Sunday, June 30, 2013

चटख-बंधेजी चुनड़ी सोवै,

चटख-बंधेजी चुनड़ी सोवै, मन सूओ मंडरावै।
नथली झूलै नाक, गलै में सोवै नोसेर हार।
जुलम करैं आंख्यां को काजल, मैंदी रचै सुप्यार।।
नेह-लाज ममता-समता को, घमों सुहाणो रूप
पल्लां दादर मोर मंड्या रह, मोर पंख मंड गाती।
रतन कचोलै भीजै मैंदी, जल जमना को नीर।
चढ़ै चाव गुलनार हथेल्यां, महंदी रंग अबीर।।
मिला नेह रस मांडै मैंदी, करती जतन सहेल्यां।।
मन चोवै पगल्या राचेड़ा, चूम्यां सरै हथेल्यां।।
बाग-बगीचा उगै हथेल्यां, बिन क्यारी बिन माटी।
मांग भरै कुम-कुम सै, माथै बिंदिया रै कुम-कुम की।
बीच लटकतो मांग टीको, आंख झरी काजल की।
चुनड़ी चुड़लो होठां लाली, अर सोला सिणगार।
मंगल सूत्र पह्रावौ सज-धज, सै सुहाग कै लार।।
रचै घणी घुलवां रंग मैंदी, हाथ-पगां लग भाती।

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