Thursday, January 29, 2015

वस्तु के घूमने से आकर्षणशक्ति उत्पन्न होती है|

हर गोल घूमने वाली वस्तु के घूमने से आकर्षणशक्ति उत्पन्न होती है| इस ब्रह्मांड में सभी ग्रह सूर्य की प्रदक्षिणा कर रहे है जिससे उनमे आकर्षणशक्ति उत्पन्न होती है | पृथ्वी और सभी ग्रह अपने इर्द गिर्द ही प्रदक्षिणा कर रही है|
(परिभ्रमण + घूर्णन) – अपने हाथ में बाल्टी में पानी रखकर जोर से गोल घूमे तो पानी नहीं गिरेगा उसी तरह जब पृथ्वी घूम रही है तो उस पर के सभी जड़ पदार्थ उसी पर रहते है |
(अभिकेंद्र बल~ अपकेंद्र बल) – हर अणु में इलक्ट्रोन भी प्रदक्षिणा कर रहे है |
(electro genetic rounding) – तक्र से माखन बिलोते समय भी उसे गोल-गोल घुमाने से उसमे ब्रह्मांड में मौजूद शक्ति आकर्षित होती है |
(अभिकेन्द्र~अप केन्द्र) इस शक्ति को अनुभव करना हो तो अपने हाथों को इस तरह रखे जैसे उसमे गेंद पकडे़ हो, अब हाथों को कंधे तक उठाकर उन्हें ऐसे घुमाए जैसे डमरू बजा रहे हो ! थोड़ी ही देर में उँगलियों में भारीपन महसूस होगा | यही ब्रह्मांड से आकर्षित शक्ति का अनुभव है | अब हल्की सी ताली बजाते हुए इसे अपने अन्दर समाहित कर ले, इसी प्रकार जब हम ईश्वर के आसपास परिक्रमा करते है तो हमारी तरफ ईश्वर(प्रत्यक्षतः प्राकृतीय) की सकारात्मक शक्ति आकृष्ट होती है और जीवन की नकारात्मकता घटती है | कई बार हम स्वयं के इर्द गिर्द ही प्रदक्षिणा कर लेते है इससे भी ईश्वरीय(प्राकृतीय) शक्ति आकृष्ट होती है |नकारात्मकता से ही पाप उत्पन्न होते है तभी तो ये मन्त्र प्रदक्षिणा करते समय बोला जाता है – ''यानी कानी च पापानि , जन्मान्तर कृतानि च| तानी तानी विनश्यन्ति , प्रदक्षिण पदेपदे ||'' – प्राण प्रतिष्ठित ईश्वरीय प्रतिमा की पवित्र वृक्ष की , यज्ञ या हवन कुंड की परिक्रमा की जाती है जिससे उसकी सकारात्मक शक्ति हमारी तरफ आकृष्ट हो | सूर्य को देखकर या मूर्ति के सामने हम अपने इर्द गिर्द ही घूम लेते है|
यदि बड़ के वृक्ष में कोई ब्रह्मज्ञानी महापुरुष द्वारा शक्तिपात किया हुअा हो तो कहना ही क्या !
मनुष्य अगर श्रध्दा और भक्ति भाव से उसकी प्रदक्षिणा करता है तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती ही है और उसके सब पाप नष्ट होने लगते हैं |

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