सहिष्णुता का अर्थ .........देश में अनर्थ
ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के अनुसार टोलरेंस का अर्थ है “किस वस्तु या व्यक्ति को इच्छा से सहन करना या अनुमन्य भिन्नता “ और इस अर्थ के प्रकाश में ऐसा लगता है कि एक बार सहिष्णुता को समझा जाना जरुरी है
पता नहीं क्यों जब इस देश में कोई भी बात शुरू होती है तो कुछ लोग उसके नेता बन जाते है और बाकि जनता बीएस अनुगामी बन कर धर्म , जाति , से बातों को जोड़ तोड़ कर अर्थ का अनर्थ कर देती है | जब समाज का निर्माण हुआ है तो सहिष्णुता को ध्यान में ही रह कर हुआ है | पृथ्वी का कोई ऐसा जीव जंतु नहीं है जो सहिष्णुता को मानता हो | शेर अपने रहने वाले क्षेत्र में किसी अन्य शेर को तब तक नहीं आने देता जब तक वो उसको हरा ना दे | यही नहीं मनुष्य के काफी करीब समझा जाने वाला चिंपांज़ी भी अपने क्षेत्र में किसी अन्य को नहीं आने देता और ऐसा होने पर वो इसका विरोध करता है वो जोर जोर से छाती पीट कर अपनी असहनशीलता को जाहिर करता है |मनुष्य ने सबसे ज्यादा करीब से कुत्ते को ही देखा है जो अपने इलाके में आये किसी दूसरे कुत्ते को सहन ही नहीं करता है |यहाँ पर ये कहने का अर्थ सिर्फ इतना है कि सहनशीलता एक सांस्कृतिक गुण है ना कि प्राकृतिक गुण और इसी लिए मनुष्य ही सहनशीलता के लिए सबसे उपयुक्त है और इसी कारण आज से ४००० वर्ष पूर्व जब मनुष्य ने एक व्यवस्थित जीवन जीना शुरू किया तो ऐसा लगा मानो मनुष्य ने सहिष्णुता को स्वीकार कर लिया है पर समय के साथ संस्कृति के भी प्रभाव की न्यूनता मानव के जीवन में दिखाई देने लगी और जिस मनुष्य ने विवाह , परिवार का निर्माण किया वही एक सीमा के बाद असहिष्णुता के प्राकृतिक गुण को प्रदर्शित करने लगा | मानव ने पृथ्वी पर पाए जाने वाले अन्य जीव जन्तुओ की तरह विवाह को एक जैविक सम्बन्ध मान कर जीना शुरू कर दिया | उसने संस्कृति के आवरण में सम्बन्ध विच्छेद को जन्मदिया जो एक प्राकृतिक जीवन की मान्यता को फिर से स्वीकार करने जैसा था और पुरुष स्त्री का सम्बन्ध एक जैविक परिवार , समाज बनाने वाले जानवर की तरह ही हो गया और जो एक दूसरे के विचार स्वाभाव , रहन सहन को स्वीकार ना करने या सहन ना करने के कारण उत्पन्न हो गया | पर मानव ने जैविक क्रिया से उत्पन्न स्थिति को स्वीकार करके औरत जन्म लिए बच्चो के भविष्य को निर्धारित किया इस लिए प्रत्यक्ष रूप से ये कभी चर्चा का विषय ही नहीं बन पाया कि संस्कृति में धीरे धीरे असहिष्णुता बढ़ रही है और उससेसमाज की समसे छोटी इकाई विवाह प्रभावित हो रही है | व्यक्तियों के कार्य करने के आधार पर ही मनुष्य ने अपने व्यवहार को निर्धारित किया और ऐसा करके उसने ये सिद्ध किया कि सभी के साथ उसके सम्बन्ध और व्यवहार एक जैसा नहीं हो सकता और ये असहिष्णुता हमको मनुष्य के जाति व्यवस्था में स्तरित किये गए मानव के व्यवहार में स्पष्ट रूप से देखने को मिली | दलित के साथ होने वाले अत्याचार और उनके प्रति हीन भावना ने ये बात मुखर की मनुष्य भी एक असहिष्णु प्राणी ज्यादा है और संस्कृति के अस्तित्व में आने के बाद भी वो अपने प्राकृतिक स्वाभाव को पूरी तरह नही छोड़ पाया है पर अन्य जीव जन्तुओ की तरह वो भी अपने सामान मनुष्य से भी प्रतिकार करता है | गरीबी एक दूसरा ऐसा सांस्कृतिक कारण