कोर्ट में मुकदमा दो साल तक चला।
आखिर पति-पत्नी में तलाक हो गया।
तलाक के पसःमंजर बहुत मामूली बातें थीं। इन मामूली बातों को बड़ी घटना में रिश्तेदारों ने बदला। हुआ यों कि पति ने पत्नी को किसी बात पर तीन थप्पड़ जड़ दिए। पत्नी ने इसके जवाब में अपना सैंडिल पति की तरफ़ फेंका। सैंडिल का एक सिरा पति के सिर को छूता हुआ निकल गया।
मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन पति ने इसे अपनी तौहीन समझा। रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना दिया। न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि पति को सैडिल मारने वाली औरत न वफादार होती है न पतिव्रता। इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है। कुछेक रिश्तेदारों ने यह भी पश्चाताप जाहिर किया कि ऐसी औरतों का भ्रूण ही समाप्त कर देना चाहिए।
बुरी बातें चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती हैं। सो, दोनों तरफ खूब आरोप उछाले गए। ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों का वॉलीबॉल खेल रहे हैं। चुनांचे, लड़के ने लड़की के बारे में और लड़की ने लड़के के बारे में कई असुविधाजनक बातें कही।
मुकदमा दर्ज कराया गया। पति ने पत्नी की चरित्रहीनता का तो पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। छह साल तक शादीशुदा जीवन बीताने और एक बच्ची के माता-पिता होने के बाद आज दोनों में तलाक हो गया। पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज़ों की प्रति थी। दोनों चुप थे। दोनों शांत। दोनों निर्विकार।
मुकदमा दो साल तक चला था। दो साल से पत्नी अलग रह रही थी और पति अलग, मुकदमे की सुनवाई पर दोनों को आना होता। दोनों एक दूसरे को देखते जैसे चकमक पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों। दोनों गुस्से में होते। दोनों में बदले की भावना का आवेश होता। दोनों के साथ रिश्तेदार होते जिनकी हमदर्दियों में ज़रा-ज़रा विस्फोटक पदार्थ भी छुपा होता।
लेकिन कुछ महीने पहले जब पति-पत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एक-दूसरे को देख कर मुँह फेर लेते। जैसे जानबूझ कर एक-दूसरे की उपेक्षा कर रहे हों। वकील औऱ रिश्तेदार दोनों के साथ होते। दोनों को अच्छा-खासा सबक सिखाया जाता कि उन्हें क्या कहना है। दोनों वही कहते। कई बार दोनों के वक्तव्य बदलने लगते। वो फिर सँभल जाते।
अंत में वही हुआ जो सब चाहते थे यानी तलाक।
पहले रिश्तेदारों की फौज साथ होती थी। आज थोड़े से रिश्तेदार साथ थे। दोनों तरफ के रिश्तेदार खुश थे। वकील खुश थे। माता-पिता भी खुश थे।
तलाकशुदा पत्नी चुप थी और पति खामोश था। यह महज़ इत्तेफाक ही था कि दोनों पक्षों के रिश्तेदार एक ही टी-स्टॉल पर बैठे। कोल्ड ड्रिंक्स लिया। यह भी महज़ इत्तेफाक ही था कि तलाकशुदा पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे। लकड़ी की बेंच और वो दोनों।
''कांग्रेच्यूलेशन!... आप जो चाहते थे वही हुआ।'' स्त्री ने कहा।
''तुम्हें भी बधाई। तुमने भी तो तलाक दे कर जीत हासिल की।'' पुरुष बोला।
''तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है?'' स्त्री ने पूछा।
''तुम बताओ?''
