कभी कोई अच्छा काम करता है, तो कुछ बुद्धिजीवी अपनी बौद्धिकता का प्रमाण देते हुए उसके कार्य की सराहना नहीं करते बल्कि उन कारणों को ढूँढने की कोशिश करते हैं कि इससे उसका क्या क्या फ़ायदा हो रहा है। कुछ नहीं मिलता तो यही कह देते हैं वह ये सब अपना नाम अपनी ख्याति बढ़ाने के लिए कर रहा है। और कुछ नहीं तो उनसे भी महान लोगों को उदहारण के तौर पर ले आते हैं और कहते हैं कि ये तो इनसे आगे कुछ नहीं। कुछ बुद्धिजीवी और अधिक समस्याएँ ले आते हैं और गिनवाना चालू करते हैं कि यहाँ ये ये कमी है, इसे करना चाहिए था, ये क्यों नहीं किया, ये ही क्यों किया?
अब इस तरह के लोगों को क्या कहूँ? खुद तो बोलने के अलावा कुछ करते नहीं, जो करते हैं उसे चैन से करने नहीं देते। या शायद इस तरह के लोगों में ईर्ष्या की भावना होती हो, कि वे नहीं कर पाए, तो वो कैसे कर सकता है? कारण जो भी हो, मुझे बहुत खीझ लगती है जब कोई किसी अच्छे काम के पीछे उसके स्वार्थ को ढूँढने की कोशिश करता है।
भाई, किसी द्वारा किये जा रहे काम से अगर बहुत सारे लोगों को लाभ हो रहा है, अप्रत्यक्ष रूप से भी उन्हें भविष्य में इससे हानि की सम्भावना नहीं है, फिर इस काम को करने वाला भी अगर लाभ कमा रहा है, तो इससे हमें क्या? हम उसकी प्रशंशा करने की बजाय उसकी आलोचना सिर्फ इसलिए करें क्यूँकी उसे भी इससे लाभ मिल रहा है? या उसकी आलोचना इसलिए करें क्यूँकी आप किसी और को पसन्द करते हैं? या उसकी आलोचना इसलिए करें, कि वो 100 समस्याओं में से किसी विशेष समस्या पर ही क्यूँ काम कर रहा है? भाई वो जिस भी समस्या पर काम करता, आप उसपर भी यही कहते यही काम क्यूँ कर रहा है? इससे कितना कमाया? आपको तो बस कहना है।
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'वाद' ही समाज में गड़बड़ी उत्पन्न करता है और सम्पूर्ण एकता से वंचित रखता है। मनुवाद का प्रभाव तो आदिकाल से अबतक दिखाई पड़ ही रहा है। अम्बेडकर ने इसी वाद के खिलाफ़ आवाज़ उठाई और आज उसका प्रभाव नज़र आ रहा है। भले समाज पूरी तरह से न सुधरा हो, मगर मनुवादी विचारधारा में पिछले पचास सालों के मुकाबले में आज काफ़ी हद तक गिरावट आई ही है। धीरे धीरे आगे भी आती जायेगी। प्रभाव एकदम से तो ख़तम नहीं हो सकता क्योंकि हज़ारों वर्षों तक यह साथ रहा है और लोगों के दिलों दिमाग में अपनी पैठ बना चुका है। मगर इस वाद के विरुद्ध जो भी आज हो पा रहा है वह सब अम्बेडकर के प्रयासों से ही संभव हुआ है। और इस कार्य के लिए हम बाबा साहेब अम्बेडकर के बहुत आभारी हैं।
मगर, आज बहुतायत में दिखाई पड़ रहा है कि कुछ लोग मनुवाद के विरोध में अम्बेडकरवाद को जन्म दे रहे हैं। फिर से वही वाद! आज नहीं तो आगे चलकर फिर से यही वाद मनुवाद की तरह कट्टरता का रूप ले लेगा। (आज भी कम नहीं ले रखा है) और फिर से समाज दो वर्गों में बँट जाएगा। ऐसे में एकता कैसे आएगी? समानता कैसे आएगी? आप अम्बेडकर के विचारों से प्रभावित हों, उनके कार्यों से प्रभावित हों, उनके विचारों को प्रचारित करने का काम करें, मगर अम्बेडकर से प्रभावित क्यूँ होते हैं? व्यक्तिपूजा में क्यूँ शामिल होते हैं? आखिर वो इसी व्यक्तिपूजा के विरोध में ही तो जन्मे थे, फिर आप उन्हीं की पूजा करके क्या उनके साथ न्याय कर रहे हैं? उनका सन्देश समानता का था, समाज में जो नीच समझे जाते थे, उन्हें समाज में बराबरी का दर्ज देनें का था, उनसे ऊपर उठने का नहीं। आप अम्बेडकर की फ़ोटो लगाकर, दूसरों को, उनकी विचारधारा को गाली देते नज़र आते हैं, इससे आप अम्बेडकर को सम्मान दे रहे हैं या उन्हें अपमानित कर रहे हैं? आपने अम्बेडकर की विचारधारा को स्वीकार किया है, इसलिए आप उनकी विचारधारा को फैलायें, किसी अन्य विचारधारा का सम्मानित शब्दों के साथ उनकी कमियों का विरोध करें। मगर गालियाँ देकर, गलत शब्दों कइ साथ किसी विचारधारा का विरोध करने से वह विरोध वाकई समाज में बदलाव ला सकता है, मुझे ऐसा कतई नहीं लगता।
माना कि उनके वाद ने यह सब पहले शुरू किया था, मगर क्या अब आप इसका बदला लेंगे? फ़िर उनके वाद और आपके वाद में अंतर ही क्या रहा? और जब कोई अंतर ही नहीं, फिर विरोध करके उनके वाद को बंद करके अपने वाद को पैदा करने से क्या मिलेगा? इस तरह समाज में एकता तो नहीं आने वाली।
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