गायत्री मंत्र को वेदों की जननी की संज्ञा दी गई है. इसे ‘गुरू मंत्र’ अथवा ‘सावित्री मंत्र’ भी कहा जाता है जो ऋग्वेद से लिया गया है. बुद्धिमता को प्रेरित करने वाले इस मंत्र का जाप चिरकाल से लोग करते आए हैं. किसी विशिष्ट फ्रीक्वैंसी के ध्वनि तरंगों से युक्त इस मंत्र के बारे में यह मान्यता है कि इसके उच्चारण से अद्भुत आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है. जानिए क्या है ये मंत्र, इसके अर्थ, मान्यता और इससे जुड़े कुछ वैज्ञानिक पहलू.
अद्भुत है मंत्र-
ॐ भूर्भुव: स्व:
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न: प्रचोदयात्।।
मंत्र में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ-
ॐ- ब्रह्मा, भू-प्राणस्वरूप, भुव:-दुखनाशक, स्व:-सुख स्वरूप, तत-उस, सवितु:-प्रकाशवान, वरेण्यं-श्रेष्ठ, भर्गो-पापनाशक, देवस्य-दिव्य को, धीमहि-धारण करें, धियो-बुद्धि को, यो-जो, न: हमारी, प्रचोदयात् प्रेरित करे.
हर शब्द की व्याख्या-
ॐ- यह मौलिक और आदिकालीन ध्वनि है जिससे अन्य सभी ध्वनियों का जन्म हुआ है. यह ब्रह्मा है और उर्जा के स्रोतों का रूपक है.
ॐ भूर्भुव: स्व:- उस मुख्य मंत्र का हिस्सा है जिसके द्वारा हम सृष्टि के सृजनहार और हमारे प्रेरणास्रोत उस अखंड शक्ति का आह्वान करते हैं. इसका एक और अर्थ यह है कि हम इस भौतिक संसार, अपने मस्तिष्क और आत्मा रूपी संसार का आह्वान करते हैं.
तत्सवितुर्वरेण्यं- ‘तत’ का अर्थ ‘वह’ होता है. वह से आशय उसी सर्वोच्च सत्ता से होता है जो सृष्टि के पालनहार हैं. सवितुर का मतलब जीवन को प्रकाशित करने वाले सूर्य की किरणों समान प्रकाशवान से है.
भर्गो देवस्य धीमहि- इसका अर्थ उस सर्वोच्च पापनाशक देवता की स्तुति करने से है.
धियो यो न:- धियो से आशय संसार की वास्तविकता, हमारे ज्ञान और हमारे प्रयोजन को समझने से है जबकि ‘यो’ से ‘आशय’ उससे और ‘न:’ का अर्थ ‘हमसे’ है.
Read: पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
प्रचोदयात- इस शब्द से हम उनसे अपने मार्गदर्शन की विनती करते हैं.
संक्षिप्त रूप से इसका अर्थ है कि, ‘हे शक्तिशाली ईश्वर! हमारी उर्जा के स्रोत! हमारे ज्ञान को आलोकित करो ताकि हम सदा सन्मार्ग पर चलते रहें.’ यह मंत्र जीवन और प्रकाश देने वाले सवितुर यानी भगवान सूर्य की उपासना है.
वैज्ञानिक तथ्य-
इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार एक अमेरिकी वैज्ञानिक हावर्ड स्टेनगेरिल ने विश्व भर में प्रचलित मंत्रों को एकत्रित कर अपने फिजियोलॉजी प्रयोगशाला में उनके परीक्षण के दौरान यह पाया कि सभी मंत्रों में से केवल गायत्री मंत्र ऐसी थी जो प्रति क्षण 1,10,000 ध्वनि तरंगें पैदा करती है. इस आधार पर वो इस निष्कर्ष पर निकले कि यह मंत्र दुनिया की सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्र है.
कब करें इस मंत्र का जाप
शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है. सूर्योदय, मध्यान्ह और संध्याकाल में इस मंत्र का उच्चारण किया जाना उत्तम माना गया है. हवन के समय, जनेऊ धारण के समय इस मंत्र का जाप किया जाता है.
कौन कर सकता है उच्चारण-
प्रारंभिक मान्यता यह थी कि केवल पुरूष ही इस मंत्र का जाप कर सकते हैं. पर समय के साथ इसमें बदलाव आया है. अब स्त्रियाँ भी इस मंत्र का जाप करने लगी है. हालांकि इस मंत्र का जाप स्त्रियों और पुरूषों को अपने शरीर की साफ-सफाई के बाद करनी चाहिए. शौच के समय मंत्रोच्चारण नहीं किया जाना चाहिए.
