Thursday, November 27, 2014

चक्र परिचय

चक्र परिचय 
हमारे शरीर में कुल 6चक्र हैं इसलिए इन्हें षट् चक्र कहा गया है। हम निम्न सारिणी से इन चक्रों की हमारे शरीर में स्थिति, इनसे संबंधित ग्रह और इनसे संचालित मुख्य विषय की जानकारी लेते हैं। 



इस सारिणी से स्पष्ट है कि हर चक्र में विशेष प्रकार की ऊर्जा छिपी हुई है और हर चक्र किसी एक ग्रह से संचालित है। जो ग्रह हमारी जन्मपत्रिका में कमजोर है, उस ग्रह से जु़डा चक्र भी कमजोर होगा और उस चक्र द्वारा संचालित विषय हमारे जीवन की कमजोरी होगी। 
उदाहरण के लिए जिन लोगों में rational thinking की कमी होती है, वह प्राय: समय के ताल से ताल नहीं मिला पाते हैं। जिसकी वजह से arrogant हो जाते हैं और अच्छाई छो़डकर गलत रास्ता अपना लेते हैं। ऎसे लोगों में अनाहत चक्र और शुक्र ग्रह भी कमजोर मिलता है। 
इसी तरह जो बच्चो पढ़ने में मन नहीं लगा पाते हैं या एकाग्रता की कमी होती है उनकी जन्मपत्रिका में सूर्य, चन्द्रमा ग्रह कमजोर पाये जाते हैं और स्पष्ट है कि आज्ञा चक्र की ऊर्जा का उन्हें Support नहीं है। 

रोग निर्णय

रोग निर्णय के सोपान -
 किन ग्रहों का विचार करना है- फलदीपिकानुसार रोग निर्णय के लिए जिन ग्रहों का विचार करना चाहिए वे हैं- (1) छठे भाव में स्थित ग्रह, (2) अष्टम भाव में स्थित ग्रह, (3) बारहवें भाव में स्थित ग्रह, (4) छठे भाव का स्वामी, (5) षष्ठेश से युति कर रहे ग्रह। 
षष्ठेश रोग का स्वामी है इसलिए षष्ठेश की स्थिति का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानसागरी में षष्ठेश के विभिन्न भावों में फल का बहुत अच्छा वर्णन किया गया है। यदि सिर्फ रोग के संदर्भ में देखा जाए तो षष्ठेश लगA में आरोग्य देते हैं, द्वितीय भाव में व्याधि युक्त शरीर देते हैं, तृतीय भाव में षष्ठेश व्यक्ति को ल़डाई-झगडे़ करने की प्रवृति देते हैं, चतुर्थ भाव में जाने पर पिता को रोगी बनाते है, पंचम भाव में पुत्र के कारण कष्ट प्राप्त होता है, षष्ठेश छठे भाव में होकर आरोग्य देते हैं, शत्रु रहित और कष्टरहित जीवन देते हैं, सप्तम भाव में षष्ठेश पत्नी से कष्ट दिलाते हैं। अष्टम के संदर्भ में ग्रहों का वर्णन भी है। यदि षष्ठेश शनि हो तो संग्रहणी रोग होता है। मंगल हो तो सर्प से खतरा, बुध हो तो विष दोष, चन्द्रमा हो तो शीतादि दोष, सूर्य हो तो जानवर से भय, बृहस्पति हो तो पागलपन और शुक्र हो तो नेत्र रोग होता है। नवें भाव में जाने पर ष्ाष्ठेश लंगडापन देता है। दशम में माता से कष्ट और विरोध देता है, एकादश में शत्रु चोरादि से भय देता है और द्वादशभाव में ष्ाष्ठेश व्यक्ति को अकर्मठ बना देता है।
 ग्रहों का नैसर्गिक कारकत्व - तत्व आदि - 
हम ज्योतिष मंथन के माध्यम से समय-समय पर ग्रहों के नैसर्गिक कारकत्वों पर ध्यान केन्द्रित करने की बात करते रहे हैं। एक बार पुन: यही दोहरा रहे हैं। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में सटीक परिणाम पर पहुँचने के लिए ग्रहों के नैसर्गिक कारकत्व तत्व आदि पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। फलदीपिका के अनुसार सूर्य और मंगल तेज के अधिष्ठाता हैं और दृष्टि पर इनका अधिकार है। चन्द्रमा और शुक्र जल तत्व के होने के कारण रसेन्द्रिय के अधिष्ठाता हैं इसलिए शरीर के एन्डोक्राइन सिस्टम यानि हार्मोन ग्रंथियों पर इनका अधिकार है। बुध पृथ्वी तत्व के होने के कारण घ्राणेन्द्रिय हैं। बृहस्पति में आकाश तत्व प्रधान होने से वे श्रवणेन्द्रिय के अधिष्ठाता हैं। शनि, राहु और केतु वायु के अधिष्ठाता हैं इसलिए स्पर्श का विचार इनसे करना चाहिए। ग्रहों से होने वाले संभावित रोग की विवेचना में नैसर्गिक कारकत्व के साथ-साथ काल पुरूष की कुण्डली में उस ग्रह की राशि का विचार भी करें। उदाहरण के लिए सूर्य हड्डी के नैसर्गिक प्रतिनिधि हैं इसलिए हड्डी से जुडी बीमारियां सूर्य से देखी जाती हैं। कालपुरूष की कुण्डली में सूर्य की राशि पंचम भाव में आती है जो नाभि के आसपास का क्षेत्र है। इसलिए सूर्य से नाभि प्रदेश और कोख की बीमारियां दोनों देखी जानी चाहिए। इसी तरह सूर्य पित्त का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। इसलिए यदि सूर्य से रोग निर्धारण कर रहे हैं तो इन सभी बिन्दुओं पर ध्यान रखना होगा। 

