बलात् कर्म हुआ,
एक धीर चरित्र नारी से,
जतन सहस्त्र किये उसने ,
पर बच ना सकी अत्याचारी से,
जिस दिन यह काला काम हुआ ,
पुरूष कुल पूरा बदनाम हुआ
जिस पौरूष की महिमा, इतिहास ने गायी थी सदा अमर
उसी पौरूष ने आज समझो, खोदी थी अपनी ही कबर
अब कोई तुम्हारें बाजुओं की, यश गाथा नहीं गा पाएगा
ऐसी यशगाथा गाने से, सर अतीत का भी झुक जाएगा
जिस नारी रक्षा का जिम्मा, लिया था हमने हाथ में
उस नारी को बेच दिया हमने, काली अंधेरी रात में
अदालती तौर पर न्याय , मिल गया था उस नारी को
उम्रकैद की सजा भुगतनी थी, अब अत्याचारी को
अपराध बोध से दिल डोला ,
आँखों में आँसू लिये बोला,
“हाय! मैनें कैसा अत्याचार किया ,
कुल को अपने शर्मसार किया,
क्षणिक भावना के प्रवाह में, मैनें बेची अपनी खुद्दारी थी
खुद तो उम्रकैद पायी, उसकी भी अस्मिता उजाड़ी थी
न्याय मिला तो क्या हुआ ,
जीवन उसका तबाह हुआ,
जिस वक्त मदद समाज की उसने ज्यादा चाही थी ,
उसी समाज ने की उसे अब मनाही थी,
उस अत्याचारी पुरूष ने केवल, इक बार उससे बलात् किया
पर विष व्यंग्य के बाणों से, समाज ने सदा बलात् किया
“दोष मेरा कोई बतला दो ,
अपराध मुझे कोई समझा दो,
मैनें तो उसका प्रतिकार किया ,
जब उसने अत्याचार किया,
मैं अबला यथा सामथ्र्य, बचाव अपना कर पायी थी
पर उस भेडि़ये के चंगुल से, बच फिर भी ना पायी थी
बीच सड़क में जब, मैं घायल पड़ी थी लाचार
तब मैनें की थी पथिकों से, एक मदद की पुकार
मैं दर्द से हुँ मर रही ,
विनती सभी से कर रही,
पर वे ना कोई इंसान थे ,
लगते सारे पाषाण थे,
आज पड़ी मैं यहाँ पर, कल कोई होगा तुम्हारा अपना
अब सोच समझ कर करों, तुम मेरे दर्द की कल्पना
आज मुझे बचा लो तुम, इलाज मेरा तुम करवा दो
समय रहते मुझे कोई, अस्पताल तो पहुँचा दो
घंटो पड़ी रही इस आस में ,
आएगा कोई बचाव में,
टूट गया मेरा विश्वास ,
तब मैनंे ली एक अंतिम श्वास,
जो अब तक समाज की बेटी थी ,
वो मृत होकर अब लेटी थी,
मैनें पायी मौत दर्दनाक, नहीं अपने कर्मो से
जिंदगी की जंग, मैं हारी थी बेशर्मों से
वों अत्याचारी केवल ना, सजा का हकदार था
यह समाज भी मेरी मौत का, बराबर हिस्सेदार था
मैं घायल पड़ी राह में, दी भगवान की मैने दुहाई थी
पर मेरी मदद की उन लोगो ने, जहमत नहीं उठाई थी
दूजे दिन उन्हीं लोगों ने, छिड़का नमक मेरे घावों पर
हाथ में मोमबत्ती लिये, वे निकल पड़े थें उन राहो पर।
----------------------------------------------
पैसे की दौड़ में अक्सर पीछे छूट जाते है अपने,
शोर से भरी दुनिया में अपनों को पुकारते चलो।
------------------------------------------
जिन जरूरतों कोे दबा कर तुम मालिक बन बैठे हो
उन्हीं जरूरतो को विरूद्ध तुम्हारें मै आवाज बनाउंगा
परों को काटने से कभी हौसलें नहीं झुका करते
गिरते हौसलों को फिर से मैं परवाज़ बनाउंगा
