Wednesday, August 24, 2016

शिक्षा का अधिकार अब एक मौलिक अधिकार

भारत माता के महान सपूतों में से एक, गोपाल कृष्ण गोखले यदि आज जिंदा होते तो देश के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार के अपने सपने को साकार होते देखकर सबसे अधिक प्रसन्न होते । गोखले वही व्यक्ति थे, जिन्होंने आज से एक सौ वर्ष पहले ही इम्पीरियल लेजिस्लेटिव एसेम्बली से यह मांग की थी कि भारतीय बच्चों को ऐसा अधिकार प्रदान किया जाए । इस लक्ष्य तक पहुंचने में हमें एक सदी का समय लगा है ।
सरकार ने अंतत: सभी विसंगतियों को दूर करते हुए इस वर्ष पहली अप्रैल से शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया है । शिक्षा का अधिकार अब 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए एक मौलिक अधिकार है । सरल शब्दों में इसका अर्थ यह है कि सरकार प्रत्येक बच्चे को आठवीं कक्षा तक की नि:शुल्क पढाई के लिए उत्तरदायी होगी, चाहे वह बालक हो अथवा बालिका अथवा किसी भी वर्ग का हो । इस प्रकार इस कानून देश के बच्चों को मजबूत, साक्षर और अधिकार संपन्न बनाने का मार्ग तैयार कर दिया है ।
इस अधिनियम में सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और अनिवार्य शिक्षा प्रदान का प्रावधान है, जिससे ज्ञान, कौशल और मूल्यों से लैस करके उन्हें भारत का प्रबुध्द नागरिक बनाया जा सके । यदि विचार किया जाए तो आज देशभर में स्कूलों से वंचित लगभग एक करोड़ बच्चों को शिक्षा प्रदान करना सचमुच हमारे लिए एक दुष्कर कार्य है । इसलिए इस लक्ष्य को साकार करने के लिए सभी हितधारकों — माता-पिता, शिक्षक, स्कूलों, गैर-सरकारी संगठनों और कुल मिलाकर समाज, राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार की ओर से एकजुट प्रयास का आह्वान किया गया है । जैसा कि राष्ट्र को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि सबको साथ मिलकर काम करना होगा और राष्ट्रीय अभियान के रूप में चुनौती को पूरा करना होगा ।
डॉ. सिंह ने देशवासियों के सामने अपने अंदाज में अपनी बात रखी कि वह आज जो कुछ भी हैं, केवल शिक्षा के कारण ही । उन्होंने बताया कि वह किस प्रकार लालटेन की मध्दिम रोशनी में पढाई करते थे और  अपने स्कूल तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी पैदल चलकर तय करते थे, जो अब पाकिस्तान में है । उन्होंने बताया कि उस दौर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने में भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । वंचित वर्गों के लिए शिक्षा पाने की मांग के संदेश बेहतर रूप में पेश नहीं किए जा सके ।
इस अधिनियम में इस बात का प्रावधान किया गया है कि पहुंच के भीतर वाला कोई निकटवर्ती स्कूल किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से इनकार नहीं करेगा । इसमें यह भी प्रावधान शामिल है कि प्रत्येक 30 छात्र के लिए एक शिक्षक के अनुपात को कायम रखते हए पर्याप्त संख्या में सुयोग्य शिक्षक स्कूलों में मौजूद होना चाहिए । स्कूलों को पांच वर्षों के भीतर अपने सभी शिक्षकों को प्रशिक्षित करना होगा । उन्हें तीन वर्षों के भीतर समुचित सुविधाएं भी सुनिश्चित करनी होगी, जिससे खेल का मैदान, पुस्तकालय, पर्याप्त संख्या में अध्ययन कक्ष, शौचालय, शारीरिक विकलांग बच्चों के लिए निर्बाध पहुंच तथा पेय जल सुविधाएं शामिल हैं । स्कूल प्रबंधन समितियों के 75 प्रतिशत सदस्य छात्रों की कार्यप्रणाली और अनुदानों के इस्तेमाल की देखरेख करेंगे । स्कूल प्रबंधन समितियां अथवा स्थानीय अधिकारी स्कूल से वंचित बच्चों की पहचान करेंगे और उन्हें समुचित प्रशिक्षण के बाद उनकी उम्र के अनुसार समुचित कक्षाओं में प्रवेश दिलाएंगे । सम्मिलित विकास को बढावा देने के उद्देश्य से अगले वर्ष से निजी स्कूल भी सबसे निचली कक्षा में समाज के गरीब और हाशिये पर रहने वाले वर्गों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करेंगे ।