Sunday, November 23, 2014

आइये ...........!!! जाने ,... जेल में बंद कैदी के अधिकार

आदरणीय देशवासिओं,
आजकल देश में पुलिस और न्यायपालिका के भ्र्ष्टाचार के कारण, कभी भी,    किसी को भी ,.. जेल की यात्रा करनी पड़ सकती है , और जेल के लोग आप का आर्थिक शोषण करने से कभी भी नहीं चुकेंगे..............!!! आप ऐसी शोषण के शिकार न बने , इसलिए आप की जानकारी के लिए हम जरुरी जानकारी दे रहे हैं , ये कभी भी,     किसी के काम आ सकती है .        

ये न सोचे कि --- मुझे इसकी क्या जरुरत...................??????????????? ऐसे ही लोगो को हमने फसते हुए देखा है .

1)  Right to Legal Aid-- आप को सरकारी खर्चे से अपने केस कि पैरवी / अपील डालने के लिए, वकील कि सेवाओ का अधिकार है. और ये सब फ्री होता है  

Supreme Court Case Reference-- Hussain Ara Khatum v/s State of Bihar  ( AIR 1979, SC 1371 )

2) Right to Read, Write, to Exercise, recreation, Meditation, Chat ---  पढ़ने, लिखने , व्यायाम , योग ., मैडिटेशन करने का अधिकार 

 Supreme Court Case Reference--  Sunil Batra (ii) v/s Delhi Administration   ( 1980 ) 3 SCC  488 .

3)  Right to not get Leg Ironed ---पैरो में बेड़ी,  नहीं डालने का अधिकार  

Supreme Court Case Reference--  Prem Shankar Shukla v/s Delhi Administration ( 1980 ) 3 SCC - 526 .

4) Right of Non-Criminal Mentally person, not to be kept in Jail ---- मानसिक रोगी जो कि अपराधी नहीं है ., उसको जेल में नहीं डालने का अधिकार 

Supreme Court Case Reference--  Sheela Barse v/s Union of India  ( 1993 ) 4 SCC  209 . 