थमा था शोर जिंदगी का जिस राह जिस मोड़ पर
उसी शोर को दबे कदमों का विजयी आगाज बनाउंगा
टूट कर बिखरेगी जो वो माला मोतियों की होगी
बिखर के जो जुड़ेगा खुशियों का ऐसा समाज बनाउंगा
बिजलियां गिराने का हुनर फखत़ आसमां नहीं जानता “राम”
तख्ता पलट कर सके अपनी कलम से ऐसी गाज बरसाउंगा
--------------------------------------------------
१. विरह की इस शाम का एक खुबसूरत सवेरा हु
प्रेम की इस खान का एक सिरफिरा पहेरा हु
कलम के इस दीवाने के मुरीद होंगे लाखो मगर
मै कल भी सिर्फ तेरा था मैं आज भी सिर्फ तेरा हु।
२. दर्द न दर्द रहे गर हाथ में तेरा हाथ रहे
हर दिन सुहाना हो गर वक्त से ऊपर तेरा साथ रहे।
३. प्रेम के इस समंदर में एक तुम ही मेरी आस हो
ज़िन्दगी से हु दूर लेकिन तुम ही दिल के पास हो
तेरे हर इम्तिहान को सर आँखों पर रखते है
क्योकि तुम ही मेरी श्रद्धा हो तुम ही मेरा विश्वास हो।
४. रग रग में है जो बिखरी वो खुशबु तुम्हारी है
मैदान इ इश्क़ की बाज़ी इस दिल ने भी हारी है
मुझे यु छोड़ जा बेशक भले पर भूल ना पाओगी
तेरे हर शिकवे पर भारी ये मोहब्ब्त हमारी है।
------------------------------------------------------
जनता तुम जूते बरसाओ, मेरा भ्रष्ट नेता आया है........
भ्रष्टो तुम शर्म से मर जाओ, नाक तुमने कटाया है.......
----------------------------------------------------------
1. वो यु ही खुद को होशियार समझते है,
इज्जत क्या मिली परवरदिगार समझते है,
हैसियत उनकी क्या है वे खुद भी जानते है,
हम तो सिर्फ उनको चौकीदार समझते है.
2. यु डराकर कब तक चलोगे जनाब,
हिम्मत तो कभी देगी जवाब,
हम तो कोई दूसरी राह चुन लेंगे,
फिर पूरोगे कैसे तुम अपने ख्वाब.
-------------------------------------------
हे जीव रूप के शिरोमणि,
क्यों मानवता को कुचल रहा ?
क्यों गरल प्रवाह है उगल रहा,
हैं मानवता कर्तव्य तेरा,
क्यों मानवता को निगल रहा.
हे जीव रूप के शिरोमणि.................
नारी जाति का एहसान रहा है,
माँ भगिनी जीवन संगिनी
तीनो रूपों की महिमा अनगिनी
जब तक इसका मान रहा है
इश्वर भी मेहरबान रहा है,
इनके मान-सम्मान का सदियों के एहसान का
हैं रक्षा का कर्तव्य तुम्हारा ,
हे जीव रूप के शिरोमणि...................
सब एक शक्ति की संतान है,
वो भेदभाव से अनजान है,
तरुवर फल से सरोवर जल से
सब की क्षुधा मिटाता है ,
है भिन्न अगर हम यथार्थ में,
तो ये भेदभाव क्यों नहीं जताता है,
सन्देश सभी धर्मो का मानव सब समान है,
हे जीव रूप के शिरोमणि.......................
परोपकार ही जीवन का मुख्य धर्म पालन है,
सर्वश्रेष्ठ था, सर्वश्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ तभी रह पायेगा,
जो शिरोमणि परिभाषा को यथार्थ में निभा पायेगा,
सच्चे अर्थो में वो ही आदर्श मानव कहलायेगा,
हे जीव रूप के शिरोमणि..................