पुरुष के पूछने पर स्त्री ने जवाब नहीं दिया। वो चुपचाप बैठी रही। फिर बोली, ''तुमने मुझे चरित्रहीन कहा था। अच्छा हुआ। अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पिंड छूटा।''
''वो मेरी गलती थी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।'' पुरुष बोला।
''मैंने बहुत मानसिक तनाव झेला।'' स्त्री की आवाज़ सपाट थी। न दुःख, न गुस्सा।
''जानता हूँ। पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन और आत्मा को लहू-लुहान कर देता है... तुम बहुत उज्ज्वल हो। मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं करनी चाहिए थी। मुझे बेहद अफ़सोस है, '' पुरुष ने कहा।
स्त्री चुप रही। उसने एक बार पुरुष को देखा। कुछ पल चुप रहने के बाद पुरुष ने गहरी साँस ली। कहा, ''तुमने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था।''
''गलत कहा था।'' पुरुष की ओऱ देखती हुई स्त्री बोली। कुछ देर चुप रही फिर बोली, ''मैं कोई और आरोप लगाती लेकिन मैं नहीं...'' प्लास्टिक के कप में चाय आ गई। स्त्री ने चाय उठाई। चाय ज़रा-सी छलकी। गर्म चाय स्त्री के हाथ पर गिरी। स्सी... की आवाज़ निकली। पुरुष के गले में उसी क्षण 'ओह' की आवाज़ निकली। स्त्री ने पुरुष को देखा। पुरुष स्त्री को देखे जा रहा था।
''तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?''
''ऐसा ही है। कभी वोवरॉन तो कभी काम्बीफ्लेम,'' स्त्री ने बात खत्म करनी चाही।
''तुम एक्सरसाइज भी तो नहीं करती।'' पुरुष ने कहा तो स्त्री फीकी हँसी हँस दी।
''तुम्हारे अस्थमा की क्या कंडीशन है... फिर अटैक तो नहीं पड़े?'' स्त्री ने पूछा।
''अस्थमा। डॉक्टर सूरी ने स्ट्रेन... मेंटल स्ट्रेस कम करने को कहा है, '' पुरुष ने जानकारी दी।
स्त्री ने पुरुष को देखा। देखती रही एकटक। जैसे पुरुष के चेहरे पर छपे तनाव को पढ़ रही हो।
''इनहेलर तो लेते रहते हो न?'' स्त्री ने कहा
तलाक के पसःमंजर बहुत मामूली बातें थीं। इन मामूली बातों को बड़ी घटना में रिश्तेदारों ने बदला। हुआ यों कि पति ने पत्नी को किसी बात पर तीन थप्पड़ जड़ दिए। पत्नी ने इसके जवाब में अपना सैंडिल पति की तरफ़ फेंका। सैंडिल का एक सिरा पति के सिर को छूता हुआ निकल गया।
मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन पति ने इसे अपनी तौहीन समझा। रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना दिया। न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि पति को सैडिल मारने वाली औरत न वफादार होती है न पतिव्रता। इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है। कुछेक रिश्तेदारों ने यह भी पश्चाताप जाहिर किया कि ऐसी औरतों का भ्रूण ही समाप्त कर देना चाहिए।
बुरी बातें चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती हैं। सो, दोनों तरफ खूब आरोप उछाले गए। ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों का वॉलीबॉल खेल रहे हैं। चुनांचे, लड़के ने लड़की के बारे में और लड़की ने लड़के के बारे में कई असुविधाजनक बातें कही।
मुकदमा दर्ज कराया गया। पति ने पत्नी की चरित्रहीनता का तो पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। छह साल तक शादीशुदा जीवन बीताने और एक बच्ची के माता-पिता होने के बाद आज दोनों में तलाक हो गया। पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज़ों की प्रति थी। दोनों चुप थे। दोनों शांत। दोनों निर्विकार।
मुकदमा दो साल तक चला था। दो साल से पत्नी अलग रह रही थी और पति अलग, मुकदमे की सुनवाई पर दोनों को आना होता। दोनों एक दूसरे को देखते जैसे चकमक पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों। दोनों गुस्से में होते। दोनों में बदले की भावना का आवेश होता। दोनों के साथ रिश्तेदार होते जिनकी हमदर्दियों में ज़रा-ज़रा विस्फोटक पदार्थ भी छुपा होता।
लेकिन कुछ महीने पहले जब पति-पत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एक-दूसरे को देख कर मुँह फेर लेते। जैसे जानबूझ कर एक-दूसरे की उपेक्षा कर रहे हों। वकील औऱ रिश्तेदार दोनों के साथ होते। दोनों को अच्छा-खासा सबक सिखाया जाता कि उन्हें क्या कहना है। दोनों वही कहते। कई बार दोनों के वक्तव्य बदलने लगते। वो फिर सँभल जाते।
अंत में वही हुआ जो सब चाहते थे यानी तलाक।
पहले रिश्तेदारों की फौज साथ होती थी। आज थोड़े से रिश्तेदार साथ थे। दोनों तरफ के रिश्तेदार खुश थे। वकील खुश थे। माता-पिता भी खुश थे।
तलाकशुदा पत्नी चुप थी और पति खामोश था। यह महज़ इत्तेफाक ही था कि दोनों पक्षों के रिश्तेदार एक ही टी-स्टॉल पर बैठे। कोल्ड ड्रिंक्स लिया। यह भी महज़ इत्तेफाक ही था कि तलाकशुदा पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे। लकड़ी की बेंच और वो दोनों।
''कांग्रेच्यूलेशन!... आप जो चाहते थे वही हुआ।'' स्त्री ने कहा।
''तुम्हें भी बधाई। तुमने भी तो तलाक दे कर जीत हासिल की।'' पुरुष बोला।
''तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है?'' स्त्री ने पूछा।
''तुम बताओ?''
