हम वैचारिक दिवालिएपन के शिकार हैं,इसलिय आत्म विश्वास का अभाव है,जो हमारे मोरल को मार देता है,मरे हुए मोरल से कोई बाजी नही जीती जा सकती ?
देखा जा सकता है,जब हमारे खिलाडी मैदान में पसीना बहाते हैं,तब कुछ पाखंडी किस्म के लोग अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए मंदिरों में पूजा पाठ के लिय बैठ जाते हैं,की हे भगवन हमे गोल्ड मेडल दिलादे
देखा जा सकता है,जब हमारे खिलाडी मैदान में पसीना बहाते हैं,तब कुछ पाखंडी किस्म के लोग अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए मंदिरों में पूजा पाठ के लिय बैठ जाते हैं,की हे भगवन हमे गोल्ड मेडल दिलादे
,अगर पूजा और प्रार्थनाओं से गोल्ड मिलता तो फिर ,हमारे देश में रात दिन इतनी पूजा पाठ और आरतियाँ होती हैं,की अब तक हर भारतीय के गले में सोने की शिलाएँ लटकी होती .हम राजनीती के मोर्चे पर भी बौद्धिक दिवालियपन के शिकार हैं,हम आज की राजनीती का मूल्यांकन धर्म के आधार पर करते हैं,जबकि मौजूदा राजनीती अर्थ के इर्दगिर्द घुमती है,तब हमारा धार्मिक मूल्यांकन हमे अपने दोस्त और दुश्मन की भी सही पहिचान नही करने देता और येही कारण है,की विदेश निति के मोर्चे पर हम विफल है.लेकिन सबसे बड़ा धोखा तो हम खुद को या फिर अपनी आने वाली पीढ़ियों को तब देते हैं,जब युद्धों या फिर संघर्ष में भी पूजा करने बैठ गर जीत गए तो ,सैनिकों और जनता की कुर्बानियों का मखौल उड़ाते हुए इस तरह इतिहास लिखते हैं,की हमने अपनी प्रार्थनाओं के बल पर बिना खड्ग बिना ढाल जंग जीत ली है,और इसका परिणाम ये होता है,आनेवाली पीढ़ी ऐसे इतिहास से सबक ले युद्ध जितने के लिए पूजा और प्रार्थनाओं में बैठने लगती है,और हम हर बार बाजी हार जाते हैं,हमारा ये आध्यात्मिक ज्ञान या फिर बल दुनिये के भौतिक ज्ञान का मुकाबला कर अपने देश व जनता की कभी रक्षा न कर सका ,अगर सबूत चाहियें तो ,सोमनाथ -गौरी के मुकाबले ,भगवान-राम बाबर के मुकाबले अपनी खुद की रक्षा न कर पाए और अंग्रेज अपने भौतिक ज्ञान के मुकाबले हम पर दो सौ साल राज कर चले गए ,और आज भी हमारी हालत कमोबेश वही है,हम इस अहंकार के शिकार हैं,कि जल्दी ही विश्व गुरु बनने वाले हैं-कोई शक =रामेश्वर
रियो में भारतीय खिलाड़ियों को गीता पाठ सुनाया जाए तो क्या पदकों की संख्या बढ़ सकती है?
कल शर्म आई जब स्वामी विवेकान्न व भगवान क्रष्ण जैसे कर्मशीलो के देश मे खेल जीतने के लिये लोग हवन कर रहे है और मिडीया उसको बढा चढाकर पेस कर रह है। ये नयी पिढी को कर्म की बजाय अंधविस्वास मे धकेल रहे है।
रियो में भारतीय खिलाड़ियों को गीता पाठ सुनाया जाए तो क्या पदकों की संख्या बढ़ सकती है?
कल शर्म आई जब स्वामी विवेकान्न व भगवान क्रष्ण जैसे कर्मशीलो के देश मे खेल जीतने के लिये लोग हवन कर रहे है और मिडीया उसको बढा चढाकर पेस कर रह है। ये नयी पिढी को कर्म की बजाय अंधविस्वास मे धकेल रहे है।
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