-------------------------------------------------------------
एक धीर चरित्र नारी से,
जतन सहस्त्र किये उसने ,
पर बच ना सकी अत्याचारी से,
जिस दिन यह काला काम हुआ ,
पुरूष कुल पूरा बदनाम हुआ
जिस पौरूष की महिमा, इतिहास ने गायी थी सदा अमर
उसी पौरूष ने आज समझो, खोदी थी अपनी ही कबर
अब कोई तुम्हारें बाजुओं की, यश गाथा नहीं गा पाएगा
ऐसी यशगाथा गाने से, सर अतीत का भी झुक जाएगा
जिस नारी रक्षा का जिम्मा, लिया था हमने हाथ में
उस नारी को बेच दिया हमने, काली अंधेरी रात में
अदालती तौर पर न्याय , मिल गया था उस नारी को
उम्रकैद की सजा भुगतनी थी, अब अत्याचारी को
अपराध बोध से दिल डोला ,
आँखों में आँसू लिये बोला,
“हाय! मैनें कैसा अत्याचार किया ,
कुल को अपने शर्मसार किया,
क्षणिक भावना के प्रवाह में, मैनें बेची अपनी खुद्दारी थी
खुद तो उम्रकैद पायी, उसकी भी अस्मिता उजाड़ी थी
न्याय मिला तो क्या हुआ ,
जीवन उसका तबाह हुआ,
जिस वक्त मदद समाज की उसने ज्यादा चाही थी ,
उसी समाज ने की उसे अब मनाही थी,
उस अत्याचारी पुरूष ने केवल, इक बार उससे बलात् किया
पर विष व्यंग्य के बाणों से, समाज ने सदा बलात् किया
“दोष मेरा कोई बतला दो ,
अपराध मुझे कोई समझा दो,
मैनें तो उसका प्रतिकार किया ,
जब उसने अत्याचार किया,
मैं अबला यथा सामथ्र्य, बचाव अपना कर पायी थी
पर उस भेडि़ये के चंगुल से, बच फिर भी ना पायी थी
बीच सड़क में जब, मैं घायल पड़ी थी लाचार
तब मैनें की थी पथिकों से, एक मदद की पुकार
मैं दर्द से हुँ मर रही ,
विनती सभी से कर रही,
पर वे ना कोई इंसान थे ,
लगते सारे पाषाण थे,
आज पड़ी मैं यहाँ पर, कल कोई होगा तुम्हारा अपना
अब सोच समझ कर करों, तुम मेरे दर्द की कल्पना
आज मुझे बचा लो तुम, इलाज मेरा तुम करवा दो
समय रहते मुझे कोई, अस्पताल तो पहुँचा दो
घंटो पड़ी रही इस आस में ,
आएगा कोई बचाव में,
टूट गया मेरा विश्वास ,
तब मैनंे ली एक अंतिम श्वास,
जो अब तक समाज की बेटी थी ,
वो मृत होकर अब लेटी थी,
मैनें पायी मौत दर्दनाक, नहीं अपने कर्मो से
जिंदगी की जंग, मैं हारी थी बेशर्मों से
वों अत्याचारी केवल ना, सजा का हकदार था
यह समाज भी मेरी मौत का, बराबर हिस्सेदार था
मैं घायल पड़ी राह में, दी भगवान की मैने दुहाई थी
पर मेरी मदद की उन लोगो ने, जहमत नहीं उठाई थी
दूजे दिन उन्हीं लोगों ने, छिड़का नमक मेरे घावों पर
हाथ में मोमबत्ती लिये, वे निकल पड़े थें उन राहो पर।
----------------------------------------------
नफरतों के कांटे प्रेम से काटते चलो,
छोटी है जिंदगी दिल खोल कर प्यार बाँटते चलों।
छोटी है जिंदगी दिल खोल कर प्यार बाँटते चलों।
आसमान में छाए रहेंगे सदा बादल श्वेत और श्याम,
दुःख के शूलों में से खुशियों के फूल छाँटते चलो।
दुःख के शूलों में से खुशियों के फूल छाँटते चलो।
अपनों से बैर ना रहे कभी जिंदगी में,
दूरियों की खाई को स्नेह से पाटते चलो।
दूरियों की खाई को स्नेह से पाटते चलो।
गुरूर से न जीता है किसी ने दुनिया का,े
अपनों को जीता कर खुद को हारते चलों।
अपनों को जीता कर खुद को हारते चलों।
शोर से भरी दुनिया में अपनों को पुकारते चलो।
हर मोड़ पर दोराहा होता है मन के संसार में,
तम को नकार कर धर्म को स्वीकारते चलो।
तम को नकार कर धर्म को स्वीकारते चलो।
बैठ कर रहने से मंजिले चल कर नहीं आएगी,
मेहनत के कर्मों से ख्वाबों को सँवारते चलों।
मेहनत के कर्मों से ख्वाबों को सँवारते चलों।
नफरतों के कांटे प्रेम से काटते चलो,