5) Right of Religious Teaching in Jail --- धार्मिक किर्याकलापों को करने का अधिकार 

Supreme Court Case Reference--Sanjay Suri v/s Delhi Administration (1988) Supp  SCC 160  


इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुँचाने में मदद करें , आपके किसी जानकर, रिश्तेदार, परिचित या खुद के काम आ सकती है . 

References of Supreme Court cases have been given to empower your knowledge. If these rights are violated, then Contempt of Court case proceedings can be initiated against that authority. 



भवदीय

रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया
RAGHUBIR SINGH GADEGAWNLIA
Social Activist, RTI Activist 

Saturday, November 22, 2014

शब्द - चित्र हूँ मैं वर्तमान का आइना हूँ चोट के निशान का

मेरा गीत चाँद है ना चाँदनी
न किसी के प्यार की है रागिनी
हंसी भी नही है माफ कीजिये
खुशी भी नही है माफ कीजिये
शब्द - चित्र हूँ मैं वर्तमान का
आइना हूँ चोट के निशान का
मै धधकते आज की जुबान हूँ
मरते लोकतन्त्र का बयान हूँ
कोइ न डराए हमे कुर्सी के गुमान से
और कोइ खेले नही कलम के स्वाभिमान से
हम पसीने की कसौटियों के भोजपत्र हैं
आंसू - वेदना के शिला- लेखों के चरित्र हैं
हम गरीबों के घरों के आँसुओं की आग हैं
आन्धियों के गाँव मे जले हुए चिराग हैं
किसी राजा या रानी के डमरु नही हैं हम
दरबारों की नर्तकी के घुन्घरू नही हैं हम
सत्ताधीशों की तुला के बट्टे भी नही हैं हम
कोठों की तवायफों के दुपट्टे भी नही हैं हम
अग्निवंश की परम्परा की हम मशाल हैं
हम श्रमिक के हाथ मे उठी हुई कुदाल हैं
ये तुम्हारी कुर्सियाँ टिकाऊ नही हैं कभी
औ हमारी लेखनी बिकाऊ नही है कभी
राजनीति मे बडे अचम्भे हैं जी क्या करें
हत्यारों के हाथ बडे लम्बे हैं जी क्या करें
आज ऐरे गैरे- भी महान बने बैठे हैं
जाने- माने गुंडे संविधान बने बैठे हैं
आज ऐसे - ऐसे लोग कुर्सी पर तने मिले
जिनके पूरे - पूरे हाथ खून मे सने मिले
डाकु और वर्दियों की लाठी एक जैसी है
संसद और चम्बल की घाटी एक जैसी है
दिल्ली कैद हो गई है आज उनकी जेब मे
जिनसे ज्यादा खुद्दारी है कोठे की पाजेब मे
दरबारों के हाल- चाल न पूछो घिनौने हैं
गद्दियों के नीचे बेइमानी के बिछौने हैं
हम हमारा लोकतन्त्र कहते हैं अनूठा है
दल- बदल विरोधी कानूनो को ये अंगूठा है
कभी पन्जा , कभी फूल, कभी चक्कर धारी हैं
कभी वामपन्थी कभी हाथी की सवारी हैं
आज सामने खडे हैं कल मिलेंगे बाजू मे
रात मे तुलेंगे सूटकेशों की तराजू मे
आत्मायें दल बदलने को ऐसे मचलती हैं
ज्यों वेश्यांये बिस्तरों की चादरें बदलती हैं
उनकी आरती उतारो वे बडे महान हैं
जिनकी दिल्ली मे दलाली की बडी दुकान है
ये वो घडियाल हैं जो सिन्धु मे भी सूखें हैं
सारा देश खा चुके हैं और अभी भूखे हैं
आसमा के तारे आप टूटते देखा करो
देश का नसीब है ये फूटते देखा करो
बोलना छोडो खामोशी का समय है दोस्तो
डाकुओं की ताजपोशी का समय है दोस्तो

