Wednesday, April 4, 2018

दलित शब्द के प्रयोग से बचना चाहिए

एनडीए सरकार ने केंद्रीय विभागों और राज्यों से सभी सरकारी कामकाज में अनुसूचित जाति के सदस्यों के लिए दलित शब्द के इस्तेमाल से बचने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट में 20 मार्च को एससी-एसटी एक्ट में हुए कुछ बदलावों से पहले ही सरकार ने यह निर्देश जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठनों ने देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था. सोमवार को हुए भारत बंद ने हिंसक रूप ले लिया और इसमें करीब 14 लोगों की जान चुकी है.
15 मार्च को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे गए एक पत्र में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने कहा है कि उन्हें अनुसूचित जाती (शेड्यूल कास्ट) और इसी शब्द का अनुवाद अन्य भाषाओं में उपयोग करना है.
मंत्रालय द्वारा भेजे गए इस पत्र की फ़र्स्टपोस्ट ने समीक्षा की. इसमें लिखा गया है, सभी राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन से अनुरोध किया जाता है कि सभी सरकारी कामकाज, मामले, लेनदेन, प्रमाण पत्र आदि के लिए संवैधानिक शब्द अनुसूचित जाति और अन्य भाषाओं में इसी शब्द का अनुवाद ही अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल हों, जो राष्ट्रपति के आदेश के तहत भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 में है.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के ग्वालियर बेंच द्वारा पारित एक आदेश का हवाला देकर इस पत्र को केंद्रीय मंत्रालयों, केंद्रीय लोक सेवा आयोग और चुनाव आयोग को भेजा गया है. 15 जनवरी 2018 को मनोहर लाल माहौर की जनहित याचिका पर बेंच ने अपना फैसला सुनाया था.
बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि केंद्र और राज्य सरकार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंध रखने वाले लोगों के लिए दलित शब्द के प्रयोग से बचना चाहिए क्योंकि यह भारत के संविधान में उल्लिखित नहीं है.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने यह भी तर्क दिया है कि 10 फरवरी 1982 को गृह मंत्रालय ने राज्य को एक आदेश देते हुए यह बताया था कि जिस विभाग के पास अनुसूचित जाती का प्रमाण पत्र जारी करने का काम है, वह इसमें हरिजन शब्द को नहीं डालेगा बल्कि केवल उस जाति का उल्लेख करेगा जिसे राष्ट्रपति के आदेश के तहत अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता दी गई है. इसके बाद 18 अगस्त 1990 को कल्याण मंत्रालय (अब सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) ने राज्य सरकारों से अनुसूचित जाति और इसके अनुवाद को इस्तेमाल करने का अनुरोध किया था.
इस पूरे मामले पर फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए प्रसिद्ध दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद ने कहा कि दलित शब्द सरकार में एक प्रकार का डर पैदा करता है. लोग अपने आप को अनुसूचित जाति से नहीं बल्कि चमार और दलित से बुलाना चाहते हैं. सरकार का तर्क है कि दलित शब्द संविधान में नहीं है जो भ्रामक है. दलित शब्द गतल नीतियों के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक है. सरकार इसे मिटाकर शोषित वर्ग के गुस्से को दबाने का प्रयास कर रही है.

https://hindi.firstpost.com/india/centre-asks-states-to-avoid-nomenclature-dalit-for-scheduled-castes-in-official-communication-ta-101907.html

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