छोटी है जिंदगी दिल खोल कर प्यार बाँटते चलों।
छोटी है जिंदगी दिल खोल कर प्यार बाँटते चलों।
------------------------------------------
तुमने दिए कांटे उन्हें मैं फूलों का उन्हें ताज पहनाउंगा
उलाहने जो मिले हमे उसी से जीवन साज बनाउंगा
कहते थे लोग कि तुम कल तक भी यह न कर पाओगे
तुम खुद देखों जरा इसी रोज इसे मैं आज कर जाउंगाजिन जरूरतों कोे दबा कर तुम मालिक बन बैठे हो
उन्हीं जरूरतो को विरूद्ध तुम्हारें मै आवाज बनाउंगा
परों को काटने से कभी हौसलें नहीं झुका करते
गिरते हौसलों को फिर से मैं परवाज़ बनाउंगा
थमा था शोर जिंदगी का जिस राह जिस मोड़ पर
उसी शोर को दबे कदमों का विजयी आगाज बनाउंगा
टूट कर बिखरेगी जो वो माला मोतियों की होगी
बिखर के जो जुड़ेगा खुशियों का ऐसा समाज बनाउंगा
बिजलियां गिराने का हुनर फखत़ आसमां नहीं जानता “राम”
तख्ता पलट कर सके अपनी कलम से ऐसी गाज बरसाउंगा
--------------------------------------------------
१. विरह की इस शाम का एक खुबसूरत सवेरा हु
प्रेम की इस खान का एक सिरफिरा पहेरा हु
कलम के इस दीवाने के मुरीद होंगे लाखो मगर
मै कल भी सिर्फ तेरा था मैं आज भी सिर्फ तेरा हु।
२. दर्द न दर्द रहे गर हाथ में तेरा हाथ रहे
हर दिन सुहाना हो गर वक्त से ऊपर तेरा साथ रहे।
३. प्रेम के इस समंदर में एक तुम ही मेरी आस हो
ज़िन्दगी से हु दूर लेकिन तुम ही दिल के पास हो
तेरे हर इम्तिहान को सर आँखों पर रखते है
क्योकि तुम ही मेरी श्रद्धा हो तुम ही मेरा विश्वास हो।
४. रग रग में है जो बिखरी वो खुशबु तुम्हारी है
मैदान इ इश्क़ की बाज़ी इस दिल ने भी हारी है
मुझे यु छोड़ जा बेशक भले पर भूल ना पाओगी
तेरे हर शिकवे पर भारी ये मोहब्ब्त हमारी है।
------------------------------------------------------
जनता तुम जूते बरसाओ, मेरा भ्रष्ट नेता आया है........
भ्रष्टो तुम शर्म से मर जाओ, नाक तुमने कटाया है.......
ओ काले कोयले की कालिख लगा इस झूठे चेहरे पर,
लाओ एक जूते की माला सजाओ इनके कांधो पर,
सैर इन्हे गधे पर करवाओ, मेरा भ्रष्ट नेता आया है .....
लाओ एक जूते की माला सजाओ इनके कांधो पर,
सैर इन्हे गधे पर करवाओ, मेरा भ्रष्ट नेता आया है .....
बंधुओ बांध दो हर तरफ अब एक लोहे की चादर ,
बड़ा डरपोक नेता है चला जाये ना घबराकर ,
सैर इन्हे गांव में करवाओ मेरा भ्रष्ट नेता आया है .....
बड़ा डरपोक नेता है चला जाये ना घबराकर ,
सैर इन्हे गांव में करवाओ मेरा भ्रष्ट नेता आया है .....
सजायी है जवा दिलो ने अब यह माला जूतो की,
इन्हे मालूम था आएगी एक दिन रूत कपूतो की,
ढिंढोरा गांव में पिटवाओ मेरा भ्रष्ट नेता आया है ........
इन्हे मालूम था आएगी एक दिन रूत कपूतो की,
ढिंढोरा गांव में पिटवाओ मेरा भ्रष्ट नेता आया है ........
भ्रष्टो तुम शर्म से मर जाओ, नाक तुमने कटाया है......
----------------------------------------------------------
1. वो यु ही खुद को होशियार समझते है,
इज्जत क्या मिली परवरदिगार समझते है,
हैसियत उनकी क्या है वे खुद भी जानते है,
हम तो सिर्फ उनको चौकीदार समझते है.
2. यु डराकर कब तक चलोगे जनाब,
हिम्मत तो कभी देगी जवाब,
हम तो कोई दूसरी राह चुन लेंगे,
फिर पूरोगे कैसे तुम अपने ख्वाब.
-------------------------------------------
हे जीव रूप के शिरोमणि,
क्यों मानवता को कुचल रहा ?
क्यों गरल प्रवाह है उगल रहा,
हैं मानवता कर्तव्य तेरा,
क्यों मानवता को निगल रहा.
हे जीव रूप के शिरोमणि.................
