नई दिल्ली. भारतीय संविधान और कानूनों की रोशनी में हिन्दू शब्द के आशय और परिभाषा के बारे में केंद्र सरकार से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई, लेकिन ये जानकारी सरकार उपलब्ध नहीं करा सकी. मध्यप्रदेश के नीमच निवासी आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि उन्होंने केंद्र सरकार से आरटीआई के तहत पूछा था कि भारतीय संविधान और कानूनों के अनुसार हिन्दू शब्द का अर्थ और परिभाषा क्या है? उन्होंने कहा कि मेरी आरटीआई पर गृह मंत्रालय की ओर से भेजे गए जवाब में कहा गया कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी के पास अपेक्षित सूचना उपलब्ध नहीं है.
आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि उन्होंने अपने आवेदन में सरकार से ये जानना चाहा था कि देश में किन आधारों पर किसी समाज को हिन्दू माना जाता है और हिन्दूओं को बहुसंख्यक के तौर पर देखा जाता है। लेकिन गृह मंत्रालय की ओर से सिर्फ यहीं जवाब दिया गया कि उपरोक्त सूचना सीपीआईओ के पास उपलब्ध नहीं है.
हिन्दू और प्राचीनकाल
हिंदू नाम का कोई धर्म नही है, हिन्दू फ़ारसी का शब्द है. हिन्दू शब्द न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में. स्वयं दयानन्द सरस्वती कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है.
1875 में दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की हिन्दू समाज की नहीं. ब्राह्मणों ने स्वयं को हिन्दू कभी नहीं कहा, आज भी वे स्वयं को ब्राह्मण कहते हैं लेकिन सभी शूद्रों को हिन्दू कहते हैं. किवदंतियों के अनुसार शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे तब भी पूना के ब्राह्मणों ने उन्हें शूद्र कह राजतिलक से इंकार कर दिया. घूस का लालच देकर ब्राह्मण गंगाभट्ट को बनारस से बुलाया गया.
गंगाभट्ट ने “गंगाभट्टी” लिखा उसमें उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन राजतिलक के दौरान मंत्र “पुराणों” के ही पढे गए वेदों के नहीं. तो शिवाजी को हिन्दू तब नहीं माना. मुगलकालीन अभिलेखों के अनुसार ब्राह्मणों ने मुगलों से कहा हम हिन्दू नहीं हैं बल्कि तुम्हारी तरह ही विदेशी हैं परिणामतः सारे हिंदुओं पर जज़िया लगाया गया लेकिन ब्राह्मणों को मुक्त रखा गया.
हिन्दू और ब्रिटिश शासन
1920 में ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार की चर्चा शुरू हुई. ब्रिटेन में भी दलील दी गई कि वयस्क मताधिकार सिर्फ जमींदारों व करदाताओं को दिया जाए. लेकिन बाद में वयस्क मताधिकार सभी को दिया गया. देर सबेर ब्रिटिश भारत में भी यही होना था. ब्राह्मण गंगाधर तिलक ने इसका विरोध किया. और कहा कि तेली, तंबोली, माली, कूणबटो को संसद में जाकर क्या हल चलाना है. ब्राह्मणों ने सोचा यदि भारत में वयस्क मताधिकार यदि लागू हुआ तो अल्पसंख्यक ब्राह्मण मक्खी की तरह फेंक दिये जाएंगे. अल्पसंख्यक ब्राह्मण कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन सकेंगे. सत्ता बहुसंख्यकों के हाथों में चली जाएगी. तब सभी ब्राह्मणों ने मिलकर 1922 में हिन्दू महासभा का गठन किया. जो ब्राह्मण स्वयं हो हिन्दू मानने कहने को तैयार नहीं थे वयस्क मताधिकार से विवश हुए. परिणाम सामने है भारत के प्रत्येक सत्ता के केंद्र पर ब्राह्मणों का कब्जा है. सरकार में ब्राह्मण, विपक्ष में ब्राह्मण, कम्युनिस्ट में ब्राह्मण, 15 वीं लोकसभा में 367 सीटों पर ब्राह्मणों का कब्जा है.
http://www.newspoint360.com/news/india/1172.html
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