Wednesday, February 17, 2016

NEWS

जब दिल्ली के पटियाला कोर्ट में पत्रकारों की पिटाई की ख़बर आई तो मेरी मां ने हैरत और अफसोस जताते हुए कहा कि ये तो बहुत बुरा हुआ अब तो इस पर और बवाल होगा।
मैंने कहा- ना अम्मा, अभी देखना घंटे-दो घंटे में यह ख़बर नीचे उतार दी जाएगी।
मां ने कहा क्या मतलब!
मैंने मां को समझाया दरअसल अभी ताज़ा-ताज़ा पत्रकार पिटे हैं, तो बेचारे इतना बोल रहे हैं। कोर्ट परिसर से सीधे इनपुट-आउटपुट में खबर पहुंची होगी, अपने पत्रकार पिटे हैं इसलिए तुरंत डेस्क ने ही फैसला ले लिया होगा कि इसे चलाओ। अब थोड़ी देर में “संपादक कम प्रबंधक” और मालिक सक्रिय हो जाएंगे। कहेंगे अरे इससे तो ख़बर ही बदल जाएगी, एजेंडा ही पलट जाएगा। ये तो बीजेपी के खिलाफ चला जाएगा। “अपनी सरकार” को ही नुकसान हो जाएगा। रोको इसे, नीचे उतारो, पीछे करो। अपने संवाददाता को समझाओ, तूल न दें। कुछेक पिटे पत्रकारों का भी कुछ देर बाद हिन्दुत्व जाग जाएगा और वे भी सोचेंगे या उन्हें समझाया जाएगा कि अरे इसे तूल देने से देशभक्त बनाम देशद्रोह की पूरी बहस ही पटरी से उतर जाएगी। सारा मामला बिगड़ जाएगा। बहुत से पीड़ित पत्रकार ना चाहकर भी संपादक-मालिक के डर और नौकरी की मजबूरी में इस मामले में या तो चुप हो जाएंगे या कम बोलेंगे
और वही हुआ। एक-दो चैनलों को छोड़कर जो “राष्ट्रवादी” होने की होड़ में नहीं हैं, उनके अलावा ज्यादातर सभी ने कुछ ही देर बाद इसे डाउन प्ले कर दिया। सॉफ्ट कर दिया। अब ख़बर वकीलों की गुंडई और उनके द्वारा छात्रों, शिक्षकों और पत्रकारों की पिटाई की नहीं थी, बल्कि हाथापाई और टकराव की थी।
हम सब जानते हैं कि हाथापाई तब मानी जाती है जब दोनों तरफ से हो, लेकिन यहां तो एक ही पक्ष पीट रहा था और दूसरा पक्ष पिट रहा था। कोर्ट के भीतर और परिसर में काले कोट पहने वकीलों ने पीटा और कोर्ट के बाहर बीजेपी विधायक ने एक सीपीआई कार्यकर्ता को पीट डाला और कह दिया कि पाकिस्तान जिन्दाबाद बोल रहा था। लेकिन उस कार्यकर्ता को भी रात तक किसी चैनल ने अपने स्टूडियो में बैठाना तो दूर उसका बयान तक नहीं दिखाया कि भइया उस समय क्या हुआ था, सच्चाई क्या है। तुम भाजपा मुर्दाबाद बोल रहे थे या भारत मुर्दाबाद। यह तक पता नहीं चला कि पिटाई के बाद जब पुलिस उस कार्यकर्ता को अपने साथ ले गई तो उसे छोड़ा भी या नहीं।
आप मेरी बात को इसी से तौल सकते हैं कि अपने पत्रकारों की पिटाई पर सभी चैनलों को जिस तरह आक्रामक होना चाहिए था, कोई नहीं हुआ।
ये तो छोड़िए पत्रकार संगठनों ने कल की घटना के विरोध में मार्च का ऐलान किया। लेकिन किसी चैनल में एक हेडलाइन तो छोड़िए खबर तक नहीं थी। यानी ये चैनल अपने उन पत्रकारों के साथ तक तो खड़े नहीं, जिनपर खुलेआम हमला हुआ, जिनके साथ राष्ट्रवाद के नाम पर मारपीट, छेड़छाड़ हुई तो ये औरों के साथ क्या खड़े होंगे।
इसलिए मेरी तो अपील है कि मारपीट के शिकार पत्रकार साथी और अन्य पत्रकार साथी, जो भी इसे ग़लत समझते हों इसके खिलाफ अपने-अपने संस्थान में भी आवाज़ उठाए। वरना चैनल तो चलता रहेगा, लेकिन जो थोड़ी-बहुत समझदारी और पत्रकारिता बची है वह भी ख़त्म हो जाएगी/ कर दी जाएगी।



