सामाजिक हिन्दी समाचार पत्र व पत्रिकाओ सबसे पहले उद्देश्य सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक हितों का समर्थन करना। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार जनता में
जागरूकता पैदा करना l पत्र-पत्रिकाएँ मानव समाज की दिशा-निर्देशिका मानी जाती हैं।
समाज के भीतर घटती घटनाओं से लेकर परिवेश की समझ उत्पन्न करने का कार्य पत्रकारिता
का प्रथम व महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य है। राजनीतिक-सामाजिकचिंतन की समझ पैदा करने के
साथ विचार की सामर्थ्य पत्रकारिता के माध्यम से ही उत्पन्न होती है। पत्रकारिता ने
युगों से अपने इस दायित्व का निर्वाह किया तथा दायित्व-निर्वहन की समस्त कसौटियों
को पूर्ण करते हुए समय-समय पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की। यह अध्ययन करना
अपने-आप में अत्यंत रोचक है कि पत्रकारिता की यह यात्रा कब और कैसे आरंभ हुई और
किन पड़ावों से गुजरकर राष्ट्रीयता के मिशन से व्यावसायिकता तक की यात्रा को उसने
संपन्न किया।
रैगर दर्पण पाक्षिक
पत्रिका का मूल उद्देश्य सदैव समाज के आमजन की जागृति और आमजन तक विचारों का सही संप्रेषण करना रहा है। पत्रिका का पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं, विचारों को
समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य समाज के आमजन में वांछनीय भावनाओं को जागृत करना है। तीसरा उद्देश्य
सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है। रैगर दर्पण पाक्षिक पत्रिका ने इन उद्देश्यों को अपनाते हुए आरंभ से ही
समाज के हित के लिए सामाजिक विचारो को जागृत करने का कार्य किया। इसके अलावा सामाजिक कुरीतियों और दुष्प्रभावों का परिणाम दर्शाना, स्त्रियों की
दीन-हीन दशा में सुधार और स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देना पत्रिका के प्रमुख उद्देश्य रहे है। पत्रिका के माध्यम से सामान्य जन की
समस्याओं को भी प्रभावकारी ढंग से जनमानस और शासन के सामने रखा जा सका है । इससे समाज
में व्यक्ति स्वातंत्र्य की चेतना पैदा हुई । और यह पत्रिका समाज में दर्पण का कार्य कर रही है
इसलिए इस पत्रिका का नामकरण ‘रैगर दर्पण’ किये जाने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।
आजादी से पूर्व का युग राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय चेतना की अनुभूति के विकास का युग था। इस युग का मिशन
और जीवनका उद्देश्य एक ही था : स्वाधीनता की चाह और प्राप्ति का प्रयास। इस प्रयास के तहत् ही
हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का आरंभ हुआ। इस संदर्भ में इस तथ्य को भी ध्यान
में रखना होगा कि हिंदी क्षेत्रों के बाहर भी विशेषकर हिंदीतर भाषी क्षेत्रों में
भाषाको राष्ट्रीय अस्मिता का वाहक मानकर सभी पत्रकारों ने हिंदी को ही अपनी ‘भाषा’ के रूप में
चुना और हिंदी भाषा के पत्र-पत्रिकाओं के संवर्धन में अपना योगदान दिया।
इस युग की पत्रकारिता के उद्देश्य बहुआयामी
