Saturday, July 30, 2016

Private Company Registration

A private limited company is a voluntary association of not less than two and not more than two hundred members, whose liability is limited i.e. the transfer of whose shares is limited to its members and who is not allowed to invite the general public to subscribe to its shares or debentures. The Indian Companies Act, 2013 contains the provisions regarding the legal formalities for setting up of a private limited company.
Advantages Of Private Limited Company
·         Risk in the business minimizes due to limited liabilityIf the company experience financial distress because of normal business activity, the personal assets of shareholders will not be at risk of being seized by creditors.
·         Tax burden reducesThere are many allowances and tax- deductible costs that can be offset against the profits of a company and the tax would be paid after deducting many costs incurred by you.
·         Continuity of existencePeople may join or leave the company, but the company is permanent. Whether or not you are there, your dream enterprise exists eternally, unless it is dissolved.
·         Scope of expansion is higherScope for expanding the business becomes high, as the authorized capital can be increased over Rs. 1,00,000/-.
·         Transfer of company is easyYou can transfer the entire share holding to the intended people as an ongoing concern. These changes of ownership, saves the time and money and also stamp duty.
Pre – Requisites For Registration Of Private Limited Company
·         Min. two directors (Indian/ NRI/ Foreigner).
·         Min. two share holders/ promoters (individual/ body corporate).
·         Min. authorized capital should be Rs. 1,00,000/-
·         DIN (director identification number) for all directors.
·         DSC (digital signature certificate) for any one director.
·         Registered address (owned/ rented).
NOTE: The directors can also be the share holders.
Documents Required For Registration Of Private Limited Company
·         PAN Card & address proof of proposed directors.
·         Passport size photograph of proposed directors.
·         Signed affidavit from the directors for DIN.
·         Signed affidavit for non acceptance of finance from public.
·         Proof of registered address of the company.
Information Required For Registration Of Private Limited Company
·         Qualifications of directors.
·         Authorized capital for company.
·         Proposed company names (1+5).
·         Significance of proposed company name.
·         Main objective of company (nature of business).
·         Registered address of the company.
·         Ratio of shares distributed amongst share holders.
Major Steps Involved In Registration Of Private Limited Company
Step I : Getting DIN
DIN can be obtained by making an application online. All the existing and intending Directors have to obtain DIN within the prescribed time-frame as notified in Sections 266A to 266G of Companies (Amendment) Act, 2006.
Step II : Getting DSC
Digital Signature can be obtained from any of the Certifying Authorities in India. It is required as all the filings done by the companies under MCA21 e-Governance programme are need to be filed online with the use of Digital Signatures by the person authorised to sign the documents.
Step III : Name Filing
After finalization of name, an application of name availability has to be filed in form 1. Please note that selection of name is subject to Guidelines issued by MCA.
Step IV : Drafting Of MOA & AOA
MOA is a document that sets out the constitution of the company. It contains the main objectives, incidental/ ancillary objectives for the attainment of the main objectives, other objectives and the scope of activity of the company and also describes the relationship of the company with the outside world.
AOA contains the rules and regulations of the company for the management of its internal affairs. It states the authorized share capital of the proposed company and the names of its first/ permanent directors.
NOTE : While the Memorandum specifies the objectives and purposes for which the Company has been formed, the Articles lay down the rules and regulations for achieving those objectives and purposes.
Step V : Filing Of Form 1, 18 & 32
Form 1 – It is an application or declaration for incorporation of a company along with MOA & AOA.
Form 18 – It is an application to be filed by one of the directors of the company informing the ROC the registered office of the proposed company.
Form 32 – It is an application stating the fact of appointment of the proposed directors on the board of directors from the date of incorporation of the proposed company and is signed by one of the proposed directors.
Getting Certificate Of Incorporation
The ROC will issue Certificate of Incorporation after careful review of documents submitted in the above stated steps. Section 34(1) cast an obligation on the ROC to issue a Certificate of Incorporation, normally within 7 days of the receipt of documents. A Private Limited Company can start its business immediately on receiving the Certificate of Incorporation.
Charges For Registration (Inclusive Of Govt. Fee, Our Professional Fee & Out Of Pocket Expenses)
Within Delhi-NCR : Rs. 13,500/-
Outside Delhi-NCR (excluding Punjab & Kerala) : Rs.14,500/-
In Punjab & KeralaIn Punjab & Kerala : Rs. 23,175/-