Read: छठ पर्व में सुबह का अर्घ्य क्यों है महत्तवपूर्ण
गायत्री मंत्रोच्चारण के फायदे-
गायत्री मंत्रोच्चारण के अनेक फायदे बताए जाते हैं. इस मंत्र के जाप से याद की हुई चीजें भूल जाना, शीघ्रता से याद न कर पाने जैसी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है. इसके उच्चारण से गुस्से पर काबू पाया जा सकता है. कहा जाता है कि इस मंत्र के निरंतर जाप से आध्यात्मिक शक्तियों का विकास, त्वचा में निखार, छह इंद्रियों में सुधार होता है.
अद्भुत है मंत्र-
ॐ भूर्भुव: स्व:
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न: प्रचोदयात्।।
मंत्र में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ-
ॐ- ब्रह्मा, भू-प्राणस्वरूप, भुव:-दुखनाशक, स्व:-सुख स्वरूप, तत-उस, सवितु:-प्रकाशवान, वरेण्यं-श्रेष्ठ, भर्गो-पापनाशक, देवस्य-दिव्य को, धीमहि-धारण करें, धियो-बुद्धि को, यो-जो, न: हमारी, प्रचोदयात् प्रेरित करे.
हर शब्द की व्याख्या-
ॐ- यह मौलिक और आदिकालीन ध्वनि है जिससे अन्य सभी ध्वनियों का जन्म हुआ है. यह ब्रह्मा है और उर्जा के स्रोतों का रूपक है.
ॐ भूर्भुव: स्व:- उस मुख्य मंत्र का हिस्सा है जिसके द्वारा हम सृष्टि के सृजनहार और हमारे प्रेरणास्रोत उस अखंड शक्ति का आह्वान करते हैं. इसका एक और अर्थ यह है कि हम इस भौतिक संसार, अपने मस्तिष्क और आत्मा रूपी संसार का आह्वान करते हैं.
तत्सवितुर्वरेण्यं- ‘तत’ का अर्थ ‘वह’ होता है. वह से आशय उसी सर्वोच्च सत्ता से होता है जो सृष्टि के पालनहार हैं. सवितुर का मतलब जीवन को प्रकाशित करने वाले सूर्य की किरणों समान प्रकाशवान से है.
भर्गो देवस्य धीमहि- इसका अर्थ उस सर्वोच्च पापनाशक देवता की स्तुति करने से है.
धियो यो न:- धियो से आशय संसार की वास्तविकता, हमारे ज्ञान और हमारे प्रयोजन को समझने से है जबकि ‘यो’ से ‘आशय’ उससे और ‘न:’ का अर्थ ‘हमसे’ है.
Read: पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
प्रचोदयात- इस शब्द से हम उनसे अपने मार्गदर्शन की विनती करते हैं.
संक्षिप्त रूप से इसका अर्थ है कि, ‘हे शक्तिशाली ईश्वर! हमारी उर्जा के स्रोत! हमारे ज्ञान को आलोकित करो ताकि हम सदा सन्मार्ग पर चलते रहें.’ यह मंत्र जीवन और प्रकाश देने वाले सवितुर यानी भगवान सूर्य की उपासना है.
वैज्ञानिक तथ्य-
इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार एक अमेरिकी वैज्ञानिक हावर्ड स्टेनगेरिल ने विश्व भर में प्रचलित मंत्रों को एकत्रित कर अपने फिजियोलॉजी प्रयोगशाला में उनके परीक्षण के दौरान यह पाया कि सभी मंत्रों में से केवल गायत्री मंत्र ऐसी थी जो प्रति क्षण 1,10,000 ध्वनि तरंगें पैदा करती है. इस आधार पर वो इस निष्कर्ष पर निकले कि यह मंत्र दुनिया की सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्र है.
कब करें इस मंत्र का जाप
शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है. सूर्योदय, मध्यान्ह और संध्याकाल में इस मंत्र का उच्चारण किया जाना उत्तम माना गया है. हवन के समय, जनेऊ धारण के समय इस मंत्र का जाप किया जाता है.
कौन कर सकता है उच्चारण-
प्रारंभिक मान्यता यह थी कि केवल पुरूष ही इस मंत्र का जाप कर सकते हैं. पर समय के साथ इसमें बदलाव आया है. अब स्त्रियाँ भी इस मंत्र का जाप करने लगी है. हालांकि इस मंत्र का जाप स्त्रियों और पुरूषों को अपने शरीर की साफ-सफाई के बाद करनी चाहिए. शौच के समय मंत्रोच्चारण नहीं किया जाना चाहिए.
Read: छठ पर्व में सुबह का अर्घ्य क्यों है महत्तवपूर्ण
गायत्री मंत्रोच्चारण के फायदे-
गायत्री मंत्रोच्चारण के अनेक फायदे बताए जाते हैं. इस मंत्र के जाप से याद की हुई चीजें भूल जाना, शीघ्रता से याद न कर पाने जैसी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है. इसके उच्चारण से गुस्से पर काबू पाया जा सकता है. कहा जाता है कि इस मंत्र के निरंतर जाप से आध्यात्मिक शक्तियों का विकास, त्वचा में निखार, छह इंद्रियों में सुधार होता है.
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