समुदाय अपनी सामाजिक व्यवस्था के सफल संचालन हेतु अनेक रीतियों व प्रथाओं का निर्माण करता है। साथ ही समुदाय अपने सदस्यों को लोकनिंदा एवं सामाजिक बहिष्कार के शस्त्र का भय दिखाकर इन प्रथाओं के पालन हेतु विवश करता है किंतु जब इस शस्त्र का प्रयोग समाज के प्रभुत्वशाली वर्ग द्वारा निर्बलों के विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण तरीके से किया जाता है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। भारत सहित विश्व के विभिन्न पिछड़े देशों में इस शस्त्र का प्रयोग निर्बलों के विरुद्ध अपनी प्रभुता की स्थापना हेतु किया जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की खाप जाति पंचायतों के सामाजिक बहिष्कार के अमानवीय फैसले सदैव समाचार-पत्रों की सुर्खियों में रहते हैं। भारत में सामाजिक बहिष्कार का सर्वाधिक शिकार अनुसूचित जाति, जनजाति व महिलाएं हैं। शनैः-शनैः संपूर्ण देश में सामाजिक बहिष्कार जैसे अमानवीय प्रथा के विरुद्ध जागरूकता का प्रसार हो रहा है। महाराष्ट्र की विधान सभा ने देश में सर्वप्रथम सामाजिक बहिष्कार के विरुद्ध 11 अप्रैल, 2016 को सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया है। जिसके तहत सामाजिक बहिष्कार को कानूनी अपराध घोषित किया गया है।
- महाराष्ट्र विधान सभा ने 11 अप्रैल, 2016 को सर्वसम्मति से सामाजिक बहिष्कार (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2016 पारित किया।
- इस विधान के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-
- इस विधान के तहत किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा किसी व्यक्ति या जाति पंचायत जैसे पंचायत द्वारा सामाजिक बहिष्कार को निषिद्ध किया गया है।
- इस अपराध में संलग्न आरोपियों को सात वर्ष की कैद या 5 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों का आरोपण हो सकता है।
- इस अपराध में सहायता प्रदान करने वाले को तीन वर्ष की कैद या 3 लाख का जुर्माना या दोनों का आरोपण हो सकता है।
- सामाजिक बहिष्कार के पीड़ित पुलिस के माध्यम से शिकायत दर्ज कराने के साथ-साथ सीधे दंडाधिकारी को अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
- विधेयक के तहत अपराध को संज्ञेय तथा जमानती घोषित किया गया है।
- विधेयक के अंतर्गत आरोपियों पर आरोपित आर्थिक जुर्माने की राशि पीड़ित को दिया जाएगा।
- आरोप-पत्र दाखिल होने के पश्चात छः महीने के अंदर सुनवाई पूरी होनी चाहिए ताकि आरोपियों को शीघ्र सजा मिल सके।
- सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाओं को रोकने के लिए निषेध अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। जो ‘सामाजिक बहिष्कार निषेध अधिकारी’ के पद नाम से जाना जाएगा।
- विधान के तहत कोई अपराध नहीं हुआ, इसे सिद्ध करने का भार अभियुक्त पर होगा।
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