Friday, July 29, 2016

दलित बच्चों की इस फोटो का सच

आपके होश उड़ा देगा दलित बच्चों की इस फोटो का सच


Written by : तरुण कुमार 
Date : 2016-07-23
नई दिल्ली। "जो धर्म के ठेकेदार इंसानियत पर घब्बा हैं उन पर मै धिक्कार देती हूँ..., अब इस कमेंट को पढ़िए... "जुल्म की पराकाष्ठा है, पाखंडी लोग समाज को और असभ्यता की ओर धकेल रहे हैं, यही अच्छे दिन हैं। आततायियों का मनोबल बढ़ गया है, बर्बरता करने पर उतर आया है। यह कमेंट Geeta Gairola और Ram Babu के द्वारा लिखे गए हैं। इनके साथ साथ ऐसे ही न जाने कितने लोग अपनी प्रतिक्रिया इस फोटो पर व्यक्त कर रहे हैं।
मामला है हरियाणा का बताया जा रहा है, जहां इन दोनों दलित बच्चों के साथ केवल इसलिए बर्बरता की गई क्योंकि ये दोनों बच्चे प्रसाद खाने के लिए मंदिर में प्रवेश कर रहे थे। लेकिन जैसे ही यह बात मंदिर के पुजारी और ठाकुरों को पता चली तो उन्होंने अपनी क्रूरता का परिचय देते हुए पहले तो बच्चों को गंजा किया फिर पेड़ से बांधकर जमकर पिटा। लेकिन जब इससे भी उनका मन नहीं भरा तो उन्होंने इन दोनों मासूम दलित बच्चों को मूत्र भी पिलाया। 
इन दोनों बच्चों की फोटो फेसबुक पर बहुत तेजी से वायरल हो रही है। लोगों में इस बात का गुस्सा सोशल साइट पर साफ देखा जा सकता है। लोग जमकर अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं और अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करा रहे हैं। कुछ लोगों ने इसे निंदनीय बताया है तो काफी लोगों ने इस छी और शर्मनाक शब्द से इस घटना की निंदा की है। ऐसे ही कुछ और प्रतिक्रिया हम आपको बताने जा रहे हैं। 
Surender Dharnia ने लिखा है कि...
ब्राह्मणवाद एक लंगड़ा राजा है...जिसका अस्तित्व दो बैसाखी पर टिका हुआ है...दंगा और अंधविश्वास। दंगा से इन्हें सत्ता मिलती है...तथा अंधविश्वास से दौलत। जिस दिन इनसे ये दोनो बैसाखी छीन ली जाये...उसी दिन से भारत विकास के पथ पर दौड़ पड़ेगा।
Bhagwati Prasad Mishra ने कमेंट बोक्स में लिखा कि...धर्मान्धता निन्दनीय है ,पाखण्ड वर्जनीय है।
Shri Krishna ने कहा कि  Immediate arrest honi chahie aise logon ko, Strict action is desired and a must
Priyanka Bishnoi ने अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराते हुए लिखा कि Shram aani chahiya pujari ko usa jail main dal dena chahiya...
ऐसे ही कितने लोगों ने अपनी बात इस फोटों के लिए कही है जबकि एक दो लोगों ने कमेंट बोक्स में लिखा है की यह फोटो एक झूठ है। बता दें कि इन दोनों बच्चों को लड़कियां बताया जा रहा है हालांकि इस बात की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है। बता दें कि फेसबुक पर वायरल हो रही इस फोटो में दिखाई दे रहे बच्चों को दलित बताया जा रहा है। 
नई दिल्ली। भूख लगने की इतनी बड़ी सजा... इनका कसूर ये है कि इन्हें भूख लग गई.... कुछ इस तरह के कमेंट के साथ यह फोटो सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल हो रही है। हालांकि अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि यह दोनों बच्चे कौन है और यह मामला कहां का है। लेकिन इस तरह की फोटो अमानवीय है, हो सकता है आप इस फोटो को देख कर विचलित भी हो जाए।
फोटो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे दो बच्चों के सिर के बाल काट कर उन्हें रस्सी से बांध कर खड़ा किया हुआ है। उनके चारो ओर भीड़ भी जमा है। इनमें से एक बच्चे को अर्धनग्न भी किया हुआ है। इस तरह की हरकत देश के मासूमों के साथ बेहद ही शर्मनाक है। बच्चों पर इस तरह का अत्याचार और फिर उनकी इतनी बुरी दुर्दशा करना कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। 
फोटो में साफ देखा जा सकता है कि इन दोनों मासूमों के बाल भी पूरी तरह से नहीं काटे गए बल्कि दोनों के सिर के बाल जगह-जगह से काटे गए हैं। आपको बता दें यह फोटो अभी तक 1028 लोगों ने शेयर किया है जबकि 250 से ज्यादा लोगों ने इस फोटो पर अपने कमेंट पोस्ट किए हैं।  
 
कोई इसे शर्मनाक बता रहा है तो कोई इसे बर्बरता की हद बता रहा है। बहुत से लोगों ने लिखा की इस फोटो को देख कर उनके आंसू तक आ गए। एक कमेंट तो यह तक कहा गया कि जिन्होंने भी इन मासूम बच्चों के साथ ऐसा किया है उनको उल्टा लटका कर चमड़ी उधेड़ लेनी चाहिए। ऐसे ही ना जाने कितने लोगों ने इस फोटो पर अपनी अलग-अलग प्रतिक्रिया दर्ज कराई है।   

शूद्र महर्षि शम्बूक की ह्त्या किसने की थी? एकलव्य का अंगूठा किसने काटा?

जानिये कैसे ब्राह्मणवादीओ ने निमंत्रण दे कर बुलाया विदेशी हमलावरों को : लायंस हन्नान अंसारी
28 Jul 2016
शूद्र महर्षि शम्बूक की ह्त्या किसने की थी? एकलव्य का अंगूठा किसने काटा? विधटनकारीचार वर्ण किसने बनाये? मगध राज्य पर हमला के लिए सिकन्दर को किसने बुलाया था? भारतिय इतिहास का स्वर्णिम प्रुष्ठ लिखने वाले ब्रहद्रथ मौर्य की हत्या, बौध्धो का नरसंहार व विश्वविध्यालयो पुस्तकालयो को किसने ध्वस्त किया? हिटलर को भी बौना व फ़ीका बनाने वाली काले कानूनो की किताब मनुस्मुति का लेखक कौन था?

ब्रह्मा सत्या जगत मिथ्या के मिथ्यावाद की आड में गुप्तकाल के स्वर्ण युग की विनाश लीला किसने की? प्रुथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रिय विहीन किसने किया? सोमनाथ के मंदिर का झण्डा झुकाकर मोहम्मद बिन कासिम की विजय किसने सुनिश्चित की? सोमनाथ के मंदिर का जो फ़ाटक हाथियो से भी नहीटूट्ता उसे मोहम्मद गजनी के लिए किस गद्दारव लालची ने खोला? मोहम्मद गोरी को जयचन्द की चिठ्ठी ले जाने वाला कौन था? बंगाल का वह गद्दार राजा कौन था जो मोहम्मदबख्तियार के डर से महल के पीछे के दरवाजे भाग गया था? अकबर की भंडैती किसने की, तथा भारतिय बहू बेटियो के मीना बाजार किसने लगवाया?

जहर किसने दिया? सतगुरु रैदास की वाणी को किसने जलाया तथा उनकी हत्या किसने की? शिवाजी का राज्याभिषेक बगैर नहाये बाये पैर के अंगूठे से किसने किया? तथा उनकी व उनके पुत्र की हत्या किसने की? पेशवा बाजीराव कौन था,जिसके डर से सुन्दर महिलाये जहर खाकर आत्म हत्या कर लेती थी? स्वामी विवेकानंद को शूद्र कहकर विश्व्धर्म परिषद मे जाने का विरोध किसने किया था? महात्मा ज्योतराव फ़ूले की हत्या के लिए हत्यारे किसने भेजे थे? भारत का बटवारा किसने और क्यो करवाये थे? गांधी की हत्या किसने की? बाबा साहेब अम्बेडकर को किसकी साजिश से जहर दिया गया? इन्दिरा गांधी को अकाल तख्त उडाने व हजारो सिक्खो की हत्या करने के लिए किसने उकसाया था? इन्दिरा गांधी को किस पन्डे ने मन्दिर परिसर मे नही घुसने नही दिया था? वो जनरल कौन थे जो दवा कराने के बहाने भारत चीन युध्ध का मैदान छोडकर दिल्ली भाग आया था? बीस साल तक विभिन्न मन्त्रालयो के अति गोपनिय दस्तावेजो की मोटी रकम लेकर विदेशो को बेचने वाला कुमार नरायन अययर कौन था? राजीव गांधी की हत्या किसने कराई?

ये सभी लोग मुस्लिम नही बल्कि हिन्दू (ब्राहमण) थे विदेशी आर्य-ब्रह्मणवादियोने न सिर्फ भारत के आक्रमणकारी रहे है बल्कि उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए हर किसी को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया है.
■ब्रह्मणवादियोने अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए हुन, ग्रीक, पोर्तुगीज, मुस्लिम, अंग्रेज, और फ्रेंच इ. को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया है. (pg.14, Who is Ruling India, 1982).