-----Radha Bakolia--------

Wednesday, November 19, 2014

जानिये महत्वपूर्ण बातें - महत्वपूर्ण बातें -

जानिये महत्वपूर्ण बातें -
महत्वपूर्ण बातें -
[१] मुख्य द्वार के पास कभी भी कूड़ादान
ना रखें इससे पड़ोसी शत्रु हो जायेंगे |
[२] सूर्यास्त के समय
किसी को भी दूध,दही या प्याज
माँगने पर ना दें इससे घर की बरक्कत समाप्त
हो जाती है |
[३] छत पर कभी भी अनाज या बिस्तर
ना धोएं..हाँ सुखा सकते है इससे ससुराल से सम्बन्ध खराब होने
लगते हैं |
[४] फल खूब खाओ स्वास्थ्य के लिए अच्छे है लेकिन उसके छिलके
कूडादान में ना डालें वल्कि बाहर फेंकें इससे मित्रों से लाभ होगा |
[५] माह में एक बार किसी भी दिन घर में
मिश्री युक्त खीर जरुर बनाकर परिवार सहित
एक साथ खाएं अर्थात जब पूरा परिवार घर में
इकट्ठा हो उसी समय खीर खाएं
तो माँ लक्ष्मी की जल्दी कृपा होती है
|
[६] माह में एक बार अपने कार्यालय में भी कुछ मिष्ठान
जरुर ले जाएँ उसे अपने साथियों के साथ या अपने अधीन
नौकरों के साथ मिलकर खाए तो धन लाभ होगा |
[७] रात्री में सोने से पहले रसोई में
बाल्टी भरकर रखें इससे क़र्ज़ से शीघ्र
मुक्ति मिलती है और यदि बाथरूम में
बाल्टी भरकर रखेंगे तो जीवन में उन्नति के
मार्ग में बाधा नही आवेगी |
[८] वृहस्पतिवार के दिन घर में कोई
भी पीली वस्तु अवश्य खाएं
हरी वस्तु ना खाएं तथा बुधवार के दिन
हरी वस्तु खाएं लेकिन
पीली वस्तु बिलकुल ना खाएं इससे सुख
समृद्धि बड़ेगी |
[९] रात्रि को झूठे बर्तन कदापि ना रखें इसे पानी से निकाल
कर रख सकते है हानि से बचोगें |
[१०] स्नान के बाद गीले या एक दिन पहले के प्रयोग
किये गये तौलिये का प्रयोग ना करें इससे संतान हठी व
परिवार से अलग होने लगती है अपनी बात
मनवाने लगती है अतः रोज़ साफ़ सुथरा और
सूखा तौलिया ही प्रयोग करें |
[११] कभी भी यात्रा में पूरा परिवार एक साथ
घर से ना निकलें आगे पीछे जाएँ इससे यश
की वृद्धि होगी |
ऐसे ही अनेक अपशकुन है जिनका हम ध्यान रखें
तो जीवन में
किसी भी समस्या का सामना नही करना पड़ेगा तथा सुख
समृद्धि बड़ेगी |

Tuesday, November 4, 2014

वास्तुशास्त्र

जिस प्रकार हमारे शरिर में पांच तत्व होते है।
और पांच इन्द्रिया होती है उसी प्रकार हमारे मकान के तत्व होते है
और मकान को घर बनाने में वास्तु की पांच इन्द्रियों का बहुत महत्व है।