है जो धीरे धीर संस्कृति में एक स्तरीकृत समाज को निर्मित करती रही जिसके कारण कभी भी अपेक्षा कृत ज्यादा पैसा वाला आदमी कम पैसे वाले या फिर ज्यादा अचल संपत्ति वाला कम संपत्ति वाले को अपने सामान नहीं समझ सका और जिससे असहिष्णुता को ही बढ़ावा मिला | एक रिक्शे वाले एक बर्तन साफ़ करने वाले या फिर सफाई करने वाले के प्रति उनसे काम लेने वाले का व्यवहार कभी भी प्रेम और सद्भावनापूर्ण नहीं होता है जो दोनों को एक दूसरे के प्रति असहिष्णु बनता है और आज यही कारण है कि नौकर अपने मालिक ही हत्या करके अपनी घृणा को ज्यादा प्रदर्शित करने लगे है | संस्कृति के दूसरे कारणों में असहिष्णुता इसी लिए भी बढ़ी क्योकि संस्कृति के प्रतिबन्ध ज्यादा है एक वैश्यावृत्ति करने वाली महिला एक सामान्य समाज में नहीं रह सकती वो किसी के घर खुल कर नहीं आ जा सकती क्योकि समाज उसको सहन करने के लिए तैयार नहीं है और यही सामाजिक असहिष्णुता उसको पीढ़ीदर पीढ़ी इस कार्य में लगाये रखता है | इस लिए समाज में कभी भी किसी को सहन करने के जो पैमाने रहे है वो सांस्कृतिक से ज्यादा प्राकृतिक व्यव्हार से प्रभावित होते है | क्या सहनशीलता को हमने कभी अनुभव किया ? उत्तर है नहीं किया कम से कम जब से आधुनिकता के विमर्श हमारे सामने आये | सबको अपने तरह से जीने का स्वप्न बाँटा गया | और इसी कारण भी संयुक्त परिवार में भारत जैसे देश में एक बिखराव दिखाई दिया | पैसा एक ही व्यक्ति के हाथ में क्यों रहे ? चूल्हा एक ही क्यों जले ? एक विवाहित महिला अपने पति और बच्चो के आलावा किसी और के लिए क्यों काम करे| इस भावना ने घर के अंदर ही असहिष्णुता इतनी पैदा कर दी कि जिस देश में पिता बड़े भाई के सामने लोग बैठते नहीं थे वही अब लोग सीधे ये पूछने लगे है कि ज्यदाद में मेरा हिस्सा क्या है मेरा बटवारा कर दीजिये |संपत्ति का बटवारा होने का चलन बढ़ना और संयुक्त परिवार को नकारना परिवार के अंदर बढती असहिष्णुता का ही परिणाम है | जिसका प्रभाव अब धीरे धीरे समाज में भी दिखाई देने लगा है | कानून ने खुद पहिचान को जिस तरह अपने अस्तित्व से जोड़ कर समाज के साथ प्रस्तुत किया और अपने अस्तित्व कोबचाने और संरक्षित करने के लिए जिस तरह से संविधान में प्राविधान किये गए उससे असहिष्णुता का ही खाका ज्यादा तैयार हुआ क्योकि जनसँख्या को बढ़ने से रोकने में राज्य ने अपने संसाधनों की उपलब्धता से ज्यादा धार्मिक संकीर्णता और प्रजातंत्र में वोटो के महत्व को ज्यादा समझा और जिसने संसाधन और जनसँख्या के असंतुलन को इतना बढ़ा दिया कि असहिष्णुता खुल कर मुखर होने लगी | इस संतुलन में ज्यादा से ज्यादा पाने कि होड़ और उसके लिए अपनों का संसद में ज्यादा से ज्यादा होने का प्रयास जनसँख्या को विकराल रूप में बढ़ाने में सहायक हुआ जिससे अस्तित्व और पहिचान के कह्तरे के स्वर भी मुखर होने लगे जिससे समाज और देश को असहिष्णुता की आग में झोक दिया |
सरकार को चाहिए कि आज के सन्दर्भ में जब देश की जनसँख्या बढती ही जा रही है और वोट से सत्ता पाने के जाति और धर्म के समीकरण ने देश को एक अंधकार की ओर धकेल दिया है जो तभी रुक सकता है जब राज्य धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सही तरह से लागू हो |
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