■ ब्राह्मणवादी राजा हेमू ने और राणासांगा क्षत्रिय ने अपनी मंत्री लालचंद ब्रह्मण के कहने पर बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण दिया. सम्राट बाबर का सलाहगार भी हिमुशी नामक हिन्दू था.

■मुहम्मद गौरी को भारत पर हमला करने के लिए जयचंद ने बुलाया था.

■नन्दवंश के सम्राट महा परमनन्द का सर्वनाश करने के लिए चाणक्य ब्राह्मन ने सिकन्दर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था.

■वल्लभी नामक गुजरात के एक धनपति सेठ ने मोहम्मद बिन कासिम के संपर्क करके उसे गुजरात के शहरों पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया था.

■जमोरिन ब्रह्मण ने पुर्तगालियों को, अभिचंद वैश्य ने अंग्रेजों को, राजा दहीर (ब्रह्मण) ने मुहम्मद बिन कासिम को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किये था.

■ब्रह्मणवादियोने हिटलर को अवतार तक कहा और उसे भारत पर हमला करने की दावत दी. [PG.18,80 Dialogue Of The Bhoodevtas]
इसलिए इनसे कोई उम्मीद रखना यानि खुद को धोखा देना है.

Source : khbarkikhbar 
http://www.januday.com/NewsDetail.aspx?Article=9062

Wednesday, July 27, 2016

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

मैं साहित्य के साथ-साथ पत्रकारिता तथा उच्च शिक्षा के क्षेत्रों में भी सक्रिय रहा हूँ। तीनों क्षेत्रों में मैंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रश्न का सामना किया है। आम तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ‘‘बोलने की आजादी’’ के रूप में समझा जाता है, लेकिन वह सिर्फ बोलने की आजादी नहीं, उसमें और भी कई चीजें आती हैं। भाषण या वक्तव्य देने से लेकर लिखने और पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित करने, चित्र और व्यंग्य चित्र बनाकर उन्हें प्रदर्शित और प्रकाशित करने, नाटक और नुक्कड़ नाटक लिखने-करने, डॉक्यूमेंटरी और फीचर फिल्में बनाने-दिखाने, रेडियो और टेलीविजन के कार्यक्रम प्रस्तुत करने, सार्वजनिक मंच या सोशल मीडिया पर दूसरों से सहमत-असहमत होते या मतभेद और विरोध प्रकट करते हुए अपने विचार व्यक्त करने, सड़कों पर जुलूस निकालने और नारे लगाने, धरना-प्रदर्शन और घेराव-हड़ताल करने, साहित्यिक-सांस्कृतिक आंदोलन चलाकर और सामाजिक-राजनीतिक संगठन बनाकर मनुष्य को बेहतर मनुष्य तथा दुनिया को बेहतर दुनिया बनाने तक के विभिन्न काम करने की स्वतंत्रता। 


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को इस व्यापक अर्थ में समझने पर ही उसके दमन या हनन और उसे प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले संघर्ष का अर्थ समझ में आता है। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजंेसी और सेंसरशिप लगाकर केवल प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध नहीं लगाया था। उन्होंने उसके जरिये नागरिक स्वतंत्रताओं और जनता के जनवादी अधिकारों का हनन भी किया था। वह इमरजेंसी तो 1977 में हट गयी, लेकिन एक अघोषित इमरजेंसी और सेंसरशिप अब भी लगी हुई है, जो उत्तरोत्तर सघन होती जा रही है। उसके अंतर्गत कभी कानून बनाकर और अक्सर गैर-कानूनी तरीकों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन और हनन किया जाता है।

कानून बनाकर ऐसा करने का उदाहरण है 2008 में भारत सरकार द्वारा सन् 2000 के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में धारा 66-ए को जोड़ा जाना (जिसे अभी मार्च, 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाया गया अनुचित अंकुश मानकर निरस्त किया है)। इस धारा के अनुसार पुलिस को यह अधिकार था कि वह चाहे जिस अभिव्यक्ति को अपराध मानकर दमनात्मक कार्रवाई कर सके। उदाहरण के लिए, फेसबुक पर एक टिप्पणी लिखने वाली लड़की को ही नहीं, उस टिप्पणी को ‘लाइक’ करने वाली एक दूसरी लड़की को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा को निरस्त कर दिया, बहुत अच्छा किया।

लेकिन गैर-कानूनी तरीकों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो दमन और हनन किया जाता है, उसका क्या? पिछले काफी समय से धार्मिक या सांप्रदायिक आधारों पर बने विभिन्न प्रकार के लोगों के समूह और संगठन लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं, अखबारों और टी.वी. चैनलों के दफ्तरों आदि पर लगातार और उत्तरोत्तर बड़ी संख्या में हमले कर रहे हैं। यह एक प्रकार की अघोषित इमरजेंसी और नितांत गैर-कानूनी, बल्कि आपराधिक किस्म की सेंसरशिप है, जिससे किसी लेखक-पत्रकार को खामोश कर दिया जाता है, किसी अखबार या टी.वी. चैनल का स्वर बदल दिया जाता है, किसी कलाकार को देश छोड़कर दूसरे देश में जा बसने को मजबूर कर दिया जाता है, किसी सामाजिक या राजनीतिक कार्यकर्ता को जान से मार दिया जाता है, तो किसी साहित्यकार को जीते-जी अपनी साहित्यिक मृत्यु की घोषणा करने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। इस इमरजेंसी और इस सेंसरशिप के रहते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ रह जाता है?

इंदिरा गांधी द्वारा थोपी गयी इमरजेंसी का विरोध करने वाले लोगों के बीच हिंदी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता ‘अँधेरे में’ की ये पंक्तियाँ बहुत लोकप्रिय हुई थीं :

अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे
उठाने ही होंगे।
तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।

अब फिर से ये पंक्तियाँ दोहरायी जाने लगी हैं, तो एक प्रकार से यह अच्छी ही बात है। लेकिन मुझे लगता है कि इन पंक्तियों का वास्तविक अर्थ न तब समझा गया था, न अब समझा जा रहा है। मुझे याद है कि इमरजेंसी के दौरान इन पंक्तियों को अक्सर दोहराने वाले एक पत्रकार मित्र से मैंने पूछा था कि ‘‘अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने’’ और ‘‘मठ और गढ़ सब तोड़ने’’ का क्या अर्थ है। उनका उत्तर था, ‘‘प्रेस की आजादी के लिए हम सारे खतरे उठाकर भी लड़ेंगे’’ और ‘‘जिस सरकार ने यह इमरजेंसी लगायी है, उसे बदलकर रख देंगे’’। सीमित अर्थों में उनका उत्तर सही था, लेकिन मैं उससे संतुष्ट नहीं था। एक दिन मैंने उन्हें मुक्तिबोध की पूरी कविता सुनाकर पूछा कि इसमें जो ‘‘रक्तालोक स्नात-पुरुष’’ है, जिसे मुक्तिबोध ने ‘‘रहस्यमय व्यक्ति’’ कहा है, उसे ध्यान में रखते हुए बताइए कि कविता की इन पंक्तियों का क्या अर्थ है :

