजगार उपलब्ध होता है वहीँ अपना परिवार बसाना होता है .क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं होता की वह नित्य रूप से अपने परिवार के मूल स्थान पर जा पाए .कभी कभी तो सैंकड़ो किलोमीटर दूर जाकर रोजगार करना पड़ता है .संयुक्त परिवार के टूटने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण नित्य बढ़ता उपभोक्तावाद है .जिसने व्यक्ति को अधिक महत्वकांक्षी बना दिया है .अधिक सुविधाएँ पाने की लालसा के कारण पारिवारिक सहनशक्ति समाप्त होती जा रही है ,और स्वार्थ परता बढती जा रही है .अब वह अपनी खुशिया परिवार या परिजनों में नहीं बल्कि अधिक सुख साधन जुटा कर अपनी खुशिया ढूंढता है ,और संयुक्त परिवार के बिखरने का कारण बन रहा है . एकल परिवार में रहते हुए मानव भावनात्मक रूप से विकलांग होता जा रहा है .जिम्मेदारियों का बोझ ,और बेपनाह तनाव सहन करना पड़ता है .परन्तु दूसरी तरफ उसके सुविधा संपन्न और आत्म विश्वास बढ़ जाने के कारण उसके भावी विकास का रास्ता खुलता है .
अनेक मजबूरियों के चलते हो रहे संयुक्त परिवारों के बिखराव के वर्तमान दौर में भी संयुक्त परिवारों का महत्त्व कम नहीं हुआ है .बल्कि उसका महत्व आज भी बना हुआ है .उसके महत्त्व को एकल परिवार में रह रहे लोग अधिक अच्छे से समझ पाते हैं .उन्हें संयुक्त परिवार के फायेदे नजर आते हैं .क्योंकि किसी भी वस्तु का महत्त्व उसके अभाव को झेलने वाले अधिक समझ सकते हैं .अब संयुक्त परिवारों के लाभ पर सिलसिले बार चर्चा करते हैं .