Photo: जिस प्रकार हमारे शरिर में पांच तत्व होते है।
और पांच इन्द्रिया होती है उसी प्रकार हमारे मकान के तत्व होते है
और मकान को घर बनाने में वास्तु की पांच इन्द्रियों का बहुत महत्व है।
मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना होता है।
1. अग्नि।
2. आकाश।
3. वायु।
4. जल।
5. पृथ्वी।
एक भी तत्व की अधिकता, दुसरे तत्व की दूषितता दर्शाता हैं। जिसके कारण शरीर में रोग ओर व्याधिया उत्पन हो जाती हैं।
इसी प्रकार शरीर में 3 गुण होते है,जो की शरीर में एक गुण के कमी के कारण दूसरा गुण दूषित हो जाता है
शरीर के 3 निम्नलिखित गुण होते हैं।
1. रजोगुण।
2. तमोगुण।
3. सतोगुण।

इसी प्रकार मकान में भी पांच तत्व होते है। इन तत्व की उत्पति के निम्न लिखित द्वार है।
1. अग्नि का सम्बन्ध रसोई से है।
2. जल का सम्बन्ध घर के पूजा स्थान से है।
3. पृथ्वी का सम्बन्ध TOILET से है।
4. वायु का सम्बन्ध, मुखिया के शयन कक्ष से है।
5. आकाश का सम्बन्ध घर के मुख्य द्वार से है।

इसी प्रकार 3 गुणों के उत्पन के 3 महत्वपूर्ण स्थान हैं।
1. सतोगुण की उत्पति पूजा स्थान की दिशा और मुख से होती है।
2. तमोगुण की उत्पत्ति TOILET की दिशा और TOILET में लगी SEAT के मुख से होती हैं।
3. रजो गुण मुखिया के शयनकक्ष में लगे BAD की दिशा से उत्पति होती हैं।

यदि किसी भी मकान के पांच तत्व और तीन गुण शुद्ध कर दिए जाये तो मकान को घर बनने में अधिक समय नहीं लगता। मकान की शुभता बढती ही जाती हैं।

एक विद्वान वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ सबसे पहले मकान के पांच तत्व और तीनो गुण शुद्ध करके मकान की शुभता बढ़ाते है।
वास्तु दोष का निवारण यज्ञ से सम्भव है।।हर हर महादेव।

Photo: मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना होता है।
1. अग्नि।
2. आकाश।
3. वायु।
4. जल।
5. पृथ्वी।
एक भी तत्व की अधिकता, दुसरे तत्व की दूषितता दर्शाता हैं। जिसके कारण शरीर में रोग ओर व्याधिया उत्पन हो जाती हैं।
इसी प्रकार शरीर में 3 गुण होते है,जो की शरीर में एक गुण के कमी के कारण दूसरा गुण दूषित हो जाता है
शरीर के 3 निम्नलिखित गुण होते हैं।
1. रजोगुण।
2. तमोगुण।
3.  सतोगुण।

इसी प्रकार मकान में भी पांच तत्व होते है। इन तत्व की उत्पति के निम्न लिखित द्वार है।
1. अग्नि का सम्बन्ध रसोई से है।
2. जल का सम्बन्ध घर के पूजा स्थान से है।
3. पृथ्वी का सम्बन्ध TOILET से है।
4. वायु का सम्बन्ध, मुखिया के शयन कक्ष से है।
5. आकाश का सम्बन्ध घर के मुख्य द्वार से है।

इसी प्रकार 3 गुणों के उत्पन के 3 महत्वपूर्ण स्थान हैं।
1. सतोगुण की उत्पति पूजा स्थान की दिशा और मुख से होती है।
2. तमोगुण की उत्पत्ति TOILET की दिशा और TOILET में लगी SEAT के मुख से होती हैं।
3.  रजो गुण मुखिया के शयनकक्ष में लगे BAD की दिशा से उत्पति होती हैं।

यदि किसी भी मकान के पांच तत्व और तीन गुण शुद्ध कर दिए जाये तो मकान को घर बनने में अधिक समय नहीं लगता। मकान की शुभता बढती ही जाती हैं।

एक विद्वान वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ सबसे पहले मकान के पांच तत्व और तीनो गुण शुद्ध करके मकान की शुभता बढ़ाते है।
वास्तु दोष का निवारण यज्ञ से सम्भव है।।हर हर महादेव।