कल हमारे वरिष्ठ पत्रकार साथी श्री भजन जिज्ञासु ने बालिकाओं की सुरक्षा को लेकर एक ब्लाक लिखा था जिस पर निंबाड़ा के sdm श्री हेमेंद्र नागर ने तत्काल एक्शन ले कर जो कार्रवाई शुरु की वह स्वागत योग्य हैं************$************$**********/*************£$************#************** भजन जी बधाई के पात्र हैं.............
बालिकाओं की सुरक्षा को लेकर उठे कदम.........
एसडीएम ने लिया क्विक एक्शन......
ब्लॉग-14
(भजन जिज्ञासु)
बालिकाओं में सुरक्षा की भावना व आत्मविश्वास जगाने के लिये निम्बाहेड़ा एसडीएम हेमेन्द्र नागर ने पहल करने में जरा भी देर नहीं लगाई।
बालिकाओं को है सुरक्षा की दरकार........... हेडिंग से लिखे गये ब्लॉग को पढ़ कर निम्बाहेड़ा के उपखंड अधिकारी ने तुरन्त निर्णय लेते हुए कहा कि बालिका एवं बालक, सीनियर सेकेन्डरी स्कूल, महाविद्यालय परिसर व एसडीएम कार्यालय पर तुरन्त प्रभाव से इन 4 स्थानो पर शिकायत पेटी लगाई जाएगी। हर दूसरे तीसरे दिन जिम्मेदार सरकारी आदमी पेटियां खोलेगा, शिकायत के आधार पर प्रभावी कार्यवाही की जाएगी।
पाठकों को बता दें कि 14 फरवरी को वेलेन्टाईन-डे के दिन निम्बाहेड़ा कोतवाली थाना पर यहां के एक स्कूल में पढऩे वाली ग्रामीण क्षैत्र की बालिका ने एक 32 वर्षीय मजनू के खिलाफ छेड़छाड़ की शिकायत करते हुए कार्यवाही की मांग की थी। इस मामले को लेकर मेंने ब्लाग लिखा था, उसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि किस प्रकार एक अभिनव व प्रभावी योजना बनाकर प्रतापगढ़ जिले के एसपी कालूराम रावत ने जिले के 65 बालिका स्कूलों व सहशिक्षा विद्यालयों में शिकायत पेटियां रखवाई, नतीजे में स्कूूलों में पढऩे वाली बालिकाओं से छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी आयी है, उनमें आत्मविश्वास का संचार हुआ तथा असामाजिक तत्वों, मजनूओं व रोमियों पर अंकुश लगा।
उपरोक्त ब्लाग लिखने के बाद मुझे लगा था कि हमारे जिले की पुलिस भी बालिकाओं की इस समस्या से निपटने के लिये कुछ न कुछ बेहतर निर्णय लेकर कोई ठोस कार्यवाही करेगी, उम्मीद भी है कि शीघ्र ही कोई सकारात्मक निर्णय भी होगा, बावजुद इसके युवा व उर्जावान उपखंड अधिकारी हेमेन्द्र नागर ने अपनी संवेदनशीलता प्रतिपादित करते हुए शिकायत पेटियां लगवाने का निर्णय लेकर क्षैत्र की बालिकाओं में आत्मविश्वास जगाने व उनकी समस्याओं के सामाधान की कड़ी में पहला कदम आगे बढ़ा दिया है।
date:- 16 feb 2016]

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