वह रहस्यमय व्यक्ति
अब तक न पायी गयी मेरी अभिव्यक्ति है,
पूर्ण अवस्था वह
निज-संभावनाओं, निहित प्रभाओं, प्रतिभाओं की
मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव,
हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह,
आत्मा की प्रतिमा।

पत्रकार मित्र बेचारे क्या बताते! मैं तीन दशकों तक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी का प्राध्यापक रहा हूँ और मैंने हिंदी के कई प्रख्यात प्रोफेसरों तथा अग्रणी आलोचकों को इस कविता का अनर्थ करते देखा है। यहाँ कविता की व्याख्या करने का अवकाश नहीं है, इसलिए मैं संक्षेप में और संकेत में कहना चाहता हूँ कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ केवल ‘‘बोलने की आजादी’’ या ‘‘प्रेस की आजादी’’ नहीं, कुछ और है। उसका वास्तविक अर्थ मनुष्य को अभी तक प्राप्त अभिव्यक्ति की क्षमता के आधार पर नहीं, बल्कि ‘‘अब तक न पायी गयी’’ अभिव्यक्ति की क्षमता के आधार पर ही समझा जा सकता है।

मेरे विचार से मुक्तिबोध यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य अब तक अपनी संपूर्ण प्रगति और उन्नति के बावजूद पूर्ण मनुष्य नहीं बन पाया है, जबकि उसके जीवन का उद्देश्य पूर्ण मनुष्य बनना ही है। मनुष्यता की पूर्ण अवस्था वह है, जिसमें मनुष्य की अपनी संभावनाओं का, उसमें ‘‘निहित प्रभाओं, प्रतिभाओं’’ का ‘‘परिपूर्ण आविर्भाव’’ हो। जब तक ऐसा नहीं है, तब तक मनुष्य अपूर्ण है, आधा-अधूरा है, उसकी अभिव्यक्ति भी आधी-अधूरी है; क्योंकि वह अपूर्ण मनुष्य होने के कारण अपनी मनुष्यता की पूर्ण अभिव्यक्ति में सक्षम नहीं है। वर्तमान समाज और राज्य की व्यवस्था में मनुष्य को अभिव्यक्ति की जो क्षमता प्राप्त है, वह अपूर्ण है, अविकसित है। वह भविष्य की किसी बेहतर व्यवस्था में ही पूर्ण रूप से विकसित होगी। मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति में तभी स्वतंत्र होगा, जब वह पूर्ण मनुष्य बनकर अपनी ‘‘अब तक न पायी गयी अभिव्यक्ति’’ को प्राप्त कर लेगा।

इस प्रकार देखें, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है मनुष्य का मनुष्य होना और अपनी मनुष्यता को व्यक्त करने में सक्षम होना। लेकिन जो भूखा है, बीमार है, अशिक्षित है, बेरोजगार है, हर तरह से लाचार है और पशुओं का-सा जीवन जीता है, उसे आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दे भी दें, तो वह उसका क्या करेगा? वह स्वयं को व्यक्त करना चाहे और कर भी सके, तो क्या व्यक्त करेगा? कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसे आदमी को देखते हैं, जो बेघर और बेरोजगार है, जो माँगकर या चुराकर या छीनकर या कूड़े-कचरे में से कुछ बीनकर खाता है। आप उसके पास जाते हैं और कहते हैं कि ‘‘तुझे बोलने की आजादी है, बोल, क्या बोलना है तुझे’’, तो वह क्या बोलेगा? बहुत मुमकिन है कि वह आपसे भीख माँगेगा और भीख न मिलने पर गंदी गालियों से आपको नवाजेगा।

दुर्भाग्य से हमारे देश में, और आज की पूरी दुनिया में भी, ऐसे ही अमानुषिक बना दिये गये लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसी अनुपात में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या मनुष्यता की अभिव्यक्ति सबसे कम है। जो मनुष्य पशुवत जीवन जी रहा है, वह अपनी मनुष्यता की अभिव्यक्ति कैसे करेगा? वह तो पशुता को ही व्यक्त करेगा। अतः उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने का अर्थ है पहले उसे पशु से मनुष्य बनाना और फिर उसे अपनी मनुष्यता की अभिव्यक्ति में सक्षम बनाते हुए पूर्ण मनुष्यता की ओर ले जाना। यह काम आज की पूँजीवादी विश्व-व्यवस्था नहीं कर सकती, क्योंकि वही तो मनुष्यों को ऐसा अमानुषिक बनाती है। अतः यह हमारी, हम सबकी, जिम्मेदारी है। भाग्य, भगवान, सरकार या खुद उस अभागे पर यह जिम्मेदारी डालकर हम अपनी अभिव्यक्ति में स्वतंत्र होकर भी वास्तव में क्या व्यक्त करते हैं? कम से कम मनुष्यता तो नहीं ही!

दूसरी तरफ उन लोगों को देखें, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सबकी नहीं, सिर्फ अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में देखते हैं। उन्हें लगता है कि जो हम जैसा नहीं है, वह मनुष्य नहीं है। जो हमारे धर्म का, हमारी जाति का, हमारी पार्टी का या हमारे विचारों का नहीं है, वह कोई मानवेतर प्राणी है, जो हमारा शत्रु है, और हमारा यह अधिकार है कि हम उसे या तो अपने वश में करके अपना गुलाम या पालतू पशु बना लें, या उसे मार डालें। आजकल अपने देश में, और दूसरे तमाम देशों में भी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यही रूप होता जा रहा है और इसकी भयानकता बढ़ती ही जा रही है। इसे हम सरेआम बरती और फैलायी जाने वाली घृणा, असहिष्णुता, हिंसा, बर्बरता, आतंकवाद आदि के विभिन्न रूपों में रोज देखते हैं। ऐसे लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझाना और उन्हें उनकी मनुष्यता की याद दिलाकर अमानुषिक कृत्यों से विरत करना भी हमारी, हम सबकी, जिम्मेदारी है। उन्हें मनुष्य बनाने की जिम्मेदारी हम उन व्यवस्थाओं पर नहीं डाल सकते, जो खुद ही उन्हें अमानुषिक, नृशंस और बर्बर बनाने के लिए जिम्मेदार हैं।