नारी जाति का एहसान रहा है,
माँ भगिनी जीवन संगिनी
तीनो रूपों की महिमा अनगिनी
जब तक इसका मान रहा है
इश्वर भी मेहरबान रहा है,
इनके मान-सम्मान का सदियों के एहसान का
हैं रक्षा का कर्तव्य तुम्हारा ,
हे जीव रूप के शिरोमणि...................
सब एक शक्ति की संतान है,
वो भेदभाव से अनजान है,
तरुवर फल से सरोवर जल से
सब की क्षुधा मिटाता है ,
है भिन्न अगर हम यथार्थ में,
तो ये भेदभाव क्यों नहीं जताता है,
सन्देश सभी धर्मो का मानव सब समान है,
हे जीव रूप के शिरोमणि.......................
परोपकार ही जीवन का मुख्य धर्म पालन है,
सर्वश्रेष्ठ था, सर्वश्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ तभी रह पायेगा,
जो शिरोमणि परिभाषा को यथार्थ में निभा पायेगा,
सच्चे अर्थो में वो ही आदर्श मानव कहलायेगा,
हे जीव रूप के शिरोमणि..................
-------------------------------------------------------------
सोचता तो होगा ख़ुदा ,मर्द बना कर कितनी गुस्ताखी की है उसने,
………. हर जगह अत्याचार , व्याभिचार का लगा दिया इन्होने बाज़ार!!
………. हर जगह अत्याचार , व्याभिचार का लगा दिया इन्होने बाज़ार!!
कहीं महिलाएं, बच्चियां तो कहीं, मासूम बच्चे हो रहे हैं इनके शिकार,
……………बहुत रोया होगा ,कई रातों न सोया होगा!!
……………बहुत रोया होगा ,कई रातों न सोया होगा!!
इंसानियत के इन दुश्मनों को बना कर,
…………मर्द के रूप में हैवान दरिदों को धरती पर लाकर !!
…………मर्द के रूप में हैवान दरिदों को धरती पर लाकर !!
काश ख़त्म हो जाये इनका धरती से वज़ूद ,
………. इन्हें कर दिया जाये नेस्तनाबूद,
………. इन्हें कर दिया जाये नेस्तनाबूद,
नामर्दों को मिटा दिया जाये,
……….. फिर से धरा पर शांति, प्रेम, वफ़ा, करुणा बहाल हो जाये !!
……….. फिर से धरा पर शांति, प्रेम, वफ़ा, करुणा बहाल हो जाये !!
*************************************************************************
//1//
कुछ कर गुजरने की गर तमन्ना उठती हो दिल में
भारत मा का नाम सजाओ दुनिया की महफिल में |
कुछ कर गुजरने की गर तमन्ना उठती हो दिल में
भारत मा का नाम सजाओ दुनिया की महफिल में |
//2//
हर तूफान को मोड़ दे जो हिन्दोस्तान से टकराए
चाहे तेरा सीना हो छलनी तिरंगा उंचा ही लहराए |
हर तूफान को मोड़ दे जो हिन्दोस्तान से टकराए
चाहे तेरा सीना हो छलनी तिरंगा उंचा ही लहराए |
//3//
बंद करो ये तुम आपस में खेलना अब खून की होली
उस मा को याद करो जिसने खून से चुन्नर भिगोली |
बंद करो ये तुम आपस में खेलना अब खून की होली
उस मा को याद करो जिसने खून से चुन्नर भिगोली |
//4//
किसकी राह देख रहा , तुम खुद सिपाही बन जाना
सरहद पर ना सही , सीखो आंधियारो से लढ पाना |
किसकी राह देख रहा , तुम खुद सिपाही बन जाना
सरहद पर ना सही , सीखो आंधियारो से लढ पाना |
//5//
इतना ही कहेना काफी नही भारत हमारा मान है
अपना फ़र्ज़ निभाओ देश कहे हम उसकी शान है |
इतना ही कहेना काफी नही भारत हमारा मान है
अपना फ़र्ज़ निभाओ देश कहे हम उसकी शान है |
//6//
विकसित होता राष्ट्र हमारा , रंग लाती हर कुर्बानी है
फक्र से अपना परिचय देते,हम सारे हिन्दोस्तानी है |
विकसित होता राष्ट्र हमारा , रंग लाती हर कुर्बानी है
फक्र से अपना परिचय देते,हम सारे हिन्दोस्तानी है |
किसकी राह देख रहा , तुम खुद सिपाही बन जाना
सरहद पर ना सही , सीखो आंधियारो से लड़ पाना!
सरहद पर ना सही , सीखो आंधियारो से लड़ पाना!
No comments:
Post a Comment