Saturday, August 20, 2016

दोहे-2

घर-घर का ये लफड़ा है|
सास-बहू....में झगड़ा है||
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नर के सिर...पे पगड़ी है-
नारी के सिर...पगड़ा है||
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फैशन के.....चौराहों पर-
छोटा होता....कपड़ा है||
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चैनल-चैनल...पर जो भी-
शिक्षा है या...कचड़ा है||
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चोटें स्वयं.......गवाही हैं-
किसने किसको रगड़ा है||
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कैसे-कैसे.......जाल बुने-
नेता है या....मकड़ा है??
मुख में राम....बगल में छूरी! 
वह देखो अद्भुत....मजबूरी!!
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रहा सहा.......ईमान खा गए-
चार घूंट ...... पीकर अंगूरी!!
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क्या बढ़िया मीडिया-प्रबंधन-
गंधी को.....कहता कस्तूरी!!
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ऊपर चौकस....तांमझांम है-
नीचे-नीचे.........खानापूरी??
क्या लिखना था क्या लिखता है!
यह अखबारी.......नैतिकता है??
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ऐंकर अलग..........कमेंट्री करते-
धृष्टराष्ट्र को.......कम दिखता है!!
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वहां नकल का ......अर्थ न कोई-
मौलिकता तो...... मौलिकता है!!
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उस मंदिर में .........रब मत ढूंढ़ो-
जिसमें रहती .......भौतिकता है!!
वे हर जगह,विकास की, बात कर रहे हैं,
कौन सी खुराफ़ात कर रहे?
योग को निर्यात कर रहे हैं,
फादर डे को आयात कर रहे हैं,
वे अमेरिका में बैठकर,फादर डे माना रहे हैं,
एकांतवासी माता-पिता, पूत के पलायन पर,
आंसू बहा रहे हैं,
प्रेम का अहसास गर्म सांस़ों से नहीं होता,
प्रेम निभाने की गर्म जोशी से छलकता है।

जो आखों से बहता नहींछलकता है ll

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