मेरे विचार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है स्वयं अपनी मनुष्यता को बचाते और बढ़ाते हुए दूसरों को मनुष्य बनाना। यह एक आदर्श है, किंतु असंभव आदर्श नहीं। खोजने चलें, तो हमें आज की घोर अमानुषिक परिस्थितियों में भी मनुष्यता के उदाहरण मिल जायेंगे। मसलन, आप उन लोगों को देखें, जो शिक्षित हैं, सुसंस्कृत हैं, सृजनशील हैं, सभ्य और शिष्ट हैं, उदार और सहिष्णु हैं और जो घर-बाहर दोनों जगह आजादी, बराबरी और भाईचारे के जनतांत्रिक मूल्यों के अनुसार आचरण करते हैं। ऐसे लोग दुर्लभ नहीं हैं। खोजने चलेंगे, तो आप पायेंगे कि आपके आसपास ही ऐसे अनेक लोग हैं, जो आपके धर्म, आपकी जाति या आपकी-सी राजनीति वाले न होकर भी आपको मनुष्य मानते हैं। आप पायेंगे कि वे आपसे अपनी भिन्नता के आधार पर आपको अपने वश में करके अपना गुलाम या पालतू पशु बनाना अथवा ऐसा न कर पाने पर आपको मार डालना कत्तई न चाहते होंगे। वे ‘‘सर्वाइवल ऑफ दि फिटेस्ट’’ की जगह सब मनुष्यों को समान मानकर ‘‘जियो और जीने दो’’ वाली बात में, ‘‘मारो-खाओ हाथ न आओ’’ की जगह ‘‘दुनिया को बेहतर बनाओ’’ वाली बात में और ‘‘सबसे बड़ा रुपैया’’ की जगह ‘‘प्रेेम से बढ़कर कुछ नहीं’’ वाली बात में विश्वास करते होंगे। वे दूसरों में दोष और बुराइयाँ ही नहीं, गुण और अच्छाइयाँ भी देखते होंगे। हर बुराई या खराबी के लिए समाज या सरकार को जिम्मेदार ठहराने की जगह कुछ बुराइयों और खराबियों के लिए खुद को भी जिम्मेदार मानते होंगे। वे समाज या राज्य की व्यवस्था को डंडे के जोर पर ठीक कर सकने वाले किसी तानाशाह को देश का शासक बनाने वाली बात की जगह जनतंत्र को सच्चा जनतंत्र बनाने तथा उसे बचाने-बढ़ाने वाली बात में विश्वास करते होंगे।

आप पायेंगे कि आपके आसपास ऐसे लोग हैं और वे कम नहीं हैं। विश्वास न हो, तो उन लोगों को देखें, जिन्हें अपने परिजनों से स्नेह और गुरुजनों से प्रोत्साहन मिला है। जिन्हें अच्छे मित्रों का साथ और सहयोग प्राप्त है। जिन्होंने प्रेम किया है और प्रेम पाया है। जो ज्ञान-विज्ञान में निपुण और साहित्य-संगीत आदि के प्रेमी हैं। जिनके विचार ऊँचे और सामाजिक सरोकार बड़े हैं। जो स्वहित के साथ सर्वहित के लिए भी सक्रिय रहते हैं। जो अपने भविष्य के साथ-साथ अपने पड़ोसियों और देशवासियों के भविष्य के बारे में भी सोचते हैं। जो स्वयं को पूर्ण मनुष्य बनाने के साथ-साथ दुनिया के सभी मनुष्यों को पूर्ण मनुष्य बनाने का स्वप्न देखते हैं और उस स्वप्न को साकार करने के लिए अभिव्यक्ति की जो भी और जैसी भी स्वतंत्रता उन्हें प्राप्त है, उसका सदुपयोग करते हैं।

ऐसे लोग बोलेंगे, तो क्या बोलेंगे? वे एक तरफ मनुष्यों को अमानुषिक बनाने वाली व्यवस्था की आलोचना करेंगे, तो दूसरी तरफ अमानुषिक बना दिये गये लोगों को याद दिलायेंगे कि तुम्हें तुम्हारी मनुष्यता से वंचित कर दिया गया है, या पूर्ण मनुष्य बनने से रोक दिया गया है, इसलिए इस व्यवस्था को बनाये रखने के बजाय इसे बदलो। इस दुनिया को एक बेहतर दुनिया बनाओ।

लेकिन स्थापित व्यवस्थाएँ, चाहे वे किसी भी देश की हों, ऐसी स्वतंत्र अभिव्यक्ति को अपने लिए खतरनाक मानती हैं और उसका दमन करती हैं। ऐसी स्वतंत्र अभिव्यक्ति से उनके वे सब मठ और गढ़ असुरक्षित हो जाते हैं, जिनमें बैठकर वे मनुष्यों को अमानुषिक, गुलाम या पालतू पशु बनाती हैं। वे उनकी रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन और हनन और तेजी से करती हैं। इससे अभिव्यक्ति के लिए जो खतरे पैदा होते हैं, एक नहीं अनेक होते हैं। इसीलिए मुक्तिबोध ‘‘सारे खतरे’’ उठाने की बात करते हैं। स्थापित व्यवस्था के मठ और गढ़ भी अनेक और कई प्रकार के होते हैं। इसीलिए मुक्तिबोध उन ‘‘सब’’ को तोड़ने की बात करते हैं।
इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है ऐसी बात बोलना, जिससे बोलने वाले की मनुष्यता व्यक्त होती हो और उसके साथ-साथ दुनिया के सभी मनुष्यों के लिए ‘‘अब तक न पायी गयी अभिव्यक्ति’’ को पाने की संभावना पैदा होती हो। 

अखिल भारतीय रैगर महासभा के द्वारा जारी अपील के सन्दर्भ में पत्र

सेवा में,
आदरणीय श्री बी. एल. खटनावलिया/श्री रामसहाय जी बड़ोलिया/वर्मा,
अध्यक्ष/महासचिव,
अखिल भारतीय रैगर महासभा (पंजी०).