इन लक्ष्यों पर जोर देने की जरूरत है । किन्तु उन्हें साकार करना एक बड़ी चुनौती हे । देश में लगभग एक करोड़ बच्चे स्कूलों से वंचित हैं, जो अपने आप में एक बड़ी संख्या है । प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी, स्कूलों में सुविधाओं का अभाव, अतिरिक्त स्कूलों की आवश्यकता और धन की कमी होना अन्य बड़ी चुनौतियां हैं ।
मौजूदा स्थिति चौंकाने वाली है । लगभग 46 प्रतिशत स्कूलों में बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं हैं, जो माता-पिता द्वारा बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का एक प्रमुख कारण है । देशभर में 12.6 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं । देश के 12.9 लाख मान्यता प्राप्त प्रारंभिक स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या 7.72 लाख है, जो कुल शिक्षकों की संख्या का 40 प्रतिशत है । लगभग 53 प्रतिशत स्कूलों में अधिनियम के प्रावधान के अनुसार निर्धारित छात्र-शिक्षक अनुपात 1: 30 से अधिक है ।
इस अधिनियम के क्रियान्वयन में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी एक प्रमुख बाधा है । इन रिक्तियों को भरने के उद्देश्य से अगले छ: वर्षों में लगभग पांच लाख शिक्षकों को भर्ती करने की योजना है ।
जहां तक धन की कमी का प्रश्न है, इस अधिनियम में राज्यों के साथ हिस्सेदारी का प्रावधान है, जिसमें कुल व्यय मे केन्द्र सरकार का हिस्सा 55 प्रतिशत है । एक अनुमान के अनुसार इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए अगले पांच वर्ष में 1.71 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी और मौजूदा वर्ष में 34 हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी । इनमें से केन्द्रीय बजट में 15,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है । वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार द्वारा शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए पहले से राज्यों को दिए गए लगभग 10,000 करोड़ रुपये का व्यय नहीं हो पाया है । इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए वित्त आयोग ने राज्यों को 25,000 करोड़ रुपये आबंटित किए हैं । इसके बावजूद, बिहार, उत्तर प्रदेश और ओड़िशा जैसे राज्यों ने अतिरिक्त निधि की मांग की है । प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि इस अधिनियम के क्रियान्वयन में धन की कमी नहीं होने दी जाएगी । इस परियोजना की सफलता के लिए सभी हितधारकों की ओर से एक ईमानदार पहल की आवश्यकता है । इस कानून के उल्लंघन पर नजर रखने के लिए एक बाल अधिकार आयोग गठित किया जाएगा ।
हमारे सामने कई अन्य चुनौतियां भी होंगी । निम्न आय समूह वाले माता-पिता परिवार की आय बढाने के लिए अपने बच्चों को काम करने के लिए भेजते हैं । कम उम्र में विवाह होना और जीविका के लिए लोगों का प्रवास करना भी ऐसे मुद्दे हैं जिनका हल करना इस अधिनियम के सफलातापूर्वक क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है ।
इस प्रकार भारत ने वैधानिक समर्थन के साथ एक सशक्त देश की आधारशिला रखने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम शुरू किया है । यह उन देशों के एक छोटे समूह में शामिल हुआ हे, जिनके पास ऐसे वैधानिक प्रावधान मौजूद हैं । वास्तव में यह शिक्षा को व्यापक बनाने की दिशा में उठाया गया एक अद्वितीय कदम है । प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि दलितों, अल्पसंख्यक और बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करने के लिए मुख्य रूप से प्रयास किया जाएगा । प्रधानमंत्री ने हरेक भारतीय को सुंदर भविष्य का सपना देखने की अपनी चाहत के बारे में बताकर प्रत्येक भारतीय को साक्षर बनाने हेतु अपनी सरकार की प्रतिबध्दता के बारे मे अवगत करा दिया है । अब इस लक्ष्य की ओर देखना हम सबका दायित्व है । शिक्षा का मुद्दा भारत के संविधान की समवर्ती सूची में शामिल है, अत: इसके लिए सभी स्तरों पर बेहतर सहयोग की जरूरत है।

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