पुरुष के पूछने पर स्त्री ने जवाब नहीं दिया। वो चुपचाप बैठी रही। फिर बोली, ''तुमने मुझे चरित्रहीन कहा था। अच्छा हुआ। अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पिंड छूटा।''
''वो मेरी गलती थी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।'' पुरुष बोला।
''मैंने बहुत मानसिक तनाव झेला।'' स्त्री की आवाज़ सपाट थी। न दुःख, न गुस्सा।
''जानता हूँ। पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन और आत्मा को लहू-लुहान कर देता है... तुम बहुत उज्ज्वल हो। मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं करनी चाहिए थी। मुझे बेहद अफ़सोस है, '' पुरुष ने कहा।
स्त्री चुप रही। उसने एक बार पुरुष को देखा। कुछ पल चुप रहने के बाद पुरुष ने गहरी साँस ली। कहा, ''तुमने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था।''
''गलत कहा था।'' पुरुष की ओऱ देखती हुई स्त्री बोली। कुछ देर चुप रही फिर बोली, ''मैं कोई और आरोप लगाती लेकिन मैं नहीं...'' प्लास्टिक के कप में चाय आ गई। स्त्री ने चाय उठाई। चाय ज़रा-सी छलकी। गर्म चाय स्त्री के हाथ पर गिरी। स्सी... की आवाज़ निकली। पुरुष के गले में उसी क्षण 'ओह' की आवाज़ निकली। स्त्री ने पुरुष को देखा। पुरुष स्त्री को देखे जा रहा था।
''तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?''
''ऐसा ही है। कभी वोवरॉन तो कभी काम्बीफ्लेम,'' स्त्री ने बात खत्म करनी चाही।
''तुम एक्सरसाइज भी तो नहीं करती।'' पुरुष ने कहा तो स्त्री फीकी हँसी हँस दी।
''तुम्हारे अस्थमा की क्या कंडीशन है... फिर अटैक तो नहीं पड़े?'' स्त्री ने पूछा।
''अस्थमा। डॉक्टर सूरी ने स्ट्रेन... मेंटल स्ट्रेस कम करने को कहा है, '' पुरुष ने जानकारी दी।
स्त्री ने पुरुष को देखा। देखती रही एकटक। जैसे पुरुष के चेहरे पर छपे तनाव को पढ़ रही हो।
''इनहेलर तो लेते रहते हो न?'' स्त्री ने कहा
हाँ, लेता रहता हूँ। आज लाना याद नहीं रहा, '' पुरुष ने कहा।
''तभी आज तुम्हारी साँस उखड़ी-उखड़ी-सी है,'' स्त्री ने हमदर्द लहजे में कहा।
''हाँ, कुछ इस वजह से और कुछ...'' पुरुष कहते-कहते रुक गया।
''कुछ... कुछ तनाव के कारण,'' स्त्री ने बात पूरी की।
पुरुष कुछ सोचता रहा। फिर बोला, ''तुम्हें चार लाख रुपए देने हैं और छह हज़ार रुपए महीना भी।''
''हाँ... फिर?'' स्त्री ने पूछा।
''वसुंधरा में फ्लैट है... तुम्हें तो पता है। मैं उसे तुम्हारे नाम कर देता हूँ। चार लाख रुपए फिलहाल मेरे पास नहीं है।'' पुरुष ने अपने मन की बात कही।
''वसुंधरा वाले फ्लैट की कीमत तो बीस लाख रुपए होगी। मुझे सिर्फ चार लाख रुपए चाहिए।'' स्त्री ने स्पष्ट किया।