सादर नमस्कार,
आप समाज के अग्रणी, प्रबुद्ध, कर्मठ और कुशल प्रतिनिधित्व प्रदान करने वाले व्यक्ति है l आपके द्वारा सोशल मिडिया पर जारी अपील देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये अपील कम और समाज के नाम एक आदेश है l लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी बहुत ज़रूरी है और उसे आज़ादी की पहली शर्त माना जाता है, बोलने की स्वतंत्रता सभी अधिकारों की जननी है l सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक मुद्दों पर लोगों की राय बनाने के लिए बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी महत्वपूर्ण है l
अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध से अभिव्यक्ति और तीव्र हो जाती है । जब-जब अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध लगा है, विचारों की तीक्ष्णता से आन्दोलन का प्रादुर्भाव हुआ है । अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर लगने वाले पहरे के आलोक में नयी विचारधाराओँ का जन्म हुआ है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है मनुष्य का मनुष्य होना । अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध का अर्थ है मानव को दासता की बेड़ियों में जकड़ कर उसे जानवरों सरीखा जीवन जीने के लिए विवश करना । इसलिए इस पर सवाल उठना स्वाभाविक है l आपकी अपील अनुसार मेरे कुछ सवाल सीधे तौर पर आपसे है, मुझे आशा है कि आप मेरे सवालों का जवाब देकर अपील में कही बात को कार्यान्वित करेंगे l मेरे सवाल निम्नलिखित है :-
1. क्या यह अपील/आदेश अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्यक्ष, मंत्रिमंडल व कार्यकारिणी की सहमति से जारी की गई है ? यदि हाँ तो किस दिन इसकी स्वीकृति ली गई थी कृपया इस बारे में अवगत कराये l
2. क्या सभी ज्ञानी/समझदार लोग केवल अखिल भारतीय रैगर महासभा में ही है? इसके अलावा रैगर समाज में ज्ञानी/समझदार लोगो का पूर्णतया अभाव है क्या ? स्थिति स्पष्ट करें l
3. आपके द्वारा जारी अपील/आदेश में समाज के लोगो को सोशल मीडिया पर विचार व्यक्त करने व चर्चा करने से रोकने से सम्बंधित है, लोकतंत्रीय भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत भी सभी नागरिको/लोगो को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है। अभिव्यक्ति की स्‍वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्‍यक्‍त करने का एक संवैधानिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या अखिल भारतीय रैगर महासभा का संविधान हमें रैगर समाज के बारे में चर्चा करने या बोलने की आजादी नहीं देता है? विचारणीय है कि क्या आलोचना के नाम पर किसी के विचारों का गला घोंटा जा सकता है? क्या समाज इतना असहिष्णु हो गया है, जो ज़रा-ज़रा सी बात पर या आलोचना से उसे तक़लीफ़ हो जाती है? इस बारे में अखिल भारतीय रैगर महासभा और आप अपना दृष्टिकोण समाज को स्पष्ट करें l
4. यदि आप रैगर समाज के लोगो को सोशल मीडिया पर विचार व्यक्त करने व चर्चा करने से रोक रहे है तो आप अमानवीय और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) के विरुद्ध है । जो कि एक दंडनीय अपराध है l यदि किसी भी सभ्य समाज में मनुष्य को स्वतन्त्र विचार रखने व व्यक्त करने की स्वतन्त्रता की व्यवस्था न हो तो समाज की उन्नति नहीं हो सकती और न ही मनुष्य का समुचित विकास हो सकता है। इसलिए प्रत्येक सभ्य समाज में मनुष्य को स्वतन्त्र विचार रखने व व्यक्त करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए । इस बारे में अखिल भारतीय रैगर महासभा और आप अपना दृष्टिकोण समाज को स्पष्ट करें l
5. आपके द्वारा जारी अपील/आदेश में सामाजिक पत्र-पत्रिकाओ और अखबारों के बारे में भी कहा गया है इससे ऐसा प्रतीत होता है कि अखिल भारतीय रैगर महासभा की टीम भारतीय लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ यानि मिडिया के अधिकारों से अनभिज्ञ है l जो मिडिया सामाजिक संगठनो के द्वारा जब कोई अच्छा काम किया जाता हैं तो उसकी सराहना भी करता है और जब सामाजिक संगठनो के द्वारा कोई गलत कार्य होता हैं तो मीडिया उसकी आलोचना कर समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को जिम्मेदारी निभाने के लिए सजग रहता है। क्या अखिल भारतीय रैगर महासभा सामाजिक मिडिया और उससे जुड़े पत्रकारों को ऐसा करने से रोकना चाहती है? इस बारे में अखिल भारतीय रैगर महासभा और आप अपना दृष्टिकोण समाज और मिडिया को स्पष्ट करें l
मुझे पूर्ण विश्वास है कि अखिल भारतीय रैगर महासभा (पंजी०) के पदाधिकारिगण संगठन में कार्यकुशलता और पारदर्शिता का ध्यान रखते हुए पत्र में पूछे गए उपरोक्त सवालो का जवाब शीघ्र अति शीघ्र देकर लोकतंत्रीय प्रणाली का पालन करेगे l इसी आशा के साथ सधन्यवाद l
भवदीय,

(रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया)
सदस्य: जर्नलिस्ट एसोसिएशन (इण्डिया)
संवाददाता: रैगर दर्पण पत्रिका
संरक्षक: रैगर लक्ष्य पंचायत दिल्ली (पंजी०)
प्रशिक्षित आर टी आई एक्टिविस्ट


नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रावधान किया गया है

नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रावधान किया गया है. बोलने की स्वतंत्रता लोकतंात्रिक सरकार के लिए कवच है. लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सही तरीक़े से लागू करने
के लिए इस तरह की स्वतंत्रता बेहद ज़रूरी है. यह स़िर्फ नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को ही नहीं, बल्कि देश की एकता और एकरूपता को भी बढ़ावा देता है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 19(1) में जो स्वतंत्रता दी गई है, वह पूर्ण या काफी नहीं है. ये सभी अधिकार संसद या राज्यविधानसभा के बनाए क़ानूनों के तहत नियंत्रित, नियमित या कम करने के लिए जवाबदेह हैं. अनुच्छेद 19 के नियम (2) से (6) में उन आधारों और लक्ष्यों की व्याख्या है जिसके आधार पर इन अधिकारों को नियंत्रित किया जा सकता है.
लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी बहुत ज़रूरी है और उसे आज़ादी की पहली शर्त माना जाता है. बोलने की स्वतंत्रता सभी अधिकारों की जननी है. सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक मुद्दों पर लोगों की राय बनाने के लिए बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी महत्वपूर्ण है. मेनका गांधी बनाम भारतीय संघ के मामले में न्यायमूर्ति भगवती ने बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी के महत्व पर ज़ोर देते हुए व्यवस्था दी थी कि-लोकतंत्र मुख्य रूप से स्वतंत्र बातचीत और बहस पर आधारित है. लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में सरकार की कार्रवाई के उपचार के लिए यही एक उचित व्यवस्था है. अगर लोकतंत्र का मतलब लोगों का, लोगों के द्वारा शासन है, तो यह स्पष्ट है कि हर नागरिक को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार होना ज़रूरी है और अपनी इच्छा से चुनने के बौद्धिक अधिकार के लिए सार्वजनिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार, चर्चा और बहस बेहद ज़रूरी है.
अनुच्छेद 19 (1) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी मेंकोई भी नागरिक किसी भी माध्यम के द्वारा, किसी भी मुद्दे पर अपनी राय और विचार दे सकता है. इन माध्यमों में व्यक्तिगत, लेखन, छपाई, चित्र, सिनेमा इत्यादि शामिल हैं. जिसमें संचार की आज़ादी और अपनी राय को सार्वजनिक तौर पर रखने और उसे प्रचारित करने का अधिकार भी शामिल है.
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को अनुच्छेद 19 के तहत मिली बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी से ही लिया गया है. प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है. सकाल अखबार बनाम भारतीय संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि प्रेस की स्वतंत्रता की उत्पत्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से ही हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में लोकतांत्रिक समाज में प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने पर ज़ोर दिया है. प्रेस तथ्यों और विचारों को प्रकाशित कर लोगों की रुचि बढ़ाकर एक ऐसी तार्किक विचारधारा उत्पन्न करता है जिसके बिना कोई भी निर्वाचक मंडल सही फैसला नहीं दे सकता.
प्रेस की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत ही ज़रूरी है. भारतीय संविधान में यह स्वतंत्रता मौलिक अधिकार के रूप में दी गई है. प्रेस व्यक्तिगत अधिकारों को सम्मान देने और वैधानिक सिद्धांतों और क़ानूनों के अंतर्गत काम करने के लिए बाध्य है. ये सिद्धांत और क़ानून न्यूनतम मानकों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिक महत्वपूर्ण सिद्धांतों में दखल नहीं देते हैं. मीडिया लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ है. बाक़ी तीनों स्तंभों में, जहां विधायिका समाज के लिए क़ानून बनाती है, वहीं कार्यपालिका उसे लागू करने के लिए क़दम उठाती है, तीसरा महत्वपूर्ण स्तंभ न्यायपालिका है जो यह सुनिश्चित करती है कि सभी कार्रवाइयां और फैसले वैधानिक हों और उनका सही तरीक़े से पालन किया जाए. चौथे स्तंभ-यानी प्रेस को इन क़ानूनों और संवैधानिक प्रावधानों के अंदर रहकर सार्वजनिक और राष्ट्रीय हित में काम करना होता है. इससे यही संकेत मिलता है कि कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है. जब भारत के संविधान में नागरिकों के लिए संविधान में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया गया, तब यह भी सुनिश्चित किया गया कि यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं थी और कोई भी अभिव्यक्ति-चाहे वह शाब्दिक हो या दृश्य माध्यम से-वह विधायिका द्वारा बनाए गए और कार्यपालिका के द्वारा लागू किए गए संवैधानिक नियमों का उल्लंघन न करती हो. अगर प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर आकर काम करता है तो न्यायपालिका के पास उस पर मौलिक अधिकार उल्लंघन के तहत कार्रवाई का हक़ है.
प्रिंट, रेडियो और टीवी एक स्वस्थ लोकतंत्र विकसित करने के लिए लोगों को जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. अनुच्छेद 19(2) के तहत रखे गए प्रावधानों में एक नागरिक को अपने विचार रखने, प्रकाशित करने और प्रचारित करने का अधिकार है, और इस अधिकार पर कोई भी रोक अनुच्छेद 19(1) के तहत ग़लत होगी. सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले में दूरदर्शन को फटकार लगाई, जिसमें दूरदर्शन ने भोपाल कांड पर बने एक वृत्तचित्र (डाक्यूमेंटरी) को दिखाने से इंकार कर दिया था. दूरदर्शन के मुताबिक उस मामले की अब कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई थी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को ख़ारिज़ कर दिया. पर इस मामले में न्यायालय ने कहा कि राज्य के प्रयासों को अयोग्यता और अधिकारियों के रवैए का चित्रण किसी राजनैतिक पार्टी पर हमला नहीं माना जा सकता, जब की गई आलोचना सही और स्वस्थ हो.

Tuesday, July 26, 2016

नियम

वेबसाइट का प्रयोग पारस्परिक क्रिया व आपसी सम्बन्ध स्थापित करने हेतु करेगें।
 Will use smart phone for interaction and connectivity.
 प्रति सप्ताह एक घंटा समाजिक कार्यों हेतु समर्पित करेंगे।
 Will devote at least one hour a week for social work.
 सामाजिक सम्मेलन व उत्सवों में कोई दिखावा नहीं करेंगे, बल्कि उन्हें सादगी से आयोजित करेंगे।
 Will avoid pomp and show in social function.
 अपने समाज/समुदाय के लोगों के साथ गरिमामय व्यवहार करेंगे।
 Will treat kommunity people with dignity.
 अपने समाज/ समुदाय के लोगों की सार्वजानिक आलोचना नहीं करेंगे।
 Will not criticize kommunity people in public places or before other community people.
 अपने कार्यालय/कार्यस्थल पर सरदार वल्लभ भाई पटेल का चित्र/फोटो रखेंगे।
 Will keep portrait of sardar patel in office or work place.
 प्रति माह एक दिवसीय अपना वेतन/आय समाजिक कार्यों हेतु भेंट करेगे।
 Will donate one day earning per month for social work.
 प्रत्येक सदस्य माह में तीन नये सदस्यों को समूह में सम्मिलित करेंगे।
 Every member will add at least three members in the group within a month.
 सदस्यों के परिवार के सामाजिक आयोजनों में सम्मिलित होगें।
 Will attend social occasions in members family.
अपने समाज / समुदाय या js समूह के वार्तालाप एवं पारस्परिक विचारो को समाज के बाहर पूर्णरूप से गोपनीय रखेंगे |
 Will not disclose or share our kommunity or JS group chatting or views to other any cost and maintain the JS confidentiality.
 सदस्यों में परस्पर मतभेद को आपस में सुलझाएंगे.
 Will resolve mutual differences within group and shall appear united outside the groups.
वेबसाइट के फोरम पर किसी अन्य समुदाय या धर्म के प्रति घृणा से सम्बंधित कोई सूचना पोस्ट नहीं करेंगे
 Will not post any material causing hatred to any other community or religion on the website forum .
वेबसाइट के फोरम पर किसी राजनीतिक या दलगत उद्देश्य से सम्बंधित कोई ऐसी सुचना पोस्ट नहीं करेंगे जिससे संस्था के गैर राजनीतिक स्वरुप पर कोई आक्षेप आये
 Will not post any material pertaining to political or party line which may affect the apolitical character of the organization on the website forum.


