Wednesday, April 4, 2018

आरटीआई एक्ट का उलंघन

आरटीआई एक्ट का उलंघन : भृष्ट अफसरों के बारे में सूचना न देने पर हाई कोर्ट ने दिया सरकार को नोटिस...

रोहतक । भ्रष्टाचार में संलिप्त हरियाणा काडर के आई.ए.एस., आई.पी.एस., एच.सी.एस. एवं एच.पी.एस अधिकारियों के बारे में हरियाणा सूचना अधिकार मंच के राज्य संयोजक को सूचना न देने पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जज जसवन्त सिंह ने हरियाणा सरकार व राज्य सूचना आयोग को नोटिस जारी किया है। 
ज्ञातव्य है कि हरियाणा सूचना अधिकार मंच के राज्य संयोजक एवं आर.टी.आई. कार्यकर्ता सुभाष द्वारा मु य सचिव कार्यालय से 1 जनवरी, 2000 से 31 अक्तूबर, 2013 तक हरियाणा सरकार के विभिन्न विभागों कार्यरत एवं सेवानिवृत्त हुए आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई,आर एस, एच.सी.एस. एवं एच.पी.एस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों, भ्रष्टाचार के दर्ज मामले के स बन्ध में जानकारी मांगी थी। मु य सचिव कार्यालय के राज्य जन सूचना अधिकारी ने यह जानकारी देने से मना करते हुए कहा है कि यह नियोक्ता और नियुक्ति प्राप्त करने वाले के बीच का मामला है। साथ ही यह जानकारी व्यापक जनहित में नहीं है इसलिए यह जानकारी आवेदक को नहीं दी जा सकती है। इसके साथ ही इससे किसी भी तरह के मामले में लिप्त अधिकारी के मनोबल पर असर पड़ेगा। आर.टी.आई. कार्यकर्ता सुभाष का कहना है मु य सचिव कार्यालय के राज्य जन सूचना अधिकारी के जवाब से तो यही साबित होता है कि जो अधिकारी भ्रष्टाचार या किसी भी प्रकार के मामले में लिप्त हैं यदि उनकी जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी तो उनका भ्रष्टाचार करने का हौंसला टूट जाएगा। यानि यह तो एक तरह से उन्हें संरक्षण देने का मामला है। मु य सचिव कार्यालय के अपील अधिकारी ने भी अपने राज्य जन सूचना अधिकारी से सहमत होते हुए जानकारी ना देने पर अपनी मुहर लगा दी थी। मामला आयोग में गया। मु य सूचना आयुक्त नरेश गुलाटी ने भी अपने फैसले में मु य सचिव कार्यालय के जन सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपील अधिकारी के रूख से सहमति जताते हुए जन सूचना अधिकारी के पक्ष में फैसला दिया था।
आर.टी.आई. कार्यकर्ता सुभाष ने अपने वकील प्रदीप रापडिय़ा के माध्यम से हरियाणा एवं पंजाब हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि सभी सरकारी अधिकारी जनता के नौकर हैं और जनता को ये जानने का पूरा हक है कि कौन अधिकारी भ्रष्टाचार में संलिप्त है और उनके खिलाफ सरकार ने क्या कार्यवाही की है। ऐसी सूचना व्यक्तिगत नहीं हो सकती। याचिका में यह ाी कहा गया है कि जब किसी आम आदमी के खिलाफ मुकदमा दर्ज होता है तो मीडिया और अन्य लोग खुलकर मुकदमे के बारे में बोल सकते हैं, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों के बारे में सूचना देने से मना करके ऐसे अधिकारियों के मीडिया व अन्य लोगों का मुंह बन्द कर दिया गया है। ऐसे में एक आम आदमी व भ्रष्ट अधिकारी के बीच भेदभाव किया जा रहा है। हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए सरकार को 15 जनवरी 2015 तक जवाब देने को कहा है।
क्या मांगी थी जानकारी -
1 जनवरी, 2000 से 31 अक्तूबर, 2013 तक हरियाणा सरकार के विभिन्न विभागों कार्यरत एवं सेवानिवृत्त हुए आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई,आर एस, एच.सी.एस. एवं एच.पी.एस कैडर के कितने अधिकारियों के खिलाफ मामले (किसी भी प्रकार के ) दर्ज हुए हैं ऐसे सभी अधिकारियों के नाम एवं पद नाम दिये?
2. ऐसे अधिकारियों के खिलाफ राज्य सरकार ने क्या कार्यवाही की अवगत करवाया जाए?
3. उपरोक्त अवधि में कितने ऐसे मामले हैं जिनमें कार्यवाही अभी भी लंबित हैं? लंबित होने का कारण बताया जाए।
4. राज्य सरकार के नियमावली के अनुसार किसी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद उसके कौन-कौन से लाभ रोके जा सकते हैं? विवरण दिया जाए।
5. उपरोक्त अवधि में कितने अधिकारी ऐसे हैं जिनका लाभ रोके गए हैं, उन सभी का विवरण दिया जाए।
6. केस दर्ज होने के बावजूद ऐसे कितने अधिकारी हैं (सभी के नाम एवं पद) जिन्हें सभी प्रकार के लाभ दिए गए- यथा, सेवा बहाली, वेतनवृद्धि, तरक्की एवं सेवाविस्तार आदि लाभ दिये गये।
7. प्रश्र नं 6 से स बंधित ऐसे सभी अधिकारियों को केस दर्ज होने के बावजूद सेवालाभ आदि देने वाले आदेश एवं आदेश जारी करने वाले अधिकारियों के नाम एवं पदनाम दिये जाएं तथा ऐसे सभी आदेशों की प्रति प्रदान की जाए। है।