''बिटिया बड़ी होगी... सौ खर्च होते हैं।'' पुरुष ने कहा।
''वो तो तुम छह हज़ार रुपए महीना मुझे देते रहोगे,'' स्त्री बोली।
''हाँ, ज़रूर दूँगा।''
''चार लाख अगर तुम्हारे पास नहीं है तो मुझे मत देना,'' स्त्री ने कहा। उसके स्वर में पुराने संबंधों की गर्द थी।
पुरुष उसका चेहरा देखता रहा। कितनी सह्रदय और कितनी सुंदर लग रही थी सामने बैठी स्त्री जो कभी उसकी पत्नी हुआ करती थी।
स्त्री पुरुष को देख रही थी और सोच रही थी, ''कितना सरल स्वभाव का है यह पुरुष, जो कभी उसका पति हुआ करता था। कितना प्यार करता था उससे... एक बार हरिद्वार में जब वह गंगा में स्नान कर रही थी तो उसके हाथ से जंजीर छूट गई। फिर पागलों की तरह वह बचाने चला आया था उसे। खुद तैरना नहीं आता था लाट साहब को और मुझे बचाने की कोशिशें करता रहा था... कितना अच्छा है... मैं ही खोट निकालती रही...''
पुरुष एकटक स्त्री को देख रहा था और सोच रहा था, ''कितना ध्यान रखती थी। स्टीम के लिए पानी उबाल कर जग में डाल देती। उसके लिए हमेशा इनहेलर खरीद कर लाती। सेरेटाइड आक्यूहेलर बहुत महँगा था। हर महीने कंजूसी करती, पैसे बचाती, और आक्यूहेलर खरीद लाती। दूसरों की बीमारी की कौन परवाह करता है? ये करती थी परवाह! कभी जाहिर भी नहीं होने देती थी। कितनी संवेदना थी इसमें। मैं अपनी मर्दानगी के नशे में रहा। काश, जो मैं इसके जज़्बे को समझ पाता।''
दोनों चुप थे। बेहद चुप। दुनिया भर की आवाज़ों से मुक्त हो कर, खामोश। दोनों भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे...
''मुझे एक बात कहनी है, '' उसकी आवाज़ में झिझक थी।
''कहो, '' स्त्री ने सजल आँखों से उसे देखा।
''डरता हूँ,'' पुरुष ने कहा।
''डरो मत। हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो,'' स्त्री ने कहा।
''तुम बहुत याद आती रही,'' पुरुष बोला।
''तुम भी,'' स्त्री ने कहा।
''मैं तुम्हें अब भी प्रेम करता हूँ।''
''मैं भी.'' स्त्री ने कहा।
दोनों की आँखें कुछ ज़्यादा ही सजल हो गई थीं। दोनों की आवाज़ जज़्बाती और चेहरे मासूम।
''क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?'' पुरुष ने पूछा।
''कौन-सा मोड़?''
''हम फिर से साथ-साथ रहने लगें... एक साथ... पति-पत्नी बन कर... बहुत अच्छे दोस्त बन कर।''
''ये पेपर?'' स्त्री ने पूछा।
''फाड़ देते हैं।'' पुरुष ने कहा औऱ अपने हाथ से तलाक के काग़ज़ात फाड़ दिए। फिर स्त्री ने भी वही किया। दोनों उठ खड़े हुए। एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुस्कराए। दोनों पक्षों के रिश्तेदार हैरान-परेशान थे। दोनों पति-पत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चले गए। घर जो पति-पत्नी का था!!