सुरक्षा और स्वास्थ्य ;परिवार के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी परिजन मिलजुल कर निभते हैं .अतः किसी भी सदस्य की स्वास्थ्य समस्या ,सुरक्षा अमास्या ,आर्थिक समस्या पूरे परिवार की होती है .कोई भी अनापेक्षित रूप से आयी परेशानी सहजता से सुलझा ली जाती है .जैसे यदि कोई गंभीर बीमारी से जूझता है तो भी परिवार के सब सदस्य अपने सहयोग से उसको बीमारी से निजात दिलाने में मदद करते है उसे कोई आर्थिक समस्य या रोजगार की संसय अड़े नहीं आती .ऐसे ही गाँव में या मोहल्ले में किसी को उनसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं होती संगठित होने के कारण पूर्ताया सुरक्षा मिलती है .व्यक्ति हर प्रकार के तनाव से मुक्त रहता है .
विभिन्न कार्यों का विभाजन ;-परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण कार्यों का विभाजन आसान हो जाता है .प्रत्येक सदस्य के हिस्से में आने वाले कार्य को वह अधिक क्षमता से कर पता है .और विभिन्न अन्य जिम्मेदारियों से भी मुक्त रहता है .अतः तनाव मुक्त हो कर कार्य करने में अधिक ख़ुशी मिलती है .उसकी कार्य क्षमता अधिक होने से कारोबार अधिक उन्नत होता है .परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ती अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है और जीवन उल्लास पूर्ण व्यतीत होता है .
भावी पीढ़ी का समुचित विकास ;संयुक्त परिवार में बच्चों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और उचित शारीरिक एवं चारित्रिक विकास का अवसर प्राप्त होता है .बच्चे की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है .उसे अन्य बच्चों के साथ खेलने का मौका मिलता है .माता पिता के साथ साथ अन्य परिजनों विशेष तौर पर दादा ,दादी का प्यार भी मिलता है .जबकि एकाकी परिवार में कभी कभी तो माता पिता का प्यार भी कम ही मिल पता है यदि दोनों ही कामकाजी हैं .दादा ,दादी से प्यार के साथ ज्ञान ,अनुभव बहर्पूर मिलता है .उनके साथ खेलने , समय बिताने से मनोरंजन भी होता है उन्हें संस्कारवान बनाना ,चरित्रवान बनाना ,एवं हिर्ष्ट पुष्ट बनाने में अनेक परिजनों का सहयोग प्राप्त होता है .एकाकी परिवार में संभव नहीं हो पता .
संयुक्त परिवार में रहकर कुल व्यय कम ;-बाजार का नियम है की यदि कोई वस्तु अधिक परिमाण में खरीदी जाती है तो उसके लिए कम कीमत चुकानी पड़ती है .अर्थात संयुक्त रहने के कारण कोई भी वस्तु अपेक्षाकृत अधिक मात्र में खरीदनी होती है अतः बड़ी मात्र में वस्तुओं को खरीदना सस्ता पड़ता है .दूसरी बात अलग अलग रहने से अनेक वस्तुएं अलग अलग खरीदनी पड़ती है जबकि संयुक्त रहने पर कम वस्तु लेकर कम चल जाता है .उदाहरण के तौर पर एक परिवार तीन एकल परिवारों के रूप में रहता है उन्हें तीन मकान ,तीन कार या तीन स्कूटर ,तीन टेलीविजन ,और तीन फ्रिज ,इत्यादि प्रत्येक वस्तु अलग अलग खरीदनी होगी .परन्तु वे यदि एक साथ रहते हैं उन्हें कम मात्र में वस्तुएं खरीद कार धन की बचत की जा सकती है .जैसे तीन स्कूटर के स्थान पर एक कार ,एक स्कूटर से कम चल सकता है ,तीन फ्रिज के स्थान पर एक बड़ा फ्रिज और एक A .C लिया जा सकता है इसी प्रकार तीन मकानों के साथ पर एक पूर्णतया सुसज्जित बड़ा सा बंगला लिया जा सकता है .तेलेफोने ,बिजली ,काबले के अलग अलग खर्च के स्थान पर बचे धन से कार व् A.C. मेंटेनेंस का खर्च निकाल सकता है .इस प्रकार से उतने ही बजट में अधिक उच्च जीवन शैली के साथ जीवन यापन किया जा सकता है .
भावनात्मक सहयोग ;- किसी विपत्ति के समय ,परिवार के किसी सदस्य के गंभीर रूप से बीमार होने पर ,पूरे परिवार के सहयोग से आसानी से पार पाया जा सकता है .जीवन के सभी कष्ट सब के सहयोग से बिना किसी को विचलित किये दूर हो जाते हैं .कभी भी आर्थिक समस्या या रोजगार चले जाने की समस्या उत्पन्न नहीं होती क्योंकि एक सदस्य की अनुपस्थिति में अन्य परिजन कारोबार को देख लेते हैं .
चरित्र निर्माण में सहयोग ;-संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यव्हार पर निरंतर निगरानी बनाय रखते हैं ,किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है .अर्थात प्रत्येक सदस्य चरित्रवान बना रहता है .किसी समस्या के समय सभी परिजन उसका साथ देते हैं और सामूहिक दबाव भी पड़ता है कोई भी सदस्य असामाजिक कार्य नहीं कार पता ,बुजुर्गों के भय के कारण शराब जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराइयों से बचा रहता है
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है की संयुक्त परिवार की अपनी गरिमा होती अपना ही महत्त्व होता है.


{“जीवन संध्याअर्थात जीवन का अंतिम अध्याय सर्वाधिक समस्याओं से घिरा होता है।धनार्जन के स्रोत या तो सूख जाते है या बहुत सीमित हो जाते है।अपने परिवार के अपने ही लोग साथ छोड़ने लगते हैं,उपेक्षा  करने लगते हैं,बीमारियाँ डेरा डाल  लेती हैं।यही कारण  है पूरे जीवन में वृद्धावस्था सबसे कष्टकारी सिद्ध होती है।}

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