थे। एक ओर राष्ट्रीयता की चेतना के साथ-साथ राजनीति की कलई खोलना तो दूसरी ओर सामाजिक चेतना को जागृत करना, सामाजिक कुरीतियों और दुष्प्रभावों का
परिणाम दर्शाना, स्त्रियों की दीन-हीन दशा में सुधार और स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा
देना पत्रकारों के प्रमुख उद्देश्य थे।
समाचार-पत्रों के लिए सबसे अधिक संकट की
घड़ी आपात्काल की थी जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन किया गया और सृजन पर रोक
लगा दी गई। यह पत्रकारों के लिए अंधेरी सुरंग में से गुज़रने जैसा कठोर यातनादायक
अनुभव था। धीरे-धीरे पत्रों पर भी व्यावसायिकता हावीहोने लगी। पत्रों को स्थापित
होने के लिए अर्थ की आवश्यकता हुई और अर्थ की सत्ता उद्योगपतियों के हाथों में
होने के कारण इनके द्वारा ही पत्रों को प्रश्रय प्राप्त हुआ। ऐसे में उद्योगपतियों
के हितों को ध्यान में रखना पत्रों का कर्त्तव्य हो गया। पूंजीपतियों के हाथ में
होने वाले पत्रों में बौद्धिकता का स्तर गिरने लगा और वह मुक्तिबोध के शब्दों में : ‘बौद्धिक वर्ग है क्रीतदास’ बन कर रह गया। अर्जुन तिवारी अपनी पुस्तक ‘हिंदी पत्रकारिता का
वृहद इतिहास’ में बालेश्वर अग्रवाल के शब्दों को उद्धृत करते हैं, उनके ये वाक्य
आज की व्यावसायिकता को सही रूप में व्यक्त करने में समर्थ हैं : यह बात बिल्कुल सही है कि अब पत्रकारिता स्पष्टतः एक व्यापार बन
गई है जो पाठकों को सही जानकारी देने तथा जनता की आवाश बनने के बजाय आख्रथक
लाभ-हानि को ज्यादा महत्त्व देती है। जिस तरह दूसरे व्यापारों में लागत और लाभांश
का महत्त्व और हिसाब होता है। उसी तरह पत्रकारिता में भी होने लगा है जिससे यह
स्वाभाविक है कि अलग-अलग स्तरों के दबाव से बहुत से समझौते करने पड़ते हैं जो
प्रायः पाठक को सही खोजपूर्ण जानकारी देने के उद्देश्य को पूरा करने नहीं देते।
इसके बावजूद पत्र-पत्रिकाएँ आज भी किसी सीमा तक अपने दायित्व
को पूर्ण कर रही हैं। आज मुख्य रूप से पत्र-पत्रिकाएँ तीन कार्यों को निभा रही हैं :
1. साहित्यिक अभिरुचि का विकास
2. राजनीतिक सूचनाओं में अभिवृद्धि
3. सांस्कृतिक एवं मनोरजंक सूचनाएँ
इसके अतिरिक्त खेल, शिक्षा और कैरियर संबंधी दिशाएँ
सुझाने का कार्य भी पत्रों द्वारा किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त पत्रों द्वारा ‘अतिरिक्तांक’ या ‘विशेषांक’ भी निकाले जाते हैं जिनमें :
साहित्य, संस्कृति, ज्ञान, विज्ञान, खेल, कृषि, जनसंख्या, समसामयिकी आदि विषयों पर पूर्ण
जानकारी प्राप्त होती है।
पत्रिकाओं के माध्यम से सामान्य जन की समस्याओं को भी
प्रभावकारी ढंग से जनमानस और शासन के सामने रखा जा सका। इससे समाज में व्यक्ति
स्वातंत्र्य की चेतना पैदा हुई । पत्र-पत्रिकाओं को भी समाज का दर्पण कहा
जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जैसा भी प्राणिमात्र का अंत: और बाह्य जगत चित्रित
होता है, वहीं पत्र-पत्रिकाओं में समाज एवं जीवन का प्रतिबिम्ब अंकित
होता है। समाज में व्याप्त अशिक्षा, नारी शोषण, बाल विवाह, सतीप्रथा आदि विषयों
को भी स्थान दिया जाता था। इस समय समाज सुधार और जागरूकता फैलाना पत्र-पत्रिकाओं