''तभी आज तुम्हारी साँस उखड़ी-उखड़ी-सी है,'' स्त्री ने हमदर्द लहजे में कहा।
''हाँ, कुछ इस वजह से और कुछ...'' पुरुष कहते-कहते रुक गया।
''कुछ... कुछ तनाव के कारण,'' स्त्री ने बात पूरी की।
पुरुष कुछ सोचता रहा। फिर बोला, ''तुम्हें चार लाख रुपए देने हैं और छह हज़ार रुपए महीना भी।''
''हाँ... फिर?'' स्त्री ने पूछा।
''वसुंधरा में फ्लैट है... तुम्हें तो पता है। मैं उसे तुम्हारे नाम कर देता हूँ। चार लाख रुपए फिलहाल मेरे पास नहीं है।'' पुरुष ने अपने मन की बात कही।
''वसुंधरा वाले फ्लैट की कीमत तो बीस लाख रुपए होगी। मुझे सिर्फ चार लाख रुपए चाहिए।'' स्त्री ने स्पष्ट किया।
''बिटिया बड़ी होगी... सौ खर्च होते हैं।'' पुरुष ने कहा।
''वो तो तुम छह हज़ार रुपए महीना मुझे देते रहोगे,'' स्त्री बोली।
''हाँ, ज़रूर दूँगा।''
''चार लाख अगर तुम्हारे पास नहीं है तो मुझे मत देना,'' स्त्री ने कहा। उसके स्वर में पुराने संबंधों की गर्द थी।
पुरुष उसका चेहरा देखता रहा। कितनी सह्रदय और कितनी सुंदर लग रही थी सामने बैठी स्त्री जो कभी उसकी पत्नी हुआ करती थी।
स्त्री पुरुष को देख रही थी और सोच रही थी, ''कितना सरल स्वभाव का है यह पुरुष, जो कभी उसका पति हुआ करता था। कितना प्यार करता था उससे... एक बार हरिद्वार में जब वह गंगा में स्नान कर रही थी तो उसके हाथ से जंजीर छूट गई। फिर पागलों की तरह वह बचाने चला आया था उसे। खुद तैरना नहीं आता था लाट साहब को और मुझे बचाने की कोशिशें करता रहा था... कितना अच्छा है... मैं ही खोट निकालती रही...''
पुरुष एकटक स्त्री को देख रहा था और सोच रहा था, ''कितना ध्यान रखती थी। स्टीम के लिए पानी उबाल कर जग में डाल देती। उसके लिए हमेशा इनहेलर खरीद कर लाती। सेरेटाइड आक्यूहेलर बहुत महँगा था। हर महीने कंजूसी करती, पैसे बचाती, और आक्यूहेलर खरीद लाती। दूसरों की बीमारी की कौन परवाह करता है? ये करती थी परवाह! कभी जाहिर भी नहीं होने देती थी। कितनी संवेदना थी इसमें। मैं अपनी मर्दानगी के नशे में रहा। काश, जो मैं इसके जज़्बे को समझ पाता।''
दोनों चुप थे। बेहद चुप। दुनिया भर की आवाज़ों से मुक्त हो कर, खामोश। दोनों भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे...
''मुझे एक बात कहनी है, '' उसकी आवाज़ में झिझक थी।
''कहो, '' स्त्री ने सजल आँखों से उसे देखा।
''डरता हूँ,'' पुरुष ने कहा।
''डरो मत। हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो,'' स्त्री ने कहा।
''तुम बहुत याद आती रही,'' पुरुष बोला।
''तुम भी,'' स्त्री ने कहा।
''मैं तुम्हें अब भी प्रेम करता हूँ।''
''मैं भी.'' स्त्री ने कहा।
दोनों की आँखें कुछ ज़्यादा ही सजल हो गई थीं। दोनों की आवाज़ जज़्बाती और चेहरे मासूम।
''क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?'' पुरुष ने पूछा।
''कौन-सा मोड़?''
''हम फिर से साथ-साथ रहने लगें... एक साथ... पति-पत्नी बन कर... बहुत अच्छे दोस्त बन कर।''
''ये पेपर?'' स्त्री ने पूछा।
''फाड़ देते हैं।'' पुरुष ने कहा औऱ अपने हाथ से तलाक के काग़ज़ात फाड़ दिए। फिर स्त्री ने भी वही किया। दोनों उठ खड़े हुए। एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुस्कराए। दोनों पक्षों के रिश्तेदार हैरान-परेशान थे। दोनों पति-पत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चले गए। घर जो पति-पत्नी का था!!
भावार्थ :
भाई लोगो वकील कुछ नही करता, किसी की वकालत करना उसका पेशा है, उसकी रोजी रोटी है। तलाक के मुकदमो में असली हाथ परिवारजनो व् रिश्तेदारो का ही होता है। इसलिए सभी पति पत्नियो से निवेदन है सब मिलजुल कर आपसी समझ से प्यार से रहे,
हमारी रोटी की व्यवस्था प्रभु कही और करेगा।
........एक वकील
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