धार्म‌िक मान्यताएं

विशेष। भारत को यूं ही व‌‌िव‌िधता का देश नहीं कहते हैं। यहां बोली जाने वाली भाषाएं और खान-पान ही नहीं कई धार्म‌िक मान्यताएं भी व‌िव‌िधता ल‌िए हुए है। कहीं पत‌ि की लंबी उम्र के ल‌िए मह‌िलाएं व्रत रखती हैं और छन्नी से पत‌ि का चेहरा देखती है तो कहीं पत‌ि की लंबी उम्र के ल‌िए मह‌िलाएं कुछ समय के ल‌िए व‌िधवा का जीवन जीती हैं। कहीं शादी की कामयाबी के ल‌िए पेड़-पौधों से तो कहीं पशु-पक्ष‌ियों से व‌िवाह कराया जाता है।
आइए देखें कुछ ऐसे ही हैरान करने वाली मान्यताओं और परंपराओं को।गछवाहा समुदाय जो क‌ि पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवर‌िया और ब‌िहार में रहते हैं। इनमें एक प्राचीन मान्यता चली आ रही है। इस समुदाय के लोग तरकुलहा देवी की पूजा करते हैं। इस समुदाय की मह‌िलाएं रामनवमी के द‌िन से लेकर नागपंचमी तक व‌िधवा की तरह रहती हैं। नागपंचमी के द‌िन मह‌िलाएं देवी के मंद‌िर आकर मांग भरती हैं और फ‌िर से सुहाग च‌िन्ह धारण करती हैं। कहते हैं इससे उनके पत‌ि के जीवन पर आने वाला संकट टलता है।
तकदीर बनाने के ल‌िए एक अंगूठी पहनने तो आपने बहुत से लोगों को देखा होगा लेक‌िन महाराष्ट्र के शोलापुर और कर्नाटक के इंदी स्‍थ‌ित श्री संतेश्वर मंद‌िर में तकदीर बनाने के ल‌िए ऐसी मान्यता को लोग आजमाते हैं ज‌िसे देखकर आप दहल जाएंगे। दरअसरल यहां की मान्यता है क‌ि बच्चे को ऊंचाई से फेंका जाए और नीचे लोग उसे चादर में पकड़े। कहते हैं ऐसा करने से बच्‍चा सेहतमंद होता है साथ ही पर‌िवार का भाग्योदय होता है।
बच्चा गोरा हो इसके ल‌िए मां दूध और बादाम से बच्चे की माल‌िश करती है लेक‌िन उत्तरप्रदेश के वाराणसी और मिर्जापुर में कराहा पूजन की अनोखी परंपरा है। इसमें प‌िता खैलते दूध से बच्‍चे को स्नान करवाता है और बाद में खुद भी स्नान करता है। कहते हैं इससे भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
राजस्‍थान के जोधपुर में एक त्योहार मनाया जाता है ज‌िसका नाम है धींगा गवर। इस त्‍योहार में मह‌िलाएं जवान लड़कों को बेंत से मारती है। मजे की बात तो यह है क‌ि लड़के मार खाने के ल‌िए उतवाले भी रहते हैं। इसका कारण एक अजब गजब मान्यता है। कहते हैं क‌ि जो व्यक्त‌ि बेंत की मार खाता है उसकी शादी जल्दी हो जाती है।
इस परंपरा को तो यही कहेंगे क‌ि आ गाय मुझे मार क्योंक‌ि इस परंपरा में लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से गाएं गुजरती है। आपको बता दें क‌ि यह परंपरा उज्जैन ज‌िले के कुछ गांवों में दीपावली के अगले द‌िन उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इसका संबंध उन्नत‌ि और खुशहाली से है।
आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के कुछ ग्राम‌िण क्षेत्रों में एक अजब-गजब परंपरा है। यहां बच्चों को व‌िकलांगता से बचाने के नाम पर गले तक जमीन में गाड़ा जाता है। सूर्य ग्रहण और चन्द्रग्रहण से कुछ समय पहले बच्चों को जमीन के नीचे गले तक म‌िट्टी में दबाने की परंपरा यहां वर्षों से चली आ रही है। कहते हैं इससे बच्चे की मानस‌िक और शारीर‌िक व‌िकलांगता दूर होती है।
दांपत्य जीवन में प्रेम और सुहाग की लंबी उम्र के नाम पर ब‌िहार के म‌िथ‌िलांचल क्षेत्र में एक अजीबो गरीब मन्यता को लोग वर्षों से न‌िभाते चले आ रहे हैं। यहां नवव‌िवाह‌ित कन्या के घुटने को जलते दीप की लौ से दागा जाता हैं। इसके ल‌िए एक खास त्योहार मनाया जाता है ज‌िसे मधुश्रावणी कहा जाता है क्योंक‌ि सावन महीने में यह त्योहार मनाया जाता है।
मध्यप्रदेश के बैतूल ज‌िले में अजीबो गरीब परंपरा है। यहां चेचक से बचने के ल‌िए हनुमान जयंती के मौके पर कुछ लोग शरीर को छ‌ेदवाते हैं। ऐसी धारणा है क‌ि इससे माता का कोप नहीं सहना पड़ेगा यानी चेचक से बच जाएंगे।

Friday, July 22, 2016

Dr. Babasaheb Ambedkar

Reasons why you should consider:
1.    Dr. Babasaheb Ambedkar has been studied in Columbia University (US), London School of Economics (UK) and other European countries.
2.    He has brought to India the ethics of Freedom, Democracy.
3.    Dr. Ambedkar awarded as Bharat Ratna (Highest Award for a civilian in India)
4.    He is one of the most influential leaders in the World history.
5.    He has written world’s largest Indian Constitution and gave equal rights to oppressed people, woman and minorities in India. Since the Constitution of India comes in practice it never fails!
6.    He fought for Justice, Freedom, Equality and Fraternity.
7.    He was born in Un-Touchable community and fought all his life to remove the anti-human Caste based system that world has ever seen.
8.    He brought a ray of hope in billions of oppressed and deprived people, who were far far way from human rights for thousands of years.
9.    He then converted to Buddhism in 14 October 1956 and spent his later life to spread Buddhism and equality.
10.  From school days to till his last breadth he was a student.
11.  He was a life time student and mastered in Economics, Law, Democracy, Philosophy, History, International Relations, Anthropology, Religious Study, Music, Literature and so on….
12.  To give respect to his contribution in Economics, Democracy, Peaceful Revolution, Columbia University incarnated his statue in their librarywhere he studied. (Check this:http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/index.html,http://c250.columbia.edu/c250_celebrates/remarkable_columbians/bhimrao_ambedkar.html)
13.  His education: M.A., Ph.D, D.Sc., Bar-at-Law, LL.D., D.Litt

You might have heard Jai Bhim word from billions of Indians and Indians abroad. The word is full hearted respect to their tru leader Dr. Ambedkar. Billions of people call him ‘Babasaheb‘ a very respected and popular word used in India. I bet anyone has got huge respect than Babasaheb Dr. B. R. Ambedkar.