भोपाल। प्रदेश सरकार RTI के तहत किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के भ्रष्टाचार या अनियमितता की जांच से जुड़े दस्तावेज ये कहकर देने से इंकार नहीं कर सकती कि वो व्यक्तिगत जानकारी का हिस्सा है। राज्य सूचना आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी ने ये महत्वपूर्ण फैसला तीन आईएएस अफसरों के मामले में सूचना के अधिकार के तहत मांगे गए दस्तावेजों की अपील पर सुनवाई करते हुए दिया। उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया, जिसके तहत जानकारी के लोकहित से जुड़े नहीं होने और तीसरे पक्ष से संबंधित बताकर दस्तावेज देने से इंकार किया जा सकता था।

ऐसे तो कोई जानकारी नहीं दी जा सकेगी 
सूचना आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी ने आदेश में कहा कि भ्रष्टाचार और मानव अधिकार से जुड़े मुद्दे सरकारी अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ होते रहते हैं। हर प्रकरण में किसी न किसी का नाम जुड़ा होता है, यदि किसी का नाम आने मात्र से वह व्यक्तिगत जानकारी मान ली जाए, तो ऐसी कोई जानकारी नहीं बचेगी, जो दी जा सके। भ्रष्टाचार के मामले को व्यक्तिगत कहकर जानकारी नहीं देना सूचना का अधिकार कानून की मूलभावना के खिलाफ है।

वहीं, दुबे का कहना है कि आईएएस अधिकारियों से जुड़ा मामला होने की वजह से जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही थी। आयोग के फैसले के बाद अब जांच से जुड़े दस्तावेज देने ही पड़ेंगे। उन्होंने इसके लिए शुक्रवार को मुख्य सचिव और सचिव सामान्य प्रशासन 'कार्मिक" के यहां आवेदन लगाकर तीनों अधिकारियों की जांच से जुड़े दस्तावेज देने की मांग की है।

इन अफसरों की मांगी थी जानकारी
बीएम शर्मा- तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ, छिंदवाड़ा। मनरेगा के तहत खरीदी से जुड़े सभी दस्तावेज।
सुखबीर सिंह- तत्कालीन कलेक्टर सीधी। मनरेगा के तहत जेट्रोफा पौधारोपण में अनियमितता।
चंद्रशेखर बोरकर- तत्कालीन सीईओ सीधी। मनरेगा के तहत जेट्रोफा पौधा रोपण में अनियमितता।

ये था सामान्य प्रशासन विभाग का तर्क 
इस मामले में सामान्य प्रशासन विभाग ने ये कहते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया था कि इससे लोकहित का समाधान नहीं होता है। जानकारी तीसरे पक्ष से जुड़ी है। फैसले के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के गिरिश रामचंद्र देशपांडे विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयुक्त में पारित आदेश को आधार बनाया गया। इसमें कहा गया कि दंड, जांच, अनुशासनात्मक कार्रवाई और शासकीय सेवक व नियोक्ता के बीच सेवा संबंधी मामले व्यक्तिगत सूचना की श्रेणी में आते हैं।

शिकायत और जांच व्यक्तिगत नहीं
आदेश में कहा गया कि सामग्री खरीदना, शासकीय काम करना, उसकी शिकायत और जांच सूचना का अधिकार की धारा 8 (1) में नहीं आता है। इससे जुड़े दस्तावेज किसी अधिकारी-कर्मचारी के व्यक्तिगत नहीं हैं। हाईकोर्ट जबलपुर ने भी सेवा पुस्तिका या व्यक्तिगत नस्ती को ही व्यक्तिगत रिकार्ड माना है। भ्रष्टाचार या अनियमितता जैसी चीज को व्यक्तिगत जानकारी का हिस्सा नहीं माना जा सकता है।
http://www.bhopalsamachar.com/2017/05/mprsa.html

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