का प्रमुख उद्देश्य माना जाता था, जिसमें रैगर दर्पण ने महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई। कैलाश बोकोलिया द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं ने हिंदी
की पत्रकारिता को नई जागृति से जोड़ा ही, उसे राष्ट्रीय दायित्वों के प्रति भी सजग किया।
इसमें राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक और वैज्ञानिक विषयों को प्रकाशित किया
जाता था। त्र-पत्रिकाओं ने सामाजिक बदलाव, स्वाधीनता, सांस्कृतिक
पुनर्जागरण जैसे महान और व्यापक उद्देश्य को निभाया है।
प्रारम्भिक दौर की
पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी की कविताएं, निबंध, आलोचना विशेष रूप से प्रकाशित हुई है, जिनका मूल उद्देश्य
साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से सामाजिक जिम्मेदारियाँ निभाना था। इस
विकास में भाषा के प्रति जागरूक पत्रकारों का अपना अपना योगदान हिंदी को मिलता रहा
है।
पत्रकारिता का यह सौभाग्य रहा कि समय और समाज के प्रति जागरूक
पत्रकारों ने निश्चित लक्ष्य के लिए इससे अपने को जोड़ा। वे लक्ष्य थे राष्ट्रीयता, सांस्कृतिक उत्थान और लोकजागरण। तब पत्रकारिता एक मिशन थी, राष्ट्रीय महत्व के उद्देश्य पत्रकारिता की कसौटी थे और पत्रकार एक निडर
व्यक्तित्व लेकर खुद भी आगे बढ़ता था और दूसरों को प्रेरित करता था।
पत्रकारिता के विकासक्रम में कुछ पत्रकार प्रकाशस्तंभ बने जिन्होंने
अपने समय में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और अनेक युवकों को लक्ष्यवेधी पत्रकारिता
के लिए तैयार किया। वास्तव में वह पूरा शुरूआती समय हिंदी पत्रकारिता का स्वर्णयुग
कहा जा सकता है।
पत्रकारिता सृजनात्मकता को साथ लेकर चलती है। सृजन के अभाव में
लोकप्रिय प्रयुक्ति निर्मित नहीं हो सकती।
समाज का इतिहास की
जानकारी उपलब्ध करना जैसे :-
उत्पत्ति वंश गोत्र
राजवंश तथा उनके द्वारा किये गए विशेष कार्यो समाज की धरोहर समाज के प्रसिद्ध
तीर्थ स्थानो एवं राजा भोज द्वारा किआ गए विशेस कार्यो कुलदेवी का मंदिर भोजशाला
माण्डव भोपाल झील भोजपुर एवं शिव मंदिरो की जानकारी एकत्र करना |
देश विदेश में रह रहे
समाज के परिवारो की वंशावली तैयार करना |
सामाजिक सम्मेलनों का
आयोजन का आयोजन करना |
सभी सामाजिक संगठनो की
जानकारी एकत्र करना |
समाज और देश के लिए कार्य
करने वाले व्यक्तिओ की जानकारी एकत्र करना |
प्रतिभावान छात्र
/छात्रों और समाज के लिए विशेष कार्य करने वाले व्यक्तिओ को पुरस्कृत करना |
सामाजिक संगठनो द्वारा
किये जाने वाले कार्यक्रमों की जानकारी समाज के सभी परिवारो तक पहुँचना|
समाज के परिवारो के लिए
शिक्षा /नौकरी /स्वरोजगार एवं विषेश बिमारी के इलाज सहयोग करना |
समाज में विवाह योग्य
रिश्तो की जानकारों उपलब्ध करना |
सामाजिक समाचार पत्र
/पत्रिकाओ को सभी परिवार तक पंहुचना |
उच्चा शिक्षा के लिए
सहयोग करना जैसे :- निःशुल्क शिक्षा ,शिक्षा लोन आदि |
वाघदेवी की मूर्ति देश
लाने के लिए संघर्ष में सहयोग करना आदि |
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