Saturday, June 29, 2013

मौत ने फिर गीत गाया

मौत ने फिर गीत गाया 

बरसात की बहती नदी में ,ज़िन्दगी मौत बन बह गई 
कैसी यह प्रकृति की माया ,प्रलयंकर हुयी इंसानी छाया 
ज़िन्दगी की बोझिल लाशों पर ,बादलों का दिल झल्लाया 
बरसात जो प्रलय लाया ,मौत ने फिर गीत गाया !!

मौषम ने आंसू बहाया ,बादलों ने साज सजाया 
धरा की आहत भावना को ,प्रकृति ने क्या खूब जमाया 
चीर कर दिल आसमान का ,प्रकृति के जख्म जाग उठे 

मौत की उफनाई मतवाली नदी ,प्रलय का वीभत्स राग गा उठी 
लाशों का मंजर विनाशक समन्दर ,कालचक्र के ऐसे तुफानो से 
मौत का नर्तन छाया है ,ओह!इंसान बहुत घबराया 
मौत ने फिर गीत गाया !!

जीवन सी बहती नदियों ने ,इंसान को जीना सिखाया 
नव सृजन से प्रलय तक ,इंसान ही प्रकृति की सुर्वोत्तम छाया
पर कुत्सित इंसान की स्वार्थी माया,मौत का प्रलयकारी साज बिछाया 
प्रकृति को हरदम जो बिखराया ,मौन प्रकृति कुछ कह ना पाया 
मासूम जीवन मौत में समा गई ,कितने ही बेटों से माँ जुदा हुयी 
ज़िन्दगी अब तार तार हुई ,ओह!मौत की यह बाजार हुई

प्रकृति का भी दिल रोता है,जब इंसान जीवन खोता है 
प्रकृति को जो अक्सर मारता है ,जीवनदायिनी भी मौत बन जाती है 
उन्मुक्त प्रलय राग गाती है ,हर बार इंसान को समझाती है 
कभी बरसात बन आसमान से ,मौत प्रलय मचा जाती है 
फिर प्रकृति ने समझाया 
मौत ने फिर गीत गाया!!

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