Monday, January 12, 2015

कंचन, कामिनी और कीर्ति

● कंचन, कामिनी और कीर्ति ।
मनुष्य मात्र का अतिप्रिय स्वप्न,
अपना होंश संभालते ही उसे कंचन आकर्षित करने लगती है ।
कंचन - अर्थात धन-सम्पति ।
धन के लिये उसके अथक प्रयास उसे इस स्वप्न में और गहरा उतारते हैं । उसे कुछ सूझता ही नहीं । बस धन और धन ही सब कुछ है । 
इसके लिये वो झूठ, फरेब और धोखाधड़ी सीखता है । हर गुजरते दिन के साथ वो इसमें सिद्धहस्त हो जाता है ।
इसी गहरी नींद में वो युवा हो जाता है और उसकी कामनाओं की यात्रा आरम्भ हो जाती है ।
अब उसे कामिनी आकर्षित करने लगती है ।
कामिनी - अर्थात कामनाओं की अंतहीन कामना ।
अब उसे हर उस चीज की कामना है जिसे भौतिक-जगत में प्राप्त किया जा सकता है । इससे उसे मानसिक और शारीरिक संतोष मिलेगा ।
वो जानता है कि - जैसे धन अर्जित करना आसान नहीं था वैसे ही कामनाओं की पूर्ति भी आसान नहीं है । लेकिन अब वो प्रयास करने में सिद्धहस्त हो गया है और इस दिशा में भी प्रयास करेगा ।
इसी आपा-धापी में उसकी युवावस्था गुजर जाती है और वो अधेड़वस्था को प्राप्त हो जाता है ।
अब वो चाहता है कि - आने वाले समय में लोग उसे याद करें ।
और फिर उसे कीर्ति आकर्षित करने लगती है ।
कीर्ति - अर्थात यश, मान-सम्मान ।
उसका नाम हर किसी की जुबान पर हो, लोग उसकी चर्चा करें और हर जगह उसका नाम लिखा दिखाई दे । ये स्वप्न का सबसे गूढ़ हिस्सा है जहाँ वो सर्वाधिक गहरी नींद में है ।
वो चाहता है कि - लोग उसके झूठ, फरेब और धोखाधड़ी को भूल जायें और केवल उसका नाम याद रखें । इसके लिये वो फिरसे झूठ, फरेब और धोखाधड़ी का इस्तेमाल करता है और लोगों को अपना नाम याद करवाने का अभ्यास करवाता है ।
लेकिन फिर अचानक नींद पूर्ण हो गई, स्वप्न टूट गया । वो जर्जर हो चूका है, बूढ़े लोगों में उसकी गिनती होती है । सूक्ष्म-जगत उसके सामने उदय होने लगा है । जहाँ उसे ये शरीर छोड़कर आत्म-स्वरुप प्रवेश करना है ।
अर्थात मृत्यु आन पहुची ।
तब उसकी समझ में आता है कि - एक स्वप्न के लिये उसका अनमोल जीवन ही गुजर गया ।
उसने ज्ञान-अर्जन तो किया ही नहीं । आगे अनंत यात्रा में वो क्या करेगा ? हालांकि अपनों के सच्चे प्रेम ने उसे बार-बार स्वप्न से जगाने का प्रयास किया था । इससे वो स्वप्न में चौंका जरूर था, लेकिन जागा नहीं ।
और फिर शरीर छूट गया । अब वो गहन अंधकार में है । बुद्धि भी उसके साथ नहीं है । उसकी आत्मा है और उसका मन है । बस और कुछ नहीं । अगर ज्ञान होता तो वो संस्कार बनकर उसके साथ होता और उस अन्धकार में उसकी रौशनी से वो अपना मार्ग तलाश कर लेता लेकिन अब भटकते रहने के अलावा कुछ नहीं था ।

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